मंगलवार, 29 सितंबर 2009

सीख देने के पहले सुविधाएं तो उपलब्ध कराएं गृह मंत्री

(लिमटी खरे)

केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने कुछ दिनों पहले देश की व्यवसायिक राजधानी दिल्ली के रहवासियों को सलके से रहने की सीख दी है। चिदम्बरम का कहना है कि दिल्लीवासियों को अब अंतर्राष्ट्रीय शहर के नागरिकों के मानिंद व्यवहार करना चाहिए। इसके पहले भी दिल्ली की मुख्यमंत्री सहित अनेक राजनेताओं ने दिल्ली वासियों को अनुशासित सभ्य आचरण करने की नसीहत दी जा चुकी है।
सवाल यह उठता है कि सिर्फ सीख देने भर से क्या अंतर्राष्ट्रीय स्तर का जीवन यापन सुलभ हो सकता है। निश्चित तौर पर नहीं। जब दिल्ली को वल्र्ड क्लास सिटी बनाने की बात आती है, राजनेता बड़ी ही गर्मजोशी से इसे अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप शहर बनाने की बात कहते हैं। कालांतर में उनकी गर्मजोशी की हवा निकल जाती है, और फिर बचा रहता है, दिल्ली का वही पुराना ढर्रा।
यह सच है कि दिनोंदिन आबादी के बोझ से दबी रहने वाली दिल्ली में लोगों में सिविक सेंस का अभाव साफ दिखाई पड़ता है। राजनेता इसकी तह में जाने के बजाए सारा का सारा दोषारोपण दिल्ली के रहवासियों पर करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री करने से नहीं चूकते हैं।
दिल्ली देश की राजनैतिक राजधानी है, अत: यहां रोजाना हजारों लोगों का आना जाना स्वाभाविक है। इसके अलावा बढ़ती बेरोजगारी में दिल्ली में जाकर रोजगार खोजना हर आम भारतीय का पहला सपना होता है। यही कारण है कि संपूर्ण भारत के कोने कोने से लोग यहां आकर रोजी रोजगार की तलाश करते हैं।
कानून अपनी जगह बहुत सख्त और लचीला भी है। मुश्किल तो तब आती है जब इसे अमली जामा पहनाने वाले अपने कर्तव्यों से मुंह फेर लेते हैं। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब रेहड़ियों पर खुली खा़द्य सामग्री बेचने पर प्रतिबंध लगाया गया था, आज भी हालात यह है कि दिल्ली के रहवासी प्रदूषित खुला हुआ खा़द्य पदार्थ खाने पर मजबूर हैं।
इसके अलावा दिल्ली में किराएदारों का रिकार्ड पुलिस के पास होना चाहिए था। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि आज दिल्ली में सत्तर फीसदी से भी अधिक किराएदारों के बारे में पुलिस को जानकारी ही नहीं है। वैसे भी दिल्ली आतंकवादियों के लिए ``साफ्ट टारगेट`` बनी हुई है।
अगले साल होने वाले राष्ट्रमण्डल खेलों के महज दस माह पूर्व ही केंद्रीय गृह मंत्री चिदम्बरम को यह याद आया कि दुनिया भर से आने वाले खिलाड़ियों और दर्शकों के सामने देश की राजनैतिक राजधानी का कौन सा स्वरूप प्रस्तुत करने जा रही है केंद्र सरकार। अंततोगत्वा उन्होंने इस बारे में एक अपील जारी कर दिल्ली वासियों को चेता ही दिया।
हमारे सामने चीन के ओलंपिक और जर्मनी के विश्व कप फुटबाल के उदहारण मौजूद हैं, जिनके आयोजन के कई साल पहले ही वहां की सरकारों ने इनके आयोजन के शहरों में नागरिकों के व्यवहारों को मानकों के अनुरूप बनाने की कवायद आरंभ कर दी थी।
विडम्बना ही कही जाएगी कि अभी कामन वेल्थ गेम्स के लिए दिल्ली के स्टेडियम और खिलाड़ियों के रूकने के स्थान ही तैयार नहीं हैं तो फिर नागरिकों के व्यवहारों के बारे में क्या कहा जाएर्षोर्षो खुद दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित सार्वजनिक रूप से इस बात को स्वीकार चुकीं हैं कि कामन वेल्थ गेम्स की तैयारियों को लेकर वे काफी नर्वस हैं।
समाजशास्त्र में औद्योगिकरण और नगरीकरण को एक दूसरे का पूरक माना जाता है। दिल्ली चूंकि देश की राजधानी है अत: यहां बाहर से आकर बसने वालों की तादाद अन्य महानगरों की तुलना में काफी अधिक है। दिल्ली के इंफ्रास्टकचर को सुधारने की बजाए अब तक नेताओं ने अपनी सेहत को ही सुधारा है।
चिदम्बरम की इस बात से नागरिकों को सीख लेकर अपने आचरण में आवश्यक सुधार लाना होगा, ताकि देश की छवि विदेशों में अच्छी ही जाए। गृह मंत्री को भी चाहिए कि वे प्रधानमंत्री से बात कर दिल्ली को वल्र्ड क्लास सिटी बनाने के सालों पुराने सरकारों के वादे को अमली जामा पहनाने के लिए समय सीमा तय करने का आग्रह करें।
बुनियादी सुविधाओं को तरसती दिल्ली में न साफ पानी ही पीने को मुहैया है और न ही सीवर सिस्टम। जरा सी बरसात हो जाने पर सड़कें तालाब में तब्दील हो जाती हैं। यातायात व्यवस्था का आलम यह है कि यातायात सप्ताह के दौरान ट्रेफिक पुलिस पूरी मुस्तेदी के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती है, फिर व्यवस्था वहीं वापस लौट जाती है।
सच है कि देर आयद दुरूस्त आयद की तर्ज पर गृह मंत्री ने कुछ अच्छा करने का फैसला लिया है। सुधार की शुरूआत पुलिस, बस चालकों, परिचालकों, यातायात पुलिस, आटो, टेक्सी चालकों और रिक्शा चालकों से ही की जानी चाहिए। रेल्वे स्टेशन और बस स्टेंड के इर्द गिर्द के दुकानदारों को प्रशिक्षित करना आवश्यक होगा।
इस सबके लिए जरूरी है सरकार और आम जनता के बीच खुशनुमा वातावरण में संवाद स्थापित करना होगा, जिसका अभाव साफ साफ दिखाई पड़ रहा है। पी.चिदंबरम को सोचना होगा कि उनके हाथ में कोई जादू की छड़ी नहीं है जिसे घुमाकर वे दिल्लीवासियों को सभ्य बना देंगे। इसके लिए यथार्थ के धरातल पर उतरकर कड़ाई से ठोस कार्ययोजना को अमली जामा पहनाना होगा वरना आठ माह बीतने में समय नहीं लगेगा।

रविवार, 27 सितंबर 2009

राजा ने दिया आशीवाद, ``खुश रहें, टुल्ली होकर पड़े रहें``


ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)
राजा ने दिया आशीवाद, ``खुश रहें, टुल्ली होकर पड़े रहें``




कांग्रेस के सबसे शक्तिशाली महासचिव एवं मध्य प्रदेश में लगातार दस साल तक निष्कंटक राज करने वाले राजा दिग्विजय सिंह की फितरत वैसे तो विवादों से दूर रहने की है, किन्तु अनजाने ही में मध्य प्रदेश मे एक पब के उद्घाटन पर आशीZवचन बोलकर बुरी तरह विवादित हो गए। दरअसल राजा दिग्विजय सिंह अपने एक गण के मध्य प्रदेश की व्यवसायिक राजधानी इंदौर में शराब खाने का उद्घाटन करने पहुंचे थे। उधर केंद्र सरकार और कांग्रेस अपने संगी साथियों को सादगी ओढ़ने की नसीहत दे रही है, वहीं दूसरी ओर राजा जी पब का उद्घाटन कर रहे हैं। सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह रही कि दिग्गी राजा ने वहां बेसख्ता एक टिप्पणी कर डाली, ``लोग खुश रहें, पीकर पड़े रहें, आपका भंडार भरा रहे``। इशारों इशारों में बात करने के मशहूर दिग्विजय सिंह की इस बात के निहितार्थ आज भी सभी खोजने में लगे हुए हैं।


सिंगापुर में सत्य की खोज


आदि अनादिकाल से यह मशहूर रहा है कि लोग सत्य की खोज के लिए हिमालय अथवा एकांत जंगलों को चुना जाता रहा है। समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह हाल ही में विलासिता के लिए मशहूर सिंगापुर से अमर ज्ञान लेकर लौटे हैं। अमर सिंह ने लोटते ही कहा कि सिंगापुर में उन्हें सत्य का ज्ञान हो गया है। वैसे भी चकाचौंध भरा सिंगापुर आम भारतियों के लिए रंग रंगेलियों के लिए खासा विख्यात और कुख्यात है। सियासी गलियारों में इस बात के मायने खोजे जा रहे हैं कि आखिर सपा महासचिव अमर सिंह सिंगापुर जैसे विलासिता से परिपूर्ण शहर से कौन सा सत्य खोजकर वापस आए हैं


मनमोहन के निशाने पर हैं ममता, जोशी, थुरूर और आजाद


देश के वजीरे आला अपनी दूसरी पारी में कुछ ज्यादा ही कांफिडेंट नजर आ रहे हैं। इस बार वे अपने मंत्रीमण्डल के सहयोगियों पर नकेल कसने को कुछ ज्यादा ही आतुर दिखाई दे रहे हैं। सूत्रों की मानें तो उनकी नजरें सबसे पहले रेल मंत्री ममता बनर्जी, ग्रामीण विकास मंत्री सी.पी.जोशी, स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नवी आजाद और विदेश राज्य मंत्री शशि थुरूर पर हैं। सौ दिनी कामकाज की रिपोर्ट भले ही सार्वजनिक न की गई हो किन्तु प्रधानमंत्री ने इस पर गहन मनन आरंभ कर दिया है। पीएमओ के सूत्रों का कहना है कि पीएम चार मंत्रियों के परफारमेंस से नाखुश दिख रहे हैं। जल्द ही इन चारों मंत्रियों के पर कतरे जा सकते हैं। एक ओर जहां थुरूर को सोनिया का तो जोशी को राहुल का वरद हस्त प्राप्त है। आजाद अल्प संख्यक हैं तो ममता संप्रग की प्रमुख घटक हैं। पीएम पशोपेश में हैं कि वे इनके खिलाफ कार्यवाही के लिए राजमाता सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी को तैयार कैसे करें। सुना है पीएम ने कांग्रेस के इन दोनों ही खलीफों को सिद्ध करने के लिए इनके नांदियों, दिग्विजय सिंह, अहमद पटेल और विसेंट जार्ज को साधना आरंभ कर दिया है। अब देखना है कि प्रधानमंत्री अपने मकसद में कितना कामयाब हो पाते हैं


काक और वृक्षों की कमी ने श्राद्धालु परेशान


कांक्रीट जंगलों में तब्दील होते हिन्दुस्तान के शहरों में पेड़ों की कमी साफ तौर पर परिलक्षित होने लगी है। दिखावे के लिए सभी पर्यावरण पे्रमी होने का दावा करते हैं किन्तु जहां अमली जामा पहनाने की बात आती है तो सभी पल्ला झाड़कर दूर खड़े दिखाई देते हैं। अभी हाल ही में करए दिन (पितृ पक्ष) का महीना बीता। इस पावन माह में पितरों का तर्पण करने के दौरान कौओं को भोजन कराने से माना जाता है कि पितरों की आत्मा तृप्त हो जाती है। पेड़ों की सेवा का अलग ही महत्व होता है, इसके साथ ही साथ पेड़ों पर ही इन पक्षियों का वास भी होता है। कमोबेश हर शहर में लोग कौओ और पेड़ों की कमी से दो चार हुए हैं। राजधानी दिल्ली में भी एक मर्तबा मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा था कि अब शहर में गोरैया दिखाई नहीं पड़ती। सच ही है उंची उंची इमारतों के बीच बसे शहर में गोरैया, कौए एवं अन्य पक्षियों का कलरव सुनाई नहीं पड़ता है। आधुनिकता की दौड़ में बढ़ती आबाद ही इनकी सबसे बड़ी दुश्मन के तौर पर सामने आ रही है।


शिवराज ने कसी ब्यूरोक्रेसी की लगाम


जब केंद्र सरकार मितव्ययता के ``अनूठे`` उदहारण पेश कर रही हो तो भला मध्य प्रदेश सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान उससे दूर कैसे रह सकते हैं। मध्य प्रदेश में भी फिजूलखर्ची रोकने की गरज से फर्नीचर, बंग्लों की साजसज्जा, वाहनों पर होने वाला बिना काम का व्यय आदि पर अंकुश लगाया जाएगा। सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान ने राज्य में सरकारी धन के अपव्यय पर रोक लगाने के लिए ``सीएम मानिट सिस्टम`` के नाम से निगरानी तंत्र बनाया जा रहा है। मुख्यमंत्री खुद इसकी समीक्षा करेंगे, सी एम के इस कदम से ब्यूरोक्रेसी सकते में हैं। अधिकारियों की ``मेम साहबों`` के तेवर मुख्यमंत्री की इस कवायद से तीखे ही नजर आ रहे हैं। अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री अपनी व्यस्त प्रशासनिक और राजनैतिक दिनचर्या की मजबूरियों से जनता के पैसे के दुरूपयोग रोकने के लिए अलग से समय कैसे निकाल सकेंगे। वैसे भी शिवराज सिंह चौहान के चाहने वालों की कमी नहीं है, संघ और भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारियों के बीच उनकी स्थिति बत्तीस दांतों के बीच में जीभ की ही है।


मैं तो पी के टुल्ली हो गया रे . . .


अमूमन देश के अस्सी फीसदी लोग इस वक्त नशे की गिरफ्त में हैं, भले ही वह मदिरा का सुरूर हो या किसी अन्य नशे का जलाल हो युवा वर्ग इसकी जद में तेजी से आ रहा है। चूंकि आबकारी विभाग से प्राप्त होने वाला राजस्व राज्यों के खजाने को भरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, अत: गुजरात जैसे राज्यों को छोड़कर कोई भी इसे हाथ लगाने से गुरेज ही करता है। हिमाचल प्रदेश में एक मजेदार वाक्या सामने आया। मंत्रीमण्डल की एक बैठक (केबनेट) में प्रदेश सरकार के एक मंत्री नशे में पूरी तरह टुल्ली होकर पहुंच गए। बैठक में जब मंत्री महोदय असहज नजर आए तो मुख्यमंत्री ने हस्ताक्षेप कर उन्हें बैठक से बाहर भिजवाया। मामला हाई प्रोफाईल मंत्री का था, सो वहीं के वहीं इसका पटाक्षेप कर दिया गया। कहा जाता है इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छिपते, इसी तर्ज पर यह मामला भी उनके राजनैतिक चाहने वाले अन्य मंत्रियों और अधिकारियों के रास्ते से होकर राजनैतिक फिजां में तैरने लगा है।


मंत्री के दौरे से पीआईबी को परहेज


केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री जयराम रमेश पिछले दिनों मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल दौरे पर थे। केंद्रीय मंत्रियों के कार्यक्रमों की मीडिया कवरेज आदि की जवाबदेही वैसे तो सूचना प्रसारण मंत्रालय के अधीन काम करने वाले कार्यालय प्रेस इंर्फमेशन ब्यूरो (पीआईबी) की होती है, किन्तु इस बार एसा देखने को नहीं मिला। मंत्री को मीडिया से रूबरू करवाने का काम वन विभाग के मातहत करते दिखे। पीआईबी भोपाल के कार्यालय में चल रही बयार के अनुसार हम क्यों मगज मारी करें। दिल्ली के प्रेस वालों की गरज होगी तो वे आएंगे। बताते हैं कि इंफरमेशन एण्ड ब्राडकास्टिंग मिनिस्ट्री के अंतर्गत कार्यरत पीआईबी, दूरदर्शन और आकाशवाणी तीनों ही संस्थाओं का प्रभार एक बड़बोले अधिकारी के पास होने से यह हादसा हुआ। कहा जा रहा है कि आई एण्ड बी मिनिस्ट्री में गहरी दखल रखने वाले उक्त अधिकारी के हौसले इतने बुलंद हैं कि पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान केंद्र में कंाग्रेसनीत संप्रग सरकार होने के बावजूद भी उन्होंने कांग्रेस को मिनिमम कवरेज ही प्रदान कर भाजपा की शान में कशीदे गढ़े हैं।


जालसाजी में पत्रकार को जेल


न्यूज पोर्टल में कार्यरत एक पत्रकार को जालसाजी के आरोप में जेल की हवा खानी पड़ी। बताया जाता है कि उक्त पत्रकार ने चंडीगढ़ पुलिस को फर्जी फेक्स संदेश भेजकर अपने लिए जेड स्तर की सिक्यूरिटी मांगी थी। मामले की सूचना मिलते ही दिल्ली पुलिस हरकत में आई और उसने फोन के डिटेल निकलवाकर यह साबित करने का प्रयास किया कि जिस फोन का उपयोग फेक्स के लिए किया गया था वह उक्त पत्रकार के नाम पर ही है। दिल्ली पुलिस ने उस पत्रकार के खिलाफ कार्यवाही कर पत्र सूचना कार्यालय से इसकी मान्यता भी रद्द करने का आग्रह किया है। मीडिया से जुड़े लोगों द्वारा तरह तरह के हथकंडो से चर्चित होने का प्रयास किया जाता है, किन्तु इस तरह की धोखाधड़ी से निश्चित तौर पर मीडिया की छवि पर गहरा धक्का लगे बिना नहीं रहेगा।


विधायक ने उगले 12 करोड़ रूपए


झारखण्ड के झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के गिरीडीह के विधायक मुन्ना लाल ने आयकर विभाग के सामने 12 करोड़ रूपयों की अवैध अघोषित संपत्ति स्वीकार कर सभी को चौंका दिया हैं अब सियासी गलियारों के साथ ही साथ देश भर में इस बात पर बहस छिड गई है कि एक विधायक आखिर पांच सालों में कितना धन एकत्र कर सकता है। विधायक के पास से 50 लाख रूपए नकद, 50 लाख रूपयों के जेवरात, 200 एकड़ जमीन, दर्जनों बैंक एकाउंट, लाकर, एवं आवासों के कागजात मिले हैं। पैसे के बल पर राजनीति कर राजनीति के बल पर रूपया जमा करना दबंगों का प्यारा शगल रहा है। आज देश में नब्बे फीसदी से अधिक उद्योगपति राजनीति में उतरकर अपनी साख और धन संपदा को कई गुना बढ़ाने में लगे हुए हैं। लोगों को डर सता रहा है कि कहीं इस तरह के उद्योगपति राजनेता कल देश को गिरवी न रख दें।


पटेल के गढ़ में बिसेन की सेंध


कहते हैं इतिहास अपने आप को दोहराता है। कुछ सालों पूर्व मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के युवा राजनेता प्रहलाद सिंह पटेल ने बरास्ता सिवनी संसदीय क्षेत्र, बालाघाट जाकर वहां अपना वर्चस्व स्थापित किया था। बालाघाट के वरिष्ठ राजनेता गौरी शंकर बिसेन को यह बात नागवार गुजरी कि उनकी मांद में आकर कोई अपना वर्चस्व इस तरह स्थापित करे। इसके बाद पटेल और बिसेन के बीच शीत युद्ध आरंभ हो गया था। भारतीय जनशक्ति पार्टी के आधार स्तंभ रहे प्रहलाद सिंह पटेल के भाजपा में वापसी के मार्ग में भी मध्य प्रदेश सरकार के सहकारित मंत्री बिसेन ने शूल बोए थे। हाल ही में संपन्न हुए तेंदूखेड़ा उपचुनाव में गोरी शंकर बिसेन ने प्रहलाद सिंह पटेल के गढ़ में सेंध लगाकर अपना बदला ले लिया है। नरसिंहपुर जिले के तेंदूखेड़ा में भाजपा ने परचम लहराया, जबकि पूर्व में यह सीट कांग्रेस के वर्चस्व वाली थी। तेंदूखेड़ा उपचुनाव के प्रभारी बिसेन ने यह तक कह दिया था कि अगर तेंदूखेडा से भाजपा हारती है तो वे मंत्रीमण्डल से त्यागपत्र दे देंगे।


सादगी बनी मजाक


भले ही कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी सादगी के प्रहसन के लिए हवाई जहाज की इकानामी क्लास में दस सीटें बुक कराकर और उनके पुत्र तथा कांग्रेस की नजरों में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी शताब्दी एक्सप्रेस की बोगी को रिजर्व कराने का जतन कर रहे हों पर उनकी ही पार्टी क आलम्बरदार इसमें सेंध लगाने से नहीं चूक रहे हैं। लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुईं शीला दीक्षित सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ के जलवे ही कुछ अलग हैं। तीरथ चाहतीं हैं कि उनके मंत्रालय में एक सलाहकार की नियुक्ति की जाए वह भी 18 लाख रूपए सालाना की दर से। डेढ लाख रूपए महीना तनख्वाह पाने वाला सलाहकार भला एसा कौन सा काम कर सकेगा जो अस्सी हजार रूपए महीना पाने वाला विभागीय सचिव नहीं कर पाएगा। सच ही है सादगी का दिखावा करना अलग बात है और उसे अपने जीवन में अंगीकार करना एकदम जुदा बात है।


मंदिर मिस्जद बैर कराते, मेल कराते जेल


आज अगर सदी के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन के पिता जीवित होते तो वे अपनी अनुपन कृति मधुशाला में एक अंश और जोड़ देते कि मंदिर मिस्जद बैर कराते, मेल कराते कारागार। जी हां दिल्ली में एसा ही कुछ देखने सुनने को मिल रहा है। मुस्लिम समुदाय के पाक रमजान माह में देश के सबसे बड़े तिहाड़ जेल में सौ से भी अधिक सनातन पंथी (हिन्दु धर्मावलंबी) कैदियों ने रोजा रखकर एक मिसाल कायम की। इतना ही नहीं मुस्लिम समुदाय को मानने वाले डेढ सौ से भी अधिक मुसलमान कैदियों ने नवरात्र के पहले दिन उपवास रखकर भाईचारे और सांप्रदायिक सौहाद्र की अनूठी मिसाल पेश की है। सच ही कहा गया है कि मजबह नहीं सिखाता आपस में बैर करना। वो तो सियासी दल हैं जो अपने निहित स्वार्थों के चलते अलग अलग धर्मों को मानने वाले लोगों के बीच दीवारें खड़ी करते जा रहे हैं।


क्या डीजीसीए का खौफ लाईन पर ला सकेगा नेताओं को


तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। दशहरे के उपरांत चुनाव प्रचार जोर पकड़ेगा, और उसके बाद हेलीकाप्टर (चौपर) की मांग तेजी से बढ़ जाएगी। सुरक्षा नियमों को ध्यान में रखकर उड्डयन विभाग के अधिकारियों ने पायलट्स की एक विशेष बैठक बुलाकर ताकीद किया है कि वे चौपर में बैठे यात्रियों (नेताओं) की इच्छा के मुताबिक नहीं वरन सुरक्षा नियमों के हिसाब से उड़ान भरें। संचालक नागर विमानन (डीजीसीए) ने दिशा निर्देश जारी कर नेताओं को सचेत करते हुए कहा है कि अगर उन्हें हेलीकाप्टर में उड़ान भरनी है तो वे पायलट की बातों को दरकिनार न करें। अमूमन नेताओं द्वारा कार्यकर्ताओं को खुश करने की गरज से क्षमता से अधिक लोगों की सवारी गांठने, सूरज ढलने के बाद कम उंचाई पर उड़ान भरवाने ताकि वे अपने गंतव्य को बेहतर तरीके से देख सकें आदि कदम उठाए जाते हैं। चुनाव में साम, दाम दण्ड भेद की नीति अपनाई जाती है, फिर भला ये नेता डीजीसीए या उड्डयन विभाग की परवाह क्यों करने चले।


एक छत के नीचे रह सकेंगे सांसद


बहुत पुरानी कहानी है कि देश से जब मेंढकों को निर्यात किया जाता था तो वे खुले वेगन में ही भेजे जाते थे, और जितनी संख्या में भेजे जाते थे, उतनी ही संख्या में गंतव्य तक पहुंचते थे। जब इसका कारण पता किया गया तो पता चला कि जब कोई मेंढ़क बाहर निकलने के लिए छलांग लगाता था तो दूसरा मेंढक बिना जतन किए ही बाहर जाने की गरज से उसका पैर पकड़ लेता था, फिर तीसरा दूसरे का। यह क्रम अनवरत तब तक चलता जब तक कि पहला मेंढ़क थककर वापस वेगन में न गिर जाए। अब दिल्ली में सांसदों को एक ही छत के नीचे बहुमंजिला फ्लेट में एक साथ निवास करवाने की तैयारियां की जा रही है। लालफीताशाही और सांसदों की अनिच्छा के चलते दिल्ली में विशम्बर दास मार्ग पर प्रस्तावित बहुमंजिला सांसद आवास के निर्माण में देरी के लिए अब प्रधानमंत्री से हस्ताक्षेप की गुहार लगाई जा रही है। यहां 52 आवास प्रस्तावित हैं, मुश्किल यह है कि जहां ये बनने हैं वहां वित्त राज्य मंत्री एस.एस.पालनिमणिकम निवासरत हैं। अब बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधकर उनसे आवास खाली करवाए।

पुच्छल तारा


केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री शशि थुरूर एक के बाद एक बयानों से विवादों में फंसते जा रहे हैं। पहले सादगी दर्शन में कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी की इकानामी क्लास में देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली से व्यवसायिक राजधानी मुंबई तक की गई इकानामी क्लास में यात्रा के तुरंत बाद हवाई जहाज की इकानामी क्लास को मवेशी क्लास की संज्ञा से वे मीडिया की सुर्खियों में रहे, फिर कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के द्वारा नसीहत देने के चलते। अब उन्होंने काम और बैठकों के बोझ के मामले को अपने टि्वटर फ्रेंडस के बीच शेयर किया है। लोग अब कहने ही लगे हैं कि बेहतर होगा कि प्रधानमंत्री डॉ. एम.एम.सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी थुरूर के बोझ को कम करके एक नया मंत्रालय बनाएं जिसका नाम हो सायबर मंत्रालय, और नेट में विशेषकर टि्वटर प्रेमी शशि थुरूर को इस मंत्रालय का कबीना मंत्री बनाकर उपकृत कर दें, इससे थुरूर की इंटरनेट क्षुदा भी शांत होगी और देश को सायबर सेल का एक मंत्री भी मिल जाएगा।

गुरुवार, 24 सितंबर 2009

सहयोगियों ने ही नाक में दम कर रखा है मनमोहन की

सहयोगियों ने ही नाक में दम कर रखा है मनमोहन की

(लिमटी खरे)






कहा जाता है कि इर्द गिर्द के लोग (सराउंडिंग) अगर अच्छी और समझदार हो तो वह आदमी को महान बनाती है, और अगर यह बड़बोली और उच्च श्रंखल हो जाए तो इसका गहरा प्रभाव उस व्यक्ति के व्यिक्त्व पर अवश्य ही पड़ता है। देश के वजीरे आला के साथ कमोबेश यही स्थिति है, कि उनके सहयोगी ही उनके लिए परेशानी का सबब बनते जा रहे हैं।


सोशल नेटविर्कंग वेव साईट टि्वटर पर एक के बाद एक टिप्पणियां करने के कारण विदेश राज्य मंत्री शशि थुरूर चर्चाओं में आ गए। फिर सोनिया गांधी की इकानामी क्लास की यात्रा के उपरांत उनकी टिप्पणी ``केटल क्लास`` की टिप्पणी ने सोनिया गांधी को आक्रमक मुद्रा में लाकर खड़ा कर दिया।


विदेश दौरे से लौटने के बाद सोनिया गांधी ने उन्हें देख समझकर बोलने की हिदायत दी ही थी कि एक बार फिर उन्होंने अपने उपर काम और बैठकों के बोझ की बात इस वेव साईट पर लिखकर अपने आप को फिर विवादित कर लिया। अब उनके विरोधी यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि प्रधानमंत्री डॉ.एम.एम.सिंह और कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी को थुरूर का वजन कम करने की बात सोचना ही होगा।


थुरूर के बड़बोलेपन का आलम तो यह रहा कि उनके मवेशी दर्जे के बारे में प्रधानमंत्री को ही आगे आना पड़ा। प्रधानमंत्री ने भी इस मसले पर सफाई देते हुए कह डाला कि थुरूर ने मजाक में यह टिप्पणी कर दी होगी। सवाल यह उठता है कि हवाई जहाज में इकानामी क्लास में सफर करने वाले यात्रियों और शशि थुरूर में क्या जीजा साले का रिश्ता है, जो कि मजाक में कोई बात कही जाए। शशि थुरूर केंद्र सरकार में जिम्मेदार मंत्री हैं, और उनकी इस तरह की टिप्पणी पर प्रधानमंत्री का इस तरह का वक्तव्य सोचनीय है।


प्रधानमंत्री की परेशानी का सबब बन चुके केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नवी आजाद की बेलगाम जुबान ने कम कहर नहीं ढाया। मंत्रियों को तोल मोल के बोल की नसीहत का उन पर कोई असर नहीं हुआ है। पहले स्वाईन फ्लू पर चर्चा के दौरान राज्य सरकारों को ब्लडी स्टेट गर्वंमेंट तो फिर फ्लू की शिकार पुणे निवासी रिदा शेख को 85 अन्य लोगों में इस संक्रमण का संवाहक बताकर उन्होंने केंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं रख छोड़ी।


केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री का राज्य सभा में दिया गया जवाब भी कम विवादित नहीं रहा। उन्होंने कहा कि उनका यह प्रयास था कि वे स्विर्णम चतुभुZज के उत्तर दक्षिण गलियारे को अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा जिले से होकर ले जाना चाहते थे, किन्तु वहां राष्ट्रीय राजमार्ग न होने से उनकी मंशा अमली जामा नहीं पहन सकी। सवाल यह उठता है कि स्विर्णम चतुभुZज और उत्तर दक्षिण गलियारे के निर्माण के पीछे उद्देश्य घुमावदार रास्तों को सीधा करने के साथ ही साथ दूरी को कम करके इंधन की बचत था। अगर छिंदवाड़ा में एन एच होता तो क्या इन उद्देश्यों को तिलांजली देकर इसे बरास्ता छिंदवाड़ा ले जाया जाता


केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश इन सभी से दो कदम आगे ही निकलते दिख रहे हैं। उन्होंने भी उत्तर दक्षिण गलियारे को पेंच और कान्हा के वन्य जीव कारीडोर से होकर न गुजरने की बात कहकर सभी को चौंका दिया। वस्तुत: वर्तमान में इस तरह का कोई कारीडोर ही अस्तित्व में नहीं होना बताया जा रहा है।


रमेश ने पिछले दिनों भोपाल में यूनियन काबाइड के बंद पड़े कारखाने में जाकर संयंत्र के कचरे पर पर्यावरण विशेषज्ञों की चिंताओं को सिरे से खारिज कर खासी मुसीबत खड़ी कर दी। छपास के रोगी होने का प्रमाण देकर उन्होंने भी अपने हाथों में सांप लेकर पर्यावरण पे्रमियों को अपने खिलाफ शिकायत दर्ज कराने का मौका दे डाला।


समलेंगिगता के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय की तारीफ कर केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोईली ने सभी को चौंका दिया। मोईली के इस कदम ने धार्मिक नेताओं को उनके और केंद्र सरकार के खिलाफ तलवारें निकालने के मार्ग प्रशस्त किए। हालात तब काबू में आए जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओं द्वारा इस मामले में बीच बचाव किया गया।


इसके साथ ही गठबंधन में शामिल ममता बनर्जी खुद भी मनमोहन सिंह के नाक का बाल बनीं हुईं हैं। पूर्व में गठबंधन के रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल के बारे में श्वेत पत्र लाने की उनकी मंशा और घोषणा को बमुश्किल रोका जा सका, वरना कांग्रेस के लिए जवाब देना मुश्किल हो जाता।


लालू यादव से खार खाए बैठीं ममता उनके हर फैसले को ठंडे बस्ते के हवाले ही करती जा रहीं हैं। अभी हाल ही में नेता प्रतिपक्ष लाल कृष्ण आड़वाणी के सहयोगी सुधींद्र कुलकणीZ को रेल्वे की उच्च स्तरीय समिति में शामिल कर उन्होंने विपक्ष को सरकार पर चढाई का मौका प्रदान कर दिया है।


सत्ता के मद में मदमस्त मनमोहन सरकार की टीम के कुछ मेम्बरान को छोड़कर शेष सभी अब पूरी तरह बेलगाम होते जा रहे हैं। प्रधानमंत्री डॉ. मन मोहन सिंह ने समय रहते अगर इन मंत्रियों की मुश्कें नहीं कसी तो आने वाले समय में अपने सहयोगियों पर अंकुश लगाने में पीएम की पेशानी पर पसीने की बूंदे दिखाई दें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।


मंगलवार, 22 सितंबर 2009

मीडिया और पालीटिक्स में कार्पोरेट कल्चर हावी

मीडिया और पालीटिक्स में कार्पोरेट कल्चर हावी


(लिमटी खरे)

चिंतक और विचारक के.एन.गोविंदाचार्य की यह बात कि आज के समय में लोकतंत्र सबसे चिंताजनक दौर में है, हर दृष्टिकोण से खरी उतर रही है। यह बात मीडिया पर ही उतनी ही लागू होती है। मीडिया और राजनीति में आज कार्पोरेट कल्चर पूरी तरह हावी हो चुका है।

सच ही है आज नेतागण और संपादक प्रबंधकों की भूमिका में तो कार्यकर्ता और पत्रकार कर्मचारियों की भूमिका में ही नजर आ रहे हैं। रही बात पार्टी या मीडिया संस्थानों की तो ये पूरी तरह से कंपनी की शक्ल अिख्तयार कर चुके हैं। जिसके पास जितना धन और संसाधन मौजूद हैं, वह उतना ही बड़ा नेता या पत्रकार बनने की जुगत में लगा हुआ है।

वास्तव में देखा जाए तो आज जनसेवा का माध्यम माने जाने वाली दोनों ही रास्ते अपने पथ से भटककर निहित स्वाथों की बलिवेदी चढ़ चुके हैं। जिस तरह कार्पोरेट सेक्टर में ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए गलाकाट स्पर्धा मची रहती है, ठीक उसी तरह इन दोनों ही क्षेत्रों में अपने आप को स्थापित दर्शाने के लिए हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।

एक समय था जब नेता और मीडिया दोनों ही समाज के लिए उत्तरदायी होते थे। एक काल था जब कवियों और आलोचकों से देश के नीति निर्धारक खौफ खाते थे। कवि अपने छंदों के माध्यम से सरकार की बखिया उघेड़ देते थे, तो आलोचकों द्वारा नेतागिरी और मीडिया को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता था। आज समय बदल चुका है, आज ये आलोचक और कवि न जाने कहां खो गए हैं। इन दोनों प्रजातियों के लगभग विलुप्त होने के चलते मीडिया और राजनीति अपने पथ से भटक चुकी है।



गांधी शान्ति प्रतिष्ठान में ``लोकतंत्र और पत्रकारिता को कैसे बचाया जाए`` विषय पर हुई संगोष्ठी का स्वागत किया जाना चाहिए। आशा की जानी चाहिए कि इस तरह की गोिष्ठयां या बहस बारंबार करवाई जाकर मीडिया और राजनीति दोनों को आईना दिखाया जाए।



प्रिंट, फिर दृश्य और श्रृव्य मीडिया के बाद अब वेब मीडिया का जादू सर चढ़कर बोल रहा है। सबसे अधिक मांग ``ब्लाग`` की है। हर वर्ग के लोग आज खुलकर ब्लाग पर उंगलियां चटकाने से नहीं चूक रहे हैं। अपने अहसासों की अभिव्यक्ति का एक अथाह और सरलता से प्राप्त होने वाला सागर बन चुका है यह।



विचारों की अभिव्यक्ति के लिए अखबारों में ``पत्र संपादक के नाम`` अब गुजरे जमाने की बात हो गई है। विजुअल मीडिया में जब तक दूरदर्शन का वर्चस्व रहा तब तक पाठकों के पत्रों को इसमें स्थान मिलता रहा है, किन्तु जैसे ही दूरदर्शन के बाद निजी समाचार चेनल्स की बाढ आई पाठकों और दर्शकों के विचार केवल पान की दुकानों, चौक चौराहों पर चर्चा तक ही सीमित रह गए।



अस्सी के दशक तक मीडिया की लगाम मूलत: पत्रकारिता से जुड़े लोगों के हाथों में ही रही है। इसके बाद निहित स्वार्थों के चलते मीडिया उद्योगपतियों की लौंडी बनकर रह गया है। मीडिया मुगल बनने की चाह में धनाड्य लोगों ने अपनी थैलियां खोलीं और मीडिया में प्रधान संपादक या संपादक बनकर राज करना आरंभ कर दिया।



एक समय था जब समाचार पत्रों के मालिक नियमित तौर पर लेखन कार्य किया करते थे। आज कार्पोरेट कल्चर में व्यवस्थाएं बदल चुकी हैं। आज मीडिया के मालिक संपादकों को बुलाकर अपनी पालिसी और स्टेंड बता देते हैं, फिर उसी आधार पर मीडिया उसे अपनी पालिसी बता आगे के मार्ग तय कर रहा है, जो निश्चित तौर पर प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ के लिए अशुभ संकेत ही कहा जाएगा। रूतबे, निहित स्वार्थों और शोहरत के लिए की जाने वाली पत्रकारिता का विरोध किया जाना चाहिए।



जिस तरह माना जाता है कि (कुछ अपवादों को छोड़कर) कंप्यूटर हिन्दी भाषा नहीं समझता, अर्थात हिन्दी फॉट लोड कर आप हिन्दी में लिख जरूर सकते हैं किन्तु अगर आपको कोई कमांड देनी हो तो उसे अंग्रेजी में ही देना होगा। ठीक उसी तरह भारत की शीर्ष राजनीति आज भी अंग्रेजी की गुलामी करने को मजबूर है। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि देश के नीति निर्धारकों की नजरों में आज भी अंग्रेजी मीडिया पर ही आश्रित हैं। ब्यूरोक्रेसी और टॉप लेबल के पालीटिशन आज भी अंग्रेजी के ही पोषक नजर आ रहे हैं।



कलम के दम पर धन, शोहरत और समाज में नाम कमाने वाले पत्रकारों ने अपनी कलम बेचने या गिरवी रखने में कोई कोर कसर नहीं रख छोड़ी। पत्रकारिता को बतौर पेशा अपनाने वाले ``जनसेवकों`` की लंबी फेहरिस्त मौजूद है। कल तक व्यवस्था के खिलाफ कलम बुलंद करने वाले जब उसी व्यवस्था का अंग बनते हैं तो दम तोड़ते तंत्र में उनका ज़मीर न जाने कहां गायब हो जाता है



टूटती अर्थव्यवस्था में अब सरकारी नौकरियों में सेवानिवृति के उपरांत पेंशन समाप्ति के नियम भी आ गए हैं। सांसद या विधायक बनने के बाद आजीवन पेंशन सुविधा के साथ ही साथ उन्हें लाईफ टाईम अचीवमेंट अवार्ड के तौर पर मुफ्त रेल्वे पास भी मुहैया करवाए जाते हैं। राजनीति में रहते हुए अनर्गल तरीके से लाभ कमाने के सैकड़ों अवसर भी मिलते हैं, रूतवे के साथ। फिर भला कोई बरास्ता मीडिया जनसेवक क्यों न बनने जाए



मीडिया और राजनीति अब जनसेवा का साधन कतई नहीं रह गई है। दोनों ही पेशों में आने वाले बेहतर जानने लगे हैं कि वे उस क्षेत्र में जा रहे हैं जहां की पंच लाईन है `` मिले मौका, मारो चौका``। जैसे ही लाभ कमाने के उचित और अनुचित अवसर मिलते हैं, अवसरवादी नेता और पत्रकार मौका कतई नहीं चूकते हैं।



नब्बे के दशक के उपरांत मीडिया, नौकरशाही और राजनीति के काकटेल ने देश की एक एसे रास्ते पर ढकेल दिया है, जिसमें कुछ दूरी तक तो चिकनी और रोशनी से नहाई सड़क दिखाई दे रही है किन्तु कुछ ही दूर जाने के बाद पड़ने वाले मोड़ के बाद स्याह अंधेर में डूबा जानलेवा दलदल किसी को दिखाई नहीं दे रहा है।







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राजनीति से बोझिल हो रहीं हैं सोनिया !


0 राहुल की ओर सत्ता के हस्तांतरण की तैयारियां




(लिमटी खरे)


नई दिल्ली। दस सालों से कांग्रेस की सक्रिय राजनीति करने वाली कांग्रेस सुप्रीमो लगता है अब राजनीति से अवकाश चाह रहीं हैं। दिन रात उघेड़बुन और जोड़ तोड़ में उलझीं सोनिया को जब भी इससे दूर जाने का समय मिलता है, उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता है।

अभी हाल ही में मैसूर में अनजाने ही सही किन्तु सोनिया गांधी की मंशा साफ तौर पर उभरकर सामने आई है। इंफोसिस केंपस में ग्लोबल एजुकेशन सेंटर के उद्घाटन के अवसर पर सोनिया गांधी का यह कहना कि कुछ ही घंटों के लिए ही सही किन्तु पालिटिकल क्लासिस बंक करने का मौका मिला है।



राजनैतिक विश्लेषकों के अनुसार स्कूल कालेज के समय में जब पढ़ाई का स्ट्रेस बहुत ज्यादा बढ़ जाए या पढ़ने से उब होने लगे तभी स्टूडेंट्स क्लासिस बंक करते हैं। यही हाल कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी का लग रहा है। लगने लगा है कि राजनीति का ककहरा सीखते सीखते उन्हें अब इससे उब होने लगी है।



उधर देश में सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) के सूत्रों का कहना है कि सोनिया को अब लगने लगा है कि राहुल गांधी पूरी तरह परिपक्व हो चुके हैं, तथा वे अब देश में नेहरू गांधी परिवार की राजनैतिक विरासत संभालने को तैयार हैं।



सूत्रों ने कहा कि वैसे भी इक्कसवीं सदी में कांग्रेस के चाणक्य समझे जाने वाले ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह के हाथों में राहुल की राजनैतिक शिक्षा दीक्षा से कांग्रेस अध्यक्ष पूरी तरह संतुष्ट दिखाई दे रही हैं। 12 तुगलक लेन (राहुल गांधी का सरकारी आवास) पर कांग्रेस के मंत्रियों और वरिष्ठ पार्टीजनों की उपस्थिति देखकर अब सोनिया गांधी कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र को राहुल गांधी की ओर हस्तांतरित करने के मूड में दिखाई दे रही हैं।



उधर 12 तुगलक लेन के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि `आम आदमी का सिपाही`, दलित के घर रात गुजारने, सादगी के कारण शताब्दी में यात्रा, यूपी में रोड़ शो, युवाओं को आगे लाने जैसे मुद्दों पर राहुल की बढ़ती लोकप्रियता से राहुल गांधी के अंदर आत्मविश्वास तेजी से बढ़ा है। सूत्रों की मानें तो मीडिया का समना करने के लिए राहुल खाली समय में अपने अघोषित राजनैतिक गुरू राजा दिग्विजय सिंह सहित अपने सबसे विश्वस्त मित्र और सचिव कनिष्का सिंह से घंटों विचार विमर्श भी किया करते हैं।

रविवार, 20 सितंबर 2009

अपने दादा को भूले राहुल!

ये है दिल्ली मेरी जान










(लिमटी खरे)










जिनके कारण गांधी सरनेम मिला उसी को भूले उनके वारिसान









नेहरू गांधी के नाम को भजने वाली कांग्रेस में नेहरू गांधी परिवार की चौथी और पांचवीं पीढ़ी उसी शिक्सयत को भूल गई जिनके कारण उन्हें गांधी नाम मिला। जवाहर लाल नेहरू की पुत्री पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा ने जब फिरोज गांधी से शादी की तब ही वे इंदिरा गांधी कहलाईं। स्व.फिरोज गांधी के 98वें जन्म दिवस पर न तो टीम टाम ही दिखा और न ही कांग्रेस ने उन्हें ``अश्रुपूरित`` श्रद्धांजली ही अर्पित की। राजधानी में रायबरेली संदेश की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम का हवाला अवश्य ही चंद समाचार पत्रों के अंदर के पेजों पर संक्षेप में मिला, जिसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस की राजनीति के आधुनिक चाणक्य कुंवर अर्जुन सिंह को सादगी सम्मान से नवाजा गया। पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी आदि के जन्म दिवसों पर सरकारी तंत्र का अहम हिस्सा दूरदर्शन भी इस परिवार की छटी पीढ़ी (प्रियंका वढ़ेरा के बच्चों) तक को कवरेज देता है, किन्तु जब बात फिरोज गांधी या संजय गांधी की होती है तब कांग्रेस का सौतेलापन समझ से परे ही नजर आता है। लगता है गांधी के उपनाम से सोनिया और राहुल शोहरत और ताकत की बुलंदियां छूना अवश्य चाहते हैं किन्तु जिस फिरोज गांधी के नाम से उन्हें गांधी उपनाम मिला उन्हें याद रखने में इन्हें काफी कठिनाई हो रही है। कहने वाले तो कहने से भी नहीं चूकेंगे कि राहुल गांधी से तो वरूण फिरोज गांधी ही भले जो अपने दादा जी को कम से कम नहीं भूले। वैसे भी हिन्दु मान्यताओं के अनुसार पितरों में अपने पूर्वजों को कम से कम जल का तर्पण किया जाता है, यहां तो हद ही हो गई जबकि पितृ पक्ष में पड़े फिरोज गांधी के जन्म दिवस को ही उनके कांग्रेसी वारिसान भूल गए।





एसी कैसी मितव्ययता!





कांग्रेस के दो मंत्री एम.एस.कृष्णा और शशि थुरूर के पांच सितारा होटल में रहने के चलते उपजा विवाद अब तक शांत नहीं हो सका है। इसमें नित्य ही कोई न कोई फलसफा जुड़ता ही जा रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी ने इकानामी क्लास में सफर कर मिसाल पेश की। उनके पुत्र राहुल गांधी ने शताब्दी में यात्रा कर एक बेहतर संदेश दिया। यह अलहदा बात है कि सोनिया के लिए इकानामी क्लास की दस सीटें बुक कराकर खाली रखी गईं थीं, और राहुल के लिए शताब्दी की पूरी बोगी। जिस जहाज में कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी सफर कर रहीं थीं, उसमें कांग्रेस के एक सांसद सुरेश तावरे बिजनिस क्लास में यात्रा कर रहे थे। तावरे का कहना था कि व्यस्तता के चलते वे अपनी ही पार्टी की सुप्रीमो के इस लोकलुभावने कदम की जानकारी से वंचित थे। कभी सोनिया की तारीफ करते न थकने वाले लालू यादव ने भी जहर बुझा तीर चलते हुए कह ही डाला के सादगी के लिए मनमोहन और सोनिया गांधी को रेल से यात्रा करनी चाहिए, वह भी सामान्य श्रेणी में, इससे लोगों के बीच एक अच्छा संदेश जाएगा। एक ओर सोनिया मितव्ययता की अलख जगा रही हैं, वहीं दूसरी ओर दिल्ली सरकार के कांग्रेस के एक मंत्री के सरकारी आवास के रखरखाव और साजसज्जा के लिए तीस लाख रूपए व्यय का प्रस्ताव मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पास पहुंचा है। क्या इस तरह का आडंबर जनता के दिखावे के लिए ही है





यू जस्ट कांट बीट जसवंत





भले ही पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह को भाजपा ने बाहर का रास्ता दिखा दिया हो पर जसवंत तो जसवंत ही हैं। हर बाल को बाउंड्री के बाहर भेजने का माद्दा रखते हैं जसवंत सिंह। संसद की लोक लेखा समिति के अध्यक्ष पद से हटाए जाने की भाजपा की पुरजोर मांग से बिना विचलित हुए जसवंत ने अपना काम आगे बढा दिया है। उन्होंने रोजगार गारंटी और मध्यान भोजन के क्रियान्वयन सहित अनेक मुद्दों पर विचार विमर्श के लिए एक दो नहीं वरन् छ: उपसमितियों का गठन कर डाला है। लोक लेखा समिति के अध्यक्ष पद पर जसवंत के अंगद के पैर को देखकर भाजपा भी बेकफुट पर आ गई है। पिछले एक पखवाड़े में भाजपा द्वारा जसवंत के खिलाफ एक भी बयान जारी नहीं किया है। सच ही है डर सभी को होता है, पता नहीं एक बार फिर अगर भाजपा द्वारा जसवंत को कोसा गया तो वे न जाने कोन सा ब्रम्हास्त्र चला दें। वैसे भी अंदरूनी तौर पर भाजपा में मचे घमासान के बाद भाजपा नेतृत्व कोई ठोस निर्णय नहीं ले पा रहा है।





माया मेमसाहब के तीखे तेवर





बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो और यूपी की चीफ मिनिस्टर सुश्री मायावती ने अब स्मारकों और प्रतिमाओं के बारे में विपक्षी दलों के हमलों के बाद आक्रमक तेवर अिख्तयार कर लिए हैं। बसपा कार्यकर्ताओं को परोक्ष तौर पर उकसाते हुए माया मेमसाब ने कहा कि उनकी सरकार द्वारा बनवाए गए स्मारक या प्रतिमाओं को अगर तोड़ा गया तो समूचे देश में राष्ट्रपति शासन लगाने की नौबत आ सकती है। कांग्रेस को भी खरी खोटी सुनाते हुए मायावती ने यह तक कह डाला कि कांग्रेस को एक परिवार के अलावा देश में और कोई महापुरूष ही नजर नहीं आता है। मायावती के तीखे तेवरों से समाजवादी पार्टी और कांग्रेस सकते में ही दिख रही है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल सोच रहे थे कि इसका विरोध कर वे मायावती को घेरने में कामयाब हो सकेंगे, किन्तु जब शेरनी दहाड़ी तो बाकी सारे शेर ``म्याउं म्याउं`` करते ही दिख रहे हैं।





उड़न खटोलों से परेशान नेता





हर चुनाव में हेलीकाप्टर की सवारी करना नेताओं का प्रिय शगल रहा है। इसका कारण यह है कि आप टिकिट खरीदकर हवाईजहाज में तो यात्रा कर सकते हैं, किन्तु अगर हेलीकाप्टर की सवारी गांठना हो तो उसे किराए पर ही लेना होता है। हेलीकाप्टर की सवारी में जब डेस्टीनेशन प्वाईंट (उतरने का स्थान) गुम जाए तो बेहद ही परेशानी का सामना करना पड़ता है, इस दौरान अनेक नेताओं को शर्मसार भी होना पड़ता है। इसी तरह का कुछ वाक्या केंद्रीय मंत्री सलमान खुशीZद के साथ बीते दिनों घटा। बिहार में सहसरा के सिमरी बिख्तयारपुर गांव में एक जनसभा को संबोधित करने गए खुशीद। चौपर डेस्टीनेशन प्वाईंट से भटककर एक सभा स्थल के पास बने हेली पेड पर उतर गया। नेताजी जैसे ही बाहर निकले उन्हें लालू और मुलायम के जिंदाबाद के नारे सुनाई दिए। माजरा समझ नेताजी उल्टे पांव वहां से कूच कर गए। दरअसल खुशीद को उतरना इस्लामियां स्कूल में था और पायलट ने उन्हें उतार दिया हाई स्कूल मैदान में। एक तरफ चौपर की सवारी जहां मौजां करवाती है, वहीं सावधानी हटी दुघटना घटी की तर्ज पर कई बार लानत मलानत भी भिजवा देती है।





मेडम के जलजले





वर्तमान समय की राजनीति मेें मदाम या मैडम शब्द का उच्चारण होते ही या तो सोनिया गांधी या फिर मायावती का चेहरा जेहन में आना स्वाभाविक है। भारतीय जनता पार्टी में अब मेडम कहते ही एक नया चेहरा सामने आने लगा है। भाजपा की लाख कोशिशों के बाद भी अपनी जगह अडिग खड़े रहने वाली राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को अब लोग मेडम के नाम से जानने लगे हैं। दरअसल वसुंधरा का त्यागपत्र का एपीसोड अभी जारी है, सो लोगों को उनके पक्ष और विपक्ष में मुंह बजाने के लिए ढेर सारे मेटर मिल रहे हैं। लोग अब यह कहने से भी नहीं चूक रहे हैं कि जिस महिला ने केंद्रीय नेतृत्व को जूती की नोक पर रखा है, वह प्रदेश के संगठन को कांखों में दबाकर रख देगी। राजस्थान भाजपा में वसुंधरा के विरोधी इस समय काफी दहशत में हैं, क्योंकि अब वहां यह बयार चलने लगी है कि आने वाला कल मेडम का है, सो जो भी बोलना सोच समझकर ही बोलना, वरना किसी भी अनिष्ट के लिए तैयार रहना।





लालू ने दिखा दी अपनी ताकत





एक समय के स्वयंभू मेनेजमेंट गुरू लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस सहित बाकी दलों को अपनी उपस्थिति का एक बार फिर दमदार अहसास कराया है। हाल ही में हुए उपचुनावों में बिहार में 18 में से पांच सीटें उन्होंने झटककर साबित कर दिया है कि बिहार में अभी उनका तिलिस्म टूटा नहीं है। उधर राजधानी दिल्ली में ओखला सीट पर लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार आसिफ मोहम्मद खान ने अप्रत्याशित जीत हासिल कर यहां अपना खाता खोल दिया है। कल तक आम चुनावों में कमजोर प्रदर्शन के कारण चुप्पी ओढ़ने वाले लालू प्रसाद यादव का सीना अब चौड़ा हो गया है। आने वाले समय में वे एक बार फिर कांग्रेस के साथ समझौते की मुद्रा में आ जाएं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। उधर कहा जा रहा है कि ओखला में कांग्रेस की हार का कारण और कोई नहीं अजहरूद्दीन हैं। जी हां, एक सभा के दौरान मतदाताओं ने फरमाईश कर दी कि जब तक अजहर उन्हें आटोग्राफ नहीं देंगे तब तक वे कांग्रेस को वोट नहीं देंगे। मरता क्या न करता की तर्ज पर अजहर ने ``भारतीय मुद्रा`` का अपमान करते हुए पचास रूपए से हजार रूपए के नोट पर अपने आटोग्राफ दिए। कहते हैं काफी मतदाता आटोग्राफ से वंचित रहे तभी कांग्रेस प्रत्याशी उनके मतों से महरूम रह गए।





मंत्री जी चुनाव में व्यस्त, फाईलें खा रहीं धूल





महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव के चलते सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री मुकुल वासनिक के कार्यालय में सूनसपाटा दिखाई दे रहा है। समाज के कमजोर और वंचित वर्ग के लोगों के उत्थान की वजीरे आला डॉ.एम.एम.सिंह की अपील भी वासनिक के कानों में नहीं गूंज रही है। इस विभाग की सात दर्जन से अधिक फाईलें मंत्री के कार्यालय में उनके अनुमोदन का इंतजार कर रही हैं। चुनाव परिणाम आने तक इनकी संख्या डेढ सौ पार कर जाने की उम्मीद जताई जा रही है। मंत्री के अनुमोदन के बिना अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए बनी योजनाएं भी ठप्प पड़ गई हैं। पिछड़ा वर्ग के दसवीं तक के बच्चों के लिए वजीफे के मामले में महज 11 लाख बच्चों को ही इसका लाभ मिल सका है, और डेढ़ करोड़ बच्चे अभी भी वजीफे का इंतजार कर रहे हैं। यद्यपि यूपीए सरकार की दूसरी पारी में इस विभाग को वरीयता के साथ रखा गया था, किन्तु जब सौ दिनी एजेंडा का रिपोर्ट कार्ड ही नहीं सार्वजनिक किया गया तो फिर भला मुकुल वासनिक की पेशानी पर क्यों बल पड़ने लगे।






उल्टे बांस बरेली के





कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की चहुंओर धूम मची हुई है। राहुल के अघोषित राजनैतिक गुरू राजा दिग्विजय सिंह उन्हें राजनीति के गोदे (अखाड़े) के बरीक खुर पेंच सिखा रहे हैं। कांग्रेस के चाणक्य समझे जाने वाले कुंवर अर्जुन सिंह की तलवार में अब धार नहीं बची है। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में चाणक्य की भूमिका में दिग्विजय सिंह ही नजर आ रहे हैं। कई बार दांव उल्टे भी पड़ जाते हैं। महराष्ट्र के विदर्भ इलाके में कर्ज के बोझ से दबे एक किसान ने आत्महत्या कर ली थी। इसके बाद उसकी पित्न कलावती के बारे में राहुल ने लोकसभा में पिछले साल विश्वास मत के दौरान जिकर किया था। विदर्भ जनांदोलन समिति के बेनर तले यह निर्णय लिया गया है कि कलावती को वणी विधानसभा से मैदान में उतरा जाएगा। यह सीट पूर्व में नरेश पुगलिया के वर्चस्व वाली रही है। कलावती के मैदान में उतरने की खबर से कांग्रेस में सन्नाटा पसर गया है, कि जिस कलावती के चर्चे राहुल बाबा की जुबान से निकले वही कांग्रेस के खिलाफ मैदान में ताल ठोंक रही है। उधर खबर है कि किरकिरी होने से बचने के लिए कांग्रेस संभवत: यह सीट समझौते के तहत राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की झोली में डाल सकती है।





तलवारों की खनक सुनाई दे रही है हिमाचल में





विधानसभा चुनावों के चलते हिमाचल प्रदेश की रणभूमि में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की सेनाओं का सजना आरंंभ हो गया है। एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप के साथ ही साथ मामले लादने उतारने का गंदा खेल भी चरम पर ही दिख रहा है। पहले कांग्रेसी नेता और केंद्रीय मंत्री वीरभद्र सिंह तथा उनकी पित्न प्रतिभा सिंह पर आपराधिक केस लदने से कांग्रेस बेकफुट पर आ गई थी। धूमिल सरकार द्वारा साम, दाम, दण्ड भेद की नीति के सहारे कांग्रेस पर प्रहार किए जा रहे हैं। उधर अब संभल चुकी कांग्रेस भी वीरभद्र के साथ ही खड़ी दिखाई दे रही है। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष ठाकुर कौल सिंह ने सूबे के मंत्रियों के खिलाफ मोर्चा खोलकर धूमल सरकर को रक्षात्मक मुद्रा में ला खड़ा किया है।








बात निकली है तो दूर तलक जाएगी . . .





पांच सितारा संस्कृति से चर्चाओं में आए विदेश महकमे के मंत्रियों एम.एस.कृष्णा और शशि थुरूर ने आलीशान होटलों में रहने के उपरांत यह कहकर तो अपनी खाल बचा ली है कि उसका भोगमान (बिल) वे निजी तौर पर भुगत रहे हैं, किन्तु सियासी हल्कों में अब यह बात तेजी से गूंज रही है कि भले ही यह भोगमान सरकारी, निजी या किसी अन्य उपकृत की जेब से गया हो किन्तु इसके देयक (बिल) अब तक क्यों सार्वजनिक नहीं किए गए हैं। अमूमन जनसेवकों को पाई पाई का हिसाब देना होता है। भले ही दोनों ही करोड़पति या लखपति मंत्री आयकर दाता हों। आयकर को भारी भरकम रकम अदा करते हों, किन्तु जब उन्होंने यह कहा है कि इसका भोगमान निजी तौर पर भोग रहे हैं, तो उनका यह नैतिक दायित्व बनता है कि वे कितनी राशि उन्होंने अपने रूकने और खाने में व्यय की है, इसका हिसाब अवश्य दें। कहते हैं न कि बात निकली है तो दूर तलक जाएगी. . . ।





स्टयरिंग नहीं रिमोट है संघ के पास





भले ही भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष यह कह रहे हों कि भाजपा का स्टयरिंग संघ के पास नहीं है। भाजपा अपनी राह पर चलने स्वतंत्र है, किन्तु वस्तुत: एसा दिखाई नहीं पड़ रहा है। हाल ही में संघ के अप्रत्यक्ष हस्ताक्षेप से कुछ और कहानी सामने आ रही है। भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार भाजपा में संघ के बढ़ते हस्ताक्षेप ने वरिष्ठ भाजपाईयों की पेशानी पर चिंता की लकीरें उकेर दी हैं। पिछले कुछ समय से संघ द्वारा भाजपा के अंदरूनी मामलात में हस्ताक्षेप के अनेक मामले सामने आए हैं। एक वरिष्ठ भाजपाई ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर यह तक कह डाला कि भाजपा की अंदरूनी कलह का कारण संघ का हस्ताक्षेप ही है। हालात देखकर यह लगने लगा है कि भाजपा के नए निजाम पर भी संघ ही मुहर लगाएगा। संघ के सूत्रों की मानें तो संघ ने डेढ़ दर्जन से अधिक राज्यों से भाजपाध्यक्ष के लिए तीन तीन नामों का पेनल बुलवाया है, जिस पर दिल्ली में अक्टूबर माह के पहले हफ्ते होने वाली बैठक में चर्चा की जाएगी। भाजपाई यह कहते नजर आ रहे हैं कि भले ही भाजपा का स्टेयरिंग संघ के हाथ में न हो किन्तु रिमोट कंट्रोल तो बेशक संघ के पास ही है।





सैलजा के सहारे हरियाणा की वेतरणी पार करने की कोशिश में कांग्रेस





भले ही संसद में महिला आरक्षण बिल पास करवाने में कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी नाकाम रहीं हों किन्तु महिला होने के नाते उन्होंने महिलाओं का वाजिब हक दिलवाने का प्रयास जरूर किया है। पहले देश की पहली महिला महामहिम राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, फिर पहली दलित महिला लोकसभाध्यक्ष मीरा कुमार के बाद अब हरियाणा में दलित कार्ड के तौर पर केंद्रीय शहीर आवास एवं गरीबी उन्नमूलन मंत्री सैलजा के सहारे हरियाणा पर कब्जा करने के प्रयास में दिख रहीं हैं कांग्रेस सुप्रीमो। कांग्रेस के चुनावी प्रबंधकों ने वरिष्ठ कांग्रेसियों को सैलजा के नाम पर राजी कर लिया है। कांग्रेस चाहती है कि सैलजा को उत्तर प्रदेश की निजाम मायावती के खिलाफ काट के तौर पर तैयार किया जाए। कांग्रेस के इस तीर ने हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की नींद उड़ा दी है। सूत्र बताते हैं कि अब हुड्डा कांग्रेस के आला नेताओं को सिद्ध करते नजर आ रहे हैं। हाल ही में उन्होंने उमर दराज कांग्रेसी अर्जुन सिंह की चौखट पर आमद दी। जल्द ही हुड्डा द्वारा अहमद पटेल, दिग्विजय सिंह, कमल नाथ आदि से संपर्क कर हरियाणा की गद्दी बचाने की जुगत लगाने वाले हैं।





पुच्छल तारा





उत्तर प्रदेश की निजाम सुश्री मायावती इन दिनों काफी परेशान हैं। कारण यह है कि उनकी मंशा के अनुसार पार्क में उनके सहित महापुरूषों की प्रतिमाओं को लगाने के लिए अनुमति नहीं मिल पा रही है। समूचे उत्तर प्रदेश में पार्कों में ढकी प्रतिमाएं अनावरण के इंतजार में हैं। एसे में एक मनचले ने कहा कि यदि पार्क में महापुरूषों और बहन मायावती की प्रतिमाएं लगाने की इजाजत नहीं मिल पा रही हो तो पार्टी के कट्टर और कर्मठ कार्यकर्ताओं को चाहिए कि वे इन महापुरूषों का मौखटा लगाकर पार्क खुलने से बंद होने तक बारी बारी से खड़े हो जाया करें। इससे पार्टी सुप्रीमो मायावती की मंशा भी पूरी हो जाएगी और किसी से अनुमति लेने के चक्कर से भी बचा जा सकेगा।



शनिवार, 19 सितंबर 2009

सांसद से असंसदीय व्यवहार!

सांसद से असंसदीय व्यवहार!

(लिमटी खरे)

देश की सबसे बड़ी पंचायत के एक वर्तमान तो एक पूर्व पंच (संसद सदस्य) का सामान सरेआम फेका जाना निंदनीय ही कहा जाएगा। छत्तीसगढ़ के राज्य सभा सांसद नंद कुमार साय वर्तमान में सांसद हैं, तथा रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के सुप्रीमो रामदास अठवाले पूर्व सांसद हैं। दोनों ही का सामान उनके घरों के बाहर कर दिया गया है, दोनों ही नेताओं को बेघर तब किया गया जब वे दिल्ली में मौजूद नहीं थे।
आजादी के उपरांत भारतीय लोकतंत्र में यह व्यवस्था दी गई थी कि विधायकों को उस प्रदेश की राजधानी और सांसदों को देश की राजनैतिक राजधानी में निवास करने के लिए पात्रतानुसार छोटे या बड़े आवास आवंटित किए जाएं। इसी आधार पर अब तक यह व्यवस्था सुनिश्चित होती रही है। अमूमन सांसद या विधायक न रहने पर नेताओं को छ: माह के अंदर ही अपना सरकारी आशियाना रिक्त करना होता है।
वर्तमान में सरकार के गठन को चार माह का समय भी नहीं बीता है और लोकसभा सचिवालय ने नादिरशाही फरमान के जरिए सांसदों के आवासों को इस तरह खाली करवा दिया मानो किसी सक्षम न्यायालय के आदेश पर किसी का सामान बाहर फिकवाया जा रहा हो।
बेघर सांसदों और मंत्रियों की फेहरिस्त वैसे तो काफी लंबी चौड़ी है। पांच सितारा होटल को निवास बनाने से चर्चा में आए विदेश मंत्री एम.एस.कृष्णा, राज्य मंत्री शशि थुरूर के अलावा महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री एवं केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री विलास राव देशमुख के आवास पर पूर्व केंद्रीय मंत्री मणि शंकर अय्यर कब्जा जमाए हुए हैं।
पूर्व कृषि राज्यमंत्री एवं वर्तमान आदिवासी मामलों के मंत्री कांतिलाल भूरिया भी अपने तालकटोरा रोड़ स्थित पुराने आवास के बजाए नए आवंटित आवास के रिक्त होने की राह तक रहे हैं। इस पर पूर्व मंत्री शंकर सिंह बघेला ने कब्जा जमाया हुआ है। लोकसभा उपाध्यक्ष करिया मुंडा, केंद्रीय मंत्री गुलाम नवी आजाद, श्री प्रकाश जायस्वाल, अरूण यादव, पवन कुमार बंसल, मिल्लकार्जुन खड़गे, प्रदीप जैन, वीर भद्र सिंह, विसेंट पाल, के.वी.थामस, दिनेश त्रिवेदी, भरत सिंह सोलंकी आदि को आवंटित आवास अभी भी रिक्त नहीं हो सका है। इसके अलावा अनेक सूबों के संसद सदस्य आज भी सम्राट होटल सहित अनेक होटल्स के मेहमान हैं। कहा जा रहा है कि लगभग आधा सैकड़ा सांसद आज भी आवास के रिक्त होने का इंतजार कर रहे हैं।
वैसे नेतिकता का तकाजा यही कहता है कि अगर कोई सांसद या विधायक चुनाव हार जाता है, तो उसे तुरंत अपना सरकारी आवास रिक्त कर देना चाहिए, ताकि नए जीते हुए संसद सदस्य या विधायक को परेशानी न हो। वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य में यही देखा जा रहा है कि जनसेवक चुनाव हारने के बाद पीछे के दरवाजे, राज्यसभा, विधान परिषद या निगम मण्डल के माध्यम से राजधानियों में अपना आवास सुरक्षित रखना चाहते हैं।
आरपीआई के पूर्व सांसद रामदास अठवाले का आवास खाली कराया जाना तो समझ में आता है किन्तु सिटिंग एमपी अर्थात वर्तमान सांसद के आवास को खाली कराए जाने का तुक समझ से परे है। नंद कुमार साय पहले लोकसभा सांसद थे, बाद में पार्टी ने उन्हें राज्य सभा के रास्ते संसद में भेज दिया।
साय पहले जिस आवास में रहते थे, वह लोकसभा पूल का था। साय के अनुसार उन्हें उसी आवास में रहने के लिए राज्य सभा सचिवालय ने 15 सितम्बर को वह आवास आवंटित कर दिया था। कुल मिलाकर लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय के बीच तालमेल के अभाव में साय को बेघर होने की नौबत आई।
देश की सबसे बड़ी पंचायत के एक पंच के साथ अगर लालफीताशाही का प्रतीक बन चुकी अफसरशाही इस तरह का बर्ताव कर रही है तो सुदूर ग्रामीण अंचलों में अफसरशाही के बेलगाम घोड़े किस कदर दौड़ रहे होंगे इस बात का अंदाजा लगाने मात्र से रीढ़ की हड्डी में सिहरन पैदा हो जाती है।
इस मामले में भाजपा प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी का कहना दुरूस्त है कि अगर यह लोकसभा पूल का है तो फिर लोकसभा आवास समिति के अध्यक्ष जय प्रकाश अग्रवाल आखिर किस हक से राज्य सभा के कोटे वाले आवास पर अपना कब्जा जमाए हुए हैं।
देखा जाए तो सांसद, विधायकों के साथ ही साथ मंत्रियों के बंग्लों में पिन टू प्लेन सारी सामग्री सरकारी तौर पर मुहैया होती है। ये जन सेवक तो अपने कपड़ों का बक्सुआ लेकर इसमें प्रवेश करते हैं, और यही लेकर इन्हें वापस भी जाना चाहिए। सरकार को चाहिए कि जिस तरह महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के अलावा सूबे के मुख्यमंत्रियों के मकानों को इयर मार्क (प्रथक से चििन्हत) कर रखा गया है, उसी तरह विभिन्न विभागों के मंत्रियों के आवासों को भी इयर मार्क कर देना चाहिए। जब भी सरकर का गठन या पुर्नगठन हो तब ये जनसेवक अपना सूटकेस उठाकर नए आवास में चले जाएं। इन आवासों को महीनों खाली न करने के पीछे कारण समझ से ही परे है।
जिस तरह जिलों में जिलाधिकारी (डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट), पुलिस अधीक्षक आदि के आवास इयर मार्क होते हैं, उसी तरह मंत्रियों के मकान क्यों नहीं किए जा सकते हैं। सरकार को चाहिए कि एक बड़े बाड़े में सभी मंत्रियों के आवास इकट्ठे बना दे। इससे अलग अलग बंग्लों में सुरक्षा में लगे जवानों की संख्या में कमी के साथ ही साथ जनता को इन मंत्रियों से मिलने में कम दिक्कत पेश आएगी। वस्तुत: एसा संभव नहीं है, क्योंकि यहां `जनसेवकों` की `प्रतिष्ठा` का प्रश्न `सर्वोपरि` होकर `जनसेवा` का मुद्दा `गौड` हो जाता है।
सांसदों को बेघर करने के मामले में सरकार को निश्चित तौर पर सफाई देनी होगी। एक सम्मानीय जनसेवक के साथ इस तरह का असंसदीय आचरण किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं कहा जा सकता है। इस तरह की परंपरा की महज निंदा करने से काम नहीं चलने वाला। सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में इस तरह के कृत्यों की पुनरावृत्ति न हो इसके लिए ठोस कार्ययोजना बनाए।
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पीएम के निशाने पर हैं तीन कद्दावर मंत्री

आजाद, जोशी और थुरूर से खफा हैं डॉ.एम.एम.सिंह
खतो खिताब का सिलसिला जारी है आजाद और पीएम के बीच
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। देश के सबसे ताकतवर पद पर आसीन नेहरू गांधी परिवार से इतर दूसरे कांग्रेसी प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह इन दिनों अपने मंत्रिमण्डल के तीन सहयोगियों से खासे नाराज बताए जा रहे हैं। इसमें सबसे उपर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नवी आजाद हैं। इसके बाद राहुल गांधी के प्रिय पात्र सी.पी.जोशी और बड़बोले शशि थुरूर का नंबर आता है।
भले ही गुलाम नवी आजाद डॉक्टरों को गांव जाने के लिए प्रोत्साहित करने, नकली दवा पर रोक लगाने एवं नए आयुZविज्ञान महाविद्यालयों की स्थापना के मामले में अपनी पीठ खुद ही ठोंक रहे हों, किन्तु सच तो यह है कि वे प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के सीधे निशाने पर नजर आ रहे हैं।
पीएमओ के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि आजाद की कार्यप्रणाली से नाराज प्रधानमंत्री अब तक उन्हें दो पत्र लिख चुके हैं। सूत्रों के अनुसार एक पत्र में आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के कामकाज के सुधार के लिए गठित डॉ.वेलियाथन समिति की रिपोर्ट को लागू करने तथा दूसरे में मेडिकल शिक्षा के लिए नियामक संस्था के गठन को लेकर मजमून था।
उधर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नवी आजाद के करीबी सूत्रों का दावा है कि स्वास्थ्य मंत्री की मंशा मेडिकल कांउसिल ऑफ इंडिया, डेंटल काउंसिल, नर्सिंग काउंसिल के साथ अन्य काउंसिल को एक साथ मिलाकर नियामक संस्था बनाने की है। पीएमओ ने आजाद की इस मंशा में फच्चर फंसा रखा है।
बताया जाता है कि केबनेट की बैठक में पीएम ने देश में स्वाईन फ्लू की गंभीर स्थिति पर अपनी अप्रसन्नता जाहिर की थी। इसके अलावा राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन पर अनेक राज्यों की अपत्ति का जिकर करते हुए पीएम ने यह भी कहा था कि सूबों को समुचित धन नहीं मुहैया हो पा रहा है।
उधर पीएमओ के सूत्रों ने आगे बताया कि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की सलाह पर मंत्री बनाए गए ग्रामीण विकास मंत्री सी.पी.जोशी की कार्यप्रणाली से भी प्रधानमंत्री खुश नहीं हैं। सूत्रों की मानें तो पीएम ने जोशी को सीधे सीधे चेतावनी भी दी है, कि वे अपना कामकाज सुधार लें, अन्यथा किसी भी तरह का अंजाम भुगतने को तैयार रहें।
इसके बाद तीसरी पायदान पर बड़बोले राजनयिक से जनसेवक बने शशि थुरूर हैं। बताते हैं कि सोशल नेटविर्कंग वेवसाईट के माध्यम से अपने प्रशंसक जुटाने और उनके साथ सवाल जवाब करने के दौरान उतपन्न विषम परिस्थिति ने पीएम को भी व्यथित कर रखा है।
कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के दिल्ली से मुंबई तक इकानामी क्लास मे यात्रा करने के तुरंत बाद चिडियों के शोर से उद्त टि्वटर नामक वेव साईट पर इकानामी क्लास को मवेशियों का बाड़ा की संज्ञा देने के बाद कांग्रेस बेकफुट पर आ गई है। सूत्रों के अनुसार अगर इन मंत्रियों ने अपना कामकाज नहीं सुधारा तो आने वाले दिन इन पर भारी हो सकते हैं।
शशि थुरूर भले ही प्रधानमंत्री की पसंद हो सकते हैं किन्तु पार्टी के दबाव के चलते उनकी रूखसती हो सकती है। थुरूर के माफीनामे के बाद भी पार्टी के रवैए में लचीलेपन के बजाए तल्खी साफ झलकने लगी है। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बयान का समर्थन कर पार्टी लाईन स्पष्ट कर दी है। पार्टी स्टेंड के अनुसार थुरूर के खिलाफ उचित समय पर उचित कार्यवाही की जाएगी।

गुरुवार, 17 सितंबर 2009

थुरूर का गुरूर

थुरूर का गुरूर बना कांग्रेस के गले की फांस

(लिमटी खरे)

विदेश में रहकर अपने जीवन के दो दशक से भी अधिक समय बिताने वाले देश के विदेश राज्यमंत्री शशि थुरूर के बयानों ने कांग्रेस के प्याले में तूफान ला दिया है। थुरूर की अनावश्यक बयानबाजी से अब कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के साथ ``हुई गति सांप छछूंदर केरी, उगलत निगलत पीर घनेरी`` की सी स्थिति निर्मित हो गई है। एक तरफ वे सादगी का आडंबर कर कार्यकर्ताओं को संदेश देने का प्रयास कर रही हैं, तो दूसरी ओर मंत्रिमण्डल में शमिल मंत्री ही उनके इस कदम का उपहास उड़ाने से नहीं चूक रहे हैं।
गौरतलब होगा कि मंहगे आलीशान होटलों को लगभग तीन माहों से अपना आशियाना बनाए रखने के चलते विदेश मंत्री एम.एम.कृष्णा और राज्य मंत्री शशि थुरूर चर्चाओं में आ गए थे। इसके बाद उन्होंने इस विवाद को विराम देने की गरज से संभवत: यह बयान दे दिया कि उन्होने सरकारी धन का अपव्यय नहीं किया है। वे अपने अपने निजी खर्चों पर होटलों में रूके हुए थे।
सरकार के मंत्रियों और कांग्रेस जनों को सादगी का संदेश देने की गरज से कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी ने कमान संभाली और लगभग बारह सीटें आरक्षित करवाकर उन्हें खाली रखकर विमान की इकानामी क्लास में यात्रा कर उन्होंने एक मिसाल पेश की है।
उनके पुत्र और कांग्रेस की नजरों में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी भला सादगी दर्शन में पीछे कहां रहने वाले थे। उन्होंने भी शताब्दी एक्सप्रेस की पूरी एक बोगी ही रिजर्व करवाकर सोनिया गांधी से बड़ी सादगी भरी यात्रा कर एक और बेहतरीन संदेश दे डाला। वस्तुत: देखा जाए तो इन दोनों ही की यात्राओं में हुए कुल खर्च का योग किया जाए तो वह चार्टर्ड हवाई जहाज से की जाने वाली यात्रा से ज्यादा ही निकलेगा।
बहरहाल, मामला जैसे तैसे थमता नजर आया कि इंटरनेट की सोशल वेव साईट पर विदेश राज्य मंत्री ने एक टिप्पणी कर बासी कढी मेें एक बार फिर उबाल ला दिया है। थुरूर ने विमान में इकानामी क्लास को ``केटल क्लास`` की उपाधि से नवाज दिया है, जिसका अर्थ है मवेशियों के परिवहन के लिए उपयुक्त दर्जा।विडम्बना ही कही जाएगी कि देश के नीति निर्धारक अभी भी देश की सांस्कृतिक आबोहवा से परिचित नहीं हो सके हैं। विदेशी मूल की भारतीय बहू श्रीमति सोनिया गांधी ने वषो बाद देश की संस्कृति और रहन सहन को अंगीकार किया। भले ही वह उन्होंने अपने मैनेजरों के कहने पर दिखावे के लिए किया हो, पर किया तो सही।
इसी तरह उनके पुत्र और नेहरू गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी के सदस्य राहुल गांधी भी अपनी कोलंबियाई गर्लफ्रेंड के चक्कर को लेकर जब तब चर्चाओं में बने रहते हैं। देश की सवा करोड़ से अधिक आबादी में एक अदद लड़की राहुल गांधी को जीवन साथी बनाने के लिए पसंद न आना आश्चर्य का ही विषय है। इसमें राहुल गांधी का दोष नहीं कहा जा सकता है। दरअसल जिसका लालन पालन (ब्राटअप) जैसे माहौल में हुआ हो, उसकी सोच कमोबेश उसी तरह की ही हो जाती है।
बहरहाल थुरूर द्वारा सवा करोड़ से अधिक की आबादी में एक से भी कम फीसदी आबादी जो कि हवाई यात्रा करती है, के दर्जे की तुलना मवेशियों से की गई है। कांग्रेस को मजबूरी में इस मामले में आगे आकर थुरूर की बातों की आलोचना करनी पड़ी है। एक समय था जब मंत्रियों या पदाधिकारियों को कुछ भी बोलने के पहले पार्टी लाईन की हिदायत दी जाती थी।
वर्तमान में इंटरनेट के अनंत सागर में गोते लगाकर मदमस्त मंत्री पार्टी लाईन को भूलकर नए इतिहास लिखने में ज्यादा व्यस्त दिख रहे हैं। शशि थुरूर के आचरण से पार्टी की भी काफी हद तक फजीहत हो रही है। राजनयिक से राजनीति की वादियों में विचरण करने वाले थुरूर शायद भूल गए हैं कि बतौर मंत्री उनकी एक भी टीका टिप्पणी सीधे सीधे कांग्रेस और सरकार का प्रतिनिधित्व करती है। थुरूर का बयान यह माना जा सकता है कि सरकार ही इकानामी क्लास के लोगों को मवेशी समझ रहा है।
चूंकि इस बयान को कांग्रेस प्रवक्ता जयंती नटराजन ने खारिज किया है, अत: यह माना जा सकता है कि थुरूर की टिप्पणी से कांग्रेस अपने आप को अलग रख रही है। शशि थुरूर केंद्र सरकार में विदेश विभाग जैसे महत्वपूर्ण महकमे के मंत्री हैं, अत: सरकारी तौर पर भी इस मामले में कोई टिप्पणी आना चाहिए।
वैसे भी थुरूर को यह समझना होगा कि वे सेलीब्रिटी नहीं हैं जो कि अपने प्रशसंकों से ब्लॉग के माध्यम से बात करें। शशि थुरूर आजाद भारत में विदेश राज्यमंत्री हैं। उन्हें देश की विदेश नीति के बारे में चिंता करनी चाहिए, न कि अपने प्रशंसकों के सवाल जवाब में उलझकर समय गंवाने की। ब्लाग लिखना या सवाल जवाब थुरूर का नितांत निजी मामला है, इस पर टिप्पणी करना बेमानी है, किन्तु जब पानी नाक तक पहुंच जाए तब मंत्रियों को चेताना भी जरूरी है। अगर थुरूर को वाकई अपने प्रशंसकों की इतनी ही फिकर है, और वे प्रशसंको की तादाद में इजाफा करना चाहते हैं तो हर माह एक राज्य में जाकर खुले मंच से सवाल जवाब करें तो बेहतर होगा।
थुरूर की टिप्पणी पर हायतौबा इसलिए भी मची है, क्योंकि थुरूर की टिप्पणी उस वक्त हुई जब कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी दिल्ली से मुंबई तक विमान में इकानामी क्लास में और युवराज राहुल गांधी दिल्ली से लुधियाना तक शताब्दी में सफर कर चुके थे। लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि इकानामी क्लास को मवेशियों का बाड़ा कहकर क्या सोनिया गांधी के लिए कोई टिप्पणी की गई है।
विपक्ष में बैठी भारतीय जनता पार्टी द्वारा भी प्रभावी विपक्ष की भूमिका अदा न किया जाना निराशाजनक ही कहा जा सकता है। इस मामले में सरकार को घेरने के बजाए अंतर्कलह में फंसा विपक्ष खामोशी अिख्तयार किए हुए है। वस्तुत: यह एक एसा मुद्दा बैठे बिठाए विपक्ष को मिल गया है, जिसे लेकर वह जनता के बीच जाकर खासा जनसमर्थन हासिल कर सकता है।
जो भी हो, विदेश राज्य मंत्री शशि थुरूर की इस टिप्पणी से कांग्रेस बेकफुट पर आ गई है। थुरूर की टिप्पणी के बाद कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री डॉ.मन मोहन सिंह को कड़े कदम उठाने होंगे, वरना मंत्रीमण्डल में मनमानी करने वाले मंत्रियों की खासी फौज है, जो आने वाले समय में कांग्रेस के लिए सरदर्द खड़ा करने से नहीं चूकेगी।
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सौ दिनी एजेंडा टांय टांय फिस्स

0 सादगी दर्शन स्वांग के पीछे टांय टांय फिस्स हो गया एजेंडा
0 एक रणनीति का अहम हिस्सा है सोनिया, राहुल का ``जात्रा नाटक``
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। लगातार दूसरी बार सत्ता पर काबिज होने के बाद कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा सौ दिन का एजेंडा बड़े ही जोर शोर से लागू किया था। सौ दिन पूरे हो गए किन्तु इस एजेंडे का क्या हुआ इस पर सरकार ने मौन साध रखा है।
सरकार ने राज्य विधानमण्डलों और संसद में महिलाओं के लिए तेंतीस प्रतिशत की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए महिला आरक्षण बिल पेश करने की बात इसमें प्रमुखता से रखी थी। इसके आलवा और अनेक बिन्दुओं का समावेश किया गया था, इस एजेंडे में।
इस बार मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने शिक्षा प्रणाली में अमूल चूल परिवर्तन का एजेंडा रखकर खासी वाहवाही बटोरी इतना ही नहीं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी एचआरडी मिनिस्टर कपिल सिब्बल की पीठ थपथपाई। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने भी अपना आकर्षक एजेंडा पेश किया।
इस बार मंत्री बनने से चूक गए एक वरिष्ठ इंका नेता ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि सरकार ने सौ दिनी एजेंडा ऐसे लागू किया था मानो सौ मीटर की रेस में उसेन बोल्ट दौड़ रहे हों। सौ दिन पूरे होने के बाद भी सरकार द्वारा रिपोर्ट कार्ड पेश न किया जाना यह दर्शाता है कि सरकार खुद ही अपने मंत्रियों के सौ दिनी काम काज से संतुष्ट नहीं है।
कहा जा रहा है कि अगर सरकार सौ दिनी एजेंडी का रिपोर्ट कार्ड पेश कर दे तो सरकार की खासी भद्द पिट सकती है। जानकारों का कहना है कि अगर विदेश मंत्री एम.एस.कृष्णा और शशि थुरूर का होटल विवाद न उपजा होता तो सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती थीं।
सादगी के प्रहसन ने देशवासियों का ध्यान बरबस ही खींच लिया। सोनिया की इकानामी क्लास और राहुल की शताब्दी यात्रा दो दिनों तक मीडिया की सुखीZ बनी रही। इसके बाद जैसे ही मामला कुछ ठंडा हुआ विदेश राज्यमंत्री शशि थुरूर की टि्वटर पर की गई टिप्पणी कि इकनामी क्लास माने मवेशी दर्जा ने तूल पकड़ लिया।
राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि इन नए विवादों की वजह से सरकार के सौ दिनों के एजेंडे का रिपोर्ट कार्ड दब गया है। सरकार के लिए इस तरह के विवाद वास्तव में तारण हार ही साबित हुए हैं। कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (सोनिया गांधी का सरकारी आवास) के भरोसेमंद सूत्रों का दावा है कि सादगी प्रहसन में सोनिया गांधी ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा इसलिए लिया ताकि देश की जनता और विपक्ष सरकार के सौ दिनी एजेंडे का हिसाब किताब न मांग सके, और इसमे ही उलझकर रह जाए।

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पेंच कान्हा होगा आबादी मुक्त!

0 बाघ अभ्यारण्यों की बसाहट दूर करने की कवायद
0 केंद्र से मांगी ढाई हजार करोड़ की इमदाद
0 25 हजार परिवारों को विस्थापित करने की तैयारी
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के बाघ अभ्यारण्यों से इंसानी बसाहट को हटाने के लिए सूबे की सरकार ने केंद्र सरकार से ढाई हजार करोड़ रूपयों की मांग की है। प्रदेश के पेंच, कान्हा, सतपुड़ा, बांधवगढ़ बाघ अभ्याराण्यों को इंसानी दखलंदाजी से मुक्त करने की कार्ययोजना प्रदेश सरकार ने केंद्र को सौंपी है।
राष्ट्रीय बांघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि मध्य प्रदेश सरकार ने बाघों पर मंडराते खतरे को देखकर केंद्र से मदद की गुहार लगाई है। सूत्रों ने कहा कि इस मामले को एनटीसीए ने योजना आयोग के पास भेज दिया है। सूत्रों ने कहा कि प्रतिवेदन में कहा गया है कि सूबे में बाघों पर मंडराते खतरों को देखते हुए इन अभ्यारण्यों में बसे गांव खाली कराकर आबादी को अन्यत्र बसाया जाना तत्काल जरूरी है।
सूत्रों ने कहा कि इस प्रतिवेदन में साफ कहा गया है कि इन वन्य अभ्यारण्यों में निवास करने वाले पच्चीस हजार बीस परिवारों को चिन्हत किया गया है, जिन्हें यहां से हटाकर अन्यत्र बसाने की योजना है। सरकार द्वारा स्वेच्छा से इन अभ्यारण्यों को छोड़कर अन्यत्र जाने वाले परिवारों को दस लाख रूपए प्रति परिवार की दर से मुआवजा देने का प्रावधान किया है।
इस प्रतिवेदन में आगे कहा गया है कि नकद स्वीकार न करने वाले परिवारों को जमीन देने का विकल्प भी खुला रखा गया है। माना जा रहा है कि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में भारतीय वन सेवा (आईएफएस) के मध्य प्रदेश काडर के दो वरिष्ठ अधिकारियों कान्हा नेशनल पार्क में संचालक रहे राजेश गोपाल एवं संचालय वन्य प्राणी तथा प्रधान मुख्य वन संरक्षक रहे गंगोपाध्याय के पदस्थ होने के बाद मध्य प्रदेश में वन्य प्राणियों की स्थिति में सुधार होने की उम्मीद है।
सूत्रों से प्राप्त जानकारियों के अनुसार मध्य प्रदेश में बाघों की तादाद मानव के हस्ताक्षेप, अवैध शिकार एवं सड़क दुघटनाओं तथा बीमारियों के चलते जहां 2007 में तीन सौ के लगभग थी, वह अब दो सौ का आंकड़ा ही पार कर पा रही है।

बुधवार, 16 सितंबर 2009

कण कण में बसा है भ्रष्टाचार

(लिमटी खरे)
अभी ज्यादा समय नहीं बीता है, जबकि भ्रष्टाचार को एक गंभीर बुराई के तौर पर देखा जाता था। सत्तक के दशक के पूर्वार्ध में हर एक सरकारी कार्यालय में ``घूस लेना और देना पाप है, घूस देने वाला और लेने वाला दोनों ही पाप के भागी हैं।`` जुमले की तिख्तयां लगी होती थीं।
अस्सी के दशक के आगाज के साथ ही हिन्दुस्तान को भ्रष्टाचार नाम के एक जानलेवा केंसर ने अपने आगोश में ले लिया है। विडम्बना यह है कि इस बीमारी का इलाज करने वाले खुद इस बीमारी की चपेट में आकर अंतिम स्टेज के केंसर की स्थिति में हैं। इनकी स्थिति हिन्दी चलचित्र के उस दृश्य में समझी जा सकती है, जब मरीज को देखकर डाक्टर यह कह उठता अब दवा नहीं दुआ की जरूरत है।
हिन्दुस्तान में तीन दशकों में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि अब देश की नींव ही खोखली होती प्रतीत हो रही है। देश के प्रधान न्यायधीश के.जी.बालकृष्णन ने एक संगोष्टी में भ्रष्टाचार पर न्यायपालिका की पीड़ा का इजहार कर ही दिया। यह सच है कि प्रजातंत्र के चारों स्तंभ इसकी जद में हैं।
सबसे अधिक आश्चर्य तो मीडिया की स्थिति पर होता है। सच को नंगा करने के ठोस इरादे के साथ प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ आखिर कहां जा रहा है, क्या कर रहा हैर्षोर्षो सच ही है, जबकि घराना पत्रकारिता का श्रीगणेश हुआ है, तब से मीडिया का स्वरूप बदला बदला सा दिखाई पड़ने लगा है।
हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि आज मीडिया में संपादक पूरी तरह प्रबंधक की भूमिका में नजर आ रहे हैं। अपने निहित स्वार्थों की बलिवेदी पर वे सर्वस्व न्योछावर करने को आतुर प्रतीत हो रहे हैं। यह सच है कि देश की जनता आज भी मीडिया पर आंख बंद करके भरोसा करती है, पर इसके मायने यह तो नहीं कि किसी को बचाने के लिए हम इस स्तर तक गिर जाएं।
हमारी नैतिकता भी कोई चीज है। पर आज नैतिकता की बातें करना बेमानी ही होगा। एक मर्तबा हमने हमारे एक पत्रकार मित्र को यह मशविरा दिया था कि कलम को बेचने या गिरवी रखने से तो बेहतर होगा कि परचून की दुकान ही खोल ली जाए। पत्रकारिता के उद्देश्य और सिद्धांत आज स्वार्थों की चादर के नीचे पड़े बुरी तरह कराह रहे हैं।
हम प्रधान न्यायधीश के इस कथन का पुरजोर समर्थन करते हैं कि भ्रष्टाचार में दोषी ठहराए गए सरकारी कर्मचारी की अवैध संपत्ति को जप्त करने के लिए कानून बनना चाहिए। सरकारी कर्मचारी ही क्यों अगर किसी भी ``जनसेवक`` भले ही वह सांसद, विधायक या और किसी व्यवस्था का अंग हो, और अगर उस पर भ्रष्टाचार का आरोप सिद्ध होता है तो उसकी संपत्ति जप्त होना चाहिए।
प्रधान न्यायधीश के वक्तव्य के बाद देश के कानून मंत्री वीरप्पा मोईली ने भी संकेत दिया है कि जल्द ही संविधान की धारा 310 और 311 में आवश्यक संशोधन किया जाएगा। मोईली की इस पहल का चहुं ओर स्वागत किए जाने की आवश्यक्ता है। सरकारी नुमाईंदे आज इसी धारा की आड़ लेकर मौज कर रहे हैं।
दरअसल इस धारा के तहत किसी भी अधिकारी पर मुकदमा दायर करने के पहले संबंधित विभाग की अनुमति की आवश्यक्ता होती है। भ्रष्टाचार के सड़ांध मारते इस दलदल में अनुमति हेतु बनी फाईल न जाने किस कोने में धूल खाती फिरती है, यह बात सभी बेहतर तरीके से जानते हैं।
वैसे इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश आर.वी.रविंद्रन और बी.सुदर्शन रेड्डी की खण्डपीठ का एक आदेश नजीर बन सकता है, जिसमें उन्होंने साफ कहा था कि ``जनसेवक अगर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का अपराध करता है, तो उसके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पूर्वानुमति आवश्यक नहीं है। इस तरह के मामलात में कोर्ट बिना पूर्वानुमति के आरोप पत्र के आधार पर संज्ञान ले सकती है।``
भारतवर्ष में न्यायपालिका सर्वोच्च मानी गई है। पिछले दिनों सूचना के अधिकार की जद में न्यायपालिका को लाने की बात पर सर्वोच्च न्यायालय ने ही आपत्ति की थी। देश में भ्रष्टाचार छोटे मोटे रोग की तरह नहीं बल्कि लाईलाज केंसर की तरह पनप चुका है।हमारे विचार से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए पहला पत्थर राजनेताओ, अफसरान के बजाए न्यायपालिका को खुद ही मारना होगा। इसके लिए न्यायधीशों को विशेषाधिकार छोड़ने की पहल करना आवश्यक होगा। इसी से सबक लेकर बाकी व्यवस्था खुद ब खुद चुस्त दुरूस्त होने लगेगी।
आदि अनादि काल से कहा जाता रहा है कि ``कण कण में भगवान विराजते हैं`` आजाद भारत में यह उक्ति लागू होती है, किन्तु यहां ``कण कण में भ्रष्टाचार बसता है`` कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगा।

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आड़वाणी से कन्नी काटते भाजपाई

0 फर्नाडिस को बताया सदगी की प्रतिमूर्ति

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी से अब भाजपा के वरिष्ठ नेता ही कन्नी काटते नजर आ रहे हैं। मंदी के दौर में सादगी अपनाने की कांग्रेस द्वारा चलाई गई मुहिम में हर दल इसे अपने अपने तरीके से प्रस्तुत कर रहा है। हाल ही में भाजपा ने जार्ज फर्नाडिस को सादगी की प्रतिमूर्ति बताकर पार्टी मंच पर एक नई बहस को जन्म दे दिया है।
विलासिता के आदी हो चुके जनसेवकों के बीच सादगी व कम खर्चे में सार्वजनिक तौर पर जीवन यापन करने को लेकर चल रहे आडम्बर को राजनैतिक दल अपने अपने तौर तरीकों से प्रस्तुत कर रहे हैं। देश के सबसे बड़े दूसरे दल भारतीय जनता पार्टी ने समाजवादी नेता जार्ज फर्नाडिस को सादगी पूर्वक जीवन यापन करने हेतु आदर्श बताया है।
कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी द्वारा एकानामी क्लास एवं युवराज राहुल गांधी द्वारा रेल यात्रा के सवाल के जवाब में भाजपा प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि जार्ज देश के एसे नेता हैं, जिन्होंने कभी भी रेल में प्रथम श्रेणी में यात्रा नहीं की है। उन्होंने कहा कि चूंकि राहुल और सोनिया पहली बार इस श्रेणी में यात्रा कर रहे हैं, इसलिए वे चर्चाओं में आए हैं। रही बात जार्ज की तो वे तो सदा ही एसा किया है, इसलिए वे चर्चाओं में नहीं हैं।
आम चुनावों में भाजपा के कथित लौह पुरूष लाल कृष्ण आड़वाणी के ``व्यक्तित्व`` को चुनावी मुद्दा बनाने वाली भाजपा के प्रवक्ता रूडी से जब यह पूछा गया कि क्या भाजपा के वर्तमान आर्दश लाल कृष्ण आड़वाणी भी सामान्य श्रेणी में यात्रा करेंगेर्षोर्षो इस प्रश्न को रूडी पूरी तरह टाल गए।
भाजपा में चल रही चर्चाओं के अनुसार एल.के.आड़वाणी का सूर्य अब अस्ताचल की ओर गमन करता प्रतीत हो रहा है। यही कारण है कि भाजपा नेता अब आड़वाणी से न केवल किनारा करने लगे हैं, वरन उनसे जुड़े सवालों में भी सफाई देने से कतराने लगे हैं। संघ और आड़वाणी के बीच लगातार चलती तकरारों से भाजपा के दूसरी पंक्ति के नेता अंदाजा लगाकर अब माईनस आड़वाणी, नई रणनीति बनाने की जुगत में दिखाई पड़ रहे हैं। कहा जा रहा है कि जब आड़वाणी के व्यक्तित्व को ही मुद्दा बनाया गया था तो अब भी सादगी के लिए आड़वाणी के नाम का ही जप किया जाना चाहिए था, वस्तुत: एसा हुआ नहीं उनके बजाए समाजवादी नेता फर्नाडिस को ही सादगी की प्रतिमूर्ति बताया गया है।

सोमवार, 14 सितंबर 2009

दूरदर्शन के 50 बरस

इस आलेख के लेखक समीर वर्मा, भारतीय सूचना सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं। आकाशवाणी, दूरदर्शन में समाचार संपादक के पद पर कार्य करने के उपरांत वर्तमान में श्री वर्मा भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय के फील्ड पब्लिसिटी प्रभाग में कार्यरत हैं। मूलत: पत्रकार रहे समीर वर्मा जबलपुर के रहने वाले हैं एवं इन्होंने अनेक समाचार पत्रों का संपादन भी किया है।

- लिमटी खरे



ऊँ साँई राम
दूरदर्शन के 50 बरस
बदलाव की बिंदास बयार
-समीर वर्मा,

भारतीय सूचना सेवा

इस लेख क® लिखने से पहले मैंने सूचना के सुपर हाइवे यानि सायबर स्पेस पर द® दिन तक विचरण किया। कारण था, यह जानना कि शरतीय की –श्य-श्रव्य आधारित एकमात्र ल®क प्रसारण सेवा ´´दूरदर्शन´´क® लेकर बुद्धिजीवियों,मीडिया विश्®षज्ञों और आम ल®गों की फिलहाल स®च क्या है र्षोर्षो इस दौरान इंटरनेट पर मीडिया से जुड़ी साईट® और ब्लाग्स क® छानने और बांचने के बाद बेहद सुकून हुआ कि चैनल क्रांति के ताजा दौर में “ी दूरदर्शन के प्रति ल®गों की स®च बेहद सकारात्मक है। ढेर सारी उम्मीदें हैं त® कई अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए ``दूरदर्शन´´ के प्रति आशर “ी जताया गया है। कहीं आल®चनाएं “ी है। ब्लागर्स ने त® दूरदर्शन से जुड़ी यादों क® लेकर बहस छेड़ रखी है कुछ ने त® हर दौर में दूरदर्शन से प्रसारित ह®ने वाले कर्णिप्रय और नेत्रिप्रय विज्ञापनों का वीडिय® संग्रहालय तक सायबर स्पेस में स्थापित कर दिया है। हर क®ई उस `टीवीरिया´ क® याद करत्® थक नहीं रहा है जब हर एक इसका शिकार था।तब और अब की यादों के बीच आज दूरदर्शन पचास बरस का ह® गया है। 15 सितंबर 1959 क® दिल्ली में दूरदर्शन का पहला प्रसारण प्रय®गात्मक आधार पर आध्® घंटे के लिए शैक्षिक और विकास कार्यक्रमों के रूप में शुरू किया गया था। किसी “ी मीडिया के लिए पचाससाल का सफर बहुत मायने रखता है वक्त के साथ चलने में दूरदर्शन ने कई उतार-चढ़ाव तय किए हैं। एक ल®क प्रसारक सेवा के रुप में स्वायत्ता हासिल करने के बावजूद दूरदर्शन सूचना, शिक्षा और मन®रंजन के उÌेश्यों से “टका नहीं है। आज निजी चैनलों की मन®रंजन और बाजारवादी क्रांति के दौर में एकमात्र दूरदर्शन ही है। ज® समाजके स“ी वर्ग का ख्याल रखत्® हुए उनकी अपनी शषा संस्कृति क® मजबूती प्रदान करता आ रहा है। टी वी के माध्यम से शरतीय समाज में सामाजिक,सांस्कृतिक और वैचारिक क्रांति लाने में दूरदर्शन की उल्लेखनीय “ूमिका रही है। इन पचास बरसों में दूरदर्शन ने ज® विकास यात्रा तय की है व® काफी प्रेरणादायक है। जिस टेलीविजन क® प्रारंि“क दिनों में समाज का दुश्मन समझा जाता था, उसे बाद मे ल®गों ने `देवत्व´ प्रदान किया। किसी ने उसे `लीला´ समझा त® किसी के लिए व® ताकत है खबर है ज्ञान बढ़ाने वाला है, क®ई उसे एकांत का `साथी´ मानता है। टीवी के इस महत्व क® स्थापित करने में दूरदर्शन के `र®ल´ क® नकारा नहीं जा सकता। सन 1959 से लेकर 2009तक के पांच दशक में दूरदर्शन ने हर व® मुकाम हासिल किया है जिसका उसने लक्ष्य बना रखा था। हालांकि ´दूरदर्शन´की विकास यात्रा प्रारं“ में काफी धीमी रही लेकिन 1982 में रंगीन टेलीविजन आने के बाद ल®गों का रूझान इस और ज्यादा बढ़ा और एशियाइ ख्®लों के प्रसारण ने त® क्रांति ही ला दी। आज दूरदर्शन डायरेक्टर टू ह®म (डीटीएच) के अलावा 31 चैनलों का संचालन करता है। दूरदर्शन के देश“र में 1412 ट्रांसमीटर हैं और 66 स्टूडियों का क्ष्®त्रीय नेटवर्क है। कव्हरेज के हिसाब से दूरदर्शन देश की करीब 92 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या क® उपलब्ध है। एक सार्वजनिक प्रसारणकताZ के रुप में दूरदर्शन विÜव में सबसे बड़े क्ष्®त्र क® कवर करने वाला संस्थान है। दूरदर्शन के 31 चैनल जिनमें डीडी-1-राष्ट™ीय चैनल, डीडी न्यूज-समाचार चैनल, डीडी शरती- समृद्धि चैनल, डीडी स्प®टर्स-ख्®ल चैनल, डीडी राज्यसश- संसद चैनल, डीडी उर्दू -उर्दू शषा चैनल हैं। वहीं 11 प्रादेशिक शषाओं के चैनल है जिसमें -मलयालम, तमिल, उड़िया, त्®लुगू, बंगाली, कéड, मराठी, गुजराती, कश्मीरी, उत्तर पूर्व और पंजाबी शषा के कार्यक्रम प्रसारक चैनल शामिल हैं। इसके अलावा राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, हरियाणा, उत्तराखंड, त्रिपुरा, मिज®रम और मेघालय समेत 12 राज्य नेटवर्क है। साथ ही एक अंतर्राष्ट™ीय चैनल डीडी इंडिया और एक शैक्षिक चैनल शामिल हैं। इतने अधिक चैनल शायद ही किसी निजी प्रसारक के पास ह®। ´सत्यम शिवम सुन्दरम´ दूरदर्शन का यही ध्येय वाक्य है। इसे ही ध्यान में रखत्® हुए दूरदर्शन देश की जनता के प्रति अपने फजZ क® निशता आ रहा है। एक दौर था जब दूरदर्शन का राज चलता था। कौन याद नहीं करना चाहेगा उन सुनहरे दिनों क® जब म®हल्ले के इक्के-दुक्के रइसों के घर में टीवी हुआ करता था और सारा म®हल्ला टीवी में आ रहे कार्यक्रमों क® आÜचर्यचकित सा देखता था। अगर सिर्फ मन®रंजन की बात करें त® `हम ल®ग´,बुनियाद ये ज® है जिंदगी, चित्रहार, नुôड़, मालगुड़ी डेज ,सिग्मा,स्पीड, जंगल बुक, कच्ची धूप, रजनी, कथासागर, विक्रम बेताल ने ज® मिसाल कायम की है उसकी तुलना आज के शायद ही किसी धारावाहिक से की जा सके। रामायण और महाशरत के प्रसारण ने त® `टीवी´ क® `ईÜवरत्व´ प्रदान किया । जब ये धारावाहिक आत्® त® पूरा परिवार हाथ ज®ड़कर देखता था। रामायण में राम और सीता का र®ल अदा करने वाले अरूण ग®विल और दीपिका पादुक®ण क® ल®ग आज “ी राम और सीता के रुप में पहचानत्® है त® नीतिश शरद्वाज महाशरत सीरियल के `कृष्ण´ के रुप मे जाने गए। वहीं शरत एक ख®ज, दि सव®र्ड अ‚फ टीपू सुल्तान और चाणक्य ने ल®गों क® शरत की ऐतिहासिक तस्वीर से रूबरू कराया। जबकि जासूस करमचंद, रिप®र्टर व्य®मकेश बक्शी, तहकीकात, सुराग और बैरिस्टर राय ज्ौसे धारावाहिकों ने समाज में ह® रही अपराधिक घटनाओं क® स्वस्थ ढंग से पेश करने की कला विकसित की। जिसके सामने आज के क्राईम आधारित कार्यक्रम कहीं नहीं लगत्®। दूरदर्शन ने न जाने ऐसे कितने ही सफल धारावाहिकों के माध्यम से टीवी मन®रंजन के क्ष्®त्र में कई मिसाले कायम की है। सही मायने में दूरदर्शन ने मन®रंजन के मायने ही बदल दिए थ्®। दूरदर्शन ने मन®रंजन के साथ-साथ ल®गों क® शिक्षित करने में “ी अहम “ूमिका अदा की है। मीडिया में ``एजुटेंमेंट´´ की आधारशिला दूरदर्शन ने ही रखी है। चित्रहार में प्रसारित गीतों के शब्दों क® सब-टाइटलिंग के द्वारा दिखाकर ल®गों में सुनकर और देखकर पढ़ने की अ®र प्रेरित किया। इससे शरत के साक्षरता अि“यान क® “ी नई दिशा मिली। वहीं विज्ञापनों में मिले सुर मेरा तुम्हारा ल®गों क® एकता का संदेश देने में कामयाब रहा त®, बुलंद शरत की बुलंद तस्वीर-हमारा बजाज से अपनी व्यावसायिक क्षमता का ल®हा“ी मनवाया ग्रामीण शरत के विकास में “ी दूरदर्शन के य®गदान क® “ुलाया नहीं जा सकता । सन् 1966 में कृषि दर्शन कार्यक्रम के द्वारा दूरदर्शन देश में हरित क्रांति लाने का सूत्रधार बना। इस कार्यक्रम का उÌेश्य था किसानों क® अपनी जमीन से ज®ड़े रखना और कृषि संबंधी जागरूकता लाना। आज “ी यह कार्यक्रम बदस्तूर जारी है और किसानों ग्रामीणों- की इसमें-उतनी ही शगीदारी है जितनी पहले थी। वक्त के साथ स्वरुप जरूर बदल गया है। सन् 1975 में साईट (सैटेलाईट-इन्स्ट™क्शनल टेलीविजन एक्सपेरीमेंट)परिय®जना ने त® दूरदर्शन के महत्व क® नई मजबूती दी। इसके जरिए यह साबित हुआ कि ग्रामीण, शिक्षा और विकास क® गति देने में दूरदर्शन एक सशक्त माध्यम है । दूरदर्शन ने अपने कार्यक्रमों के माध्यम से न जाने ऐसे कितने प्रय®ग किए ज® सामाजिक परिवर्तन और विकास के अग्रदूत बने। आज “ी दूरदर्शन ग्रामीण विकास की दिशा में अनूठी-“ूमिका निश रहाहै। `मेरे देश की धरती´ ज्ौसे कार्यक्रमों के माध्यम से ग्रामीण जीवन के हर पहलू से रूबरू कराया जा रहा है। जबकि आम आदमी क® स्वस्थ जीवन के प्रति जागरूक करने में “ी दूरदर्शन अहम “ूमिका निभा रहा है। ``कल्याणी´´ और ``जासूस विजय´´ऐसे ही कार्यक्रम है ज® स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने- का काम कर रहे हैं।अगर देश में ख्®लों के विकास की बात करें त® दूरदर्शन ने अपनी स्थापना के कुछ समय बाद से ही ख्®ल और खिलाड़ियों के लिए अपना अि“यान शुरू कर दिया था। सन् 1999 में पृथक डीडी स्प®टर्स चैनल शुरू किया गया। ज® देशका एकमात्र टू एयर स्प®टर्स -24 घंटे प्रसारक चैनल है। क्रिकेट के दीवाने इस देश में दूरदर्शन ने कबड्डी,ख®-ख®, कुश्ती जिसे खालिस देशी ख्®लों क® महत्व प्रदान किया और इन्हें ल®किप्रय बनाया। आज इस चैनल पर स“ी ख्®लों के राष्ट™ीय-अतंर्राष्ट™ीय टूर्नामेंट का सीधा प्रसारण किया जाता है। देश की विि“é संस्कृतियों के दर्शन “ी आज दूरदर्शन पर ही ह®त्® हैं। शाóीय नृत्य-संगीत ह® या ऐतिहासिक विरासत, दूरदर्शन का डीडी शरती चैनल स“ी का व्यापक कव्हरेज करता है। जबकि उत्तर पूर्व और विि“é शषा शषी ल®गों की जरूरतों उनके मन®रंजन का ख्याल प्रादेशिक शषा के चैनल कर रहे हैं। अंतर्राष्ट™ीय स्तर पर “ी दूरदर्शन ने अपनी आमद दजZ करा रखी है ´´डी डी इंडिया ´´ चैनल 1995 में इसी कड़ी में शुरू किया गया था। पहले इसका नाम डीडी वल्र्ड था। इस चैनल के माध्यम से अंतर्राष्ट™ीय दर्शकों के लिए शरत की सामाजिक सांस्कृतिक,राजनैतिक और आर्थिक स्थिति क® पेश किया जाता है। आज इसे 146 देशों में देखा जा रहा है। बात खबरों की कि जाये त® दूरदर्शन ने समाचारों के प्रसारण के मामले में रंग रुप और नई तकनीक जरूर अपना ली है लेकिन अ“ी “ी उसके समाचारों में `विÜवसनीयता´ श®शयमान है। बिना किसी राग-द्वेष, लाग लपेट और नाटकीयता के समाचारों की प्रस्तुति उसकी खूबी है। निजी समाचार चैनलों में ´न्यूज´ ज्ौसे गं“ीर विषय में जिस प्रकार से मन®रंजन का तड़का लगाया जाता है व® विषय की गं“ीरता क® खत्म करता है। लेकिन दूरदर्शन इस मामले में तारीफ के काबिल है। उसके समाचारों में छ®टे से कस्बे के किसान की खूबियों से लेकर तुर्कमेनिस्तान ज्ौसे अनजाने देश की खबरें “ी देखने क® मिल जाती है। 15 अगस्त 1965 क® प्रथम समाचार बुलेटिन का प्रसारण दूरदर्शन से किया गया था। तब से लेकर नेशनल चैनल पर रात 8.30 बज्® प्रसारित ह®ने वाला राष्ट™ीय समाचार बुलेटिन आज “ी बदस्तूर जारी है। उस समय के समाचार वाचक सलमा सुल्तान, मंजरी ज®शी, सरला माहेÜवरी, शम्मी नारंग, ज्®.व्ही.रमण और साधना श्रीवास्तव की आवाज आज “ी कानों में गूंजती है। समाचार की महत्ता क® देखत्® हुए ही दूरदर्शन ने 2003में पृथक से 24 घंटे का समाचार चैनल डीडी न्यूज शुरू किया । यह एक मात्र चैनल है ज® केबलविहीन और उपग्रह सुविधा रहित घरों तक पहुंचता है। इसकी पहुंच देश की आधी जनसंख्या तक है। डीडी न्यूज पर र®जाना 16 घंटे सीधा प्रसारण ह®ता है जिसमें हिन्दी में 17 और अंग्रेजी में 13 समाचार बुलेटिन शामिल है। उर्दू और संस्कृत में र®ज एक बुलेटिन के अलावा बघिर ल®गों के लिए हफ्त्® में एक बुलेटिन प्रसारित ह®ता है। साथ ही राज्यों की राजधानियों में 24 क्ष्®त्रीय समाचार एकांशों द्वारा प्रतिदिन 19 शषाओं में 89 बुलेटिन प्रसारित किए जात्® हैं। इसके अलावा डीडीन्यूजड‚टक‚म वेवसाईट पर हर र®ज द® घंटे के समाचार आनलाईन देख्® जा सकत्® हैं।वक्त के साथ बदलती तकनीक और “विष्य के टीवी क® देखत्® दूरदर्शन ने स्वयं क® अपडेट रखा है। दूरदर्शन के 16 चैनलों क® अब (डीबीवी-एच प्रसारण) म®बाइल पर देखा जा सकता है। जबकि एचडीटीवी (हाईडेफीनिशन टेलीविजन) और आईपीटीवी (इंटरनेट प्र®ट®काल टेलीविजन) प्रसारण तकनीक अपनाने क® लेकर त्ौयारियां चल रही हैं। 2010 के राष्ट™मंडल ख्®लों का प्रसारण एचडी सिग्नल पर ही किया जाएगा। ज® देश में पहली बार ह®गा। आज देश में 394 चैनल हैं। इनमें आध्® से अधिक समाचार और सामयिक विषयों पर आधारित चैनल हैं। मीडिया जगत में चैनलों की इस “ीड़ में कुछ ल®गों क® ``दूरदर्शन´´ख®या सा लगता है।क्योंकि `मन®रंजन´ की “ूख और बाजारवादी प्रथा के दवाब में ल®गों की स®च में बदलाव आया है। इसके लिए प्रचार-प्रसार के हथकंडे सबसे ज्यादा द®षी है।ज® ल®ग ऐसा स®चत्® है कि अब `दूरदर्शन´ क® देखता कौन है उन्हें यह जान लेना चाहिए कि केबल और डीटीएच पर आधारित निजी चैनलों की पहुंच सीमित वर्ग तक है और ``दूरदर्शन´ जिसकी पहुंच 92 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या तक है वो कश्मीर से कन्याकुमारी तक के ल®गों की जरूरतों क® ´मुफ्त´ में पूरा कर रहा है उन्हें शिक्षित करता है, सूचित करता है और स्वस्थ ढंग से उनका मन®रंजन करता है। पिछले पचास साल की टेलीविजन क्रांति का इतिहास असल मायने में दूरदर्शन का ही इतिहास है। इस देश में ´दूरदर्शन´ इलेक्ट™‚निक मीडिया जगत का कल्प वृक्ष है जिसकी जड़े बहुत गहरे तक है और जिसकी शाखाओं पर साढे तीन सौ से अधिक चैनल सुश®ि“त ह® रहे हैं। बेशक निजी चैनलों ने प्रतिस्पर्धा का माहौल बनाया है लेकिन इसके बावजूद दूरदर्शन अपनी स्थापना के उÌेश्यों पर अटल रहत्® हुए खुद क® मजबूत बनाये हुए है। यहां यह जान लेना जरूरी है कि `दूरदर्शन´ देश की एकमात्र ल®क प्रसारण सेवा है वह निजी टीवी चैनलों की तरह व्यावसायिक तथा केवल मन®रंजन प्रधान नहीं ह® सकता। उसका मुख्य दायित्व जनहित क® ध्यान में रखकर सही सूचना देना सामाजिक आर्थिक जागरूकता बढ़ाना तथा स्वच्छ तरीके से मन®रंजन उपलब्ध कराना है। पचास साल में दूरदर्शन में बदलाव की ज® बिंदास बयार चली है उससे व® और तर®ताजा हुआ है।