सोमवार, 18 जनवरी 2010

कम्युनिष्ट राजनीति के शक्तिपुंज का अवसान


कम्युनिष्ट राजनीति के शक्तिपुंज का अवसान


अपना कद सदा पार्टी से कम ही आंका ज्योति बाबू ने

(लिमटी खरे)

अपना सारा जीवन कोलकता के इर्दगिर्द समेटने वाले कम्यूनिस्ट नेता ज्योति बसु का जीवन अनेक मामलों में लोगों के लिए उदहारण बन चुका है। भले ही उन्होंने पश्चिम बंगाल के कोलकता को अपनी कर्मस्थली के रूप में विकसित किया हो पर राष्ट्रीय परिदृश्य में उनके महत्व को कभी भी कमतर नहीं आंका गया। उन्होंने एक एसा अनूठा उदहारण पेश किया है जिसमें साफ परिलक्षित होता है कि कोई भी किसी भी सूबे में रहकर देश के राजनैतिक क्षितिज पर अपनी भूमिका और स्थान सुरक्षित कर सकता है।


ज्योति दा इसी तरह की बिरली शिक्सयत में से एक थे। वे देश में सबसे अधिक समय तक किसी सूबे के निजाम भी रहे हैं। हिन्दुस्तान में वामपन्थी विचारधारा के सशक्त स्तंभ के तौर पर उभरे थे बसु। इतना ही नहीं बसु एक समझदार, परिपक्व और धीरगम्भीर नेतृत्व क्षमता के धनी थे। जिस तरह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने विदेशों में अध्ययन के उपरान्त देशसेवा की, कमोबेश उसी तर्ज पर ज्योति बसु ने ब्रिटेन में कानून के उच्च अध्ययन के उपरान्त भारत वापसी पर कम्युनिस्ट आन्दोलन में खुद को झोंक दिया था।


ज्योतिकिरण बसु को उनके परिवारजन प्यार से ``गण`` पुकारते थे। 1935 में वे ब्रिटेन गए और वहां भारतवंशी कम्युनिस्ट विचारधारा के रजनी पाम दत्त के संपर्क में आए। इसके बाद लन्दन स्कूल ऑफ इकानामिक्स के राजनीति शास्त्र के व्याख्याता हेलाल्ड लॉस्की, के व्याख्यानों का उन पर गहरा असर हुआ। चूंकि लॉस्की खुद वाम विचारधारा के बहुत बडे पोषक थे, अत: इसके उपरान्त बसु वाम विचारधारा में रच बस गए।

1944 में कम्युनिस्ट आन्दोलन से खुद को जोडने वाले बसु 1946 में पश्चिम बंगाल विधानसभा के सदस्य बने। इसके बाद बसु ने कभी पीछे पलटकर नहीं देखा। 23 साल का अरसा कम नहीं होता। अगर कोई लगातार इतने समय तक एक ही राज्य का मुख्यमन्त्री रहे तो मान लेना चाहिए कि उसकी कार्यशैली में दम है, तभी सूबे की रियाया उस पर लगातार भरोसा कर सीएम की कुर्सी पर उसे काबिज करती रही है।

आपातकाल के दौरान 1977 में बसु पश्चिम बंगाल के मुख्यमन्त्री की कुर्सी पर बैठे फिर अपने स्वास्थ्य कारणों के चलते 2000 में उन्होंने सक्रिय राजनीति को अलविदा कह दिया। बसु की कुशल कार्यप्रणाली और लोकप्रियता का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य की जनता ने उन पर 23 साल लगातार विश्वास किया।


मुख्यमन्त्री निवास को जतने के बाद उन्होंने एक और अनुकरणीय पहल की। वे पार्टी के लिए पथ प्रदर्शक की भूमिका में आ गए, वरना आज के राजनेता उमरदराज होने के बाद भी सत्ता का मोह नहीं छोड पाते हैं। ढलते और कमजोर स्वास्थ्य के बावजूद व्हील चेयर और अन्य चिकित्सा उपकरणों का सहारा लेकर चलने वाले राजनेताओं को बसु से पे्ररणा लेना चाहिए। जिस तरह अटल बिहारी बाजपेयी ने अपने आप को सक्रिय राजनीति से दूर कर लिया है, उसी मानिन्द अब एल.के.आडवाणी, कुंवर अर्जुन सिंह, प्रभा राव, आदि को राजनीति को अलविदा कहकर पार्टी के लिए मार्गदर्शक की भूमिका में आ जाना चाहिए, किन्तु सत्ता मोह का कुलबुलाता कीडा उन्हें यह सब करने से रोक देता है।

पश्चिम बंगाल में भूमिसुधार कानून और पंचायत राज के सफल क्रियान्वयन ने बसु को जननायक बनाया था। ज्योति बसु ने आम आदमी के हितों को साधने में कोई कोर कसर नहीं रख छोडी थी। देश में कम्युनिस्ट पार्टी के पर्याय के तौर पर देखे जाने लगे थे ज्योति बसु। एक तरफ जब विश्व में कम्युनिस्ट सोच का सूरज अस्ताचल की ओर चल दिया था, तब भी हिन्दुस्तान में कम्युनिज्म विचारधारा का पर्याप्त पोषण सिर्फ और सिर्फ ज्योति बसु के चलते ही हो सका।

बसु के अन्दर योग्यताओं का अकूत भण्डारण था। एक समय आया था जब केन्द्र में घालमेल सरकार बनने का समय आया तब ज्योति बसु को प्रधानमन्त्री मान ही लिया गया था। वक्ती हालात इस ओर इशारा कर रहे थे कि सर्वमान्य नेता के तौर पर ज्योति दा के अलावा और कोई नाम नहीं सामने आ पाया। इस समय पार्टी ने अपनी दखियानूस विचारधारा के चलते ज्योति दा को इसकी अनुमति नहीं दी। ज्योति दा ने पार्टी के फैसले को चुपचाप शिरोधार्य कर लिया। उस समय उन्होंने इस मसले पर एक लाईन की टिप्पणी ``एक एतिहासिक भूल`` कहने के बाद अपने काम कोे पुन: आगे बढा दिया।

मुख्यमन्त्री पद के तजने के बाद वे हाशिए में चले गए हों एसा नहीं था। पार्टी जानती थी कि ज्योत दा का क्या महत्व है, राजनीति में। ज्योति दा के दीघZकालिक अनुभवों का पर्याप्त दोहन किया इन दस सालों में पार्टी ने, वरना आज की गलाकाट राजनैतिक स्पर्धा में वर्चस्व की जंग के चलते बसु को हासिए में डालने में देर नहीं की जाती। यह तो उनका निर्मल स्वभाव, त्याग, तपस्या और बलिदान था जिसका लगातार सम्मान किया था पार्टी ने।


ज्योति बसु आज के समय में बहुत प्रसंगिक माने जा सकते हैं। आज जब नैतिकता की राजनीति और चरित्रवान जनसेवकों का स्पष्ट अभाव है, तब ज्योति बसु का जीवन प्रेरणा के तौर पर काम आ सकता है। ज्योति बसु जैसे गम्भीर और अनुशासित नेता, जिनके अन्दर राजनैतिक सोच कूट कूट कर भरी थी, दुनिया भर में लाल झण्डे के लगभग अवसान के बावजूद भी हिन्दुस्तान जैसे देश में उसे फक्र के साथ फहराना, सिर्फ और सिर्फ बसु के बस की ही बात थी। ऐसे महामना को शत शत नमन. . .।

जब युवराज को सहना पडा जबर्दस्त विरोध


ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

जब युवराज को सहना पडा जबर्दस्त विरोध

सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के बारे में मीडिया सदा ही सकारात्मक खबरों को प्राथमिकता के आधार पर स्थान दे रहा है। इसका कारण यही है कि नेहरू गांधी परिवार की पांचवीं पीढी के सदस्य राहुल गांधी के मीडिया मेनेजरों की रणनीति काफी तगडी है। युवराज चाहे रेल में सफर कर मितव्ययता का ढोंग रचें या फिर रोड शो करें, बडी मात्रा में लक्ष्मी मैया को बहाकर मीडिया पर्सन्स को उपकृत किया जाकर राहुल गांधी का महिमा मण्डन करने से नहीं चूकते राहुल के रणनीतिकार। रही बात राहुल के विरोध की तो उस मामले में मीडिया की चुप्पी आश्चर्यजनक ही मानी जाएगी। बीते दिनों दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को विद्यार्थियों के भारी विरोध का सामना करना पडा। दरअसल यह विरोध राहुल के बजाए देश के नीति निर्धारकों का था, जो पूरी तरह सकारात्मक बात पर ही आधारित था। राहुल भले ही मनमोहनी मन्त्रीमण्डल के सदस्य न हों पर उनकी ताकत हर कोई जानता है। छात्रों का गुस्सा इस बात पर था कि एक ओर बजट में छूट देकर औद्योगिक घरानों को प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर लाभ पहुंचाया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस से युवाओं को जोडने का सपना देखने वाले राहुल गांधी की कांग्रेस विश्वविद्यालयों की फीस में इजाफा कर पढने वालों की परेशानियों में इजाफा ही कर रही है। पुरानी मान्यता है कि किसी भी राजा के इर्दगिर्द अगर ``भाट`` एकत्रित हो जाएं तो उसका पतन अवश्यंभावी है, क्योंकि फिर वह जमीनी हकीकत से दो चार नहीं हो पाता है।

खाना जरूरी है या पीना!
आज के जनसेवक अपने निहित स्वार्थों में कितना डूब चुके हैं कि उन्हें रियाया की कोई चिन्ता नहीं है। महाराष्ट्र में धान से बनने वाली शराब निर्माता फेक्टरियों को सूबे की चव्हाण सरकार ने 25 से 30 करोड के अनुदान की घोषण की थी। सरकार के इस फैसले का कांग्रेस और भाजपा दोनों ही ने स्वागत किया था। आखिर इस फैसले को हाथों हाथ लिया भी क्यों न जाता, ज्यादातर फैक्टरियां जनसेवकों के रिश्तेदारों और वाकिफगारों की जो ठहरीं। सरकार के इस फैसले के खिलाफ एक जनहित याचिका भी लगा दी गई मुम्बई हाईकोर्ट में। उच्च न्यायालय ने चव्हाण सरकार से पूछा है कि अनाज ज्यादा जरूरी है या शराब। गौरतलब है कि सूबे में अनाज की कमी और कर्ज के बोझ तले दबे अनेक किसानों ने आत्महत्या जैसा रास्ता अिख्तयार किया है। देश के कृषि मन्त्री और सूबे के पूर्व निजाम शरद पंवार भाजपा के गोपीनाथ मुण्डे द्वारा चव्हाण की इस घोषणा का स्वागत साफ करता है कि इन्हें अपने रिश्तेदारों की ज्यादा परवाह है या जनता की। बहरहाल कोर्ट ने अनुदान पर रोक लगाकर सरकार से जवाब तलब किया है।

अर्न लीव एन्वाय कर रहे हैं चाणक्य
राजनीति भी एक तरह की नौकरी ही होती हैै। जिस तरह सरकारी नौकरी में केजुवल लीव, मेडिकल लीव के अलावा जिन अवकाश का नगदीकरण कराया जा सकता हो वह कहलाता है अर्जित अवकाश अर्थात अर्न लीव। उतने अवकाश अपने अर्जित किए हैं। हर साल निश्चित मात्रा में अर्जित अवकाश दिए जाते हैं। कांग्रेस की राजनीति में बीते दशक के अन्तिम दौर के चाणक्य कुंवर अर्जुन सिंह भी सालों साल राजनीति कर अपने कमाए अवकाशों का अब उपयोग कर रहे हैं। पिछले एक पखवाडे में वे मध्य प्रदेश के प्रवास पर रहे। कुंवर साहेब जब भी जहां भी जाते हैं, कांग्रेस के क्षत्रपों की सांसे थम जाती हैं। अर्जुन सिंह बेहतर तरीके से जानते हैं कि उन्हें कब कौन सा तीर चलाना है। इस बार वे अपने व्यवसायी मित्र सैम वर्मा के एक सप्ताह तक मेहमान रहने के बाद राजधानी भोपाल में केरवां बांध के करीब अपनी कोठी ``देवश्री`` में अपने पुत्र एवं प्रदेश के पूर्व कबीना मन्त्री अजय सिंह एवं परिवार के साथ रहे। इस दौरान उन्होंने अपने आप को सबसे अलग थलग ``आईसोलेटेड`` करके रखा, जिससे नेताओं की नीदें उडी हुई हैं। जाते जाते कुंवर साहेब यह जरूर कह गए कि वे अपने ``अर्जित अवकाश`` का उपयोग कर रहे हैं। इस अवकाश में क्या सन्देश छिपा है यह तो आने वाला समय ही बता पाएगा।

सिंघल की शरण में बापू

गुजरात में नरेन्द्र मोदी के कोप का भाजन बने स्वयंभू प्रवचनकर्ता सन्त आशाराम बापू पर एक के बाद एक हमले से वे व्यथित नज़र आ रहे हैं। मोदी की मश्कें कसने के लिए उन्होंने भाजपा के शीर्ष नेताओं की देहरी पर दस्तक देना आरम्भ कर दिया है। बीते दिनों बापू ने एल.के.आडवाणी से संपर्क कर मोदी को शान्त करवाने का आग्रह किया। राजनीति के दांव पेंच उम्दा तरीके से जानने वाले आडवाणी ने अपने हाथ झटककर साफ कह दिया कि बापू, मोदी किसी की भी नहीं सुनते हैं, यहां तक कि मेरी भी नहीं। इसके बाद मोदी से निजात पाने बापू ने विश्व हिन्दू परिषद के अशोक सिंघल को साधा। अशोक सिंघल इसके लिए राजी हो गए और पहुचे मोदी के दरबार में। बताते हैं कि मोदी ने लिफाफे का मजमून ही भांपकर संक्षेप में पटाक्षेप करते हुए एक ही लाईन कही -``क्यों अपनी वषोZं की तपस्या को भंग करने पर आमदा हैं अशोक जी।`` फिर क्या था, मोदी एक ओर बढ लिए और सिंघल चुपचाप खडे होकर बगलें झांकते रहे।

लाट साहेब के मसले में दीदी और कांग्रेस आमने सामने

पश्चिम बंगाल के लाट साहेब के बंग्ले में नए भरती होना है। आने वाले विधानसभा चुनावों को देखकर ममता चाहतीं हैं कि राज्यपाल उनकी पसन्द का हो, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस अपना वर्चस्व बढाने के लिए अपनी पसन्द के व्यक्ति को इस पर बिठाना चाहती है। ममता ने जस्टिस सच्चर के नाम पर वीटो कर दिया है। कांग्रेस चाह रही है कि मोहसिना किदवई को इस पद पर बिठाया जाए। कांग्रेस के राजनैतिक मैनेजर अब सर जोडकर बैठ गए हैं कि अगर ममता के हिसाब से राज्यपाल बिठा दिया गया तो आने वाले समय में रेल मन्त्रालय पर कांग्रेस अपना मन्त्री बिठा सकती है, पर बंगाल में शासन करते करते ममता के केन्द्र की राजनीति में दखल से कांग्रेस इंकार नहीं कर पा रही है। कांग्रेस के सामने उगलत निगलत पीर घनेरी सी स्थिति निर्मित हो चुकी है। ममता की मानें तो बंगाल हाथ से जाता है और नहीं मानते हैं तो ममता के तेवर कडे होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।


700 करोड के घाटे में रहा वाली वुड
देश के नागरिकों का शिक्षाप्रद मनोरंजन करने वाली रूपहले पर्दे की दुनिया ``वालीवुड`` अब पूरी तरह से व्यवसायिक हो गया है। अब लोगों को प्रेरणा देने वाले चलचित्रों के बजाए उबाउ और गन्दगी भरी फिल्में बनने लगी हैं। पिछले साल वालीवुड पर भी वैश्विक मन्दी का असर देखने को मिला। एक अनुमान के अनुसार 2009 में वालीवुड को 700 करोड रूपए का नेट घाटा हुआ है। नवोदित अभिनेता और अभिनेत्रियों के ठुमकों और छोटे पर्दे पर इनके विवादों, रियलिटी शो के साथ ही साथ पायरेटिड सीडी, डीवीडी के चलते वालीवुड को खासा नुकसान उठाना पडा। वैसे भी 2008 नवंबर में आर्थिक राजधानी मुम्बई पर हुए अब तक के सबसे बडे आतंकी हमले से सहमी ही रही मायापुरी। बीते साल लव आज कल, दे दना दन, कमीने, आल दी बेस्ट, न्यूयार्क, वेक अप सिड, वांटेड, राज द मिस्टी कांट्रीन्यूज, देव डी, 13 बी जैसी फिल्मों ने सफल या औसत कारोबार कर वालीवुड को संकट से काफी हद तक उबारा है।

बावर्ची खाने तक दखल रखते हैं राठौर!
बहुचर्चित रूचिका काण्ड के प्रमुख आरोपी हरियाणा के पूर्व पुलिस महानिदेशक शंभू प्रसाद सिंह राठौर की पहुंच केन्द्रीय मन्त्री के किचिन तक है। जी हां, बीते दिनों राठौर ने यूपी के शाहजहांपुर स्थित केन्द्रीय पेट्रोलियम मन्त्री जतिन प्रसाद के पुश्तैनी आवास ``प्रसाद भवन`` में आमद दी। बताते हैं कि जतिन की अनुपस्थिति में राठौर ने उनकी माता कान्ता प्रसाद के साथ एकान्त में लंबी चर्चा की। राठौर मूलत: लखीमपुर खीरी के निवासी हैं जो जतिन के संसदीय क्षेत्र का एक हिस्सा माना जा सकता है। मीडिया की मानें तो जतिन प्रसाद के विवाहोपरान्त 19 फरवरी को होने वाले प्रीतिभोज के इन्तजाम अली बनकर गए थे राठौर। वे इसके लिए बावर्ची को लेकर लखनउ में पंजीकृत टवेरा यूपी 32, सीवाई 4057 में सवार होकर यहां पहुंचे थे। जानकार राठौर की इस यात्रा के अनेक अर्थ लगा रहे हैं। जैसे जैसे राठौर पर शिकंजा कसते जा रहा है, वैसे वैसे राठौर के चेहरे की हवाईयां उड रहीं हैं, और उनके हाथ पांव मारने के प्रयासों में तेजी से इजाफा हो रहा है।

. . . और लगा हाईजेक हो गया विमान!
कोहरे की मार के चलते हवाई यात्रियों को खामियाजा भुगतना कोई नई बात नहीं है। बीते दिनों जेद्दा से दिल्ली आ रहे एयर इण्डिया के एक विमान को दिल्ली के बजाए मुम्बई में उतारे जाने से खासा हंगामा खडा हो गया। अमूमन दिल्ली में जब कोहरा होता है तो विमान को चण्डीगढ या जयपुर में उतारा जाता है, पर इस विमान को इसके बजाए मुम्बई ले जाया गया। एयर इण्डिया की उडान संख्या एआई - 891ए, को जब बीते दिन मुम्बई में उतारा गया तो उसमे ंसवार कुछ हज यात्रियों के सबर का बांध टूट गया। जब उद्घोषणा की गई कि यात्रियों को रात में होटलों में ठहराया जाएगा तो गुस्साए यात्रियों ने विमान के दरवाजे बन्द कर दिए, और किसी भी सुरक्षा कर्मी को अन्दर नहीं घुसने दिया गया। शाम पांच बजे उतरे विमान के चालक दल और अन्य सदस्यों को भी यात्रियों ने 15 घंटे बाद ही विमान से उतरने दिया। काफी मशक्कत के बाद अगले दिन एक बजे यात्रियों को लेेकर यह विमान दिल्ली के लिए रवाना हुआ। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार सारी रात यह लगता रहा कि मानो विमान को हाईजेक कर लिया गया हो।

राजमाता की अमर प्रशंसा के निहितार्थ
बहुत साधारण परिवेश से उठकर राजनैतिक बिसात पर एक खासा किन्तु विवादित मुकाम हासिल करने वाले समाजवादी नेता अमर सिंह के हर वक्तव्य के गर्भ में कुछ न कुछ सन्देश छिपा होता है। अपनी ही पार्टी में बेगाने हुए अमर सिंह ने समाजवादी पार्टी को एक मुकाम दिलाया है, यह बात सभी बेहतर तरीके से जानते हैं। जोडतोड में माहिर अमर सिंह इन दिनों अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत हैं और अब उनकी जोडतोड किसी दल के लिए नहीं वरन खुद के लिए है। पूर्व में वे भाजपा के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी बाजपेयी की खासी प्रशंसा कर चुके हैं। अब उनकी गुणगान गाथा का शीर्षक कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी पर आकर टिक गया है। अपने ब्लाग पर उन्होंने अटल, सोनिया के अलावा अरूण जेतली और फारूख अब्दुल्ला को सराहा है। राजनैतिक बियावान में अब अमर सिंह की सोनिया की शान में गढे गए कशदों के निहितार्थ क्या हो सकते हैं इस बात पर शोध चल रहा है। हो सकता है अटल शोरी के माध्यम से भाजपा तो सोनिया के बहाने कांग्रेस में अपनी संभावनाओं को तलाश कर रहे हों।

हिन्दुस्तानी का सबसे मंहगा पता
भारत का रहने वाला कोई भी चमत्कार कर सकता है। हाल ही में दुनिया की सबसे उंची इमारत बुर्ज दुबई के सौवें तल के मालिक बनकर भारतीय मूल के बी.आर.शेट्टी के पैर जमीन पर नहीं पड रहे होंगे। न्यू मेडिकल सेंटर ग्रुप ऑफ हॉिस्पटल्स के संस्थापक शेट्टी दुबई की खरबपति शिख्सयतों में से एक हैं। उन्होंने 860 डॉलर प्रति वर्ग फुट के हिसाब से 15 हजार वर्ग फिट के लिए लगभग 64 करोड रूपए का भुगतान किया है। एक तरफ भारत में आम आदमी को पहनने को आधी लंगोटी और खाने को चौथाई रोटी नसीब नहीं है, वहीं दूसरी ओर भारतीय मूल के ही लोग विदेशों में रहकर अकूत धन संपदा एकत्र कर मौज कर रहे है। यह निश्चित तौर पर उनकी अपनी मेहनत और लगन का ही फल है, किन्तु देश के जनसेवकों की दिनों दिन बढती संपत्ति पर किसी भी एजेंसी का कोई चेक पोस्ट नहीं है। माना जा रहा है कि विदेशी धरती पर किसी हिन्दुस्तानी का यह सबसे मंहगा पता हो सकता है।

बाजपेयी को याद हैं प्रहलाद पटेल
पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी बाजपेयी के जेहन में आज भी पूर्व केन्द्रीय मन्त्री प्रहलाद सिंह पटेल की यादें ताजा हैं। भाजपा के नए निजाम के दरबार में हाजिरी भरने पहुचे मध्य प्रदेश भाजपा के आला नेताओं ने सोचा लगे हाथ अटल जी से भी सोजन्य भेंट कर ली जाए। अटल बिहारी से मिलने भाजपा के सारे नेता एक साथ पहुचें। सभी को आश्चर्य हुआ कि सूबे के तमाम वरिष्ठ, उमर दराज नेताओं को बाजपेयी ने पहचाना तक नहीं, जबकि उन सभी ने बाजपेयी के साथ सालों साल काम किया है। सारे नेता तब चकित रह गए जब राजनैतिक बिसात पर हाशिए पर ढकेल दिए गए पूर्व केन्द्रीय मन्त्री प्रहलाद सिंह पटेल को बाजपेयी ने पहचान लिया। बताते हैं कि जैसे ही बाजपेयी की नज़रें प्रहलाद पटेल पर पडी, उनके चेहरे पर चिरपरिचित मुस्कान आई और उन्होंने इशारों ही इशारों में पटेल से कुशलक्षेम पूछ डाली। एक समय में भाजश नेता उमाश्री भारती के करीबी रहे प्रहलाद पटेल बाजपेयी के प्रधानमन्त्रित्व काल के अन्तिम समय में कोयला राज्यमन्त्री रह चुके हैं। जानकारों का मानना है कि प्रहलाद पटेल जिस से एक मर्तबा मिल लें वे अपने व्यवहार से अपनी अमिट छाप छोड जाते हैं। बाजपेयी को भी इसी तरह का कोई वाक्या याद रह गया होगा।

फूलों का कारोबार 400 करोड!
पावन नगरी हरिद्वार में मकर संक्रान्ति से आरम्भ हुए कुंभ में हाड गलाने वाली ठण्ड के बावजूद उमडी भक्तों की तादाद से पता चल जाता है कि देश की जनता कितनी धर्म भीरू है। आस्था के इस महाकुंभ के लिए वैसे तो हरिद्वार पूरी तरह तैयार नहीं है, फिर भी कुंभ का आगाज हो चुका है। दिल्ली से बरास्ता रूडकी हरिद्वार जाने वाले रास्ते का निर्माण जारी है। चार माह तक चलने वाले इस कुंभ में सिर्फ फूलों का व्यवसाय ही चार सौ करोड रूपए से अधिक होने की संभावना है। मेले के दौरान गंगा तट पर बने देवी देवताओं के मन्दिरों की सजावट, धार्मिक पण्डालों की सजावट, प्रतिमाओं के श्रंगार, देवी देवताओं पर अर्पित होने वाले फूलों के लिए हजारों टन फूलों की दरकार है। राज्य मे फूल उत्पादक किसानों ने इसकी तैयारी कर ली है। सरकार ने इस बार कुंभ में पडने वाली फूलों की आवश्यक्ता को देखते हुए नि:शुल्क बीज भी उपलब्ध करवाए थे।

ये है दिल्ली पुलिस मेरी जान!
देश की व्यवसायिक राजधानी दिल्ली में इस साल कामन वेल्थ गेम्स होने हैं। पुलिस पूरी तरह चाक चौबन्द है। कदम कदम पर पुलिस आप पर नज़र रख रही है। बुजुर्गों की सुरक्षा की जवाबदारी पहली प्राथमिकता है, ये सारे दावे हैं दिल्ली पुलिस के, मगर हकीकत इससे उलट ही नज़र आ रही है। कामन वेल्थ की चौकस व्यवस्थाओं के बीच दिल्ली में तीन आतंकवादी फरार हो जाते हैं। इसके बाद दिल्ली पुलिस रेड अलर्ट जारी करती है। रेड एलर्ट के मायने क्या हैं। रेड अलर्ट के बीच पूर्वी दिल्ली में शहदरा इलाके में जीटी रोड स्थित ``यूको बैंक के अन्दर से`` एक 72 वषीZय वयोवृद्ध नागरिक चरन सिंह खोखर के पास से 60 हजार रूपए छुडाकर एक युवक भाग गया। अभी तक तो राह चलते झपटमारी की बातें सुनी जाती थीं, पहली मर्तबा बैंक के अन्दर से सुरक्षा गार्ड की मौजूदगी में एक बुजुर्ग लुट गया दिनदहाडे। ये है दिल्ली पुलिस मेरी जान।

पुच्छल तारा
भारत की व्यवस्थाओं पर चोट करता हुआ एक एसएमएस भेजा है मध्य प्रदेश के सिवनी से आलोक जैन, ``पिंकी`` ने। हम एक बहुत ही गजब के देश में रहते हैं, जहां फोन करने पर एम्बूलेंस और पुलिस से तेज गति से पिज्जा आपके घर पहुंच जाता है। यह एक एसा अनोख देख है जहां कार के लिए लोन महज आठ फीसदी की दर पर मौजूद है, पर शिक्षा के लिए ऋण अगर आप चाहें तो वह आज भी 12 फीदसी की दर पर ही मिल रहा है। कहना ही पडेगा ``आई लव माई इण्डिया``