रविवार, 4 अक्तूबर 2009

चंदा मामा से प्यारा मेरा क्वात्रोची मामा . . .

ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

चंदा मामा से प्यारा मेरा क्वात्रोची मामा . . .
बोफोर्स, बोफोर्स बोफोर्स। बार बार यह सुनते सुनते कान थक गए और अब सरकार ने बोफोर्स के जिन्न को सदा के लिए बोतल में बंद कर उसे समंदर में गहरे पानी तले दबाने का जतन किया है, ताकि दुबारा यह बाहर न आ सके। बोफोर्स तोप दलाली की चीत्कार के चलते राजीव गांधी की सरकार गिर गई थी। भाजपा नेता अरूण शोरी तब पत्रकार की भूमिका में थे, उन्होंने बोफोर्स को जमकर हवा दी थी। आज उनकी चुप्पी भी रहस्यमय ही है। कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के पीहर (मायके) के हैं इसमें लिप्त ऑक्टोबिया क्वात्रोची, सो इस लिहाज से वे कांग्रेसियो के मामा ही लगे, भला मामा को क्यों न बचाए कांग्रेस की सरकर! फिर बताते हैं कि राजमाता की सहेली जो ठहरीं क्वात्रोची की पित्न मारिया। अब सब कुछ साफ साफ दिखाई पड़ने लगा है। क्वात्रोची आजाद हैं, लानत मलानत झेल रही है कांग्रेस। वैसे भी माना जाता है कि पब्लिक मेमोरी (लोगों की याददाश्त) ज्यादा नहीं होती है, सो इस बारे में चौक चौराहों पर कुछ माह तक चर्चा होने के बाद फिर मामला ठंडे बस्ते के हवाले हो जाएगा। रही बात मीडिया की तो अखबारों और चेनल्स की सुर्खियां बनी यह खबर एकाध सप्ताह में बीच के किसी पन्ने पर आकर दम तोड़ ही देगी। मजे की बात तो यह है कि क्वात्रोची ने अपने खाते से 21 करोड़ रूपए निकाल भी लिए हैं।


राहुल की युवा होती कांग्रेस!

उमर दराज नेताओं को मार्गदर्शक की भूमिका में ही होना चाहिए। यह मानना कमोबेश हर राजनैतिक दल का है। सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस के नए पायोयिर (अगुआ) हैं नेहरू गांधी परिवार की पांचवीं पीढ़ी के सदस्य राहुल गांधी। मंत्रीमण्डल से लेकर सरकार तक में वे युवाओं को आगे लाने के हिमायती रहे हैं। जब से कांग्रेस के महासचिव राहुल ने अपने अघोषित राजनैतिक गुरू एवं दूसरे महासचिव राजा दिगिवजय सिंह के मार्गदर्शन में परोक्ष तौर पर कांग्रेस की कमान संभाली है तब से वे युवाओं को ही तवज्जो दे रहे हैं। महाराष्ट्र में आसन्न चुनावों में राहुल गांधी की युवा होती कांग्रेस का एक अजूबा चेहरा सामने आया है। राहुल की सिफारिश पर कोल्हापुर तालुके की शिरोल विधानसभा सीट से सतगोंडा रेवगोंडा पाटिल को अपना उम्मीदवार बनाया है। पेशे से किसान यह कांग्रेसी उम्मीदवार जरूरत से ज्यादा युवा नजर आ रहे हैं। इन्हें 2004 के विधानसभा चुनावों में टिकिट से महरूम रखा गया था। राहुल चर्चा में इसलिए आ गए हैं, क्योंकि जिस पाटिल से राहुल गांधी बहुत ज्यादा प्रभावित नजर आ रहे हैं, उनकी उमर महज 90 साल जो ठहरी।


12 साल से जगह की तलाश में बापू


दलित नेता स्व. कांशीराम, मायावती सहित 11 दलित नेताओं की प्रतिमाएं स्थापित करने के लिए उत्तर प्रदेश की निजाम मायावती ने करोड़ों रूपए पानी की तरह बहा दिए हैं, किन्तु 12 सालों में गोतम बुद्ध नगर (नोएडा) में बापू की प्रतिमा को स्थापित करने माकूल जगह नहीं मिल सकी है। 12 साल पहले नोएडा अथारिटी के आग्रह पर देश के नामी मूर्तिकार रा.वी.सुतार द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आदमकद प्रतिमा गढ़कर दी थी। बाद में इसके भुगतान को लेकर उपजे विवाद में सुतार ने इसे मुफ्त में ही अथारिटी को सोंप दिया था। इस प्रतिमा को लगाने के लिए गोलचक्कर का चयन किया गया था, किन्तु वह प्रतिमा के हिसाब से उचित प्रतीत नहीं हुआ। इसके बाद अथारिटी ने वह प्रतिमा दिल्ली पब्लिक स्कूल के सेक्टर 30 स्थित परिसर में रखवा दी थी। कितने आश्चर्य की बात है कि आधी लंगोटी पहनकर ब्रितानी शासकों के दांत अहिंसा के बल पर खट्टे कराने वाले बापू की प्रतिमा को लगाने के लिए बारह सालों में कोई जगह नहीं मिल सकी है। एसा नहीं है कि इन बारह सालों में नोएडा में किसी की प्रतिमा की स्थापना न की गई हो। हद तो तब हो गई जब कांग्रेसी मानसिकता वाले डीपीएस के संचालकों सहित कोई भी कांग्रेस 02 अक्टूबर को इस प्रतिमा पर दो फूल अर्पित करने नहीं पहुंचा।


प्रजा अंधकार में जनसेवक का घर रोशन!


बिजली विभाग के घाटे में जाने और बिजली चोरी रोकने की गरज से मध्य प्रदेश सरकार ने एक फरमान निकला था कि जिस भी गांव में बिजली के बिल की अदायगी न की गई वहां की बिजली काट दी जाएगी। विद्युत मण्डल ने इस योजना को अमली जामा भी पहनाया। सूबे के दमोह जिले की हटा तहसील के एक गांव में अद्भुत नजारा दृष्टव्य हुआ। सूबे के कृषि मंत्री डॉ.राम कृष्ण कुसमरिया के गृह गांव सकौर में आठ लाख रूपए के बिजली के बिल की अदायगी न किए जाने पर बिजली विभाग द्वारा अंधेरा कर दिया गया। पर चूंकि यहां सूबे के एक कबीना मंत्री भी रहते हैं, सो बिजली विभाग ने एक ट्रांसफारमर लगाकर मंत्री के घर को रोशन कर दिया है। केंद्रीय विदेश मंत्री एम.एस.कृष्णा एवं विदेश राज्य मंत्री शशि थुरूर के होटल बिलों की भांति ही कुसमरिया का कहना है कि यह उन्होंने अपने निजी खर्च पर लगवाया है। जनाब कुसमरिया भी शायद भूल रहे हैं कि जनसेवक का काम मां की तरह होता है, जो पहले अपने बच्चों का पेट भरती है, फिर खुद अपनी क्षुदा शांत करती है। इस लिहाज से कुसमरिया को पहले प्रजा का ख्याल रखना चाहिए था, वस्तुत: जो उन्होंने नहीं किया।


उड़नखटोले ने डाला मंत्रियों को संकट में


अपना रूतबा और विलासिता दर्शाने के लिए उड़न खटोलों से सैर करना जन सेवकों का पुराना शगल रहा है। अपनी इन आदतों के चलते नेता मंत्री सदा ही चर्चाओं में रहे हैं। हाल ही में उत्तराखण्ड सरकार के मंत्रियों और नेताओं के उड़ने पर महालेखाकार नियंत्रक (एजी) ने गहरी आपत्ति की है। सरकार का कहना है कि उसने इसमें महज 17 करोड़ की राशि ही व्यय की है, किन्तु एजी का कहना है कि इसमें 50 करोड़ से अधिक की राशि का खर्च अनुमानित है। इतना ही नहीं आडीटर जनरल का कहना है कि सरकार द्वारा सौंपी सूची, एयर ट्रेफिक कंट्रोल (एटीसी) को सोंपी सूची एवं आरटीआई के तहत सौंपी गई सूची में बहुत ज्यादा अंतर है। इसमें गंतव्य भी परिवर्तित प्रतीत हो रहे हैं। सरकार भी बेचारी क्या करे। मंत्रिमण्डल में न शामिल किए गए अपने बड़े आकाओं जिनके इशारे पर सरकारें बनती और गिरती हैं, को खुश करने और उनकी हवाई यात्रा के प्रबंधन के लिए किसी भी मंत्री के नाम पर हवाई जहाज को किराए पर लिया जो जाता है। अब यह अलग बात है कि जिस दिन की यात्रा दर्शाई गई हो उस दिन उसी मंत्री ने दर्शाई यात्रा से सैकड़ों किलोमीटर दूर किसी कार्यक्रम में भाग लिया हो। सच ही है इसे देखने ओर सुनने वाला कोई नहीं है।



एम को एम से दूर करने की कवायद


राजनीति हो या रूपहला पर्दा या कोई और जनहित का कार्य करने वाला शक्स, हर किसी को मीडिया की दरकार होती ही है। मीडिया से संबंध अच्छे रहें तो उसकी छवि भी कमोबेश अच्छी ही बनी रहती है (यह बात आज के परिवेश के मीडिया पर लागू होती है, वरना पहले तो मीडिया सिर्फ सच को ही उजागर किया करता था)। स्वयंभू प्रबंधन गुरू लालू प्रसाद यादव के गुर्गों द्वारा नई रेल मंत्री ममता बनर्जी (एम) को मीडिया (एम) से दूर करने का ताना बाना बुना जा रहा है। मीडिया को खुश करने के लिए ममता ने पत्रकारों और उनके परिजनों को आसान और आरामदायक रेल यात्रा की योजनाएं लागू कर दी हैं। वहीं दूसरी ओर इन योजनाओं में पलीता लगाया जा रहा है। कुछ दिनों पहले रेल विभाग का एक बयान आया था कि 15 अक्टूबर के उपरांत रेल ट्रेवल कूपन (आरटीसी) पर टिकिट नहीं मिलेगी, पत्रकारों के लिए क्रेडिट कार्ड बनवाए जा रहे हैं। कई सूबों में इस योजना का अता पता ही नहीं है। इसके अलावा पत्रकारों के लिए आरक्षण की खास व्यवस्था को भी तहस नहस कर दिया गया है। मीडिया बिरादरी में ममता बनर्जी के प्रति आक्रोश के बीज अंकुरित होने लगे हैं। ममता शायद इससे अनजान हैं, किन्तु लालू के चहेते कारिंदे इसमें खाद पानी देने का काम बदस्तूर कर रहे हैं।

बधाई के साथ ही नसीहत की भी दरकार


भारत की बेटी युगरल श्रीवास्तव ने संयुक्त राष्ट्र में जाकर समूचे विश्व को जलवायू परिवर्तन के बारे में समझाईश दी, जिसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम होगी। ग्लोबल वार्मिंग से अब शायद कोई अछूता और अनजान होगा। बात वही है कि सिगरेट से होने वाले नुकसान के संबंध में लेख अवश्य पढ़ा जाता है, किन्तु अंगुलियों में सिगरेट कबाकर कश लेते हुए। हम जानते हैं कि धरती का तापमान बढ़ रहा है, कार्बन डाई आक्साईड का ज्यादा मात्रा में उत्सर्जन, वृक्षों को काटकर उस पर कांक्रीट जंगलों का निर्माण, प्लास्टिक का उपयोग यह सब किसी ओर के लिए नहीं हमारे लिए ही हानीकारक है। आज विचारणीय प्रश्न यह है कि आखिर हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए कौन सी विरासत छोड़ने जा रहे हैं। देश में कमोबेश हर सूबे में प्लास्टिक के बेग को प्रतिबंधित कर दिया गया है, पर आज केंद्र और राज्य सरकार की नाक के नीचे दिल्ली में ही इनका उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है। कचरों के ढेरों से प्लास्टिक उड़ उड़कर इधर उधर फैल रही है। छोटे शहरों में तो कचराघरों के आसपास पेड़ों पर झूलती प्लास्टिक देखकर लगता है मानो वह प्लास्टिक का पेड़ हो। केंद्र, राज्य सरकारों सहित समूचे देशवासियों को चाहिए कि युगरल को बधाई अवश्य दें पर उसकी बात से नसीहत लेकर धरती के तापमान को कम करने की दिशा में पहल अवश्य करें।


चर्चा में रहा तीरथ का विज्ञापन

भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग का एक विज्ञापन पिछले दिनों चर्चा का विषय बना रहा। यूपीए चेयरपर्सन श्रीमति सोनिया गांधी, वजीरेआला डॉ.एम.एम.सिंह महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री कृष्णा तीरथ और बापू के छायाचित्रों से सजे एक पेज के रंगीन इस विज्ञापन में ``महिलाओं के खिलाफ हिंसा निवारण के लिए राष्ट्रीय अभियान का शुभारंभ, अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस 2 अक्टूबर 2009 एवं हिंसा रहित भारत, अन्याय रहित जिन्दगी`` के अलावा सारी इबारत अंग्ल भाषा में ही थी। तीरथ का विभाग शायद यह भूल गया कि हरिजन कालोनी, हरिजन सेवक कल्याणसंघ, आदि स्थानों पर आयोजित इन कार्यक्रमों में शामिल होने वाले लोगों में अंग्रेजी भाषा के जानकार बहुत ही कम थे। फिर बापू ने ही कहा था कि राष्ट्रभाषा हिन्दी ही भारत को एक सूत्र में पिरो सकती है। हिन्दी भाषी दिल्ली की रहने वाली महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री तीरथ का अंग्रेजी प्रेम लोगों के बीच चर्चा का विषय न बनता तो और क्या बनता।


कांग्रेस ही कांग्रेस की दुश्मन


हरियाण में होने वाले विधानसभा चुनावों में अब कांग्रेस बनाम कांग्रेस की स्थिति निर्मित होती जा रही है। कांग्रेस के अंदरखाते में चल रही इस जंग से भले ही उपरी पायदान के राजनेताओं का राजनेतिक ग्राफ बढ़ रहा हो पर यह सच है कि जमीनी तौर पर कांग्रेस रसातल की ओर बढ़ती दिख रही है। हालात देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि सूबे में कांग्रेस के लिए यह लड़ाई बहुत ही मंहगी साबित हो सकती है। राज्य में मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, पूर्व केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत, केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा, राज्य के वित्त मंत्री वीरेंद्र डूमर खान और वन मंत्री किरण चौधरी आपस में भले ही एकता का प्रदर्शन करें, किन्तु अंदर ही अंदर तलवारें भांज रहे हैं। चूंकि हरियाणा से दिल्ली का रास्ता बहुत लंबा नहीं है, इसलिए सभी क्षत्रप अपने अपने आकाओं को साधने में भी सफल हो पा रहे हैं। जिस भी नेता को जहां भी मौका मिल रहा है वह अपने प्रतिद्वंदी के खिलाफ विषवमन से नहीं चूक रहा है। दिल्ली में सोनिया के निज सचिव विसेंट जार्ज, राजनैतिक सलाहकार अहमद पटेल, राहुल गांधी के अघोषित राजनैतिक गुरू राजा दिग्विजय सिंह, राहुल गांधी के सचिव कनिष्का सिंह के दरबार में उमड़ती भीड़ को देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि सूबे की राजनीति का रिमोट कहीं न कहीं दिल्ली में ही है।


इस सादगी को सलाम!


एक ओर केंद्र सरकार के साथ कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी और कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी सादगी का प्रहसन कर पाई पाई बचाने की जुगत लगा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार की बदइंतजमी के चलते लगभग दस लाख टन अनाज सड़ गया। कोलकता के बंदरगाह में गोदामों में विदेशों से आयात किया गया अनाज और अन्य सामग्री या तो सड़ गई या चूहों कीट पतंगों की भेंट चढ़ गई। मजे की बात तो यह है कि यह सब कुछ केंद्र सरकार के अधीन कार्यरत खाद्य एवं आपूर्ति मंत्रालय और स्वास्थ्य मंत्रालय के बीच सामंजस्य न होने से हुआ है। दरअसल स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन कार्यरत सेंट्रल फुड लेबोरेटरी द्वारा विदेशों से आयतित खाद्य सामग्री का परीक्षण कर उसे मानव उपयोग के लिए उचित बताते हुए प्रमाणपत्र जारी किया जाता है। दोनों ही मंत्रालयों के बीच तालमेल के अभाव के चलते लाखों टन अनाज बंदगाह पर ही पड़ा बरसात में सड़ता रहा। केंद्र सरकार के मितव्ययता कि ढोंग कर पाई पाई बचाने और उनके ही अधीन कार्यरत मंत्रालयों द्वारा करोड़ों रूपयों के अनाज को सड़ा देना आखिर क्या साबित करता है। इस तरह की सादगी को सलाम ही कहा जाए तो बेहतर होगा।


वसुंधरा से डरी हुई है भाजपा


जसवंत सिंह के मामले में अपनी किरकिरी करा चुकी भारतीय जनता पार्टी अब राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेता प्रतिपक्ष वसुंधरा राजे पर कठोर कार्यवाही करने से हिचक रही है। भाजपा को डर है कि अगर उसने सख्ती की और वसुंधरा ने अपना त्यागपत्र नहीं दिया तो उसकी स्थिति दुविधाजनक हो जाएगी। पहले ही जसवंत सिंह द्वारा लोकसभा की लोक लेखा समिति के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र न दिए जाने से भाजपा बेकफुट में दिखाई दे रही हैं। उधर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह पर यह दबाव बढ़ता जा रहा है कि एक बार वसुंधरा के त्यागपत्र की घोषणा होने के बाद अगर ज्यादा समय बीता तो पार्टी में असंतुष्ट मुंह खोलने लगेंगे। इस्तीफा प्रकरण न सुलटने के कारण राजस्थान के दो विधायकों राजेंद्र राठोड़ और ज्ञानदेव आहूजा के निलंबन पर भी विचार नहीं हो पा रहा है। राजनथ भी चाह रहे हैं कि चला चली की बेला में विवादित होने के बजाए अब विवादित मामलों में चुप्पी साधकर अपना एक दो माह का समय काट ही लिया जाए।




अब दत्त परिवार के राजनैतिक तौर पर बंटने की खबरें

राजनीति में परिवारों का अलग अलग विचारधाराओं का होना नई बात नहीं है। देश के अनेक घरानों के सदस्य अलग अलग विचारधारा वाले राजनैतिक दलों की नुमाईंदगी करते नजर आते हैं। नेहरू गांधी खानदान में ही सोनिया और राहुल कांग्रेस की अगुआई कर रहे हैं तो मेनका और वरूण भाजपाई विचारधारा के पोषक हैं। ज्योतिरादित्य और वसुंधरा, यशोधरा भी परस्पर विरोधी दलों में हैं। अब फििल्मस्तान का दत्त परिवार भी इसी राह पर चल पड़ा है। मुंबई में बांद्रा पश्चिम की सीट पर बाबा सिद्दकी को जिताने के लिए संजय दत्त की बहन प्रिया दत्त ने कमर कस ली है तो संजू बाबा समाजवादी उम्मीदवार रिजवान सिद्दकी को जिताने की जद्दोजहद में व्यस्त हैं। चर्चा यह है कि परस्पर विरोधी विचारधारा वाले राजनैतिक दलों में प्रवेश कर ये अपनी निष्ठा और विचारधारा का पोषण कर रहे हैं या फिर अपने निहित स्वार्थों को सिद्ध करने का उपक्रम कर रहे हैं।


कमजोर रही है हरियाणा में महिलाओं की स्थिति

देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली से सटे राज्य हरियाणा के अस्तित्व में आने के बाद से अब तक हुए 10 विधानसभा चुनावों में महज 60 महिलाएं ही विधायक बन सकीं हैं। यह आंकड़ा सूबे में राजनैतिक तौर पर महिलाअों की कमजोर भागीदारी को दर्शाने के लिए पर्याप्त कहा जा सकता है। इनमें से 56 महिलाएं विधानसभा और 4 ने उपचुनावों में परचम लहयारा है। वर्तमान में सूबे में 90 सीटों में 67 महिलाएं ही मैदान में हैं। वर्तमान में किरण चौधरी और सुमिता सिंह तोशाम और करनाल से दूसरी बार किस्मत आजमा रहीं हैं। आर्थिक तौर पर समृद्ध समझे जाने वाले हरियाणा में महिलाओं की भागीदारी महज छ: फीसदी ही रही है, जबकि लगभग हर दल महिलाओं की तेंतीस फीसदी भागीदारी सुनिश्चित करने का आलाप रागता आया है। राजनैतिक दलों की कथनी और करनी में फर्क इसी बात से साफ हो जाता है।


लोहपुरूष को आड़े हाथों लिया चोटाला ने

इंडियान नेशलन लोकदल के सुप्रीमो और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला ने भाजपा के कथित लोह पुरूष लाल कृष्ण आड़वाणी पर वार आरंभ कर दिया है। लोकसभा चुनावों में पार्टी की दुगर्ति के लिए उन्होंने सीधे सीधे तौर पर एल.के.आड़वाणी को जवाबदार ठहराया है। चोटाला का कहना है कि सक्रिय राजनीति से सन्यास की बात सोचने वाले आड़वाणी अगर चार साल पहले सन्यास ले लेते तो देश में भाजपा और हरियाणा में इनेलो का सत्यानाश होने से बच जाता। कल तक भाजपा की गलबहिंया करते और आड़वाणी के स्तुतिगान करने वाले इंनेलो के नेताओं की इस तरह की पल्टी से सभी चकित हैं। लगता है चोटाला को समझ में आ गया है कि भाजपा को कोसने से ही सूबे में उन्हें लाभ हो सकता है, सो उन्होंने आड़वाणी के खिलाफ अपनी तलवार पजाना आरंभ कर दिया है। चौटाला को कौन समझाए कि कौओं के कोसे ढोर नहीं मरते।

पुच्छल तारा


स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, गांधी जयंती और उनकी पुण्य तिथि पर देश भक्ति के भूले बिसरे गीत बजते हैं, वो भी महज अपरान्ह 12 बजे तक। आज की युवा पीढ़ी राष्ट्रपिता मोहन दास करमचंद गांधी को शायद भूलती ही जा रही है। तरूणाई की जुबां पर गांधी नेहरू के नाम पर अब महज तीन नाम ही बचे हैं। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और वरूण गांधी। प्रियंका भी युवाओं में लोकप्रिय हैं, पर शादी के बाद वे गांधी से वढ़ेरा हो गईं हैं। देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में एक कन्फयूजन पर दिन भर लोग ठहाके लगाते रहे। हुआ दरअसल यूं कि एक धवल खद्दरधारी युवा नेता सुबह सवेरे कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (सोनिया गांधी का सरकारी आवास) और 12 तुगलक लेन (राहुल गांधी का सरकारी आवास) पर जाकर वहां के नांदियों (सोनिया और राहुल के गण) को गांधी जयंती की शुभकामनाएं दे आए। बाद में उन्हें ज्ञात हुआ कि दरअसल जयंती तो महात्मा गांधी की थी। फिर क्या था ``लगे रहो मुन्ना भाई`` की तर्ज पर उनके मुंह से बेसख्ता निकल गया -``गांधी. . . कौन गांधी . . .सोनिया, . . . राहुल . . . या. . . और वो पुराने वाले . . . भूले बिसरे. . . .।