शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

हिटलरशाही पर उतारू हो गई है कांग्रेस

खेल खेल में अरबों का खेल
 
कामन वेल्थ में बह रहा पैसा पानी की तरह
 
शिक्षा और अन्य मदों में है नहीं पैसा पर खेल के नाम पर खुल रही पोटलियां
 
मनमानी के लिए कर रही है जबरिया अत्याचार
 
(लिमटी खरे)

महज तेरह दिनों के लिए आयोजित राष्ट्रमण्डल खेलों के लिए भारत गणराज्य की सरकार पैसे को पानी की तरह बहाने से नहीं चूक रही है। भारत पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस को इस बात से कोई लेना देना नहीं है कि उसके राज में भारत गणराज्य की जनता किस कदर बेहाल हो चुकी है। कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के राज में मंहगाई आसमान छू रही है और देश के वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी मंहगाई के बढने के कारणों को गिनाकर अपना कर्तव्य पूरा कर रहे हैं। इतना ही नहीं देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली पर तीसरी मर्तबा राज करने वाली शीला दीक्षित के राज में मंहगाई ने सारे रिकार्ड तोड दिए हैं, उनके पुत्र सांसद संदीप दीक्षित संसद में संप्रग और राजग सरकार के कार्यकाल में मंहगाई की तुलना कर कांग्रेस की पीठ थपथपाने से नहीं चूकते कि कांग्रेस ने कम मात्रा में मंहगाई को बढने दिया है।
 
भारत गणराज्य के पूर्व खेल मंत्री मणिशंकर अय्यर ने इस मामले में अपना मुंह खोला और कामन वेल्थ गेम्स को सफल न बनाने के लिए कमर कस ली। मणिशंकर अय्यर ने यहां तक कह दिया कि इस तरह के खेलों में हो रही पैसों की बर्बादी दुखद है और कामन वेल्थ गेम्स की सफलता की कामना तो शैतान ही कर सकता है। भारत पर राज करने वाली सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस का ही एक खेल मंत्री अपने ही साथियों को अगर कटघरे में खडा कर रहा हो तो फिर इस बात में कोई शक शुबहा नहीं रह जाता है कि देश की नाक का सवाल बन चुके कामन वेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार का घुन लग चुका है और पैसों की बरबादी साफ तौर पर हो रही है।
 
भारत ने इसकी मेजबानी 2003 में हासिल कर ली थी। कहा जा रहा है कि कनाडा इस खेल को हासिल करने वाला सबसे शक्तिशाली दावेदार था। कनाडा ने कामन वेल्थ गेम्स के लिए अपने शहर हेमिल्टन में प्रस्तावित तैयारियों का खाका बनाकर ही पेश किया था, किन्तु पैसे की ताकत थी कि इसे हिन्दुस्तान की गोद में डाल दिया गया।
 
खबरों के अनुसार भारत में इस आयोजन को हासिल करने के लिए अपने देश की जनता का पेट काटकर खजाना विदेशी खिलाडियों पर लुटाने में कोई कसर नहीं रखी। कामन वेल्थ गेम्स पाने के लिए दिए गए प्रलोभन में यह बात कही गई थी सभी खिलाडियों को विलासितापूर्ण लग्जरी होटल में ठहराकर उन्हें शानदार शोफर ड्रिवन कार मुहैया करवाई जाएंगी। इसमें भारत की ओर से जो पक्ष रखा गया उसमें कहा गया था कि पांच हजार दो सौ खिलाडियों और अठ्ठारह सौ अधिकारियों इस तरह कुल सात हजार लोगों को यात्रा के लिए 48 करोड रूपए का ग्रांट दिया जाएगा। इस वादे के करने से भारत को बोली के दौरान ही 137 करोड रूपए देने पडे थे।
 
भारत में खेलों की स्थिति क्या है यह बात किसी से छिपी नहीं है, पर पता नहीं क्यों भारत सरकार ने इस आयोजन को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। भारत सरकार ने अपने देश में खिलाडियों को प्रोत्साहित करने के बजाए इस आयोजन में प्रतिभागी छः दर्जन देशों में प्रत्येक देश के खिलाडी को 33 करोड 12 लाख रूपए की राशि महज एथलीट ट्रेनिंग की मद में ही मुहैया करवा दी थी। इनमें एसे देशों का भी शुमार है जिनसे महज तीन या चार खिलाडियों के ही आने की उम्मीद है।
 
सबसे अधिक आश्चर्य का विषय तो यह है कि हजारों करोड रूपयों में इस तरह सरेराह आग लगाई जा रही है और विपक्ष में बैठी भाजपा के साथ ही साथ बात बात पर लाल झंडा उठाने वाले वाम दल बस हल्की सी चिल्लाहट कर ही विरोध जता रहे हैं। विपक्षी दलों का कमजोर विरोध इस ओर इशारा कर रहा है कि वे भी प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर इस भ्रष्टाचार की गंगा में तबियत से डुबकी लगा रहे हैं।
 
कितने आश्चर्य की बात है कि भारत गणराज्य का खेल मंत्री यह स्वीकार कर रहा है कि कामन वेल्थ गेम्स के नाम पर बहुत कुछ गडबड हुआ है। भारत गणराज्य में राजनैतिक गतिविधियों के केंद्र के साथ ही साथ केंद्र सरकार का मुख्यालय भी दिल्ली ही है। दिल्ली में ही हो रहे हैं कामन वेल्थ गेम्स। जब सब कुछ दिल्ली में हो रहा है फिर कामन वेल्थ गेम्स की तैयारियों में पिछले तीन चार सालों से गफलत चल रही है, और गेम्स के एन दो माह पहले देश के खेल मंत्री अपनी लाचारगी जाहिर करते हुए कहंे कि अब कुछ नहीं हो सकता है, किन्तु इसमें घालमेल तो जमकर हुआ है।
 
भारत के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और पर्दे के पीछे से कठपुतली नचाने वाली कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के लिए यह शर्म की ही बात कही जा सकती है कि कामन वेल्थ गेम्स अभी आरंभ नहीं हुए हैं, और जो तैयारियां उनकी नाक के नीचे हो रही थीं, उन तैयारियों की जांच सीबीआई के हवाले है। इतना ही नहीं खेल मंत्री एम.एस.गिल स्वयं इन तैयारियों की जांच के लिए सीएजी से भी गति बढाने का आग्रह कर रहे हैं।
 
क्या इस आयोजन समिति के कोषाध्यक्ष अनिल खन्ना का त्यागपत्र ही पर्याप्त आधार नहीं है कि विपक्ष इस मामले में संसद में कांग्रेसनीत संप्रग सरकार को कटघरे में खडा कर दे। देश भर में आंदोलन इस बात को लेकर चलाए कि कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के नेतृत्व में देश का तीस हजार करोड रूपए से अधिक का धन फालतू ही जाया करवा दिया गया है। खन्ना पर आरोप था कि उन्होंने अपने पुत्र को सिंथेटिक सरफेस का ठेका दिया था। विपक्ष की खामोशी से मिली जुली नूरा कुश्ती की बू ही आती है।

वैसे एक बात अब तक स्थापित हो चुकी है कि खेल चाहे जो भी हों, इनके आयोजन में देश को हमेशा ही घाटा उठाना पडा है। मामला चाहे एशियाड का हो, ओलंपिक या कानमनवेल्थ का हर बार देश को नुकसान ही झेलना पडा है। भारत की सरकारें वैश्विक छवि बनाने के लिए आवाम ए हिन्द के मुंह से निवाले छीनकर इसे विलासिता भरा भोजन में तब्दील कर सोने की थाली में इसे विदेशियों के सामने परोसने से नहीं चूकती है, पर देश की अधनंगी भूखी जनता के हिस्से में आखिर आता क्या है?
 
अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने जब इस आयोजन को हासिल किया था तब इसके लिए प्रथक से बजट 1899 करोड रूपए का रखा गया था, जो अब सरकारी तौर पर लगभग पांच गुना बढ गया है, किन्तु अगर संपूर्ण आहूति के साथ देखा जाए तो यह बजट तीस हजार करोड रूपए से अधिक होने का अनुमान लगाया जा रहा है। किसे सच माना जाए किसे झूठ यह बात समझ से ही परे है।
 
दिल्ली राज्य के मुख्य सचिव कहते हैं कि अब तक निर्माण पर महज 13 हजार 350 करोड रूपए ही खर्च किए गए हैं। वहीं दूसरी ओर सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि दिल्ली सरकार के वित्त मंत्री 2006 में घोषणा कर चुके हैं कि कामन वेल्थ गेम्स के निर्माण पर 2006 तक 26 हजार 808 करोड़ रूपए फूंके जा चुके हैं। 2003 में कहा गया था कि स्टेडियम निर्माण में महज डेढ सौ करोड रूपयों का खर्च ही प्रस्तावित है, किन्तु अब तक इस मद में लगभग चार हजार करोड रूपयों में आग लगाई जा चुकी है।
केंद्रीय खेल मंत्रालय चाहे जो कहे पर इन गेम्स के लिए वह भी अपनी पोटलियों के मुंह तबियत से खोल रहा है। खेल मंत्रालय ने 2005 - 2006 के वित्तीय वर्ष मंे इस आयोजन मद में साढे पेंतालीस करोड रूपए की राशि आवंटित की थी। यह रकम पिछले वित्तीय वर्ष में छः हजार दो सौ पेंतीस गुना बढकर 2 हजार 883 करोड रूपए हो गई। रही केंद्र सरकार की बात तो केंद्र सरकार ने इस साल कामन वेल्थ गेम्स की तैयारियों की मद में दो हजार 69 करोड रूपयों का आवंटन दिया है। दिल्ली सरकार ने खेलों के लिए दो हजार एक सौ पांच करोड रूपए का आवंटन दिया है।
 
सरकार और जनता को भटकाने के लिए आयोजन समिति का कहना है कि महज तेरह दिनों के इस आयोजन में आयोजन समिति को सत्रह सौ अस्सी करोड रूपए की आय होना अनुमानित है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) आयोजन समिति की इस राय से इत्तेफाक कतई नहीं रख रहा है। सीएजी का कहना है कि यह आंकडा बढा चढा कर बताया गया है। आवंटन और व्यय मे ंसरकारी आंकडों में असमानता ही साफ तौर पर जाहिर करती है कि खेल खेल में पैसों का तबियत से खेल किया गया है।

खेल के नाम पर अंधाधुंध पैसा बहाकर विश्व स्तर पर अपनी छवि बनाने का काम सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस ही कर सकती है जिसने भारत गणराज्य पर आधी सदी से ज्यादा राज किया है। इसके साथ ही साथ कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर एक दशक से अधिक समय से विराजमान सोनिया गांधी ही एसा जादू दिखा सकतीं हैं कि भारत गणराज्य में जनता अधनंगी, भूखी, प्यासी तरसे और खेलों के नाम पर कांग्रेस से नेताओं और उनसे जुडे कारिंदे करोडों कमाकर मौज उडाएं और भारत गणराज्य का कानून उन्हें अपनी जद में लेने में असहज महसूस करे। देश की पुलिस इन भ्रष्टाचारी, दुराचारियों को सलाम ठोके और गरीब गुरबों को हवालात और जेल की हवा खिलाए।

रक्षित वन और पेंच के हिस्से से गुजरने वाली सडक कभी भी एनएच को हस्तांतरित ही नहीं हुई

फोरलेन विवाद का सच ------------02

2008 में ही रोक दिया गया था फोरलेन निर्माण का काम
 
वन विभाग की भूमि को अपना बताकर एनएच ने आरंभ करवा दी थी कटाई
 
वन विभाग ने कायम किया था अवैध वन कटाई का मामला
  
(लिमटी खरे)

सिवनी। अटल बिहारी बाजपेयी के शासनकाल में स्वर्णिम चतुर्भज के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे से सिवनी का नामोनिशान मिटाने की कवायद 2008 में विधानसभा चुनावों के पहले ही आरंभ हो चुकी थी। मध्य प्रदेश के वाईल्ड लाईफ विभाग द्वारा इस सडक के निर्माण हेतु अपनी सहमति के साथ प्रस्ताव केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को भेजा था। इसी दौरान दक्षिण सिवनी सामान्य वन मण्डलाधिकारी द्वारा अक्टूबर 2008 में ही इस मामले में पेंच फसाने आरंभ कर दिए थे।
 
दक्षिण सिवनी सामान्य वन मण्डल के डीएफओ द्वारा 25 अक्टूबर 2008 को जारी एक पत्र में इस बात का लेख साफ तौर पर किया गया है कि उनके कार्यालय में एसा कोई भी अभिलेख मौजूद ही नहीं है जिससे यह साबित हो सके कि वन विभाग के आधिपत्य वाले भाग से गुजरने वाले राजमार्ग क निर्माण या चौडीकरण के लिए लोक निर्माण विभाग अथवा राष्ट्रीय राजमार्ग को भूमि कभी हस्तांतरित की गई हो। साथ ही नेशनल हाईवे विभाग द्वारा भी डीएफओ के समक्ष एसे कोई अभिलेख प्रस्तुत नहीं किए गए हैं जिससे साबित हो सके कि आरक्षित वन भूमि एनएच विभाग या लोक कर्म विभाग को कभी हस्तांतरित की गई हो। इस सडक के सालों साल रखरखाव और नवीनीकरण की जानकारी भी डीएफओ नार्थ टेरीटोरियल सिवनी के पास मौजूद नहीं है।
 
इन परिस्थितियों में यक्ष प्रश्न तो यह है कि अगर यह भूमि वन विभाग के आधिपत्य की है तो अब तक सालों साल लोक निर्माण विभाग के एनएच डिवीजन ने आखिर इस सडक का रखरखाव किस मद से किया है। पत्र में यह बात भी साफ तौर पर उल्लेखित की गई है कि राष्ट्रीय राजमार्ग वन के 03 वनखण्ड के 06 कक्षों से गुजरता है। उक्त संरक्षित वन अधिसूचना (असाधारण राजपत्र) नंबर 3060 - 404 - ग्यारह दिनांक 15 सितम्बर 55 को प्रकाशित होना बताया गया है।
 
सूत्रों की मानें तो राष्ट्रीय राजमार्ग के प्रोजेक्ट डायरेक्टर ने डीएफओ को पत्र लिखकर कहा था कि राईट ऑफ वे के तहत यह भूमि उनके स्वामित्व की है, और इस पर खडे वृक्ष कंट्रोल ऑफ राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम वर्ष 2002 के तहत उनकी सम्पत्ति हैं, एवं सडक के चौडीकरण के दौरान कार्य करने तथा उनकी कटाई करने हेतु वन सरंक्षण अधिनियम के प्रावधान इस पर लागू नहीं होते हैं। इसी तारतम्य में उन्होंने राजमार्ग के राइट ऑफ वे में खडे समस्त वृक्षों की नीलामी कर कटाई का काम भी आरंभ करवा दिया था।
 
सूत्रों के अनुसार वन विभाग द्वारा इस कटाई को अवैध मानते हुए पीपरखुंटा वन खण्ड के कक्ष नंबर पी - 266 में राष्ट्रीय राजमार्ग के अनाधिकृत ठेकेदार द्वारा 26 पलाश और 47 सागौन के वृक्ष काटने पर दिनांक 15 अक्टूबर 2008 को वन अपराध नंबर 1897/22 के तहत मामला दर्ज कर लिया था।
 
माना जा रहा है कि उपर के निर्देशों पर वन विभाग चूंकि इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना चुका था अतः वह इस मामले को हर तरह से रोकने पर ही आमदा नजर आ रहा था। डीएफओ नार्थ टीटी ने मुख्य वन संरक्षक सिवनी सहित जिला कलेक्टर सिवनी को यह भी सूचित किया था कि राष्ट्रीय राजमार्ग विभाग द्वारा मार्ग में खडे वृक्षों को राईट ऑफ वे के तहत राष्ट्रीय प्रजाति के वृक्षों को निजी क्रेताओं को सीधे सीधे ही बेच दिया गया है, जिससे मध्य प्रदेश वनोपज व्यापार अधिनियम 1969 की की धारा 5 का उल्लंघन हो रहा है।

वन विभाग द्वारा मामले को प्रदेश सरकार के माध्यम से केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को अग्रिम आदेश और मार्गदर्शन के लिए प्रेषित कर दिया गया था। इस तरह देखा जाए तो नवंबर 2008 में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव और 2009 मई में संपन्न लोकसभा चुनावों के पहले ही सिवनी जिले को एनएचएआई के उत्तर दक्षिण गलियारे के नक्शे से गायब करने का ताना बाना बुन लिया गया था।