मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

मील का पत्थर साबित होगी न्याय की यह जीत

मील का पत्थर साबित होगी न्याय की यह जीत
 
रसूखदारों के हाथ की लौण्डी नहीं है भारत की कानून व्यवस्था
 
फैसले से रियाया का कानून पर भरोसा बढा
 
जनसेवक बरकरार रखें जनता के भरोसे को
(लिमटी खरे)

जेसिका लाल हत्याकाण्ड मामले में देश की सबसे बडी अदालत द्वारा जो फैसला दिया गया, उससे भारत की न्याय व्यवस्था पर आम आदमी का भरोसा और अधिक बढ जाएगा। आम तौर पर यह माना जाता रहा है कि कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं, अनेक फिल्मों में भी इस डायलाग को सैकडों बार दुहराया जा चुका है। वहीं दूसरी ओर आजाद हिन्दुस्तान में लोगों के मन में एक और धारणा घर कर गई है कि काननू के हाथ चाहे जितने मर्जी लंबे हो पर वे हाथ रसूखदार, धनाड्य, संपन्न, ताकतवर लोगों को छू भी नहीं पाते हैं। इसी अवधारणा के चलते आम आदमी मान रहा था कि इस मामले में आरोपियों को सजा मिलना मुश्किल ही नहीं नामूमकिन ही है, वस्तुत: एसा हुआ नहीं। ग्यारह साल के लंबे इन्तजार के बावजूद ही सही पर न्याय मिलने पर सभी सन्तुष्ट नज़र आ रहे हैं।
जेसिका लाल जैसे हत्याकाण्ड दरअसल अधकचरी पश्चिमी संस्कृति की विकृति का लबादा ओढने की परिणीति ही हैं। महानगरों में परिवारों के अन्दर शर्म हया बची ही नहीं है। बाप बेटे के साथ शराब गटक रहा है तो बेटी मां के सामने ही सिगरेट के छल्ले उडा रही है। जब सांस्कृतिक रूप से हमारा नैतिक पतन होगा तो उसमें से पैदा होंगे जेसिका लाल हत्याकाण्ड जैसे वाक्ये।
 
29 अप्रेल 199 को भी यही हुआ था। दक्षिणी दिल्ली के कुतुब कोलोनेड रेस्टारेंट की मालिकिन बीना रमानी द्वारा दी गई पार्टी में माडल जेसिका लाल को शराब बांटने की जवाबदारी सौंपी गई थी। आधी रात बीतने के बाद मनु शर्म अपने दोस्तों के साथ वहां आया और दो बजे उसने शराब की मांग की। चौथे पहर के आगाज के साथ अगर कोई शराब मांगे तो उसकी और उसके परिवार की मानसिकता को बेहतर समझा जा सकता है। जेसीका द्वारा मना करने पर मनु ने हवाई फायर किया और फिर जेसिका के सिर में घुसा दी एक गोली। बाद में वे वहां से भाग निकले और चौथे पहर में ही अपनी टाटा सफारी को वहां से उठवा लिया। पुलिस ने 2 मई को बरामद किया। मामला पंजीबद्ध हुआ, गवाहों में अनेक लोग सामने आए, पर चूंकि मनु हरियाणा के बाहूबली नेता विनोद शर्मा के पुत्र हैं, इसलिए वही हुआ जिसका अन्दाजा था। अदालत में श्यान मुंशी, शिवदास, करन राजपूत सहित चश्मदीद अपने अपने दर्ज बयानों से मुकर गए।
 
इसके बाद लगने लगा था कि मामला ठण्डे बस्ते के हवाले ही होने वाला है। गवाही के अभाव में 21 फरवरी 2006 को सभी नौ आरोपियों को बरी कर दिया गया। दिल्ली पुलिस ने मामले को घटना के सात साल बाद 13 मार्च को उच्च न्यायालय में पेश किया। 18 दिसम्बर 2006 को एक बार फिर मनु शर्मा, विकास यादव और अमरदीप को दोषी करार देते हुए 20 दिसम्बर 2006 को फैसला सुनाया जिसमें मनु को उमर कैद और विकास एवं अमरदीप को चार चार साल की कैद की सजा सुनाई। 02 फरवरी 2007 को मनु शर्मा ने उच्चतम न्यायालय में अपनी अपील पेश की, और अन्त में सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा।
 
इस पूरे मामले में मीडिया और सामाजिक संस्थाओं की जितनी भी तारीफ की जाए कम होगी, क्योंकि इन्ही के माध्यम से यह प्रकरण लोगों की स्मृति से विस्मृत न हो सका। मीडिया अगर उस वक्त अभियान न छेडता तो आज मनु सहित विकास ओर अमरदीप खुले साण्ड की तरह तबाही मचा रहे होते। जेसिका को लगी गोली को बदलकर भी अदालत को गुमराह करने का कुित्सत प्रयास किया गया, पर उच्च न्यायालय ने पारखी नज़रों से सच्चाई का पता लगा ही लिया।
 
एसा नहीं कि रसूखदारों के द्वारा पहली बार इस तरह के प्रयास किए गए हों। इससे पहले 2 जुलाई 1995 को दिल्ली युवक कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुशील शर्मा ने अपनी पित्न नैना साहनी को मारकर तन्दूर में डाल दिया था, तब तन्दूर काण्ड जमकर उछला। 03 नवंबर 2003 को अदालत ने सुशील शर्मा को दोषी पाते हुए उसे फांसी की सजा सुनाई। उच्च न्यायालय ने भी निचली अदालत के फैसले का सम्मान करते हुए उसे बरकरार रखा।
 
इसी तरह 17 फरवरी को बहुचर्चित नेता डी.पी.यादव की बेटी भारती के मित्र नितीश कटारा की हत्या कर दी गई थी। अदालत ने दोनों को आजीवन कैद की सजा सुनाई। 23 जनवरी 1999 को इण्डियन एक्सपे्रस अखबार की पत्रकार शिवानी भटनागर की हत्या में शक की सुई दिल्ली में पदस्थ भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी आर.के.शर्मा के इर्द गिर्द घूमी। अदालत ने इस मामले में शर्मा और दो आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। जनवरी 1995 में कानून की पढाई करने वाली प्रियदर्शनी भट्ट के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी गई थी। आरोपी सन्तोष कुमार सिंह पुलिस के रसूखदार का बेटा था। जाहिर था पुलिस ने उसका साथ दिया। कोर्ट ने सबूतों के अभाव में उसे छोड दिया। मीडिया ने जब हो हल्ला मचाया तब दुबारा केस खुला और दिल्ली उच्च न्यायालय ने उसे फांसी की सजा सुनाई।
 
कुल मिलाकर यह सब जागरूकता के चलते ही सम्भव हो सका। आज आवश्यक्ता इस बात की है कि अगर कहीं कोई अन्याय हो रहा है तो हम कम से कम उसके खिलाफ आवाज उठाने का साहस तो करें। प्रसिद्ध विचारक शिव खेडा द्वारा उद्यत एक कोटेशन का जिकर यहां लाजिमी होगा कि अगर कोई आपके पडोसी पर अत्याचार कर रहा है, और आप शान्त हैं तो उसके बाद नंबर आपका ही आने वाला है।

अब थुरूर की नागरिका पर सवालिया निशान!

अब थुरूर की नागरिका पर सवालिया निशान!

एक पत्रकार ने मांगी आरटीआई के तहत जानकारी

बढ सकतीं हैं कांग्रेस और थुरूर की मुश्किलें

लौटानी पड सकती है खर्च की पाई पाई

छोडना पडेगा बंग्ला, नार्थ या साउथ ब्लाक होगा आशियाना

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। सोशल नेटविर्कंग वेव साईट टि्वटर के माध्यम से अघोषित तौर पर लोकप्रिय विवादित शिख्सयत का खिताब पाने वाले निर्वतमान विदेश राज्य मन्त्री शशि थुरूर को भारत सरकार ने जरूर अपने कुनबे से बाहर का रास्ता दिखा दिया हो पर थुरूर की मुश्किलें कम होती नहीं दिख रहीं हैं। केरल के एक मलयाली भाषा के समाचार पोर्टल चलाने वाले एक पत्रकार ने अब सूचना के अधिकार के माध्यम से शशि थुरूर की भारतीय नागरिकता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। थुरूर अगर अपनी नागरिकता को प्रमाणित नहीं कर पाए तो उनके मन्त्री पद के बाद सांसद की कुर्सी भी उनसे छीनी जा सकती है। उस स्थिति में बतौर सांसद उन्होंने भारत गणराज्य की सरकार का जो भी धन खर्च किया होगा उसकी वसूली भी उनसे सम्भव है।

एक समाचार पोर्टल से जुडे ए.के.वर्मा ने शशि थुरूर द्वारा केरल राज्य के तिरअनन्तपुरम की मतदाता सूची में नाम जुडवाने का प्रमाणपत्र की प्रमाणिक प्रतिलिपी मांगकर सनसनी फैला दी है। केरल सरकार के सूत्रों का कहना है कि शशि थुरूर ने लोकसभा चुनावों के पहले 27 अक्टूबर 2008 को भारतीय निर्वाचन आयोग की मतदाता सूची में नाम जुडवाने का आवेदन दिया था। वर्मा ने उस पर सवालिया निशान लगाते हुए पूछा है कि क्या आवेदन करते समय शशि थुरूर भारत के सामान्य नागरिक थे। कहा जा रहा है कि इसी दिन शशि थुरूर ने अपने मकान मालिक के साथ किराएनामा अनुबंध (रेंटल लीज एग्रीमेंट) निष्पादित किया था।

मामले का पेंच कई जगह उलझता प्रतीत हो रहा है। सरकारी सूत्रों का कहना है कि शशि थुरूर की तिरूअनन्तपुरम की नागरिकता के बारे में अभी स्पष्ट तौर पर कुछ भी कहा नहीं जा सकता है। सूत्रों ने आगे बताया कि तिरूअनन्तपुरम की नगर पालिका निगम के कोवाडियार वार्ड के पार्षद ए.सुनील कुमार ने अपने लेटर हेड पर निगम के सचिव को पत्र लिखा था, जिसमें इबारत के बतौर यह उल्लेख किया गया था कि शशि थुरूर टी.सी./9/277/(2) कोवाडियार वार्ड के निवासी हैं, और उन्हें राशन कार्ड में नाम शामिल कराना है, अत: शशि थुरूर को निवास प्रमाण पत्र जारी किया जाए। इससे स्वत: ही स्पष्ट हो जाता है कि सालों साल हिन्दुस्तान की सरजमीं से बाहर रहकर नौकरी करने वाले थुरूर के पास न तो भारत की नागरिकता है, न राशन कार्ड और न ही निवास प्रमाण पत्र।

इस मामले की गुत्थी तब और उलझती नज़र आती है जब निगम की पंजी में यह दर्ज है कि वे अति विशिष्ट व्यक्ति (व्हीव्हीआईपी) हैं, और अतिविशिष्ट व्यक्ति आवासीय समझौते और तिरूअनन्तपुरम नगर निगम प्रमाण पत्र क्रमांक 3175 दिनांक 06 नवंबर 2008 के अनुसार वे उपरोक्त विर्णत पते के निवासी हैं। देखा जाए तो मतदाता सूची में नाम पंजीबद्ध करवाने के लिए आवेदक को उस संसदीय क्षेत्र का मूल निवासी होना अत्यावश्यक होता है, साथ ही साथ मतदाता सूची में नाम शामिल करवाने के लिए आवेदक को फार्म 06 भी भरकर देना होता है, साथ ही थुरूर ने फार्म की धारा चार को भी नहीं भरा है जिसमें आवेदक को इस बात का उल्लेख करना होता है कि वह उस पते पर कब से निवास कर रहा है।

लगने लगा है कि विवाद और शशि थुरूर दोनों ही का चोली दामन का साथ है। शशि थुरूर ने होटल ताज में जो गुलछरेZ उडाए हैं, वे किसी से छिपे नहीं हैं। एआईसीसी मुख्यालय में चल रही चर्चाओ के अनुसार पता नहीं शशि थुरूर में क्या खासियत है जो कांग्रेस की राजमाता भी उनसे यह पूछने का साहस नहीं कर पा रहीं हैं कि होटल में दो माह तक मेहमानी का भोगमान किसने भोगा है। अब इस नई आफत के चलते एक बार फिर कांग्रेस और थुरूर की फजीहत होने ही वाली है।

उधर मन्त्रीपद गंवाने के बाद शशि थुरूर को बडे सरकारी बंग्ले को रिक्त करना होगा। वे पहली बार संसद बने हैं, इसलिए बडे बंग्ले की उन्हें पात्रता नहीं है। संसद के सूत्रों का कहना है कि पहली बार बने संसद सदस्यों को अमूमन नार्थ या सउथ ब्लाक में ही आवास दिया जाता है। लंबे राजनैैतिक अनुभवों को देखकर पहली बार संसद पहुंचे सदस्यों को अवश्य कोठियां दी गईं हैं।