शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

थप्पड़ की गूंज भी नहीं तोड़ पाएगी जनसेवकों की तंद्रा


थप्पड़ की गूंज भी नहीं तोड़ पाएगी जनसेवकों की तंद्रा


(लिमटी खरे)

देश में बढ़ती मंहगाई का असर भले ही मालदार जनसेवकों पर न पड़ रहा हो, किन्तु आम आदमी की कमर पूरी तरह टूट चुकी है। आम आदमी इससे बुरी तरह टूट चुका है। सांसद विधायकों को शायद पता ही ना हो कि उनके घरों में राशन कौन और कहां से लाता है। अमीरों को इसकी जरा भी चिंता नहीं है। जब बात आम आदमी की आती है तब वह इसकी चिंता में आधा हो जाता है कि बच्चे की फीस, आटो का खर्च, किताबों के लिए पैसे, ट्यूशन की व्यवस्था, राशन पानी का इंतजाम कैसे करेगा। दिल्ली में केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पंवार को मारे गए झन्नाटेदार थप्पड़ को इस बात का प्रतीक माना जाना चाहिए कि आम आदमी का गुस्सा कहां पहुंच चुका है। विरोध करने का यह तरीका निस्संदेह वैधानिक नहीं है, किन्तु सरकार को चाहिए कि आम आदमी की भी सुध ले। भ्रष्टाचार की गंगोत्री बन चुकी कांग्रेस और यमनोत्री बन चुकी भाजपा को अब आत्म मंथन की आवश्यक्ता है। आम आदमी के हितों के लिए आपस में छद्म युद्ध का दिखाव अब ज्यादा दिन चलने वाला नहीं है।

इस देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस ने देश को गन्ने की मशीन में तब्दील कर रखा है। इस मशीन में आम आदमी को वह गन्ने की तरह पिरोकर उसका रस निकालने पर आमदा है। एक बार, दो बार, तीन बार, चार बार, फिर मोड़कर उसमें हरा धनिया, नीबू, अदरक, पुदीना मिलाकर पुनः दो पाटों के बीच घुमा रही है। अंत में जब आम आदमी में रस नहीं बचता तो उसे नीचे फेंक दिया जाता है। रस निकले गन्ने की तरह वह चुपचाप पड़ा रहता है। जानवर भी उस बेरस कचरे को मुंह मारने की हिमाकत नहीं करते हैं।

इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में ही मंहगाई ने अपना असर दिखाया है। यह मंहगाई असली नहीं वरन् कृत्रिम ज्यादा दिखाई पड़ रही है। इसका कारण यह है कि कालाबाजारियों, सटोरियों ने सरकार से हाथ मिलाकर मंहगाई को बढ़ाया है। अपने निहित स्वार्थ के लिए हर दल के सांसद विधायकों ने बाजार की गलत नीतियों पर अमल करने के लिए कंधे से कंधा मिलाया है। जनसेवक, लोकसेवक, न्यायपालिका और मीडिया के खतरनाक गठजोड़ से आम आदमी मंहगाई की भट्टी में भुंज रहा है।

कल तक मीडिया की भूमिका पहरेदार की हुआ करती थी। आज के समय में मीडिया पर धनपतियों का कब्जा हो गया है। कथित तौर पर मीडिया मुगल बने पूंजीपतियों को प्रधानमंत्री और मंत्रियों के साथ फोटो खिचाने और विदेश जाने के अवसर खूब मिलते हैं पर एसे मालिक संपादक या प्रधानसंपादक गिनती में ही होंगे जिन्होंने कभी कलम उठाई हो। यदा कदा ईद बकरीद, होली दिवाली एकाध घिसी पिटी संपादकीय लिखने वाले अखबार मालिक संपादक मौज कर रहे हैं।

शनिवार को तत्कालीन भ्रष्ट शिरोमणि मंत्री सुखराम पर हमला करने वाले ट्रांसपोर्ट व्यवसाई हरविंदर सिंह ने संसद मार्ग पर एनडीएमसी सेंटर में आयोजित समारोह में हिस्सा लेने गए केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पंवार को झापड़ रसीद कर सनसनी फैला दी। शरद पंवार किस फितरत के व्यक्तित्व के स्वामी हैं यह बात किसी से छिपी नहीं है। पंवार के पास अकूत दौलत होने की खबरें हैं। महाराष्ट्र की शुगर लाबी पंवार के घर के आंगन में मुजरा करती है, यह बात किसी से छिपी नहीं है।

कांग्रेस के लिए तो इससे बड़ी शर्म की बात क्या होगी कि जिस शरद पंवार ने उसकी राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी को विदेशी मूल का कहकर लाख लानत मलानत भेजी थीं। जिस कांग्रेस ने पानी पी पी कर एक समय में शरद पंवार को कोसा था, उसी शरद पंवार को महाराष्ट्र में सत्ता की मलाई चखने की गरज से कांग्रेस ने न केवल गले लगाया वरन् केंद्र में भी पंवार को कृषि जैसा जनता से सीधे जुड़ा मंत्रालय उन्हें सौंप दिया। इतना ही नहीं भ्रष्ट शिरोमणि की अघोषित उपाधि पा चुके उनके सहयोगी प्रफुल्ल पटेल को एविएशन मिनिस्टर बना दिया जिन्होंने एयर इंडिया का बट्टा ही बिठा दिया।

फेसबुक अब पंवार के झापड़ के लिए चर्चा का मंच बन चुकी है। कोई कहता है कि पंवार को अब आईपीएल के बजाए बीपीएल (गरीबी रेखा के नीचे) की चिंता करना चाहिए। सरदार हरविंदर सिंह के असरदार झापड़ से न केवल पंवार बल्कि देश के हर नेता को सबक लेना ही होगा। सभी को सोचना होगा कि अब देश की जनता का धेर्य और संयम जवाब देने लगा है। अभी भी समय है जनता के सेवक अपने आप को शासक समझने की गल्ति कर रहे हैं जो उन्हें भारी पड़ सकती है।

पंवार को पड़ा झन्नाटेदार झापड़ प्रतीक माना जा सकता है उस भ्रष्ट व्यवस्था पर अंकुश लगाने का जिस पर सरकार राष्ट्रधर्म से उपर गठबंधन धर्म को मानकर चल रही है। अर्थशास्त्री वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह अपने आप को ईमानदार, लाचार और बेबस बताते हैं संपादकों की टोली के सामने। हकीकत यह है कि वे ईमानदार, लाचार और बेबस किसी भी दृष्टिकोण से नहीं है। दरअसल मनमोहन सिंह भ्रष्टाचार के ईमानदार संरक्षक बन चुके हैं।

प्रधानमंत्री के पास सारे अधिकार होते हैं। अगर उनके सहयोगी लाखों करोड़ रूपयों का भ्रष्टाचार कर रहे हैं तो बेहतर होता कि वे सरकार को भंग करने की सिफारिश कर देते। आम चुनावों में जितना खर्च आता उससे कई गुना अधिक तो भ्रष्टाचार की बलिवेदी पर चढ़ चुका है। इसे कहां की समझदारी कहा जाएगा कि चंद अरब रूपए बचाने के लिए हजारों करोड़ अरब रूपए लूटने का लाईसेंस प्रदान कर दिया जाए।

बहुत पुरानी कहानी है पर इसका जिकर यहां लाजिमी लग रहा है। एक बंदर मुठ्ठी भर चने लिए पेड़ पर बैठा एक एक फांक रहा था। अचानक ही उसका निशाना गलत हुआ और एक चना उसके मुंह के अंदर जाने के बजाए गाल पर लगा और वह पेड़ की टहनियों के रास्ते जमीन पर गिर गया। बंदर चूंकि समझदार नहीं था, इसलिए उसने मुठ्ठी के सारे चने फेंक दिए और एक चना उठा लिया। कहने का तात्पर्य महज इतना सा है कि मनमोहन सिंह और कांग्रेस समझदारी दिखाए।

इस थप्पड़ की गूंज अनुगूंज में तरह तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही है। पंवार समर्थक उद्वेलित हैं। महाराष्ट्र में जगह जगह बंद का आयोजन किया जा रहा है। प्रदर्शन हो रहा है, जो हिंसा में तब्दील हो सकता है। राकांपा सहित अनेक राजनैतिक दल इसे यशवंत सिन्हा के बयान का असर बात रहे हैं। सिन्हा ने कहा था कि सरकार मंहगाई को रोकने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाती है तो लोगों का गुस्सा हिंसा में बदल सकता है।

कांग्रेस सिन्हा के बयान को ही मुद्दा बना रही है। कांग्रेस इस बात पर गौर क्यों नहीं कर रही है कि मंहगाई ही सबसे बड़ा कारण है लोगों के गुस्से का। जय प्रकाश नारायण और अण्णा हजारे के आंदोलन में यही हुआ था। लोगों का गुस्सा फट पड़ा था। इंदिरा गांधी को सत्ता से बाहर होना पड़ा था। अण्णा के आंदोलन में कांग्रेस के लाख चाहने के बाद भी आंदोलन हिंसक नहीं हो पाना देश वासियों की इच्छा शक्ति का नायाब उदहारण बना।

भ्रष्टों और भ्रष्टाचार के ईमानदार संरक्षक वजीरे आजम डॉ.मनमोहन ंिसह फरमा रहे हैं कि इस तरह की घटनाओं को ज्यादा अहमियत नहीं दी जानी चाहिए। सिंह ही बताएं कि किस तरह की घटनाओं को अहमियत दी जाए। क्या भ्रष्टों को संरक्षण देने के लिए देश में कानून बनाया जाए। आम आदमी को मंहगाई में झुलसाने के लिए कांग्रेस ने कभी चुनाव न जीतने वाले डॉ.मनमोहन सिंह को पिछले दरवाजे से संसद में पहुंचाया है, जिसे लोकसभा में किसी बात पर वोट देने का ही अधिकार नहीं हो।

लोकसभा में मामला उठाने की तैयारी में एक सांसद


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 25

लोकसभा में मामला उठाने की तैयारी में एक सांसद

झाबुआ पावर की सारी जानकारियां बुलवाईं कांग्रेस के एक संसद सदस्य ने

ध्यानकर्षण में उठ सकता है आदिवासी हितों का मामला

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल और मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले आवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा आदिवासियों के हितों पर कुठाराघात किए जाने का मामला मध्य प्रदेश के एक कांग्रेसी संसद सदस्य ने उठाने का मन बना लिया है। इस हेतु वे आवश्यक प्रपत्र एकत्रित करने में जुट गए हैं। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि जिस स्थान पर यह संयंत्र संस्थापित होने वाला है वहां के कांग्रेस के सांसद बसोरी सिंह मसराम और पड़ोसी भाजपाई सांसद के.डी.देशमुख ने इस बारे में संसद में मौन साध रखा है।

लोकसभा परिसर में चहलकदमी कर रहे मध्य प्रदेश के एक संसद सदस्य ने मीडिया के एक वरिष्ठ सदस्य से इस बारे में चर्चा करते हुए कहा कि उन्हें विभिन्न माध्यमों से गौतम थापर द्वारा आदिवासियों के हितों के साथ खेलने की शिकायतें मिली हैं। उन्होंने कहा कि वे इस बारे में जानकारियां एकत्र कर रहे हैं और संसद में ध्यानाकर्षण में इस बात को उठाने का प्रयास करेंगे।

मीडिया के बीच चल रही चर्चाओं के अनुसार आदिवासियों के नाम पर सालों से राजनीति करने वाली कांग्रेस और भाजपा के क्षेत्रीय सांसदों द्वारा इस मसले को आखिर उठाया क्यों नहीं जा रहा है? गौरतलब है कि परिसीमन में समाप्त हुई सिवनी लोकसभा का आधा हिस्सा आरक्षित मण्डला और बाकी हिस्सा बालाघाट संसदीय क्षेत्र में मिला दिया गया है।

गौतम थापर के स्वामित्व वाले आवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा 1200 मेगावाट का प्रस्तावित जो कागजों पर अब 1260 मेगावाट का हो चुका है, का कोल आधारित संयंत्र आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील में डाला जा रहा है। यह सिवनी जिले का हिस्सा है और मण्डला संसदीय क्षेत्र में आता है। मण्डला से आदिवासी समुदाय के कांग्रेस के सांसद बसोरी सिंह मसराम और जिले के शेष भाग के सांसद भाजपा के के.डी.देशमुख हैं।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सिवनी जिले में परिसीमन के उपरांत बचे चार विधानसभा क्षेत्रों में एक में कांग्रेस और तीन पर भाजपा का कब्जा है। संयंत्र वाला हिस्सा लखनादौन विधानसभा का हिस्सा है यहां की भाजपा विधायक श्रीमति शशि ठाकुर खुद भी आदिवासी समुदाय से हैं। वहीं दूसरी ओर सिवनी से भाजपा की श्रीमति नीता पटेरिया, बरघाट से भाजपा के कमल मस्कोले तो केवलारी से कांग्रेस के हरवंश सिंह ठाकुर विधायक और विधानसभा उपाध्यक्ष हैं।

वर्तमान में लोकसभा के साथ ही साथ मध्य प्रदेश का विधानसभा का शीतकालीन सत्र भी चल रहा है। इसके वावजूद सिवनी जिले के चार विधायकों द्वारा इस मामले को विधानसभा में न उठाया जाना और दो सांसदों को अपने दामन में सहेजने वाले सिवनी जिले के आदिवासी हित के इस ज्वलंत मुद्दे को संसद में न उठाया जाना आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है। यहां उल्लेखनीय होगा कि सिवनी जिले के हितों के लिए जिले के सांसदों ने कभी संसद में आवाज बुलंद नहीं की। नैनपुर से सिवनी छिंदवाड़ा अमान परिवर्तन का मामला भी 2005 में बिलासपुर के सांसद पुन्नू लाल माहौले ने ही उठाया था।

(क्रमशः जारी)

पंवार को मिली तल्ख तेवरों की सजा


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 35

पंवार को मिली तल्ख तेवरों की सजा

झापड़ कांड के पार्श्व में कांग्रेस के होने का अंदेशा




(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मराठा क्षत्रप शरद पंवार के अचानक उग्र हुए तेवरों से हलाकान कांग्रेस अब राहत महसूस कर रही है। ब्रहस्पतिवार को दिल्ली के एक आडीटोरियम में शरद पंवार पर सर्वाजनिक तौर पर पड़े झापड़ से मराठा क्षत्रप पंवार अब बैकफुट पर दिखाई पड़ रहे हैं। आडीटोरियम से सीधे घर पहंुच पंवार आत्म मंथन में जुट गए।

गौरतलब है कि सरकार और शरद पंवार दोनों ही इस वक्त रणभूमि के योद्धा की भांति ही नजर आ रहे थे। शरद पंवार को आखिर एकाएक क्या हो गया इस बात की तह में जाने का असफल प्रयास कर रहे थे, उधर पंवार हर रोज अन्य राजनैतिक दलों के नेताओं से मंत्रणा में लगना भी कांग्रेस के गले नहीं उतर रहा था।

पंवार के करीबियों का मानना था कि यह पंवार का अब तक का सबसे बड़ा हमला है। पंवार इन दिनों ममता बनर्जी, मुलायम सिंह यादव, नवींन पटनायक, जयललिता, बाला साहेब ठाकरे जैसे कांग्रेस के पक्ष और विपक्ष वाले नेताओं के संपर्क में हैं। भाजपा और संघ में उनकी गहरी पकड़ जगजाहिर ही है। भाजपा के नितिन गड़करी उनके अच्छे मित्रों में से हैं तो एल.के.आड़वाणी पर पंवार के अनेक कर्ज बताए जा रहे हैं। आड़वाणी की जनचेतना यात्रा में पंवार ने अघोषित तौर पर बेहतरीन सहयोग देकर उनका दिल जीता है।

सियासी गलियारों में चल रही चर्चाओं के अनुसार पंवार पर यह हमला कांग्रेस की सोची समझी साजिश का ही नतीजा था। पंवार इस तरह की हरकत के लिए तैयार नहीं थे। अब वे आगे की रणनीति में जुट गए हैं। चोट खाए मराठा क्षत्रप के समर्थक अब उग्र तेवर अपनाने की रणनीति बनाने में जुट गए हैं।

(क्रमशः जारी)

भोजपाल नहीं भोपाल ही रहेगा राजधानी का नाम


भोजपाल नहीं भोपाल ही रहेगा राजधानी का नाम

भोपाल को छोड़कर शेष 29 प्रस्तावों को हरी झंडी

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। हृदय प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चौहान को तगड़ा झटका देते हुए केंद्र सरकार द्वारा राजधानी भोपाल का नाम बदलकर भोजपाल करने के प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया है। गृह मंत्रालय को मिले तीस प्रस्तावों में से भोपाल को छोड़कर शेष प्रस्तावों को केंद्र ने हरी झंडी देकर साबित कर दिया है कि सूबे की कांग्रेस के विरोध को वह हल्के में लेने वाली कतई नहीं है। उल्लेखनीय है कि शिवराज सिंह चौहान ने जब इसकी घोषणा की थी तब कांग्रेस ने इसका पुरजोर विरोध किया था। उस वक्त कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक हरवंश सिंह ठाकुर को भी मंच पर उपस्थित रहने के चलते विरोध सहना पड़ा था।

केंद्र के इस रवैए से हृदय प्रदेश की राजधानी का नाम बदलने की राज्य सरकार की योजना खटाई में पड़ गई है। प्रदेश सरकार ने राजा भोज के सहत्राब्दी समारोह में भोपाल का नाम भोजपाल किए जाने का ऐलान किया था। काफी मशक्कत के बाद यह प्रस्ताव तैयार हुआ और केंद्र को भेजा गया लेकिन इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार ने खारिज कर दिया है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि कलकत्ता कोलकाता हो गया, बंबई मुंबई बन गया, मद्रास चेन्नई हो गया, त्रिवेन्द्रम थिरूवनंतपुरम हो गया, लेकिन भोपाल भोजपालनहीं बन सका।

गृह राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह ने लोकसभा को बताया कि पंजाब में साहिबजादा अजीतसिंह नगर का नया नाम अजीतगढ़ है। सुनाम को सुनाम उधमसिंह वाला बनाया गया तो नवांशहर को शहीद भगतसिंह नगर नाम दिया गया। मुक्तसर को मुक्तसर साहिब नाम मिला। उन्होंने ए. वेंकट रामी रेड्डी के सवाल के लिखित जवाब में बताया कि केरल में क्वीलोन को कोल्लम, त्रिचूर को थुसूर, अलेप्पी को अलपूझा, कन्नानूर को कन्नूर, तेलीचेरी को थालासेरी, कोचीन को कोच्चि, मन्नारघाट को मन्नारकाड नाम दिया गया। सिंह ने बताया कि मध्यप्रदेश के महू को अंबेडकर नगर और जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के कारण गोटेगांव को श्रीधाम नाम दिया गया।

देवताओ के दरबार में भाजपा के खिलाफ न्‍याय की गुहार


देवताओ के दरबार में भाजपा के खिलाफ न्‍याय की गुहार

सरकार से निराश होकर आराध्य् देव की शरण में जा रहे हैं

(चन्द्रशेखर जोशी)

देहरादून। उत्तराखण्ड को देवों की भूमि कहा गय्ाा है, भाजपा सरकार से निराश होकर देवी देवताओं के दरबार में जाकर भाजपा सरकार के खिलाफ न्य्ााय्ा की गुहार लगा रही हैं, वहीं दूसरी ओर उत्तराखण्ड हाथ से न निकल जाए इसके लिए भाजपा चार दिसम्बर को अपने सेनापतिय्ाों का पदर्शन करने जा रही है, नैनीताल में पहली बार पार्टी के राष्ट्रीय्ा अध्य्ाक्ष नितिन गडकरी, मुख्य्ामंत्र्ाी बीसी खंडूडी, पूर्व अध्य्ाक्ष राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली के साथ ही थावर चंद्र गहलौत, अनंत कुमार, रविशंकर पसाद, राम लाल, सौदान सिंह, किरण माहेरी, धम्रेद्र पधान सहित 11 राष्ट्रीय्ा महामंत्र्ाी, दो पूर्व मुख्य्ामंत्र्ाी भगत सिंह कोश्य्ाारी व डा. रमेश पोखरिय्ााल निशंकउत्तराखण्ड में जीत के लिए मंथन करेगें, परन्तु वहीं दूसरी ओर कुमाय्ाूं व गढवाल की जनता भाजपा की कुछ नीतिय्ाों से निराश होकर देवताओं की शरण में जाकर भाजपा के खिलाफ न्य्ााय्ा की गुहार लगांएगें, उत्तराखंड देवों की भूमि है। इसके कण कण में देवताओं का वास है। पांखू स्थित न्य्ााय्ा की देवी के दरबार में कहा जाएगा कि भाजपा ने क्षेत्र्ा की जनभावनाओं को जिस तरह से ठेस पहुंचाई है, टिहरी जनपद के अलावा उत्तरकाशी जिले के 180 गांवों के निवासी भी अपने आराध्य्ा देव की शरण में जा रहे हैं।

उत्तराखण्ड में न्य्ााय्ा के मंदिर भी है जहां जनता शासन सरकार से निराश होकर देवी देवताओं के दरबार में फरिय्ााद करती है, अदभूत व चमत्कारी न्य्ााय्ा होता है देवताओं के दरबार में, ज्ञात हो कि पूर्ववर्ती एनडी तिवारी के शासनकाल में भी न्य्ााय्ा की देवी के दरबार में न्य्ााय्ा की गुहार लगाय्ाी गय्ाी थी, फैसला सरकार के खिलाफ आय्ाा थान्य्ााय्ा की देवी कोटगाड़ी, अल्मोडा के गोल्ज्य्ाू कुमाय्ाूं के पसिद्व न्य्ााय्ा की मंदिर हैं, जहां फरिय्ाादी के साथ पूर्ण न्य्ााय्ा होता है, अब भाजपा सरकार के खिलाफ देवताओं के दरबार में अर्जी पहुंच गय्ाी है,

वहीं इस बार मामला आय्ाा है पिथौरागढ जनपद  के देवलथल उप तहसील को पूर्ण तहसील का दर्जा दिए जाने की मांग का, धरना के 266वें दिन भी जारी रहने से व उपेक्षा से आहत तहसील बनाओ संघर्ष समिति के पदाधिकारिय्ाों ने इस मामले को अब पांखू स्थित न्य्ााय्ा की देवी के दरबार तक पहुंचाने का फैसला किय्ाा है।

देवलथल में चल रहे क्रमिक अनशन स्थल पर   समिति के पदाधिकारिय्ाों ने कहा कि इस आंदोलन को नौ माह का समय्ा पूरा होने को है। लेकिन आंदोलन को इतना लंबा समय्ा बीतने के बाद भी पदेश सरकार द्वारा उनकी मांग पूरी नहीं की गई है। इसके खिलाफ नौ माह का समय्ा पूरा होने पर 28 नवंबर को विशाल जुलूस निकाला जाएगा। इसी दिन इस मामले को न्य्ााय्ा की देवी कोटगाड़ी के दरबार में ले जाने पर भी विचार किय्ाा जाएगा।

वक्ताओं ने कहा कि भाजपा ने क्षेत्र्ा की जनभावनाओं को जिस तरह से ठेस पहुंचाई है उसका जवाब विधान सभा चुनावों में दिय्ाा जाएगा। इसके लिए बाराबीसी क्षेत्र्ा के सभी संगठन एक मंच पर आकर रणनीति बनाएंगे। तहसील बनाओ संघर्ष समिति के महासचिव जगदीश कुमार ने पूरे क्षेत्र्ावासिय्ाों से 28 नवंबर को पस्तावित आंदोलन को सफल बनाने के लिए देवलथल पहुंचने का आह्नान किय्ाा।

इसी पकार गढवाल मण्डल के जनपद नई टिहरी के भिलंगना पखंड के बूढाकेदार गांव में 25 नवंबर को गुरु कैलापीर देवता के मेले में ही देवता को अपनी समस्य्ाा बताकर समाधान चाह रहे हैं। है। मेले के दिन सुबह ग्रामीण ढोलµनगाड़ों के साथ मंदिर परिसर में एकत्र्ा होते हैं। इसके बाद देवता की पूजाµअर्चना होती है। इसके बाद ग्रामीण देवता के पश्वा के मंदिर से बाहर आने का इंतजार करते हैं। फिर देवता की झ्ांडी को मंदिर से बाहर निकाला जाता है। पूजारी देवता के पश्वा को लेकर खेतों में जाते हैं। ग्रामीण उनके पीछे जाते हैं। अच्छी फसल व क्षेत्र्ा की खुशहाली के लिए ग्रामीण देवता के पश्वा के साथ खेतों में दौड़ लगाते हैं। अंतिम चक्कर में ग्रामीण देवता पर पुआल चढाते हैं। इसके बाद महिलाएं आशीर्वाद लेने को वहां पहुंचती है। इस दौरान लोग मंदिर में साड़ी चढाते हैं। साथ ही देवता के पश्वा को अपनी समस्य्ाा बताते हैं। भिलंगना पखंड का बूढाकेदार ऐसा ही एक गांव है, जहां गुरु कैलापीर मेले में ग्रामीण खुशहाली के लिए देवता के पश्वा के साथ खेतों में दौड़ लगाते हैं।  गुरु कैलापीर देवता टिहरी जनपद के अलावा उत्तरकाशी जिले के 180 गांवों के आराध्य्ा देव हैं।  इन जनपदों के निवासी भाजपा सरकार से निराश होकर आराध्य्ा देव की शरण में जा रहे हैं।