शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

थप्पड़ की गूंज भी नहीं तोड़ पाएगी जनसेवकों की तंद्रा


थप्पड़ की गूंज भी नहीं तोड़ पाएगी जनसेवकों की तंद्रा


(लिमटी खरे)

देश में बढ़ती मंहगाई का असर भले ही मालदार जनसेवकों पर न पड़ रहा हो, किन्तु आम आदमी की कमर पूरी तरह टूट चुकी है। आम आदमी इससे बुरी तरह टूट चुका है। सांसद विधायकों को शायद पता ही ना हो कि उनके घरों में राशन कौन और कहां से लाता है। अमीरों को इसकी जरा भी चिंता नहीं है। जब बात आम आदमी की आती है तब वह इसकी चिंता में आधा हो जाता है कि बच्चे की फीस, आटो का खर्च, किताबों के लिए पैसे, ट्यूशन की व्यवस्था, राशन पानी का इंतजाम कैसे करेगा। दिल्ली में केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पंवार को मारे गए झन्नाटेदार थप्पड़ को इस बात का प्रतीक माना जाना चाहिए कि आम आदमी का गुस्सा कहां पहुंच चुका है। विरोध करने का यह तरीका निस्संदेह वैधानिक नहीं है, किन्तु सरकार को चाहिए कि आम आदमी की भी सुध ले। भ्रष्टाचार की गंगोत्री बन चुकी कांग्रेस और यमनोत्री बन चुकी भाजपा को अब आत्म मंथन की आवश्यक्ता है। आम आदमी के हितों के लिए आपस में छद्म युद्ध का दिखाव अब ज्यादा दिन चलने वाला नहीं है।

इस देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस ने देश को गन्ने की मशीन में तब्दील कर रखा है। इस मशीन में आम आदमी को वह गन्ने की तरह पिरोकर उसका रस निकालने पर आमदा है। एक बार, दो बार, तीन बार, चार बार, फिर मोड़कर उसमें हरा धनिया, नीबू, अदरक, पुदीना मिलाकर पुनः दो पाटों के बीच घुमा रही है। अंत में जब आम आदमी में रस नहीं बचता तो उसे नीचे फेंक दिया जाता है। रस निकले गन्ने की तरह वह चुपचाप पड़ा रहता है। जानवर भी उस बेरस कचरे को मुंह मारने की हिमाकत नहीं करते हैं।

इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में ही मंहगाई ने अपना असर दिखाया है। यह मंहगाई असली नहीं वरन् कृत्रिम ज्यादा दिखाई पड़ रही है। इसका कारण यह है कि कालाबाजारियों, सटोरियों ने सरकार से हाथ मिलाकर मंहगाई को बढ़ाया है। अपने निहित स्वार्थ के लिए हर दल के सांसद विधायकों ने बाजार की गलत नीतियों पर अमल करने के लिए कंधे से कंधा मिलाया है। जनसेवक, लोकसेवक, न्यायपालिका और मीडिया के खतरनाक गठजोड़ से आम आदमी मंहगाई की भट्टी में भुंज रहा है।

कल तक मीडिया की भूमिका पहरेदार की हुआ करती थी। आज के समय में मीडिया पर धनपतियों का कब्जा हो गया है। कथित तौर पर मीडिया मुगल बने पूंजीपतियों को प्रधानमंत्री और मंत्रियों के साथ फोटो खिचाने और विदेश जाने के अवसर खूब मिलते हैं पर एसे मालिक संपादक या प्रधानसंपादक गिनती में ही होंगे जिन्होंने कभी कलम उठाई हो। यदा कदा ईद बकरीद, होली दिवाली एकाध घिसी पिटी संपादकीय लिखने वाले अखबार मालिक संपादक मौज कर रहे हैं।

शनिवार को तत्कालीन भ्रष्ट शिरोमणि मंत्री सुखराम पर हमला करने वाले ट्रांसपोर्ट व्यवसाई हरविंदर सिंह ने संसद मार्ग पर एनडीएमसी सेंटर में आयोजित समारोह में हिस्सा लेने गए केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पंवार को झापड़ रसीद कर सनसनी फैला दी। शरद पंवार किस फितरत के व्यक्तित्व के स्वामी हैं यह बात किसी से छिपी नहीं है। पंवार के पास अकूत दौलत होने की खबरें हैं। महाराष्ट्र की शुगर लाबी पंवार के घर के आंगन में मुजरा करती है, यह बात किसी से छिपी नहीं है।

कांग्रेस के लिए तो इससे बड़ी शर्म की बात क्या होगी कि जिस शरद पंवार ने उसकी राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी को विदेशी मूल का कहकर लाख लानत मलानत भेजी थीं। जिस कांग्रेस ने पानी पी पी कर एक समय में शरद पंवार को कोसा था, उसी शरद पंवार को महाराष्ट्र में सत्ता की मलाई चखने की गरज से कांग्रेस ने न केवल गले लगाया वरन् केंद्र में भी पंवार को कृषि जैसा जनता से सीधे जुड़ा मंत्रालय उन्हें सौंप दिया। इतना ही नहीं भ्रष्ट शिरोमणि की अघोषित उपाधि पा चुके उनके सहयोगी प्रफुल्ल पटेल को एविएशन मिनिस्टर बना दिया जिन्होंने एयर इंडिया का बट्टा ही बिठा दिया।

फेसबुक अब पंवार के झापड़ के लिए चर्चा का मंच बन चुकी है। कोई कहता है कि पंवार को अब आईपीएल के बजाए बीपीएल (गरीबी रेखा के नीचे) की चिंता करना चाहिए। सरदार हरविंदर सिंह के असरदार झापड़ से न केवल पंवार बल्कि देश के हर नेता को सबक लेना ही होगा। सभी को सोचना होगा कि अब देश की जनता का धेर्य और संयम जवाब देने लगा है। अभी भी समय है जनता के सेवक अपने आप को शासक समझने की गल्ति कर रहे हैं जो उन्हें भारी पड़ सकती है।

पंवार को पड़ा झन्नाटेदार झापड़ प्रतीक माना जा सकता है उस भ्रष्ट व्यवस्था पर अंकुश लगाने का जिस पर सरकार राष्ट्रधर्म से उपर गठबंधन धर्म को मानकर चल रही है। अर्थशास्त्री वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह अपने आप को ईमानदार, लाचार और बेबस बताते हैं संपादकों की टोली के सामने। हकीकत यह है कि वे ईमानदार, लाचार और बेबस किसी भी दृष्टिकोण से नहीं है। दरअसल मनमोहन सिंह भ्रष्टाचार के ईमानदार संरक्षक बन चुके हैं।

प्रधानमंत्री के पास सारे अधिकार होते हैं। अगर उनके सहयोगी लाखों करोड़ रूपयों का भ्रष्टाचार कर रहे हैं तो बेहतर होता कि वे सरकार को भंग करने की सिफारिश कर देते। आम चुनावों में जितना खर्च आता उससे कई गुना अधिक तो भ्रष्टाचार की बलिवेदी पर चढ़ चुका है। इसे कहां की समझदारी कहा जाएगा कि चंद अरब रूपए बचाने के लिए हजारों करोड़ अरब रूपए लूटने का लाईसेंस प्रदान कर दिया जाए।

बहुत पुरानी कहानी है पर इसका जिकर यहां लाजिमी लग रहा है। एक बंदर मुठ्ठी भर चने लिए पेड़ पर बैठा एक एक फांक रहा था। अचानक ही उसका निशाना गलत हुआ और एक चना उसके मुंह के अंदर जाने के बजाए गाल पर लगा और वह पेड़ की टहनियों के रास्ते जमीन पर गिर गया। बंदर चूंकि समझदार नहीं था, इसलिए उसने मुठ्ठी के सारे चने फेंक दिए और एक चना उठा लिया। कहने का तात्पर्य महज इतना सा है कि मनमोहन सिंह और कांग्रेस समझदारी दिखाए।

इस थप्पड़ की गूंज अनुगूंज में तरह तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही है। पंवार समर्थक उद्वेलित हैं। महाराष्ट्र में जगह जगह बंद का आयोजन किया जा रहा है। प्रदर्शन हो रहा है, जो हिंसा में तब्दील हो सकता है। राकांपा सहित अनेक राजनैतिक दल इसे यशवंत सिन्हा के बयान का असर बात रहे हैं। सिन्हा ने कहा था कि सरकार मंहगाई को रोकने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाती है तो लोगों का गुस्सा हिंसा में बदल सकता है।

कांग्रेस सिन्हा के बयान को ही मुद्दा बना रही है। कांग्रेस इस बात पर गौर क्यों नहीं कर रही है कि मंहगाई ही सबसे बड़ा कारण है लोगों के गुस्से का। जय प्रकाश नारायण और अण्णा हजारे के आंदोलन में यही हुआ था। लोगों का गुस्सा फट पड़ा था। इंदिरा गांधी को सत्ता से बाहर होना पड़ा था। अण्णा के आंदोलन में कांग्रेस के लाख चाहने के बाद भी आंदोलन हिंसक नहीं हो पाना देश वासियों की इच्छा शक्ति का नायाब उदहारण बना।

भ्रष्टों और भ्रष्टाचार के ईमानदार संरक्षक वजीरे आजम डॉ.मनमोहन ंिसह फरमा रहे हैं कि इस तरह की घटनाओं को ज्यादा अहमियत नहीं दी जानी चाहिए। सिंह ही बताएं कि किस तरह की घटनाओं को अहमियत दी जाए। क्या भ्रष्टों को संरक्षण देने के लिए देश में कानून बनाया जाए। आम आदमी को मंहगाई में झुलसाने के लिए कांग्रेस ने कभी चुनाव न जीतने वाले डॉ.मनमोहन सिंह को पिछले दरवाजे से संसद में पहुंचाया है, जिसे लोकसभा में किसी बात पर वोट देने का ही अधिकार नहीं हो।

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