शनिवार, 3 अगस्त 2013

पालिका हेल्थ के बीच आरोप प्रत्यारोप का सबब बना डेंगू अभियान!

पालिका हेल्थ के बीच आरोप प्रत्यारोप का सबब बना डेंगू अभियान!

रस्म अदायगी बन रही है मलेरिया या डेंगू के लार्वा की जांच!

(दादू अखिलेंद्र नाथ सिंह)

सिवनी (साई)। शहर में मच्छरों की आबादी दिनों दिन बढ़ रही है, और नगर पालिका तथा स्वास्थ्य विभाग आपस में एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप मढ़कर अपनी खाल बचाने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं। आज कलेक्टर के समक्ष भी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.वाय.एस.ठाकुर तथा मुख्य नगर पालिका अधिकारी सी.के.मेश्राम के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता रहा।
कलेक्टरेट के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि शहर में डेंगू और मलेरिया की भयावह स्थिति को देखकर संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव ने सीएमओ पालिका और स्वास्थ्य को तलब किया। दोनों ही से शहर की स्थिति की ताजा जानकारी और स्पष्टीकरण जिला कलेक्टर द्वारा मांगे गए।
सूत्रों के अनुसार जिला कलेक्टर जैसे जिले के शीर्ष अधिकारी की वरिष्ठता को भी दरकिनार कर दोनों ही सीएमओ एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप में उलझ गए। सूत्रों की मानें तो दोनों ही ने इस काम के लिए एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालते हुए अपना दामन बचाने का प्रयास किया।
उधर, शहर में डेंगू और मलेरिया का कहर जारी है। देर से ही सही स्वास्थ्य विभाग ने डेंगू और मलेरिया की रोकथाम के लिए उपाय आरंभ किए हैं। प्रशासन के उपाय इसलिए नाकाफी माने जा रहे हैं क्योंकि इस काम में लगे कर्मचारी प्रशिक्षित नही हैं। लोगों के घरों की छतों तक जाने का मार्ग ना होने से छतों की चेकिंग नहीं हो पा रही है।

दो वार्ड हैं सबसे ज्यादा प्रभावित
मच्छर जनित रोगों मलेरिया और डेंगू से प्रभावित दो वार्ड ही प्रमुख रूप से अब तक सामने आए हैं। पहला विवेकानन्द वार्ड और ूदूसरा शहीद वार्ड है। इन दोनों ही वार्डों में स्वास्थ्य विभाग की टीम घरों घर जाकर मच्छरों का लार्वा एकत्र कर उनकी जांच और मौके पर ही टेमोफॉस नामक दवा से उन्हें नष्ट कर रही है।

बेबस है टीम
दोनों ही वार्डों में छतों पर जाने का रास्ता अनेक घरों में ना होने के कारण जांच दल छतों पर नही पहुंच पा रहा है। जिससे यह पता नहीं चल पा रहा है कि छतों पर मच्छरों का लार्वा है अथवा नहीं। यह टीम नसेनी, सीढ़ी आदि के अभाव में अपने आप को असहाय ही महसूस कर रही है।

जरूरत है जनजागरूकता की
मच्छर जनित रोगों से निपटने के लिए लोगों को जागरूक करने की महती जरूरत महसूस की जा रही है। जन जागरूकता के अभाव में लोगों द्वारा इस तरह की जानलेवा बीमारियों के प्रति ज्यादा जानकारी ना होने से लोग इसे बेहद हल्के में ले रहे हैं।

डेंगू के लक्षण बताए प्रशासन
प्रभावित वार्डों में ना तो लोगों को यह पता है कि डेंगू बुखार के लक्षण क्या हैं? यह कैसे फैलता है और इससे बचने के उपाय क्या हैं? माना जा रहा है कि जनभागीदारी के बिना प्रशासन अगर अपनी ओर से इससे निपटने का प्रयास युद्ध स्तर पर भी करेगा तो भी उसे पर्याप्त नहीं माना जा सकता है।

रस्म अदायगी लग रहा है अभियान!
घर-घर जाकर डेंगू का लार्वा की जांच करने वाला दल क्या पूरी निष्ठा और ईमानदारी से काम कर रहा है? या फिर सिर्फ रस्म अदायगी कर अपने सरकारी दस्तावेज में आंकड़े एकत्रित कर रहे हैं? यह सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि शहीद वार्ड और विवेकानंद वार्ड में डेंगू का लार्वा की जांच करने घूम रहे दल के कुछ लोग घरों में जाकर सिर्फ मुखिया का नाम लिख रहे हैं।
इसके अलावा न तो वह कंटेनरों में लार्वा की जांच कर रहे हैं और न ही गंदगी की? ऐसे में जांच दल द्वारा स्वास्थ्य विभाग को जो आंकड़े सौंपे जा रहे हैं, उनमें सच्चाई कितनी है? यह भी जांच का विषय है। गत दिवस एक सेवानिवृत्त शिक्षक के घर में भी ऐसा ही हुआ, जहां डेंगू लार्वा की जांच करने गये दल ने महिलाओं से घर के मुखिया का नाम पूछा और अपने कागज में अंकित किया और वापस आ गये, ऐसे में डेंगू लार्वा की जांच करने वाले दल की कार्यप्रणाली सिर्फ रस्म अदायगी ही समझ में आती है और कुछ नही।

रोजाना करें रिपोर्ट सार्वजनिक!

डेंगू वाकई बहुत ही खतरनाक माना जाता है। स्वास्थ्य विभाग को चाहिए कि रोजाना कितनी रक्त पट्टिकाओं की जांच की गई, कितने घरों में लार्वा की जांच की गई? कितने घरों में मलेरिया के, कितने घरों में डेंगू के लिए जिम्मेदार मच्छरों के लार्वा मिले, इस बारे में रोजाना जनसंपर्क विभाग के माध्यम से स्वास्थ्य विभाग को अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक करना चाहिए।

तालाब फूटने से बह गई मछलियां!

तालाब फूटने से बह गई मछलियां!

(शिवशंकर गोस्वामी)

सोनखार (साई)। केवलारी विकासखण्ड के अंतर्गत ग्राम सिन्दरसी का खिड़सी तालाब अत्याधिक बारिश को सह नहीं सका और जर्जर हो चुके इस तालाब की मेढ़ टूट गई जिससे तालाब का पानी बह गया। इस तालाब में पाली जा रही मछलियां भी पानी के साथ ही बह गईं जिससे मत्स्य पालक किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार उगली की मछुआ सहकारी समिति मर्यादित के अंतर्गत ग्राम पंचायत बावली के ग्राम सिन्दरसी में खिड़सी तालाब की हालत अत्यंत जर्जर हो चुकी थी। इस तालाब के संधारण का काम पूर्व में ग्राम पंचायत के सरपंचों द्वारा नहीं कराया गया ना ही विभाग के अधिकारियों द्वारा ही इस ओर कोई ध्यान दिया गया।
बताया जाता है कि बीते दिवस हुई भारी बारिश से तालाब का जलस्तर एकाएक बढ़ गया और तालाब की कमजोर पार, एकाएक धराशाई हो गई जिससे तालाब का पानी निकलकर लोगों के खेतों में घुस गया। इस तरह पानी खेतों में घुसने से एक ओर लोगों की फसल का नुकसान हुआ वहीं दूसरी ओर तालाब में पाली जा रही मछलियां भी बह गईं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार गांव के किसान बेनीराम रमानंदी, रामकुमार बरमैया, संपत शांडिल्य आदि ने खिड़सी तालाब में मछली पालन का काम आरंभ किया था। इस तालाब में उनके द्वारा वर्षा के पूर्व और वर्षा काल में मछलियों के प्रजनन के समय डाले गए बीज और उनसे निकली मछलियां भी पानी के साथ बह गईं जिससे उन्हें भारी आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ रहा है।

विधायक पति हैं मौतों के जिम्मेदार!: इमरान पटेल

विधायक पति हैं मौतों के जिम्मेदार!: इमरान पटेल

नीता पटेरिया, शशि ठाकुर क्या सीएमओ, डीएमओ, नगर पालिका अध्यक्ष के खिलाफ कठोर कार्यवाही की करेंगी शिकायत

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। जिला मुख्यालय सिवनी की बद् से बदतर स्थिति के लिए सिवनी विधायक श्रीमति नीता पटेरिया के और जिला मलेरिया अधिकारी डॉ.एच.पी.पटेरिया एवं लखनादौन विधायक श्रीमति शशि ठाकुर के पति तथा सिवनी में पदस्थ मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.वाय.एस.ठाकुर के साथ ही साथ भाजपा के नगर पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी पूरी तरह जिम्मेदार हैं।उक्ताशय की बात नगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष इमरान पटेल द्वारा आज यहां जारी विज्ञप्ति में कही गई है।
नगर कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता फिरोज खान के हस्ताक्षरों से जारी पत्र विज्ञप्ति में कहा गया है कि नगर पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी के अध्यक्षयीय कार्यकाल में शहर के लोग नारकीय जीवन रहे हैं। उन्होंने कहा कि निकम्मी नगर पालिका में कमीशन के अलावा और दूसरा कोई काम नहीं हो रहा है। नगर के लोग डेंगू मलेरिया से पीड़ित हैं पर पालिका अध्यक्ष सिर्फ पैसा बनाने में लगे हुए हैं। इमरान पटेल ने आरोप लगाया कि शहर के लोग गटर का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं, पर यह बात ना तो जिला प्रशासन के मुखिया कलेक्टर भरत यादव को दिख रही है और ना ही विधायक श्रीमति नीता पटेरिया ना ही भाजपा के जिलाध्यक्ष नरेश दिवाकर ही इस मामले में कोई कार्यवाही कर रहे हैं।
इमरान पटेल ने आगे कहा कि सिवनी शहर में नगर पालिका परिषद् द्वारा मच्छरों के खात्मे के उपाय करने के बजाए मच्छर पाले जा रहे हैं। जिला अस्पताल जिसमें जिला मलेरिया अधिकारी का कार्यालय है उसकी अगर जांच की जाए तो सबसे अधिक मच्छरों के लार्वा अस्पताल प्रांगड़ में ही मिलेंगे। इस परिसर में जिला मलेरिया अधिकारी और विधायक श्रीमति नीता पटेरिया के पति डॉ.पटेरिया के साथ ही साथ मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकरी तथा विधायक शशि ठाकुर के पति डॉ.वाय.एस.ठाकुर रोज आकर अपने अपने कार्यालयों में बैठते हैं।
शहर कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता फिरोज खान ने शहर कांग्रेस अध्यक्ष इमरान पटेल के हवाले से आगे कहा है कि शासन की नीतियों का खुला माखौल विधायक द्वय द्वारा उड़ाया जा रहा है। डॉ.पटेरिया और डॉ.ठाकुर की तैनाती तीन साल से अधिक समय से सिवनी में है। डॉ.पटेरिया की तो नौकरी का अधिकांश समय सिवनी में ही बीता है। उन्होंने जिला निर्वाचन अधिकारी से प्रश्न पूछते हुए कहा है कि तीन साल से अधिक समय से एक जिले में तैनात विभागों के मुखिया के स्थानांतरण के लिए क्या वे शासन को पत्र लिखेंगे?
इसके साथ ही साथ शहर इंका प्रवक्ता फिरोज खान ने शहर कांग्रेस अध्यक्ष इमरान पटेल के हवाले से कहा है कि भाजपा आदिवासी विरोधी है। इमरान पटेल का आरोप है कि घंसौर में डलने वाले झाबुआ पावर प्लांट का एक भी कार्यालय सिवनी में नहीं है और भाजपा के विधायक शांत हैं। सिवनी में कार्यालय ना होने के चलते हर क्षेत्र विशेषकर मीडिया में पावर प्लांट के दलालों का दबदबा बढ़ चुका है।

इमरान पटेल ने सिवनी विधायक श्रीमति नीता पटेरिया और लखनादौन विधायक श्रीमति शशि ठाकुर से प्रश्न किया है कि सिवनी में डेंगू और मलेरिया के साथ ही साथ आंत्रशोध, उल्टी दस्त जैसी बीमारियों का पर्याप्त ईलाज ना हो पाने, इनके लिए उपजाऊ माहौल तैयार करवाने आदि के लिए जवाबदेह मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमओ), डॉ.वाय.एस.ठाकुर, जिला मलेरिया अधिकारी (डीएमओ) डॉ.एच.पी.पटेरिया एवं नगर पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी एवं मुख्य नगर पालिका अधिकारी (सीएमओ) सी.के.मेश्राम के खिलाफ कठोर कार्यवाही की अनुशंसा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित स्वास्थ्य मंत्री, मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव स्वास्थ्य, प्रमुख सचिव स्थानीय शासन विभाग, आयुक्त स्वास्थ्य, आयुक्त नगरीय प्रशासन से करने का साहस जुटा पाएंगी, या सत्ता के मद में चूर पुरोहित के पैसे चुराने के आरोप, भाजपा कार्यालय के लिए जनता के पैसे पर नलकूप खुदवाने वाली, व्यापारियों से पहले बिजली के ट्रांसफार्मर के लिए बीस हजार रूपए लेकर वापस करने वाली विधायक एवं व्यवसाईयों से लीज डीड के लिए बीस लाख रूपए मांगने वाले नगर पालिका अध्यक्ष को भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष नरेश दिवाकर अपने कार्यालय की सजावट की वस्तु बनाकर रखना चाहेंगे।

गैस घरेलू, उपयोग व्यवसायिक!

गैस घरेलू, उपयोग व्यवसायिक!

(शरद खरे)

एक समय था जब रसोई में जंगल से काटी गई लकड़ियां, उसका बुरादा और कोयला भोजन आदि को पकाने के लिए उपयोग में लाया जाता था। आजाद भारत गणराज्य में जब वनों की सुरक्षा के उपाय आरंभ हुए और वनों के संरक्षण के मद्देनजर द्रव रूप में गैस को सिलेंडर में भरना आरंभ किया गया तब जंगल से लकड़ी काटने को हतोत्साहित किया गया। उस समय रूढ़ीवादी पीढ़ी ने रसोई गैस को अंगीकार नहीं किया। मजबूरी में सरकार ने रसाई गैस को प्रोत्साहित करने के लिए इस पर सब्सिडी लागू की ताकि लोग इसकी ओर आकर्षित हो सकें।
कालांतर में रसोई गैस की मांग तेजी से बढ़ी। इसका कारण यह था कि इसका प्रयोग बेहद आसान था। आसानी के साथ लोग बिना धुंए, राख के भोजन आदि को पकाने का काम करने लगे। सुरसा की तरह बढ़ रही मंहगाई के मौसम में जलाऊ लकड़ी की दरें भी आसमान छूने लगीं। इस दौर में सब्सिडाईज्ड रसोई गैस सभी को आकर्षित कर रही थी। लोगों के घरों के कच्चे चूल्हे का स्थान रसोई गैस वाले चूल्हों ने ले लिया।
इसी दौर में गोबर गैस से खाना पकाने को भी प्रोत्साहित किया जा रहा था। गोबर गैस के अनेक संयंत्र देश भर में संस्थापित किए गए। गोबर गैस से पकाए गए खाने में कुछ अजीब सी गंध आती थी, अतः यह प्रयोग बहुत ज्यादा सफल नहीं हो पाया। देश की राजधानी दिल्ली में अनेक कालोनियों के घरों में गोबर गैस की पाईप लाईन आज भी घरों घर में डली हैं जिनमें निर्धारित अवधि में रोजाना गैस प्रदाय की जाती है।
रसोई गैस अब कमोबेश देश के सत्तर फीसदी घरों में भोजन पकाने के उपयोग में आ रही है। कुछ सालों पहले तक रसोई गैस कनेक्शन लेना आसान बात नहीं थी। इस समय संसद सदस्य के पास सालाना लगभग सौ गैस कनेक्शन देने का अधिकार होता था। रसोई गैस कनेक्शन में सांसद का कूपन व्हीव्हीआईपी होने का संकेत माना जाता था। इस दौर में अनेक गैस एजेंसी संचालकों ने सांसदों के कूपन खरीदकरसांसदों को लखपति तो खुद को भी काफी अमीर बना लिया।
आज रसोई गैस का कनेक्शन लेना बहुत कठिन काम नहीं है। आज के समय में रसोई गैस का व्यवसायिक उपयोग जमकर हो रहा है। होटल, ढाबे, चाय पान के ठेलों सहित मेले ठेले, शादी ब्याह, जन्मोत्सव आदि में भी रसोई गैस के सिलेन्डर का धड़ल्ले से व्यवसायिक उपयोग हो रहा है। होटलों में हाथी के दिखाने के दांत के मानिंद एक नीला सिलेंडर काउंटर के करीब रख दिया जाता है पर रसोई में लाल रंग वाले सब्सिडी युक्त सिलेंडर का प्रयोग हो रहा है।
और तो और अब तो पेट्रोल से चलने वाले दो और चार पहिया वाहनों को सीएनजी से चलाया जाने लगा है। सीएनजी किट डलवाकर लोग सीएनजी के टैंक में सब्सिडाईज्ड रसोई गैस के सिलेन्डर पलटवा रहे हैं। एलपीजी जबसे ईंधन के रूप में प्रयुक्त होने लगी है तबसे वाहन संचालकों की बांछे खिल गई हैं। पेट्रोल से चलने वाले वाहन जहां चार रूपए प्रति किलोमीटर की दर पर पेट्रोल से चलते हैं वहीं रसोई गैस जो ब्लेक में भी खरीदे तो उसका वाहन महज एक रूपए पचास पैसे प्रतिकिलोमीटर की दर से चलता है।
सालों से घरेलू गैस का दुरूपयोग धड़ल्ले से हो रहा है, पर इसकी रोकथाम में खाद्य विभाग और जिला प्रशासन पूरी तरह नाकाम ही रहा है। हां, चतुर सुजान खाद्य विभाग द्वारा कुछ माहों के अंतराल में एक विशेष अभियान चलाया जाकर जांच की रस्म अदायगी कर ली जाती है। इस रस्म अदायगी में जनसंपर्क विभाग के माध्यम से खाद्य विभाग द्वारा विज्ञप्ति भी जारी कर दी जाती है जिसमें जिला कलेक्टर को ‘‘गदगद‘‘ करने की गरज से जिला कलेक्टर के निर्देशानुसार या आदेशानुसारउक्त अभियान को संचालित करने की बात कह दी जाती है।
ना जाने कितने डीजल से संचालित होने वाले वाहन नीले करोसीन से संचालित हो रहे हैं। शहर में अनेक स्थानों पर रसोई गैस के सिलेन्डर को सीएनजी के टेंक में पलटाने का बेहद खतरनाक काम घनी आबादी वाले क्षेत्रों में संचालित किया जा रहा है। रसोई गैस को सीएनजी टैंक में दो तरह से डाला जाता है एक पंप मेन्युअल तौर पर आपरेट होता है जिसमें पांव के हवा भरने वाले पंप जैसा काम करना होता है, तो दूसरा बिजली से चलने वाली मशीन होती है जो महज दस मिनिट में ही साढ़े चौदह किलो गैस को सीएनजी टैंक में रसोई गैस के सिलेंडर से भर देती है।
क्या खाद्य विभाग, परिवहन विभाग या जिला प्रशासन अथवा पुलिस प्रशासन ने जिले में सीएनजी से चल रहे वाहनों के संचालकों से यह पूछा है कि वे सीएनजी कहां से भरवा रहे हैं, जबकि सिवनी में सीएनजी फिलिंग स्टेशन है ही नहीं! अगर नागपुर जबलपुर से भरवाकर आ रहे हैं तो आने जाने में कितनी गैस की खपत हुई है। क्या कभी सीएनजी गैस के कैश मैमो और लाग बुक देखा है जिम्मेदार लोगों ने! जाहिर है नहीं, मलतब साफ है कि किसी को भी अपने कर्तव्यों का बोध नहीं है। सभी बस मोटा माल काटने की जुगत में ही हैं।

मारा मारी के इस युग में आम जनता को रसोई गैस का एक सिलेन्डर भरवाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना होता है, वहीं, ब्लेक में इन होटल, ढाबा संचालकों के साथ ही साथ वाहन चालकों को पता नहीं आसानी से कैसे रसोई गैस का सिलेन्डर मिल जाता है। रसोई गैस का धड़ल्ले से व्यवसायिक उपयोग हो रहा है और जिला प्रशासन ने अपने लिए धृतराष्ट्र की भूमिका चुन रखी है. . .।