शनिवार, 25 अगस्त 2012

मासूम की आंख निकाल उसे घायल किया

मासूम की आंख निकाल उसे घायल किया

(प्रतिभा सिंह)

पटना (साई)। बिहार के नवादा जिले में रजौली में अज्ञात अपराधियों ने हथियार का भय दिखाकर दलित समुदाय के आठ वर्षीय एक बच्चे की आंख निकालने का प्रयास किया और गंभीर रूप से उसे घायल कर दिया। पुलिस सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि रजौली थाना अंतर्गत जाजपुर में जंगल में मवेशी चरा रहे वसंत राजवंशी के पुत्र विजन का कल शाम पांच अज्ञात अपराधियों ने छुरे से हमला कर उसकी दोनों आंख और गुर्दा निकालने का प्रयास किया।
उन्होंने बताया कि अपराधी एक चारपहिया वाहन पर आये थे। बच्चे के रोने चिल्लाने के बाद अन्य चरवाहे घटनास्थल पर पहुंच गये, जिसके बाद अपराधी भाग खड़े हुए। पुलिस अधीक्षक ललन मोहन प्रसाद ने बताया कि बच्चे की मां के बयान पर अज्ञात अपराधियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी है। गंभीर रूप से घायल बच्चे को पटना के पीएमसीएच में भर्ती कराया गया है। मामले की छानबीन जारी है।

टूट गये तीन मिथक


टूट गये तीन मिथक

(सुतुनु गुरू/विस्फोट डॉट काम)

नई दिल्ली (साई)। राजनीतिक पंडितों और नए दौर की मीडिया ने टीम अन्ना और उसके राजनीति में आने के फैसले के बारे में काफी लिख दिया है। अधिकतर कांग्रेसी नेता खींसे निपोरते हुए अगले घोटाले की तरफ चल पड़े हैं जबकि सारे सनकी सीना पीट-पीट कर चिल्ला रहे हैं मैंने तो तुमसे पहले ही कहा था। इसलिए टीम अन्ना के नए फैसले की तार्किक विसंगति के बारे में सिद्धांवादी बाते करके आपका समय बर्बाद नहीं करूंगा। मैं तो बस कुछ तथ्यों की मदद से मिथक तोड़ने तक अपनी बात को सीमित रखूंगा।
जहां तक भारतीय मध्यवर्ग के बदलाव लाने की क्षमता और इच्छा की बात है तो टीम अन्ना भ्रम का जबरदस्त शिकार हो गई है। वे सोचते हैं की मध्यवर्ग नैतिक, राष्ट्रभक्त, मूल्यों को मानने वाला और इन मामलों को आगे ले जाने वाला है तो 2014 में उन्हें जोरदार झटका लगेगा और उनकी उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा। अगर एचडीआई यानी मानव विकास सूचकांक की तर्ज पर लोकतंत्र के साथ मध्यवर्ग के रिश्तों का कोई सूचकांक होता तो भारत एचडीआई वाले 132वें या 133वें पायदान से भी नीचे होता। चूंकि अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी मध्यवर्ग से ही संबंध रखते हैं इसलिए उन्हें विश्वास है कि भारतीय मध्यवर्ग का गुस्सा (और मीडिया में दीवानगी की हद तक उसकी कवरेज) स्वतः ही बदलाव ले आएगा। क्या वे दिवास्वप्न देख रहे हैं? मेरी नजर में अन्ना आंदोलन से इस मायावी मध्य वर्ग से जुड़े तीन मिथक टूट गये हैं।
पहला मिथकः भारत और भारत का मध्यवर्ग हमेशा मिलकर काम करते हैं।
यह एकदम बकवास बात है। कुछ लोगों को खूब याद होगा कि 1974 के जेपी आंदोलन के समय लोगों में कितना जबरदस्त उत्साह व ऊर्जा थी और व्यवस्था के खिलाफ कितना गुस्सा था। यहां तक कि इंदिरा गांधी द्वारा घोषित आपातकाल (जिसमें कांग्रेसी नेताओं और कई मीडिया पंडितों को इस बात का एहसास हुआ कि वे दुनिया से सबसे बड़े वाले चापलूस हैं), जयप्रकाश नारायण की गिरफ्तारी और आपातकाल का विरोध करने वाला हर शापित भारतीय भी बदलाव की भूख को बदल नहीं सका। जब इंदिरा गांधी ने चुनाव कराके लोकतंत्र में ऐतिहासिक योगदान दिया तब गुस्साए मतदाताओं ने उन्हें और उनकी इंदिरा ही इंडिया है और इंडिया ही इंदिरा है वाली पार्टी को धूल चटा दी। मगर ऐसा पूरे भारत में हुआ था? सच तो यह है कि 1977 में भी देश के दक्षिणी राय्जों ने इंदिरा अम्मा के लिए बड़ी संख्या में वोट दिए थे। या उन्हें लोकतंत्र के मुकाबले तानाशाही ज्यादा पसंद थी? यह तो बस एक उदाहरण है कि राष्ट्रीय स्तर पर बदलाव की ऊंची-ऊंची लहरों की ऊंची-ऊंची बाते कैसे बिल्कुल बेमतलब हैं।
दूसरा मिथकः मध्यवर्ग सचमुच ठोस काम के लिए व्याकुल है और उसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार है।
अच्छा इसकी सच्चाई जानने के लिए हमें आपातकाल के काले दिनों से फास्ट फॉरवर्ड करते हुए 26/11 तक आना होगा। सभी को याद होगा कि मुंबई में आयोजित टीवी शो में लोगों ने खुलकर यह कह डाला था कि वे आयकर अदा नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें सिस्टम पर भरोसा नहीं था। मुझे पूरा विश्वास है कि गेटवे ऑफ इंडिया के पास निकाली गई वे सारी मोमबत्तियां रैलियां आप सभी को याद होगा कि लोग नेताओं और सिस्टम से कितना नाराज थे?  मीरा सयाल नाम की पढ़ी-लिखी महिला, जो बैंकर थी, को लगा कि मध्यवर्ग बदलाव लाने के लिए उतावला है और इसलिए मीरा ने लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया। मुझे पूरा विश्वास है कि आपको वे तमाम वेबसाइटे भी याद होंगी जो मध्यवर्गीय मुंबइकर को बदलाव के लिए वोट करने के प्रति जागरूक करने में जुट गई थी और हुआ क्या?  2009 में मतदान वाले दिन दक्षिण मुंबई में महज 40 फीसद मतदान हुआ। तो अगर टीम अन्ना को सचमुच यह लगता है कि यह मध्यवर्ग बदलाव लाने का फैसला कर चुका है तो मैं टीम अन्ना को शुभकामनाएं ही दे सकता हूं।
तीसरा और अंतिम मिथकः मतदाना हमेशा नेताओं को उनके भ्रष्ट और आपराधिक बर्ताव की सजा देते हैं।
इस पर तो मै दो-तीन बार कहूंगा क्या सच में? जब हिसार में ताल्तुक रखने वाले टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की कि टीम अन्ना लोकसभा उप-चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी का विरोध करेगी तो हर तरफ बिगुल बजने लगे। दरअसल एक प्रबल नैतिक शक्ति के रूप में टीम अन्ना के अंत की शुरूआत वहीं से हुई थी। हिसार में हर मतदाता जानता था कि कांग्रेस प्रत्याशी की हार तो पहले से ही तय है। तो फिर इतना ड्रामा क्यों किया गया और जब केजरीवाल एसयूवी में सवार होकर हिसार में निकले तब भी दर्जनों तथाकथित आपराधिक छवि वाले नेता चुनाव जीतते चले गए। बाद में देश के दूसरे प्रदेशों में भी ऐसे ही लोग जीतते गए। बेशक भारतीय लोग भ्रष्टाचार से तंग आ चुके हैं। मगर यह सोचना बिल्कुल अजीब है कि मध्यम वर्गीय भारतीय पूरे देश को बदल डालेंगे। मौका मिले तो मध्यवर्गीय भारत यातायात नियम तोड़ता है, पुलिसवाले को रिश्वत देता है, स्कूल या कॉलेज में दाखिला पाने के लिए किसी दलाल को भी पैसा दे सकता है। (भले ही इससे किसी गरीब बच्चे का हक छिन जाए) अपने मकान पर एक या दो मंजिल और बनाने के लिए स्थानीय अधिकारियों को पैसा खिलाता है, बेशर्मी से दहेज मांगता है और पूरे महीने में अगर काम वाली बाई कोई छुट्टी कर लेती है तो उसके पैसे भी काट लेता है। ऐसे दोस्तों के होते हुए क्या अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी को दुश्मनों की जरूरत है?

जीवन से संघर्ष कर रहे हैं हंगल

जीवन से संघर्ष कर रहे हैं हंगल

(अतुल खरे)

मुंबई (साई)। अपने जमाने की सुपर डुपर हिट फिल्म शोले में जीवंत किरदार निभाने वाले चरित्र अभिनेता ए.के.हंगल इन दिनों जीवन से संघर्ष कर रहे हैं। कई फिल्मों में यादगार रोल निभाने वाले वरिष्ठ अभिनेता हंगल की हालत नाजुक है। हंगल के पारिवारिक सूत्रों ने शनिवार शाम यह जानकारी दी।
हंगल के बेटे विजय ने बताया कि उन्हें पारेख अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उनकी हालत गंभीर है। वह आईसीयू में हैं। 95 वर्षीय हंगल को 16 अगस्त को मुंबई के सांताक्रूज में पारेख अस्पताल में भर्ती कराया गया था। हंगल ने नमक हराम, शोले, शौकीन जैसी 200 से अधिक फिल्मों में काम किया है।

शीरीं फरहाद की तो निकल पड़ी

फिल्म समीक्षा

(दीपक अग्रवाल)

शीरीं फरहाद की तो निकल पड़ी


कलाकार: बोमन ईरानी, फराह खान, कविन दवे, शम्मी, डेजी ईरानी
निर्माता: संजय लीला भंसाली, सुनील लुल्ला
निर्देशक: बेला सहगल
इस फिल्म की लीड जोड़ी चालीस प्लस है। ऐसे में इन दिनों बॉक्स ऑफिस पर फिल्मों को हिट-फ्लाप करने में अहम यंगस्टर्स की कसौटी पर फिल्म कितनी खरी उतरती है, इसका पता अगले दो-तीन दिनों में लग जाएगा। फिल्म की बॉक्स ऑफिस पर सबसे बड़ी चुनौती टीनेजर्स को थिएटर तक खींचने की रहेगी। बेशक, बोमन उन चंद ऐसे बेहतरीन कलाकारों में से हैं, जो नई फिल्म उस वक्त तक साइन नहीं करते, जब तक किरदार में खुद को पूरी तरह से फिट नहीं पाते। अगर किरदार फरहाद की बात की जाए तो बोमन ही सौ फीसदी फिट बैठते हैं। शायद यही वजह रही फिल्म की डायरेक्टर बेला सहगल ने स्क्रिप्ट पूरी करते सबसे पहले बोमन को साइन किया। इन दिनों जब लीक से हटकर बनी फिल्मों को मल्टिप्लेक्सों और बड़े शहरों के चुनिंदा सिंगल स्क्रीन थिएटरों में अच्छी ओपनिंग मिल रह है तो ग्लैमर इंडस्ट्री के मेकर्स भी सीमित बजट में अपनी पसंदीदा स्टार कास्ट को लेकर ऐसे प्रयोग करते नहीं हिचकिचाते है। बेला ने बॉक्स ऑफिस का मोह छोड़ एक्स्पेरिमेंट किया और फराह को कैमरे के पीछे से निकालकर फ्रंट में लाने का जोखिम उठाया। चर्चा है, बोमन ने इस रोल के लिए आसानी से हां कर दी, लेकिन फराह से हां कराने में बेला को उनके घर के कई चक्कर लगाने पडे़। दरअसल तीन बच्चों की ममी फराह खुद को इस किरदार में फिट महसूस नहीं कर पा रही थीं। खैर, कुछ मुश्किलों के बाद बेला को अपनी पसंदीदा कास्ट मिली तो उन्होंने तीन शेडयूल में फिल्म पूरी की। लीड जोड़ी के मामले में बेशक बेला ने रिस्क लिया, लेकिन पारसी फैमिली की पृष्ठभूमि में बनी इस फिल्म के लिए इससे बेहतर कोई कास्ट नहीं हो सकती थी।

कहानी: पैंतालीस साल के हो चुके फरहाद (बोमन ईरानी) का ज्यादा वक्त बिकीनी बीच गुजरता है। दरअसल, फरहाद एक बिकीनी शॉप में सेल्समैन है। फरहाद आने काम में इतना परफेक्ट है कि शॉप में एंट्री करने वाली हर महिला का साइज जान जाता है। दिन भर महिलाओं में घिरा रहने वाला फरहाद इस उम्र में भी कुंआरा है। फरहाद की बूढ़ी दादी (शम्मी) और मां नरगिस (डेजी ईरानी) को भी अब फरहाद की शादी के आसार नजर नहीं आते। दूसरी और फरहाद ने हिम्मत नहीं हारी। फरहाद को लगता है कि उसके सपनों की रानी एक दिन उसके दिल में दस्तक देगी। अचानक एक दिन उसकी वीरान जिंदगी में शिरीं फुग्गावाला (फराह खान) आती है। मुंहफट और तेज-तर्रार शिरीं को पहली नजर देखते ही फरहाद को उससे इकतरफा प्यार हो जाता है। इसके बाद फरहाद शिरीं को अपना बनाने के मिशन में लग जाता है। फरहाद जब शिरीं का दिल जीतने के इस मिशन की आखिरी मंजिल पर पहुंचने वाला होता है, तभी उसकी मां नरगिस बीच में आ जाती है। नरगिस को लगता है कि शिरीं अगर फरहाद की जिंदगी में आई तो उसकी मुश्किलें बढ़ जाएंगी और वह शीरीं को अपना दुश्मन मानने लगती है।

ऐक्टिंग: इंडस्ट्री के लेजंड बोमन ईरानी, डेजी ईरानी और शम्मी इस फिल्म में हैं। हर किसी ने अपने किरदार को जीवंत कर दिखाया है। कैमरे के पीछे से निकल ऐक्टिंग में आई फराह खान शिरीं के रोल में पूरी तरह से फिट है। छोटी सी भूमिका में कविन दवे निराश नहीं करते।

निर्देशन: बतौर डायरेक्टर बेला सहगल को अपनी पहली फिल्म में इंडस्ट्री के बेहतरीन अनुभवी कलाकार मिले। इससे बेला का काम काफी हद तक आसान हो गया। मजेदार शुरुआत के बाद फिल्म के क्लाइमेक्स में बेला कुछ नया करने की बजाय उसी ट्रैक पर आती है, जिसका अंदाजा दर्शकों ने बहुत पहले से लगा रखा था।

गीत संगीत: इस कहानी में गानों की ज्यादा गुंजाइश नहीं थी। ऐसे में जीतू गांगुली ने फिल्म में कहानी की पृष्ठभूमि पर फिट म्यूजिक जरूर दिया, लेकिन फिल्म में ऐसा कोई गाना नहीं जो थिएटर से निकलने के बाद आपको याद रह सके।

एमपी में थमी बारिश


एमपी में थमी बारिश

(सोनल सूर्यवंशी)

भोपाल (साई)। मध्य प्रदेश में पिछले कई दिनों से जारी बारिश का सिलसिला अब कमजोर पड़ गया है, जिससे उमस बढ़ने लगी है। आने वाले दिनों में धूप निकलने के साथ ही बारिश के बौछारों का दौर जारी रहने की सम्भावना जताई जा रही है। कहीं कहीं दिन में धूप निकली तो उसके साथ बारिश का भी लुत्फ उठाया लोगों ने।
राज्य में सामान्य औसत को पार कर चुकी बारिश ने धरती की प्यास बुझा दी है। नदियों का प्रवाह भी तेज हो गया है और बांध लबालब हैं। बांधों का जलस्तर बढ़ने पर पानी निकासी के लिए गेट भी खोलने पड़े हैं, जिससे नदियों का प्रवाह और तेज हो गया है।
बीते दो दिनों में बारिश कमजोर पड़ने के कारण धूप निकल रही है और तापमान मे भी वृद्धि दर्ज की गई है। राजधानी भोपाल सहित कई अन्य इलाकों में अधिकतम तापमान 30 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच गया है। मौसम विभाग का अनुमान है कि अरब सागर व बंगाल की खाड़ी से बनने वाला मानसून कमजोर पड़ गया है और आगामी दो-तीन दिनों बाद यह मानसून फिर बन सकता है, जिससे बारिश हो सकती है। राजधानी में तो बादलों का डेरा है, लेकिन अन्य स्थानों पर धूप निकलने से उमस बढ़ गई है।