सोमवार, 10 अगस्त 2009

11 AUGEST 2009

आलेख 11 अगस्त 2009

कितनी दूर जाएगी लेडील स्पेशल

(लिमटी खरे)

केंद्रीय रेल मंंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने महिला होने के नाते अपनी बिरादरी के लिए ``लेड़ीज स्पेशल`` का तोहफा दिया है, जिसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम होगी। यह सुविधा महानगरों के इर्द गिर्द रहने वाली महिलाओं को अपने कार्यस्थल आने जाने के सुरक्षित मार्ग प्रशस्त करेगी, मगर ममता बनर्जी शायद यह भूल गईं कि सूचे देश में महिलाएं हैं, जो रोजाना अपने घरों से दूर अपने कार्यस्थल पर आती जाती हैं, उन्हें भी सुरक्षा की दरकार है।
रक्षा बन्धन के पावन पर्व पर दिल्ली से चलाई गई महिला स्पेशल ट्रेन निश्चित तौर पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की महिलाओं के लिए किसी अनमोल तोहफे से कम नहीं कही जा सकती है। कामकाजी महिलाओं के लिए सुरक्षित परिवहन के साधन मुहैया करवाकर ममता बनर्जी ने अपने नाम के अनुसार महिलाओं के प्रति अपनी ममता को जाहिर कर दिया है।
वैसे महिलाओं के लिए रेल का सफर आज भी किसी चुनौति से कम नहीं माना जा सकता है। महिलाओं की सुरक्षा और सुविधा को दृष्टिगत रखकर किए गए इस फैसले से महिला जगत में खुशी की लहर दौड़ जाना स्वाभाविक ही है। देर आयद दुरूस्त आयद की तर्ज पर ही सही इस कदम का सभी को खुले दिल से स्वागत किया जाना चाहिए। यद्यपि यह सुविधा अभी चंद मार्गों पर ही लागू की गई है, उम्मीद की जानी चाहिए कि केंद्र सरकार जल्द ही कोई ठोस कार्ययोजना बनाकर इसे समूचे देश में लागू करेगी।
वैसे अभी ज्यादा समय नहीं बीता है, और प्रोढ़ हो चुकी पीढ़ी के मन मस्तिष्क से यह बात विस्मृत नहीं हुई होगी कि हमारे देश में संस्कृति के हिसाब से अस्सी के दशक के आरंभ से पहले बालक और बालिकाओं के लिए पृथक स्कूल ही श्रेष्ठ माने जाते रहे हैं। कोएड शिक्षा पाश्चात संस्कृति की विष्टा कही जा सकती है, क्योंकि इसके फायदे कम नुकसान ज्यादा ही सामने आए हैं।
युवा होते बालक बालिकाओं में शारीरिक परिवर्तन प्राकृतिक ही है। इसमें नया कुछ नहीं है। किन्तु विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण ने शालाओं को गंदगी से सराबोर कर दिया है। संचार क्रांति के युग में अश्लील एसएमएस और एमएमएस आज मोबाईल की शोभा बने हुए हैं। यह देश में सांस्कृतिक हास माना जा सकता है।
देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली के पुराने शहर में दिल्ली गेट के पास एक अनूठा बाजार बनाया जा रहा है, जो सिर्फ महिलाओें के लिए ही होगा। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में भी एक पार्क की अवधारणा स्थानीय शासन मंत्री बाबू लाल गौर के दिमाग में आई है, जहां सिर्फ महिलाएं ही प्रवेश पा सकेंगी।
पुरूष प्रधान भारतीय संस्कृति में महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने के सरकारी दावे कितने सच्चे हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं है। देश में आजादी से अब तक स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी ही अकेली महिला प्रधानमंत्री रही हैं। इतना ही नहीं वर्तमान महामहिम राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल देश की पहली महिला राष्ट्राध्यक्ष और मीरा कुमार देश की पहली महिला लोकसभाध्यक्ष हैं।
महानगरों के अलावा छोटे शहरों में कामकाजी महिलाएं विशेषकर शिक्षिका या नर्स जब लदी फदी जीप, बस, या अन्य साधनों से अपने कार्यस्थल पर जाती हैं, तो वे किस कदर की परेशानी और जिल्लत का सामना करती हैं, यह बात वे ही बता सकतीं हैं। परिवहन के साधनों में महिलाओं को उनके पुरूष सहयात्री खा जाने वाली निगाहों से ही देखा करते हैं।
यहां हम भाजपा नेता अरूण शोरी के लेख की उस लाईन का जिकर जरूर करना चाहेंगे जिसे उन्होंने विशुद्ध पत्रकार रहते हुए लिखी थी, कि हम दूसरे की मां बहनों को देखते समय यह भूल जाते हैं, कि जब हमारी मां बहने सड़कों पर निकलती होंगी तो वे भी किसी के लिए ``माल`` ही बन जाती होंगी।
जहां तक परिवहन साधनों का सवाल है, तो साफ है कि महिलाओं के लिए सुरक्षित परिवहन साधनों का जबर्दस्त अभाव है। थ्री व्हीलर पर सफर करना महिलाओं को बहुत असुरक्षित लगता है। बस, रेल, टेक्सी आदि में भी महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और अभद्रता करना हमारे भद्र समाज के पुरूषों का पुराना शगल रहा है।
ममता बनर्जी की महिला स्पेशल वाली इस सोच के लिए वे नि:संदेह बधाई की पात्र हैं। वैसे भारतीय रेल को चाहिए कि अपने नेटवर्क के अंतर्गत आने वाले शहरों मेें कामकाजी महिलाओं के लिए अलग रेल चलाना अगर वर्तमान में संभव नहीं हो तो कम से कम कुछ कूपे तो महिलाओं के लिए आरक्षित किए ही जा सकते हैं।
इसके साथ ही साथ राज्य सरकारों का भी यह दायित्व बनता है कि उनके सूबों में चल रहे सरकारी और निजी परिवहन साधनों में महिलाओं के लिए प्रथमिकता और सुरक्षा मुहैया कराने अपनी प्रतिबद्धता का पालन कड़ाई से सुरक्षित करें। सूबे के निजाम यह न भूलें कि उनको जन्म देने वाली भी एक महिला ही थी, और उसकी कलाई पर राखी बांधने वाली एक महिला ही है, साथ ही उनके बच्चों की मां भी एक महिला ही है।
यह अलहदा बात है कि जब केंद्र या राज्य में पद पा जाने के बाद उनकी माता बहन और अर्धांग्नी अब आम जनता की सवारी का उपयोग नहीं ही करती होंगी किन्तु आम जनता में महिलाओं की तादाद बहुत ज्यादा है, जो अपने देश और राज्य के शासक से अपनी सुरक्षा की गुहार जरूर लगा रही है।

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अनेक मंत्रियों को साईज में लाने की तैयारी

0 मंत्रीमण्डल विस्तार जल्द

0 ममता की बरगेनिंग के सामने झुक सकती हैं सोनिया

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। संसद के मौजूदा सत्र के अवसान के बाद अब देश की राजनैतिक राजधानी की फिजां में इस बात को लेकर गहमागहमी मची हुई है कि जल्द ही होने वाले केबनेट विसतार में किस किस मंत्री का कद कम किया जा सकता है। वैसे एक से अधिक मंत्रालय संभालने वाले मंत्रियों से उनके अतिरिक्त विभाग छीने जा सकते हैं।
अगले साल पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनावों के मद्देनजर त्रणमूल कांग्रेस चीफ ममता बनर्जी सरकार पर मंत्रियों की संख्या बढ़ाने का दवाब बनाए हुए है। प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों का दावा है कि ममता इस विस्तार में अपने विश्वस्त सुदीप बंदोपाध्याय को मंत्री बनवाने में सफल हो सकतीं हैं। प्रधानमंत्री और कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी ने इस बारे में सैद्धांतिक सहमति दे दी है।
सूत्रों ने यह भी बताया कि ममता बनर्जी चाह रहीं हैं कि सुदीप को न केवल स्वतंत्र प्रभार वाला राज्यमंत्री बनाया जाए, वरन त्रणमूल के खाते में इस्पात या उद्योग मंत्रालय और आ जाए। वर्तमान में उद्योग मंत्रालय आनंद शर्मा के पास तो इस्पात हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पास है।
कहा जा रहा है कि आनंद शर्मा के अलावा सी.पी.जोशी, कुमारी सैलजा, प्रथ्वीराज चौव्हाण, सलमान खुशीZद श्रीप्रकाश जैसवाल, के.वी.थामस जैसे मंत्री जिनके पास एक से अधिक विभाग हैं, के पास से एक एक मंत्रालय छीना जा सकता है। अल्पसंख्यक मंत्रालय के लिए बिहार के इकलौते संसद सदस्य मौलाना इसराउल हक का नाम तेजी से उभरकर सामने आया है।

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सुषमा बन सकती हैं सोनिया की काट

0 भाजपा प्रमुख के पद पर सुषमा स्वराज की दावेदारी प्रबल

0 संघ नेतृत्व के पास है भविष्य की चाबी

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। तू डाल डाल मैं पात पात की तर्ज पर अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पदचिन्हों को देख भारतीय जनता पार्टी अपने भविष्य के रोड़मेप बनाने की जुगत में जुट गई है। दस साल से कांग्रेस सुप्रीमों बनी ताकतवर महिला सोनिया गांधी की काट के रूप में अब सुषमा स्वराज को भाजपा में अध्यक्ष बनाने की मुहिम छेड़ी गई है।
गौरतलब होगा कि इस साल के अंत में भाजपा में संगठनात्मक चुनाव होना है, जिसमें भाजपा के नए मुखिया का चयन किया जाएगा। कदमताल देखकर साफ होने लगा है कि राजनाथ सिंह को अब सेवावृद्धि मिलने की संभावनाएं बहुत ही कम हैं। वैसे भी राजनाथ के कार्यकाल से न तो भाजपा खुश है और न ही संघ।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि संघ परिवार में अगले भाजपा अध्यक्ष को लेकर रस्साकशी और लामबंदी चरम पर आ गई है। भाजपाध्यक्ष के लिए जो नाम अभी वजनदारी के साथ सामने आए हैं, उनमें सुषमा स्वराज के अलावा पूर्व अध्यक्ष डॉ.मुरली मनोहर जोशी, अरूण जेतली और वरिष्ठ उपाध्यक्ष बाला साहेब आप्टे के नाम प्रमुख हैं।
संघ के सूत्रों के अनुसार संघ प्रमुख मोहन भागवत की नजरों में अध्यक्ष के लिए पहली पसंद मुरली मनोहर जोशी ही हैं, उनके विकल्प के तौर पर सुषमा स्वराज के नाम पर वे तैयार हो सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक आम चुनावों में मुंह की खा चुके ``पी एम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी`` को संघ इस मामले में फ्री हेण्ड देने के मूड में दिखाई नहीं दे रहा है।
संघ परिवार में चल रही चर्चाओं के अनुसार भाजपा के एक धड़े द्वारा संघ के आला नेताओं को यह समझाने का प्रयास भी किया जा रहा है कि सुषमा स्वराज पूर्व में कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को दक्षिण भारत की वेल्लारी सीट पर चुनौती दे चुकी हैं। इसके अलावा महिला को अध्यक्ष बनाने से देश भर में महिलाओं में एक अच्छा संदेश जाएगा।
वैसे भी सोनिया गांधी के मुकाबले सुषमा स्वराज की छवि आम घरेलू भारतीय नारी की है। सुषमा स्वराज को निर्विवाद नेता के साथ ही साथ कुशल वक्ता भी माना जाता है। भाजपा में भी सुषमा स्वराज के नाम पर किसी को आपत्ति नहीं होगी। वर्तमान समीकरणें को देखकर भाजपा के वषाZंत में भावी अध्यक्ष के रिक्त होने वाले फ्रेम मेें सुषमा स्वराज की तस्वीर ही सबसे फिट बैठती दिख रही है।