गुरुवार, 3 मार्च 2011

खासी किरकिरी हो चुकी है सीवीसी मामले में सरकार की

कोर्ट के कोड़े के बाद बिदा हुए थामस

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। पामोलीन तेल घोटाले के आरोपी 1973 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी पोलायिल जोसफ थामस को अंततः सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के उपरांत त्यागपत्र देने पर मजबूर होना पड़ा है। थामस अपनी नियुक्ति से ही विवादों में थे। कांग्रेसनीत केंद्र सरकार द्वारा थामस की नियुक्ति को उचित ठहराने के लिए अनेक कवायद की थी। थामस ने अपना त्यागपत्र सरकार को भेज दिया है।
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश जस्टिस एस.एच.कापड़िया, जस्टिस के.एस.राधाकृष्णणन और जस्टिस स्वतंत्र कुमार की बैंच ने थामस की सीवीसी के पद पर नियुक्ति को गैरकानूनी करार देते हुए कहा कि इस पद की गरिमा को बरकरार रखने के लिए थामस को पद से हटा दिया जाना चाहिए।
मूलतः केरल के तिरूअनंतपुरम के वजाहुताकाड़ा निवासी साठ वर्षीय थामस के बारे में देश की सबसे बड़ी अदालत की प्रतिकूल टिप्पणी से सरकार अब बैकफुट पर आती नजर आ रही है। उधर विपक्ष अपनी बोथरी धार को पजाकर पैना करते हुए अब इस मामले में वजीरेआजम के त्यागपत्र की मांग पर अड़ती नजर आ रही है।

यह है थामस पर आरोप

1991 में केरल में हुए पामोलिन आयात घोटाले में सूबे के पूर्व निजाम करूणानिधी अैर तत्कालीन खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति सचिव थामस सहित नौ अन्य आरोपियों पर मुकदमा चल रहा है। थामस पर आरोप था कि उन्होंने मलेश्यिा की एक कंपनी से पंद्रह सौ टन पाम आयल आयात करने के सौदे में भ्रष्टाचार किया था। 2007 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस पर रोक लगा दी थी।

फैसले का पूरा सम्मान

प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने कहा है कि वे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का पूरा पूरा सम्मान करते हैं। उधर पीएमओ के सूत्रों का कहना है कि इस मामले में संसद के दोनों सदनों में सरकार की ओर से वक्तव्य भी जारी किया जाएगा।

थामस के बचाव में आए मोईली

उधर केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोईली ने प्रधानमंत्री और थामस का बचाव करते हुए कहा है कि सरकार ने कोई गैरकानूनी काम नहीं किया है। संसद के बाहर पत्रकारों से चर्चा के दौरान मोईली ने कहा कि इस मामले में प्रधानमंत्री देश से क्यों माफी मांगे? आखिर प्रधानमंत्री ने कौन सा गैरकानूनी काम किया है।

नियुक्ति रद्द कराने में बनाया रिकार्ड

चर्चित और विवादित देश के चौदहवें केंद्रीय सतर्कता आयुक्त पोलायिल जोसफ थामस की नियुक्ति रद्द होना भी अपने आप में एक रिकार्ड बन गया है। थामस पहले एसे सीवीसी बन गए हैं जिनकी नियुक्ति रद्द की गई हो।

भरी भीड़ में अकेले खड़े हैं मनमोहन

ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)

भरी भीड़ में अकेले खड़े हैं मनमोहन
कांग्रेस के अंदर अब यह चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि अब वक्त आ गया है और वजीरे आजम डाॅ.मनमोहन को सेवानिवृत्ति ले लेनी चाहिए। मतलब साफ है कि इस साल देश को नया प्रधानमंत्री तो अगले साल देश को नया महामहिम राष्ट्रपति मिलने वाला है। ईमानदार छवि के धनी गैर राजनैतिक प्रधानमंत्री डाॅ.सिंह के दिन गिनती के ही बचे हैं। उधर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी फिलहाल बतौर प्रधानमंत्री अपनी ताजपोशी को तैयार नहीं हैं। राहुल के अलावा जिन नामों पर चर्चा संभव है उनमें प्रणव मुखर्जी, पलनिअप्पम चिदम्बरम और ए.के.अंटोनी के नाम प्रमुख हैं। इनमें अंटोनी के पीछे सोनिया का जबर्दस्त समर्थन हैं। लोकसभाध्यक्ष मीरा कुमार भी दबे पांव इस दौड़ में शामिल हैं। अगर दलित और महिला को प्रधानमंत्री बनाने की बात आती है तो मीरा कुमार का दावा सबसे अधिक पुख्ता हो जाता है। इस सबसे इतर चतुर सुजान राजा दिग्विजय सिंह भी बिसात बिछाने में लगे हैं, पर राजा के दांव समझना इन राजनेताओं के बस की बात नहीं।

साढ़े नौ दशक बाद लल्ला लाएगा ब्राम्हण दुल्हनिया
आजादी के बाद देश के खिवैया रहे नेहरू गांधी परिवार में एक संयोग 94 साल बाद बनने जा रहा है। मौका है इस परिवार की राजनैतिक तौर पर सक्रिय पांचवीं पीढ़ी के विवाह का। संजय गांधी के पुत्र वरूण गांधी की जीवन संगनी ब्राम्हण बाला बनने वाली है। इसके पहले भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की 1916 में ब्राम्हण कुल की कमला नेहरू को अपनी अर्धांग्नी बनाया था। इसके बाद इंदिरा गांधी ने फिरोज गांधी से तो राजीव गांधी ने इटली मूल की सोनिया और स्व.संजय ने पंजाबी मेनका को अपना जीवन साथी चुना। इसके बाद वाली पीढ़ी में प्रियंका ने राबर्ट वढ़ेरा को चुन लिया। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की नजरें भी विदेशी बाला पर ही होने की खबरें हैं। इन परिस्थितियों में वरूण गांधी द्वारा ब्राम्हण कन्या से विवाह रचाकर कांग्रेस के गांधीज को परेशानी में डाल दिया है। अब राहूुल की मजबूरी हो जाएगी कि वे भी ब्राम्हण कन्या के साथ ही स्वयंवर रचाएं। वैसे उत्तर प्रदेश के एक संसद सदस्य के परिवार में उनके विवाह की चर्चाएं तेज हो गई हैं।

किसानों के पैसों से चमक रहे माननीयों के कपड़े
देश भर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है भूमिपुत्र किसान को। किसानों के लिए सरकारें हर कुछ करने को आमदा होती है। किसानों के नाम पर राजनीति भी जमकर ही होती है। पिछले दिनों दिल्ली से इल्ली तक किसानों को सभी ने लूटा। हाल ही में छत्तीसगढ़ की आर्थिक अपराध शाखा के पास एक नए तरीके का अभिनव मामला प्रकाश में आया है, जिसकी चर्चा भाजपा के राष्ट्रीय मुख्यालय में भी हो रही है। बताया जाता है कि किसानों के लिए जिस रकम का प्रावधान किया गया था, उस राशि से माननीय वियाायकों और मंत्रियों के कपड़ों की चमक बरकरार रखने के लिए वाशिंग मशीन ही खरीद दी गईं। पहले 7550 रूपए प्रति मशीन के हिसाब से तीन लाख दो हजार की बाद में 5600 रूपए के हिसाब से तीन लाख 92 हजार की मशीने खरीदी गईं। किसानों के लिए सरकार ने छः लाख चोरानवे हजार का प्रावधान किया किन्तु अधिकारियों ने माननीयों के कपड़ों की चमक के लिए उसे खर्च कर दिया।

मंहगाई ने किया संसद की और रूख!
जी हां, यह सच है कि आसमान छूती मंहगाई ने अब देश की सबसे बड़ी पंचायत की ओर रूख कर दिया है। आपको यकीन नहीं हो रहा है न। जाईए, सांसदों के आवास के पास की केंटीन में जाकर कुछ खाईए तो सही। आपको पहले से ज्यादा किन्तु बाजार से काफी कम दरों पर भुगतान करना होगा। सांसदों को काफी के लिए चार रूपए, वेज बिरयानी बारह रूपए, चिकिन बिरयानी के लिए 51 रूपए का शगुन। हर मामले मंे दरें पचास फीसदी बढ़ा दी गईं हैं। आप सोच रहे होंगे कि आखिर माजरा क्या है? क्या माननीयों की केंटीन आजाद भारत के बाहर है, जी नहीं इस केंटीन में मिलने वाले खाने पर सरकार द्वारा सब्सीडी दी जाती है। अर्थात इसके अलावा शेष राशि का भुगतान सरकार द्वारा किया जाता है। और यह भुगतान होता है आम जनता से करों के माध्यम से वसूली गई राशि से। है न कमाल की बात। आम जनता की आवाज उठाने वाले आम जनता के पैसे पर किस कदर एश करते हैं, यह बात सिर्फ और सिर्फ भारत गणराज्य में ही देखने को मिल सकती है।

कानून का मजाक उड़ाते माननीय
भारत गणराज्य का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि यहां चुने हुए या पिछले दरवाजे से प्रवेश करने वाले सांसद या विधायक ही देश के कानून के साथ खिलवाड़ करते नजर आते हैं। जिन सांसदों या विधायकों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं, वे खुलेआम सार्वजनिक कार्यक्रमों में शिरकत करते नजर आते हैं, उन्हें पकड़ने के लिए पाबंद पुलिस ही उनकी देखसंभाल में लगी होती है। बीते दिनों मध्य प्रदेश के एक विधायक के बारे में भी इसी तरह की चर्चाएं दिल्ली स्थित मध्य प्रदेश भवनमें चटखारे लेकर सुनाई गई। सुसनेर के भाजपा विधायक संतोष जोशी पर मोमिन बडोदिया थाने में धारा 323 और 506 का प्रकरण पंजीबद्ध है। वे दो माहों से फरार हैं। बावजूद इसके जोशी ने अपने क्षेत्र में पदयात्रा की। नियम कायदों को ताक पर रखने की हद तो तब हो गई जब फरार विधायक के कार्यक्रम में सूबे के निजाम शिवराज सिंह चैहान ने भी आमद दे दी। सीएम की वहां मौजूदगी के चलते पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारियों के सामने विधायक संतोष जोशी सीना तानकर मंच पर डटे रहे। कोई राह चलता होता तो पुलिस का अदना सा सिपाही भी उसे कालर पकड़कर हवालात में ले जाता पर यहां तो साहेब बहादुर ही सलाम ठोंक रहे थे।

जयंती ने कराई कांग्रेस की किरकिरी
कांग्रेस के प्रवक्ताओं की फौज में शामिल राज्य सभा सांसद जयंती नटराजन वैसे तो अपना अधिक समय चेन्नई में बिताने के लिए मशहूर हो चुकी हैं, पिछले दिनों संसद में उनकी अनुपस्थिति ने कांग्रेस को बुरी तरह शर्मसार किया। मसला यह था कि महामहिम राष्ट्रपति के अभिभाषण पर सत्तारूढ़ कांग्रेसनीत संप्रग की ओर से जनार्दन द्विवेदी के धन्यवाद प्रस्ताव के समर्थन में जब उपसभापति ने बार बार जयंती नटराजन का नाम पुकारा तब वे सीट से नदारत ही थीं। मौके की नजाकत को भांप उपसभापति ने सदन की कार्यवाही एक घंटा पहले ही स्थगित करना मुनासिब समझा। मजे की बात तो यह रही कि उस वक्त सदन में वजीरे आजम डाॅ.मनमोहन सिंह स्वयं उपस्थित थे। बाद में पतासाजी पर ज्ञात हुआ कि नटराजन ने चर्चा में भाग लेने के बजाए उस वक्त गोधरा कांड पर मीडिया से मुखातिब होना उचित समझा।

. . . तो यह दांव लगाया चिरंजीवी ने
आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी फेक्टर की काट के तौर पर कांग्रेस ने प्रजाराज्यम पार्टी से विलय की खिचड़ी पका ही ली। लोग असमंजस में हैं कि आखिर दोनों ही को इससे क्या लाभ हुआ। कांग्र्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है चूंकि दक्षिण में चिरंजीवी का जलजला है इसलिए कांग्रेस उनकी लोकप्रियता को भुनाना चाह रही है। सूत्रों ने आगे कहा कि चिरंजीवी ने विलय के लिए केंद्र में मंत्री पद की शर्त रखी थी। चूंकि चिरंजीवी लोक या राज्यसभा में नहीं हैं अतः उन्हें चुनवाने की जवाबदेही कांग्रेस के सर ही आती। बाद में राजमाता सोनिया गांधी के एक रणनीतिकार ने उन्हें मशविरा दिया कि अगर चिरंजीवी को उपमुख्यमंत्री बना दिया जाए तो उचित होगा। फिर क्या था चिरंजीवी के सामने यह जलेबी लटका दी गई। चिरंजीवी खुद को लाल बत्ती में बैठकर घूमने का सपना देखने लगे और हो गया प्रजाराज्यम का कांग्रेस में विलय।

खेद पत्रने बांटा भाजपा को
पाकिस्तान के कायदे आजम जिन्ना की तारीफों में कशीदे पढ़ने के बाद यह दूसरा मौका होगा जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी की भूमिका पर पार्टी के अंदर सवाल उठने लगे हों। मामला कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी को काले धन और विदेशी बैंक खातों के संबंध में लिखे गए खेद प्रकट करने का खत से जुड़ा हुआ है। भाजपा का एक धड़ा इसे उच्च आदर्श की राजनीति का घोतक तो दूसरा राजनैतिक तौर पर गैरजरूरी कदम निरूपित कर रहा है। लोकसभा में पार्टी के उपनेता गोपी नाथ मुंडे का कहना है कि यह सोनिया के लिए क्लीन चिट नहीं है। मामले की जांच चल रही है, जब तक जांच पूरी नहीं होती तब तक यह कहना मुश्किल है कि किसका खाता है और किसका नहीं। अंदरखाते से जो खबरें छन छन कर बाहर आ रही हैं उन पर अगर यकीन किया जाए तो कांग्रेस के कुशाग्र प्रबंधकों ने काले धन के मामले में आड़वाणी की दुखती रग पर हाथ रख दिया है, जिसके परिणामस्वरूप निकलकर आया है खेदपत्र

खतरे में सुकुमार
दिल्ली की निजाम श्रीमति शीला दीक्षित के सुकुमार समझे जाने वाले लोक कर्म विभाग के मंत्री राज कुमार चैहान के आसन पर खतरा डगमगा रहा है। भ्रष्टाचार के एक प्रकरण में दिल्ली के लोकायुक्त न्यायमूर्ति मनमोहन सरीन ने उन्हें दोषी मानते हुए भारत गणराज्य की महामहिम राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल से उन्हें पद से हटाने की सिफारिश कर दी है। इतना ही नहीं लोकायुक्त ने चैहान पर आपराधिक मामला चलाने की सिफारिश भी की है। जाहिर है इस कार्यवाही के बाद घपलों और घोटालों से घिरी शीला और कांग्रेस नेतृत्व पर नैतिक दवाब बढ़ गया है। गौरतलब होगा कि लोकायुक्त की इसी तरह की प्रतिकूल टिप्पणी के आधार पर कांग्रेस द्वारा कर्नाटक के निजाम येदिरप्पा से त्यागपत्र की मांग की जा रही है। लाख टके का सवाल यह है कि लोकायुक्त की सिफारिश पर महामहिम राष्ट्रपति का सचिवालय कब और क्या निर्णय सुनाता है?

वसुंधरा ही तार सकतीं हैं राजस्थान भाजपा को
रसातल की ओर अग्रसर भाजपा की राजस्थान इकाई में जान फूंकने के लिए अब भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को वसुंधरा राजे सिंधिया से उपयुक्त दूसरा कोई प्रतीत नहीं हो रहा है। पिछले दिनों उन्हें राज्य में नेता प्रतिपक्ष के पद का आफर दिया गया था, जो उन्होंने विनम्रता के साथ ठुकरा दिया है। और अपनी ओर से नंदलाल मीणा का नाम सुझाया है। इस पद के लिए अन्य नामों में धनश्याम तिवाड़ी, गुलाबचंद कटारिया और वसुंधरा खेमे से राजेंद्र सिंह राठौर और डाॅ.दिगम्बर सिंह के नामों की चर्चा है। भाजपाध्यक्ष नितिन गड़करी चाहते हैं कि उन्हें सूबे की भाजपा का मुखिया बनाकर अगला चुनाव उनकी अगुआई में ही लड़ा जाए। इसके पीछे माना जा रहा है कि राजघराने से होने के बाद भी आज वसुंधरा का जनाधार औरों की अपेक्षा काफी तगड़ा और विधायकों में पकड़ बरकरार है। किन्तु समस्या यह है कि सूबे के मौजूदा अध्यक्ष अरूण चतुर्वेदी का कार्यकाल अभी एक साल का बचा हुआ है।

अब आया है उंट पहाड़ के नीचे
इक्कीसवीं सदी में जमीन से उठकर स्वयंभू योग गुरू बनने वाले रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने महज आठ सालों में धर्मार्थ संस्था के नाम पर कर बचाकर लाखों करोड़ों रूपयों की अकूत धन संपदा एकत्र कर ली, फिर चले राजनीति की काल कोठरी को स्वच्छ, निर्मल, धवल बनाने। जिसका पेट भरा होता है, वही गंदगी को दूर करने का प्रहसन किया करता है। फिल्म शोले का मशहूर डायलाग है - ‘‘अब आया है उंट पहाड़ के नीचे‘‘। इसी तर्ज पर अब कांग्रेस के सामने बाबा रामदेव आ चुके हैं। बाबा ने काले धन पर जमकर सियासत की। कांग्रेस ने भी अर्जुन की तरह निपुण धर्नुधर, चाणक्य की तरह दूरंदेशी वाले महासचिव राजा दिग्विजय सिंह को बाबा के सामने मैदान संभालने पाबंद किया है। अब दोनों ओर से बयानो के बाण चल रहे हैं। राजनैतिक समझबूझ वाले जानते हैं कि दिग्गी राजा के आगे बाबा रामदेव ज्यादा देर टिक नहीं पाएंगे।

आखिर उद्योगपति क्यों हैं सीबीआई के निशाने पर
केंद्रीय जांच ब्यूरो ने अनिल अंबानी, वेणुगोपाल, शाहिद बलवा जैसी मशहूर हस्तियों की कालर पर हाथ डाला है तो निश्चित मान लिया जाए कि इसके पीछे कारण कुछ गहरा और बेक सपोर्ट बड़ा ही तगड़ा है। वरना किसी की क्या हिमाकत कि इन धनकुबेरों को बुलावा भेजा जाए वह भी साधारण मुलजिमों की तरह पूछताछ का। कहा जा रहा है कि अब बारी कुमार मंगलग बिरला और रतन टाटा की है। दस जनपथ के सूत्रों का कहना है कि देश के उद्योगपति कल तक कांग्रेस की हां में हां मिलाते आए हैं, किन्तु अब इनके द्वारा क्षेत्रीय राजनैतिक दलों को आर्थिक रूप से सुदृढ कर कांग्रेस का सफायश किया जा रहा है। इसके साथ ही साथ इन शीर्ष उद्योगपतियों द्वारा समय समय पर कांग्रेस की व्यवस्था के खिलाफ अनर्गल प्रलाप भी किया गया है। यही कारण है कि दस जनपथ के इशारों पर सीबीआई ने इन्हें बुला भेजा और इशारों ही इशारों में इन्हें पैजामे के अंदर रहने का मशविरा भी दे डाला।

पुच्छल तारा
भारत में कौन कितना कमाता और कितना खर्च करता है इस बारे में कोई हिसाब किताब ही नहीं रखा जाता है, जबकि विदेशों में आय से अधिक संपत्ति पर कानून कड़े हैं और सरकारों की बाकायदा नजरें रहती हैं। लुधियाना से सुरभी ने एक ईमेल भेजा है। सुरभी लिखती हैं कि एक अमेरिकी और एक भारतीय आपस में बतिया रहे थे।
अमेरिकी: हमारे यहां हर नागरिक की औसत कमाई दस हजार डालर है और वह खर्च करता है सात हजार डालर।
हिन्दुस्तानी: बाकी बचे पैसों का वह क्या करता है?
अमेरिकी: यह उसका नितांत निजी मामला है, कि वह बचे पैसे का क्या करता है, हमारे यहां निजी मामलों में दखल नहीं दिया जाता है।
हिन्दुस्तानी: हमारे यहां हर नागरिक की औसत कमाई डेढ़ हजार रूपए है, और वह खर्च करता है पांच हजार रूपए।
अमेरिकी (हैरत के साथ): बाकी पैसे वह लाता कहां से है?
हिन्दुस्तानी: यह उसका सरदर्द और नितांत निजी मामला है। हमारे यहां भी किसी के निजी मामलों में कोई दखल नहीं देता है।

खूंखार भिखारियो के निशाने पर लो फ्लोर बसें

भिखारियों के कब्जे में दिल्ली

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कामन वेल्थ गेम्स के आगाज के साथ ही दिल्ली की सूरत और सीरत बदलने की कवायद आरंभ की गई थी। पिछले साल सरकार द्वारा नई नई परियोजनाओं के जरिए दिल्ली का मिजाज बदलने का प्रयास किया था। इस दौरान दिल्ली को भिखारियों से मुक्त करने का काम भी हाथ में लिया था, विडम्बना ही कही जाएगी कि आज भी चैक चैराहों के साथ ही साथ रेल और बस में खूंखार भिखारी लोगों के साथ हाथापाई करते नजर आ रहे हैं।
आरोपित है कि स्मेक, ब्राउन शुगर जैसे नशे की जद में पूरी तरह आ चुके दिल्ली के भिखारी जिनमें युवाओं और दुधमुहे बच्चों की खासी तादाद है, के दारा अपनी एक खुराक के लिए चोरी और राहजनी जैसी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है। पहले इस तरह की घटनाएं देर रात सूनसान इलाकों या सड़कों पर घटित होती थीं, किन्तु अब इस तरह की घटनाएं भीड़भाड़ वाले इलाकों में भी घटित होने लगी हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार कनाट सर्कस, इंडिया गेट सर्किल, निजामुद्दीन रेल्वे स्टेशन, प्रगति मैदान, साउथ एक्स आदि इलाकों से गुजरने वाली लो फ्लोर यात्री बसों यहां तक कि चमचमाती लाल एसी बस में भी इस तरह के दुर्गन्ध मारते भिखारी चढ़ जाते हैं, और बिना टिकिट ही एक दो स्टेशन तक यात्रा करते हैं। इसी बीच इनके द्वारा यात्रियों से बाकायदा भीख मांगी जाती है। भीख देने से इंकार करने पर इनके द्वारा छुरा या ब्लेड निकालकर यात्रियों को डराया धमकाया जाता है। कुछ वारदात तो सामन लेकर भागने की भी प्रकाश में आई हैं।
एक यात्री ने बताया कि नई दिल्ली से ओखला की ओर जाने वाली 984 रूट की एसी बस में एक गेंग चढ़ती है, जो यात्रियों के साथ लूटपाट किया करती है। कनाट प्लेस पर भी इस तरह के भिखारियों द्वारा राहगीरों के साथ अभद्र व्यवहार किया जा रहा है। इस तरह के भिखारी इतने खूंखार हैं कि बात बात में चाकू और ब्लेड निकालकर इनके द्वारा अपने काम को अंजाम दिया जाता है।
इसी तरह की अनेक गैंग पुरानी दिल्ली, नई दिल्ली, विशेषकर निजामुद्दीन रेल्वे स्टेशन के प्लेटफार्म पर चोरी, राहजनी को अंजाम देती मिल जाती हैं। आश्चर्य तो तब होता है जब सीधे सादे यात्री को रेल्वे पुलिस या टिकिट कलक्टर द्वारा बिना टिकिट पकड़े जाने पर जुर्माने के साथ ही साथ प्रताडित किया जाता है, वहीं दूसरी ओर रेल के प्लेटफार्म पर लगते ही इस तरह के भिखारी रेल में खाली बोतल और डब्बे बीनने बेधड़क घुसकर यात्रियों का सामान पार कर देते हैं। इतना ही नहीं आटो, टेक्सी और रिक्शा वाले भी प्लेटफार्म पर जाकर सवारियों के साथ मोल तोल करते मिल ही जाते हैं।

महासचिवों ने फेरा 24 अकबर रोड़ से मुंह

एआईसीसी में फेरबदल किसी भी समय

मीडिया टीम होगी तगड़ी

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी द्वारा अपनी नई टीम का एलान अब किसी भी समय किया जा सकता है। पार्टी महासचिवों और मीडिया प्रभाग की कार्यप्रणाली से राजमाता श्रीमति गांधी खासी खफा नजर आ रही हैं। माना जा रहा है कि पार्टी इन दोनों ही की पोस्ट्स पर सोनिया गांधी द्वारा उपयुक्त लोगों को विराजमान किया जा सकता है।
बताया जाता है कि पार्टी के महासचिवों ने मुख्यालय की ओर रूख करना ही तज दिया है। पार्टी महासचिव वीरप्पा माईली, मुकुल वासनिक, केशव राव, गुलाम नवी आजाद ने लंबे समय से पार्टी मुख्यालय में अपनी आमद नहीं दी है। इसके साथ ही साथ सत्यव्रत चतुर्वेदी भी लंबे समय से पार्टी मुख्यालय से नदारत ही हैं।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर कहा कि सोनिया गांधी के अध्यक्षयीय कार्यकाल में कांग्रेस पार्टी सदा ही मीडिया मैनेजरांे की कमी से दो चार होती आई है। वर्तमान में भी मीडिया से रूबरू होने वालों की कमी साफ परिलक्षित हो रही है। पत्रकारों की यह शिकायत आम है कि जब भी कांग्रेस मुख्यालय जाया जाता है तो शकील अहमद और मनीष तिवारी को छोड़कर और कोई वहां मिलता ही नहीं है।
जयंती नटराजन का अधिकांश समय दिल्ली के बजाए चेन्नई में ही बीतता है। इसी तरह अभिषेक मनु सिंघवी को हरयाणा और आस्कर फर्नाडिस को जम्मू काश्मीर के साथ ही साथ संगठन का अतिरिक्त प्रभार दिए जाने से ये भी पार्टी मुख्यालय फटकना पसंद नहीं करते हैं। रही बात आधा दर्जन मंत्रियों की तो सत्ता और संगठन में हिस्सेदार होने के कारण इनके पास पार्टी मुख्यालय जाकर कार्यकर्ताओं से मिलने का वक्त निकाल पाना मुश्किल ही होता है।
सोनिया के करीबी सूत्रों का कहना है कि इस साल पांच के अलावा 2012 में उत्तराखण्ड और पंजाब में होने वाले चुनावों के चलते कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और उनके पुत्र युवराज राहुल गांधी ने ताना बाना बुनना आरंभ कर दिया है। सूत्रोंने कहा कि चुनावी राज्यों से ज्यादा से ज्यादा प्रतिनिधित्व देने का प्रयास करने वालीं हैं सोनिया गांधी।

0 इन पर गिरेगी गाज
गुलाम नवी आजाद, वी.नारायणसामी, एमवीरप्पा मोईली, मुकुल वासनिक, ए.के.अंटोनी, जयराम रमेश जैसे मंत्रियों जिनके पास संगठन की जवाबदारी भी है, उन्हें एक जवाबदारी से मुक्त कर दिया जाएगा। साथ ही साथ मणिशंकर अय्यर को महती जवाबदारी से नवाजा जा सकता है।

देश को किस अंधेरी सुरंग में ढकेल रही हैं सोनिया!

भ्रष्टों के सरदार मनमोहन --- 3

जवाबदेही से क्यों बच रहे हैं मनमोहन

मीठा मीठा गप्प कड़वा कड़वा थू

आखिर चाह क्या रही है कांग्रेस

दुनिया भर में भ्रष्टाचारी देशों का सिरमौर बनता जा रहा है बापू का हिन्दुस्तान

किस आदर्श पर चल रही है कांग्रेस

(लिमटी खरे)

आज की युवा होती पीढ़ी को शायद इस बात का भान नहीं है कि गोरी चमड़ी वालों के अत्याचारों को किस कदर सहकर देश पर प्राण न्योछावर करने वालों ने इस देश को आजादी दिलवाई है। दिन रात अंग्रेजों के जुल्मों को सहा और स्वतंत्रता का बिगुल फूंका। देश आजाद हुआ, फिर भारत गणराज्य की स्थाना के बाद से इसने प्रगति के सौपान तय करना आरंभ कर दिया। लगता है भारत के आजाद होने के समय की कुंडली में कुछ दोष अवश्य ही है, यही कारण है कि जैसे जैसे समय बीतता गया देश में सुशासन की जगह कुशासन हावी होता गया।
कांग्रेस में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी को भविष्यदृष्टा के तौर पर देखा जाता है। राजीव गांधी ने ही इक्कीसवीं सदी के भारत की कल्पना की थी। आज अगर वे सशरीर होते तो निश्चित तौर पर देश के हालातों को देखकर यही कहते कि इक्कीसवीं सदी के इस भारत की कल्पना उन्होंने कतई नहीं की थी, और वह भी तब जब मूलतः इटली निवासी उनकी अर्धांग्नी श्रीमति सोनिया गांधी के इर्द गिर्द सत्ता की धुरी घूम रही हो, जब उनके साहेब जादे राहुल गांधी को देश का वजीरे आजम बनाने की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा हो तब।
कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की दूसरी पारी में केंद्र सरकार ने जो भद्द पिटवाई है, उसकी महज निंदा करने से काम चलने वाला नहीं है। हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि इक्कीसवीं सदी के जनसेवक वाकई मोटी चमड़ी वाले हैं उनकी सेहत पर घपले, घोटालों, भ्रष्टाचार की चीत्कार, अबलाओं बच्चों का रूदन, भूखे पेट दो तिहाई से अधिक जनता की बेबस नजरों का कोई असर पड़ने वाला नहीं है। आज की तस्वीर देखकर हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि वर्तमान शासक निरंकुश, निडर, जल्लाद, राक्षस और न जाने किस किस भूमिकाओं में अपने आप को उतारते जा रहे हैं। देश में घपले घोटाले सरेआम सामने आते जा रहे हैं, किन्तु न तो कोई प्रधानमंत्री डाॅ.मनमोहन सिंह, न सोनिया या राहुल गांधी, न ही कांग्र्रेस या उसके घटक दलों के मंत्री संत्री यहां तक कि विपक्ष में बैठे जनता के चुने हुए नुमाईंदे भी उसी थाप पर ही मुजरा करते नजर आ रहे हैं जो ताल भ्रष्टाचारियों द्वारा बजाई और सुनाई जा रही है।
एक समय था जब भ्रष्टाचार और घूसखोरी की खबरें सुनकर ही लोगों का खून खौल उठता था और इसमंे संलिप्तता वाला व्यक्ति समाज में शर्म के साथ सर झुकाए बैठा होता था। विडम्बना देखिए कि आज के इस समय में भ्रष्टाचार को व्यवस्था की विकृति के स्थान पर शिष्टाचार या एक व्यवस्था ही माना जाने लगा है। आम आदमी के मन में यह बात आने लगी है कि सरकारी तंत्र में बैठे लोगों द्वारा चोर उचक्के और मवालियों को लूटने के सारे माग्र प्रशस्त कर जनता को सरेआम लुटवाया जा रहा है, फिर इन लुटेरों से बाकायदा हफ्ता वसूला जा रहा है। देश की सबसे बड़ी अदालत भी भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ मुकदमा चलाने की प्रक्रिया को आसान करने और उनकी संपत्ति को कुर्क करने की वकालत करती है तो भारत के संविधान के अनुच्छेद 311 में किए गए प्रावधान इसमंे आड़े आ जाते हैं।
भारत में इतने घपले और घोटाले सामने आए हैं कि बदमाशों के नामों के आगे उर्फियत का उपयोग करने वाले भारत उर्फ घपलों घोटालों का देश न कहने लगें। देश भर में अगर घपलों और घोटालों पर प्राथमिकी दर्ज करवाई जाए तो इसकी तादाद दस हजार के उपर पहुंच सकती है।
राजीव गांधी के कार्यकाल में 64 करोड़ रूपयों का बोफोर्स घोटाला सामने आया। उस वक्त सस्ताई का जमाना था, इसलिए 64 करोड़ रूपयों की कीमत काफी अधिक थी। इसके बाद 133 करोड़ का यूरिया घोटाला, साढ़े नौ सो करोड़ का चारा घोटाला, चार हजार करोड़ का बिग बुल वाला शेयर घोटाला, सात हजार करोड़ का राजू वाला सत्यम घोटाला, 43 हजार करोड़ का तेलगी का स्टेम्प घोटाला, सुरेश कलमाड़ी के नाम पर कामन वेल्थ गेम्स के नाम से सत्तर हजार करोड़ रूपयों का घोटाला, आदिमत्थू राजा का 2जी घोटाला एक लाख 67 हजार करोड़ का है। फिर दो लाख करोड़ के लगभग अनाज घोटाला भी सामने आया है। इस तरह घपले घोटालों में पांच लाख करोड़ रूपयों से ज्यादा का धन लूटा गया है। इतना धन तो मुगल आक्रांताआंे या गोरी चमड़ी वाले विदेशियों ने भारत से नहीं लूटा था।
अब देखिए कि कांग्रेस ने कितनी चतुराई से अपने दामन के दागों को धोने का कुत्सित प्रयास किया। सबसे पहले तो बोफोर्स प्रकरण में सभी आरोपियों के खिलाफ केस को बंद कर दिया गया। इसके बाद लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का प्रकरण आया, जैसे ही लालू यादव ने आंखें तरेरी कांग्रेस ने सीबीआई के माध्यम से लालू को साईज में लाया गया। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ सराकर द्वारा उच्च अदालतों में अपील ही दायर नहीं की। इसी तरह चारा घोटाले के मुख्य आरोपी लालू प्रसाद यादव और जगन्नाथ मिश्रा को डेढ़ दशक बाद भी सजा नहीं दी।
हवाला कांड में केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा जुटाए गए सारे साक्ष्य उच्च न्यायालय द्वारा सिरे से खारिज कर दिए गए। झारखण्ड मुक्ति मोर्चा सांसद खरीदी कांड में एक भी आरोपी के खिलाफ चार्ज शीट नहीं पेश की गई है। इसी तरह पूर्व रेल मंत्री सी.के.जाफरशरीफ के खिलाफ प्राथमिकी तो दर्ज है किन्तु चार्जशीट दाखिल नहीं की गई है। ताज कारीडोर मामले में अधिकारियों के खिलाफ तो चार्जशीट है किन्तु मंत्रियों को इससे महफूज ही रखा गया है।
उत्तर प्रदेश की निजाम मायावती के खिलाफ भी आय से अधिक संपत्ति का मामला सात साल से घिसट रहा है, इसमें भी नतीजा सिफर ही है। विधायकों की खरीद फरोख्त के मामले में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के खिलाफ सात साल से मामला अधर में ही है।
मामला काले धन का आता है तो सारे के सारे ‘‘माननीय‘‘ एक सुर में टर्राने लगते हैं। ये वो सारे प्रश्न हैं, जिनका उत्तर देश की जनता हर हाल में चाहती है, वह भी ईमानदार छवि के धनी वजीरे आजम डाॅक्टर मनमोहन सिंह से। डाॅ.सिंह को जवाब देना ही होगा कि आखिर सत्ता की वो कौन सी मलाई है, जिसे चखने के लिए मनमोहन ने अपना ईमानदारी वाला चोला उतार फेंका है और आज बेईमान, भ्रष्ट, घपले, घोटालेबाज देशद्रोहियों के सरदार बने बैठे हैं। आखिर कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी अपनी आंखे बंद करके देश को किस अंधेरी सुरंग की ओर धकेलना चाह रही हैं?