सोमवार, 14 सितंबर 2009

दूरदर्शन के 50 बरस

इस आलेख के लेखक समीर वर्मा, भारतीय सूचना सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं। आकाशवाणी, दूरदर्शन में समाचार संपादक के पद पर कार्य करने के उपरांत वर्तमान में श्री वर्मा भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय के फील्ड पब्लिसिटी प्रभाग में कार्यरत हैं। मूलत: पत्रकार रहे समीर वर्मा जबलपुर के रहने वाले हैं एवं इन्होंने अनेक समाचार पत्रों का संपादन भी किया है।

- लिमटी खरे



ऊँ साँई राम
दूरदर्शन के 50 बरस
बदलाव की बिंदास बयार
-समीर वर्मा,

भारतीय सूचना सेवा

इस लेख क® लिखने से पहले मैंने सूचना के सुपर हाइवे यानि सायबर स्पेस पर द® दिन तक विचरण किया। कारण था, यह जानना कि शरतीय की –श्य-श्रव्य आधारित एकमात्र ल®क प्रसारण सेवा ´´दूरदर्शन´´क® लेकर बुद्धिजीवियों,मीडिया विश्®षज्ञों और आम ल®गों की फिलहाल स®च क्या है र्षोर्षो इस दौरान इंटरनेट पर मीडिया से जुड़ी साईट® और ब्लाग्स क® छानने और बांचने के बाद बेहद सुकून हुआ कि चैनल क्रांति के ताजा दौर में “ी दूरदर्शन के प्रति ल®गों की स®च बेहद सकारात्मक है। ढेर सारी उम्मीदें हैं त® कई अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए ``दूरदर्शन´´ के प्रति आशर “ी जताया गया है। कहीं आल®चनाएं “ी है। ब्लागर्स ने त® दूरदर्शन से जुड़ी यादों क® लेकर बहस छेड़ रखी है कुछ ने त® हर दौर में दूरदर्शन से प्रसारित ह®ने वाले कर्णिप्रय और नेत्रिप्रय विज्ञापनों का वीडिय® संग्रहालय तक सायबर स्पेस में स्थापित कर दिया है। हर क®ई उस `टीवीरिया´ क® याद करत्® थक नहीं रहा है जब हर एक इसका शिकार था।तब और अब की यादों के बीच आज दूरदर्शन पचास बरस का ह® गया है। 15 सितंबर 1959 क® दिल्ली में दूरदर्शन का पहला प्रसारण प्रय®गात्मक आधार पर आध्® घंटे के लिए शैक्षिक और विकास कार्यक्रमों के रूप में शुरू किया गया था। किसी “ी मीडिया के लिए पचाससाल का सफर बहुत मायने रखता है वक्त के साथ चलने में दूरदर्शन ने कई उतार-चढ़ाव तय किए हैं। एक ल®क प्रसारक सेवा के रुप में स्वायत्ता हासिल करने के बावजूद दूरदर्शन सूचना, शिक्षा और मन®रंजन के उÌेश्यों से “टका नहीं है। आज निजी चैनलों की मन®रंजन और बाजारवादी क्रांति के दौर में एकमात्र दूरदर्शन ही है। ज® समाजके स“ी वर्ग का ख्याल रखत्® हुए उनकी अपनी शषा संस्कृति क® मजबूती प्रदान करता आ रहा है। टी वी के माध्यम से शरतीय समाज में सामाजिक,सांस्कृतिक और वैचारिक क्रांति लाने में दूरदर्शन की उल्लेखनीय “ूमिका रही है। इन पचास बरसों में दूरदर्शन ने ज® विकास यात्रा तय की है व® काफी प्रेरणादायक है। जिस टेलीविजन क® प्रारंि“क दिनों में समाज का दुश्मन समझा जाता था, उसे बाद मे ल®गों ने `देवत्व´ प्रदान किया। किसी ने उसे `लीला´ समझा त® किसी के लिए व® ताकत है खबर है ज्ञान बढ़ाने वाला है, क®ई उसे एकांत का `साथी´ मानता है। टीवी के इस महत्व क® स्थापित करने में दूरदर्शन के `र®ल´ क® नकारा नहीं जा सकता। सन 1959 से लेकर 2009तक के पांच दशक में दूरदर्शन ने हर व® मुकाम हासिल किया है जिसका उसने लक्ष्य बना रखा था। हालांकि ´दूरदर्शन´की विकास यात्रा प्रारं“ में काफी धीमी रही लेकिन 1982 में रंगीन टेलीविजन आने के बाद ल®गों का रूझान इस और ज्यादा बढ़ा और एशियाइ ख्®लों के प्रसारण ने त® क्रांति ही ला दी। आज दूरदर्शन डायरेक्टर टू ह®म (डीटीएच) के अलावा 31 चैनलों का संचालन करता है। दूरदर्शन के देश“र में 1412 ट्रांसमीटर हैं और 66 स्टूडियों का क्ष्®त्रीय नेटवर्क है। कव्हरेज के हिसाब से दूरदर्शन देश की करीब 92 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या क® उपलब्ध है। एक सार्वजनिक प्रसारणकताZ के रुप में दूरदर्शन विÜव में सबसे बड़े क्ष्®त्र क® कवर करने वाला संस्थान है। दूरदर्शन के 31 चैनल जिनमें डीडी-1-राष्ट™ीय चैनल, डीडी न्यूज-समाचार चैनल, डीडी शरती- समृद्धि चैनल, डीडी स्प®टर्स-ख्®ल चैनल, डीडी राज्यसश- संसद चैनल, डीडी उर्दू -उर्दू शषा चैनल हैं। वहीं 11 प्रादेशिक शषाओं के चैनल है जिसमें -मलयालम, तमिल, उड़िया, त्®लुगू, बंगाली, कéड, मराठी, गुजराती, कश्मीरी, उत्तर पूर्व और पंजाबी शषा के कार्यक्रम प्रसारक चैनल शामिल हैं। इसके अलावा राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, हरियाणा, उत्तराखंड, त्रिपुरा, मिज®रम और मेघालय समेत 12 राज्य नेटवर्क है। साथ ही एक अंतर्राष्ट™ीय चैनल डीडी इंडिया और एक शैक्षिक चैनल शामिल हैं। इतने अधिक चैनल शायद ही किसी निजी प्रसारक के पास ह®। ´सत्यम शिवम सुन्दरम´ दूरदर्शन का यही ध्येय वाक्य है। इसे ही ध्यान में रखत्® हुए दूरदर्शन देश की जनता के प्रति अपने फजZ क® निशता आ रहा है। एक दौर था जब दूरदर्शन का राज चलता था। कौन याद नहीं करना चाहेगा उन सुनहरे दिनों क® जब म®हल्ले के इक्के-दुक्के रइसों के घर में टीवी हुआ करता था और सारा म®हल्ला टीवी में आ रहे कार्यक्रमों क® आÜचर्यचकित सा देखता था। अगर सिर्फ मन®रंजन की बात करें त® `हम ल®ग´,बुनियाद ये ज® है जिंदगी, चित्रहार, नुôड़, मालगुड़ी डेज ,सिग्मा,स्पीड, जंगल बुक, कच्ची धूप, रजनी, कथासागर, विक्रम बेताल ने ज® मिसाल कायम की है उसकी तुलना आज के शायद ही किसी धारावाहिक से की जा सके। रामायण और महाशरत के प्रसारण ने त® `टीवी´ क® `ईÜवरत्व´ प्रदान किया । जब ये धारावाहिक आत्® त® पूरा परिवार हाथ ज®ड़कर देखता था। रामायण में राम और सीता का र®ल अदा करने वाले अरूण ग®विल और दीपिका पादुक®ण क® ल®ग आज “ी राम और सीता के रुप में पहचानत्® है त® नीतिश शरद्वाज महाशरत सीरियल के `कृष्ण´ के रुप मे जाने गए। वहीं शरत एक ख®ज, दि सव®र्ड अ‚फ टीपू सुल्तान और चाणक्य ने ल®गों क® शरत की ऐतिहासिक तस्वीर से रूबरू कराया। जबकि जासूस करमचंद, रिप®र्टर व्य®मकेश बक्शी, तहकीकात, सुराग और बैरिस्टर राय ज्ौसे धारावाहिकों ने समाज में ह® रही अपराधिक घटनाओं क® स्वस्थ ढंग से पेश करने की कला विकसित की। जिसके सामने आज के क्राईम आधारित कार्यक्रम कहीं नहीं लगत्®। दूरदर्शन ने न जाने ऐसे कितने ही सफल धारावाहिकों के माध्यम से टीवी मन®रंजन के क्ष्®त्र में कई मिसाले कायम की है। सही मायने में दूरदर्शन ने मन®रंजन के मायने ही बदल दिए थ्®। दूरदर्शन ने मन®रंजन के साथ-साथ ल®गों क® शिक्षित करने में “ी अहम “ूमिका अदा की है। मीडिया में ``एजुटेंमेंट´´ की आधारशिला दूरदर्शन ने ही रखी है। चित्रहार में प्रसारित गीतों के शब्दों क® सब-टाइटलिंग के द्वारा दिखाकर ल®गों में सुनकर और देखकर पढ़ने की अ®र प्रेरित किया। इससे शरत के साक्षरता अि“यान क® “ी नई दिशा मिली। वहीं विज्ञापनों में मिले सुर मेरा तुम्हारा ल®गों क® एकता का संदेश देने में कामयाब रहा त®, बुलंद शरत की बुलंद तस्वीर-हमारा बजाज से अपनी व्यावसायिक क्षमता का ल®हा“ी मनवाया ग्रामीण शरत के विकास में “ी दूरदर्शन के य®गदान क® “ुलाया नहीं जा सकता । सन् 1966 में कृषि दर्शन कार्यक्रम के द्वारा दूरदर्शन देश में हरित क्रांति लाने का सूत्रधार बना। इस कार्यक्रम का उÌेश्य था किसानों क® अपनी जमीन से ज®ड़े रखना और कृषि संबंधी जागरूकता लाना। आज “ी यह कार्यक्रम बदस्तूर जारी है और किसानों ग्रामीणों- की इसमें-उतनी ही शगीदारी है जितनी पहले थी। वक्त के साथ स्वरुप जरूर बदल गया है। सन् 1975 में साईट (सैटेलाईट-इन्स्ट™क्शनल टेलीविजन एक्सपेरीमेंट)परिय®जना ने त® दूरदर्शन के महत्व क® नई मजबूती दी। इसके जरिए यह साबित हुआ कि ग्रामीण, शिक्षा और विकास क® गति देने में दूरदर्शन एक सशक्त माध्यम है । दूरदर्शन ने अपने कार्यक्रमों के माध्यम से न जाने ऐसे कितने प्रय®ग किए ज® सामाजिक परिवर्तन और विकास के अग्रदूत बने। आज “ी दूरदर्शन ग्रामीण विकास की दिशा में अनूठी-“ूमिका निश रहाहै। `मेरे देश की धरती´ ज्ौसे कार्यक्रमों के माध्यम से ग्रामीण जीवन के हर पहलू से रूबरू कराया जा रहा है। जबकि आम आदमी क® स्वस्थ जीवन के प्रति जागरूक करने में “ी दूरदर्शन अहम “ूमिका निभा रहा है। ``कल्याणी´´ और ``जासूस विजय´´ऐसे ही कार्यक्रम है ज® स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने- का काम कर रहे हैं।अगर देश में ख्®लों के विकास की बात करें त® दूरदर्शन ने अपनी स्थापना के कुछ समय बाद से ही ख्®ल और खिलाड़ियों के लिए अपना अि“यान शुरू कर दिया था। सन् 1999 में पृथक डीडी स्प®टर्स चैनल शुरू किया गया। ज® देशका एकमात्र टू एयर स्प®टर्स -24 घंटे प्रसारक चैनल है। क्रिकेट के दीवाने इस देश में दूरदर्शन ने कबड्डी,ख®-ख®, कुश्ती जिसे खालिस देशी ख्®लों क® महत्व प्रदान किया और इन्हें ल®किप्रय बनाया। आज इस चैनल पर स“ी ख्®लों के राष्ट™ीय-अतंर्राष्ट™ीय टूर्नामेंट का सीधा प्रसारण किया जाता है। देश की विि“é संस्कृतियों के दर्शन “ी आज दूरदर्शन पर ही ह®त्® हैं। शाóीय नृत्य-संगीत ह® या ऐतिहासिक विरासत, दूरदर्शन का डीडी शरती चैनल स“ी का व्यापक कव्हरेज करता है। जबकि उत्तर पूर्व और विि“é शषा शषी ल®गों की जरूरतों उनके मन®रंजन का ख्याल प्रादेशिक शषा के चैनल कर रहे हैं। अंतर्राष्ट™ीय स्तर पर “ी दूरदर्शन ने अपनी आमद दजZ करा रखी है ´´डी डी इंडिया ´´ चैनल 1995 में इसी कड़ी में शुरू किया गया था। पहले इसका नाम डीडी वल्र्ड था। इस चैनल के माध्यम से अंतर्राष्ट™ीय दर्शकों के लिए शरत की सामाजिक सांस्कृतिक,राजनैतिक और आर्थिक स्थिति क® पेश किया जाता है। आज इसे 146 देशों में देखा जा रहा है। बात खबरों की कि जाये त® दूरदर्शन ने समाचारों के प्रसारण के मामले में रंग रुप और नई तकनीक जरूर अपना ली है लेकिन अ“ी “ी उसके समाचारों में `विÜवसनीयता´ श®शयमान है। बिना किसी राग-द्वेष, लाग लपेट और नाटकीयता के समाचारों की प्रस्तुति उसकी खूबी है। निजी समाचार चैनलों में ´न्यूज´ ज्ौसे गं“ीर विषय में जिस प्रकार से मन®रंजन का तड़का लगाया जाता है व® विषय की गं“ीरता क® खत्म करता है। लेकिन दूरदर्शन इस मामले में तारीफ के काबिल है। उसके समाचारों में छ®टे से कस्बे के किसान की खूबियों से लेकर तुर्कमेनिस्तान ज्ौसे अनजाने देश की खबरें “ी देखने क® मिल जाती है। 15 अगस्त 1965 क® प्रथम समाचार बुलेटिन का प्रसारण दूरदर्शन से किया गया था। तब से लेकर नेशनल चैनल पर रात 8.30 बज्® प्रसारित ह®ने वाला राष्ट™ीय समाचार बुलेटिन आज “ी बदस्तूर जारी है। उस समय के समाचार वाचक सलमा सुल्तान, मंजरी ज®शी, सरला माहेÜवरी, शम्मी नारंग, ज्®.व्ही.रमण और साधना श्रीवास्तव की आवाज आज “ी कानों में गूंजती है। समाचार की महत्ता क® देखत्® हुए ही दूरदर्शन ने 2003में पृथक से 24 घंटे का समाचार चैनल डीडी न्यूज शुरू किया । यह एक मात्र चैनल है ज® केबलविहीन और उपग्रह सुविधा रहित घरों तक पहुंचता है। इसकी पहुंच देश की आधी जनसंख्या तक है। डीडी न्यूज पर र®जाना 16 घंटे सीधा प्रसारण ह®ता है जिसमें हिन्दी में 17 और अंग्रेजी में 13 समाचार बुलेटिन शामिल है। उर्दू और संस्कृत में र®ज एक बुलेटिन के अलावा बघिर ल®गों के लिए हफ्त्® में एक बुलेटिन प्रसारित ह®ता है। साथ ही राज्यों की राजधानियों में 24 क्ष्®त्रीय समाचार एकांशों द्वारा प्रतिदिन 19 शषाओं में 89 बुलेटिन प्रसारित किए जात्® हैं। इसके अलावा डीडीन्यूजड‚टक‚म वेवसाईट पर हर र®ज द® घंटे के समाचार आनलाईन देख्® जा सकत्® हैं।वक्त के साथ बदलती तकनीक और “विष्य के टीवी क® देखत्® दूरदर्शन ने स्वयं क® अपडेट रखा है। दूरदर्शन के 16 चैनलों क® अब (डीबीवी-एच प्रसारण) म®बाइल पर देखा जा सकता है। जबकि एचडीटीवी (हाईडेफीनिशन टेलीविजन) और आईपीटीवी (इंटरनेट प्र®ट®काल टेलीविजन) प्रसारण तकनीक अपनाने क® लेकर त्ौयारियां चल रही हैं। 2010 के राष्ट™मंडल ख्®लों का प्रसारण एचडी सिग्नल पर ही किया जाएगा। ज® देश में पहली बार ह®गा। आज देश में 394 चैनल हैं। इनमें आध्® से अधिक समाचार और सामयिक विषयों पर आधारित चैनल हैं। मीडिया जगत में चैनलों की इस “ीड़ में कुछ ल®गों क® ``दूरदर्शन´´ख®या सा लगता है।क्योंकि `मन®रंजन´ की “ूख और बाजारवादी प्रथा के दवाब में ल®गों की स®च में बदलाव आया है। इसके लिए प्रचार-प्रसार के हथकंडे सबसे ज्यादा द®षी है।ज® ल®ग ऐसा स®चत्® है कि अब `दूरदर्शन´ क® देखता कौन है उन्हें यह जान लेना चाहिए कि केबल और डीटीएच पर आधारित निजी चैनलों की पहुंच सीमित वर्ग तक है और ``दूरदर्शन´ जिसकी पहुंच 92 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या तक है वो कश्मीर से कन्याकुमारी तक के ल®गों की जरूरतों क® ´मुफ्त´ में पूरा कर रहा है उन्हें शिक्षित करता है, सूचित करता है और स्वस्थ ढंग से उनका मन®रंजन करता है। पिछले पचास साल की टेलीविजन क्रांति का इतिहास असल मायने में दूरदर्शन का ही इतिहास है। इस देश में ´दूरदर्शन´ इलेक्ट™‚निक मीडिया जगत का कल्प वृक्ष है जिसकी जड़े बहुत गहरे तक है और जिसकी शाखाओं पर साढे तीन सौ से अधिक चैनल सुश®ि“त ह® रहे हैं। बेशक निजी चैनलों ने प्रतिस्पर्धा का माहौल बनाया है लेकिन इसके बावजूद दूरदर्शन अपनी स्थापना के उÌेश्यों पर अटल रहत्® हुए खुद क® मजबूत बनाये हुए है। यहां यह जान लेना जरूरी है कि `दूरदर्शन´ देश की एकमात्र ल®क प्रसारण सेवा है वह निजी टीवी चैनलों की तरह व्यावसायिक तथा केवल मन®रंजन प्रधान नहीं ह® सकता। उसका मुख्य दायित्व जनहित क® ध्यान में रखकर सही सूचना देना सामाजिक आर्थिक जागरूकता बढ़ाना तथा स्वच्छ तरीके से मन®रंजन उपलब्ध कराना है। पचास साल में दूरदर्शन में बदलाव की ज® बिंदास बयार चली है उससे व® और तर®ताजा हुआ है।

मौका है सुधार लो यमुना की हालत

फिर उफनाई शीला की टेम्स

(लिमटी खरे)


विदेशी आक्रांताओं के जुल्मों की गवाह रही इंद्रप्रस्थ, दिल्ली, देहली आदि नामों से पुकारी जाने वाली सदियों से सत्ता का केंद्र बिन्दु रही देश की राजनैतिक राजधानी से कल कल बहने वाली यमुना नदी एक बाद फिर पूरे शबाब पर है। मीडिया चीख चीख कर कह रहा है कि दिल्ली में बाढ़ आ गई है।

दिल्ली में वाकई बाढ़ आई है, किन्तु जीवनदायनी यमुना के कारण नहीं। इस महानगर की जल मल निकासी की खराब और कमजोर प्रणाली के कारण। जरा सी बारिश में दिल्ली मेें यातायात अवरूद्ध हो जाता है। दिल्लीवासी असहनीय जाम से दो चार हो जाते हैं। जाम में फंसे मरीज की सांसे हलक में अटकी होती हैं, किन्तु दिल्ली पर शासन करने वाले निजामों के कानों में जूं भी नहीं रेंगतीं। हमारी आवाज भी उनके दरबार में नक्कारखाने में तूती की आवाज ही साबित हो सकती है। किन्तु इसका यह मतलब नहीं कि हम इसका प्रतिकर न करें।

इसी साल जून माह में दिल्ली की कुर्सी पर तीसरी मर्तबा बैठने वाली कांग्रेस की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित ने चिंघाड़ कर कहा था कि यमुना को लंदन की टेम्स नदी नहीं बनाया जा सकता है। तब हमने अपने आलेख ``यमुना को टेम्स नहीं यमुना ही बने रहने दीजिए शीला जी`` यही लिखा था कि कम से कम इसे पुराने स्वरूप में तो लाया ही जा सकता है।
एक दशक से अधिक समय से दिल्ली में शीला दीक्षित निश्कंटक राज कर रहीं हैं। दिल्ली में यमुना नदी गंदे सड़ांध मारते बदबूदार नाले में तब्दील हो चुकी है। एयर कंडीशन्ड वाहनों में बैठकर जाने वाले राजनेता इसकी सड़ांध को महसूस नहीं कर सकते किन्तु अपने अपने साधनों से या ब्लूलाईन में सफर करने वाला आम दिल्ली वासी इस नदी की दुर्दशा महसूस कर आंसू बहाने के अलावा कुछ भी नहीं कर सकता है।

पिछले दिनों अचानक उफान पर आई यमुना में साफ स्वच्छ जल को देखकर आम दिल्लीवासी आल्हादित हुए बिना नहीं रहा होगा। आदिकाल के कवि रहमान, कबीर आदि आज अगर जिंदा होते तो सालों बाद दिखने वाली यमुना की लहरों की अटखेलियों पर निश्चित तौर पर छंद लिख चुके होते।

यमुनोत्री से इलहाबाद के संगम तक यमुना 1375 किलोमीटर का लंबा सफर तय करती है। दिल्ली से पहले स्वच्छ निर्मल जल को लेकर आने वाली यमुना दिल्ली के बाद बुरी तरह प्रदूषित हो जाती है। यमुना के प्रदूषण में दिल्ली की भागीदारी 80 फीसदी से भी अधिक है। वजीराबाद से ओखला बैराज तक का 22 किलोमीटर लंबा यमुना का हिस्सा सबसे अधिक प्रदूषण की चपेट में है।

मुख्यमंत्री खुद स्वीकार करतीं हैं कि यमुना नाले में तब्दील हो चुकी है। उन्होंने यह भी कहा कि यमुना एक्शन प्लान एक और दो में 2800 करोड़ रूपए तो खर्च हुए हैं किन्तु ठोस तकनीक न होने से इसका वांछित परिणाम सामने नहीं आया। हम शीला दीक्षित को याद दिलाना चाहते हैं कि जो व्यय हुआ है, वह उन्हीं के शासनकाल में हुआ है, और अगर जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को बिना परिणाम या ठोस तकनीक के बहाया गया है तो क्यों न इसे तैयार करने और अमली जामा पहनाने वालों पर जनता के धन के अपव्यय का आपराधिक मुकदमा चलाया जाएर्षोर्षो

कहा जाता है कि मथुरा के उपरांत यमुना का स्वरूप स्याह हो गया है। इसके पीछे कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने कालिया नाग का जब मर्दन किया था, उसके उपरांत उसके जहर से यह नदी काले रंग में रंग गई थी। यद्यपि भगवान कृष्ण की लीलाओं के चलते यह जहर किसी के लिए प्रणघातक नहीं बना। वहीं दूसरी ओर दिल्ली में राजनैतिक संरक्षण प्राप्त कालिया नागों (औद्योगिक एवं अन्य प्रकार के प्रदूषण) से जीवनदायनी पुण्य सलिला यमुना दिल्ली से ही स्याह रूप धारण कर आगे बढ़ जाती है।

आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि यमुना की गंदगी को पिछले तीन दशकों में प्रकृति ने महज पांच बार ही धोया है। सितम्बर 1978 में यमुना का जलस्तर खतरे के निशान से काफी उपर (207.49 मीटर) था। इसके एक दशक बाद सितम्बर 1988 में जलस्तर 206.92 पहुंचा फिर सितम्बर 1995 में 206.83, सितम्बर 2008 में 206 मीटर फिर इस साल यह सितम्बर ही माह में 205.28 मीटर तक पहुंचा है।

यमुना में जलस्तर बढ़ने के साथ ही साथ इसकी गंदगी अपने आप ही बहकर आगे चली जाती है। विडम्बना ही कही जाएगी कि यमुना का जलस्तर जैसे जैसे कम होता है वैसे ही दिल्ली से निकलने वाली गंदगी इसे पुन: गंदे नाले में तब्दील कर देती है। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि राजनैतिक इच्छा शक्ति के अभाव में यमुना का पुनरूद्धार संभव नहीं हो पा रहा है।

यमुना नदी लंदन की टेम्स नदी नहीं बन सकती, मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की यह बात अक्षरश: सत्य है। यमुना में जलस्तर वर्तमान काफी अधिक है, यमुना की गंदगी इसके पानी में घुलकर दूर जा चुकी है। आने वाले दिनों में यमुना का जलस्तर कम होगा। यही सही मौका है, केंद्र और राज्य सरकार को चाहिए कि अगले साल होने वाले राष्ट्रमण्डल खेल और भविष्य को ध्यान में रखते हुए यमुना में गंदगी का प्रवाह रोकने की दिशा में कठोर कदम उठाए। हो सकता है कड़े कदम राजनैतिक प्रश्रय प्राप्त लोगों के लिए अप्रिय हों, पर बुखार उतारने के लिए ``कुनैन`` की कड़वी दवा खानी ही पड़ती है।

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त्योहारों में खलल डालने की तैयारी में हैं आतंकी संगठन

0 दुनिया के चौधरी ने चेताया पर्याटकों को

0 लंदन के अखबार ने भी किया खुलासा!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मुस्लिमों के पाक महीने रमजान की समाप्ति पर मनने वाली ईद और हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक दशहरा और दीपावली पर दुनिया भर में कहर बरपाने वाले आतंकवादी संगठन भारत में कहर बरपा सकते हैं। दुनिया के चौधरी अमेरिका ने भारत की ओर रूख करने वाले अमरिकी पर्याटकों को इस संबंध में चेतावनी जारी की है। इसके साथ ही साथ लंदन के प्रमुख अखबार संडे टेलीग्राफ ने भी इनकी हरकतों का खुलासा किया है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने बीते शनिवार को भारत यात्रा पर जाने वाले विजिटर्स को चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि ईद, दशहरा और दीपावली पर आतंकवादी संगठन हिन्दुस्तान की सरजमीं पर आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दे सकते हैं।
बताया जाता है कि अमेरिका के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी निर्देशों में कहा गया है कि सितम्बर और अक्टूबर माह में हिन्दुस्तान की यात्रा पर जाने वाले अमेरिकी नागरिकी बहुत ज्यादा एहतियात बरतें और यह कोशिश करें कि वे भीड़भाड़ वाले इलाकों से न केवल दूर रहें वरन् लोगों की नजरों में आने से भी बचें।

सूत्र बताते हैं कि अमेरिका ने पिछले साल नवंबर में मुंबई में हुए देश के सबसे बड़े आतंकवादी हमले का जिकर करते हुए कहा है कि होटल और सार्वजनिक स्थल आतंकवादियों की पहली पसंद होते हैं। यात्रा के दौरान उन्हें हिदायत दी गई है कि वे स्थानीय समाचार पत्रों में छपी खबरों का विशेष ध्यान रखें।

इसके साथ ही साथ होटल, रेस्टारेंट, एंटरटेनमेंट प्लेसेस, धार्मिक स्थानों एवं सार्वजनिक स्थानों में जाने के पूर्व वहां मौजूद सुरक्षा संसाधनों एवं उनके स्तर का भी विशेष ख्याल रखें।
उधर ब्रितनी अखबार संडे टेलीग्राफ ने भी आतंकवादियों की हरकतों का खुलासा करते हुए साफ किया है कि हिन्दुस्तान में 2001 में संसद में हुए हमले के लिए जिम्मेदार अतंकवादी संगठन ``जैश ए मोहम्मद`` एक बार फिर से किसी बड़ी घटना को अंजाम देने की तैयारी में है।

अखबार के मुताबिक इस संगठन ने पाकिस्तान के बहावलपुर कस्बे में अपना बेस केम्प बनाया हुआ है। केंप में जगह जगह पर भारत विरोधी नारे और लाल किले का नक्शा भी चिपकाने की बात अखबार द्वारा कही गई है। इसमें प्रकाशित खबर में कहा गया है कि केंप की दीवारों पर हिन्दुओं और यहूदियों के खिलाफ नारे भी बुलंद हैं।

संडे टेलीग्राफ ने आगे कहा है कि इस संगठन के लिए वहावलपुर कस्बा बड़ी ही मुफीद जगह है। यहां संचालित होने वाले एक हजार से अधिक मदरसों में जेहादी पाठ पढाया जा रहा है। गौरतलब होगा कि आईएसआई की मदद से अस्तित्व में आए इस संगठन का मुखिया मसूद अजहर है।

1999 में एक अपहृत विमान के यात्रियों को छोड़ने की कीमत पर अजहर को भारत सरकार द्वारा रिहा किया गया था। दुनिया के चौधरी अमेरिका ने इसे विदेशी आतंकवादी गुट करार दिया जा चुका है। दुनिया भर के दवाब के चलते पाकिस्तान ने इस संगठन पर 2002 में प्रतिबंध लगा दिया था।