शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

पवार उवाच ‘‘सड़ जाए अनाज पर मुफ्त नहीं बाटेंगे‘‘

भरे पेट लोगों को क्यों होने लगी भूखों की चिंता

भूखे पेट न हों भजन गोपाला

भुखमरी के आंकड़े हैं देश में भयावह

हजारों टन सड़ जाता है अनाज हर साल

लचर सरकारी सिस्टम है जवाबदार

(लिमटी खरे)

देश की सबसे बड़ी अदालत भले ही सरकार को फटकार लगाकर अनाज को सड़ने के बजाए गरीबों में मुफ्त बांटने की बात कह रही हो पर आधी सदी से ज्यादा देश पर राज करने वाली कांग्रेस के नेतृत्व में चल रही केंद्र सरकार के कानों में जूं रेंगने वाली नहीं। सर्वोच्च न्यायालय ने एक ही पखवाड़े में दो बार सरकार को आड़े हाथांे लेते हुए अनाज के मामले में टिप्पणी की है। पिछले महीने के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जिस देश में लोग भुखमरी का शिकार हो रहे हों वहां अन्न का एक भी दाना बरबाद नहीं होना चाहिए। अब सर्वोच्च न्यायालय ने देश में सड़ते अनाज पर सरकार को फटकारा है कि अनाज के सड़ने के बजाए उसे गरीबों में निशुल्क बांट दिया जाना चाहिए। वैसे भी अन्न की बरबादी एक बहुत ही बड़ा अपराध ही माना जाता है।

दुनिया भर के भूखे लोगों में हर पांचवा शख्स भारतीय है। भारत में तकरीबन पचास फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। इतना ही नहीं वर्ल्ड फुड प्रोग्राम का प्रतिवेदन बताता है कि देश के लगभग पच्चीस करोड़ लोग हर रात को आधे या भूखे पेट सोने को मजबूर हैं। भूख सब कुछ करवा देती है। देश में तेजी से बढ़ता अपराध का ग्राफ भी कमोबेश यही कहानी कह रहा है कि खाने को तरसने वाले खाने के जुगाड़ में हर स्तर पर उतरने को तैयार हैं।

सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा कानून बनाने पर विचार किया जा रहा है। यह खुशफहमी चंद दिनों के लिए जनता को हो सकती है कि उसके शासक उसकी दो वक्त की रोटी का इंतजाम करने जा रही है। यक्ष प्रश्न यह है कि कानून बनाने से भला क्या फायदा जब उसका पालन ही सुनिश्चित न हो। शिक्षा के अधिकार कानून के बाद कितने राज्यों में इसे लागू किया गया है। और छोडिए जनाब यह बताईए कि केंद्रीय स्तर पर चल रही शिक्षण संस्थाओं में आरटीई के क्या हाल हैं?

कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में लोक लुभावन वादों के तहत यह भी कहा था कि गरीबी रेखा के नीचे (बीपीएल) जीवन यापन करने वाले परिवारों को हर माह तीन रूपए की दर से पच्चीस किलो चावल उपलब्ध करवाएगी। यूपीए सरकार का यह दूसरा कार्यकाल का दूसरा साल है, पर बीपीएल परिवार आज भी दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद में ही उलझा हुआ है। सवाल यह है कि बीपीएल का आधार क्या है, किस लक्ष्मण रेखा के पार रहने वालों को बीपीएल माना जाए। देखा जाए तो संपन्न और ताकतवर लोग बीपीएल की सूची में अपना नाम दर्ज करवाकर सारे लाभ उठा रहे हैं, और वास्तविक बीपीएल आज भी कमर तोड़ मंहगाई में उलझा हुआ है।

इस सब पर अनाज सड़ने की खबरें जले पर नमक का ही काम करती हैं। एक ओर खाने को नहीं है दाना और दूसरी ओर हजारों टन अनाज को रख रखाव के अभाव में सड़वा दिया गया। कुछ साल पहले केंद्र सरकार के कृषि विभाग ने निजी तौर पर वेयर हाउस बनवाने के लिए तगड़ी सब्सीडी की घोषणा की थी। साधन और पहुंच सम्पन्न लोगों ने इस योजना का लाभ उठाकर अपने बड़े बड़े गोदाम अवश्य बनवा लिए। अनेक गोदाम तो महज कागजों पर ही बन गए और सब्सीडी डकार ली गई। सवाल फिर वही खडा हुआ है कि इन गोदामों को बनाने के लिए सरकार ने अपनी ओर से राशि क्यों दी थी, जाहिर है अनाज को सड़ने से बचाने के लिए इन वेयर हाउस को सरकार किराए पर लेती। सरकार को चाहिए था कि सब्सीडी देते समय ही इस बात की शर्त रख दी जाती कि बारिश के चार माहों के साथ आधे साल के लिए इन गोदामों को सरकार को किराए पर देना वेयर हाउस मालिक के लिए आवश्यक होगा, तभी सब्सीडी दी जाएगी। अगर एसा होता तो आज देश भर की कृषि उपज मंडियों के प्रांगड में पड़ा अनाज सड़ा न होता।

एसा नहीं है कि अनाज पहली बार सड़ा हो। साल दर साल अनाज के सड़ने की खबरें आम हो रही हैं। पिछले साल ही पश्चिम बंगाल के एक बंदरगाह पर अरबों रूपए की आयतित दाल सड़ गई थी। किसान के खून पसीने से सींचे गए अनाज के दानों को सरकार संभाल नहीं पाती है। एक अनुमान के अनुसार हर सल करीब पचास हजार करोड़ रूपए का अनाज सरकारी कुप्रबंध के कारण मानव तो क्या मवेशी के खाने के लायक भी नहीं बचता है। अमूमन बफर स्टाक के चलते सरकार द्वारा जरूरत से ज्यादा अनाज खरीद लिया जाता है, पर उसके रख रखाव के अभाव में यह सड़ जाता है।

जब अनाज के सड़ने की खबरें बाजार में आती हैं तो कालाबाजारी करने वाले जमाखोरों के चेहरों पर रोनक आ जाती है। जमाखोरों द्वारा इन स्थितियों में बाजार में जिंस की कृत्रिम किल्लत पैदा कर तबियत से मुनाफा कमाया जाता है। दरअसल भारतीय खाद्य निगम की व्यवस्थाओं में ही खोट है। भारतीय खाद्य निगम ने जगह जगह अपने गोदाम अवश्य बनाए हैं पर वे नाकाफी ही हैं। सरकार को चाहिए कि कृषि विभाग से अनुदान पाकर गोदाम बनवाने वालों की सूची जिला स्तर पर बनवाई जाए और उनका किराया निर्धारित कर हर जिले के कलेक्टर पर यह जवाबदारी डाली जाए कि उस जिले की कृषि उपज मंडियों के माध्यम से की जाने वाली सरकारी अनाज की खरीद के सुरक्षित रख रखाव का जिम्मा जिला कलेक्टर का ही होगा। अगर केंद्र सरकार द्वारा इस तरह का कड़ा कदम उठा लिया गया तो अनाज की बरबादी काफी हद तक रोकी जा सकती है।

वैसे अनाज के सुरक्षित भण्डारण के लिए कंेद्र सरकार को चाहिए कि वह राज्यों को वित्तीय सहायता मुहैया करवाकर राज्यों की जवाबदेही भी सुनिश्चित करे। जिलों में पदस्थ जिलाधिकारी चूंकि अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी होते हैं, इस लिहाज से वे केंद्र सरकार के अधीन भी होते हैं, पर दूसरी तरफ देखा जाए तो जिला कलेक्टर सीधे सीधे राज्य शासन के प्रति जवाबदेह ज्यादा होते हैं, इस तरह जिला कलेक्टर पूरी तरह राज्यों के नियंत्रण में हुआ करते हैं। देखा जाए तो अनाज के सड़ने के लिए राज्यों की सरकारें भी कम जवाबदेह नहीं हैं। अमूमन राज्य सरकारें समय पर अपना निर्धारित कोटा नहीं उठाती हैं, इसीलिए अनाज सड़ भण्डारण के अभाव में सड़ जाता है। गरीब गुरबों के लिए आंसू बहाने वाली राज्य सरकारें इस दिशा में पूरी तरह से लापरवाह ही हैं।

इधर अनाज के सड़ने की खबर से देश की सबसे बड़ी अदालत का आक्रोश लोगों को दिखा वहीं सियासत के धनी केंद्रीय कृषि मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार कह रहे हैं कि खाद्यान्न सड़ने की खबरों को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जा रहा है। शरद पवार का कथन और राज्य सभा में कृषि राज्य मंत्री प्रो.के.वी.थामस के दिए वक्तव्य में असमानता ही दिख रही है। अब केंद्रीय कृषि मंत्री का नया बयान आ गया है कि भले ही बर्बाद हो जाए अनाज पर गरीबों के मुफ्त में इसे नहीं बांटा जा सकता है। खुद कृषि मंत्री ने पिछले महीने ही लोकसभा में जानकारी दी थी कि 6 करोड़ 86 लाख रूपए मूल्य का 11 हजार 700 टन अनाज बर्बाद हो गया।

देश का कृषि मंत्रालय निर्दलीय पी.राजीव और के.एन.बालगोपाल के पूछे प्रश्न पर उत्तर देते हुए कहता है कि देश में एफसीआई के गोदामों में कुल 11 लाख 708 टन अनाज खराब हुआ है। 01 जुलाई 2010 की स्थिति के अनुसार भारतीय खाद्य निगम के विभिन्न गोदामों में 11,708 टन गेंहू और चावल खराब हो गया। पिछले साल 2010 टन गेहूं और 3680 टन चावल खराब हुआ था। 2008 - 2009 में 947 टन गेंहू और 19,163 टन चावल बरबाद हुआ था। वर्ष 2007 - 2008 में 924 टन गेंहू और 32 हजार 615 टन चावल खराब हुआ था। इस तरह देखा जाए तो तीन सालों में देश के एफसीआई के गोदाम कुल 3881 टन गेंहू और 55 हजार 458 टन चावल खराब हुआ था। इस तरह इस साल 01 जुलाई तक के खराब हुए अनाज को अगर मिला लिया जाए तो चार सालांे में देश में सरकारी स्तर पर कुल 71 हजार 47 टन अनाज बरबाद हुआ है।

सरकार चाहे केंद्र की हो राज्यों की हर कोई बस गरीब गुरबों की चिंता में दुबले होने का स्वांग ही किया करते हैं। वस्तुतः गरीब गुरबों की फिकर किसी को भी नहीं है। देश के नौकरशाह और जनसेवक जब विलासिता भरी जिंदगी जी रहे हों, उनके वेतन भत्ते आसमान को छू रहे हों, और उनका पेट भरा हो तो भला फिर उन्हें क्यों गरीब गुरबों की फिकर होने लगी। हां वे चिंता जरूर जताते हैं, पर वह चिंता सिर्फ दिखावटी ही होती है, क्योंकि अगर उन्होंने चिंता जताने का दिखावा नहीं किया तो चुनावों के दौरान उन्हें वोट क्यों देगी यही जनता।

राज्‍यों से छिनेगा शिक्षकों की भर्ती का मामला

शिक्षा का अधिकार कानून के प्रति संजीदा हुई केंद्र सरकार

सूबाई सियासत से शिक्षक भर्ती प्रक्रिया अलग करने की कवायद

प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिश को अमली जामा पहनाया एचआरडी ने

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 20 अगस्त। शिक्षा का अधिकार कानून के लागू होने के बाद केंद्र और राज्य सरकारांे के बीच चल रही रस्साकशी के बीच अब केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों के हाथ से शिक्षकों की भर्ती को अलग करने का फरमान जारी कर दिया है। केंद्र सरकार ने एक परिपत्र जारी कर राज्य सरकारों से कहा है कि वे अपने अपने सूबों में शिक्षकों की नियुक्ति का काम अलग संस्थानों के माध्यम से करवाएं।

केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा राज्यों को जारी एक पत्र में कहा गया है कि राज्यों की सरकारें शिक्षक भर्ती बोर्ड का गठन कर शिक्षकांे की भर्ती के काम को अपने से अलग करंे। इससे शिक्षकों की गुणवत्ता को बरकरार रखने के साथ ही साथ शालाओं में रिक्त पदों की संख्या में कमी आएगी और भर्ती प्रक्रिया को सुचारू बनाया जा सकेगा।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि कुछ समय पूर्व अस्तित्व में आई किन्तु धूल खा रही प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशों को लागू करना अब जरूरी हो गया है। सूबाई सरकारें शिक्षकांे की नियुक्ति तो करती हैं, किन्तु उसके पास शिक्षकों व्यापक स्तर पर भर्ती के लिए बुनियादी तंत्र ही मौजूद नहीं है।

गौरतलब है कि राज्य सरकारों द्वारा अपनाई जाने वाली भर्ती प्रक्रिया में भाई भतीजावाद और भ्रष्टाचार की गूंज होती रही है। इनमें गड़बड़ी होने से मामला कोर्ट कचहरी में सालों साल उलझा रहता है, साथ ही साथ अप्रशिक्षित और अयोग्य लोगों को इसमें मौका मिल जाता है जिससे योग्य और प्रशिक्षित शिक्षक निजी शालाओं में हजार से तीन हजार रूपए तक की नौकरी करने पर मजबूर हो जाते हैं।

वैसे भी शिक्षा का अधिकार कानून के लागू होने के बाद राज्यों की सरकारें शिक्षकों की भर्ती में पूरी तरह नाकाम रही हैं। यही कारण है कि देश में आज भी आठ लाख से अधिक शिक्षकों की कमी है। केंद्र सरकार ने इस कमी और राज्यों की भर्ती प्रक्रिया को देखते हुए कहा है कि सरकारें इसके लिए स्वायत्त एजेंसी अथवा बोर्ड का गठन करे, और इस प्रक्रिया से खुद को प्रथक रखें। इस प्रक्रिया में शिक्षकों की भर्ती बारह माह जारी रहेगी। इसमें भर्ती की प्रक्रिया बेंकिंग भर्ती बोर्ड और रेल्वे भर्ती बोर्ड की तर्ज पर रखी जाने की उम्मीद है।

गरीब बुनकरों से क्‍या बुराई है कांग्रेस की

बुनकरों के हाथ काटने की तैयारी में कांग्रेस

चरखा अब चलेगा सौर उर्जा से

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 20 अगस्त। पता नहीं क्यों सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस के गौरवशाली शालका पुरूष रहे राष्ट्रपिता महत्मा गांधी कांग्रेस के नए निजामों के निशाने पर हैं? पहले गांधी जयंती पर केंद्र सरकार द्वारा खादी को प्रोत्साहित करने वाली 20 फीसदी की छूट को समाप्त कर दिया अब आजादी की लड़ाई में चरखा चलाकर स्वदेशी का संदेश देने के कार्यक्रम पर कांग्रेस की नजर लग गई है। आने वाले समय में बुनकरों के द्वारा चलाए जाने वाला चरखा सौर उर्जा या बिजली से चलाया जाएगा।

कांग्रेस के नए निजाम चरखे के स्वरूप और चरित्र को ही बदलने का ताना बाना बुन रहे हैं जो देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के शब्दों में ‘‘आजादी का बाना‘‘ था। गौरतलब होगा कि महत्मा गांधी ने अहिंसा आंदोलन में खादी और चरखे को रचनात्मकता के साथ स्वराज आंदोलन का एक प्रतीक बनाया था। बापू ने उस समय देश के लगभग तीस हजार गांव के 20 लाख बुनकरों को एक सूत्र में पिरोकर आजादी की अहिंसक लड़ाई के लिए प्रोत्साहित किया था।

हालात देखकर यह लगने लगा है कि देश पर आजादी के उपरांत आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेसनीत केंद्र सरकार द्वारा महात्मा गांधी के द्वारा प्रेरित खादी कार्यक्रम को समूल ही नष्ट करने की जुगत लगाई जा रही है। खादी संस्थाएं केंद्र सरकार के इस कदम के खिलाफ खड़ी नजर आ रही हैं। संस्थाओं का मानना है कि अगर चरखे को बिजली या सौर उर्जा से चलाया जाएगा तो हाथ से तैयार सूत और मिलों में तैयार सूत में क्या अंतर रह जाएगा।

गौरतलब होगा कि खादी के उत्पादन पर विशेष जोर देने वाले मोहन दास करम चंद गांधी ने खादी के उत्पादन में किसी भी तरह की मशीन की इजाजत नहीं दी थी। वैसे भी अगर खादी उत्पादन में मशीनों का प्रयोग होने लगेगा तो बुनकरों के सामने आजीविका की जबर्दस्त समस्या खड़ी होने की उम्मीद है, क्योंकि बिजली या सौर उर्जा से चलने वाला चरखा निस्संदेह कम से कम दस बुनकरों के हाथ का काम छीन लेगा।

उल्लेखनीय होगा कि चरखे से सूत कातकर खादी का निर्माण कुटीर उद्योगों की श्रेणी में आता है, और इससे अशिक्षित भी इसका प्रयोग कर अपनी आजीविका चला सकता है। इसके लिए अधिक मेहनत की आवश्यक्ता भी नहीं होती है। यह काम घरेलू महिलाएं भी अपने खाली समय में आसानी से कर सकती हैं। अस्सी के दशक के आरंभ तक देश के विद्यालयों में क्राफ्ट का एक कालखण्ड होता था, जिसमें बच्चों को कतली पोनी और चरखे के माध्यम से कपास से सूत कातना सिखाया जाता था, कालांतर में चरखा और कतली पोनी इतिहास की वस्तु हो बन गई हैं।

एक तरफ गुजरात के ब्रांड एम्बेसडर और सदी के महानायक गुजरात में बापू के आश्रम में जाकर चरखा चलाकर खादी अपनाने का संदेश दे रहे हैं, दूसरी ओर कांग्रेसनीत केंद्र सरकार द्वारा गरीब बुनकरों के हाथ काटने के पुख्ता इंतजाम किए जा रहे हैं, जिसकी निंदा और विरोध किया जाना चाहिए। वैसे भी कल तक जनसेवकों की पहली पसंद मानी जाने वाली खादी का स्थान अब टेरीकाट, पालिस्टर जीन्स, कार्टराईज आदि ने ले लिया है।

फिल्‍म समीक्षा : लफंगे परिंदे

लफंगे परिंदे : अनोखी प्रेम कहानी

लफंगे परिंदे कहानी है मुंबई की गलियों में रहने वाले युवाओं के एक समूह की, जो स्टाइल का दीवाना है, जिनमें एटिट्यूड है और सितारों तक पहुँचने की चाह है। साथ ही यह नंदू (नील नितिन मुकेश) और पिंकी (दीपिका पादुकोण) की प्रेम कहानी भी है जो दोस्त से प्रेमी बन जाते हैं।

नंदू बड़ा अजीब इंसान है। ऐसा लगता है कि वह फाइट करने के लिए ही पैदा हुआ है। उसे वन-शॉट नंदू कहा जाता है। गलियों में होने वाली फाइटिंग में उसका कोई मुकाबला नहीं है। जीतने के लिए वह क्रूर और जंगली बन जाता है। आँखों पर पट्टी बाँधकर वह बॉक्सिंग की रिंग में अपने प्रतिद्वंद्वी को नॉक आउट कर देता है। यह वन शॉट अपनी शर्तों पर जिंदगी जीता है और अपने दोस्तों के बीच हीरो है। पिंकी से मुलाकात होते ही अचानक सब कुछ बदलने लगता है।

अब बात करते है पिंकी पालकर की। वह दृष्टिहीन है, लेकिन किसी से कम नहीं। उसे टेलेंट का पॉवरहाउस कहा जाता है। एक मॉल में वह बोरिंग-सा ‘9 टू 5’ जॉब करती है। स्केट पहन कर वह शानदार डांस करती है। प्रतिभाशाली, मजबूत इरादे वाली इस लड़की के ऊँचे सपने हैं। शख्सियत उसकी ऐसी है कि ज्यादातर लोग उससे घबराते हैं। उसकी इच्छा है कि वह अपने इलाके के ‘लूज़र्स’ से ऊँचा उठकर खुद अपनी एक जगह बनाए। अपने टेलेंट के जरिये साबित कर सके कि वह भी जिंदगी की दौड़ में जीत सकती है। इस राह में उसकी एक छोटी सी प्राब्लम है वह उसका अंधा होना।

‘लफंगे परिंदे’ एक आँखों पर पट्टी बाँधकर लड़ने वाले स्ट्रीट फाइटर और दृष्टिहीन डांसर की कहानी है जो अपने चार दोस्तों के साथ असंभव को हासिल करने की यात्रा पर निकलते हैं। अब तो ये फिल्म ही बताएगी।



स्टारकास्ट



बैनर : यशराज फिल्म्स

निर्माता : आदित्य चोपड़ा

निर्देशक : प्रदीप सरकार

संगीत : आर. आनंद

कलाकार : नील नितिन मुकेश, दीपिका पादुकोण

फोरलेन विवाद का सच ------------ 12


दिल्ली में गूंजा सिवनी का फोरलेन का विवाद

गुरूवार को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पत्रकार वार्ता में कहा कि सिवनी के साथ केंद्र सरकार अन्याय कर रही है। मुख्यमंत्री ने कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार पर आरोप लगाया है कि वह सन 1545 में शेरशाह सूरी द्वारा बनाए गए एतिहासिक महत्व के मार्ग को बंद करने का षणयंत्र रच रही है। जब इस मामले में मुख्यमंत्री के समक्ष सिवनी के तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि के द्वारा 18 दिसंबर को जारी आदेश के बारे में पूछा गया तो मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार ही इसे रोक रही है, जिला कलेक्टर का आदेश कब का है, इस बारे में उन्हें जानकारी नहीं है। इसके उपरांत जब दस्तावेज उनके समक्ष रखे गए तो मुख्यमंत्री ने दस्तावेज अपने पास रखकर इस मामले को गंभीरता से देखने की बात की है।

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 19 अगस्त। ‘‘कांग्रेसनीत केंद्र सरकार द्वारा मध्य प्रदेश के साथ अन्याय किया जा रहा है। मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार है। अगर केंद्र सरकार को भाजपा से कोई गिला शिकवा है तो वह भाजपा के साथ अपना संघर्ष करे, किन्तु मध्य प्रदेश की साढ़े छः करोड़ गरीब जनता के साथ अन्याय करने का उसे कोई अधिकार नहीं है। देश में संघीय व्यवस्था लागू है, हम भीख नहीं अपना अधिकार मांग रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा कोयला, खाद्यान्न, इंदिरा आवास, सड़क आदि सभी मामलों मंें मध्य प्रदेश के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। एक षणयंत्र के तहत सन 1545 में बनाए गई सड़क को सिवनी जिले के पेंच के उद्यान के बहाने से समाप्त करना चाह रही है।‘‘ उक्ताशय की बात आज मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश भवन में आयोजित पत्रकार वार्ता में कही।

मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा मध्य प्रदेश के विद्युत तापग्रहों 170 लाख मीट्रिक टन कोयले के स्थान पर महज 136 मीट्रिक टन कोयला ही प्रदाय किया जा रहा है। यही कारण है कि मध्य प्रदेश में बिजली के उत्पादन में वर्ष 2009-2010 में 539.71 मिलियन यूनिट और 01 अप्रेल से 18 अगस्त तक 535.65 यूनिट की कमी आई है। मध्य प्रदेश की खदानों का कोयला अन्य राज्यों को दे दिया जा रहा है, और मध्य प्रदेश को अन्य राज्यों से कोयले की आपूर्ति किए जाने को अव्यवहारिक बताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि कोयले के आवंटन का युक्तियुक्तकरण होना अनिवार्य है।

शिवराज सिंह चौहान ने आगे कहा कि गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों की तादाद अंत्योदय कार्ड सहित मध्य प्रदेश में 67 लाख 70 हजार है, किन्तु भारत सरकार द्वारा महज 41 लाख 25 हजार लोगों को ही बीपीएल मानकर अनाज मुहैया करवाया जा रहा है, जिससे 26 लाख 45 हजार परिवार आज भी 35 किलो प्रति परिवार की दर से अनाज पाने से वंचित हैं। श्री सिंह ने कहा कि योजना आयोग के सदस्य सुरेश तेंदुलकर की अध्यक्षता वाली समिति ने अपने प्रतिवेदन में सूबे के 48.6 फीसदी लोगबों को निर्धन बताया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए उन्होने कहा कि एक ओर तो अनाज सड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार जरूरत मंदों के नाम सूची से काटकर उन्हें अनाज से वंचित कर रही है।

इंदिरा आवास के बारे में मुख्यमंत्री ने कहा कि इस योजना में तो केंद्र सरकार ने पक्षपात की सारी हदें ही पार कर दी हैं। राज्यों के लिए लक्ष्यों का निर्धारण जनगणना के आधार पर किया जाता है। असम की आबादी दो करोड़ 32 लाख है वहां 22 लाख 41 हजार, और एम पी में जहां चार करोड़ 43 लाख ग्रामीण आबादी होने के बाद भी आवासों की कमी महज दो लाख आठ हजार ही बताई जा रही है।

सड़कों की चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के कार्यकाल में बनाई गई प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत मध्य प्रदेश ने 26 हजार 578 किलोमीटर सड़कों का निर्माण किया है, जो अपने आप में एक रिकार्ड है। मध्य प्रदेश सड़कों के मामले में सदा ही नंबर वन रहा है। पत्रकारों ने जब भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के द्वारा मध्य प्रदेश को पर्याप्त सहयोग देने की बात और उस दौरान मध्य प्रदेश के लोक कर्म मंत्री के उनके साथ खड़े होकर हां में हां मिलाने की बात कही गई तब मुख्यमंत्री ने कहा कि लोक निर्माण मंत्री क्या हम भी उनके साथ बैठते हैं, पर सच्चाई यह है कि मध्य प्रदेश के लिए जितनी सड़कें दी गईं हैं, वे कुछ जिलों तक ही सीमित हैं। साथ ही साथ इसके लिए आठ सौ करोड़ रूपए की राकि स्वीकृत किए हैं, पर आवंटन मिला है महज 193 करोड़ रूपए ही।

उत्तर दक्षिण गलियारे के बारे में चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि शेर शाह सूरी के जमाने के एतिहासिक महत्व के इस राजमार्ग को पेंच नेशनल पार्क के नाम पर षणयंत्र कर केंद्र सरकार द्वारा सिवनी जिले के लोगों के साथ सरासर अन्याय किया जा रहा है। जब मुख्यमंत्री से यह पूछा गया कि काम को तो सिवनी के तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि के आदेशों से रोका गया है, तो उन्होंन कहा कि इस बारे में उन्हें पता नहीं है कि किस पत्र की बात की जा रही है।

पत्रकार वार्ता के उपरांत पत्रकार लिमटी खरे ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से सिवनी जिले के साथ होने वाले अन्याय पर विस्तार से चर्चा की और इस मामले के हर पहलू से मुख्यमंत्री को आवगत कराया। मुख्यमंत्री को कागज दिखाकर श्री खरे ने बताया कि वनमण्डलाधिकारी दक्षिण सिवनी सामान्य वन मण्डल और जिला कलेक्टर के तत्कालीन आदेश दिखाकर उन्हें वास्तविकता बताइ्र गई कि गैर वन भूमि पर सड़क निर्माण का काम किस कारण रूका है। साथ ही यह भी बताया गया कि चूंकि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण विभाग द्वारा इस मामले में अभी तक अपनी सहमति देते हुए अनुमति प्रदान नहीं की गई है, इस कारण वन भूमि पर काम आरंभ नहीं किया जा सकता है। मुख्यमंत्री ने बात को गंभीरता से सुनते हुए सारे प्रपत्र अपने पास रखकर इस मामले में ठोस कार्यवाही करने का आश्वासन दिया। इस दौरान मुख्यमंत्री के साथ मध्य प्रदेश के भाजपाध्यक्ष प्रभात झा भी मौजूद थे।