शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

बडबोलों के सामने असहाय सोनिया

सोनिया के हाथों से फिसलती कांग्रेस की सत्ता

बडबोले कांग्रेसजन बढा रहे आलाकमान की मुसीबत

बार बार रोकने के बाद भी नहीं रूक रही अनर्गल बयानबाजी

कांग्रेसी नेताओं के मुंह में नहीं लग पा रहा ढक्कन

(लिमटी खरे)

अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का इतिहास बहुत ही वृहद और गौरवशाली है। भारत गणराज्य की कल्पना कांग्रेस के बिना किया जाना बेमानी ही होगा। देश की आजादी में महती भूमिका निभाने वाली कांग्रेस यह दंभ भरती है कि वह इकलौती एसी राजनैतिक पार्टी है, जिसका इतिहास सवा सौ साल पुराना है। इसके साथ ही साथ कांग्रेस ने भारत गणराज्य में आजादी के उपरांत आधी सदी से अधिक राज किया है। पिछले एक दशक से अधिक समय हो गया है, जबकि कांग्रेस की बागडोर नेहरू गांधी परिवार की इटली मूल की श्रीमति सोनिया गांधी के हाथों में सौंपी गई थी।

पहले पहल तो लगा मानो श्रीमति सोनिया गांधी गूंगी गुडिया हों, पर समय के साथ उनके तेवर देखकर लोग उनकी तुलना पूर्व प्रधानमंत्री स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी से करने लगे। इक्कसवीं सदी में प्रवेश के साथ ही कांग्रेस में अनुशासनहीनता, उच्चश्रंखलता और मनमानी हावी होने लगी। आज तो आलम यह हो गया है कि क्या कांग्रेस का अदना सा कार्यकर्ता और क्या भारत गणराज्य का जिम्मेदार मंत्री, हर कोई एक दूसरे पर कीचड उछालकर एक दूसरे के दामन को गंदा करने का प्रयास कर रहा है। वस्तुतः एसा करके वे अपने प्रतिद्वंदी या विरोधी के दामन को नहीं वरन् कांग्रेस के दामन को ही दागदार करने पर आमदा हैं।

कांग्रेस में बडबोलेपन की संस्कृति को आगे बढाया है, मनमोहन सरकार के दूसरे कार्यकाल में कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के चहेते विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर ने। राजनयिक से जनसेवक बने शशि थरूर ने इंटरनेट की सोशल नेटवर्किंग वेव साईट पर भारत सरकार की धज्जियां जमकर उडाईं, और प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह सहित कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी चुपचाप सब कुछ देखती सुनतीं रहीं।

पानी जब सर के उपर आया तब कांग्रेस चेती और आईपीएल विवादों के चलते शशि थरूर को बाहर का रास्ता दिखाया गया, किन्तु तब तक भारत गणराज्य में केंद्र सरकार की जितनी भद्द पिटनी थी, पिट चुकी थी। कांग्रेस में मंत्रियों के बीच जमकर रार छिडी हुई है। भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ जब पिछली मर्तबा वाणिज्य उद्योग मंत्री थे, उस वक्त वन एवं पर्यावरण मंत्री का दायित्व संभालने वाले वर्तमान मंत्री जयराम रमेश उनके मातहत राज्य मंत्री हुआ करते थे। उस दौरान कमल नाथ और रमेश के बीच रिश्ते बहुत अच्छे नहीं बताए जाते थे।

आज कमल नाथ और रमेश आमने सामने हैं। कमल नाथ के भूतल परिवहन मंत्रालय की परियोजनाओं को सीधे सीधे लाल झंडी दिखा रहे हैं, जयराम रमेश। संभवतः जयराम रमेश इस मुगालते मंे हैं कि कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र मध्य प्रदेश के छिंदवाडा से होकर गुजर रहा है अटल बिहारी बाजपेयी सरकार की महात्वाकांक्षी स्वर्णिम चतुर्भुज योजना का अंग उत्तर दक्षिण गलियारा। यही कारण है कि इस मार्ग में पेंच नेशलन पार्क का मामला फदका दिया गया है। वास्तविकता यह है कि यह सडक छिंदवाडा के बजाए सिवनी से होकर गुजर रही है जो परिसीमन में समाप्त हुई लोकसभा सीट थी, और वर्तमान में मण्डला एवं बालाघाट संसदीय क्षेत्र में समाहित हो चुकी है।

इसके अलावा योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया और भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ आपस में उलझे हैं। एक का कहना है कि सडकें बनाने वाले सरकार नहीं चलाते तो दूसरा उन पर कटाक्ष करने से नहीं चूक रहा है। वन मंत्री जयराम रमेश ने कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जयस्वाल के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। मंत्रियों के आपस में उलझे होने का लाभ नितिन गडकरी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी भी उठाने में सक्षम नहीं दिखाई दे रही है। भारत गणराज्य में जब शीर्ष स्तर पर अराजकता का माहौल है, और प्रजातंत्र के सारे स्तंभ गहन निंद्रा में हैं तो भारत में आवाम ए हिन्द का उपर वाला ही मालिक है।

गौरतलब होगा कि पिछले कई माहों से बटाला हाउस गोलीकाण्ड, नक्सलवाद, अलगाववाद, आतंकवाद, बीटी बैगन, भोपाल गैस त्रासदी, परमाणु दायित्व विधेयक, मंहगाई, किसानों की आत्महत्याओं आदि जैसे संवेदनशील विषयों पर गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम, कांग्रेस के सबसे ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह, केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ, वन मंत्री जयराम रमेश, शशि थरूर, पृथ्वीराज चव्हाण, मणिशंकर अय्यर आदि की विरोधाभासी बयानबाजी ने कांग्रेस आलाकमान की पेशानी पर पसीने की बूंदे छलका दी हैं।

हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि आज कांग्रेस में अनुशासन के चिथडे बुरी तरह उड चुके हैं। हालात देखकर लगने लगा है कि पचास साल से ज्यादा देश पर राज करने वाली कांग्रेस की दस साल से ज्यादा समय से अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के हाथ से सत्ता फिसलती जा रही है। सवा सौ साल के स्वर्णिम इतिहास को अपने दामन में संजोने वाली कांग्रेस के लिए इससे ज्यादा शर्म की बात और क्या हो सकती है भारत गणराज्य के जिम्मेदार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज डॉ.मनमोहन सिंह कई मर्तबा साफ साफ तौर पर मंत्रियों को अनर्गल बयानबाजी रोकने के लिए निर्देशित कर चुके हैं फिर भी मंत्री हैं कि मानने को तैयार नहीं हैं।

जब पानी सर के उपर आया तब एक बार फिर कांग्रेस की राजमाता को जागना पडा। अब कांग्रेस के महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने मीडिया विभाग के अध्यक्ष की हैसियत से कांग्रेस के पदाधिकारियों को मशविरा दिया है कि वे मीडिया से मुखातिब होते वक्त इस बात का विशेष ध्यान रखें कि वे जो भी बयान दें वह उनसे संबंधित विषय ही हो। अब देखना यह है कि बडबोले कांग्रेस के पदाधिकारी और मंत्री अपने अध्यक्ष के इस परोक्ष फरमान का कितना सम्मान कर पाते हैं।

कमल नाथ की खामोशी का राज

सडक निर्माण के लिए कटिबद्ध कमल नाथ सिवनी के नाम पर क्यों रहते हैं खामोश
 
विवाद से परे रहने का दावा करने वाले नाथ सिवनी के मामले में क्यों नहीं देते बयान
 
(लिमटी खरे)

सिवनी 23 जुलाई। वाकई कमल नाथ एक एसी शक्सियत का नाम है, जो अपने आपको हर स्थिति, परिस्थिति, वातावरण आदि में ढालकर शिखर पर ही रहने का आदी है। वे चाहे वन एवं पर्यावरण मंत्री रहे हों, वस्त्र अथवा वाणिज्य और उद्योग, कमल नाथ की सकारात्मक सोच के चलते भारत गणराज्य के नागरिक इन विभागों की कार्यप्रणाली से परिचित हो सके हैं, वरना तो ये विभाग गुमनामी के अंधेरे में ही रहे हैं। वर्तमान में केंद्र में भूतल परिवहन मंत्रालय (इतिहास में पहली बार इस विभाग से जहाजरानी को प्रथक किया गया है) की महती जवाबदारी  कमल नाथ ने सडकों के निर्माण के प्रति अपनी कटिबद्धता जाहिर कर अपने स्वभाव के अनुरूप ही काम किया है।
 
मीडिया को जब तब दिए साक्षात्कार में कमल नाथ ने साफ किया है कि वे किसी तरह के विवाद में पडना नहीं चाहते। वे मध्य प्रदेश के छिंदवाडा जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं, सो उनकी पहली प्राथमिकता प्रदेश के विकास की है। उन्हें इस बात से कोेई लेना देना नहीं है कि मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार है या किसी अन्य पार्टी की। कमल नाथ की विकास की इस सोच के आगे तो हर कोेई नतमस्तक ही हो जाए।
 
राजनैतिक वीथिकाओं में यह प्रश्न रह रह कर घुमड रहा है कि इसके पहले जब कमल नाथ केंद्र में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय का प्रभार संभाले हुए थे, तब भी मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार रही है। कमल नाथ की किचिन केबनेट से छन छन कर बाहर आ रही खबरों के अनुसार तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती, बाबू लाल गौर और वर्तमान निजाम शिवराज सिंह चौहान भी कमल नाथ के घर ‘‘डिनर पालीटिक्स‘‘ में शिरकत कर चुके हैं। एसी परिस्थिति में उद्योग धंधों के मामलों में मध्य प्रदेश विशेषकर महाकौशल में आने वाला उनका संसदीय क्षेत्र छिंदवाडा जिला क्यों पिछडा है।
 
बहरहाल कमल नाथ ने मध्य प्रदेश में सडकों के निर्माण, रखरखाव आदि के लिए केंद्र से खजाना खोल दिया है। कमल नाथ महाकौशल के नेता माने जाते हैं सो महाकौशल क्षेत्र में नरसिंहपुर से बरास्ता छिंदवाडा, नागपुर मार्ग मण्डला से छत्तीसगढ जाने वाले मार्ग के साथ ही साथ बालाघाट जिले के लिए 125.90 किलोमीटर सडक के चौडीकरण और सुदृढीकरण के लिए सौ करोड सोलह लाख का आवंटन गत वर्ष जारी किया है, साथ ही 140 करोड रूपए लागत से दो सडकों का निर्माण भी प्रस्तावित है।
 
यह तो हुई माईनस सिवनी महाकौशल में सडकों का जाल बिछाने की बात। सिवनी की जनता भी कमल नाथ से यह पूछना चाह रही है कि क्या महाकौशल के नक्शे से कमल नाथ ने सिवनी जिले को बाहर कर दिया है? अगर नहीं तो फिर क्या कारण है कि कमल नाथ ने रमेश जैन, हरवंश सिंह, स्व.रणधीर सिंह, राजकुमार खुराना, प्रसन्न चंद मालू के चुनावों में अपनी लुभावनी घोषणाअें के दरम्यान अपनी गोद में बिठाए सिवनी के साथ आज तक सौतेला व्यवहार क्यों किया जा रहा है? क्या कमल नाथ या उनके समर्थकों के पास इसका जवाब है कि आज तक सिवनी जिले के लिए कमल नाथ ने क्या दिया है? जाहिर है उत्तर नकारात्मक ही आएगा।
 
बहरहाल जहां तक रही कमल नाथ के नेतृत्व वाले भूतल परिवहन मंत्रालय की बात तो जब माननीय सर्वोच्च न्यायालय में लखनादौन के पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष दिनेश राय के सामने ही माननीय न्यायधीशों द्वारा यह कह दिया गया है न तो न्यायालय ने इस मार्ग को रोकने का कोई आदेश दिया है और न ही इसे बनाने में उसे कोई आपत्ति है, तब कमल नाथ निर्माण एजेंसी एनएचएआई और ठेकेदार सद्भाव और मीनाक्षी कंस्ट्रक्शन को काम चालू करने दवाब क्यों नहीं बना रहे हैं।

मीडिया में आकर कमल नाथ यह साबित करने का प्रयास अवश्य ही कर रहे हों कि वे मध्य प्रदेश के विकास के प्रति संजीदा हैं, और मध्य प्रदेश में सडकों का जाल बिछ जाए यह उनकी पहली प्राथमिकता है, किन्तु अगर कमल नाथ अपने दिल पर हाथ रखकर इस बात को सोचें तो कारण चाहे जो भी हो पर निश्चित तौर पर वे पाएंगे कि उनके हर कदम के चलते अन्याय सिर्फ और सिर्फ सिवनी की जनता के साथ ही हो रहा है।

सीबीएसई पर हावी शिक्षा माफिया (4)

स्कूलों  के  मामले  में  आखिर  प्रशासन  क्यों  है  मूकदर्शक?

सिवनी। जिला मुख्यालय सिवनी में सेंट्रल बोर्ड ऑफ स्कूल एजूकेशन (सीबीएसई बोर्ड) का झुनझुना बजाकर निजी तौर पर संचालित होने वाले विद्यालयों द्वारा विद्यार्थियों के पालकों को जमकर लूटा जा रहा है और सांसद, विधायक सहित जिला प्रशासन मूक दर्शक बना बैठा है. स्थानीय विधायक श्रीमति नीता पटेरिया से जब इस संबंध में पूछा गया तो उन्होंने दो टूक शब्दों में यह कहा कि यह निजी तौर पर संचालित होने वाली शाला है, इसमें जनप्रतिनिधि भला क्या कर सकता है?
 
गौरतलब है कि इस साल के शैक्षणिक सत्र के आरंभ होते ही जिला मुख्यालय में सीबीएसई बोर्ड के एफीलेशन के बारे में तरह तरह के पर्चे पंपलेट बांटकर बच्चों के पालकों को आकर्षित करने का प्रयास किया गया है. जो जिसे खींच सका उसने अपनी ताकत इसमें झोंक दी. बाद में बच्चों ने शालाओं में प्रवेश लिया तो अपने आप को ठगा सा महसूस किया. आधे अधूरे शाला भवन, आवागमन के साधनों का अभाव, जबर्दस्त शिक्षण शुल्क, केपीटेशन फीस, दुकान विशेष या विद्यालय से ही गणवेश या कापी किताबों का क्रय किया जाना आदि के चलते पालकों की तो बन आई है.
 
सीबीएसई के लालच में निजी शाला के संचालकों द्वारा अहर्ताएं पूरी किए बिना ही विद्यार्थियों को लालच दिया जाकर उनके पालकों की जेब तराशी की जा रही है. सीबीएसई के निरीक्षणकर्ता अधिकारी भी न जाने क्या देखकर इन शालाओं को मान्यता देने की अनुशंसा भी कर देते हैं. व्याप्त चर्चाओं के अनुसार जबर्दस्त चढावे के बोझ के तले ये अधिकारी दबे होते हैं.
 
यहां उल्लेखनीय होगा कि जब तक ये शालाएं सीबीएसई बोर्ड से मान्यता नहीं ले लेती तब तक ये मध्य प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा मण्डल के अधीन ही काम करती हैं. मध्य प्रदेश सरकार का एक मुलाजिम जिसे हर जिले में जिला शिक्षा अधिकारी कहा जाता है, उसके शासकीय दायित्वों में इन शालाओं का निरीक्षण और मशिम के अनुकूल अर्हातांएं होना सुनिश्चित कराना आता है. विडम्बना ही कही जाएगी कि जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा सालों से इन शालाओं का निरीक्षण नहीं किया गया है. बताया जाता है कि बच्चों को सीबीएसई के भुलावे में रखने गरज से सीबीएसई की तर्ज पर इन शालाओं ने सीबीएसई की मान्यता न मिलने के बावजूद भी सेकंड सटर्डे अर्थात द्वितीय शनिवार का अवकाश मनमर्जी से घोषित कर दिया गया है. अब तक महज केंद्रीय विद्यालय में ही द्वितीय शनिवार को अवकाश घोषित होता है.
 
इस संबंध में जब परिसीमन के उपरांत समाप्त हुई सिवनी लोकसभा की अंतिम सांसद और जिला मुख्यालय सिवनी को अपने आप में समेटने वाली सिवनी की विधायक श्रीमति नीता पटेरिया से इस प्रतिनिधि ने चर्चा की तो उन्होंने छूटते ही कहा कि चूंकि ये सारे मामले निजी तौर पर संचालित होने वाली शालाओं के हैं, अतरू इस बारे में वे कुछ भी नहीं कर सकतीं हैं, जब उनसे यह पूछा गया कि अंत्तोगत्वा परेशानी तो उनकी विधानसभा क्षेत्र में आने वाले उनके वोटर्स पालकों के बच्चों को ही हो रही हो, वह चाहे निजी शाला में अध्ययन करे या फिर सरकारी शाला में, तो वे चुप्पी साध गईं. इस प्रतिनिधि से चर्चा के दौरान श्रीमति पटेरिया ने कहा कि यह मामला जिला प्रशासन को ही देखना चाहिए, अगर प्रशासन इस मामले में चुप है, इसका तातपर्य है सब कुछ ठीक ठाक ही है. वस्तुतरू सीबीएसई की मान्यता की अपेक्षा में जो शालाएं वर्तमान में माध्यमिक शिक्षा मण्डल भोपाल के तहत संचालित हो रही हैं, उनकी स्थिति बद से बदतर ही है. जिला प्रशासन द्वारा शिक्षा विभाग की कमान एक उप जिलाध्यक्ष को आफीसर इंचार्ज बनाकर दी है, पर लगता है वे भी आला अधिकारियों के इशारों की प्रतीक्षा ही कर रहे हैं. हालत देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि शिक्षा के मामले में इस जिले का कोई धनी धोरी ही नहीं बचा है.

इस संबंध में जब जिला शिक्षा अधिकारी श्री पटले से चर्चा की गई तो उन्होंने कहा कि उक्त शालाएं सीबीएसई से संबद्ध हैं और सीबीएसई के अधिकारी ही इसका निरीक्षण करते हैं, जब उनसे यह कहा गया कि जब तक सीबीएसई से संबद्धता नहीं हो जाती तब तक तो ये शालाएं प्रदेश शासन के अंतर्गत काम कर रहीं हैं, राज्य शासन के मुलाजिम चाहें तो इनकी मुश्कें कस सकते हैं, इस प्रश्र पर श्री पटले ने भी मौन साध लिया.

केंद्र शासन द्वारा शिक्षा का अधिकार अधिनियम २००९ लागू किया है, वहीं मध्य प्रदेश में जनशिक्षा अधिनियम २००१ लागू है, जिसके तहत राज्यों की सरकारों को यह सुनिश्चित करना है कि स्कूल न जाने वाले बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूलों में करवाया जाए. (देखिए खबर पेज तीन पर). स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा वर्ष २००९ में कराए गए सर्वे में मध्य प्रदेश के लाखों बच्चे स्कूल जाने से वंचित ही पाए गए थे. सिवनी जिले में कितने बच्चे स्कूल जाने से वंचित हैं, इसकी जानकारी जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में उपलब्ध ही नहीं हो सकी है. सांसद, विधायक सहित जिला प्रशासन से पुनरू जनहित में अपेक्षा है कि देश के भविष्य बनने वाले नौनिहालों के हित में कम से कम कुछ सार्थक पहल अवश्य ही करें.
(क्रमशः जारी)

ममता से कैसी ममता सोनिया की