शनिवार, 16 नवंबर 2013

आश्वासन के बाद आश्वासन: नहीं मिल पाया केवलारी को नगर पंचायत का दर्जा

कौन समझेगा सिवनी की प्रसव वेदन . . .3

आश्वासन के बाद आश्वासन: नहीं मिल पाया केवलारी को नगर पंचायत का दर्जा

(लिमटी खरे)

विधानसभा क्षेत्र केवलारी के मुख्यालय केवलारी के लोगों को इस बात की पीड़ा सालती होगी कि आश्वासन दर आश्वासन मिलने के बाद भी केवलारी को नगर पंचायत का दर्जा नहीं मिल पाया है। इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व लगभग बीस सालों तक कांग्रेस के जाने माने क्षत्रप हरवंश सिंह ठाकुर के द्वारा किए जाने के बाद भी केवलारी आज भी विकास के लिए तरस रहा है। केवलारी में युवाओं का मानना है कि अब तो अण्णा हजारे जैसे आंदोलनों के सहारे ही केवलारी को नगर पंचायत का दर्जा दिलवाया जा सकता है।
ग्राम पंचायत केवलारी के पास आय के साधन बेहद सीमित हैं। संभवतः यही कारण है कि केवलारी में न तो पक्की सड़कों का जाल बिछ पाया और न ही यहां जल निकासी के लिए नालियां ही उचित तरीके की हैं। साफ सफाई और प्रकाश की व्यवस्था तो है पर केवलारी आज भी कस्बाई शक्ल से अपने आप को निकालने के लिए कसमसा रहा है।
केवलारी विधानसभा के डेढ़ दर्जन से ज्यादा गांव में आज भी आज़ादी के साढ़े छः दशकों के बाद भी बिजली का न होना अपने आप में इस क्षेत्र के विकास की गाथा कहने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है। इतना ही नहीं अनेक गांव के लोगों विशेषकर स्कूली बच्चों को कभी रेल की पातों पर से जान हथेली पर रखकर सफर तय करना होता है, तो कभी नदी में नाव की सवारी गांठनी होती है। यह है केवलारी विधानसभा के विकास की तस्वीर!
केवलारी से मण्डला मार्ग पर बैनगंगा नदी पर पुल निर्माण न हो पाने से जब तब मार्ग अवरूद्ध हो जाया करता है। इस पुल में बड़ी बड़ी दरारें हैं, जिन्हें विभाग द्वारा भर तो दिया गया है, पर पुल में धपड़े उखड़े अलग ही दिखाई पड़ रहे हैं। इसके अलावा केवलारी उगली मार्ग पर सागर नदी का पुल भी केवलारी के वाशिंदों के लिए परेशानी का सबब् ही बना हुआ है। इस रपटे पर से बारिश के समय राहगीर जान हथेली पर रखकर ही आना जाना किया करते हैं। राजा दिग्विजय ंिसंह के शासनकाल में एक बार यह बात भी सामने आई थी कि झांसी से लखनादौन के राष्ट्रीय राजमार्ग को पलारी, उगली, पाण्डिया छपारा, लालबर्रा, बालाघाट होकर गोंदिया तक बढ़ा दिया जाए, ताकि दूरी और यातायात के दबाव को कम किया जा सके। पता नहीं क्यों यह योजना परवान नहीं चढ़ पाई! केवलारी उगली मार्ग पर सागर नदी के रपटे पर से दिन रात हल्के और भारी वाहनों का आवागमन जारी रहता है, पर इस रपटे को ऊंचा कर नया पुल बनाने की जहमत किसी ने नहीं उठाई।

केवलारी अंचल के निवासियों के सामने अनेक समस्याएं आज भी बरकरार हैं। यहां के निवासियों को रोजी रोजगार के लिए महानगरों की ओर कूच करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। यह स्थिति तब निर्मित होती रही जबकि केवलारी क्षेत्र को अतिविशिष्ट विधानसभा क्षेत्र की सूची में स्थान मिला। केवलारी क्षेत्र को विकासशील बनाने के नाम पर चुनाव के दौरान जनप्रतिनिधियों द्वारा समय समय पर अनेक वायदे किए गए, पर अमली जामा एक बार भी नहीं पहनाया जा सका। वहीं कान्हीवाड़ा उप तहसील का मामला भी आज भी झूला ही झूल रहा है।

चुनाव आते ही बढ़ी युवा बेवड़ों की तादाद!

चुनाव आते ही बढ़ी युवा बेवड़ों की तादाद!

(अय्यूब कुरैशी)

सिवनी (साई)। शासन प्रशासन भले ही इस बात का दावा करे कि चुनाव के दौरान अवैध शराब के विक्रय पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, पर चुनाव की रणभेरी बजते ही शराब के आधिक्य में सेवन करने वालों की तादाद तेजी से बढ़ गई है। यौवन की दहलीज पर कदम रखने वाले युवाओं के शराब के नशे में चूर होने की खबरें चुनाव की घोषणा के साथ ही तेजी से बढ़ी हैं।
पिछले कुछ समय से जिला चिकित्सालय सहित अनेक चिकित्सकों या निजी चिकित्सालयों में शराब के आधिक्य में सेवन के कारण बीमार होकर भर्ती होने वालों की खासी तादाद सामने आई है। इनमें से अधिकांश युवाओं की आयु सोलह से पच्चीस तीस साल के बीच की है।
आबकारी विभाग के सूत्रों का कहना है कि चुनाव के मद्देनजर प्रशासन ने वेयर हाउस, शराब दुकानों आदि में सीसीटीवी कैमरे लगावा दिए हैं। वहीं, कहा जा रहा है कि गांव गांव बिकने वाली अवैध शराब या मतदाताओं को प्रलोभन के बतौर वितरित की जाने वाली शराब पर आबकारी विभाग द्वारा कोई लगाम नहीं लगाई जा सकी है।
ज्ञातव्य है कि आचार संहिता लगते ही संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव के निर्देश पर आबकारी विभाग और पुलिस विभाग के सहयोग से चलाए गए अभियान में कुछ जगहों पर अवैध शराब के परिवहन के प्रकरण अवश्य ही दर्ज किए गए, किन्तु पिछले एक पखवाड़े में अवैध शराब पकड़ने की खबरें न तो आबकारी विभाग, न पुलिस और न ही जनसंपर्क विभाग द्वारा बताई गई हैं।
यक्ष प्रश्न तो यह खड़ा हुआ है कि अगर इन विभागों द्वारा किसी तरह की अवैध शराब नहीं पकड़ी गई तो फिर शराब के आधिक्य में सेवन के प्रकरण अस्पतालों में कैसे पहुंच रहे हैं। दस नवंबर की रात बरघाट रोड निवासी 32 वर्षीय विजय को, इसके अगले दिन कान्हीवाड़ा क्षेत्र के मटियाटोला निवासी 30 वर्षीय मनोज, 12 नवंबर को छिंदवाड़ा निवासी 28 वर्षीय मनोज, 13 नवंबर को लखनवाड़ा क्षेत्र के 25 वर्षीय प्रदीप आदि को शराब का अधिक सेवन करने पर बेहोशी की हालत में चिकित्सालय में भर्ती कराया गया था।

संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव से जनापेक्षा है कि चुनावों को मद्देनजर रखते हुए कम से मतदान तक आबकारी एवं पुलिस विभाग को ताकीद किया जाए कि जिले भर में अवैध रूप से शराब के विक्रय पर नजर रखकर पकड़ा धकड़ी की जाए, एवं पकड़े गए लोगों से यह अवश्य ही पूछा जाए कि उन्होंने भारी मात्रा में शराब कहां से ली है। साथ ही साथ हॉटल ढाबों में सघन चेकिंग अभियान चलाया जाकर वहां परोसी जा रही शराब पर प्रतिबंध भी लगाया जाए।

खूनी संघर्ष से होगा गलत संस्कृति का आगाज़!

खूनी संघर्ष से होगा गलत संस्कृति का आगाज़!

(शरद खरे)

सिवनी विधानसभा के पुसेरा गांव में भारतीय जनता पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी नरेश दिवाकर के जनसंपर्क के दौरान खूनी संघर्ष की खबर आना और उस बारे में भारतीय जनता पार्टी द्वारा खण्डन न किया जाना इस बात को दर्शा रहा है कि उक्त खबर में दम है। खबर अगर सही है तो इसका स्वागत तो नहीं किया जा सकता है। नरेश दिवाकर दो बार सिवनी विधानसभा के विधायक रहे हैं। उनके जैसे वरिष्ठ विधानसभा प्रत्याशी से इस तरह की उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वे अपने सहयोगियों या चुनाव प्रचार के दौरान साथ चलने वाले भाजपा कार्यकर्ताओं को इस तरह की हरकतों को अंजाम देने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। पर यह हुआ है इसलिए उन पर भी इसके छींटे अगर जाएं तो गलत नहीं कहा जा सकता है।
याद पड़ता है कि उनके विधायक रहते हुए एक बार कुरई (परिसीमन के पूर्व कुरई क्षेत्र सिवनी विधानसभा का अंग हुआ करता था) में नरेश दिवाकर ने अपना आपा खोया था और एक वनाधिकारी को झापड़ रसीद कर दिया था। इस संबंध में कुरई थाने में प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई थी। बाद में आपसी सुलह से मामला सुलझ गया बताया जाता है। पर घटना तो कारित हुई थी वह भी एक वनाधिकारी के साथ मारपीट की, वह भी तत्कालीन सिटिंग एमएलए नरेश दिवाकर के द्वारा।
पुसेरा में घटी घटना के बाद, भाजपा द्वारा इस संबंध में अब तक अपना पक्ष नहीं रखा जाना दुर्भाग्यपूर्ण ही माना जाएगा। इसका कारण यह है कि सिवनी जिला देश प्रदेश के सबसे शांत जिलों की फेहरिस्त में शामिल है। सिवनी में गुण्डागर्दी को कभी भी प्रश्रय नहीं दिया गया है। पुसेरा में तलवार बाजी हुई वह भी चुनाव प्रचार के दरम्यान। इस मामले में महज निंदा करने से काम नहीं चलने वाला। इसके लिए प्रशासन को कड़ा रूख अख्तियार करना ही होगा। प्रशासन के साथ ही साथ निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए भारत सरकार की ओर से सामान्य, व्यय, पुलिस न जाने कितने प्रेक्षकों को यहां तैनात किया गया है। यह बात उनके संज्ञान में आई ही होगी, अब इंतजार है तो उनके कदम का।
सिवनी के इतिहास में चाहे चुनाव रहा हो या कोई अन्य आयोजन, कभी भी इस तरह की गुण्डागर्दी के उदाहरण कम ही मिलते हैं। याद पड़ता है कि लखनादौन के करीब, बीबी कटोरी में एक बार लोकसभा चुनाव के दौरान जून 1991 में एक दल के प्रत्याशी पर बंदूक की नोक पर मतपेटियां लूटने के आरोप लगे थे। उस समय संचार के साधन सीमित थे, किन्तु बावजूद इसके जून 91 में सिवनी का नाम राष्ट्रीय क्षितिज पर उछला। 12 जून 1991 को मतपेटियां लुटने की खबर ने तत्कालीन जिला प्रशासन को हलाकन कर दिया था।
इसके बाद सिवनी जिले में बूथ केप्चरिंग की घटना का कोई प्रमाण नहीं है। अब लगने लगा है कि सांसद या विधायक का पद वाकई लाभ का है। यही कारण है कि लोगों द्वारा ज्यादा से ज्यादा तादाद में सांसद विधायक बनने की चाहत पैदा हो रही है। एक और बात उभरकर सामने आ रही है कि अमीरजादों के मन में जरूर सांसद विधायक बनने की बलवती इच्छाएं कुलाचें भर रही हैं। अमीरों के पास हर साधन होता है। फिर पता नहीं वे किस बात के लिए इस सियासी कीचड़ में कूदने का जतन करते हैं।
गौरतलब है कि सिवनी जिले में पिछले एक दशक में बंदूक संस्कृति का आगाज़ हुआ है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। सिवनी में बात बात पर लड़ाई झगड़े होना आम बात हो चुकी है। इसका कारण शराब और अन्य नशा ही माना जा सकता है। नशे में व्यक्ति को अच्छे बुरे का भान नहीं होता है, और वह कुछ भी कर गुजरने को अमादा होता है। सिवनी में अवैध रूप से शराब एवं अन्य नशे बेचे जाने की खबरें आम हैं। इसकी रोकथाम के लिए पाबंद लोगों के द्वारा भी इस संबंध में कोई कार्यवाही नहीं किया जाना भी अनेक संदेहों को जन्म देता है।
देर रात जिला मुख्यालय से सटे हॉटल ढाबों में शराब के जाम छलकते रहते हैं, और पुलिस हाथ पर हाथ रखे ही बैठी रहती है। कम से कम चुनाव के दरम्यान तो पुलिस को इस संबंध में सख्ती बरतना चाहिए था। कुछ समय पूर्व नगर कोतवाल रहे श्री कालरा (वर्तमान एसडीओपी मण्डला) ने एक के बाद एक करके हॉटल ढाबों में शराब परोसने पर प्रतिबंध लगा दिया था। उस समय दूर से ही पीली बत्ती आती देख हॉटल ढाबों के संचालकों की सांस अटक जाया करती थी।
बहरहाल, पुसेरा में जो भी कुछ हुआ है उसका प्रतिकार प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के अलावा अन्य निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी नहीं किया है। लगता है मानो सभी एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं, वरना क्या कारण है कि एक गांव में एक दल के जनसंपर्क के दौरान कार्यकर्ता खून खराबे पर उतारू हों और दूसरे दल उसका विरोध न करें? हो सकता है वे भी इसी संस्कृति के पोषक हों और उनकी मंशा भी कमोबेश इसी तरह की हो कि साम, दाम, दण्ड भेद की नीति को अपना कर येन केन प्रकरणेन विधायक का पद हासिल कर लिया जाए। अगर यह नहीं है तो उन्हें इसका प्रतिकार अवश्य ही करना चाहिए था, जो उन्होंने नहीं किया।

चुनाव से इतर अगर कोई और समय होता तो सियासी दलों के प्रवक्ता तो मानो टूट पड़ते एक दूसरे पर। दुख की बात तो यह है कि इस घटना के बाद न तो किसी ने विज्ञप्ति जारी कर जिला एवं पुलिस प्रशासन से कठोर कदम उठाने की मांग की है और न ही मंशा ही दिखाई है। जो प्रत्याशी यह चाह रहे हैं कि वे विधानसभा में सिवनी की आवाज बनें उन्हें यह सोचना अवश्य होगा कि अगर कल इस तरह की कोई घटना घटित होती है तो क्या वे इसी तरह मौन रहकर सिवनी के निवासियों का हित साधेंगे! अपना अच्छा बुरा सोचने के लिए हर प्रत्याशी स्वतंत्र है पर यह सिवनी की शांत फिजां में घुल रहे गुण्डागर्दी के जहर का मामला है, इसके लिए उन्हे आगे आकर आवाज बुलंद करना ही होगा। साथ ही साथ सभी प्रत्याशियों और उनके समर्थकों से अपील है कि वे आपा न खोएं और धैर्य व संयम का परिचय देते हुए सिवनी की गौरवशाली परंपरा को बदस्तूर कायम रखने में सहयोग प्रदान करें।