गुरुवार, 30 जून 2011

गाय और ग्लोबल वार्मिंग!

कहां जाती हैं पकड़ी गई गायें ---- 3

गाय और ग्लोबल वार्मिंग!

(लिमटी खरे)

दुनिया का चौधरी अमेरिका अब भारत की गौ माता पर अपनी कुदृष्टि डालने लगा है। अमेरिका को गाय फूटी आंख नहीं सुहा रही है इसका कारण है गाय के द्वारा किया जाने वाला मीथेनगैस का उत्सर्जन। मीथेन पर्यावरण के लिए अनुपयोगी होने के साथ ही साथ घातक मानी गई है। वैसे गाय से ज्यादा मीथेन गैस उंट द्वारा उत्सर्जित की जाती है। अमेरिकी वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले समय में वैश्विक जलवायू के लिए गाय, मोटर वाहनों की तुलना में ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है। चारागाह से मांस पकाने की पूरी प्रक्रिया में होने वाले कार्बन का उत्सर्जन कुल ग्रीन हाउस गैस का अठ्ठारह फीसदी है। गौ मांस के भारत में चलते प्रचलन पर चिंतित अमरीकी वैज्ञानिक इस बात से खासे खौफजदा नजर आ रहे हैं कि भारत में गौ मांस की खपत में 40 फीसदी से ज्यादा बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। गौ मांस का सेवन करने वालों में तरह तरह की बीमारियां भी पनप रहीं हैं। हम सबकी गौ माता को अमेरिका ग्लोबल वार्मिंग का एक कारक मान रहा है!

दुनिया में कम ही एसे जीव जंतु हैं जो मानव जीवन के लिए उपयोगी माने जा सकते हैं। इन जीवों में गाय का अहम स्थान है। गाय पौराणिक काल से ही मनुष्यों के लिए पूजा, सेवा और अन्य उपयोग के लिए सर्वोच्च मानी गई है। अब गाय को ग्लोबल वार्मिंग का एक प्रमुख स्त्रोत माना जा रहा है। वैज्ञानिक कहते हैं कि एक गाय हर साल 180 किलो मीथेन गैस वायूमण्डल में छोड़ती है। कहा जा रहा है कि अगले तीन दशकों में दुनिया भर में गौ मांस और दूध का उत्पादन दोगुने से भी अधिक हो जाएगा।

दुनिया के चौधरी अमेरिका के वैज्ञानिकों का मत है कि आने वाले समय में गाय वैश्विक जलवायू के लिए पेट्रोल और डीजल से चलने वाले वाहनों से भी खतरनाक साबित हो सकती है। दरअसल आजादी के उपरांत भारत में लोगों की खानपान की शैली में बड़ा बदलाव दर्ज किया गया है। इसी समयावधि में दुनिया भर में कमोबेश यही परिवर्तन देखने को मिला है। मांस, मदिरा से दूर रहने वाले समुदाय और संप्रदाय में इसका चलन काफी हद तक बढ़ गया है। यही कारण है कि मांस की खपत में पांच गुना से ज्यादा बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।

अमेरिका का ही उदहारण अगर लिया जाए तो वहां औसतन एक व्यक्ति साल भर में सवा सौ किलो मांस खा जाता है। प्रति व्यक्ति मांस की खपत चीन में 70 तो ब्राजील में 90 किलो है। हिन्दुस्तान में मांस की औसत खपत प्रति व्यक्ति महज तीन किलो है। यहां विचारणीय तथ्य यह है कि भारत में गौामंस और रेड मीट का स्वाद लेने वालों की तादाद में विस्फोटक बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है। दुनिया भर में सत्तर अरब से अधिक पशुओं को सिर्फ उनका मांस खाने के लिए पाला जा रहा है। पशुओं की आबादी मानव आबादी से दस गुना अधिक है। एक किलो मांस बढ़ाने के लिए गाय को औसतन 16 किलो अनाज खिलाया जाता है।

संेटर फॉर इंटरनेशनल फॉरेस्ट्री रिसर्च के 2004 के प्रतिवेदन के अनुसार ब्राजील में गौवंश के मांस की मांग के बढ़ने के कारण 2000 तक पांच करोड़ 87 लाख हेक्टेयर जंगल का सफाया किया गया था। गौ मांस खाने वालों के स्वास्थ्य पर किए सर्वेक्षण से साफ हुआ कि इसका सेवन करने वालों को तनाव और हृदय संबंधी रोग का खतरा अधिक हो गया था। एक देश से मांस को दूसरे देश ले जाते वक्त समुद्री संक्रमण और एक देश की बीमारी दूसरे देशों तक पहुंचने के मार्ग भी प्रशस्त होते गए। 2003 में एवियन फ्लू और इसके बाद नवोदित बीमारियों का कारण भी यही संक्रमण माना गया है।

जगह के हिसाब से भी गाय को राजसी मवेशी माना गया है। गाय को चरने के लिए बड़ा स्थान उसे चाहिए होता है। गाय एक ही स्थान पर खड़े खड़े अधिक देर तक चारा नहीं खा सकती। इस लिहाज से अगर देखा जाए तो एक किलो चिकन के उत्पादन के लिए जितनी जगह की आवश्यक्ता होती है उससे सात गुना अधिक जगह एक किलो गौमांस के लिए आवश्यक होती है। गाय को पर्यावरण हितैष्ज्ञी बनाने की कवायद आरंभ हो चुकी हैं।

गाय को लेेकर किए गए शोध में यह बात उभरकर सामने आई है कि बसंत के मौसम में गाय सबसे ज्यादा दूध देती है और उसका स्वास्थ्य भी बेहद अच्छा रहता है। इसके पीछे वैज्ञानिकों का मत था कि इस मौसम में उगने वाली घास में ओमेगा 3, चर्बीदार अम्ल की मात्रा अधिक होती है, जो उसके लिए लाभदायक होती है। इसके बाद इस अम्ल को गाय कि भोजन में शामिल किया गया तो इसके परिणाम उत्साहजनक सामने आए। इससे गाय के गैस उत्सर्जन में कमी दर्ज की गई। एक आंकलन के अनुसार कनाडा जैसे विकसित देश में ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन हो रहा है, उसमें 75 फीसदी भागीदारी पशुओं के चारागाहों की ही है।

दरअसल गाय जब जुगाली करती है तब उसके पेट में गोबर के साथ ही साथ सह उत्पाद के तौर पर मीथेन गैस बनती है। यूरोप में गाय के सर्वमान्य और परंपरागत आहार भूसे और चारे के स्थान पर सोयाबीन और मक्का खिलाना आरंभ किया। इसके परिणामस्वरूप गाय के पेट में गैस का उत्सर्जन बढ़ गया। बाद में अमेरिका में पटुआ और रिजका जैसे पोष्टिक पदार्थों को गाय के आहार में शामिल किया गया, ताकि मीथेन का उत्सर्जन कम किया जा सके।

 दिनों दिन धरती का तापमान बढ़ता ही जा रहा है। बार बार दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग की चिंता बढ़ती जा रही है। जंगलों की कटाई कर कांक्रीट के जंगल खड़े किए जा रहे हैं। जंगल ही एकमात्र एसा साधन है जो धरती के बुखारको कम कर सकता है। गाय को ग्लोबल वार्मिंग से जोड़कर अमेरिका ने हमारी धार्मिक आस्था पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। समय है कि हम गाय के द्वारा किए जाने वाले मीथेन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में पहल करें, वरना आने वाले कल की तस्वीर बेहद ही भयानक साबित हो सकती है।

मनमोहन नहीं चाहते ताकतवर लोकपाल

मनमोहन नहीं चाहते ताकतवर लोकपाल

सोनिया के बैक सपोर्ट से हो रहे अण्णा के तेवर कड़े

बाबा रामदेव पर ढीली पड़ी सोनिया मण्डली की पकड़

अण्णा बाबा पर सरकार कड़क तो कांग्रेस नरम

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। एक तरफ कांग्रेसनीत केंद्र सरकार द्वारा समाजसेवी अण्णा हजारे और स्वयंभू योग गुरू बाबा रामदेव को नेस्तनाबूत करने की मंशा से कार्यवाही की जा रही है तो दूसरी तरफ कांग्रेस संगठन अब इन दोनों ही मामलों में नरम पड़ता नजर आ रहा है। सत्ता और संगठन के बीच चूहे बिल्ली के इस खेल में सभी की नजरें टिक गई हैं। मनमोहन सिंह के प्रमख सचिव टी.ए.के.नायर द्वारा लिखी गई पटकथा पर केंद्र सरकार मुजरा करती नजर आ रही है।

प्रधानमंत्री कार्यालय के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि जब टूजी स्पेक्ट्रम मामले की लपटें प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और नायर तक पहुंची तभी नायर ने आगे की स्क्रिप्ट लिख दी थी। उस समय जेपीसी की मांग पर पीएमओ पूरी तरह अड़ गया था। आदिमुत्थू राजा से संचार मंत्री पद लेकर पीएम ने अपने विश्वस्त कपिल सिब्बल को दिया और फिर सिब्बल ने आक्रमक अंदाज में हल्ला बोला।

सूत्रों ने आगे कहा कि संप्रग सरकार में हुए घपले घोटालों के बाद अगर लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री को लाया गया तो सीधे सीधे यह गाज डॉ.मनमोहन सिंह पर ही गिरेगी, क्योंकि उनकी नजरों के सामने ही सब कुछ हुआ है। इसीलिए उन्हें समझाया गया कि चाहे जो हो जाए पीएम को लोकपाल के दायरे में नहीं लाया जाना चाहिए। सिविल सोसायटी के लोकपाल बिल को बोथरा करने के लिए मनमोहन मण्डली ने हर संभव प्रयास किए हैं। सूत्रों की मानें तो अन्ना अगर सौ सिर के भी हो जाएं तब भी लोकपाल के दायरे में पीएम नहीं आ सकते हैं।

निरंकुश हुए मंत्रियों को साईज में लाने के लिए पीएम द्वारा कवायद आरंभ की गई है। उधर कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र रहे दस जनपथ के सूत्रों का कहना है कि राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी को समझाया गया है कि हाल ही के दिनों में मनमोहन निरंकुश हो गए हैं और उन्होंने मंत्रियों को अपनी ओर मिलाकर ताकतवर गुट बना लिया है। अपने बिना रीढ़ के सलाहकारों (सोनिया के सलाहकार कभी चुनाव नहीं जीते) के मशविरे पर सोनिया ने बाबा रामदेव और अण्णा हजारे के आंदोलन के मामले में नरम रूख अख्तियार कर लिया है।

गांधी परिवार के हिमायती अपने युवराज राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने के मार्ग प्रशस्त करने में लगे हुए हैं। यही कारण है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सोनिया राहुल ने अपनी मौन सहमति दे रखी है। मामला चाहे सुरेश कलमाड़ी को कांग्रेस से बाहर करने का हो, अशोक चव्हाण को हटाने का हो या ए.राजा के त्यागपत्र का, हर मामले में कांग्रेस ने सख्ती दर्शाकर यह संदेश देने का प्रयास किया है कि सोनिया और राहुल दोनों ही भ्रष्टाचार बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं हैं।

उधर सूत्रों ने कहा कि सत्ता कैसे चलाई जाती है हमें मत सिखाईए की तर्ज पर कपिल सिब्बल ने पीएम को भरमाया और सत्ता और संगठन के बीच खाई गहरा गई। मामला चाहे बाबा रामदेव की एयर पोर्ट में अगवाई का हो या रामलीला मैदान में आधी रात के बाद हुई रावणलीला का, दोनों ही मामलों में सोनिया गांधी को अंधेरे में रखा गया। संभवतः यही कारण है कि सरकार से नाराज सोनिया गांधी ने अपने विदेश जाने का कार्यक्रम इस आपाधापी के बाद भी निरस्त नहीं किया।

12 साल बाद आरटीओ पर कसा सीबीआई ने शिकंजा

12 साल बाद आरटीओ पर कसा सीबीआई ने शिकंजा

एमपी के नौ आरटीओ को लिया जांच के दायरे में

चारा घोटाले से जुड़े मध्य प्रदेश के तार

दिग्विजय के शासनकाल में पदस्थ आरटीओ से होगी रांची में पूछताछ

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। लालू यादव के सत्ता के बाहर होने के बाद अब चारा घोटाले में सीबीआई का शिकंजा उन पर कसता जा रहा है। चारा घोटाले में मध्य प्रदेश के नौ क्षेत्रीय परिवहन अधिकारियों को पूछताछ के लिए रांची तलब किया है। अधिकारियों से पूछताछ के उपरांत परिवहन व्यवासाईयों (ट्रांसपोटर्स) को भी पूछताछ के लिए बुलाया जा सकता है।

सीबीआई के सूत्रों ने बताया कि चारा घोटाले में जिन परिवहन कार्यालयों से जारी परमिट और पंजीयन के नंबर चारा घोटाले में मिले हैं उनमें राजधानी भोपाल के तत्कालीन आरटीओ पी.एस.बम्हरोलिया, रीवा के व्ही. यादव, सतना के ए. सिंह, खण्डवा के संजय सोनी, जबलपुर के डी.के.जैन, खरगोन के एच. मुदगल, मंदसौर के एस.नागर, होशंगाबाद के अनिल श्रीवास्तव का नाम शामिल है।

सूत्रों ने आगे बताया कि चारा घोटाले में मध्य प्रदेश के ट्रक एवं अन्य वाहनों के होने के संकेत मिले हैं। सीबीआई यह जानने का प्रयास कर रही है कि कहीं किसी दबाव में आकर तो इन अधिकारियों द्वारा इन वाहनों के फर्जी परमिट तो जारी नहीं किए थे। यही कारण है कि अफसरान को उनके उपरोक्त वर्णित कार्यालयों में कार्य करने के दरम्यान जारी परमिट के साथ तलब किया गया है। इसमें यह देखा जा रहा है कि मध्य प्रदेश के कितने वाहनों को प्रदेश से बाहर परिवहन की अनुमति प्रदान की गई थी।

अब आचार्य बाल कृष्ण के दो बर्थ सार्टिफिकेट!

अब आचार्य बाल कृष्ण के दो बर्थ सार्टिफिकेट!


एक में बाल कृष्ण के पेरेंट्स भारतीय तो दूसरे में नेपाली!

बाल कृष्ण का पासपोर्ट फर्जी होने की आशंका

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। इक्कीसवीं सदी के स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव को बेनकाब करने कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। बाबा के राईट हेण्ड और धार्मिक चेनल आस्था के मालिक आचार्य बाल कृष्ण के दो दो जन्म प्रमाण पत्र बनवाने का मामला सामाने आया है, जिससे उनकी दुश्वारियां बढ़ने की ही उम्मीद जताई जा रही है। हाल ही में कंेद्रीय जांच ब्यूरो ने तथ्य छिपाकर बाल कृष्ण के द्वारा पासपोर्ट बनवाने की जांच आरंभ की है।

भरोसेमंद सूत्रांे का दावा है कि आचार्य बाल कृष्ण ने हरिद्वार में जो जन्म प्रमाण पत्र बनवाया है उसमें भी तथ्यों के साथ हेरफेर किए जाने के संकेत मिलते हैं। बताया जाता है कि बाबा रामदेव और आचार्य बाल कृष्ण के गुरू शंकर देव की ओर से दिए गए शपथ पत्र के आधार पर नगर निगम द्वारा बिना किसी जांच के ही पांच दिसंबर 1997 को उनका जन्म प्रमाण पत्र जारी कर दिया था।

सूत्रों ने बताया कि इस जन्म प्रमाण पत्र में बाल कृष्ण के माता पिता की राष्ट्रीयता भारतीय दर्शाई गई है। इसी जन्म प्रमाण पत्र के आधार पर आचार्य बाल कृष्ण ने जनवरी 1998 में पासपोर्ट के लिए आवेदन दिया और पुलिस वेरीफिकेशन के उपरांत 1998 में उन्हें भारत गणराज्य का पासपोर्ट जारी कर दिया गया था। वहीं दूसरी ओर एक अन्य जन्म प्रमाण पत्र में आचार्य बाल कृष्ण के माता पिता की राष्ट्रीयता नेपाली दर्शाई गई है। मीडिया के समक्ष भी उन्होंने यह स्वीकार किया था कि उनके माता पिता नेपाली मूल के हैं।

उधर सीबीआई ने आचार्य बाल कृष्ण के खिलाफ मामला दर्ज कर जांच आरंभ कर दी है। सीबीआई के सूत्रों का कहना है कि बाल कृष्ण के दो जन्म प्रमाण पत्र होने के आरोप तथ्य के साथ भी प्रस्तुत किए गए हैं, जिनकी जांच के बाद ही कोई निश्कर्ष निकाला जा सकेगा। माना जा रहा है कि अगर बाबा रामदेव के तेवर कांग्रेस के लिए तल्ख रहे तो आने वाले समय में उनकी दुश्वारियों में बढोत्तरी ही होना तय है।

. . . इसलिए कत्लखाने जाने लगी गायें

कहां जाती हैं पकड़ी गई गायें ---- 2

. . . इसलिए कत्लखाने जाने लगी गायें

(लिमटी खरे)

मीडिया में जब तब यह खबर सुर्खियों में रहा करती है कि फलां जगह से कत्लखाने ले जाई जा रही ट्रक भरकर गाय पकड़ी गईं। सवाल यह उठता है कि इक्कीसवीं सदी के आगाज के साथ ही सनातन पंथियों की अराध्य गौ माता को आखिर कत्लखाने क्यों और कैसे ले जाया जाने लगा। आखिर वे कौन सी ताकतें हैं जो हष्ट पुष्ट और जवान गाय को कत्लखाने भेजने पर आमदा हैं? देश में गौ मांस पर प्रतिबंध है, फिर भी कामन वेल्थ गेम्स में गौ मांस को परोसे जाने पर जमकर तूफान मचा था। गाय को माता का दर्जा दिया गया है फिर उसे काटकर उसका मांस भक्षण के लिए कैसे राजी हो जाते हैं गौ पालक? जाहिर है इसके पीछे कहीं न कहीं सोची समझी रणनीति और साजिश ही काम कर रही है। सरकार को इसकी तह में जाना ही होगा वरना इनसे फैलने वाला जहर लोगों को अपने आगोश में ले चुका होगा।

दूध और उससे बने पदार्थ हमारे दैनिक जीवन की जरूरत का अभिन्न अंग बन चुके हैं। दूध का प्रमुख स्त्रोत सदा से गाय ही रही है। वैसे भैंस, बकरी, उंट आदि का दूध भी उपयोग में लाया जाता है, किन्तु गाय के दूध की बात ही कुछ और है। आदि अनादि काल से गाय का दूध ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है। नवजात शिशू को भी अगर जरूरत पड़ती है तो गाय का ही दूध देने की सलाह दी जाती है। गाय के दूध में अनेक गुण होते हैं।

शहरों में दूध डेयरियों में गाय का स्थान वैसे तो भैंस ने ले लिया है, क्योंकि भैंस को ज्यादा घुमाना फिराना नहीं होता है। एक ही स्थान पर बंधी भैंस सालों साल दूध देने का काम करती है, जबकि गाय को चरने के लिए भेजना जरूरी होता है। लोग इस बात को भूले नहीं होंगे जब सुबह गाय चराने वाला चरवाहा घरों से गाय लेकर जंगल जाता और दिन भर उन्हें चराता और दिन भर बांसुरी बजाकर अपना समय काटता फिर शाम को गौ धूली बेला पर गाय को वापस लाकर घर में छोड़ जाता।

इक्कीसवीं सदी में दूध डेयरी और कत्लखानों में बड़ा गहरा नाता स्थापित हो चुका है। दूध की बराबर कीमत न मिल पाने पर ग्वालों ने भी मजबूरी में अपनी कामधेनू गाय को पैसा कमाने की मशीन में तब्दील कर दिया है। दूध डेयरी वालांे और ग्वालों ने गाय, भैंस को चारे के साथ यूरिया और आक्सीटोन जैसे इंजेक्शन लगाकर कम समय में ही कई गुना दूध प्राप्त किया जा रहा है। कल तक जबकि पैकेट वाला दूध बाजार में नहीं था, तब तक ग्वाले ही घरों घर जाकर दूध का वितरण किया करते थे। उस वक्त दुग्ध संघ के माध्यम से आधे लीटर की बोतल में दूध अवश्य ही मिला करता था।

दूध के बाजार पर जैसे ही बड़ी कंपनियों ने कब्जा जमाया और अन्य जिंसों की तरह ही दूध को भी प्लास्टिक के पैकेट में बंद कर बेचना आरंभ किया इन ग्वालों की रोजी रोटी पर संकट खटा हो गया। इसके बाद दूध के फैट का निर्धारण कर उसकी दरें तय की गईं। इस नई व्यवस्था में ग्वालों से दूध खरीदने वाले व्यापारियों ने दूध का फैट निकालकर ग्वालों को दाम देने तय किए। घरों घर जाकर पर्याप्त मात्रा में पैसा न मिल पाने से परेशान ग्वालों के लिए यह वरदान ही था कि वे अपना दूध एक ही व्यापारी को बेच दें भले ही उसकी कीमत उतनी न मिल पाए। इससे उनका परिश्रम और समय दोनों ही बचना आरंभ हो गया। यही कारण है कि अब महानगरों के साथ ही साथ छोटे शहरों में भी पैकेट बंद दूध का प्रचलन काफी मात्रा में बढ़ गया है।

अधिक लाभ की चाहत में इन व्यापारियों द्वारा बड़ी कंपनियों की तर्ज पर ग्वालों को यह समझाईश दी गई कि अगर भूसे की परत में थोड़ा सा यूरिया छिड़क दिया जाए और इस भूसे को दो तीन माह बाद गाय को खिलाया जाए तो दूध में फैट की मात्रा बढ़ जाएगी। यह योजना कफी हद तक कारगर साबित हुई। इसके बाद महज 18 पैसे के आक्सीटोन इंजेक्शन को गाय को दुहने के थोड़ी देर पहले अगर लगा दिया जाए तो उसका दूध बढ़ जाएगा। माना जाता है कि इस इंजेक्शन से गाय के शरीर से दूध और प्रोटीन निचुड़कर उसके दूध के रास्ते बाहर आ जाता है। इन दोनों ही चमत्कारिक तकनीक से ग्वालों को अपनी गाय से अधिक मात्रा में दूध वह भी पर्याप्त फैट वाला मिलने लगा।

इस तरह खुश होने वाले ग्वाले और व्यापारियांे ने इसके दुष्परिणामों के बारे में विचार नहीं किया। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि बारह से पंद्रह साल तक स्वस्थ्य रहकर दूध देने वाली गाय का दूध महज तीन से चार साल में ही समाप्त हो गया। इस अवधि के बाद ग्वालों के लिए गाय सफेद हाथीसाबित होने लगी। गाय को बिना दूध दिए खिलाने में ग्वालों को कठिनाई महसूस हुई तो उन्होंने इसे बेचकर दूसरी गाय खरीदने में समझदारी समझी। अब यक्ष प्रश्न यह सामने आया कि बिना दूध देने वाली गाय को खरीदे कौन?

देखरेख के अभाव में जल्दी ही इस तरह की गाय दम तोड़ने लगीं। इसके शव से चमड़ा उतारकर शेष मांस को जंगलों मंे फिकवा दिया जाता। जहां प्रकृति का ईमानदार और स्वाभाविक सफाई कर्मी गिद्ध इसे चट कर जाता। चूंकि आक्सीटोन और यूरिया के कारण इसका मांस विषाक्त हो चला था, इसलिए इसका भक्षण करने वाले गिद्ध भी इस दुनिया से एक एक कर जाने लगे। आज गिद्ध की गिनती अगर विलुप्त प्रजाति में होती है तो इसके पीछे दुधारू पशुओं का दूध बढ़ाने आक्सीटोन और यूरिया का सहारा लेना प्रमुख कारण है।

कमजोर और बिना दूध देने वाली गाय को ठिकाने लगाने का इंतजाम भी सामने आया। कत्लखाने ले जाने वालों ने गांव गांव जाकर इस तरह की गायों को खरीदना आरंभ किया। आरंभ में तो इसे पूजा के बाद दान में देने की बात कही जाती रही किन्तु धीरे धीरे यह बात खुल गई कि कत्लखाने वालांे को इसके दूध से कोई लेना देना नहीं है उन्हें तो मतलब इसके मांस से है। दुधारू पशुओं को पालकर उससे जीवोकापर्जन करने वाले लोग अपनी माता समान गाय को कसाईयों के हाथों बेचने लगे जो सच्चे कलयुग की निशानी मानी जा सकती है।

दुधारू पशुओं की कमी के कारण अब सिंथेटिक दूध भी बाजार में आ गया है, जिसे देखकर असली नकली की पहचान करना बहुत ही मुश्किल है। महानगरों के साथ ही साथ भाजपा शासित राज्यों विशेषकर मध्य प्रदेश में गौकशी की घटनाओं में जबर्दस्त उछाल दर्ज किया है। मध्य प्रदेश महाराष्ट्र सीमा पर गायों को कत्लखाने ले जाने के प्रकरण जब तब सामने आते हैं। राजधानी भोपाल में ही बकरे का मांस 100 रूपए प्रति किलो से ज्यादा तो अन्य मांस महज बारह से बीस रूपए प्रति किलो की दर पर सरेराह उपलब्ध है। आज जबकि कट चाय ही पांच रूपए प्रति गिलास उपलब्ध है, उस मंहगाई के जमाने में मटन कवाब महज डेढ़ रूपए में तला हुआ मिल रहा है पुराने भोपाल में! मुनाफे के लिए व्यवाईयों द्वारा लोगों के स्वास्थ्य के साथ जबर्दस्त तरीके से खिलवाड़ किया जा रहा है, जिसे रोकना ही होगा वरना आने वाला कल बहुत ही भयावह होने वाला है।

महत्वपूर्ण मंत्रालय से चलेगा रसूख का पता

महत्वपूर्ण मंत्रालय से चलेगा रसूख का पता

पट नहीं पा रही सत्ता और संगठन के शीर्ष पदों के बीच की दुर्लभ्य खाई

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस में सत्ता और संगठन के बीच खाई पटने के बजाए और गहराती जा रही है। कभी सोनिया खेमे के तारणहार रहे प्रणव मुखर्जी अब मनमोहन सिंह के दरबार में हाजिरी लगा रहे हैं। प्रणव मुखर्जी के मातहत रहे मनमोहन सिंह अब उनके बॉस की भूमिका में हैं। कभी पीएम को मनमोहन के नाम से पुकारने वाले प्रणव अब उनके अधीन वित्त मंत्री के तौर पर काम तो कर रहे हैं वे भी पीएम को सरसंबोधित करते नजर आ रहे हैं, साथ ही वे उप प्रधानमंत्री बनने आतुर भी दिख रहे हैं।

उप प्रधानमंत्री, वित्त, गृह, विदेश, मानव संसाधन, कानून, शहरी विकास, रेल जैसे अहम मंत्रालय तय करेंगे कि मनमोहन सिंह ज्यादा वजनदार हैं या फिर अभी भी सत्ता की धुरी सोनिया गांधी के हाथों में ही है। मनमोहन के लिए प्रणव मुखर्जी अब तारण हार की भूमिका में नजर आ रहे हैं। वे मनमोहन सिंह के लिए ज्यादा से ज्यादा समर्थन जुटाने की जुगत में दिख रहे हैं।

पीएम से हर मामले मंे वरिष्ठ, काबिल और अनुभवी प्रणव मुखर्जी के मुंह से आजकल वजीरे आजम के लिए सरका संबोधन भी लोगों को हैरान करने के लिए काफी है। माना जा रहा है कि सोनिया मण्डली विशेषकर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह के सोनिया और राहुल पर एकाधिकार से आजिज आकर प्रणव मुखर्जी ने मनमोहन सिंह को मजबूत बनाने की कवायद आरंभ कर दी है। सोनिया की माला जपने वाली अंबिका सोनी के हाथों से सूचना प्रसारण मंत्रालय का प्रभार छीना जा सकता है।

प्रणव के मशविरे पर अब मनमोहन सिंह द्वारा कपिल सिब्बल, गुलाम नवी आजाद, कमल नाथ, एस.एम.कृष्णा, पवन कुमार बंसल जैसे नेताओं को अहम मंत्रालयों की कमान देकर सोनिया मण्डली को संदेश देना चाहेंगे कि आने वाले लगभग ढाई साल अब सत्ता पर सोनिया नहीं वरन् मनमोहन का राज चलेगा। सोनिया मण्डली के दबाव के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अब अपनी कमजोर और लाचारवाली छवि से निजात पाने इच्छुक दिखाई दे रहे हैं।

मंहगाई के मारे हृदय प्रदेश के जनसेवक

मंहगाई के मारे हृदय प्रदेश के जनसेवक

राज्य सभा सांसद ने मांगी इच्छा मृत्यु!

हरवंश तय करेंगे अपनों का वेतन!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस नीत केंद्र सरकार के राज में मंहगाई आसमान को छू रही है, इस मंहगाई का सबसे अधिक असर देश के हृदय प्रदेश के सांसद विधायकों पर ही पड़ रहा है। मध्य प्रदेश भाजपाध्यक्ष एवं पिछले दरवाजे यानी राज्य सभा से संसदीय सौंध तक पहुंचने वाले प्रभात झा ने पर्याप्त वेतन भत्तों के बाद भी महामहिम राष्ट्रपति से इच्छा मृत्यु मांगी है, वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश विधानसभा उपाध्यक्ष एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ठाकुर हरवंश सिंह अपने धुर विरोधी पूर्व सांसद और सिवनी विधायक श्रीमति नीता पटेरिया के साथ मिलकर अपने अपने लोगों (विधानसभा सदस्यों) के वेतन भत्ते तय करने जा रहे हैं।

गौरतलब है कि पिछले ही साल मध्य प्रदेश सरकार द्वारा संवैधानिक पदों सहित विधायकों के वेतन में जबर्दस्त बढ़ोत्तरी की थी। इस वेतन वृद्धि के उपरांत विधायकों का वेतन दस हजार, निर्वाचन भत्ता सोलह हजार, टेलीफोन भत्ता दस हजार रूपए, लेखन सामग्री भत्ता चार हजार, अर्दली भत्ता पांच हजार तो बस यात्रा भत्ता ढाई सौ इस तरह कुल 45 हजार 250 रूपए मासिक पा रहे हैं प्रत्येक विधायक। इसके अलावा विधायकों को निशुल्क आवास, रेल में एसी फर्स्ट क्लास में एक सहचर के साथ निशुल्क यात्रा कूपन, विधानसभा सत्र के दौरान विमान या कार से भोपाल आने जाने की निशुल्क सुविधा भी प्रदाय की गई है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार विधासभा अध्यक्ष ईश्वर दास रोहाणी ने ठाकुर हरवंश सिंह की अध्यक्षता में विधायकों के वेतन भत्ते पुनर्रीक्षित करने एक समीति का गठन किया है जो अपनी सिफारिशें सदन को सौंपेगी, फिर इसे लोकसभा सचिवालय को अनुमोदन के लिए भेजा जाएगा। इस समिति में मध्य प्रदेश शासन के मंत्री राघवजी, नरोत्तम मिश्रा के अलावा भाजपा विधायक नीता पटेरिया, केदार नाथ शुक्ल, नागर सिंह चौहान कांग्रेस के गोविंद सिंह, भाजश के लक्ष्मण तिवारी एवं बसपा के राम लखन सिंह सदस्य बनाए गए हैं।

गौरतलब है कि दिल्ली में श्रीमति शीला दीक्षित सरकार ने वर्ष 2007 में विधायकों के वेतन भत्तों में बढ़ोत्तरी की थी, पिछले साल एक बार फिर शीला सरकार ने विधायकों का वेतन बढ़ाकर इसे केंद्र को भेजा था जिसे केंद्र सरकार द्वारा अमान्य कर दिया गया था। केंद्र का कहना था कि इसमें कम से कम पांच साल का अंतराल होना आवश्यक है। अब दिल्ली के विधायकों का वेतन 2012 में ही बढ़ सकेगा। इस लिहाज से मध्य प्रदेश के विधायकों को 2015 तक इंतजार करने के अलावा और कोई चारा नहीं दिखता। मध्य प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं के दबाव में केंद्र सरकार द्वारा अगर इसे अनुमोदित भी कर दिया जाता है तो दिल्ली के उदहारण पर न्यायालय से इस वृद्धि पर स्थगन का रास्ता बचा ही रहता है।

मंगलवार, 28 जून 2011

कहां जाती हैं पकड़ी गई गायें!


कहां जाती हैं पकड़ी गई गायें!

(लिमटी खरे)

गाय को भारत गणराज्य में माता का दर्जा दिया गया है। सनातन पंथी अनेक धर्मावलंबी लोग आज भी गाय की रोटी (गौ ग्रास) निकालकर ही भोजन ग्रहण करते हैं। गाय से दूध मिलता है जिसके अनेक उत्पाद हमारे जीवन में उपयोगी हैं, वहीं गाय का गोबर भी अनेक कामों में आ जाता है। आदि अनादि काल से पूज्यनीय इस गौ माता को आक्सीटोन नामक जहर की नजर लग गई है। किसानों की कामधेनू अब वाकई उसके लिए धनोपार्जन का साधन बन चुकी है। कत्लखाने जाने वाली गायों को पुलिस पकड़ लेती है किन्तु ये गायें उसके बाद अब जाती कहां हैं, यह शोध का विषय ही है। सरकारों द्वारा दी जाने वाली इमदाद के बावजूद भी गौशालाओं की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है। गोवंश के नाम पर राजनीति करने वाली भाजपा शासित राज्यों में भी गायों की दुर्दशा दिल दहलाने वाली है।

आदि अनादि काल से गाय का हमारे समाज और दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण रोल रहा है। ऋषि मुनियों के आश्रम से लेकर आज तक के ग्रामीण अंचलों में गाय का रंभाना हमारे दिल के तार हिला देता है। भगवान श्री कृष्ण की लीलाएं भी गाय बिना अधूरी ही लगती है। ग्वाला समुदाय का प्रतिनिधित्व किया था उन्होंने। अभी ज्यादा दिन नहीं बीते जब महानगरों को छोड़कर शेष शहरों, कस्बों, मजरों और टोलों में अलह सुब्बह अम्मा, दूध ले लोकी पुकार कमोबेश हर घर में सुनाई दे जाती थी। शहरों के उपनगरीय इलाकों, मजरों टोलो और साथ लगे गांव से दूध वाले सुबह शहरों की ओर रूख करते दूध देते फिर सूरज चढ़ते ही बाजार से सौदा (किराना और अन्य जरूरत का सामान) लेकर गांव की ओर कूच कर जाते।

गाय का दान करने के बारे में कुरीतियां भी बहुत हैं। मुंशी प्रेमचंद द्वारा गोदाननामक उपन्यास लिखा गया जिसने तहलका मचा दिया था। सनातन पंथियों के अनेक संस्कारों में गोदान का बड़ा ही महत्व माना गया है। गाय का दूध बहुत ही पोष्टिक माना गया है। गाय की सेवा पुण्य का काम है। राह चलते लोग गाय के पैर पड़ते दिख जाया करते हैं। हिन्दुस्तान में गायों को एक ओर पूजा जाता है तो दूसरी ओर गाय का मांस भी खाया जाता है।

शहरों में आवार मवेशियों की धर पकड़ के लिए स्थानीय निकाय ही पाबंद हुआ करते थे। नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगमों और ग्राम पंचायतों के कर्मचारी आवारा घूमते मवेशियों को पकड़कर उन्हें एक स्थान विशेष जिसे कांजी हाउसकहा जाता था, में बंद कर दिया करते थे। बाद में जुर्माना अदा करने पर पशु मालिक अपने जानवर को छुड़ाकर ले जाता था। नई पीढ़ी को तो इस कांजी हाउस के बारे में जानकारी ही नहीं होगी क्योंकि शहरों के कांजी हाउस पर तो कब का अतिक्रमण या बेजा कब्जा हो चुका है। हां इसमें पशुओं के लिए खुराक की व्यवस्था आज भी हो रही है।

कत्लखानों में गाय या बैल के मांस को लेकर जब तब राजनैतिक दलों और समुदायों में टकराव के उपरांत कानून व्यवस्था की स्थिति निर्मित हो जाती है। गायों के परिवहन के दौरान पुलिस द्वारा गायों को पकड़ा जाता है बाद में इन पकड़ी गई गायों का क्या होता है, इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं होता है। न गाय के परिवहन की गुप्त सूचना देने वाले और न ही गाय के नाम पर राजनीति करने वाले गैर सरकारी या राजनैतिक संगठन। इन गायों को पकड़ने के बाद इन्हें गोशालाओं में दे दिया जाता है। उसके बाद गोशालाओं में इन गायों के साथ क्या सलूक होता है, इस बारे में कोई कुछ भी नहीं जानता।

गोशालाओं का संचालन बहुत ही पुण्य का काम है। गौशाला संचालकों द्वारा शहरों की शाकाहारी होटलों का बचा हुआ जूठन, सब्जी मण्डी का बेकार माल आदि ले जाकर इन गायों को खिलाया जाता है। समाज सेवी बढ़ चढ़कर इनके संचालन में आर्थिक सहयोग दिया करते हैं। इतना ही नहीं सरकार द्वारा भी गौशालाओं को अनुदान दिया जाता है। हालात देखकर लगने लगा है मानो गौशाला का संचालन अब पुण्य के काम के स्थान पर कमाई का जरिया बन चुका है।

गौवंश के नाम पर राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी द्वारा शासित नगर निगम दिल्ली का ही उदहारण लिया जाए तो अनेक चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं। दिल्ली नगर निगम ने जितनी गाय पकड़ी हैं, उनमें से नब्बे फीसदी गाय काल का ग्रास बनी हैं। यह आलम तब है जब दिल्ली नगर निगम द्वारा गौशालाओं के संचालन के लिए छः करोड़ रूपए सालाना से अधिक का अनुदान देता है।

दिल्ली मेें आवारा पशुओं विशेषकर गोवंश को लेकर बहुत ही बड़ा खेल खेला जाता है। दिल्ली में आवारा घूमते मवेशी विशेषकर गाय के लिए गौ सदन बने हैं जिनमें हरेवली का गोपाल गौसदन, सुल्तानपुर डबास का श्रीकिसन गौसदन, सुरहेड़ा का डाबर हरे किसन गौ सदन, रेवला खानपुर का मानव गौसदन, घुम्मनहेड़ा का आचार्य सुशील गौ सदन आदि प्रमुख हैं। आंकड़ों पर अगर गौर फरमाया जाए तो वर्ष 2008 में मई से अक्टूबर तक छः माह की अवधि में इन गोशालाओं में 11 हजार 26 गाय पकड़कर भेजी गई थी, जिनमें से 10 हजार 716 गाय असमय ही काल के गाल में समा गईं।

इसी तरह वर्ष 2007 के आंकड़े दिल दहला देने वाले हैं। इस साल कुल 10574 गायों को पकड़ा गया था। इस साल कुल 10793 गाय मर गईं थीं। है न हैरानी वाली बात। इसका तात्पर्य यही हुआ कि इस साल पकड़ी एक भी गाय जीवित नहीं बची और तो और पिछले साल पकड़ी गई गायों में से भी 119 गाय मर गईं। इस मामले में दिल्ली की अतिरिक्त जिला सत्र न्यायधीश कामिनी ला ने 2004 में इस गोशालाओं का निरीक्षण कर रिपोर्ट तैयार की थी, पर सरकार ने इस मामले में कोई कदम नहीं उठाया है।

दिल्ली में सरकार द्वारा गोशालाओं को प्रत्येक गाय के लिए बीस रूपए प्रति गाय प्रति दिन के हिसाब से अनुदान दिया जाता है। वर्ष 2007 - 2008 और 2008 - 2009 में दिए गए अनुदान के हिसाब से गोपाल गौसदन को एक करोड़ तेईस लाख और सत्यासी लाख, श्री किसन गोसदन के लिए एक करोउ़ तीस लाख और एक करोड़ उन्नीस लाख रूपए, डाबर हरे किसन गोसदन को एक करोड़ 22 लाख और 86 लाख, मानव गोसदन को 70 और 28 लाख, आचार्य सुशील गोसदन को 96 और 73 लाख रूपए अनुदान दिया गया था।

सरकारी इमदाद और जनकल्याणकारी लोक कल्याणकारी पुण्य का काम करने वाले लोगों के द्वारा गायों को अगर बचाया नहीं जा पा रहा है तो यह निश्चित तौर पर चिंता का विषय ही कहा जाएगा। इस मामले में गैर सरकारी संगठनों के अलावा नगर निगम के अफसरों और गोशाला संचालकों की भूमिका संदिग्ध ही मानी जा सकती है।

फेरबदल तय करेगा मनमोहन और सोनिया का कद


फेरबदल तय करेगा मनमोहन और सोनिया का कद

सत्ता और संगठन में टकराव के चलते अहम है फेरबदल पर नजर

सोनिया को किनारे करने की तैयारियों में मनमोहन मण्डली

प्रणव का उप प्रधानमंत्री बनना तय

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में जल्द ही जो होगा वह किसी ने सोचा भी नहीं होगा। संसद के सत्र के पहले संभावित मंत्रीमण्डल फेरबदल से यह तय हो जाएगा कि मनमोहन और सोनिया में किसका कद बड़ा है? कांग्रेस के आला नेताओं के सामने यह बात साफ होकर उभर जाएगी कि सोनिया अब भी ताकतवर बची हैं या उन्होंने मनमोहन सिंह के सामने घुटने टेक दिए हैं।

वैसे भी सरकार की गलत नीतियों और अपने पथ प्रदर्शकों (राजनैतिक सलाहकारों) की अदूरदर्शिता के चलते प्रभावित हुई अपनी छवि से सोनिया गांधी काफी निराश और हताश दिखाई दे रही हैं। अब वे सियासी बातों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रही हैं। इसका सीधा सीधा फायदा वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने उठा लिया है। कैबनेट के फेरबदल में मनमोहन सिंह अपने सलाहकार नंबर वन प्रणव मुखर्जी के साथ मिलकर एसा संदेश देंगे कि सत्ता का शीर्ष केंद्र 10 जनपथ नहीं वरन् 7 रेसकोर्स ही है, इसलिए अब कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता सोनिया के दरबार में हाजिरी लगाना छोड़ दें।

उधर चतुर सुजान प्रणव मुखर्जी अपने विरोधियों के शमन के लिए भी मनमोहन का इस्तेमाल करना चाहेंगे। मुखर्जी को गृह मंत्री पलनिअप्पम चिंदम्बरम फूटी आंख नहीं सुहाते हैं। इस लिहाज से उनकी कुर्सी हिलना तय है। उप प्रधानमंत्री बनने के बाद विभाग चुनने की उन्हें आजादी होगी। कहा जा रहा है कि उप प्रधानमंत्री बनने के बाद वित्त, विदेश या गृह विभाग उनकी प्राथमिकता में ही होगा। प्रणव अगर चाहेंगे तो योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया को वित्त मंत्रालय की कमान दी जा सकती है। उद्योग लाबी प्रणव को अतिरूढ़ीवादी मानती है और वह प्रणव की वित्त मंत्रालय से रूखसती चाह रही है।

गृह मंत्रालय का भार कपिल सिब्बल, गुलाम नवी आजाद में से किसी को दिया जा सकता है। अंत में अगर दोनों में से किसी पर सहमति नहीं बनी तो फिर एस.एम.कृष्णा को यह जवाबदारी दी जा सकती है। कानून मंत्री बनने के लिए गुलाम नवी आजाद गोटियां बिछा रहे हैं तो पीएम पवन कुमार बंसल को इस पर बिठाना चाह रहे हैं।

मध्य प्रदेश कोटे से आए कमल नाथ को रेल मंत्रालय की कमान सौंपी जा सकती है। साथ ही चार बार राज्य सभा का सुख भोग चुके सुरेश पचौरी को पांचवी बार फिर राज्य सभा से भेजकर उन्हें संसदीय कार्य मंत्रालय की कमान सौंपी जा सकती है, किन्तु पचौरी की दस जनपथ में निष्ठा उनके आड़े आ सकती है। माना जाता है कि वे अहमद पटेल खाते में आते हैं। कांग्रेस के सियासी जानकार अब मंत्रीमण्डल फेरबदल पर नजरें टिकाए हुए हैं, ताकि इसके बाद वे अपनी नई निष्ठा की रणनीति तय कर सकें।