गुरुवार, 30 जून 2011

मंहगाई के मारे हृदय प्रदेश के जनसेवक

मंहगाई के मारे हृदय प्रदेश के जनसेवक

राज्य सभा सांसद ने मांगी इच्छा मृत्यु!

हरवंश तय करेंगे अपनों का वेतन!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस नीत केंद्र सरकार के राज में मंहगाई आसमान को छू रही है, इस मंहगाई का सबसे अधिक असर देश के हृदय प्रदेश के सांसद विधायकों पर ही पड़ रहा है। मध्य प्रदेश भाजपाध्यक्ष एवं पिछले दरवाजे यानी राज्य सभा से संसदीय सौंध तक पहुंचने वाले प्रभात झा ने पर्याप्त वेतन भत्तों के बाद भी महामहिम राष्ट्रपति से इच्छा मृत्यु मांगी है, वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश विधानसभा उपाध्यक्ष एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ठाकुर हरवंश सिंह अपने धुर विरोधी पूर्व सांसद और सिवनी विधायक श्रीमति नीता पटेरिया के साथ मिलकर अपने अपने लोगों (विधानसभा सदस्यों) के वेतन भत्ते तय करने जा रहे हैं।

गौरतलब है कि पिछले ही साल मध्य प्रदेश सरकार द्वारा संवैधानिक पदों सहित विधायकों के वेतन में जबर्दस्त बढ़ोत्तरी की थी। इस वेतन वृद्धि के उपरांत विधायकों का वेतन दस हजार, निर्वाचन भत्ता सोलह हजार, टेलीफोन भत्ता दस हजार रूपए, लेखन सामग्री भत्ता चार हजार, अर्दली भत्ता पांच हजार तो बस यात्रा भत्ता ढाई सौ इस तरह कुल 45 हजार 250 रूपए मासिक पा रहे हैं प्रत्येक विधायक। इसके अलावा विधायकों को निशुल्क आवास, रेल में एसी फर्स्ट क्लास में एक सहचर के साथ निशुल्क यात्रा कूपन, विधानसभा सत्र के दौरान विमान या कार से भोपाल आने जाने की निशुल्क सुविधा भी प्रदाय की गई है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार विधासभा अध्यक्ष ईश्वर दास रोहाणी ने ठाकुर हरवंश सिंह की अध्यक्षता में विधायकों के वेतन भत्ते पुनर्रीक्षित करने एक समीति का गठन किया है जो अपनी सिफारिशें सदन को सौंपेगी, फिर इसे लोकसभा सचिवालय को अनुमोदन के लिए भेजा जाएगा। इस समिति में मध्य प्रदेश शासन के मंत्री राघवजी, नरोत्तम मिश्रा के अलावा भाजपा विधायक नीता पटेरिया, केदार नाथ शुक्ल, नागर सिंह चौहान कांग्रेस के गोविंद सिंह, भाजश के लक्ष्मण तिवारी एवं बसपा के राम लखन सिंह सदस्य बनाए गए हैं।

गौरतलब है कि दिल्ली में श्रीमति शीला दीक्षित सरकार ने वर्ष 2007 में विधायकों के वेतन भत्तों में बढ़ोत्तरी की थी, पिछले साल एक बार फिर शीला सरकार ने विधायकों का वेतन बढ़ाकर इसे केंद्र को भेजा था जिसे केंद्र सरकार द्वारा अमान्य कर दिया गया था। केंद्र का कहना था कि इसमें कम से कम पांच साल का अंतराल होना आवश्यक है। अब दिल्ली के विधायकों का वेतन 2012 में ही बढ़ सकेगा। इस लिहाज से मध्य प्रदेश के विधायकों को 2015 तक इंतजार करने के अलावा और कोई चारा नहीं दिखता। मध्य प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं के दबाव में केंद्र सरकार द्वारा अगर इसे अनुमोदित भी कर दिया जाता है तो दिल्ली के उदहारण पर न्यायालय से इस वृद्धि पर स्थगन का रास्ता बचा ही रहता है।

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