रविवार, 31 मई 2009

31 may 2009

. . . तो क्यों अलापते हो आपदा प्रबंधन का राग
(लिमटी खरे)
मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में रानी अवंती बाई सागर परियोजना के डूब वाले इलाके में 6 अप्रेल को चाईम्स एविएशन के एक विमान के गिरने की खबर से सनसनी फैल गई थी। इसके पहले इसी साल मकर संक्रांति के दिन इसी जिले के अरी के पास के जंगलों में सेना के एक विमान के क्रेश होने की खबर भी पंख लगाकर उड चुकी है। इस विमान का तो आज तक पता नहीं चल सका है, यह विमान सेना का था या अन्य किसी निजी या सरकारी उपक्रम का यह तो पता नहीं चल सका है, पर यह एक किंवदंती बनकर रह गया है।हरियाणा की चाईम्स एविएशन कंपनी जिसका एक बेस सागर के पास ढाना में भी है, वहां से प्रशिक्षु पायलट रितुराज ने अबाउट टर्न के लिए बालाघाट के बैहर के लिए उडान भरी थी। शाम ढलते ही उसका सब ओर से संपर्क टूट गया। कुछ मछुआरों ने इसे गढाघाट के समीप जल समाधि लेते देखा था।इसके बाद जबलपुर और सिवनी जिला प्रशासन ने तत्परता के साथ इसकी खोज आरंभ करवा दी थी। विशाखापट्टनम, आगरा आदि से प्रशिक्षित गोताखोरों को बुलवाया गया। इन गोताखोरों का राजसी अंदाज तो देखिए बिना साजो सामान के ही ये सिवनी पहुंच गए। फिर जब इनके उपकरण आए तब इन्होंने काम चालू किया। पर अफसोस निराशा ही हाथ लगी। इसके बाद अत्याधुनिक समझा जाने वाला ``सोनार`` रडार भी नाकाफी साबित हुआ।रितुराज के परिजनों पर क्या बीती होगी इसकी कल्पना मात्र से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। रितुराज के परिजनों ने हार नहीं मानी। उन्होंने निजी तोर पर सी लाईन डाईविंग कंपनी के प्रशिक्षित गोताखोरों को इसके लिए पाबंद किया। इन गोताखोरों ने पचास से भी अधिक गोते लगाने के बाद 52 दिनों के पश्चात आखिरकार विमान को आखिरकार ढूंढ ही लिया।एक निजी समाचार चेनल ने ``बेटे की खातिर`` शीर्षक से इस कार्यक्रम की जीवंत तस्वीरें दिखाईं। कितने आश्चर्य की बात है कि प्रशासन ने जब अपने स्तर पर अभियान चलाया था, तब पूरा इलाका सील कर ग्रामीणों को दूर रखा था। उन्हीं ग्रामीणों की निशानदेही और उत्साह भरे सहयोग के चलते रितुराज का शव और विमान निकाला जा सका।रितुराज के मामा सतीश सिंह ने इस पूरे आपरेशन में जबलपुर जिलाधिकारी के सहयोग को अवश्य रेखांकित किया है। बकौल सतीश सिंह गांव वालों ने जहां बताया था, वहीं वह विमान मिला। यह अलहदा बात है कि गर्मी के चलते बरगी बांध का जलस्तर काफी कम हो गया है, जिसके चलते गोताखोरों को विमान ढूंढने में आसानी हुई। हीलियम गैस वाले बैलून से निजी तौर पर गोताखोरों ने वह काम कर दिखाया जिसे सरकारी तौर पर अंजाम दिया जाना था।इस पूरे आपरेशन में चाईम्स एविएशन की भूमिका भी संदिग्ध ही मानी जा सकती है। पूरे आपरेशन में चाईम्स एविएशन की ओर से कोई प्रतिक्रिया तक व्यक्त न किया जाना उनकी मानवता के प्रति संवेदनाअों को रेखांकित करने के लिए काफी कहा जा सकता है।अब विमान निकाला जा चुका है। इसके बाद नागर विमानन मंत्रालय या संचालक नागर विमानन (डीजीसीए) क्या कदम उठाता है, यह तो भविष्य के गर्त में है, किन्तु इसके अंदर के ब्लेक बाक्स से काफी कुछ राज खुल सकते हैं। विमान में ब्लेक बाक्स उसकी टेल में होता है, क्योकि माना जाता है कि विमान के उस भाग को क्षति अपेक्षाकृत कम मामलों में होती है। क्या विमान में कम ईंधन था, या तकनीकि तौर पर विमान दुरूस्त नहीं था, या इस हादसे के पीछे और कोई कारण है? इन बातों पर से पर्दा तो तब उठ सकेगा जब डीजीसीए इसकी विधिवत जांच की घोषणा कर जांच करवाएगा।महाकौशल के जबलपुर जिले में विशाल जलसंग्रह क्षमता वाला बरगी बांध है तो सिवनी जिले में एशिया का सबसे बडा मिट्टी का बांध भीमगढ में संजय सरोवर परियोजना है। इन दोनों के निर्माण के दौरान आपदा प्रबंधन की जगह ठीक उसी तरह रखी गई होगी जिस तरह पुरूषों के लिए बनने वाले पैंट में पहले बटन और अब मियानी के लिए जगह छोडी जाती है।किसी भी बांध के बनाए जाते समय पानी के भराव क्षेत्र में से जंगलों का सफाया अमूमन कर ही दिया जाता है, क्योंकि एसा नहीं करने पर मूल्यवान लकडी के पानी में डूबकर सडने की आशंका बनी रहती है। निश्चित तौर पर रानी अवंतिबाई सागर परियोजना के निर्माण के दौरान भी यही किया गया होगा। अब तो इसे बने इतना समय बीत चुका है कि इसे बनाने वाले सरकारी मुलाजिम सेवानिवृत हो चुके होंगे, इसलिए उनकी जवाबदेही तय करने से समस्या का हल नहीं हो सकता है। किन्तु आने वाले समय के लिए इससे सबक लिया जाकर नए बांधों या गर्मी में भराव क्षेत्र कम होने पर लकडी के डूंढ आदि को काट दिया जाना ही श्रेयस्कर होगा।विडम्बना ही कही जाएगी कि रितुराज के हादसे ने आपदा प्रबंधन की पोल खोलकर रख दी है। याद नहीं पडता आज तक आपदा प्रबंधन को लेकर कभी मॉक िड्रल भी हुआ हो। आपदा प्रबंधन के लिए तैनात कर्मचारी भी अब अपना मूल दायित्व भूल चुके हों तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

कमल नाथ ने दिखाए आक्रमक तेवर
कहा कागज पर नहीं जमीन पर चाहिए सड़क
पांच सालों से ठप्प पड़ी है, स्विर्णम चतुर्भुज योजना
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। माना जा रहा था कि केंद्र में भूतल परिवहन मंत्री बनने के उपरांत कमल नाथ अपनी नाराजगी जरूर दिखाएंगी, वस्तुत: एसा हुआ नहीं। कार्यभार संभालते ही अधिकारियों के साथ बैठक में कमल नाथ ने तीखे तेवर अिख्तयार किए। पिछले पांच सालों के कार्यकाल को देखकर उन्होंने साफ तौर पर कह दिया है कि उन्हें सड़क जमीन पर चाहिए कागजों में नहीं।कमल नाथ के करीबी सूत्रों का दावा है कि विभागीय कामकाज की समीक्षा के साथ ही वे अचरज में पड़ गए कि पिछले पांच सालों में कागजों पर तो योजनाएं फल फूल रहीं हैं, किन्तु वास्तविकता में इसमें एक इंच भी काम नहीं हुआ है। तेज गति से परिणाममूलक काम करने के आदी कमल नाथ के साथ विभागीय अफसर बहुत अधिक कंफर्टेबल नहीं दिखे।उधर कांग्रेस के सत्ता के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ से जुड़े सूत्रों का कहना है कि पिछले पांच सालों में इस विभाग का काम कच्छप गति से चल रहा था, जिसे दुरूस्त करने और पटरी पर लाने की महती जिम्मेदारी कमल नाथ को सौंपी गई है। ज्ञातव्य है कि इस विभाग का जिम्मा पिछली मर्तबा द्रमुक कोटे से टी.आर.बालू के पास था।सूत्रों ने बताया कि कमल नाथ को मानव संसाधन विकास मंत्रालय का कार्यभार सौंपे जाने की तैयारी कर ली गई थी, किन्तु सडकों के हालात और मध्य प्रदेश के अन्य क्षत्रपों के दबाव के चलते उन्हें भूतल परिवहन का जिम्मा सौंपा गया है। वैसे भी सडक विकास मंत्रालय का काम गति पकड़े इसलिए कमल नाथ को इसकी जवाबदारी दी गई है।गौरतलब होगा कि अफसरशाही पर लगाम कसकर बिखरे हुए तारों को समेटकर पटरी पर लाने के लिए कमल नाथ काफी माहिर माने जाते हैं। वैसे भी भूतल परिवहन में नौकरशाही का जाल बुरी तरह फैला हुआ है। हर कदम पर एक नई उलझन का सामना करना होता है, कभी अधिग्रहण का तो कभी रक्षित वन (रिजर्व फारेस्ट) की झंझट।इतना ही नहीं इस मंत्रालय के काम में राज्य सरकारों का भी पूरा पूरा दखल होता है। पिछली बार बालू यह कहकर बच जाया करते थे कि राज्य सरकारें उन्हें वांछित सहयोग प्रदान नहीं कर रही हैं, किन्तु कमल नाथ की बात ही कुछ ओर है। वे राज्यों के मुख्यमंत्रियों को अपने दरबार में बुलाकर योजनाओं के सफल क्रियान्वयन का खाका रखकर मुख्यमंत्रियों को फसाने में माहिर माने जाते हैं।

जेतली से बुरी तरह खफा है संघ
दो माह तक ``कीप मम`` की नसीहत दी भाजपाईयो को
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा विधानसभा के बाद आम चुनावों में भाजपा के प्रमुख रणनीतिकार अरूण जेतली को कड़ी फटकार लगाई है। साथ ही संघ ने भाजपा की हार पर टिप्पणी करने वाले बयानवीर नेताओं को कम से कम दो माह तक मुंह बंद रखने की हिदायत भी दी है।ज्ञातव्य है कि भाजपा और संघ द्वारा आम चुनावों में हार की समीक्षा अपने अपने स्तर पर की जा रही है। एक ओर संघ ने एक कमेटी बनाकर हार के कारणों की समीक्षा आरंभ की है तो दूसरी ओर भाजपा नेता समीक्षा को अपने नजररिए से देखकर मीडिया को इंटरव्यू दे रहे हैं। हाल ही में एक अंग्रेजी समाचार पत्र में अरूण जेतली के साक्षात्कार संघ को नागवार गुजरा। सूत्रों ने बताया कि इसके तुरंत बाद ही संघ ने जेतली से जवाब तलब किया। संघ के सहकार्यवाहक भैयाजी जोशी ने तो साफ तोर पर जेतली को समीक्षा पूरी होने तक मीडिया से पर्याप्त दूरी बनाने का मशिविरा दे डाला।सूत्रों के अनुसार तीन चरणों हार की समीक्षा की जा रही है। राज्यवार समीक्षा लगभग दो माह में पूरी होने की उम्मीद है। इसक दूसरे चरण में संघ द्वारा भाजपा के साथ बैठकर हार के कारणों का चिंतन किया जाएगा। और तीसरे चरण में हार की वजहों को दूर करने का प्रयास किया जाएगा।सूत्रों ने यह भी बताया कि दो एक माह में ही भारतीय जनता पार्टी में व्यापक फेरबदल होना तय है। संघ अब युवाओं को आगे लाने की हिमायत कर रहा है। नेता प्रतिपक्ष के लिए संघ की पहली पसंद सुषमा स्वराज हैं, जो आने वाले कुछ महीनों में आड़वाणी का स्थान ले लेंगी।

शनिवार, 30 मई 2009

साप्ताहिक डायरी .................

ये है दिल्ली मेरी जान

लिमटी खरे

लोग इंतजार में हैं कब निकालेंगे अजुZन तरकश से नया तीर
भले ही कांग्रेस के मैनेजरों ने कुंवर अजुZन सिंह को हाशिए में लाने के लिए एडी चोटी एक कर दी हो पर आज भी उनका भय सभी को बना हुआ है। पत्र और किताबों के माध्यम से तीर चलाने में निपुण अजुZन सिंह की दो किताबों ने सियासत में तूफान ला दिया था। समय समय पर उनके पत्र मीडिया की सुिर्खयां बने और राजनेताओं को कांग्रेस के इस चाणक्य से हार माननी पडी। अब लोगों को इंतजार है अजुZन सिंह की अगली किताब का, जिसके आने के बाद अनेक क्षत्रप नप सकते हैं। सियासी गलियारां में चल रही चर्चाओं के अनुसार अजुZन सिंह माकूल वक्त का इंतेजार कर रहे हैं। समय आने पर उनकी नई किताब या पत्र के चुनिंदा अंश मीडिया में ऑफ द रिकार्ड रिलीज कर दिए जाएंगे। फिर आएगा मजा खेल का। मौन साधे अजुZन सिंह शायद यही कह रहे होंगे - ``खेल तमाशा अभी खत्म बाकी है मेरे दोस्त।``

विभाग और रूतबे से असंतुष्ट लग रहे हैं महराज
मनमोहन सिंह मंत्रीमण्डल में दूसरी बार बतौर राज्यमंत्री शामिल हुए सिंघिया घराने के युवा महराज राज्य मंत्री बनाए जाने पर कुछ ज्यादा प्रसन्न नहीं दिखाई दे रहे हैं। वैसे भी कमल नाथ के पास रहा वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय उन्हें दिया गया है। अपनी पीडा का इजहार तो वे नहीं कर सकते किन्तु उन्होंने इशारों ही इशारों में जता दिया कि उन्हें स्टेयरिंग वाली गाडी अथाZत केबनेट मंत्री का पद चाहिए था। शपथ ग्रहण समारोह के उपरांत उन्होंने कहा कि पद मायने नहीं रखता, काम बडा होता है। राजनैतिक गलियारों में ज्योतिरादित्य के इस वक्तव्य के मायने खोजे जा रहे हैं। वैसे पिछले बार महज दस माह के कार्यकाल में उन्होंने अपनी छवि काफी हद तक बनाने में सफलता हासिल की थी। इस बार उन्हें केबनेट नहीं तो राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार की उम्मीद थी।

पुनर्वास के लिए बेचेन भाजपाई
आम चुनावों में युवाओं के हाथों मुंह की खाने के बाद अब मध्य प्रदेश के कुछ भाजपा नेता पुनर्वास की तैयारी में जुट गए हैं, इसके लिए उन्होंने अपने अपने आकाओं को साधना भी आरंभ कर दिया है। वे देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली और महाराष्ट्र की संस्कारधानी नागपुर (संघ मुख्यालय) के सतत संपर्क में हैं। वरिष्ठ नेताओं के राज्य सभा के रास्ते जाने के मार्ग प्रशस्त होते देख अब हिम्मत कोठारी और गौरीशंकर शेजवार ने लाल बत्ती हथियाने जुगत लगानी आरंभ कर दी है। एकाध माह में मध्य प्रदेश में निगम मण्डलों के अध्यक्षों का कार्यकाल समाप्त होने वाला है, सो इस पर काबिज होकर सुविधा के आदी हो चुके नेता अपने अपने पुनर्वास के मार्ग प्रशस्त करने में जुट गए हैं।

पिता के नक्शे कदम पर अरूण यादव
दििग्वजय सिंह मंत्रीमण्डल में उपमुख्यमंत्री रहे सुभाष यादव के पुत्र अरूण यादव अपने पिता के ही नक्शे कदम पर चलते दिख रहे हैं। 36 वषीZय यादव दूसरी मर्तबा सांसद चुने गए हैं। राज्य मंत्री बनने के बाद उन्होंने कहा कि वे गुटबाजी नहीं वरन काम पर ध्यान देंगे। सियासी गलियारों में इस बात की खासी चर्चा है। कहा जा रहा है कि दूसरी बार सांसद बने अरूण यादव का राजनैतिक जीवन अभी काफी कम है, फिर वे किस बिना पर गुटबाजी की बात कर रहे हैं। कहीं अपने पिता के गुट को प्रश्रय देकर वे गुटबाजी को बढावा तो नहीं देंगे। वैसे भी युवा सांसद अरूण यादव का अभी गुट तैयार ही नहीं हुआ तो गुटबाजी का प्रश्न ही कहां से पैदा होता है। गौरतलब होगा कि उनके पिता सुभाष यादव मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे थे, एवं आलाकमान ने आनन फानन उन्हें चलता कर केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी को उनके स्थान पर बिठा दिया था।

इस तरह चलता किए गए हंसराज
मध्य प्रदेश से राज्यसभा संसद रहे हंसराज भारद्वाज केंद्र में कानून मंत्री जैसे महात्वपूर्ण विभाग के मंत्री रहे। यह अलहदा बात है कि 2003 में उमाश्री भारती के नेतृत्व में थंपिंग मेजारटी में आई भाजपा के उपरांत उन्होंने बरास्ता हरियाणा राज्यसभा से आमद दी। हंसराज की मिनिस्ट्री उनके बडबोलेपन के चलते ही गई। सोनिया गांधी के करीबी सूत्रों का कहना है कि सीबीआई द्वारा क्वोत्रोिच्च को क्लीन चिट देने वाली खबर को दस जनपथ ने चुनाव तक दबाए रखने के साफ निर्देश दिए थे। यह खबर पंख लगाकर हंसराज भारद्वाज के घर से फिजां में तैरने लगी थी, जिसके चलते कांग्रेस को भारी नुकसान उठाना पडा। हर मामले में आक्रमक रही कांग्रेस को इस मामले में रक्षात्मक मुद्रा अपनाना पडा। सूत्र यह भी कहते हैं कि इस नुकसान को कांग्रेस के एक घडे ने बडा चढा कर कांग्रेस की राजमाता के समक्ष पेश किया था, फिर क्या था, नप गए भारद्वाज।

राजा ने बचाई आदिवासियों की लाज
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी के अघोषित राजनैतिक गुरू दििग्वजय सिंह की हठधर्मिता की वजह से मध्य प्रदेश में आदिवासियों की लाज बच गई। मध्य प्रदेश कोटे से बतौर केबनेट मंत्री सरकार में शामिल हुए कांतिलाल भूरिया का नाम अंतिम समय में राजा की जिद की वजह से जोडा गया। बताते हैं कि प्रदेश के क्षत्रपों ने अपने अपने प्यादों को लाल बत्ती से नवाजने की गरज से भूरिया को सुपरसीट करने में कोई कोर कसर नहीं रख छोडी थी। वैसे प्रदेश से सज्जन सिंह वर्मा, प्रेम चंद गुड्डू, मीनाक्षी नटराजन जैसे नवोदित सांसदों के नाम लाल बत्ती के लिए सामने आए थे, किन्तु अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सबसे ताकतवर महासचिव दििग्वजय सिंह के वीटो के चलते अंतिम समय में भूरिया को स्टेयरिंग वाली गाडी नसीब हो गई।

रमन मुख्यमंत्री होंगे या सीईओ
विधानसभा मेें दुबारा परचम लहराने और लोकसभा में सूबे में आशातीत सफलता दिलाने के बाद अब रमन सिंह कुछ बदले स्वरूप में नजर आने वाले हैं। अब वे कार्पोरेट सेक्टर के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) की भूमिका में नजर आएंगे। इसकी बाकायदा तैयारियां भी उन्होंने कर ली हैं। कहते हैं आने वाले समय में वे बिना किसी मध्यस्थ (मंत्री) के विभागीय प्रमुख सचिवों और सचिवों से रू ब रू होंगे। मंत्रियों की परवाह किए बिना ही अचानक ताकतवर होकर उभरे रमन सिंह पिछले पांच सालों का विजन एवं आने वाले समय में विभाग की कार्यप्रणाली की रूपरेखा की जानकारी लेने वाले हैं। मंत्रियों की परवाह वे करें भी क्यों, आखिर उन्होंने अपनी रणनीति के हिसाब से अपने आका भाजपाध्यक्ष राजनाथ सिंह को गाजियाबाद से चुनाव जिताने सारी ताकत जो झोंक दी थी।

मिल ही गया पीएम को सुरक्षित आशियाना आखिर
अब तक एक भी चुनाव नहीं जीते नेहरू गांधी परिवार से इतर दूसरी बार प्रधानमंत्री बने डॉ.मनमोहन सिंह को सुरक्षित आशियाना मिल ही गया। राज्य सभा के रास्ते प्रधानमंत्री बनने का कलंक छुटाने के लिए कांग्रेस द्वारा एम.एम.सिंह के लिए उपयुक्त लोकसभा सीट की तलाश की जा रही थी। कहते हैं अब वे हरियाणा से अपना भाग्य आजमाएंगे। रोहतक सीट से साढे चार लाख वोटों से ज्यादा से जीते हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के पुत्र दीपेंद्र देश के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के लिए यह सीट खाली कर सकते हैं।

अभिमन्यू चक्रव्यूह में!
राजनैतिक तोर पर अस्ताचल की ओर अग्रसर कुंवर अजुZन सिंह का साथ अब उनके पुराने विश्वस्तों ने छोडना आरंभ कर दिया है। महाभारत काल में अर्जन पुत्र अभिमन्यू चक्रव्यूह में फंसे थे। हाल ही में उनके पुत्र एवं मध्य प्रदेश के पूर्व केबनेट मंत्री अजय सिंह राहुल ने भी कमल नाथ के दरबार में अपने अस्तित्व की संभावनाएं तलाशना आरंभ कर दिया है। कहा जा रहा है कि पूर्व में मध्य प्रदेश की राजनीति की दो धुरी बन चुके कमल नाथ और अजुZन सिंह के बीच शीतयुद्ध के जनक राहुल सिंह ही थे, जो अब अपने उपर वरद हस्त की संभावनाएं टटोल रहे हैं। सूत्रों के अनुसार मध्य प्रदेश चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष रहे अजय सिंह ने कमल नाथ से चर्चा हेतु समय चाहा है। राजनैतिक गलियारों में इस बात की प्रतिक्षा हो रही है कि क्या कमल नाथ उन्हें समय देते हैं? और अगर देते हैं तो कितना?

मीनाक्षी की प्राथमिकता
मध्य प्रदेश से चुने गए 29 सांसदों ने अपनी प्राथमिकताएं तय की हों या नहीं, किन्तु मंदसौर से चुनी गईं राहुल ब्रिगेड की सदस्य और एआईसीसी सेक्रेटरी मीनाक्षी नटराजन ने अपनी प्रीयारिटी फिक्स कर ली है। इंदौर की देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से एमएससी (बायोकेमिस्ट्री) गोल्ड मेडलिस्ट, एवं विधि स्नातक मीनाक्षी की पहली प्रथमिकता उनके संसदीय क्षेत्र में जल संकट दूर करना है। मीनाक्षी के करीबी सूत्रों का कहना है कि जल संरक्षण की दिशा में काम करने वाले लोगों से मिलकर मीनाक्षी अपने संसदीय क्षेत्र में इसका प्रयोग अवश्य करना चाहेंगी। इसके अलावा मंदसौर और नीमच को रेल से जोडना तथा यहां का औद्योगिक विकास उनकी प्राथमिकताओं में शामिल है। कहते हैं, पूत के पांव पालने में ही दिखाई पड जाते हैं। सांसद बनते ही मीनाक्षी ने जिस संजीदगी के साथ प्राथमिकताएं निर्धारित की हैं, उसे देखकर लगता है अब उनके संसदीय क्षेत्र में सुराज आने वाला है।

राज्यसभा से जाने वाले पलटकर नहीं आते
मध्य प्रदेश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इस राज्य से अगर किसी बाहरी नेता को बरास्ता राज्यसभा संसदीय सौंध तक पहुंचाया जाता है तो वह पलटकर प्रदेश की तरफ नहीं देखता। इसके जीते जागते उदहारण हंसराज भारद्वाज और अबू आजमी हैं। दोनों के संसद में जाने की सीढी बना था मध्य प्रदेश और दोनों ही नेताओं ने कार्यकाल के दौरान अथवा पूरा होने के उपरांत मध्य प्रदेश की ओर रूख करना मुनासिब नहीं समझा। सियासी गलियारों में जो सूबा दाना पानी दे उसे सहेजकर रखने की परंपरा बहुत पुरानी है, किन्तु मध्य प्रदेश के बाहर के नेता के राज्य सभा से जाने के मसले में यह टूटी ही है। विदिशा से लोकसभा में पहुंची सुषमा स्वराज भी मध्य प्रदेश के रास्ते राज्यसभा में पहुंची थीं। अब देखना यह है कि वे अपने संसदीय क्षेत्र विदिशा और मध्य प्रदेश को कितना पोस पातीं हैं।

पुच्छल तारा
कमल नाथ को इस बार वाणिज्य और उद्योग के बजाए भूतल परिवहन मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली है। नरसिंहराव सरकार में जब वे वन एवं पर्यावरण मंत्री थे, तब प्रदेश को उन्होंने काफी कुछ दिया था। कपडा मंत्री बनने के बाद उन्होंने छिंदवाडा के बुनकरों के लिए उन्नति के मार्ग प्रशस्त किए थे। पिछली बार वाणिज्य उद्योग मंत्री रहते वे प्रदेश को कुछ नहीं दे पाए। कहा जा रहा है कि अब भूतल परिवहन मंत्री के रूप में प्रदेश को कुछ मिले न मिले पर उनके संसदीय क्षेत्र छिंदवाडा की खस्ताहाल सडकें जरूर सुधर जाएंगी।

30 may 2009

मांसाहारी मध्यान भोजन!
(लिमटी खरे)
चीन सहित कुछ देशों में मेंढक, सांप जैसे जानवर खाने का प्रचलन अवश्य है, किन्तु हिन्दुस्तान में यह परिपाटी अभी तक आरंभ नहीं हुई है। लगता है पश्चिमी सभ्यता के रंग में रंगने की जल्दी में मध्य प्रदेश के सरकार कर्मचारी अब देश के नौनिहालों को सादे मध्यान भोजन के स्थान पर अब मांसाहारी भोजन परोसने की योजना बना रहे हैं।वैसे उपरोक्त कथन सत्य नहीं है कि सरकारी कर्मचारियों की मंशा कुछ इस तरह की होगी, किन्तु हाल ही में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में सरोजनी नायडू कन्या उच्चतर माध्यमिक शाला में मध्यान भोजन परोसते समय एक मरा हुआ मेंढक भोजन मेंं पाया जाना कमोबेश यही साबित कर रहा है।आश्चर्य की बात तो यह है कि अभी बारिश का मौसम आरंभ नहीं हुआ है। बारिश में टर्राने वाले मेंढक अभी सुस्पुतावस्था में ही होंगे, फिर भोजन में मेंढक का निकलना सामान्य बात नहीं मानी जा सकती है। इसके पहले भी मध्य प्रदेश में मध्यान भोजन में गडबडियों की शिकायतें मिलीं थीं।पूर्व में फरवरी 2008 में सब्जी में मरा हुआ चूहा तो एक मर्तबा रोटी में लोहे का छल्ला मिला था। सरकार की अनदेखी और सत्ताधारी लोगों की अर्थलिप्सा के चलते बच्चों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड होना आम बात हो गई है। हेदराबाद की नंदी फाउंडेशन द्वारा राजधानी के पांच सौ से भी अधिक स्थानों पर मध्यान भोजन वितरित किया जा रहा है। केंद्र पोषित इस महात्वावकांक्षी योजना में इस तरह की लापरवाही होना गंभीर बात है। इसे घोर एवं आपराधिक लापरवाही के रूप में देखा जाना चाहिए।आश्चर्यजनक तथ्य तो यह है कि देश के सर्वोच्च न्यायालय को बच्चों के स्वास्थ्य के मामले में संज्ञान लेना पडा है। कुछ दिनों पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि आंगनवाड़ी केन्द्रों के जरिये तीन से छह साल के बच्चों को सुबह का नाश्ता और गर्म भोजन दिया जाए। कोर्ट ने राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को दिसंबर तक योजना लागू करने का आदेश दिया है। साथ ही अगले वर्ष 15 जनवरी तक अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। समेकित बाल विकास योजना के तहत बच्चों को पूरक पोषाहार दिए जाने के बारे में केंद्र सरकार द्वारा दाखिल हलफनामा देखने के बाद कोर्ट ने ये निर्देश जारी किए।वस्तुत: स्कूल प्रशासन की लापरवाही के चलते मध्यान भोजन बच्चों के लिए पोष्टिक तो कम जान लेवा ज्यादा हो गया है। हमारा दुर्भाग्य तो यह है कि स्कूल प्रशासन इस तरह के वाक्यातों से सबक लेकर इन्हें रोकने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाता है। देश भर के स्कूलों में न जाने कितने बच्चों को विषाक्त भोजन दिया जा रहा होगा, जिसमें मरे मेंढक, छिपकली या चूहे मौजूद होते होंगे।रोजाना न जाने कितने बच्चो के इस तरह के विषाक्त मध्यान भोजन के कारण बीमार पडने की खबरों से मीडिया अटा पडा होता है, बावजूद इसके सत्ता के मद में चूर राजनेताओं के कानों में जूं भी नहीं रेंगती। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि जिस पावन उद्देश्य को लेकर केंद्र सरकार द्वारा मध्यान भोजन की शुरूआत की गई थी, वह आरंभ से ही पथ भ्रमित हो गया था।संभव है मध्यान भोजन बनाना और परोसना दोनों ही कार्यों में स्कूल प्रशासन को कुछ व्यवहारिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता हो, किन्तु जहां जहां इस योजना का क्रियान्वयन ठेके पर दिया गया है, वहां तो स्कूल प्रशासन को सिर्फ सुपरविजन ही करना होता है, क्या महज इतना सा काम भी शाला प्रमुखों के लिए पहाड जैसा प्रतीत होने लगा है।निहित स्वार्थ और अर्थ लिप्सा का मतलब यह तो नहीं हो जाता कि अपनी लाभ के बदले नौनिहालोंं को गंदा, बदबूदार, और विषाक्त भोजन परोसा जाए। इस मामले में एक तथ्य यह भी उभरकर सामने आया है कि मध्यान भोजन के लिए खरीदे जाने वाले अनाज और जिंसों में भी भ्रष्टाचार की दीमक लग चुकी है। अपने मुनाफे के लिए सड़ा गला घुन लगा अनाज और सब्जियां, दाल ही इन बच्चों के निवालों में परोसा जा रहा है।केंद्र सरकार को चाहिए कि अगर उसकी योजना का सफल क्रियान्वयन राज्य सरकारें करने में असमर्थ हैं, तो बेहतर होगा कि देश के नौनिहालों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड करने के बजाए वे इस तरह की असफल योजनाओं को तत्काल प्रभाव से ही बंद कर दें।


अब बिछ सकेगा मध्य प्रदेश में एनएच का जाल!
कमल नाथ समर्थक अपने क्षेत्रों की सड़कें बनाएंगे चमन
छिंदवाडा से गुजर सकेगा एक और नेशनल हाईवे
रारा का अधीक्षण कार्यालय स्थापित हो सकता है छिंदवाडा में
उत्तर दक्षिण गलियारा भी जा सकता है छिंदवाडा होकर
कांग्रेसी सांसद देने वाले क्षेत्रों का हो सकता है विकास
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। सतपुडा के क्षत्रप कमल नाथ के भूतल परिवहन मंत्री बनने के साथ ही अब प्रदेश के कुछ जिलों का कायाकल्प होने की उम्मीद जाग गई है। प्रदेश के 12 संसदीय क्षेत्रों जहां से कांग्रेस ने परचम लहराया है, वहां की सडकों के हालात सुधरने की उम्मीद जताई जा रही है साथ ही छिंदवाडा से होकर एक और राष्ट्रीय राजमार्ग गुजर सकता है।मध्य प्रदेश के छिंदवाडा से आठवीं बार विजयी होने वाले संसद सदस्य कमल नाथ की पहली प्राथमिकता निश्चित तौर पर उनका संसदीय क्षेत्र ही होगी। दूसरी प्रथमिकता में वे प्रदेश के उन जिलों पर नजरें इनायत कर सकते हैं, जहां उनके समर्थकों की तादाद ज्यादा है।वैसे पिछली मर्तबा उनके वाणिज्य और उद्योग मंत्री के रहते प्रदेश को कुछ उल्लेखनीय उपलब्धि नहीं मिल सकी। इस बार माना जा रहा है कि प्रदेश के छिंदवाडा, देवास, खंडवा, धार, रतलाम, मंदसौर, उज्जैन, मण्डला, राजगढ, शहडोल, गुना, रतलाम जिलों में सडकों का कायाकल्प हो सकता है।पदभार संभालने के बाद पत्रकारों से रूबरू होने के बावजूद भी उन्होंने मध्य प्रदेश के लिए कोई घोषणा नहीं की है। यहां उल्लेखनीय होगा कि रेल राज्य मंत्री बनाए गए मालापुरम से सातवीं बार जीते मुस्लिम लीग के ई अहमद ने कार्यभार ग्रहण करते ही घोषणा कर दी कि देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली से उनके गृह राज्य केरल के लिए एक स्पेशल रेलगाडी चलाई जाएगी।इस बार छिंदवाडा की एक और बहुप्रतीक्षित मांग पूरी होने की उम्मीद जगी है। होशंगाबाद से पिपरिया, मटकुली, झिरपा, तामिया, छिंदवाडा, सिवनी, बालाघाट, गोंदिया होकर देवरी तक एक नए राष्ट्रीय राजमार्ग का जन्म हो सकता है। वैसे भी वर्तमान में होशंगाबाद से लेकर गोंदिया तक की सडक काफी अच्छी बन चुकी है। (बीच में छिंदवाडा जिले का कुछ हिस्सा अभी भी जर्जर ही है)।कमल नाथ के करीबी सूत्रों का कहना है कि देवास के सांसद सज्जन सिंह वर्मा इस बार उनका पूरा दोहन करने के मूड में दिख रहे हैं। आगरा बाम्बे राजमार्ग (एनएच 3) को और अधिक बेहतर गुणवत्ता का बनाया जा सकता है। इस पर सज्जन वर्मा और बाला बच्चन दोनों ही का कार्यक्षेत्र आता है।इसके अलावा सागर में विधायक अरूणोदय चौबे, जबलपुर के लखन घनघोरिया और मण्डला के समर्थक मिलकर सागर से दमोह, जबलपुर, मण्डला से छिल्पी घाटी होकर राजनांदगांव जाने वाले मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग में तब्दील करवा सकते हैं। केवलारी के विधायक एवं मध्य प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष ठाकुर हरवंश सिंह भी लखनादौन से घंसौर, पलारी, पांडिया छपारा होकर गोंदिया जाने वाले मार्ग का उन्नतिकरण लगे हाथ करवा सकते हैं।कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि नरसिंहपुर से लखनादौन होकर नागपुर जाने वाले उत्तर दक्षिण फोर लेन गलियारे का मार्ग बदलकर इसे हर्रई अमरवाडा, छिंदवाडा, सौंसर के रास्ते छिंदवाडा ले जाया जा सकता है। किन्तु इसमें व्यवहारिक दिक्कत यह आएगी कि कुरई घाटी के काम को छोडकर शेष कार्य लगभग पूरा हो चुका है।कमल नाथ के जबलपुर के समर्थकों की एक मांग भी अब पूरी होती दिख रही है। गौरतलब होगा कि पूर्व में जब सडक परिवहन एवं जहाजरानी मंत्री टी.आर.बालू जबलपुर आए थे तब कमल नाथ समर्थकों ने मांग रखी थी कि जबलपुर से लखनादौन तक के एनएच 7 को फोरलेन में तब्दील कर दिया जाए। सूत्रों ने यह भी बताया कि छिंदवाडा जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग का अधीक्षण यंत्री अथवा कार्यपालन यंत्री स्तर का कार्यालय भी खोला जा सकता है।

शुक्रवार, 29 मई 2009

.... मतलब मध्य प्रदेश में चलेगा विकास रथ!
(लिमटी खरे)

कांग्रेस सुप्रीमो ने पत्ते फेंटे और ताश की गड्डी डॉ.एम.एम.सिंह को दे दी। मनमोहन ने अपने मनमोहक अंदाज में बिसात बिछाई और अपनी सेना खडी कर दी। इसमें मध्य प्रदेश में पहले के मानिंद ही दो कबीना तो दो राज्य मंत्री शामिल किए गए। इनमें से दो युवा हैं। विभागों के बटवारे में प्रदेश के खाते में कुछ खास नहीं आ सका है।
पिछले पांच सालों से केंद्र और राज्य में सामंजस्य के अभाव के चलते मध्य प्रदेश का विकास रथ एक इंच भी सरक नहीं सका है। दो परस्पर विरोधी दलों की सरकार होने के कारण प्रदेश और केंद्र के बीच आरोप प्रत्यारोपों का कभी न थमने वाला सिलसिला आज भी अनवरत जारी है।
एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने के साथ जनप्रतिनिधि यह भूल जाते हैं कि जिस जनता ने उन पर विश्वास कर उन्हें जनादेश दिया है, वे उसे ही मुगालते में रख रहे हैं। केंद्र की किसी योजना के लिए क्या प्रदेश ने इंकार किया है? और क्या प्रदेश की किसी वाजिब मांग को केंद्र ने ठुकराया है? अगर एसा है तो जनप्रतिनिधियों में इतना माद्दा होना चाहिए कि वे उसे जनता के सामने लाएं।
वैसे तो मध्य प्रदेश ने देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठने के लिए भोपाल का लाल स्व.शंकर दयाल शर्मा दिया है। इतना ही नहीं तीन बार प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी बाजपेयी भले ही लखनउ से लोकसभा जीतकर प्रधानमंत्री बने हों, पर उनकी कर्मभूमि मध्य प्रदेश की ग्वालियर चंबल भूमि ही रही है।
पिछली सरकार में शामिल विन्ध्य के क्षत्रप कुंवर अजुZन सिंह का सूरज अब अस्ताचल की ओर जाता दिखाई दे रहा है। लंबे समय से प्रदेश से दूरी बनाने के कारण उनके समर्थकों में भी कमी आई है। उनके समर्थकों ने या तो पाला बदल लिया है या फिर अपनी निष्ठा का इजहार अन्य उर्जावान नेताओं के प्रति कर दिया है। अजुZन पुत्र राहुल सिंह भी कुछ करामात नहीं दिखा सके, जिसके चलते सिंह खेमे में अब गिनती के ही लोग बचे हैं। पुत्री मोह एवं अन्य कारणों के चलते उन्हें सरकार में शामिल नहीं किया गया है। अगर उन्हें स्थान दिया जाता तो निश्चित तौर पर उन्हें भारी भरकम विभाग ही मिलता।
पहले गठन में स्थान पाने वाले सतपुडा के क्षत्रप कमल नाथ को पिछली बार की अपेक्षा कुछ कमजोर मंत्रालय सौंपा गया है। सबसे पहले उन्हें वन एवं पर्यावरण मंत्री बनाया गया था, इसके बार नरसिंहराव से बिगडे रिश्तों के चलते उन्हें बाद में कपडा मंत्रालय दे दिया गया था। पिछली मर्तबा वे वाणिज्य और उद्योग महत्वपूर्ण मंत्रालय में काबिज थे।
वैसे कमल नाथ को मिला भूतल परिवहन मंत्रालय काफी महत्वपूर्ण भी है, यद्यपि इससे जहाजरानी मंत्रालय को प्रथक कर दिया गया है फिर भी अनेक मायनों में यह महत्वूपर्ण कहा जा सकता है। एनडीए के शासनकाल में आरंभ की गई स्विर्णम चतुभुZज और उत्तर दक्षिण एवं पूर्व पश्चिम गलियारे का काम अभी बाकी है। कमल नाथ की पहली प्राथमिकता निश्चित रूप से मध्य प्रदेश होनी चाहिए, एवं सडकों के विकास की दिशा में उनके पास कर दिखाने को बहुत कुछ है। वैसे पिछली बार वाणिज्य और उद्योग मंत्री रहते हुए उन्होंने प्रदेश को कुछ खास उपलब्धि नहीं दी है। माना जा रहा था कि कमल नाथ जैसे आठ बार चुनाव जीतने वाले संसद सदस्य को भारी भरकम विभाग दिया जाएगा, वस्तुत: एसा हुआ नहीं।
रतलाम झाबुआ से पांचवी बार विजयश्री का परचम लहराने वाले आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया को अंतिम समय में मंत्रीमण्डल में स्थान मिल सका। उन्हें आदिवासी मामलों का मंत्री बनाया गया है। उम्मीद तो यह की जा रही थी कि खालिस आदिवासी नेता को अच्छा विभाग मिलेगा। पर उन्हें केबनेट मंत्री बनाकर ही लालीपाप पकडा दिया गया है।
सिंधिया घराने के चिराग ज्योतिरादित्य सिंधिया की मांग इस वक्त युवाओं में सबसे ज्यादा है। आज उनका युवाओं के बीच क्रेज वही है जो अस्सी के दशक में कुंवर अजुZन सिंह और नब्बे के दशक में कमल नाथ का हुआ करता था। पिछली बार दूरसंचार राज्यमंत्री रहे ज्योतिरादित्य को इस बार वाणिज्य और उद्योग राज्यमंत्री बनाया गया है। तीसरा लोकसभा चुनाव जीतने वाले ज्योतिरादित्य के बारे में कहा जा रहा था कि इस बार उन्हें स्टयरिंग वाली कार (केबनेट मंत्री,, क्योंकि राज्य मंत्री वैसे भी केबनेट मंत्री के अधीन ही काम करता है) मिलेगी। इसके अलावा पूर्व प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुभाष यादव के पुत्र अरूण यादव को युवा मामलों का राज्य मंत्री बनाया गया है।
आजादी से अब तक विकास के पथ खोजने वाले मध्य प्रदेश के विकसित होने के मार्ग प्रशस्त नहीं हो सके हैं। विपुल वन एवं खनिज संपदा होने के बावजूद भी मध्य प्रदेश जहां का तहां खडा हुआ है। मण्डला, डिंडोरी, छिंदवाडा, झाबुआ, धार आदि आदिवासी बाहुल्य इलाकों में आदिवासियों की हालत आज भी दयनीय ही है।
कांग्रेस नीत केंद्र सरकार में प्रदेश कोटे से बने मंत्रियों और सूबे में काबिज भाजपा की सरकार को चाहिए कि आपस के राजनैतिक अखाडे की नूरा कुश्ती बंद कर अपनी समस्त उर्जा प्रदेश के विकास में लगाएं, अन्यथा भविष्य में युवा होने वाली पीढी शायद ही इन राजनेताओं को माफ कर पाए।





भाजपा नेताओं पर से उठा भरोसा संघ का!
भाजपा को सीधे नियंत्रण में लेने की तैयारी
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। संक्रमण काल से गुजर रही भाजपा की राजनीतिक स्वतंत्रता खतरे में पडती दिखाई दे रही है। पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी और भाजपाध्यक्ष राजनाथ सिंह के नेतृत्व में आम चुनावों में औंघे मुंह गिरी भाजपा पर अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लगाम कसने की तैयारी कर रहा है।
संघ के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि वह अपने इस आनुषांगिक संगठन को सीधे अपने नियंत्रण में लेने पर मंथन कर रहा है। गौरतलब होगा कि वर्तमान में भाजपा को छोड़ कर संघ के बाकी सभी आनुषांगिक संगठनों पर संघ का सीधा नियंत्रण है। वहीं दूसरी ओर भाजपा नेतृत्व अपने तमाम फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है, जिनकी जानकारी पार्टी में संघ के प्रतिनिधि के रूप में तैनात महासचिव (संगठन) के जरिए संघ पदाधिकारियों को दी जाती है।
संघ के नियंत्रण में होगें भाजपाध्यक्ष
सूत्रों का कहना है कि भाजपा अध्यक्ष के ऊपर सरकार्यवाह दत्तात्रेय होशबोले को तैनात करने की तैयारी चल रही है। इसके पीछे मकसद यह है कि भाजपा में संघ पृष्ठभूमि से इतर लोगों की तैनाती न हो सके। साथ ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच होने वाले झगड़ों और विवादों का निपटारा सख्ती से किया जा सके। प्राप्त जानकारी के मुताबिक मई और जून में हर वर्ष देश भर में संघ शिक्षा वर्ग का आयोजन होता है जिनमें संघ के तमाम वरिष्ठ पदाधिकारी स्वयंसेवकों को प्रशिक्षण देते हैं।
कडा हुआ संघ का रूख
लेकिन भाजपा की हार की वजह से इस बार संघ के ज्यादातर वरिष्ठ पदाधिकारी अपना अधिकतर समय दिल्ली में मंथन में बिता रहे हैं। अगस्त में संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी की बैठक होनी है जिसमें पूरे साल की कार्ययोजना तैयार की जाएगी। कार्यकारिणी की बैठक में ही भाजपा पर सीधे नियंत्रण का फैसला भी हो सकता है।
भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को इस बात की जानकारी है, लिहाजा पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने पूरी तरह से चुुप्पी साध ली है। माना जा रहा है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भाजपा नेतृत्व को दो-टूक कहा है कि अगले फैसले तक वे सिर्फ पार्टी के रुटीन कामकाज से जुड़े फैसले ही करें। कोई भी बड़ा फैसला संघ की हरी झंडी मिलने अथाZत अगस्त के बाद ही लें।



लोकसभा उपाध्यक्ष पद जाएगा मध्य प्रदेश के खाते में
भाजपा के अंदरखाने में तूफान के पहले की खामोशी!
नेता प्रतिपक्ष, लोस में उपनेता, रास ने विपक्ष के नेता के लिए मचा घमासान
वर्चस्व के लिए मची गलाकाट स्पर्धा
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। हार के कारणों की समीक्षा कर रही भाजपा भले ही उपर से शांत नजर आ रही हो पर अंदर ही अंदर खिचडी जबर्दस्त तरीके से खदबदाने लगी है। भाजपा में अब नेता प्रतिपक्ष, लोकसभा मे उपनेता और राज्य सभा में विपक्ष के नेता के लिए अब शह और मात का खेल आरंभ हो चुका है।
लोकसभा उपाध्यक्ष पद को लेकर भाजपा के अंदर खाने में उबल रहा लावा किसी भी क्षण फट सकता है। हार के सदमें में भाजपा के दिग्गज नेता वैसे तो सीधी प्रतिक्रिया देने से बच रहे हैं किन्तु अंदर ही अंदर उनके मन में पसरा असंतोष अब साफ दिखने लगा है।
इस पद के लिए राजग की ओर से भाजपा की पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के अलावा मध्य प्रदेश में विदिशा से जीतीं सुषमा स्वराज, इंदौर की सुमित्रा महाजन और भागलपुर के सांसद शहनवाज हुसैन के नामों की चर्चा हो रही है। पार्टी के अंदर ही अंदर राजनाथ के बजाए सुषमा स्वाराज को इस पद के लिए ज्यादा काबिल माना जा रहा है, क्योंकि वे अपेक्षाकृत ज्यादा युवा और पिछली बार राज्यसभा में उपनेता का दायित्व बखूबी निभा चुकी हैं।
इस पद के लिए मारामारी इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि इस बार लोकसभा में भाजपा के अनेक दिग्गज जसवंत सिंह, मुरलीमनोहर जोशी, सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह आदि राज्य सभा के बजाए लोकसभा सदस्य हैं, और एक साथ ये सारे दिग्गज एक ही बैंच पर बैठे नजर आएंगे।
उधर राज्यसभा में भी पार्टी को अपना नेता चुनना है। इस बार राज्य सभा में दिग्गजों का टोटा साफ दिख रहा है। पिछली बार रास में नेता जसवंत सिंह और उपनेता सुषमा स्वराज अब अगले रास्ते यानी लोकसभा से संसद में पहुंच चुके हैं। राज्यसभा में वेंकैया नायडू, शांता कुमार, अरूण जेतली, नजमा हेपतुल्ला, अहलूवालिया, अरूण शोरी ही वरिष्ठ बचे हैं। इसलिए पार्टी के पास विकल्प भी कम ही हैं।
पार्टी का एक घडा चाहता है कि अरूण जेतली यह पद संभालें, किन्तु अरूण जेतली इसके लिए तैयार नहीं बताए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि वे अपनी जमी जमाई वकालत छोडने को तैयार नहीं हैं। लाभ के पद के चलते उन्हें वकालात को तिलांजली देनी होगी। माना जा रहा है कि रास में विपक्ष के नेता के रूप में वेंकैया नायडू के नाम पर अंतिम मुहर लगाई जा सकती है। इसके अलावा उपनेता के लिए एस.एस.अहलूवालिया का नाम फायनल किया जा सकता
है।

गुरुवार, 28 मई 2009

पश्चिम बंगाल से बाहर निकलिए ममता जी
(लिमटी खरे)
रेल मंत्री ममता बनर्जी जनाधार वाली नेता हैं, इसमें कोई शक नहीं है। वे पश्चिम बंगाल से हैं अत: अपने राज्य को पहली प्राथमिकता देना नेतिकता के आधार पर उनका आधार माना जा सकता है। राज्य में आए तूफान पर उनकी चिंता वाजिब कही जा सकती है। अन्य मंत्रियो से उलट उन्होंने अपने मंत्रालय का कामकाज कोलकता में संभाला।कानून की किसी भी किताब के किसी भी सफे में यह उल्लेखित नहीं है कि मंत्री अपना कार्यभार कहां ग्रहण करेगा। पश्चिम बंगाल `आईला` नामक तूफान की चपेट में है। इन परिस्थितियों में सत्ता की चमक दमक दिखाने वे अपना सूबा छोडकर दिल्ली कैसे जा सकतीं थीं। यह अलहदा बात है कि दीगर मंत्रियों ने ममता का अनुसरण नहीं किया और न ही भविष्य में कोई करने वाला ही नजर आता है।परंपरा से हटना और परिवर्तन लाना अच्छा माना जाता है, किन्तु जब नया रास्ता दुखदायी हो जाए तो एसे रास्ते के बारे में सोचना भी व्यर्थ ही है। वैसे ममता बनर्जी अगर मनमानी कर सकती हैं तो तमिलनाडू या मध्य प्रदेश से मंत्रीमण्डल में शामिल मंत्रियों को चेन्नई या भोपाल में शपथ लेने या विभाग का कामकाज संभालने से कौन रोक सकेगा। ममता अगर जिद्दी हैं तो इस देश में और भी जिद्दी राजनेता मोजूद हैं, जो मीडिया की सुिर्खयों में बने रहने के लिए क्रुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं।ममता बनर्जी ने कोलकता में कार्यभार आरंभ कर एक नजीर पेश की है। इसके साथ ही उन्होंने 500 रूपए महीने से कम आय वालों को 100 किलोमीटर तक की यात्रा के लिए 20 रूपए मासिक पास की घोषणा भी कर दी है, जिससे साफ हो गया है कि वे भी स्वयंभू मेनेजमेंट गुरू लालू प्रसाद यादव की लोकलुभावन घोषणाओं की रेल को और आगे ले जाने की ओर अग्रसर हैं।सुिर्खयों में बने रहने के लिए ममता बनर्जी ने कोलकता में न केवल पदभार संभाला वरन् बयान भी दे दिया कि त्रणमूल कांग्रेस के केंद्रीय मंत्रियों को सप्ताह में पांच दिन का समय पश्चिम बंगाल को देना होगा। ममता का यह बयान देश के लिए चिंताजनक कहा जा सकता है।ढाई साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल में अपनी पकड बनाने के लिए ममता जुगत लगा रहीं होंगी, किन्तु देश के साथ खिलवाड करने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है। हो सकता है त्रणमूल कांग्रेस के लिए अगला विधानसभा चुनाव जीवन मरण का प्रश्न बन गया हो पर, उनके दल के मंत्री देश के 28 सूबों और केंद्र शासित प्रदेशों में से पश्चिम बंगाल को 5 दिन एवं शेष बचे राज्यों के लिए महज 2 दिन देंगे। ममता का यह बयान भावावेश में दिया माना जा सकता है, किन्तु कोई भी इसे तर्कसंगत नहीं मानेगा।वैसे मंत्रियों का लगातार दिल्ली में बैठे रहना भी उचित नहीं कहा जा सकता है, किन्तु अगर उन्हें किसी राज्य विशेष में पांच दिन हाजिरी देनी हो तो चल चुकी केंद्र सरकार। ममता के फरमान को अगर उनके दल के मंत्रियों ने सर आंखों पर लिया तो केंद्र सरकार की चूलें हिल जाएंगी। हमारी नजर में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर ममता बनर्जी को चाहिए था कि वे एसे मंत्रालयों का चयन करतीं जिसमें मंत्रियों की उपस्थिति ज्यादा मायने नहीं रखती, या फिर विधानसभा चुनावों तक उन्हें केंद्रीय मंत्रीमण्डल से अपने आप को दूर ही रखना था।विधानसभा के पहले पिछली सरकार में मध्य प्रदेश कोटे के मंत्रियों अजुZन सिंह, कमल नाथ, कांति लाल भूरिया, सुरेश पचौरी एवं ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जिस तरह निर्वहन किया था, उससे सभी को सबक लेना चाहिए। इन नेताओं ने पिछले पांच सालों में प्रदेश की और इक्का दुक्का बार ही झांका होगा। इन मंत्रियों की नजरों में समस्त प्रदेश बराबर थे या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता, किन्तु इन्होंने मध्य प्रदेश की जमकर उपेक्षा की यह बात सामने उभरकर आई।आज यक्ष प्रश्न यह खडा हो गया है कि ममता बनर्जी पहले पश्चिम बंगाल की नेता हैं अथवा पहले वे भारत सरकार की रेल मंत्री हैं? पंजाब पूरी तरह सुलग रहा है। वहां रेल व्यवस्थाएं ठप्प हो चुकी हैं। ममता की प्राथमिकता क्या होनी चाहिए? बंगाल में आए तूफान से प्रभावितों के प्रति सहानभूति जताकर सूबे की वामपंथी सरकार से प्रतिस्पर्धा करना अथवा ठप्प पडी रेल सुविधाओं को पटरी पर लाना।विश्व के सबसे बडे रेल नेटवर्क में आज घुन लग चुकी है। पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा आकर्षक घोषणाएं अवश्य की गईं थीं, किन्तु वे कितनी व्यवहारिक निकलीं यह बात आम यात्री ही बेहतर बता सकते हैं। ममता जी पश्चिम बंगाल से बाहर निकलिए। माना कि आप बंगाल की नेता हैं, किन्तु अब आप आजाद हिन्दुस्तान की रेल मंत्री हैं। आपकी प्राथमिकताओं में से एक पश्चिम बंगाल हो सकता है, किन्तु सिर्फ पश्चिम बंगाल को आप अपनी प्राथमिकता न बनाएं, वरना देश का इससे बडा दुर्भाग्य और कुछ नहीं होगा।


असंतुलन अभी भी बरकरार है केंद्रीय मंत्रीमण्डल में
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। एक सप्ताह चली कशमकाश के बाद मनमोहन सिंह ने अपने जम्बो मंत्रीमण्डल को स्वरूप अवश्य दे दिया है, किन्तु उसमें असंतुलन अभी भी बरकरार है। इस बार सहयोगी दलों के कम दबाव के चलते अपेक्षा की जा रही थी कि मंत्रीमण्डल में हर तरह के असंतुलन को दूर किया जा सकेगा, वस्तुत: एसा हुआ नहीं। मनमोहन के मंत्रीमण्डल में उन्हें मिलाकर 79 सदस्य हैं, जबकि तय सीमा के अनुसार इसमेें 81 सदस्य हो सकते हैं।0 सबसे अधिक मंत्री हैं कांग्रेस केकांग्रेस ने 206 सीट जीतीं हैं एवं उसके मंत्रियों की संख्या 60 है। तृणमूल कांग्रेस ने 19 सीटों के साथ 7, डीएमके ने 18 सीटों के साथ 7, राष्ट्रवादी कांग्रेस ने 9 सांसदों के बूते 3, नेशनल कांफ्रेस ने 3 सीटों के साथ एक मंत्री का पद तबाडा है। अन्य में 6 सीटों पर एक ही मंत्री बन पाया है।

महिला आरक्षण बिल पास होना सशंकित
पंद्रहवीं लोकसभा के विशालकाय मंत्रीमण्डल में महिलाओं को कम तरजीह दिए जाने से लगने लगा है कि बहुप्रतिक्षित महिला आरक्षण बिल इस बार भी ठंडे बस्ते में ही धूल खाएगा। इस बार लोकसभा में पहली बार महिला सांसदों ने अर्धशतक लगाया है। इस बार 59 महिलाएं चुनकर आईं हैं। बावजूद इसके पिछली बार की तुलना में इस बार दस के बजाए 9 महिलाओं को ही मंत्रीमण्डल मे स्थान दिया गया है। पिछली केबनेट में शामिल डी.पुरंदेश्वरी एवं पनाबका लक्ष्मी, मीरा कुमार, अंबिका सोनी, कुमारी शैलजा को फिर से स्थान दिया गया है, जबकि ममता बनर्जी, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की पित्न प्रणीत कौर, कृष्णा तीरथ, पूर्व लोकसभाध्यक्ष पी.ए.संगमा की पुत्री एवं सबसे युवा मंत्री अगाथा संगमा को इस बार मंत्री बनाया गया है।

उपेक्षित रह गए आदिवासी
आदिवसी नेतृत्व की इस बार घोर उपेक्षा की गई है। देश में आठ फीसदी आदिवासी समुदाय के लिहाज से केंद्र में कम से कम आधा दर्जन पद इस समुदाय की झोली में जाने चाहिए थे। आदिवासियों में मध्य प्रदेश के कांतिलाल भूरिया अकेले होंगे जो केबनेट मंत्री के रूप में कार्य करेंगे। इनको मिलाकर कुल चार मंत्रियों को इस समुदाय से लिया गया है। भूरिया का नाम भी अंतिम समय में ही शामिल किया गया है। पिछडे वर्ग के केवल 11 मंत्री हैं। मजे की बात तो यह है कि 79 सदस्यीय मंत्री मण्डल में 46 सदस्य अगडी जातियों के हैं।

9 दलित और 5 मुस्लिम मंत्री
मनमोहन सरकार में दलित मंत्रियों की संख्या 9 है, जिनमें सुशील कुमार शिंदे, मीरा कुमार, ए.राजा, मिल्लकाजुZन खडगे, कुमारी शैलजा एवं मुकुल वासनिक शामिल हैं। मायावती से निपटने इस बार कांग्रेस ने दलितों पर ज्यादा ध्यान दिया है। इसके अलावा मुस्लिम समुदाय से गुलाम नवी आजाद एवं सलमान खुशीZद केबनेट मंत्री तो फारूख अब्दुल्ला (नेशनल कांफ्रेस), ई.अहमद (मुस्लिम लीग) एवं त्रणमूल के सुल्तान अहमद राज्यमंत्री बनाए गए हैं।

3 मसीही तो जाटों का टोटा
ईसाई समुदाय से ए.के.अंटोनी, प्रो.के.वी.थामस एवं विसेंट पॉल को मंत्रीमण्डल में शामिल किया गया है। जाट समुदाय से महज महादेव खंदेला को केबनेट में बतौर राज्यमंत्री शामिल किया गया है।

छत्तीगढ के हाथ लगी निराशा
मध्य प्रदेश से टूटकर अस्तित्व में आए छत्तीसगढ राज्य से इस बार भी किसी को मंत्री नहीं बनाया गया है। छग के इकलौते सांसद चरण दास महंत का नाम सिर्फ चर्चाओं तक ही सीमित रहा। राज्य से पिछले दरवाजे से आने वाले नेताओं में मोती लाल वोरा और मोहसीना किदवई के नाम शामिल थे, किन्तु वे दौड से काफी दूर ही रहे। अटल बिहारी बाजपेयी के शासनकाल को छोड दिया जाए तो पिछले एक दशक में राष्ट्रीय राजनीति में छत्तीगढ का नामलेवा नहीं बचा है।

मध्य प्रदेश में विन्ध्य, बुंदेलखण्ड उपेक्षित
इस बार मध्य प्रदेश में विन्ध्य प्रदेश और बुंदेलखण्ड में मायूसी पसरी दिखाई दे रही है। विन्ध्य के ठाकुर अजुZन सिंह को मंत्रीमण्डल से चलता कर देने के बाद अब दोनों ही इलाकों का केंद्र में प्रतिनिधित्व नहीं रह गया है। कमल नाथ महाकौशल (सतपुडा), कांतिलाल भूरिया एवं अरूण पटेल मालवा तो ज्योतिरादित्य सिंधिया चम्बल से हैं।0 यूपी से एक भी कैबिनेट मंत्री नहÈ1984 के बाद उत्तर प्रदेश में पहली बार 21 लोकसभा सीटों तक पहुंचने वाली कांग्रेस व उसकी सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इस प्रदेश से एक कैबिनेट मंत्री नहÈ मिला। विडम्बना ही कही जाएगी कि जिस सूबे ने देश को आठ प्रधानमंत्री दिए, आज वहां से चुने गए कांग्रेस सांसदों में से एक भी कैबिनेट मंत्री बनने लायक ही नहÈ है।

एमपी से जुडे दो स्तंभ धराशायी
मध्य प्रदेश से जुडी दो शिक्सयतें इस बार औंधे मुंह गिरीं हैं। अव्वल तो मानव संसाधन विकास जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय को संभालने वाले कुंवर अजुZन सिंह को मंत्रीमण्डल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। ``मोहि कहां विश्राम`` से एक बार फिर चर्चा में आए अजुZन सिह को संभवत: उनकी पुत्री वीणा सिंह के निर्दलीय तौर पर चुनाव लडने के चलते विश्राम दिया गया है। इसके अलावा मध्य प्रदेश के रास्ते राज्यसभा में गए कानून मंत्री जो वर्तमान में हरियाणा से राज्य सभा सदस्य हैं, को भी इस बार स्थान नहीं मिल सका है।

पूवÊ भारत से होंगे 11 कैबिनेट मंत्री
पिÜचम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने अपनी बड़ी जीत की केंद्र सरकार से मनमाफिक कीमत वसूल ली है। तृणमूल अध्यक्ष ममता बनजÊ जहां पहले ही केंद्रीय रेल मंत्री के रूप में कार्यभार संभाल चुकी हैं, वहÈ उनके छह अन्य सांसद राज्यमंत्री के रूप में शामिल हो गए हैं। जबकि झारखंड और बिहार के खाते में एक एक केंद्रीय मंत्री पद गया है। उड़ीसा को सिर्फ एक राज्यमंत्री से संतोष करना होगा। पिÜचम बंगाल, बिहार, उड़ीसा और झारखंड में संप्रग से जीतने वाले कुल चौंतीस सांसदों में 11 मंत्री होंगे। यानी पूवÊ भारत से आए संप्रग के कुल सांसदों में से एक तिहाई को केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान दिया गया है।

दिल्ली का दबदबा
देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली का दबदबा दूसरी बार देखने को मिल रहा है। इस बार कपिल सिब्बल को कबीना तो कृष्णा तीरथ को राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार और अजय माकन को राज्यमंत्री बनाया गया है। लगभग तीन दशक पहले एच.के.एल.भगत, जगदीश टाईटलर और के.सी.पंत को एक साथ मंत्रीमण्डल में शामिल किया गया था।

तरूणाई हाशिए पर
नए मंत्रीमण्डल में नौजवान सांसदों में अजय माकन, जितिन प्रसाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया जहां फिर से मंत्री बनाए गए हैं, वहÈ सचिन पायलट, अरुण यादव, प्रदीप जैन जैसे कुछ नए नौजवान भी शामिल किए गए हैं। द्रमुक के खाते से मंत्री बने ए.राजा और दयानिधि मारन को भी नौजवानों की सूची में जोड़ा जाए तो भी इनकी संख्या बमुश्किल एक दर्जन पहुंच सकी है।गौरतलब है कि पंद्रहवÈ लोकसभा में नौजवानों को बड़ा प्रतिनिधित्व मिला है। आंकड़े बताते हैं कि पच्चीस से चालीस की उम्र के 79 सांसद जीतकर आए हैं। इस बार वैसे तो 226 सांसद एसे हैं जिनकी उम्र 50 से कम है।
सेन की जमानत : स्वागतयोग्य फैसला
(लिमटी खरे)
देश के सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के देश के उपाध्यक्ष डॉ.विनायक सेन को जमानत पर रिहा कर देने के आदेश दे दिए हैं, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। डॉ.विनायक सेन पिछले दो सालों से रायुपर की जेल में बंद हैं।राज्य की रमन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने डॉ.विनायक सेन पर नक्सलियों से संबंध रखने के आरोप लगाए हैं। राज्य सरकार का कहना है कि डॉ.विनायक सेन जेल में बंद एक कथित माओवादी के लिए संदेश वाहक का काम करने के साथ ही साथ सूबे में नक्सलवाद को बढावा दे रहे थे। यद्यपि डॉ.विनायक सेन आरंभ से ही सरकार के इन आरोपों का खण्डन करते आ रहे हैं किन्तु उनकी आवाज को सुनने वाला कोई नहीं है। न्यायालय ने उन्हें निचली अदालत में मुचलका भरने के उपरांत जमानत देने के आदेश दिए हैं।सर्वोच्च न्यायालय की अवकाशकालीन बैंच में न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू और दीपक वर्मा ने छत्तीसगढ सरकार के वकील के तर्क को सुनने से साफ इंकार कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि उन्हें मामले की पूरी जानकारी है। कोर्ट के इस वक्तव्य से साफ हो जाता है कि उसे छत्तीगढ सरकार के तर्क से कोई सरोकार नहीं है, और वह सरकार के रवैए से संतुष्ट नहीं है।दरअसल डॉ.विनायक सेन ने दिल की बीमारी का इलाज वेल्लूर में कराने के लिए जमानत की अर्जी दी थी, जिस पर राज्य सरकार द्वारा आपत्ति लगा दी थी। राज्य सरकार अगर चाहती तो डॉ.विनायक सेन की सेवाओं को देखते हुए उनकी जमानत की अर्जी का विरोध नहीं करती। वस्तुत: एसा हुआ नहीं।उधर जमानत मिलने के उपरांत डॉ.विनायक सेन ने आशंका जाहिर की है कि उन्हें सरकार से खतरा है। उनका कहना है कि राज्य सरकार कानून का जिस तरह बेजा इस्तेमाल कर रही है, उससे कभी भी कुछ भी घटित हो सकता है। सच ही कहा गया है ``समरथ को नहीं दोष गोसाईं।``रमन सरकार ने डॉ.विनायक सेन पर जिस तरह नक्सलियों से मिले होने के आरोप लगाए हैं, उससे सभी का चकित होना स्वाभाविक है। हम यह नहीं कहते कि सरकार के आरोप निराधार होंगे, सच्चाई क्या है, यह तो प्रकरण की समाप्ति पर ही सामने आ सकेगी, किन्तु सरकार क्या यह नहीं जानती कि परोक्ष रूप से तो नक्सल प्रभावित इलाकों में पदस्थ सरकारी मुलाजिम भी उनसे मिले हुए रहते हैं।एक वाक्या याद आ रहा है। बालाघाट में नक्सली हिंसा जोरों पर थी। नक्सलियों ने बालाघाट में बिठली के समीप उप निरीक्षक प्रकाश कतलम सहित 16 लोगों की जीप को एम्बु्रश लगाकर उडा दिया था। इसके बाद पुलिस की घेराबंदी में पांच नक्सली मारे गए थे।उस दौरान रिपोटि्रZंग के लिए हम भी मौके पर गए। तत्कालीन जिलाधिकारी एन.बेजेंद्र कुमार और पुलिस कप्तान मुकेश गुप्ता के साथ मौका ए वारदात पर पहुंचे। भारी संख्या में मौजूद सुरक्षा बल के बीच मारे गए नक्सलियों की तलाशी में पुलिस को एक डायरी भी मिली।बताते हैं उस डायरी में चौथ वसूली वालों की लिस्ट थी। इस फेहरिस्त में वहां पदस्थ पुलिस सहित अनेक सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों के नाम थे। बहरहाल सच्चाई चाहे जो भी हो पर उस डायरी का खुलासा उसके बाद नहीं हो सका था। कहने का तात्पर्य महज इतना है कि नक्सलप्रभावित क्षेत्रों में पदस्थ सरकारी कर्मचारियों को भी आतंक का भय सताता है, इसलिए दबे छुपे तौर पर ही सही वे नक्सलियों को प्रत्यक्ष या परोक्ष सहयोग करते हैें। वरना क्या कारण है कि विपुल धनराशि व्यय करने और इतने बडे बडे और फूल प्रूफ आपरेशन्स के बाद भी नक्सली समस्या जड से नहीं उखड पा रही है।डॉ.विनायक सेन कोई एरी गेरी नहीं वरन अंतर्राष्ट्रीय पुरूस्कार प्राप्त शिख्सयत है। उन्होंने छत्तीगढ राज्य में स्वास्थ्य सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई है। डॉ.सेन के सुझाव पर ही सरकार द्वारा महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता तैयार करने के लिए ``मितानिन`` योजना आरंभ की थी।छत्तीसगढ सरकार को चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हुए डॉ.विनायक सेन को इलाज हेतु वेल्लूर जाने में मदद करे, एवं अगर वह किसी तरह के पूर्वाग्रह से ग्रसित है तो उसे तजकर अपनी दिशा तय करे, और अगर वाकई डॉ.विनायक सेन ने नक्सलवादियों से संबंध रखकर नक्सलवाद को हवा दी है, तो निश्चित तौर पर उन्हें सजा मिलनी चाहिए।

कमल नाथ को मिल सकता है ग्रामीण विकास!
वाणिज्य मंत्रालय नहीं रही उनकी पसंद
मानव संसाधन के लिए भी उछला नाम
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के छिंदवाडा जिले को विश्व के मानचित्र पर पहचान दिलाने वाले केंद्रीय कबीना मंत्री कमल नाथ को ग्रामीण विकास अथवा मानव संसाधन विभाग की जवाबदारी साैंपी जा सकती है। कांग्रेस का एक खेमा उन्हें वापस वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय दिलाने पर आमदा दिखाई पड रहा है।केंद्रीय मंत्री कमल नाथ के करीबी सूत्रों का कहना है कि वे अब वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय छोडना चाह रहे हैं। सूत्रों ने बताया कि उनकी पहली प्रथमिकता विदेश मंत्रालय थी, जो कृष्णा को मिल गया है। इसके उपरांत उनकी पसंद वन एवं पर्यावरण, शहरी विकास अथवा उर्जा मंत्रालय थी। उधर कांग्रेस की सत्ता के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय कमल नाथ को देने पर विचार हुआ था, किन्तु राजस्थान के सी.पी.जोशी भी इस मंत्रालय में अपनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं।सूत्रों के अनुसार कांग्रेस अपने एजेंडे और घोषणा पत्र के हिसाब से महत्वपूर्ण मंत्रालयों को बडे ही सोचविचार के उपरांत बांटने का उपक्रम करेगी। अजुZन सिंह को मंत्री न बनाए जाने के बाद रिक्त हुआ महत्वपूर्ण मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय भी कमल नाथ के खाते में जा सकता है।सूत्रों ने यह भी संकेत दिए कि कमल नाथ के लंबे संसदीय अनुभव एवं उनकी कुशल कार्यप्रणाली का पूरा पूरा दोहन पार्टी करना चाह रही है, यही कारण है कि उन्हें कोई एसा मंत्रालय सौंपा जाएगा जिसमें वे कुछ करिश्मा कर सकें। गौरतलब होगा कि सबसे पहले उन्हें 1991 में नरसिंहराव सरकार में वन एवं पर्यावरण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जिसका निर्वहन उन्होंने बेहतरीन तरीके से किया।इसके उपरांत वस्त्र मंत्री के रूप में भी उनका कार्यकाल स्विर्णम ही कहा जा सकता है। पिछले पांच सालों में वे देश के वाणिज्य और उद्योग मंत्री रहे। इन पांच सालों में समूचे विश्व में भारत का जिस तरह डंका बजा उसके लिए काफी हद तक कमल नाथ की कार्य प्रणाली को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।ज्ञातव्य है कि कमल नाथ ने संजय गांधी की यूथ ब्रिगेड से अपरा राजनीतिक केरियर आरंभ किया और 1980 में मध्य प्रदेश की छिंदवाडा संसदीय सीट से उन्होंने अपना पहला चुनाव लडा। 14 करोड 17 लाख की घोषित संपत्ति के मालिक कमल नाथ अब तक छिंदवाडा से आठ चुनाव जीत चुके हैं। 2004 से 2009 तक के कार्यकाल में उनकी गिनती सर्वश्रेष्ठ आला मंत्रियों में की जाती थी।

मंगलवार, 26 मई 2009

फिर झुलस गया पंजाब
धर्म का मर्म समझे बिना हिंसा का मार्ग अपनाना दुर्भाग्यपूर्ण
(लिमटी खरे)

आस्ट्रिया की राजधानी वियना के हाल ही में अस्तित्व में आए गुरूद्वारे में एक धर्मगुरू की हत्या के उपरांत वर्षों से शांत पंजाब एक बार फिर हिंसा की चपेट में आ गया है, जिसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जा सकता है। आस्ट्रिया पुलिस का कहना है कि संतों पर हमला पूर्व नियोजित था। इस मामले में पंजाब के झुलसने के पीछे कुछ ठोस कारण समझ में आ रहे हैं।बताते हैं कि गुरूद्वारे में चढावे को लेकर मूल विवाद आरंभ हुआ है। कुछ माह पहले तक वियना में इकलौता गुरूद्वारा था, जिसे खालिस्तान समर्थक सिख चलाया करते थे। इसके उपरांत गुरू रविदास के पथ पर चलने वाले कुछ डेरा सचखड द्वारा उसी गुरूद्वारो के करीब एक और गुरूद्वारे की स्थापना कर दी।हालात देखकर लगता है कि विवाद की शुरूआत यहीं से हुई है। जब गुरूद्वारे में आने वाला मोटा चढावा दो भागों में बंट गया तब नए पंथ प्रमुख निरंजन दास पर खालिस्तान समर्थक सिखों ने कथित तौर पर हमला कर दिया। उनमें से एक धर्मगुरू का अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया तथा दूसरे का इलाज चालू है।इसकी आंच में पंजाब क्यों जलने लगा? इसका कारण दो विभिन्न विचारधारा अपनाने वाले हिन्दुस्तानियों में वर्चस्व की जंग के रूप में ही देखा जा सकता है। गौरतलब होगा कि पूर्व में डेरा सच्चा सौदा को लेकर भी पंजाब में काफी हंगामा हुआ था। वियना में घटी इस घटना के तार कहीं न कहीं पंजाब से अवश्य ही जुडे प्रतीत होते हैं, यही कारण है कि पंजाब में रक्तरंजित आतंक ने फिर एक बार पैर पसारने आरंभ कर दिए हैं। वैसे अभी तक घायल धर्मगुरू या किसी और ने हमलावरों की पहचान नहीं की है, साथ ही साथ हमलावरों का पंजाब से रिश्ता भी रेखांकित नहीं हो सका है, फिर पंजाब में तोडफोड और प्रदर्शन का ओचित्य समझ से परे ही है। दया, पे्रम, बराबरी, भाईचारे का संदेश देने वाले धर्मगुरूओं के उपदेशों का प्रभाव उतना अधिक नहीं पडता है, जितना कि कटुता, रंजिश, अलगाववाद, संकीर्णता आदि के संवाहकों की बातों का। यही कारण है कि अफवाहों के चलते संयम के अभाव में शांत हालात भी पंजाब की तरह बिगड सकते हैं। किसी ने सच ही कहा है -``अफवाहों से बचिए, इनके पर नहीं होते!, ये वो शैतान उडाते हैं, जिनके घर नहींं होते!!``आतंक फैलाने, तोडफोड आदि से क्या हालात काबू मेें आ जाएंगे? क्षणिक उद्वेलना और उन्माद के चलते हमारे देश के ही लोग देश की संपत्ति को किस कदर नुकसान पहुंचाते हैं। क्या राष्ट्रीय संपदा का नुकसान कर शांति सद्भाव और भाईचारे को बिगाडकर कुछ पाया जा सकता है? हमें आस्ट्रिया पुलिस और वहां की न्याय प्रणाली पर भरोसा रखना होगा। भारत सरकार को चाहिए कि जिन लोगों ने वहां धर्मस्थल पर खून खराबा कर भारत की साख पर बट्टा लगाया है, उनके खिलाफ कडी कार्यवाही के लिए आस्ट्रिया सरकार पर दबाव बनाए।आज धर्म को लोगों ने व्यवसाय बना लिया है। धर्मस्थलों के निर्माण के साथ ही उसमें आने वाले चढावे से लोग अपना व्यवसाय चलाने में भी नहीं चूक रहे हैं। देश भर में तेजी से फैलते धर्मस्थलों को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि नराधम और पापी लोग देश विदेश में भोली भाली जनता की भगवान के प्रति आस्था और निष्ठा को भुनाकर धन और प्रसिद्धि पाना चाह रहे हैं।आज समाचार चेनल्स पर बाबाओं की भीड देखते बनती है। कोई राशिफल बता रहा है, तो कोई प्रवचन कर रहा है, तो कोई कुछ ओर। हम इन बाबाओं के खिलाफ कतई नहीं हैं, किन्तु जब निहित स्वार्थों के लिए राजनेता इनका बेजा इस्तेमाल करते हैं, तब जरूर इनकी विश्वसनीयता पर शंका होने लगती है। कुछ प्रवचनकर्ता, एवं कथित धर्मगुरूओं की दुकान चुनावों के आसपास अच्छी चमक जाती है।बहरहाल प्रधानमंत्री डॉ.एम.एम.सिंह ने भी पंजाब के निवासियों से धैर्य और संयम न खोने की अपील की है। आज जरूरत इस बात की है कि पंजाब सरकार सूबे के धार्मिक संगठनों, धर्मगुरूओं आदि को विश्वास में लेकर उनके सहयोग से सुलगते पंजाब को शांत करे, क्योंकि पंजाब के रहवासी न केवल हिन्दुस्तान वरन् समूचे विश्व में भारत का नाम रोशन कर रहे हैं। पंजाब अगर सुलगेगा तो निश्चित रूप से विदेशों में भारत की छवि प्रभावित हुए बिना रहीं रह सकेगी।


. . . मतलब एमपी छग में स्मोकिंग एटीकेट ज्यादा है!
मध्य प्रदेश छत्तीसगढ में सार्वजनिक स्थान पर सिगरेट पीने पर एक भी चालान नहीं हुआ
तमिलनाडु में सर्वाधिक लोगों पर जुर्माना लगा
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। वर्ष 2008 में गांधी जयंती पर केंद्र सरकार ने सार्वजनिक स्थानों में धूम्रपान करने पर पाबंदी लगाई थी, जिसे तोडने पर 200 रूपए चालान का प्रावधान किया गया था। मार्च 2009 तक मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ में एक भी चालान न किए जाने से साफ हो जाता है कि दोनों ही प्रदेशों में लोग धूम्रपान को लेकर बहुत सतर्क हैं।वस्तुत: जमीनी हालात कुछ और बयां करते हैं। केंद्र सरकार के इस नियम के पालन में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ बुरी तरह पिछड चुके हैं। दोनों ही प्रदेशों में सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर रोक लगाने हेतु सरकारें कतई भी संजीदा नहीं प्रतीत हो रही हैं।सरकारी सूत्रों के अनुसार धूम्रपान निषिद्ध नियमों के उल्लंघन की शिकायत के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग ने राष्ट्रीय शुल्क मुक्त हेल्पलाइन नं0 1800-110-456 शुरूआत की है। इस नम्बर पर देश में कहÈ से सप्ताह में सातों दिन कभी भी फोन किया जा सकता है। इस नम्बर पर शिकायत दर्ज करने के अलावा फोनकर्ता संशोधित धूम्रपान मुक्त नियमावली के प्रावधानों, सार्वजनिक स्थान, खुल स्थान, जुमाने की राशि आदि के बारे में जानकारी हासिल कर सकता है। मार्च 2009 तक धूम्रपान नियमों के उल्लंघन की 1600 शिकायतें इस हेल्पलाइन नम्बर पर आई। हेल्पलाइन पर आने वाली शिकायतों की सूचना तत्काल संबंधित राज्य को दे दी जाती है जो नियम के तहत उपयुक्त कार्रवाइ करता है।फिलहाल चंडीगढ भा़रत में धूम्रपान मुक्त शहर है। दिल्ली को 2009 तक तथा चेéई, अहमदाबाद और मुम्बई को 2010 तक धूम्रपान मुक्त शहर बनाने का प्रस्ताव है। झारखंड और सििôम जैसे कुछ राज्य भी धूम्रपानमुक्त राज्य बनने का प्रयास कर रहे हैं।दुनिया में तम्बाकू उत्पादों के खपत के मामले में भारत का दूसरा स्थान है। देश में तम्बाकू उत्पाद जहां बीड़ी, सिगरेट, सिगार, चिलम, हुôा आदि के रूप में पीया जाता है, वहÈ गुटका, जर्दा, पान, पानमसाला, ख्ौनी आदि के रूप में चबाया जाता है। राष्ट्रीय परिवार कल्याण स्वास्थ्य सर्वेक्षण तृतीय के अनुसार 57 प्रतिशत पुरुष तथा 10.9 प्रतिशत महिलाएं तम्बाकू उत्पादों का सेवन करती हैं। तम्बाकू उत्पादों का सेवन शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा होता है। पूर्वाेत्तर क्षेत्र इस मामले में सबसे आगे हैं। एक अनुमान के अनुसार 13 से 15 वर्ष आयु के 14.1 प्रतिशत किशोर तम्बाकू उत्पादों का उपभोग करते हैं। देश में हर वर्ष 8 से 9 लाख लोग तम्बाकू जनित बीमारियों से मर जाते हैं। सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद (विज्ञापन पर रोकथाम तथा वाणिज्य व्यापार, उत्पादन, आपूर्ति और वितरण का विनियमन) अधिनियम 2003 सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पादों के सेवन को निरुत्साहित करने के लिए बनाया गया था। इसके बाद 2 अक्तूबर, 2008 को संशोधित धूम्रपान मुक्त नियमावली लागू किया गया। इसके तहत सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान निषिद्ध है। उल्लंघ्न करने पर 200 रुपए का जुर्माना लग सकता है।

सोमवार, 25 मई 2009

क्यों खौफजदा हैं जनता के चुने गए नुमाईंदे

(लिमटी खरे)

जनता के द्वारा, जनता के लिए, आम जनता की सरकार के जनादेश प्राप्त नुमाईंदे जब भी उसी जनता के बीच जाते हैं तो भारी भरकम सुरक्षा घेरे में! आखिर यह कहां का न्याय हुआ। जनता ने जिन्हें मत देकर अपने सर माथे पर बिठाया, अपने भविष्य के लिए उन्हें चुना, और वे ही चुने हुए जनप्रतिनिधि जनता से ही खौफ खा रहे हैं।हाल ही में गृह मंत्रालय के आला अधिकारियों ने कथित तौर पर व्हीव्हीआईपी और व्हीआईपी लोगों की सुरक्षा में कटौती की सिफारिश की है, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। अमूमन देखा गया है कि जनप्रतिनिधियों द्वारा सरकारी सुरक्षा को प्रतिष्ठा का प्रतीक बना लिया है। ब्लेक केट, वाय एवं जेड श्रेणी की सुरक्षा का लाभ चाहे जो उठा रहा है। जिन सूबों के निजामों को यह मुहैया नहीं, वहां की सरकारों ने काले कपडों में राज्य पुलिस के अमले को ही अपनी सुरक्षा में लगा रखा है। कुछ नेताओं ने तो निजी सुरक्षा एजेंसियों के माध्यम से कथित तौर पर ``ब्लेक केट`` सुरक्षा अपना रखी है।कितने आश्चर्य की बात है कि देश पर आतंकवादी, अलगाववादी, नक्सलवादी हमलों पर हमले करते जा रहे हैं, और जनता के चुने हुए नुमाईंदे रियाया की हिफ़ाजत करने के बजाए अपनी सुरक्षा को चाक चौबंद करने पर आमदा हैं। नेताओं को एक्स, वाय, जे़ड और जे़ड प्लस श्रेणी की सुविधाओं की दरकार आखिर क्यों है? क्या वे अपने लोगों से इस कदर खौफ़जदा हैं कि उन्हें सुरक्षा की जरूरत है? या फिर स्टेटस सिंबाल बन चुकी सुरक्षा की श्रेणियों को अपनाकर नेता अपना रूआब गांठना चाहते हैं।आकडों पर अगर नजर डाली जाए तो हम भी आश्चर्यचकित हो जाएंगे। देश में जहां एक ओर भुखमरी, गरीबी, कमर तोड मंहगाई बेरोजगारी अपना नंगा नाच दिखा रही है, वहीं दूसरी ओर हम अपने अतिविशिष्ट (व्हीव्हीआईपी) और विशिष्ट (व्हीआईपी) लोगों की सुरक्षा पर हर साल करोड़ों फूंक देते हैं। शायद ही दुनिया का कोई अमीर या गरीब देश एसा हो जो सत्ताधारियों को इतनी भारी भरकम सुरक्षा प्रदान करता हो। हिन्दुस्तान ही शायद इकलौता देश होगा जहां सत्ताधारियों के बच्चों और नाती पोतों तक को जेड प्लस केटेगरी की सुरक्षा प्रदान की गई हो।क्या आम जनता की गाढ़ी कमाई (टेक्स) से वसूली रकम का यह आपराधिक दुरूपयोग नहीं है। जब इस तरह के जेड प्लस सुरक्षा कवच में कोई बच्चा नर्सरी स्कूल जाएगा तो उसकी सुरक्षा में आठ कारों का काफिला और भारी संख्या में सुरक्षा बल का मौजूद रहना, सुरक्षा तंत्र का भद्दा मजाक नहीं है?दिल्ली उच्च न्यायालय में जमा किए गए आंकड़ों से साफ हो जाता है कि भारत में व्हीआईपी सुरक्षा पर कुल 250 करोड़ रूपए सालाना की लागत आती है, वहीं बाकी बची 125 करोड़ की जनता की जान माल के लिए महज 200 करोड़ रूपए ही मुहैया हो पाते हैं। यह कहां का न्याय कहा जाएगा?देश में जेड़ सुरक्षा श्रेणी के 70, वाई के 245 एवं एक्स के 85 नेता हैं। आंकड़े चौकाने वाले अवश्य हैं किन्तु इनमें सत्यता है कि देश के प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्रियों और नेहरू गांधी परिवार की सुरक्षा के लिए विशेष रूप से गठित की गई एसपीजी का चालू माली साल का बजट 180 करोड़ रूपए है। इसके अलावा एनएसजी का सालाना बजट 160 करोड़ रूपए सालाना है।वहीं खुफिया एजेंसियों की अगर मानी जाए तो देश के 400 मेें से 125 नेताओं को सुरक्षा की आवश्यक्ता नहीं है, तथा 135 नेताओं की मौजूदा श्रेणी को कम किया जा सकता है। एक अनुमान के अनुसार एक नेता को मुहैया सुरक्षा में औसतन तीस हजार रूपए मासिक का खर्च आता है।पूरे परिदृश्य पर अगर नज़र डाली जाए तो देश के लगभग 13 हजार से ज्यादा व्हीआईपी की सुरक्षा में तैनात 46 हजार सुरक्षाकर्मियों में कमी कर राज्य स्तर पर एनएसजी कमांडो तैनात किए जा सकते हैं, जो मुंबई हमले जैसी घटनाअों में त्वरित कदम उठा सकते हैं।सुरक्षा पाने वालों की फेहरिस्त में केंद्रीय मंत्रियों के अलावा, सांसद, पत्रकार, सेवा निवृत प्रशासनिक अधिकारी भी आते हैं, साफ है कि रसूख वाला ही भयाक्रांत है। क्या यह समय नहीं है जब विशिष्ट अथवा असुरक्षित व्यक्ति को नए सिरे से परिभाषित किया जाए। अगर रसूख वालों को ही जान माल का खतरा है, तो देश के बाकी 125 करोड़ लोगों में शामिल गरीब, मजदूर, किसान आखिर किसकी जमानत पर अपनी जान माल सुरक्षित मानें?दिल्ली उच्च न्यायालय ने सुरक्षा संबंधी सवालों पर दो टूक टिप्पणी करते हुए कहा था कि नेता कोई राष्ट्रीय संपत्ति नहीं हैं, जो कि उन्हें संरक्षित किया जाए। वहीं सर्वोच्च पदों पर बैठे नेताओं के अलावा संरक्षित ``राष्ट्र रत्नों`` में कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी एवं उनका पूरा परिवार (पुत्री प्रियंका के विवाह के बाद उनके परिवार को भी), राजग के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी, प्रकाश सिंह बादल एवं उनका पूरा परिवार, अमर सिंह, राम विलास पासवान, मायावती, नरेंद्र मोदी, जय ललिता, ई.अहमद, शरद यादव, एच.डी.देवगोड़ा, मुरली मनोहर जोशी, रामेश्वर ठाकुर, सज्जन कुमार, वृजभूषण शरण, आर.एल.भाटिया, प्रमोद तिवारी, बी.एल.जोशी आदि शामिल हैं। पूव लोकसभाध्यक्ष शिवराज पाटिल और पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह भी इसी फेहरिस्त का ही एक अंग है, जिन पर गाज गिरने की संभावना है।स्टेटस सिंबाल बन चुकी सुरक्षा श्रेणियों में वरिष्ठ को तजकर पिछली मर्तबा गृहमंत्री बने चिदम्बरम ने एक नज़ीर पेश की थी। चिदम्बरम को प्राप्त वाई के स्थान पर जेड़ श्रेणी की सुरक्षा की पेशकश की थी, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बेनर्जी, सीपीआई के ए.बी.वर्धन, सीपीएम के प्रकाश करात आदि ने भी सुरक्षा को स्टेटस सिंबाल नहीं बनाया है।पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने तो मानो हदें पार ही कर दी हैं। पंजाब की ढाई करोड़ की जनता की सुरक्षा में कुल 90 हजार जवान तैनात हैं, जबकि सूबे के निजाम और उनके परिवार की रखवाली के लिए 963 जवानों को पाबंद किया गया है। उधर प्रधानमंत्री की कुर्सी को मछली की आंख की तरह देखने वाली उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री जेड प्लस और एनएसजी से संतुष्ट नहीं हैं, वे अपने लिए एसपीजी की सुरक्षा मुहैया कराने की मांग कर रही हैं।देश के इन नेताओं को पश्चिम बंगाल के नेताओं से वाकई सबक लेने की जरूरत है। यहां मुख्यंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य, विधानसभा अध्यक्ष हाशिम अब्दुल हमीद और वित्त मंत्री अमीम दासगुप्ता के अलावा किसी अन्य मंत्री को कार केट अथाZत पायलट एवं टेल कार उपलब्ध नहीं है। यहां मंत्रियों के साथ महज एक सुरक्षा कर्मी ही चलता है। पश्चिम बंगाल में विधायक हो या सांसद सभी लोकल ट्रेन या बस में सफर करते दिख ही जाते हैं।देर से ही सही केंद्रीय गृह मंत्रालय के आला अधिकारियों की नींद खुली है। देखना यह है कि इन सिफारिशों पर अमली जामा पहनाया जाता है या फिर स्टेटस सिंबाल को बरकरार रखते हुए इन्हें ठंडे बस्ते के हवाले कर एक बार फिर आम भारतीय को असुरक्षित होने का एहसास दुबारा करवाया जाता है।
-------------------------------------
केवल दो ही मंत्री होंगे मध्य प्रदेश से
छत्तीसगढ़ के साथ नहीं हो सकेगा इंसाफ
चार जीते तब छ: मंत्री, बारह में केवल दो!
क्षेत्रीय संतुलन नहीं बना पाएंगे मनमोहन

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। 29 में से चार से बढ़कर बारह का आंकड़ा छूने के बाद भी मध्य प्रदेश को महज दो ही मंत्रियों से संतोष करना होगा। मंगलवार को होने वाले विस्तार में कमलनाथ के अलावा युवा तुर्क ज्योतिरादित्य सिंधिया को शामिल किया जा रहा है।गौरतलब होगा कि वर्ष 2004 में जब प्रदेश में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक था, उस समय महज चार सांसद ही लोकसभा की दहलीज पर पहुंचे थे तब कमल नाथ एवं कांतिलाल भूरिया को लोकसभा सदस्य तथा हंसराज भारद्वाज, अजुZन सिंह एवं सुरेश पचौरी को राज्य सभा के चलते मंत्री बनाया गया था। इसके उपरांत ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी लाल बत्ती से नवाजा गया था।आश्चर्य की ही बात है कि हाल ही में संपन्न हुए आम चुनावों में जबकि कांग्रेस ने पिछली बार की तुलना में तीन गुना ज्यादा सीटें लाईं गईं हैं, तब सरकार के गठन के दौरान महत कमल नाथ को ही मंत्री बनाया गया है। पहले विस्तार में मध्य प्रदेश से ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही मंत्रीपद से नवाजा जा सकता है।उधर दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ का खाता इस बार भी खुलता नहीं दिख रहा है। पिछली मर्तबा अजीत जोगी छग के अकेले कांग्रेस सांसद थे जो बरास्ता लोकसभा गए थे, इस बार चरण दास महंत इकलौते सांसद हैं। कांग्रेस की सत्ता के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि अजीत जोगी की हट के चलते इस बार चरण दास महंत को लाल बत्ती मिलना मुश्किल ही प्रतीत हो रहा है।पिछली बार सरकार में शामिल कुंवर अजुZन सिंह को अस्वस्थ्यता के चलते सरकार में शामिल नहीं किया गया है। सूत्र बताते हैं कि अजुZन सिंह के बहाने कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी ने अनेक संदेश दे दिए हैं। इसके अलावा आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया का नंबर भी पहले विस्तार में नहीं लग सकेगा।कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज पहले मध्य प्रदेश से राज्य सभा सांसद थे, जो बाद में हरियाणा से राज्य सभा में गए। इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुरेश पचौरी की राज्यसभा की सदस्यता पिछले साल ही समाप्त हो गई थी, एवं इस बार उन्होंने लोकसभा चुनाव नहीं लडा। माना जा रहा है कि सुरेश पचौरी आने वाले समय में किसी अन्य प्रदेश से राज्यसभा सदस्य बनने के उपरांत इसके बाद होने वाले विस्तार में मंत्री पद प्राप्त करेंगे।

रविवार, 24 मई 2009

0 आलेख 24 मई 2009
कटीली राह है मन मोहन की

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के बोथरे आरोपों प्रत्यारोपों, पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी की अदूरदर्शिता के चलते एक बार फिर डॉक्टर मनमोहन सिंह के रूप में नए वजीरे आजम ने पदभार ग्रहण कर लिया है। अगर देखा जाए तो यह कांग्रेस की जीत नहीं वरन भाजपा और एल.के.आडवाणी की हार है।मनमोहन सिंह सरकार में नए मंत्रियों का चयन बडी ही बारीकी से किया गया है। सरकार को अब देश चलाना बहुत ज्यादा आसान नहीं होगा। आने वाले समय में मनमोहन सरकार के सामने शूल ही शूल नजर आ रहे हैं। इन चुनौतियों से कांग्रेस कैसे निपटेगी यह यक्ष प्रश्न आज भी निरूत्तर ही है।मनमोहन सिंह ने 77 वषीZय एस.एम.कृष्णा को विदेश मंत्रालय की महती जवाबदारी सौंपी है। विदेशों में पढे कृष्णा के सामने चुनौतियों का सागर खड़ा हुआ है। उनके सामने सबसे पहली चुनौती श्रीलंका में विस्थापितों के लिए राहत पहुंचाना होगा। इसके लिए उन्हें कूटनीतिक तरीके से दबाव बनाना होगा। इसके अलावा पाकिस्तान, बंग्ला देश के रास्ते आने वाले आंतकवाद को रोकने विश्वभर में भारत के पक्ष में माहौल तैयार करना होगा। नेपाल भी कृष्णा के लिए चुनौति से कम नहीं है। नेपाल में स्थायित्व लाने उन्हें कमर कसनी होगी। साथ ही दुनिया के चौधरी अमेरिका और दूसरी महाशक्ति बन चुके चीन के साथ भी सामंजस्य स्थापित करना उनकी प्रथमिकता होनी चाहिए।दस से अधिक बार विभिन्न विभागों के मंत्री रह चुके 74 वषीZय प्रणव मुखर्जी को मनमोहन सिंह सरकार में वित्त मंत्रालय सौंपा गया है। वैश्विक अर्थिक मंदी से भारत अछूता नहीं है। इस नजरिए से प्रणव के सामने चुनौतियां ही चुनौतियां हैं। मंदी की मार झेल रहे घरेलू बाजार और निर्यात को एक और अधिक बेहतर आर्थिक पैकेज की दरकार है। इसके अलावा बीमा बिल भी प्रणव के लिए गले की फांस बन सकता है।आतंकवाद, अलगाववाद, नक्सलवाद आदि की जद में फंसे हिन्दुस्तान में पी.चिदंबरम के लिए गृह मंत्री का ताज निश्चित रूप से कांटों भरा ही कहा जा सकता है। इन सभी मोर्चों पर भारत को डटकर मुकाबला करने के लिए ठोस रणनीति की जरूरत है, जिसका अभाव पिछली मर्तबा साफ दिखा था, तभी देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर आतंकी हमले को अंजाम दिया जा सका था। अगले साल होने वाले कामनवेल्थ गेम, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सुरक्षा को लेकर तालमेल चिदम्बरम के सामने सबसे बडी चुनौति प्रतीत हो रही है। 64 वषीZय चिदम्बरम को नेशनल इंटेलीजेंस गि्रड एवं इंटीग्रेटेड नेशनल सिक्योरिटी डाटाबेस की स्थापना को प्राथमिकता पर संपादित करना होगा। बंग्लादेशी घुसपेठियों द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था में लगाई जा रही सेंध को रोकना भी उनके सामने एक चुनौती है।मंत्रीमण्डल में अपेक्षाकृत युवा मंत्री ममता बेनर्जी को रेल विभाग का दायित्व सौंपा गया है। स्वयंभू मेनेजमेंट गुरू लालू प्रसाद यादव ने भले ही भारतीय रेल को मुनाफे में ला दिया हो पर उस जादू को बरकरार रखना आसान नहीं होगा। ममता के सामने जो चुनौतियां हैं उनमें प्रमुख रूप से काश्मीर योजना को लागू करना, डेडीकेटेड फ्रेट कारीडोर के अलावा यात्रियों के जानमाल की सुरक्षा प्रमुख हैं। आए दिन लुटने वाली भारतीय रेल को सुरक्षित बनाने उन्हें ठोस कार्ययोजना बनानी होगी। इसके अलावा बदतर होती यात्री सुविधाओं और गुणवत्ता में सुधार लाना बहुत जरूरी प्रतीत हो रहा है।कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी के सबसे प्रिय माने जाने वाले रक्षा मंत्री ए.के.अंटोनी के सामने असुरक्षित सीमाएं सबसे बडी चुनौती के रूप में दिख रही हैं। 69 वषीZय अंटोनी को डीआरडीओ का पुर्नगठन, सेनाओं में तालमेल, हथियार खरीदी में पारदर्शिता, के अलावा उत्तरी पर्वतीय और शेष समुद्री सीमाओं को सील करना प्राथमिकता होना चाहिए।कुल मिलाकर मन मोहन सिंह सरकार में जिन छ: मंत्रियोंें को विभाग सौंपे गए हैं वे सभी चुनौती भरे ही कहे जा सकते है। यही नहीं देश के हर विभाग के सामने एक न एक समस्या मुंह बाए खडी है। कमजोर पडती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाकर देश के अंतिम व्यक्ति को सुरक्षित, सक्षम और खुशहाल बनाने के लिए सरकार को कडी अग्निपरीक्षा से गुजरना होगा।

24 may 2009

आलेख 09 मई 2009
इंडिया यंग, लीडरशिप ओल्ड!
(लिमटी खरे)

भारत देश दिनों दिन जवान होता जा रहा है, किन्तु आज भी सियासत की बागड़ोर उमरदराज नेताओं के हाथों में ही खेल रही है। यंगिस्तान की राह इन पुराने नेताओं के हाथों से होकर ही गुजर रही है, किन्तु साठ पार कर चुके नेता आज भी युवाओं को देश की बागडोर सौंपने आतुर नहीं दिख रहे हैं।पिछले कुछ महीनों में यंगिस्तान को तवज्जो मिलना आरंभ हुआ है। युवाओं को यह भाव इसलिए नहीं मिला है, कि देश का उमरदराज नेतृत्व उन पर दांव लगाना चाह रहा है, इसके पीछे सीधा कारण दिखाई पड़ रहा है कि देश में 18 से 30 साल तक के करोड़ों मतदाताओं को लुभाने की गरज से साठ की उमर पार कर चुके नेताओं ने यह प्रयोग किया है।कहने को तो सभी सियासी पार्टियों द्वारा युवाओं को आगे लाने और उनके हाथ में कमान देने की बातें जोरदार तरीके से की जाती हैं, किन्तु विडम्बना ही कही जाएगी कि सियासी दल युवाओं को आगे लाने में कतराती ही हैं। कांग्रेस में नेहरू गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी राहुल गांधी को आगे लाया जा रहा है, वह भी इसलिए कि उनके नाम को भुनाकर राजनेता सत्ता की मलाई काट सकें। वरना अन्य राजनैतिक दल तो इस मामले में लगभग मौन ही साधे हुए हैं।कांग्रेस में सोनिया गांधी (63), मनमोहन सिंह (77), प्रणव मुखर्जी (75), अजुZन सिंह (79), ए.के.अंटोनी (69) के साथ पार्टी में नेताओं की औसत उमर 72 साल है। भाजपा भी इससे पीछे नहीं है अटल बिहारी बाजपेयी (85), एल.के.आड़वाणी (82), राजनाथ सिंह (58), एम.एम.जोशी (75) तो सुषमा स्वराज (57) के साथ यहां औसत उमर 71 दर्ज की गई है।वामदलों में सीपीआईएम में प्रकाश करात (62), सीताराम येचुरी (57), बुद्धदेव भट्टाचार्य (65), अच्युतानंदन (86) के साथ यहां राजनेताओं की औसत उमर 70 तो समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव (69), अमर सिंह (53), जनेश्वर मिश्र (75), रामगोपाल यादव (63) के साथ यह सबसे यंग पार्टी अथाZत यहां औसत उमर 61 है।सियासी पार्टियों में एक बात और गौरतलब होगी कि जितने भी युवाओं को पार्टियों ने तरजीह दी है, वे सभी जमीनी नहीं कहे जा सकते हैं। ये सभी पार्टियों में पैदा होने के स्थान पर अवतरित हुए हैं। इनमें से हर नेता किसी न किसी का केयर ऑफ ही है, अथाZत यंगस्तान के नेताओं को उनके पहले वाली पीढ़ी के कारण ही जाना जाता है। ग्रास रूट लेबिल से उठकर कोई भी शीर्ष पर नहीं पहुंचा है।हाल ही में संपन्न हुए आम चुनावों के पहले रायशुमारी के दौरान एक राजनेता ने जब अपने संसदीय क्षेत्र में अपने कार्यकर्ताओं के सामने युवाओं की हिमायत की तो एक प्रौढ़ कार्यकर्ता ने अपनी पीड़ा का इजहार करते हुए कहा कि जब मैं 29 साल पूर्व आपसे जुड़ा था तब युवा था, आज मेरा बच्चा 25 साल का हो गया है, वह पूछता है कि आप तब भी आम कार्यकर्ता थे, आज भी हैं, इन 29 सालों में आपको क्या मिला, आज मैं जवान हो गया हूं, तो किस आधार पर नेताजी युवाओं को आगे लाने की बात करते हैं।दुनिया के चौधरी अमेरिका में युवाओं और बुजुर्गों के बीच अंतर की एक स्पष्ट फांक दिखाई पड़ती है। अमेरिका जैसे विकसित देश में जहां युवा पर्यावरण, जीवनशैली, रहन सहन और पारिवारिक मूल्यों के बारे में पुरानी पीढ़ी से अपने मत भिन्न रखती है, वहीं दूसरी ओर आधुनिक जीवनशैली के मामले में युवाओं द्वारा तेज गति से बदलाव चाहा जाता है।वैसे मेरी व्यक्तिगत राय में हर राजनैतिक दलों में युवाओं और बुजुर्गों के बीच संतुलन और तालमेल होना चाहिए। यह सच है कि उमर के साथ ही अनुभव का भंडार बढ़ता है, पर यह भी सच है कि उमर बढ़ने के साथ ही साथ कार्य करने की क्षमता में भी कमी होती जाती है। जिस गति से युवाओं द्वारा कार्य को अंजाम दिया जाता है उसी तरह मार्गदर्शन के मामले में बुजुर्ग अच्छी भूमिका निभा सकते हैंं।कितने आश्चर्य की बात है कि जिस ब्यूरोक्रेसी (अफसरशाही) की बैसाखी पर चलकर राजनेता देश को चलता है, उसकी सेवानिवृत्ति की उम्र साठ या बासठ साल निर्धारित है, किन्तु जब बात राजनेताओं की आती है तो चलने, बोलने, हाथ पांव हिलाने में अक्षम नेता भी संसद या विधानसभा में पहुंचने की तमन्ना रखते हैं, यह कहां तक उचित माना जा सकता है।हमारे विचार से महज कुछ चेहरों के आधार पर नहीं, वरन् विचारों के आधार पर युवाओं को व्यापक स्तर पर राजनीति में आने प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। बुजुर्ग राजनैताओं का नैतिक दायित्व यह बनता है कि वे सक्रिय राजनीति से सन्यास लेकर अब मार्गदर्शक की भूमिका में आएं और युवाओं को ईमानदारी से जनसेवा का पाठ पढ़ाएं तभी गांधी के सपनों का भारत आकार ले सकेगा।
--------------------
नहीं हटेगी तीसरी बर्थ!
0 रेल्वे बोर्ड और भारतीय रेल के बीच रस्साकशी0 कोच में हंगामा होने के आसार0 16 जुलाई तक साईड मिडिल बर्थ हटना नामुमकिन
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाने और अधिक यात्रियों को गंतव्य तक पहुंचाने की गरज से स्लीपर कोच में आरंभ की गई साईड मिडिल बर्थ को अब 16 जुलाई तक हटाने की संभावनाएं क्षीण होती जा रही हैं। एक ओर 16 जुलाई के उपरंात थर्ड बर्थ का रिजर्वेशन बंद करा दिया गया है, वहीं दूसरी ओर कोच में इसके लगे रहने के कारण 16 जुलाई के बाद स्थिति खासी विस्फोटक होने का अनुमान है।गौरतलब होगा कि घाटे में चली रही विश्व की सबसे बड़ी रेल परियोजना को लाभ में लाकर भले ही स्वयंभू प्रबंधन दिग्गज (मेनेजमेंट गुरू) लालू प्रसाद यादव ने खुद को चर्चाओं में ला दिया हो, किन्तु स्लीपर कोच में साईड मिडिल बर्थ लगाकर 82 के बजाए 84 बर्थ करने के उपरांत यात्रियों को होने वाली व्यवहारिक कठिनाईयों ने उन्हें झुकने पर मजबूर कर दिया।रेल्वे बोर्ड के विश्वस्त सूत्रों के अनुसार तीखी आलोचनाओं के उपरांत बोर्ड ने फैसला लिया है कि 16 जुलाई के उपरांत स्लीपर कोच में साईड मिडिल बर्थ को हटाकर इसका रिजर्वेशन न किया जाए। बोर्ड ने इस तरह के निर्देश भी बाकायदा जारी कर दिए हैं। अगामी दिनों के आरक्षण में तीसरी बर्थ का रिजर्वेशन नहीं किया जा रहा है।उधर भारतीय रेल के तकनीकि विभाग के सूत्रों का कहना है कि भारतीय रेल के तकनीकि प्रभाग ने 16 जुलाई तक तीसरी बर्थ हटाने में अपनी असमर्थता जता दी है। इसके पीछे रेल्वे बोर्ड का तुगलकी फरमान बताया जा रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार रेल्वे बोर्ड द्वारा फरमान जारी कर 16 जुलाई के उपरांत तीसरी बर्थ का आरक्षण न करने तथा डब्बों को कोच फेक्ट्री में ले जाए बिन ही तीसरी बर्थ हटाने की बात कही है।बोर्ड के सूत्रों का कहना है कि कोच फेक्ट्री में अगर डब्बे को ले जाया गया तो गर्मी में `सीजन` के दौरान रेल्वे को बड़ा घाटा उठाने के साथ ही साथ कम कोच होने से यात्रियों के गुस्से का शिकार होना पड़ेगा। इसलिए यह फैसला लिया गया है कि डब्बे को बिना कोच वर्कशाप ले जाए ही इसे निकाल दिया जाए, ताकि रेल सेवाएं बाधित न हो सकें, जो कि असंभव ही है। उधर भारतीय रेल के तकनीकि प्रभाग द्वारा रेल्वे बोर्ड को पत्र लिखकर समय की मांग करते हुए अपनी असमर्थता व्यक्त की है।माना जा रहा है कि 16 जुलाई के उपरांत जब साईड मिडिल बर्थ पर आरक्षण तो नहीं होगा किन्तु कोच में ये बर्थ अस्तित्व में होंगी तब प्रतिक्षा सूची वाले यात्रियों की नजरें इस पर टिकी होना स्वाभाविक ही है, इन परिस्थितयों में यात्रियों के बीच आए दिन होने वाले विवाद को टाला नहीं जा सकता है।

आलेख 12 मई
2009कोढ में खाज है दसवीं का परीक्षाफल
(लिमटी खरे)

मध्य प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा मण्डल के हाई स्कूल सार्टिफिकेट परीक्षा (दसवीं) के निराशाजनक परीक्षा परिणामों को देखकर लगने लगा है कि अब मध्य प्रदेश सरकार को अपने शिक्षा तंत्र के बारे में सोचना आवश्यक हो गया है। एचएसएस परीक्षा परिणाम वैसे भी अनेक संकेत दे रहे हैं।कितने आश्चर्य की बात है कि इस बार दसवीं में पेंसठ फीसदी विद्यार्थियों के हाथ असफलता ही लगी है। परिणामों की घोषणा के साथ ही समूचे सूबे में मायूसी की लहर व्याप्त हो जाना स्वाभाविक ही है। निराश विद्यार्थियों द्वारा जीवन समाप्त करने के प्रयास करने की खबरें भी आ रही हैं, जो निन्दनीय हैं।दुनिया भर में पसरी आर्थिक मंदी से भारत अछूता नहीं है। इस मंहगाई के जमाने में मध्य प्रदेश में निवास करने वाले मध्यम और निम्न आय वर्ग के लोगों के सामने अपने बच्चों को शिक्षा दिलाना काफी दुष्कर ही प्रतीत हो रहा है। माध्यमिक शिक्षा मण्डल से संबद्ध शालाओं में अध्ययन करने वाले असफल विद्यार्थियों के परिवारों में उदासी और असंतोष के बीज पनपना जाहिर है।औंधे मुंह गिरे परीक्षा परिणामों के कारणों को जानने सरकार द्वारा एक कमेटी का गठन कर दिया गया है, जो एक पखवाड़े में यह बताएगी कि इस बार परीक्षा परिणाम 22.6 फीसदी गिरकर इतने निराशाजनक क्यों रहे।वैसे निराशाजनक परीक्षा परिणामों के जो कारण सामने आ रहे हैं, उनमें चुनाव प्रमुख कारण कहा जा रहा है। शिक्षामंत्री ने यह तो स्वीकार कर लिया कि पिछले छ: माहों से शिक्षक लगातार चुनावी कार्यों में व्यस्त रहे, किन्तु इस समस्या के निदान के लिए उन्होंने न तो चिंता जाहिर की और न ही वैकल्पिक व्यवस्था को खोजने में अपनी रूचि ही दिखाई है।हमारा कहना यह है कि अगर प्रदेश के शिक्षामंत्री के पास इस तरह के बुरे परिणामों का स्पष्ट जवाब है तो फिर समीति बनाकर कारण पता करने की औपचारिकता क्यों? पहले विधानसभा फिर लोकसभा चुनावों में लगे शिक्षाकर्मियों को उनके मूल अथाZत शिक्षण के काम से मुक्त रखना कहां तक न्यायसंगत कहा जा सकता है।आने वाले दिनों में पंचायतो के साथ ही साथ स्थानीय निकायों के चुनाव भी होने हैं, जाहिर है शिक्षा कर्मियों को एक बार फिर चुनावों की तैयारियों और निष्पादन में झोंक दिया जाएगा। इसके बीच में से चंद दिन निकालकर शिक्षक अध्यापन कार्य, बोर्ड परीक्षाएं, आंतरिक परीक्षाएं, प्रायोगिक परीक्षाएं, मूल्यांकन और परीक्षा परिणाम का अपना मूल दायित्व निभाते आए हैं और निभाते रहेंगे।मध्य प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था को मानो जंग लग चुकी है। शिक्षक के पद पर भर्ती होकर अन्य विभागों में संविलियन के साथ ही साथ सरकारी शिक्षकों से पल्स पोलियो, नसबंदी, चुनाव जैसे कार्यों में बेगार करवाना निश्चित रूप से देश के नौनिहालों के भविष्य के साथ खिलवाड़ ही कहा जाएगा।कितने आश्चर्य की बात है कि प्रतिबंध के बावजूद भी शिक्षकों का अध्यापन से इतर अन्य कार्यों के निष्पादन के लिए अटेचमेंट आज भी बदस्तूर जारी है। पहुंच संपन्न शिक्षक शहरों की ओर रूख करते नजर आते हैं, गांव के स्कूल शिक्षक विहीन पड़े हुए हैं। न शासन और न प्रशासन यहां तक कि राजनेताओं को भी अपने वोट बैंक की खातिर इस ओर देखने की फुर्सत नहीं है।एसा नहीं कि विभागीय उच्चाधिकारियों अथवा शासन में बैठे प्रमुख सचिव से लेकर सेक्शन के बाबू को इस बारे में माहिति न हो। जानते सभी हैं पर मजबूर हैं मोन रहने को। साल भर शालाओं का निरीक्षण चलता है, किन्तु रीते पद रीते ही रह जाते हैं। निरीक्षक की औपचारिकता कैसे पूरी होती हैं, यह बात सभी बेहतर तरीके से जानते हैं।यहां आश्चर्यजनक पहलू यह भी है कि मोटी फीस लेकर अध्यापन को पेशा बनाने वाले अशासकीय स्कूलों में परीक्षा परिणाम प्रभावित क्यों हुए? इस तरह की शालाओं को तो चुनाव और अन्य बेगार के कामों से मुक्त रखा गया है। फिर आखिर एसी कौन सी वजह है कि इन शालाओं मेें भी विद्यार्थियों का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा।बहरहाल नतीजों के खराब रहने के लिए गठित जांच दल किन बिन्दुओं को आधार बनाकर अपनी रिपोर्ट पेश करता है, यह तो आने वाले दिनों में ही पता चल सकेगा, किन्तु जांच दल को चाहिए कि ग्रास रूट लेबल पर जाकर व्यवहारिक परेशानियों को आधार बनाकर अपना प्रतिवेदन दे ताकि प्रदेश के नौनिहालों के भविष्य के साथ खिलवाड़ न हो सके।
-----------------------------------------------
आलेख 13 मई 2009
सर्वशिक्षा अभियान में भ्रष्टाचार की सड़ांध
(लिमटी खरे)

केंद्र सरकार द्वारा राजीव गांधी शिक्षा मिशन के रूप में एक बहुत ही अच्छी और जनकल्याणकारी योजना की शुरूआत की थी। बाद में अटल बिहारी बाजपेयी सरकार द्वारा इसका नाम बदलकर सर्वशिक्षा अभियान कर दिया था। इस योजना में शुरूआती दौर से ही भ्रष्टाचार की दीमक ने अपने घरोंदे बनाने आरंभ कर दिए थे।राज्य स्तर पर समन्वयकों की नियुक्ति हो या जिला समन्वयक दोनों ही नियुक्ति सरकारी मुलाजिमों के खाते में थीं, किन्तु इनमें राजनैतिक पहुंच संपन्न लोगा जैसे ही काबिज होना आरंंभ हुए वैसे ही लगने लगा था कि आने वाले समय में इसका भविष्य अंधकारमय ही होगा।शुरूआती दौर से अब तक सर्वशिक्षा अभियान में हर स्तर पर भ्रष्टाचार यहां तक कि महिला कर्मचारियों के शारीरिक शोषण की खबरें भी राजनैतिक संरक्षण में होने की खबरें जब तब समाचार पत्रों की सुिर्खयां बनी रहतीं हैं। इस योजना में पलीता इसलिए भी लगा क्योंकि अन्य विभागों के अधिकारी कर्मचारियों ने इस मलाईदार विभाग में प्रतिनियुक्ति पर आने का कभी समाप्त न होने वाला उपक्रम जो आरंभ कर दिया।मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में पदस्थ रहे जिला परियोजना समन्वयक डॉक्टर राकेश शर्मा जो मूलत: पशु चिकित्सा विभाग में पशु चिकित्सक थे, के कार्यकाल में महिलाओं के शारीरिक, और मानसिक शोषण की खबरें चरम पर हुआ करती थीं। बताते हैं कि किसी महिला कर्मचारी की सप्रमाण शिकायत के उपरांत डॉ.शर्मा को रातों रात अपना सामान समेटकर सिवनी से भोपाल भागना पड़ा था।इतना ही नहीं इसके बाद पदस्थ हुए डीपीसी अनिल कुशवाहा को गंभीर अनियमितताओं के आरोप में दो मर्तबा निलंबित कर दिया गया था, जो दोनों ही बार बहाल हो गए। शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्रित्वकाल में परियोजनाओं का इस तरह का सफल संचालन हो रहा हो तो फिर प्रदेश का बंटाधार सुनिश्चित ही है।कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि अब तो राज्य समन्वयक से लेकर जिला समन्वयक और बीआरसी तक के पद बिक रहे हैं, जो जितनी ज्यादा बोली लगाएगा उसे वह पद मिल जाएगा। सच्चाई क्या है, यह तो प्रदेश सरकार के नुमाईंदे ही बता सकते हैं पर प्रदेश में जिस तरह परिवहन विभाग में पद बिकते हैं, और यातायात व्यवस्था पटरी से उखड़ चुकी है, ठीक उसी तरह प्रारंभिक शिक्षा की सांसे भी उखड़ ही चुकी हैं।विडम्बना ही कही जाएगी कि केंद्र सरकार द्वारा बच्चों विशेषकर ग्रामीण अंचलों के बच्चों को बेहतर शिक्षा मुहैया करवाने की गरज से इस पुनीत अभियान को चलाया गया है, वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश में सर्वशिक्षा अभियान अफसरों और कर्मचारियों के लिए बेहतर कमाई का जरिया बन गई है।एक ओर सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान द्वारा मध्य प्रदेश से भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकने की बात कही जा रही है, वहीं उनकी नाक के नीचे ही उनके सूबे में इस अभियान में सबसे अधिक भ्रष्टाचार सड़ांध मार रहा है। पिछले साल इस अभियान हेतु केंद्र सरकार ने जहां 1843 करोड़ रूपए की इमदाद दी थी, वह इस साल बढ़कर 2222 करोड़ रूपए हो गई है।प्रदेश के हर जिले में केंद्र पोषित सर्वशिक्षा अभियान की मद में सामग्री की खरीदी, निर्माण कार्य, मुद्रण आदि में व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार हो रहा है। केंद्र सरकार या सूबे के मुख्यमंत्री अगर एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष एजेंसी के माध्यम से प्रदेश में चल रही सर्वशिक्षा अभियान में हो रही गफलतों की जांच करवाएं तो जो घोटाले सामने आएंगे वे अपने आप में एक रिकार्ड बना सकते हैं।
----------------------------------------
व्हाट एन आईडिया सर!
0 आईडिया बना रहा है अपने उपभोक्ताओं को बेवकूफ
0 सचिन, जहीर और भज्जी की रिकार्डिड आवाज के एवज में लग रहा चूना
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनी आईडिया द्वारा अपने उपभोक्ताओं को देश के नामी गिरामी क्रिकेट खिलाड़ियों से बात कराने के लुभावने विज्ञापनों के माध्यम से सरेआम लूटा जा रहा है। मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर, जहीर खान और हरभजन से बात कराने के लिए तीन अलग अलग नंबर विज्ञापनों में दिए गए हैं।ज्ञातव्य होगा कि राम प्रसाद गोयनका (आरपीजी) कंपनी, बिरला, एटी एण्ड टी ने मिलकर 2001 मेें आईडिया कंपनी की स्थापना की थी। उस दौरान प्रबंधन की सख्ती के चलते कर्मचारियों के बीच यह आईडिया के बजाए बटाटा के नाम से मशहूर हो गई थी।मोबाईल सेक्टर में फैली गलाकाट स्पर्धा के चलते आईडिया द्वारा भी नित नए प्रयोग आरंभ किए गए। पहले तो विज्ञापनों में आईडिया द्वारा मध्य प्रदेश के अनेक जिलों में कव्हरेज होने की बात कहकर विज्ञापनों में प्रदेश के नक्शे पर उन जिलों में समूचे जिले को ही अलग रंग से चििन्हत कर उपभोक्ताओं को लुभाने का प्रयास किया था।इस मामले में कुछ जागरूक उपभोक्ताओं ने जिला उपभोक्ता फोरम भोपाल में परिवाद भी दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि आईडिया का कव्हरेज महज जिला मुख्यालय में ही है, तो फिर समूचे जिले को इसमें शामिल कर लुभाने का क्या औचित्य है, यह उपभोक्ताओं के साथ सीधी धोखाधडी ही थी।वर्तमान में जब ट्वंटी ट्वंटी क्रिकेट का बुखार सर चढ़कर बोल रहा है, तब आईडिया द्वारा 09702700510 नंबर प्रदर्शित कर सचिन तेंदुलकर, 09702900534 पर जहीर खान और 09702900505 पर हरभजन सिंह से बात करने के लिए लुभावने विज्ञापन जारी किए हैं, जिसका शीर्षक है, करें अपने पसंदीदा क्रिकेटर से बात।गौरतलब होगा कि देश में क्रिकेट के दीवानों की तादाद में विस्फोटक वृद्धि दर्ज हुई है, इन परिस्थितियों में लाखों की तादाद में मोबाईल उपभोक्ता आईडिया की सेवाएं लेने आगे आएं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए, किन्तु जब वे सभी इन नंबर पर काल करते हैं तो उन्हें इन तीनों नंबरों पर सचिन, जहीर और भज्जी की रिकार्डिड आवाज सुनने को मिलती है, कि वे अभी मैच खेलन में व्यस्त हैं, आपसे बाद में बात करेंगे।मोबाईल उपभोक्ताओं ने कहा कि दिन हो या रात हर समय ही ये क्रिकेटर मैच खेलने में व्यस्त हैं, तो आम उपभोक्ताओं के पैसे की बबाZदी आखिर कहां तक उचित है। कुछ उपभोक्ताओं ने तो इस मामले में उपभोक्ता अदालतों और ट्राई में जाने का मन बना लिया है।

0 आलेख 14 मई 2009
बालाघाट में सर उठाने लगे नक्सली

(लिमटी खरे)

एक असेZ से शांत पड़े मध्य प्रदेश के नक्सलप्रभावित क्षेत्र मण्डला और बालाघाट में अब नक्सली सुगबुगाहटों ने पुलिस की नींद में खलल डाल दिया है। मध्य प्रदेश के नक्सल प्रावित क्षेत्र बालाघाट में एक बार फिर नक्सलियों की हरकत बढ़ने लगी हैं। नक्सली अब तक कोई बड़ी वारदात तो नहÈ कर पाए हैं लेकिन उनकी गतिविधियों ने पुलिस की नÈद जरूर उड़ा दी है। नक्सलियों के ठिकाने से मिले हेंड ग्रेनेड और अन्य सामग्री पुलिस को चिंता में डाल देने वाली है। नक्सलियों के प्राव क्षेत्र वाले बालाघाट में पिछले कुछ सालों से शांत पडे म़लाजखंड और टाडा दलम के सदस्य एक बार फिर सक्रिय हो चले हैं। इन संगठनों से जुड़े वे लोग हैं जिन्होंने दिसम्बर 1999 में तत्कालीन परिवहन मंत्री लिखीराम कांवरे की नृशंस हत्या की थी। इनकी सक्रियता का खुलासा लोकसा चुनाव के दौरान हुआ था जब उन्होंने चुनाव बहिष्कार का एलान किया था। बालाघाट जिले में 22 अप्रैल को लोकसा चुनाव के मतदान से एक दिन पहले देवरबेली पुलिस चौकी क्षेत्र में हर्रा डेही गांव में बारूदी सुरंग मिली थी। यह सुरंग नक्सलियों द्वारा बिछाई गई थी और वे चुनाव के दौरान बड़ी वारदात को अंजाम देना चाहते थे। मगर उनके मंसूबे कामयाब नहÈ हो पाए थे। पुलिस द्वारा घेराबंदी किए जाने से नक्सली बोरबन के जंगल में 15 हेंड ग्रेनेड, दो क्लोमोर माइन की प्लेट और एक बंदूक छोड़कर ाग खड़े हुए। बताते हैं कि पुलिस को नक्सलियों के पास से जो हेंड ग्रेनेड मिले हैं वे काफी शक्तिशाली हैं।संयुक्त मध्य प्रदेश में नक्सलियों के छुपने के लिए मण्डला, डिंडोरी और बालाघाट जिलों के आरण्य सबसे मुफीद हुआ करते थे। बालाघाट जिले में नक्सलियों ने अपना जबर्दस्त नेटवर्क बना लिया था, जिसके चलते सरकारी मशीनरी इनके दबाव में काम करने पर मजबूर हो गई है।पूर्व मुख्यमंत्री दििग्वजय सिंह के कार्यकाल में उनकी ही केबनेट के एक वरिष्ठ सदस्य लिखीराम कांवरे, के साथ ही साथ न जाने कितने पुलिस कर्मियों की बली चढने बाद वे हरकत में आए और पुलिस में नक्सल रेंज की स्थापना कर पुलिस महानिरीक्षक की पदस्थापना भी की। कितने आश्चर्य की बात है कि सुख सुविधाएं भोगने के आदि हो चुके अधिकारियों ने रेंज का मुख्यालय जबलपुर में बनवा दिया जहां पहले से ही पुलिस महानिरीक्षक की तैनाती थी एवं यहां से बालाघाट की दूरी सडक मार्ग से ढाई सौ किलोमीटर दूर थी। बाद में व्यवहारिक कठिनाईयों को देखकर इसका मुख्यालय बालाघाट स्थानांतरित किया गया।बालाघाट के पुलिस महानिरीक्षक सी.व्ही.मुनिराजू ने पिछले कुछ सालों में ग्रामीणों के बीच पुलिस की छवि को काफी हद तक सुधारा है, यही कारण है कि बालाघाट में ग्रामीण अंचलों में नक्सलियों को गांव वालों का समर्थन नहीं मिल पा रहा था। पिछले कुछ सालों से बालाघाट और मण्डला में नक्सली गतिविधियों पर विराम सा लग गया था। किन्तु नक्सलिकयों की चौथ वसूली निरंतर जारी थी।शासन को यह सोचने की महती जरूरत है कि आखिर नक्सलियों को उपजाउ आबोहवा कहां और कैसे मुहैया हो पाती है। दरअसल नक्सलियों ने ग्रामीण अंचलों जाकर बिगडैल व्यवस्था को पटरी पर लाने का हिंसक तरीका अिख्तयार किया है। भ्रष्ट और जंग लगी व्यवस्था से आजिज आ चुके ग्रामीणों को नक्सलियों का तरीका पसंद ही आया होगा वरना नक्सलवादी अपनी जडें जमाने में कामयाब नहीं हो पाते। नक्सलियों के निशाने पर पुलिस, वन और राजस्व विभाग के कर्मचारी होते हैं, क्योंकि ये सीधे सीधे जनता से जुडे होते हैं, एवं इन्हीं तीनों विभागों में भ्रष्टाचार की कभी न रूकने वाली गंगा बह रही है।बहरहाल बालाघाट में चुनावों के दौरान चुनाव के बहिष्कार की मुनादी पिटवाकर नक्सलवादियों ने सरकार को अपनी ताकत का एहसास करवा दिया था, इसके बाद भी सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। इसके अलावा बडी तादाद में खतरनाक विस्फोटक मिलना भी चिंताजनक ही माना जा सकता है।सरकार को चाहिए कि नक्सलवाद प्रभावित इलाके में पदस्थ कर्मचारियों विशेषकर पुलिस बल को निश्चित समय सीमा के उपरांत वहां से स्थानांतरित करे, अन्यथा काम के तनाव, परिवार से दूरी और नक्सलियों के खौफ के चलते उनकी मानसिक स्थिति भयावह हो सकती है।इसके अलावा सरकार को नक्सलप्रभावित क्षेत्रों में विशेष और इमानदार अधिकारियों की पदस्थापना भी करना होगा, ताकि सड चुके सरकारी तंत्र को पुर्नजीवित किया जा सके और नक्सलवाद जैसे खरपतवारों के लिए उपजाउ माहौल न पैदा हो सके, वरना आने वाले समय में सरकार को इससे निपटने में खासी मशक्कत करनी पड सकती है।
----------------
0 आलेख 16 मई 2009
मतलब अपराधियों के लिए साफ्ट टागेट बन गया है सिवनी
(लिमटी खरे)

20 अप्रेल को मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र प्रदेश की सीमा पर अवस्थित सिवनी जिले में हुए एक अंधे कत्ल की गुत्थी पुलिस द्वारा जिस तरह आनन फानन सुलझाई गई है, उसके लिए सिवनी पुलिस निश्चित रूप से बधाई की पात्र है। पुलिस अधीक्षक श्रीमति मीनाक्षी शर्मा, अनुविभागीय अधिकारी पुलिस एन.डी.जाटव सहित आपरेशन में लगा समूचा स्टाफ इसके लिए साधुवाद का हकदार कहा जा सकता है।दरअसल 20 अप्रेल को जिले के लखनवाड़ा थाना क्षेत्र में ग्राम कारीरात के पास एक अज्ञात व्यक्ति का शव मिला था, जिसे देखकर प्रथम दृष्टया यह प्रतीत हो रहा था कि उक्त कत्ल किसी तार से गला घोंटकर किया गया था। मृतक के पास किसी भी तरह की पहचान न होने से यह कत्ल सुलझाना टेडी खीर ही प्रतीत हो रहा था।बकौल पुलिस अधीक्षक एसटीडी पीसीओ से हुए एक काल की वजह से मृतक के परिजन सिवनी पहुंचे और मृतक की शिनाख्त की। इसके बाद लखनवाडा थाने के प्रभारी अभिलाष धारू ने समय समय पर श्रीमति शर्मा एवं एन.डी.जाटव से दिशानिर्देश लेकर इस अंधे कत्ल की गुत्थी सुलझाई। इस मामले में पुलिस ने छ: व्यक्तियों को आरोपी बनाया है। इन सभी की गिरफ्तारी उत्तर प्रदेश से हुई है। पुलिस की कथासे यही लगता है कि आरोपियों का उद्देश्य वाहन को चुराकर बेचना ही था। आरोपियों में एक वृद्ध के अलावा पांच युवा ही हैं।पुलिस सूत्र बताते हैं कि इन आरोपियों के तार अपराध जगत में काफी गहरे जुडे हुए हैं। पुलिस विवेचना के उपरांत निश्चित रूप से काफी मात्रा में आश्चर्यजनक तथ्य अगर सामने आएं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। मुंबई में भी इनका कुनबा काफी बडा बताया जाता है।हमारी व्यवस्था को किस तरह जंग लग चुका है यह बात इससे साबित हो जाती है कि मुंबई से महाराष्ट्र पासिंग टेक्सी को उत्तर प्रदेश में जाकर बाकायदा नया नंबर आवंटित करवाकर आरोपियों ने इसे कथित तौर पर बनारस के एक व्यापारी को बेच दिया था। इस मामले में संबंधित परिवहन अधिकारी को भी आरोपी बनाए जाने की आवश्क्ता है।पत्रकार वार्ता में पुलिस अधीक्षक श्रीमति मीनाक्षी शर्मा ने सिवनी में इस तरह के अपराधों पर अपनी चिंता भी जाहिर की। श्रीमति शर्मा पहली एस पी हैं, जिन्होंने सिवनी में बाहर के अपराधियों के द्वारा किए जाने वाले अपराधों पर संजीदगी के साथ अपना मत रखा।हम श्रीमति शर्मा को बधाई देते हुए उनके इस कदम का पुरजोर समर्थन करते हैं जिन्होंने सिवनी में बाहर के अपराधियों के द्वारा आकर अपराध कर भाग जाने की बात कही थी। पुलिस का काम वैसे तो रियाया की जान माल की सुरक्षा का है, पर अगर महकमें में तैनाती ही कम होगी तो कोई क्या कर लेगा।दरअसल सिवनी जिला देश के सबसे लंबे और व्यस्ततम राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक सात पर मध्य प्रदेश सीमा पर अवस्थित है, इसके उत्तर में मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर है तो दक्षिणी मुहाने पर महाराष्ट्र प्रदेश की संस्कारधानी नागपुर। इसलिए सिवनी में वारदात कर भाग लेने के लिए अपराधियों को बेहद मुफीद मौके मुहैया होते हैं।अब तो खतरा और बढ़ता दिख रहा है, क्योंकि एनएच 7 का एक बडा हिस्सा स्विर्णम चतुभुZज के उत्तर दक्षिण गलियारे में समाहित कर दिया गया है। आने वाले दिनों में आंधी तूफान की गति से दौडने वाले वाहनों के चलते अपराधियों को पकडना और भी दुष्कर कार्य हो जाएगा।सिवनी में किसी बडी वारदात कोे अंजाम देकर अपराधियों को महज चंद घंटों में ही दो पांच सौ किलोमीटर दूर भाग जाना बहुत ही आसान है, वैसे भी सिवनी की भौगोलिक परिस्थितियां अपराधियों को वारदात के उपरांत छुपकर भागने के मार्ग प्रशस्त करतीं हैं।वैसे भी सिवनी जिले में पुलिस बल का अभाव सालों से बना हुआ है। हमारे जनप्रतिनिधियों को भी इस दिशा में ध्यान देने की फुर्सत नहीं प्रतीत हो रही है, यही कारण है कि जिला बाबा आदम के जमाने के स्वीकृत पुलिस बल से संचालित हो रहा है। हाईवे पर होने के बाद भी हाईवे पेट्रोलिंग के लिए अलग से न तो पुलिस बल है और न ही वाहन। पूर्व में कांग्रेस के शासनकाल में एक क्वालिस वाहन हाईवे पेट्रोलिंग के लिए जरूर स्वीकृत हुआ था, किन्तु बाद में दबाव के चलते इसे छिंदवाडा भेज दिया गया था।सत्तर के दशक के उत्तरार्ध में जिले में हुआ धूमा डकैती कांड़, जनता मेडीकल स्टोर्स के संचालक की हत्या, संध्या जैन हत्याकांड, मोहगांव में मनीष कठल के घर पर पडी डकैती, खवासा में हुई डकैती, कुछ दिनों पूर्व कुरई घाट पर हुई जबर्दस्त लूट, आदि न जाने कितने कांड हैं, जो सिवनी जिले को असुरक्षित कहे जाने हेतु पर्याप्त कहे जा सकते हैं। हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि एसटीएफ के जबलपुर जोन का मुख्यालय सिवनी को बनाया जाना चाहिए, क्योंकि कुछ मामलात में वैसे भी सिवनी जिला काफी संवेदनशील माना जाता है।हम जिला पुलिस अधीक्षक से अपील करते हैं कि वे अपने ही स्तर पर सिवनी जिले को सुरक्षित बनाने की दिशा में सरकार से मांग करें, क्योंकि अब तक निर्वाचित जनप्रतिनिधयों ने सिवनी को सुरक्षित बनाने की दिशा में न तो कोई कदम उठाया है और न ही कदम ताल देखकर उनके द्वारा भविष्य में इस तरह का कोई कदम उठाए जाने की आशा ही की जा सकती है।

सोमवार, 4 मई 2009

नेताओं की अपील पर जनता का संदेश

कम मतदान का सबक

मतदान का सामूहिक बहिष्कार आखिर क्यों?

राजनेताओं से क्यों खफा है मतदाता!

(लिमटी खरे)

सरकार और राजनैतिक दलों की अधिक से अधिक मतदान करने की अपील के बावजूद भी 15वीं लोकसभा के लिए होने वाले आम चुनावों में मतदान के गिरते प्रतिशत ने राजनेताओं के होश उड़ाने आरंभ कर दिए हैं। सवाल यह उठता है कि देश का गर्जियन चुनने के मामले में आम मतदाता उदासीन क्यों होता जा रहा है?आम चुनावों को स्थानीय निकाय के चुनावों में तब्दील करने वाले नेता ही इस उदासीनता की प्रमुख वजह समझ में आ रहे हैं। दुनिया के सबसे विशालकाय लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत ने ``लोकसभा टीवी`` चेनल आरंभ कर देश भर के लोगों को यह दिखाने का साहस जुटाया कि उनके द्वारा जनादेश दिए जाने के उपरांत चुने गए नेताओं की भूमिका आखिर लोकसभा में क्या होती है?नेता यह भूल जाते हैं कि पांच सालों तक मतदाता और नवोदित होते मतदाता जिन्होंने इस मर्तबा पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग किया है, उन्होंने अपने सांसदों के रवैए को अपनी नंगी आंखों से देखा है। पांच सालों में लोकसभा सत्र के दौरान वे ही सांसद दिखाई पड़ते रहे हैं, जिन्होंने या तो प्रश्न पूछा है, या फिर वे मंत्री जिन्हें जवाब देना था।हमारी मान्यता के अनुसार इसका उल्टा प्रभाव मतदाता पर पड़ा। मतदाता को लगने लगा है कि उसके मत का कोई मूल्य नहीं बचा है। उसका चुना सांसद पांच साल तक आम मतदाता के बजाए अपने निहित स्वार्थों को अधिक तरजीह देने में व्यस्त रहा। आम आदमी को इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया से वितृष्णा होने लगी है। संसदीय आचरण की गरिमा के हनन के साथ ही अगर आम मतदाता का मतदान के प्रति रूझान कम हुआ है तो किसी को आश्चर्य नही होना चाहिए।आम चुनाव में राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों का अभाव साफ परिलक्षित होने लगा है। तेरह महीने और फिर पांच साल सत्ता पर काबिज रहने वाली भाजपा अब स्विस बैंक से धन वापसी के मार्ग प्रशस्त करने की बात कहती है। योग गुरू बाबा रामदेव भी अपने भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के बेनर तले भाजपा की इस राग में सुर से सुर मिलाने से नहीं चूक रहे हैं। बड़े बड़े विज्ञापनों के माध्यम से बाबा रामदेव जैसे योगी भी राजनीति के गंदे नाले में परोक्ष रूप से पदार्पण के मार्ग प्रशस्त करते दिख रहे हैंं।विडम्बना ही कही जाएगी कि राजनैतिक दल विरोधाभासी बयानों से एक ओर जहां जात पात से उपर होने का दावा करते हैं वहीं दूसरी ओर सियासी पार्टियां आज के युग में पढ़े लिखे लोगों से यह कहकर वोट मांग रहे हैं कि उनके क्षेत्र में जिस जाति का बाहुल्य है, उसी जाति के प्रत्याशी को हमने टिकिट दिया है।कायस्थों के वोट पर राजनीति कर भाजपा छोड़ने की धमकी देने वाले फिल्मी अदाकार शत्रुध्न सिन्हा को भाजपा ने पटना से उतारा तो उनकी काट के रूप में कांग्रेस ने भी कायस्थ शेखर सुमन को उनके सामने झोंक दिया। इतना ही नहीं राहुल गांधी, वरूण गांधी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जतिन प्रसाद, मिलिन्द देवड़ा, दुष्यंत सिंह, सज्जन कुमार के भाई आदि परिवारवाद के ताजा तरीन उदहारण ही तो हैं। कानूनी दांवपेंच में फंसे संजय दत्त चुनावी समर में किस्मत न आजमा सके तो उनके स्थान पर नफीसा अली को उतार दिया गया। जेल में पड़े अपराधी अगर चुनाव न लड़ पाएं तो क्या गम है, उनकी अर्धाग्नी तो हैं उनकी कमी पूरी करने चुनाव मैदानों में।लगता है इसी सब को देखकर आम मतदाता का मतदान की ओर से मोहभंग हो गया है। देश की सबसे शक्तिशाली महिला रहीं कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के क्षेत्र में तो राजग के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी के क्षेत्र अहमदाबाद में भी लोगों ने अनेक केंद्रों पर मतदान का सामूहिक बहिष्कार किया है।सामूहिक बहिष्कार कोई नई बात नहीं है। पहले भी यह होता आया है, किन्तु चिन्ताजनक पहलू यह है कि जब हम चुनाव सुधार और अधिक मतदान के लिए बाकायदा अभियान चला रहे हों तब इस तरह की खबरें निश्चित रूप से अच्छी नहीं कही जा सकती हैं। आज आवश्यक्ता इस पर विचार करने की है। बुनियादी जरूरतों, जैसे सड़क, बिजली और पानी के न मिलने के लिए जनता ने जहां अपना विरोध दर्ज कराने पांच साल इतेंजार किया है, वहां भी अगर राजनेता उनकी परेशानी न समझ सकें तो यह नेताओं की नपुंसक कार्यप्रणाली का ही दोष कहा जा सकत ा है। शांतिप्रिय मतदाताओं ने अपनी बात रखने के लिए हिंसा और तोड़फोड़ का रास्ता न अपनाकर शांतिपूर्ण तरीके से मतदान का बहिष्कार कर अपनी बात रखी है।कुछ सालों पूर्व मध्य प्रदेश के एक वरिष्ठ राजनेता ने 1998 के विधानसभा चुनावों के उपरांत हुई समीक्षा में जब सामूहिक बहिष्कार का मुद्दा आया तो उन्होंने यह कहा कि माना सारे गांव ने बहिष्कार किया, किन्तु हमारी पार्टी के बूथ के एजेंट! क्या वे भी इस बहिष्कार में शामिल थे, कम से कम उस मतदान केंद्र में एक मत तो पड़ना था।कहने का तात्पर्य महज इतना ही है कि अगर मतदान के बहिष्कार में सियासी पार्टी का कार्यकर्ता भी शामिल है, तो उसकी पीड़ा के मर्म को जानना जरूरी है। खोखले वादे और सुनहरी तस्वीर दिखाने से कुछ बदलने वाला नहीं है। जनता जाग चुकी है। पांच साल में एक बार उसे अपनी ताकत दिखाने का अवसर मिलता है। जनता की ताकत को समझना होगा, वरना जनता ही है जो राजनेताओं को संसदीय सौंध से बाहर का रास्ता दिखाने में भी गुरेज नहीं करने वाली।


भाजपा के पक्ष में परोक्ष रूप से कूदे बाबा रामदेव

स्वाभिमान ट्रस्ट ने अलापा आड़वाणी का राग

राजनीति में आने के मार्ग प्रशस्त हो रहे हैं योग गुरू के

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। फर्श से अर्श पर पहुंचने वाले योग गुरू बाबा रामदेव ने लाल कृष्ण आड़वाणी के सुर में सुर मिलाते हुए परोक्ष रूप से भाजपा को जिताने की अपील करना आरंभ कर दिया है। भारत स्वाभिमान ट्रस्ट द्वारा जारी विज्ञापनों में राजग के पीएम इन वेटिंग एल।के।आड़वाणी के स्विस बैंक से धन वापसी के मुद्दे को जोर शोर से उठाया गया है।आज ट्रस्ट द्वारा जारी विज्ञापन में बाबा रामदेव की आकर्षक फोटो के साथ अव्हान किया गया है कि ``ईमानदार को जिताना है, स्विस बैंक से पैसा वापस लाना है।`` इसके साथ ही साथ स्विस बैंक में भारतीयों द्वारा जमा 72 लाख 80 हजार करोड़ रूपए को लाकर देश के विकास में खर्च करने की बात भी कही गई है।सियासी हल्कों में चल रही चर्चाओं के अनुसार ट्रस्ट के माध्यम से अब बाबा रामदेव भी राजनीति के दलदल में उतरने की तैयारियां आरंभ कर रहे हैं। गौरतलब होगा कुछ दिन पूर्व बाबा रामदेव ने हरिद्वार स्थित अपने आश्रम में देश भर के चुनिंदा वकील, मीडिया पर्सनालिटी, चिकित्सक आदि को बुलाकर विशेष शिविर लगाए थे।बाबा रामदेव से जुड़े सूत्रों के अनुसार देश भर के हर जिले में जल्द ही भारत स्वाभिमान ट्रस्ट की शाखा खोलकर उनको वाहन कंप्यूटर सहित हर तरह के उपकरणों से लैस किया जाने वाला है। पूर्व में धार्मिक रूप से पूजे जाने वाले आचार्यो प्रवचन कर्ताओं आदि द्वारा राजनेताओं के पक्ष में बयार बहाने का काम किया जाता रहा है।यह पहला मौका होगा जब कोई योग गुरू खुलकर मतदाताओं को मतदान करने का आग्रह करे और वह भी उस मुद्दे पर जिसे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी द्वारा उठाया गया हो। जानकारों का कहना है कि स्विस बैंक में भारतीयों द्वारा 72 लाख 80 हजार करोड़ की राशि का खुलासा आड़वाणी द्वारा ही किया गया है।गौरतलब होगा कि स्विस बैंक दुनिया का पहला अनूठा बैंक है, जहां खातेदार का विवरण पूरी तरह गोपनीय रखा जाता है, खातेदार अपने पिन कोड़ नंबर और अपनी उंगलियों के निशानों के माध्यम से अपना पैसा इधर उधर कर सकता है। जब स्विस बैंक द्वारा इस भारतीयों द्वारा जमा किए गए इस तरह के किसी धन के बारे में आधिकारिक तौर पर कोई खुलासा नहीं किया गया हो और आड़वाणी एवं बाबा की बताई रकम एक सी हो तो जनमानस के मन में प्रश्न कौंधना स्वाभाविक ही है, कि कहीं बाबा परोक्ष रूप से अपने अनुयायियों को भाजपा के पक्ष में कोई संदेश तो नहीं देना चाह रहे हैं।वैसे बाबा रामदेव और राजग के पीएम इन वेटिंग का ध्यान हिन्दुस्तान में निजी तौर पर चल रहे बैंकिग व्यवसाय की ओर नहीं गया है। कहा जाता है कि निजी तौर पर बैंकिग व्यवसाय करने वाली एक नामी गिरामी कंपनी में भी देश के अनेक लोगों का बेनामी पैसा लगा हुआ है। नब्बे के दशक के शुरूआत मेंं ही तेजी से उभरी उक्त कंपनी को उद्योगपतियों, ब्यूरोक्रेट्स और राजनेताओं के बीच ``इंडियन स्विस बैंक`` के नाम से जाना जाता है।


क्या बूटा को निकाल सकती है कांग्रेस!

पार्टी के सदस्य ही नहीं हैं बूटा सिंह

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने बूटा सिंह को कांग्रेस की सक्रिय सदस्यता के लिए छ: साल के लिए निष्काशित कर दिया गया है। देश की राजनैतिक राजधानी में अब सियासी बाजार गर्मा गया है कि क्या बूटा सिंह को निकालने का अधिकार अब भी कांग्रेस के पास है।बताया जाता है कि जब बूटा सिंह को बिहार का राज्यपाल बनाया गया था, तब ही उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया था, क्योंकि राज्यपाल के पद पर बैठने वाला किसी दल का सदस्य नहीं हो सकता। लाट साहब के पद से हटने के उपरांत फिर बूटा सिंह को आयोग का अध्यक्ष बना दिया गया।अगर बूटा सिंह को पार्टी टिकिट देती तब वे कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण करते। कहते हैं, बूटा कांग्रेस के सदस्य नहीं हैं, फिर भी कांग्रेस ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया है। साथ ही बूटा सिंह अगर राजस्थान की जालोर सीट से निर्दलीय जीत जाते हैं तो क्या कांग्रेस उन्हें वापस नहीं लेगी? यह प्रश्न भी राजनैतिक वीथिकाओं में घुमड़ रहा है।

मध्य प्रदेश और छग को भी मिले मास्क

स्वाइन फ्लू के मद्देनजर पशुपालन विभाग ने राज्यों को परामर्श जारी किया

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। स्वाईन फ्लू से निपटने के लिए केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को इमदाद बांटना आंरभ कर दिया है। प्रथम चरण में कंेंंद्र द्वारा 2 लाख 45 हजार ओसेल्टा मिविर, 18 हजार बचाव उपकरण, 17 हजार पांच सौ एन 5 और 1 लाख तीस हजार त्रिस्तरीय मास्क मुहैया करवाए हैं।आधिकारिक जानकारी के अनुसार इसमें से मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को दस दस हजार ओसेल्टा मिविर, पांच पांच सौ बचाव उपकरण एवं एन 5 तथा पांच पांच हजार त्रिस्तरीय मास्क उपलब्ध कराए हैं। केंद्र द्वारा इतनी मात्रा में बचाव सामग्री मुहैया करवाने से मध्य प्रदेश और छग में इस बीमारी के फैलने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है। उक्त सामग्री क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल को उपलब्ध कराई गई है।

केंद्र का परामर्श जारी

पशुपालन, डेयरी व मत्स्य पालन विभाग ने सभी राज्य सरकारों को स्वाइन फ्लू संबंधी परामर्श जारी किया है ताकि सूअरों पर फ्लू सरीखे लक्षणों की निगरानी की जा सकंं। स्वाइन फ्लू पर तथ्यपरक सूचना के लिए विभाग ने नई दिल्ली में —षि भवन के कमरा नं0 297 - सी में नियंत्रण कक्ष कायम किया है जो सुबह आठ बजे से रात आठ बजे तक कार्य करेगा । नियंत्रण कक्ष का टेलीफोन नम्बर, 011-23384190 है । कार्य अवधि के बाद जानकारी या स्पष्टीकरण प्राप्त करने के लिए मोबाइल नंबरों 09818002564, 0986871237 और 09868792726 पर संपर्क किया जा सकता है।0 स्वाइन फ्लू की अद्यतन स्थितिविश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मानवों में इंफ्लूंजा ए (स्वाइन फ्लू) के कई मामले सामने आए हैं । 30 अप्रैल, 2009 तक 11 देशों में स्वाइन फ्लू के 257 मामले सामने आये जिनमें आठ मामलों में मौत हो गयी । अमेरिका में 109 लोग स्वाइन फ्लू के शिकार पाए गए तथा इनकी प्रयोगशाला से भी पुष्टि हुई है । अमेरिका में एक व्यक्ति की इस बीमारी से मौत हो गयी । मैिक्सको में 97 मामले सामने आए हैं तथा सात व्यक्तियों की मौत हो गयी है । आस्ट्रिया, कनाडा, जर्मनी, इजराइल, न्यूजीलैंड, स्पेन, नीदरलैंड, स्वीट्जरलैंड और ब्रिटेन से भी स्वाइन फ्लू के कई मामले हैं। दुनिया भर में स्वाइन फ्लू के मामले सामने आने के बाद भारत सरकार ने भी एहतियाती कदम उठाए हैं । दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेéई, हैदराबाद, बंगलूरू, गोवा, अमृतसर, कोचीन, अहमदाबाद, त्रिची तथा श्रीनगर के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों पर इंफ्लूएंजा ए से प्रभावित देशों से आने वाले यात्रियों की स्वास्थ्य जांच की जा रही है । अब तक कुल 17949 यात्रियों का स्वास्थ्य परीक्षण किया जा चुका है । स्वास्थ्य परीक्षण के लिए इन हवाई अड्डों पर 96 डाक्टर तैनात किए गए हैं । केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने विभिé राज्यों के लिए दवाइयां, व्यक्तिगत बचाव उपकरण उपलब्ध करा दिए हैं । मंत्रालय की ओर से क्षेत्रीय कार्यालयों को ओसेल्टामिविर दवा की करीब 250 लाख गोलियां, 18000 व्यक्तिगत बचाव उपकरण तथा एक लाख त्रिस्तरीय मास्क भेजे गए हैं।