गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

उद्योगपतियों से रूबरू हुए राहुल


उद्योगपतियों से रूबरू हुए राहुल

(शरद)

नई दिल्ली (साई)। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी आज उद्योगपतियों से रूबरू हुए। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने उद्योगपतियों से अनुरोध किया है कि वे अपने आर्थिक दृष्टिकोण को वित्तीय चिंताओं से आगे ले जाएं और आर्थिक विकास के सरकार के प्रयासों में सहयोग करें।
आज नई दिल्ली में भारतीय उद्योग परिसंघ की वार्षिक आम बैठक में प्रमुख उद्योगपतियों को कांग्रेस उपाध्यक्ष के रूप में पहली बार सम्बोधित करते हुए श्री राहुल गांधी ने कहा कि उद्योगों को अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अल्पसंख्यकों, दलितों और समाज के कमजोर वर्गों के कल्याण के प्रति भी संवेदनशील होना चाहिए।
राहुल गांधी ने कहा कि हमारे आर्थिक दृष्टिकोण में पैसे से आगे बढ़कर, करूणा का स्थान होना चाहिए। देश की समृद्धि के लिए वंचितों को भी विकास के फायदों में शामिल करना जरूरी है। अगर उन्हें साथ में नहीं लेतें, तो हम सभी प्रभावित होंगे। भारत तभी आगे बढ़ सकता है, जब सभी को साथ लेकर चले। समावेशी विकास का लाभ सभी के लिए होना चाहिए, चाहे वे इस कमरे में बैठे लोग हों या इससे बाहर बैठे लोग।
राहुल गांधी ने कहा कि यूपीए सरकार अधिकारों पर आधारित बुनियादी ढांचा तैयार कर रही है ताकि गरीबों और दलितों को न्यूनतम रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जा सकें और उन्हें शिक्षित किया जा सके। श्री राहुल गांधी ने कहा कि बाधाएं डालने की राजनीतिक व्यवस्था के कारण भारत अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है।
उन्होंने विकास प्रक्रिया से लोगों को अलग रखने के खिलाफ आगाह किया। श्री राहुल गांधी ने कहा कि यूपीए के तहत देश ने तेजी से विकास किया है, क्योंकि उसने समुदायों के बीच तनाव बहुत कम किया है और आर्थिक वृद्धि को समावेशी बनाया है। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने यह भी कहा कि समुदायों को बांटने की राजनीति से देश का विकास प्रभावित होता है। श्री राहुल गांधी ने उनके प्रधानमंत्री बनने और उनके विवाह के बारे में मीडिया की अटकलों को काल्पनिक बताया। 

विधायक खरीद फरोख्त मामले में छापामारी


विधायक खरीद फरोख्त मामले में छापामारी

(विनोद गौतम)

रांची (साई)। झारखंड में सीबीआई २०१० के राज्यसभा चुनाव में विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप के सिलसिले में कुछ विधायकों के आवासों पर छापे मार रही है। झारखंड उच्च न्यायालय इस मामले पर नजर रख रहा है। हमारे रांची संवाददाता ने खबर दी है कि राष्ट्रीय जनता दल के विधायक जनार्दन पासवान, झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक विष्णु भैया और झारखंड स्टूडेंट यूनियन के विधायक चन्द्रप्रकाश चौधरी के रांची, जामतारा और प्रतापपुर स्थित निवासों पर छापे मारे जा रहे हैं।
 ज्ञातव्य है कि राज्यसभा चुनावों में माननीय विधायकों के मतों की खरीद-फरोख्त का मामला झारखण्ड पर लगातार छाया हुआ है। हाल के दिनों में उच्च न्यायालय द्वारा सीबीआई को कार्यवाही में तेजी लाने का निर्देश दिया जाता रहा है। आज की कार्यवाही को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। हालांकि कुछ विश्लेषक इसे झारखण्ड में सरकार गठन की राजनीति से भी जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं, पर ये ठीक नहीं, क्योंकि आज भी विधायकों के आवासों पर छापेमारी हुई है, उनमें वो भी शामिल हैं, जिनकी पार्टियां यूपीए को समर्थन दे रही हैं।

मुस्लिम युवाओं के मामले तेजी से निपटें: खान


मुस्लिम युवाओं के मामले तेजी से निपटें: खान

(महेश)

नई दिल्ली (साई)। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के. रहमान खान ने कहा है कि गृहमंत्रालय ने मुस्लिम युवाओं के मामलों को जल्दी निपटाने के लिए फास्ट ट्रैक अदालतों के गठन पर सहमति व्यक्त की है। नई दिल्ली में संवाददाताओं से बातचीत में श्री रहमान खान ने कहा कि मुस्लिम युवाओं के मामलों को जल्दी निपटाये जाने की जरूरत है और उनका मंत्रालय इसके लिए आवश्यक उपाय कर रहा है।
इस सिलसिले में राज्यों के विचार जानने के लिए उन्हें पत्र भेजे जा रहे हैं। श्री रहमान खान ने कहा कि निर्दाेष युवाओं को हिरासत में रखना मानवाधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि गृहमंत्री ने आश्वासन दिया है कि सरकार ऐसे मामलों को निपटाने के लिए जल्द ही विशेष अदालतों का गठन करने जा रही है।
इससे पहले श्री रहमान खान ने अल्पसंख्यकों के लिए ऑन लाइन छात्रवृत्ति प्रबंधन प्रणाली और सीधे लाभ के हस्तातंरण जैसे कार्यक्रमों की प्रगति के बारे में विभिन्न राज्यों के शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक की। 

कुडनकुलम बिजलीघर का काम आज होगा पूरा


कुडनकुलम बिजलीघर का काम आज होगा पूरा

(शैलेष नायर)

तिरूचिरापल्ली (साई)। तमिलनाडु में कुडनकुलम परमाणु बिजली संयंत्र में परीक्षण का काम आज पूरा कर लिया जाएगा। संयंत्र के निदेशक आर.एस. सुंदर ने बताया कि परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड के अधिकारियों द्वारा इसकी अंतिम सुरक्षा जांच पूरी होते ही, परमाणु रिएक्टर काम करने की स्थिति में आ जाएगा।
संयंत्र के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि कुडनकुलम परमाणु रिएक्टर में भाप छोड़ने वाले वॉल्व से जुड़े उच्च तकनीकी उपकरणों का चालू स्थिति में परीक्षण आज पूरा हो जाएगा। संयंत्र के अधिकारियों ने परमाणु ऊर्जा नियमन बोर्ड के अधिकारियों को अंतिम सुरक्षा जांच करने के लिए लिखा है। बोर्ड की जॉंच पूरी होने के साथ ही ये संयंत्र काम करने के लिए तैयार हो जाएगा।
सूत्रों ने साई न्यूज को आगे बताया कि शुरूआत में इससे दस किलोवाट बिजली का उत्पादन होगा, जो बाद में धीरे धीरे एक हजार मेगावाट बिजली उत्पादन के पूर्ण क्षमता हासिल कर लेगा। कुड़नकुलम परमाणु बिजली संयंत्र में बिजली का उत्पादन इस महीने शुरू होने की उम्मीद है, जिससे तमिलनाडु में बिजली की कमी दूर हो सकेगी।

बच्चों को संबोधित किया सुनीता ने


बच्चों को संबोधित किया सुनीता ने

(निधि गुप्ता)

मुंबई (साई)। अन्तरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स ने अन्तरिक्ष अनुसंधान में निवेश बढ़ाने, अति आधुनिक अन्तरिक्ष टैक्नोलॉजी के लिए अभिनव सुझावों और अन्तरिक्ष अनुसंधान में युवाओं को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता बतायी है, जिससे धरती पर लोग बेहतर जिन्दगी जी सकें।
आज मुम्बई के नेहरू विज्ञान केन्द्र में पत्रकारों से बात करते हुए नासा की अन्तरिक्ष यात्री सुनीता ने कहा कि अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष केन्द्र में बिजली की समस्या के अनेक दिलचस्प समाधानों के प्रयोग चल रहे हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि उस केन्द्र में चल रहे कुछ प्रयोग लोगों को बिजली बचाने के लिए कुछ एकदम अलग उपायों पर सोचने के लिए मजबूर करेंगे।
इससे पहले उन्होंने मुम्बई के करीब दो सौ स्कूली बच्चों को सम्बोधित किया। परिवार के सूत्रों के अनुसार सुनीता आज अहमदाबाद पहुंचने के बाद उत्तरी गुजरात के महसाणा जिले में अपने पैतृक गांव झुलासन के लिए रवाना होंगी। वे गांव में डोला माता मंदिर में पूजा करेंगी और गांव वालों से मिलेंगी।

प्रणव मुखर्जी ने निपटाई दया याचिकाएं


प्रणव मुखर्जी ने निपटाई दया याचिकाएं

(प्रदीप चौहान)

नई दिल्ली (साई)। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने दया याचिकाओं के मामले में तेजी लाकर अपना रूख स्पष्ट कर दिया है। श्री मुखर्जी ने अनेक दया याचिकाएं वापस भेज दी हैं। उन्होंने उनके पास पेडिंग पड़ी सभी सात दया याचिकाओं पर फैसला सुना दिया है। 5 मामलों में फांसी की सजा बरकरार रखी गई है, जबकि दो में राहत देते हुए सजा को उम्रकैद में बदला गया है। राष्ट्रपति ने जो दया याचिकाएं खारिज की हैं उनमें से एक हरियाणा के धर्मपाल का भी है। रेप में दोषी ठहराए गए हरियाणा के धर्मपाल ने परोल पर रिहा होने के बाद रेप पीड़िता परिवार के पांच सदस्यों की हत्या कर दी थी। धर्मपाल की 14 सालों से दया याचिका पेंडिंग पड़ी थी। सूत्रों के मुताबिक उसे अगले हफ्ते फांसी दी जा सकती है।
राष्ट्रपति भवन के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि प्रणव मुखर्जी के पास 7 दया याचिकाएं पेडिंग पड़ी थीं। इन सात मामलों में कुल 9 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई थी। सूत्रों का कहना है कि राष्ट्रपति ने संविधान के आर्टिकल 72 के तहत अपनी पावर का इस्तेमाल करते हुए इन सभी दया याचिकाओं पर फैसला सुना दिया।
गौरतलब है कि गृह मंत्रालय ने राष्ट्रपति को भेजी गईं सात दया याचिकाओं में से 5 को खारिज करने और दो को ताउम्र कैद में बदलने की सिफारिश की थी। इसमें उम्रकैद का मतलब 14 या 20 साल की सजा नहीं, बल्कि मरने तक जेल में रहने से था। राष्ट्रपति ने गृह मंत्रालय की सिफारिश को मंजूर कर लिया।
सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि इनमें से एक यूपी के गुरमीत सिंह को 17 अगस्त 1986 को एक परिवार के 13 लोगों की हत्या के मामले में फांसी की सजा दी गई थी। इसके साथ ही साथ उत्तर प्रदेश के एक अन्य मामले में सुरेश और रामजी को अपने भाई के परिवार के पांच लोगों की हत्या में मौत की सजा दी गई थी।
सूत्रों ने साई न्यूज को बताया कि इनमें हरियाणा के बहुचर्चित रेलूराम पुनिया हत्याकांड में दोषी हरियाणा के पूर्व विधायक की बेटी सोनिया और उसके पति संजीव का मामला भी शामिल है। वहीं उत्तराखंड के सुंदर सिंह को दुष्कर्म के बाद हत्या के मामले में मौत की सजा दी गई थी।
उत्तर प्रदेश के जफर अली को 2002 में पत्नी और पांच बेटियों की हत्या के मामले में मौत की सजा दी गई थी। इसमें हरियाणा के धर्मपाल का भी मामला है। धर्मपाल ने 1993 में एक लड़की से रेप किया और जब वह बेल पर छूटा तो उसने लड़की के परिवार के 5 लोगों की हत्या कर दी थी। 1991 में धर्मपाल पर सोनीपत में एक लड़की के साथ रेप के आरोप लगे। 1993 में इसे 10 साल कैद की सजा मिली। धर्मपाल ने लड़की को कोर्ट में गवाही देने पर धमकी दी थी।
वह 1993 में पांच दिनों के लिए पैरोल पर रिहा हुआ। जब लड़की के परिवार वाले सो रहे थे तब धर्मपाल ने इन पर हमला बोल दिया। धर्मपाल ने पीड़िता के माता-पिता तले राम और कृष्णा, बहन नीलम, भाई प्रवीण और टीनू पर अंधाधुंध लाठी चलाकर हत्या कर दी।
धर्मपाल के भाई निर्मल ने इनकी हत्या करने में मदद की थी। दोनों को मौत की सजा दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने 1999 में धर्मपाल की सजा कायम रखी लेकिन निर्मल की सजा उम्र कैद में तब्दील कर दी। निर्मल 2001 में पैरोल पर रिहा हुआ तो फरार हो गया। उसे 10 साल बाद फिर से अरेस्ट किया गया।
धर्मपाल ने पहले 1999 में दया याचिका दाखिल की। अगले ही साल दया याचिका खारिज कर दी गई। उसने फिर से 2005 में दया याचिका दाखिल की लेकिन तब से पिछले साल दिसंबर तक याचिका पेंडिंग में पड़ी रही। इसके बाद गृह मंत्रालय ने धर्मपाल समेत 7 दया याचिका राष्ट्रपति के पास भेजी। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने धर्मपाल की याचिका खारिज कर दी। अब हरियाणा सरकार धर्मपाल की फांसी के लिए तैयारी कर रही है।
हरियाणा में 19 जेल हैं लेकिन अंबाला और हिसार में ही फांसी देने की सुविधा है। अंतिम फांसी 1989 में अंबाला जेल में हत्यारा गुलाब सिंह को दी गई थी। धर्मपाल फिलहाल रोहतक जेल में है। हरियाणा के पास को जल्लाद मौजूद नहीं है। हालांकि जेल सुपरिंटेंडेंट इसके लिए किसी को भी उचित समझकर जिम्मेदारी दे सकते हैं। सोनीपत ट्रायल कोर्ट से डेथ वॉरंट मिलने के बाद सरकार कुछ औपचारिकता पूरी करेगी। इसके बाद फांसी की तारीख तय हो जाएगी।

स्थापना दिवस मनेगा विकास पर्व के रूप में


स्थापना दिवस मनेगा विकास पर्व के रूप में

(अभिषेक दुबे)

सिवनी (साई)। भाजपा द्वारा 6 अप्रैल को पार्टी का स्थापना दिवस विकास पर्व के रूप में मनाया जायेगा। इस हेतु जिला भाजपा द्वारा व्यापक तैयारिया प्रारंभ कर दी गई है इस तारतम्य में गुरूवार 4 अप्रैल को भाजपा के सभी 24 मण्डलों में पार्टी कार्यकर्ताओं की वृहद बैठके आयोजित की जा रही है इन बैठक में जिले की ओर से नियुक्त प्रभारी, कार्यकर्ताओं को मार्गदर्शन देने हेतु पहुंचगें।
मीडिया प्रभारी श्रीकांत अग्रवाल ने बताया कि स्थापना दिवस के अवसर पर एवं जिले की सभी ग्राम पंचायतों में एवं नगर पालिका एवं नगर पंचायत के प्रत्येक वाडों में विकास पर्व के रूप में कार्यक्रम आयोजित किये जायेगे जिसमें पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ ही आज जनों को भी आमंतित्र किया जायेगा। 

सन्तों के आशीर्वाद से छत्तीसगढ़ में आ रही खुशहाली: डॉ. रमन सिंह


सन्तों के आशीर्वाद से छत्तीसगढ़ में आ रही खुशहाली: डॉ. रमन सिंह

(एन.के.श्रीवास्तव)

रायपुर (साई)। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह आज रात यहां पूज्य शदाणी दरबार तीर्थ में आयोजित सन्त स्वामी राजाराम साहिब के 53वें वर्सी महोत्सव में शामिल हुए। कृषि और श्रम मंत्री श्री चन्द्रशेखर साहू भी इस अवसर पर उपस्थित थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि मैं शदाणी दरबार में मुख्यमंत्री के रूप में नहीं बल्कि एक भक्त की हैसियत से हर साल आशीर्वाद लेने आता हूं। उन्होंने कहा कि दरबार में मत्था टेकने से शांति और ऊर्जा मिलती है। उन्होंने कहा कि सन्त-महात्माओं के आशीर्वाद और ईश्वर की कृपा से छत्तीसगढ़ तेजी से सुख-समृध्दि की ओर बढ़ रहा है। शदाणी दरबार के सन्तों के आशीर्वाद से छत्तीसगढ़ में खुशहाली आ रही है। मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि छत्तीसगढ़ की पहचान पहले गरीबी और पलायन वाले राज्य के रूप में होती थी, किन्तु अब यह तेजी से विकास करने वाले राज्यों की श्रेणी में शामिल हो गया है। उन्होंने इस अवसर पर छत्तीसगढ़ के ढाई करोड़ जनता की खुशहाली और समृध्दि के लिए आशीर्वाद मांगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि शदाणी दरबार का देश और दुनिया में अलग नाम है। यहां आने वाले प्रत्येक श्रध्दालु की मन्नते पूरी होती हैं। प्रमुख गाद्दीसर सन्त श्री युधिष्ठिर लाल के मार्गदर्शन में शदाणी दरबार काफी विकसित हो रहा है। उनकी देख-रेख में यहां बड़े-बड़े धार्मिक आयोजन सम्पन्न होते हैं। देश और दुनिया में यह सिन्धु समाज के एक प्रमुख तीर्थ के रूप में प्रसिध्द हुआ है। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर कार्यक्रम में शदाणी दरबार द्वारा प्रकाशित और श्री ठाकुर लाल लहरूमल छाबड़िया द्वारा लिखित पुस्तक श्हिंगलाज माता शक्तिपीठश् और भजन सी.डी. श्हे राम रमईयाश् का विमोचन किया। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ राज्य नागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष श्री लीलाराम भोजवानी, पूर्व विधायक श्री रमेश वाल्याणी, छत्तीसगढ़ चेम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष श्री श्रीचन्द सुन्दरानी सहित बड़ी संख्या में समाज के लोग उपस्थित थे। श्री कन्हैयालाल तलरेजा ने भी समारोह को सम्बोधित किया। इस अवसर पर समाज की ओर से मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री का अभिनंदन भी किया गया। 

मुख्यमंत्री द्वारा छत्तीसगढ़ महिमा गीत सी.डी. का विमोचन


मुख्यमंत्री द्वारा छत्तीसगढ़ महिमा गीत सी.डी. का विमोचन

(अभय नायक)

रायपुर (साई)। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कल सवेरे यहां अपने निवास पर श्छत्तीसगढ़ महिमाश् गीत की आडियो-वीडियो सी.डी. का विमोचन किया। उद्योग मंत्री श्री राजेश मूणत भी इस अवसर पर उपस्थित थे। रायपुर के श्री गोविन्द देव अग्रवाल इस गीत के रचनाकार हैं और राजधानी रायपुर के प्रसिध्द संगीतकार श्री कल्याण श्री सेन ने इसके लिए संगीत दिया है। इस अवसर पर सर्वश्री प्रेम सोनी, अरूण सोनी, श्रीमती पूजा अग्रवाल और श्रीमती निर्मला सोनी भी उपस्थित थीं। मुख्यमंत्री ने सी.डी. के विमोचन के अवसर पर श्री अग्रवाल सहित उपस्थित सभी लोगों को बधाई और शुभकामनाएं दी। गीत में श्री अग्रवाल ने छत्तीसगढ़ की पावन नदियों, सुरम्य वन संपदा और इंद्रधनुषी संस्कृति का सुंदर शब्दों में सुरुचिपूर्ण चित्रण किया गया है। सर्वश्री दिलीप किरण नायक, हिमांशु भट्ट, शिरिष सपले, नितिन कारंदीकर, शिल्पा चड्डा, केया दत्त, सुगंधा लाड और भारती कनविलकर ने इस गीत को अपना स्वर दिया है। 

शिरडी : बाबा के दरबार में गोलमाल!



बाबा के दरबार में गोलमाल!

(विनीता विश्वकर्मा)

शिरडी (साई)। शिरडी के साईं बाबा को चढ़े सोने में घपले की शिकायत महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से की गई है। आरटीआइ कार्यकर्ता संजय काले का आरोप है कि साईं बाबा को भक्तों द्वारा चढ़ाए गए सोने के आभूषणों को गलाने के दौरान उसमें बड़ा घपला किया गया है।
शिरडी के विख्यात साई बाबा मंदिर में भक्त अक्सर सोने और चांदी के आभूषण चढ़ाते हैं। राज्य सरकार के नियमानुसार, इन आभूषणों को गुरुवार-रविवार या मंदिर में मनाए जानेवाले बड़े उत्सवों के दौरान सार्वजनिक नीलामी करके बेचा जाना चाहिए लेकिन साईं बाबा के प्रति आस्था एवं चढ़ावा, दोनों निरंतर बढ़ते जाने के बावजूद पिछले कई वर्षाे से इन निर्धारित दिनों में कोई नीलामी नहीं हुई, बल्कि चढ़े हुए सोने को गलवा कर रखने में भी साईं संस्थान के अधिकारियों ने नियमों का पालन नहीं किया। जिसकी वजह से अब ये अधिकारी शक के घेरे में हैं। शिरडी के निकट कोपरगांव में रहनेवाले काले ने पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण को पत्र लिखकर इन अधिकारियों की संपत्ति की जांच करने की मांग की है।
सूचना अधिकार कानून के तहत काले को मिली जानकारी के अनुसार सन् 2008, 2009 एवं 2012 में क्रमशरू 19, 5337 किलो सोना गलवाया गया। नियमानुसार मंदिर के स्ट्रांग रूम से यह सोना किसी न्यायिक अधिकारी व मंदिर के तीन न्यासियों की उपस्थिति में ही निकाला जा सकता है। निकाला गया सोना सील करके कड़ी सुरक्षा में मुंबई की रिफाइनरी पहुंचाया जाता है और फिर उन्हीं न्यायिक अधिकारी एवं न्यासियों की उपस्थिति में सील खोली जाती है। सिल्लियों में परिवर्तित सोने को पुनरू लाकर शिरडी के स्ट्रांग रूम में रख दिया जाता है। पिछले तीनों बार निर्धारित नियमों का उल्लंघन कर न्यायिक अधिकारी एवं न्यासियों के बजाय संस्थान के तीन वरिष्ठ अधिकारियों ने सोना निकाला और उसे गलवा कर सिल्लियां पुनरू लाकर संस्थान में रखवाया।
आरोप है कि उक्त तीनों बार सोना गलवाने के बाद उसमें आनेवाली कमी की दर बढ़ती गई। गलवाने के बाद पहली बार इसमें आठ फीसद की कमी आई, दूसरी बार लगभग 12 और तीसरी बार 13.5 फीसद की कमी आई। जबकि इन्हीं वर्षाे में क्रमशरू 270 किलो, 430 किलो एवं 513 किलो चांदी भी गलवाई गई। गलाने के बाद चांदी में तीनों बार 24 फीसद के समान अंतराल वाली कमी देखी गई। काले कहते हैं कि लगातार बढ़ती गई कमी ही इसमें घपले का संकेत करती है। जिसकी उच्च स्तरीय जांच करके दोषियों को दंडित किया जाना चाहिए।

मुजफ्फरनगर : गुटखे पर प्रतिबंध के बाद बाजार बंद


गुटखे पर प्रतिबंध के बाद बाजार बंद

(सचिन धीमान)

मुजफ्फरनगर (साई)। एक अप्रैल से प्रदेष सरकार द्वारा तम्बाकू युक्त गुटखों पर न्यायालय के आदेष पर लगाई गई पाबंदी के मद्देनगर जिला प्रषासन ने गुटखे बेचने वाले व्यापारियों पर कड़ा रूख अख्तियार कर लिया है। गत दिवस मंगलवार को सिटी मजिस्ट्रेट ने पुलिस बल सहित बड़े गुटखा व्यापारी के यहां छापा मारा था। जिससे घबराए गुटखा व्यापारियों ने विरोध में अपनी दुकानें बंद कर प्रदर्षन किया। लेकिन सिटी मजिस्ट्रेट ने स्पष्ट किया कि न्यायालय व प्रदेष सरकार के आदेषों का अनुपालन किया जायेगा तथा गुटखा बेचने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर जेल भेजा जायेगा। जिला प्रषासन का कड़ा रूख देखते हुए व्यापारी शाम तक बैक फुट पर आ गये तथा कचहरी गेट के समीप डा. अम्बेडकर की मूर्ति के बाहर सिटी मजिस्ट्रेट इन्द्रमणि त्रिपाठी की मौजूदगी में गुटखों की होली जलाई।
ज्ञात रहे कि एक अप्रैल से पूरे प्रदेष में तम्बाकू युक्त गुटखों की बिक्री पर पूर्ण रूप से पाबंदी लगा दी गई है। जो भी तम्बाकू युक्त गुटखा बेचता पाया गया उस पर तीन लाख रूपये से दस लाख रूपये तक जुर्माना व छह माह से आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है। स्थानीय प्रषासन ने प्रदेष सरकार व न्यायालय के आदेषों के तहत बुधवार को दाल मंडी में गुटखा व्यापारियों की दुकानों पर छापा मारा। छापामारी को देखते हुए व्यापारी एकजुट हो गये तथा उन्होंने अपनी दुकानें बंद कर दी तथा जोरदार नारेबाजी की। लेकिन जिला प्रषासन के कड़े रूख को देखते हुए बाद में व्यापारी सिटी मजिस्ट्रेट से मिले लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रदेष सरकार व न्यायालय के आदेषों का पूर्णरूपेण पालन कराया जायेगा। इसके बाद नगर के व्यापारी बैक फुट पर आ गये और सफेदपोष व्यापारी नेताओं को साथ लेकर देर शाम कचहरी गेट पर डा. अम्बेडकर मूर्ति पर पहंुचे और सिटी मजिस्ट्रेट के सामने गुटखों की होली जलाई।
स्ंवाददाता से बातचीत में सिटी मजिस्ट्रेट ने बताया कि व्यापारियों को बुधवार शाम तक का अल्टीमेटम दिया गया था और बताया गया था कि यदि इसके बाद भी किसी भी पान विक्रेता या व्यापारी की दुकान में गुटखा मिला तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जायेगी। उन्होंने बताया कि छापामार कार्रवाई के दौरान ऐसे उत्पादों का सैम्पिल भी लिया जायेगा और जांच के बाद अगर सैम्पल फेल पाया गया तो व्यापारी के खिलाफ कार्रवाई की जायेगी।

फूड मेले में छात्राओं ने बनाए लजीज व्यंजन


फूड मेले में छात्राओं ने बनाए लजीज व्यंजन

(ब्यूरो कार्यालय)

मुजफ्फरनगर (साई)। सरकुलर रोड स्थित श्री राम गर्ल्स कालेज के गृह विज्ञान विभाग में बीएससी गृह विज्ञान प्रथम वर्ष की छात्राओं द्वारा फूड साईन्स विषय के अन्तर्गत प्रयोगात्मक परीक्षा में फूड मेले का आयोजन किया।
फूड मेले में छात्राओं ने हरियाणा का पालक पनीर, नवरत्न कोरमा, लस्सी, जम्मू राज्य के कश्मीरी तड़के से बने पुलाव, व दम आलू की सौधी खुशबू ने सबका मन ललचा दिया। उत्तर प्रदेश की मसलों में लिपटी हुई मसाला भिन्डी, गोभी कोफ्ता, दिल्ली की जायकेदार चाट, आलू बडे, छोले भटूरे साथ ही तमिलनाडू एवं राजस्थान राज्यों के व्यजंन इडली, डोसा, उपमा, चना दाल पराठा, गट्टा करी, चूरमा लड्डू आदि बनाकर स्वादिष्ट पकवानो से भारतीय भोजनों को आकर्षक रूप से प्रस्तुत किया। इन सभी राज्यों के अतिरिक्त एक विशेष स्टाल कुछ नही बहुत कुछभी सभी के आकर्षण का केन्द्र रहा। इस स्टाल पर स्वाद के खाने के शौकीनों ने नींबू पानी, जलजीरा और विभिन्न प्रकार के पकौडों का लुफ्त उठाया।
फूड मेले का निरीक्षण एमएलजे कालेज सहारनपुर की अध्यापिका डा. सीमा रानी द्वारा किया गया। जिन्होने छात्राओं की पाक कला एवं लगन  की खुले स्वर में प्रशंसा की इसके साथ साथ भविष्य में भी इस तरह केे फूड मेले के आयोजन के लिए प्रेरित किया। इस अवसर पर श्री राम कालेज के डायरेक्टर डा. आरएस चौहान, बीएड विभाग की डीन श्रीमति प्रेरणा मित्तल, गृह विज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष कु. प्रिंयका, श्रीमति मोहनी पंवार सहित अन्य अध्यापिकाएं एवं कर्मचारियों आदि ने अपना विशेष योगदान देकर कार्यक्रम को सफल बनाया।  

साई पालकी यात्रा का आयोजन


साई पालकी यात्रा का आयोजन

(शंटी आनंद)

लुधियाना (साई)। श्री साई अमृतवाणी श्रद्धा पाठ परिवार की ओर से 5वीं भव्य साई पालकी यात्रा व भजन संध्या का आयोजन फील्ड गंज स्थित, जंजघर में किया गया। साई पालकी यात्रा फील्ड गंज स्थित जंजघर से आरंभ होकर, सुभानी बिल्डिंग व हबीब नगर से गुजरते हुए वापिस जंजघर में संपन्न हुई।
इस दौरान महिला मंडली ने साई भजन पेश किए। तत्पश्चात विशाल भंडारे का आयोजन किया गया। इस अवसर पर वेद साई, जॉली, राजिंदर भाटिया व राकेश कुमार आदि उपस्थित थे।

राज्यपाल के आह्वाहन पर कुरैशी समुदाय का गौ-कशी न करने का अहम फैसला


राज्यपाल के आह्वाहन पर कुरैशी समुदाय का गौ-कशी न करने का अहम फैसला

(अर्जुन कुमार)

देहरादून (साई)। देहरादून में आयोजित ऑल इंडिया जमीयत-उल-कुरैश के एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित उत्तराखण्ड के राज्यपाल डॉ0 अज़ीज़ कुरैशी ने कुरैशी समुदाय के गौरवशाली इतिहास का उल्लेख किया तथा गौ-कशी जैसे संवेदनशील विषय पर कुरैशी समुदाय का आह्वाहन करते हुए कहा -’’देश में अमन-चैन, भाई-चारा लाने और किसी भी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत न करने की दृष्टि से कुरैशी समुदाय को आज से ही गौ-कशी न करने का निर्णय लेकर समुदाय की छवि को बदलना होगा। बिरादरी के लागों को अपने बच्चों की तालीम (शिक्षा) पर विशेषतः लड़कियों की बेहतर तालीम पर ध्यान केंद्रित करना होगा। दहेज प्रथा और विकास में बाधक अन्य सभी बुराईयों से दूर रहकर कुरैशी समाज की गरिमा बढ़ाने के साथ ही मुल्क की तरक्की तथा आन-बान-शान की रक्षा के लिए दिलो-जान से समर्पित होने की कसम भी खानी होगी।’’
राज्यपाल ने कुरैश समुदाय को यह भी आश्वासन दिया कि गौकशी के नाम पर समुदाय को किसी भी स्तर पर प्रताड़ित न किया जाए यह भी सुनिश्चित किया जाएगा।
राज्यपाल के आह्वाहन पर सम्मेलन में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि कुरैशी समुदाय का कोई भी व्यक्ति देश भर में कहीं पर भी गौ-हत्या में संलिप्त पाया गया तो बिरादरी द्वारा उसका पूर्ण बहिष्कार करते हुए उसके खिलाफ कड़ी कार्यवाही अमल में लायी जाएगी। इसके अलावा अशिक्षा मिटाने तथा दहेज जैसी बुराईयों को खत्म करने के लिए राज्यपाल के आह्वाहन को एक बड़ी सीख मानते हुए उस पर पूरी तरह अमल करने का भी निर्णय लिया गया।
कल देर सायं सम्पन्न हुए इस सम्मेलन में कुरैशी समुदाय के लागों द्वारा राज्यपाल को सम्मानित करते हुए उनके सम्मान में काव्यपाठ भी किया गया।
सम्मेलन में जमीयत के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हाजी सलालुद्दीन, आयोजक हाजी अहसान कुरैशी, हाजी अकरम कुरैशी, हाजी दिलशाद कुरैशी सहित देश के विभिन्न राज्यों से आये कुरैशी समुदाय के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे। 

भ्रष्टाचार में डूबा रूपए का प्रतीक चिन्ह


भ्रष्टाचार में डूबा रूपए का प्रतीक चिन्ह

(राहुल कोटियाल)

नई दिल्ली (साई)। श्भारतीय रुपये के प्रतीक चिह्न का निर्माता कौन है?श्- सामान्य ज्ञान की किताबों से लेकर कई प्रतियोगिताओं और परीक्षाओं में आपका भी सामना शायद इस सवाल से हो चुका होगा। यदि आपने इस प्रश्न का जवाब श्डी उदया कुमारश् दिया होगा तो आपको पूरे अंक भी मिले होंगे। लेकिन यदि आपको यह बताया जाए कि यह चिह्न तो उदया कुमार से बहुत पहले ही किसी दूसरे व्यक्ति ने बना लिया था तो क्या तब भी आप मानेंगे कि इस प्रश्न का सही जवाब उदया कुमार ही होना चाहिए?
वैसे इस तथ्य को महज एक संयोग समझकर आप मान भी सकते हैं कि सही जवाब तो डी उदया कुमार ही होना चाहिए। लेकिन जिस शख्स ने यह चिह्न उदया कुमार से बहुत पहले बनाया था उसने इसे अपने तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि भारतीय रिजर्व बैंक और प्रधानमंत्री कार्यालय को एक सुझाव पत्र के साथ भेजा भी था। इस सुझाव पत्र में इस शख्स ने कहा था कि अब भारतीय रुपये का भी कोई प्रतीक चिह्न होना चाहिए जिसके लिए उसके द्वारा बनाए गए चिह्न पर विचार किया जा सकता है। प्रधानमंत्री कार्यालय से यह सुझाव पत्र वित्त मंत्रालय भेजा गया और इस तरह से सरकारी महकमा इस चिह्न से कई साल पहले ही परिचित हो चुका था। फिर एक प्रतियोगिता आयोजित करवाई गई और डी उदया कुमार वही चिह्न प्रस्तुत करके विजेता बन गए। लेकिन इस प्रतियोगिता के लिए उदया कुमार एक अयोग्य प्रतिभागी थे। वे डीएमके के पूर्व विधायक श्री धर्मलिंगम के पुत्र हैं और जब यह प्रतियोगिता करवाई गई थी उस दौरान डीएमके भी केंद्र सरकार का एक हिस्सा थी। वैसे उनकी अयोग्यता का कारण यह नहीं कि वे एक पूर्व विधायक के पुत्र हैं बल्कि यह है कि उन्होंने प्रतियोगिता की शर्तों का उल्लंघन किया था जिस कारण वे प्रतियोगिता हेतु अयोग्य हो चुके थे। इन तथ्यों को जानने के बाद भी क्या आप मानेंगे कि इस ऐतिहासिक महत्व के प्रश्न का श्सही जवाबश् डी उदया कुमार ही होना चाहिए?
0 प्रतीक, प्रतियोगिता और प्रश्न
प्रतियोगिता के नियम और शर्तें सिर्फघ्अंग्रेजी में जारी हुए जो राजभाषा अधिनियम का उल्लंघन है
चयन के लिए बनी जूरी के सभी सदस्य प्रतियोगिता के दौरान एक बार भी एक साथ नहीं बैठे
प्रतिभागियों द्वारा प्रतीक चिह्न के साथ जमा की गई स्क्रिप्ट जूरी के सामने पेश ही नहीं की गई
एक प्रतिभागी दो ही चिह्न जमा कर सकता था, पर विजेता डी उदयाकुमार ने एक बयान में कई चिह्न जमा करने की बात कही। कायदे से उन्हें अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए था
प्रतीक चिह्न राष्ट्रीय सम्मान से जुड़े तो होते ही हैं, वे अरबों रुपये के व्यापार को भी प्रभावित करते हैं। इसलिए कुछ व्यापारिक कंपनियों के भी इस गड़बड़झाले में शामिल होने के आरोप लग रहे हैं
ऐसी गड़बड़ियां दूसरे प्रतीक चिह्नों के चयन में भी हुई हैं
दरअसल रुपये का प्रतीक चिह्न चुनने के लिए भारत सरकार द्वारा 2009 में एक प्रतियोगिता आयोजित करवाई गई थी। इस प्रतियोगिता का परिणाम 15 जुलाई, 2010 को घोषित हुआ और रुपये को उसकी नई पहचान मिल गई। देश के करोड़ों लोगों ने इस बात पर गर्व किया कि अब रुपया भी दुनिया की सबसे मजबूत मुद्राओं यानी डॉलर, यूरो और येन की श्रेणी में आ खड़ा हुआ है। इसके साथ ही देश के इतिहास में इस चिह्न को बनाने वाले का नाम भी हमेशा के लिए अमर हो गया।  लेकिन तहलका को मिले दस्तावेजों से यह स्पष्ट होता है कि राष्ट्रीय महत्व की यह प्रतियोगिता एक औपचारिकता मात्र थी जो सिर्फ लोगों को भ्रमित करने के लिए आयोजित की गई थी। जिस तरह से इस प्रतियोगिता की प्रक्रिया संपन्न हुई, उससे यह भी संकेत मिलता है कि सरकार पहले ही यह मन बना चुकी थी कि भारतीय रुपये का प्रतीक चिह्न क्या होगा।
रूपये के प्रतीक चिह्न के बारे में अधिकतर लोग बस यही जानते हैं कि इसके निर्धारण के लिए एक राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता आयोजित की गई और इस प्रतियोगिता में सबसे बेहतरीन चिह्न प्रस्तुत करने वाले को विजेता घोषित करते हुए उसके चिह्न को रुपये का प्रतीक बना लिया गया। लेकिन ऐसा नहीं है। इस पूरे मामले में हुई गड़बड़ियों को समझने के लिए इसे उसी क्रम में देखना अनिवार्य हो जाता है जिस क्रम में इन गड़बड़ियों का खुलासा होता चला गया।  फरवरी, 2009 में भारत सरकार द्वारा रुपये का चिह्न चुनने के लिए एक प्रतियोगिता के आयोजन की घोषणा की गई। कई अखबारों और वेबसाइटों पर इस संबंध में विज्ञापन जारी किये गए। विज्ञापन भले ही अंग्रेजी और हिंदी दोनों ही भाषाओं में जारी किए गए थे लेकिन प्रतियोगिता की शर्तों को सिर्फ अंग्रेजी में जारी किया गया। ऐसा करना राजभाषा अधिनियम का सीधा उल्लंघन था। प्रतियोगिता के विज्ञापन में यह भी लिखा गया था कि यह चिह्न भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को परिलक्षित करता हो, लेकिन प्रतियोगिता के नियम व शर्तों को सिर्फ अंग्रेजी में जारी करके भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को समझने वाले उन तमान लोगों को इसमें हिस्सा लेने से वंचित कर दिया गया जो अंग्रेजी में निपुण नहीं थे। वित्त मंत्रालय द्वारा जारी किए गए इस विज्ञापन में आवेदन जमा करवाने की अंतिम तिथि 15 अप्रैल, 2009 निर्धारित की गई थी। प्रत्येक आवेदन के साथ 500 रुपये के आवेदन शुल्क की मांग भी की गई थी। देश भर के हजारों नागरिकों ने रुपये का प्रतीक दर्शाती अपनी-अपनी रचनाएं मंत्रालय में जमा करवाईं। प्रतियोगिता आयोजित करने वाले वित्त मंत्रालय के पास इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि कुल कितने आवेदन मंत्रालय को देश भर से प्राप्त हुए। कुछ राष्ट्रीय समाचार पत्रों की मानें तो यह संख्या 25,000 के करीब है। हालांकि सूचना के अधिकार में पूछे जाने पर अधिकारी बताते हैं कि कुल आवेदनों की संख्या का कोई भी ब्योरा मंत्रालय के पास नहीं है, लेकिन मौखिक रूप से गणना करने पर 3,331 आवेदन सही पाए गए थे जिन्हें जूरी के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
प्रतियोगिता में भाग लेने वाले हजारों प्रतिभागी परिणाम घोषित होने की प्रतीक्षा में थे। इन्ही में से एक थे लखनऊ निवासी राकेश कुमार सिंह। सरकारी सेवा में तैनात राकेश बताते हैं, ‘परिणामों के प्रति हमारा उत्सुक होना स्वाभाविक था। आखिर यह एक ऐसी प्रतियोगिता थी जिससे एक ऐतिहासिक फैसला होने वाला था और जो भी इसमें विजेता घोषित होता उसका नाम हमेशा के लिए इस ऐतिहासिक फैसले के साथ ही अमर हो जाता।प्रतियोगिता के अंतिम चरण में पांच प्रतिभागियों का चयन होना था जिन्हें  25-25 हजार रुपये का पुरस्कार दिया जाना था और अंतिम विजेता को ढाई लाख का इनाम दिया जाना था। इसी क्रम में आठ दिसंबर, 2009 को अंतिम पांच प्रतिभागियों के नाम वित्त मंत्रालय की वेबसाइट पर घोषित कर दिए गए। इनमें से चार मुंबई से ही थे। विभाग की वेबसाइट पर इनके नाम तो घोषित कर दिए गए थे लेकिन इनके द्वारा प्रस्तुत किए गए चिह्नों को नहीं दर्शाया गया था। प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाले अन्य प्रतिभागियों को अपना नाम अंतिम पांच में न पाकर हताशा तो हुई लेकिन उससे ज्यादा उन चिह्नों को देखने की जिज्ञासा हुई जिन्हें अंतिम पांच में चुना गया था। इसी जिज्ञासा के चलते लखनऊ के राकेश कुमार ने सूचना के अधिकार के जरिए वित्त मंत्रालय से इन चिह्नों की प्रतिलिपि मांगी। साथ ही उन्होंने जूरी/चयन समिति के सदस्यों के नाम एवं कुछ अन्य जानकारियां भी मांगीं। देश के कोने-कोने से अन्य लोगों ने भी मंत्रालय से इस बारे में विभिन्न सूचनाएं मांगीं। आवेदनों के जवाब में जो जानकारियां मंत्रालय द्वारा प्रदान की गईं उनसे धीरे-धीरे इस प्रतियोगिता की खामियां सामने आने लगीं।
इस महत्वपूर्ण चिह्न को चुनने के लिए सात लोगों की एक जूरी बनाई गई थी। इस समिति में भारतीय रिजर्व बैंक से लेकर संस्कृति मंत्रालय तक के प्रतिनिधियों को सम्मिलित किया गया था। लेकिन यह जूरी इस राष्ट्रीय चिह्न के चयन को कितनी गंभीरता से ले रही थी इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि पूरी चयन प्रक्रिया के दौरान एक बार भी जूरी के सभी सदस्य एक साथ नहीं बैठे। संस्कृति मंत्रालय के प्रतिनिधि तो इस पूरी चयन प्रक्रिया में एक दिन भी उपस्थित नहीं हुए। प्रतियोगिता में हुई गड़बड़ियों को उजागर करने वालों में शामिल रहे मुंबई निवासी अनिल खत्री कहते हैं, ‘संस्कृति मंत्रालय के एक प्रतिनिधि को जूरी में इसलिए शामिल किया गया था ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि रुपये का चिह्न भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को भी परिलक्षित करता हो। लेकिन पूरी चयन प्रक्रिया में एक दिन भी संस्कृति मंत्रालय से कोई भी उपस्थित नहीं हुआ। तो फिर इस बात को किसने सुनिश्चित किया कि हजारों आवेदनों में से यही चिह्न भारतीय संस्कृति का सबसे बेहतर परिचायक है?’ चयन प्रक्रिया का पहला चरण 29 और 30 सितंबर को आयोजित किया गया। इस पहले और मुख्य दौर में जब कुल आवेदनों में से सबसे बेहतरीन चिह्नों को चुना जाना था तो जूरी के सात में से तीन सदस्य उपस्थित ही नहीं थे। इनमें जूरी की अध्यक्ष और रिजर्व बैंक की डिप्टी गवर्नर श्रीमती उषा थोराट भी शामिल थीं। जूरी के जो सदस्य उपस्थित थे उन्होंने भी यह चयन प्रक्रिया टालने वाले अंदाज में पूरी की। इन दो दिन में जूरी ने सुबह 10 बजे से शाम पांच बजे तक काम किया। इस दौरान जूरी द्वारा कुल 3,331 चिह्नों का अवलोकन किया गया। विज्ञापन के अनुसार प्रत्येक चिह्न को विभिन्न आकारों में जमा करवाना था जिनमें सबसे छोटा आकार श्4 पॉइंट फॉन्टश् में होना अनिवार्य था। इस तरह से प्रत्येक चिह्न का अवलोकन करने के लिए काफी ध्यान दिए जाने की जरूरत थी।
लेकिन जूरी ने जितना समय इन आवेदनों के अवलोकन में बिताया उसका यदि औसत देखा जाए तो मात्र 16 सेकंड में जूरी द्वारा प्रत्येक चिह्न का अवलोकन कर लिया गया। राकेश कुमार कहते हैं, ‘दुनिया का विद्वान से विद्वान व्यक्ति भी 16 सेकंड में किसी चिह्न का अवलोकन करके उसे समझ नहीं सकता। यह चिह्न तो देश का भविष्य होने वाला था, राष्ट्रीय सम्मान का प्रतीक बनने वाला था। इतने महत्वपूर्ण चिह्न को जूरी द्वारा चुटकी बजाते ही चुन लिया गया। क्या दुनिया का कोई भी व्यक्ति कुछ सेकंड में ही किसी चिह्न को देखकर यह तय कर सकता है कि कैसे वह भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को परिलक्षित करता है?’
प्रत्येक आवेदन के साथ ही प्रतिभागियों को चिह्न से संबंधित स्क्रिप्ट भी लिखित रूप में जमा करवानी थी। इस स्क्रिप्ट में प्रत्येक प्रतिभागी को अपने चिह्न की व्याख्या करते हुए यह बताना था कि कैसे वह चिह्न भारत में रुपए का प्रतीक हो सकता है और कैसे वह भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को परिलक्षित करता है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि पूरी चयन प्रक्रिया के दौरान प्रतिभागियों की स्क्रिप्ट को जूरी के सामने प्रस्तुत ही नहीं किया गया। बिना स्क्रिप्ट देखे ही अंतिम पांच चिह्नों का निर्धारण कर लिया गया। किसी भी प्रतीक चिह्न को समझने के लिए उसकी स्क्रिप्ट को पढ़ा जाना जरूरी होता है। उदाहरण के लिए, जिस व्यक्ति को यह पता न हो कि भारत के राष्ट्रीय ध्वज में तीनों रंग किन-किन चीजों को परिलक्षित करते हैं या बीचोबीच मौजूद चक्र क्या दर्शाता है, वह व्यक्ति सिर्फ तिरंगे को देखने भर से उसकी अहमियत नहीं समझ सकता। चिह्नों का कोई निर्धारित अर्थ नहीं होता और प्रत्येक व्यक्ति अपने विवेकानुसार ही उनका अर्थ समझता है। एक गोल आकृति का अर्थ सूर्य से लेकर और शून्य तक कुछ भी हो सकता है। ऐसे में जूरी का स्क्रिप्ट देखे बिना ही इस राष्ट्रीय चिह्न का निर्धारण कर देना कई सवाल खड़े करता है।
ये सारी जानकारियां राकेश कुमार सूचना के अधिकार से हासिल कर ही रहे थे कि इस बीच उन्हें सबसे महत्वपूर्ण जानकारी हासिल हुई। 18 दिसंबर 2009 के एक राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र में एक खबर छपी जिसके अनुसार नोंदिता कोरिया ने कुछ वर्ष पूर्व रिजर्व बैंक और प्रधानमंत्री कार्यालय को यह सुझाव दिया था कि भारत में रुपये का कोई प्रतीक चिह्न होना चाहिए। राकेश कुमार को आश्चर्य इस बात का हुआ कि नोंदिता कोरिया नाम की ही एक प्रतिभागी अंतिम पांच में भी चुनी गई थी। उन्होंने पहले यह सुनिश्चित किया कि क्या अंतिम पांच में चुनी गई नोंदिता कोरिया वही हैं जिन्होंने कुछ साल पहले सरकार को सुझाव भेजा था। इस तथ्य के सुनिश्चित होने से यह पूरी प्रक्रिया और भी ज्यादा संदेह के घेरे में आ गई। सरकारी स्तर पर कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं हुआ था कि भारत सरकार को कभी कोई सुझाव इस संबंध में प्राप्त हुआ हो। फिर जिस व्यक्ति ने सुझाव भेजा था, प्रतियोगिता में भी उसी व्यक्ति का अंतिम पांच में चुना जाना संदेह के और भी कारण पैदा करता था। राकेश कुमार एवं अन्य प्रतिभागियों द्वारा इस संबंध में सूचनाएं मांगी गईं। नोंदिता कोरिया मशहूर वास्तुकार चार्ल्स कोरिया की बेटी हैं। चार्ल्स भारत में वास्तु के क्षेत्र के एक दिग्गज माने जाते हैं और पद्मश्री एवं पद्म विभूषण से सम्मानित हो चुके हैं। चार्ल्स कोरिया द्वारा अगस्त, 2005 में रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर को एक पत्र लिखा गया था। इस पत्र में उन्होंने अपनी बेटी नोंदिता कोरिया द्वारा बनाए गए रुपये के प्रतीक को भारतीय रुपये का प्रतीक बनाए जाने के संबंध में विचार करने को लिखा था। इसके साथ ही नोंदिता कोरिया का पत्र भी रिजर्व बैंक को भेजा गया था। फिर 2006 में प्रधानमंत्री कार्यालय को भी चार्ल्स द्वारा ऐसा ही एक पत्र भेजा गया जिसके साथ नोंदिता का पत्र एवं सुझाव भी मौजूद था। प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस पत्र को वित्त मंत्रालय को भेजते हुए कहा कि रिजर्व बैंक की राय लेते हुए इस संबंध में उचित कदम उठाए जाएं। तत्कालीन वित्त मंत्री ने भी इस सुझाव पत्र एवं रुपये के प्रस्तावित चिह्न को देखा और फिर वित्त मंत्रालय ने विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय को इस संबंध में एक विज्ञापन जारी करने को कहा। कई बार सूचना मांगने पर भी वित्त मंत्रालय ने नोंदिता कोरिया द्वारा दिए गए सुझाव से संबंधित सूचना राकेश कुमार को नहीं दी। सूचना आयोग के आदेश के बाद जब वित्त मंत्रालय ने मजबूरन सूचना प्रदान भी की तो उसमें नोंदिता कोरिया द्वारा भेजे गए सुझाव पत्र की प्रतिलिपि तो उपलब्ध करवा दी गई लेकिन जो चिह्न उन्होंने भेजा था उसे प्रतिलिपि में से हटा दिया गया। नोंदिता द्वारा भेजा गया प्रतीक प्रदान न किए जाने के पीछे सरकार का तर्क था कि यह चिह्न उनकी श्बौद्धिक संपदाश् होने के चलते सार्वजानिक नहीं किया जा सकता।
अभी तक यह तथ्य सबके लिए एक रहस्य ही बना हुआ था कि नोंदिता ने 2005 और 2006 में जो चिह्न प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा था वह क्या था। राकेश कुमार और उनके साथी इस पूरी प्रतियोगिता में हुई गड़बड़ियों के विरुद्ध कदम उठाने की सोच ही रहे थे कि उन्हें एक और विवादास्पद तथ्य मालूम हुआ। प्रतियोगिता की शर्तों के अनुसार एक प्रतिभागी सिर्फ दो चिह्न जमा कर सकता था। लेकिन अंतिम पांच में चुने गए प्रतिभागियों में से डी उदया कुमार ने एक समाचार पत्र को दिए बयान में यह कह दिया कि उनके द्वारा कई चिह्न जमा करवाए गए थे। कायदे से तो ऐसा करने पर वे अयोग्य हो चुके थे और उनकी प्रतिभागिता रद्द हो जानी चाहिए थी लेकिन उन्हें न सिर्फ अंतिम पांच में जगह मिली बल्कि अंततः उन्हें ही विजेता भी घोषित किया गया। अनिल खत्री बताते हैं, ‘हमें सूचना के अधिकार में यह भी जानकारी मिली कि दो से ज्यादा चिह्न जमा करवाने वाले कुछ प्रतिभागियों को प्रतियोगिता से बाहर कर दिया गया था। फिर उदया कुमार को बाहर क्यों नहीं किया गया इसका सही कारण तो सरकार ही बता सकती है।राकेश कुमार ने इस संबंध में वित्त मंत्रालय से सूचना मांगी कि क्या चुने गए अंतिम पांच प्रतिभागियों में से किसी ने भी दो से ज्यादा चिह्न जमा करवाए थे। जवाब में सूचना अधिकारी ने यह तथ्य पूरी तरह छिपाना चाहा और झूठी सूचना प्रदान करते हुए कहा कि अंतिम पांच में से किसी भी प्रतिभागी ने दो से ज्यादा चिह्न जमा नहीं करवाए हैं। लेकिन डी उदया कुमार खुद ही अपने बयान में कह चुके थे कि उन्होंने कई चिह्न जमा करवाए थे तो सूचना अधिकारी को मजबूरन यह कबूलना पड़ा और उन्होंने फिर से सूचना प्रदान करते हुए यह मान लिया कि उदया कुमार द्वारा चार चिह्न जमा करवाए गए थे। इसके बाद वित्त मंत्रालय का कहना था कि उदया कुमार के पहले दो चिह्नों को ही जूरी के सामने भेजा गया था और सिर्फ उन्हें सही माना गया था जो कि मंत्रालय को पहले प्राप्त हुए थे।  लेकिन स्वयं वित्त मंत्रालय ने यह स्वीकार किया है कि उनके पास इसका कोई भी रिकॉर्ड नहीं है कि उन्हें कौन-सा आवेदन किस तिथि को प्राप्त हुआ। सभी आवेदनों की जांच मंत्रालय द्वारा आवेदन प्राप्त करने की अंतिम तिथि के पांच दिन बाद शुरू की गई। ऐसे में डी उदया कुमार के कौन-से चिह्न पहले प्राप्त हुए थे यह मंत्रालय ने कैसे तय किया, इसका जवाब स्वयं मंत्रालय के पास भी नहीं है।
प्रतियोगिता में हुई इतनी गलतियों की पुख्ता जानकारी जब राकेश कुमार को हो गई तो उन्होंने वित्त मंत्री, प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति को 138 पन्नों का एक ज्ञापन भेजकर इस पूरी प्रक्रिया में हो रही गड़बड़ियों से अवगत करवाया और इस संबंध में उच्च स्तरीय जांच की मांग की। लेकिन कई साक्ष्य उपलब्ध कराने के बाद भी उन पर जांच करने के बजाय 15 जुलाई, 2010 को उदया कुमार को विजेता घोषित कर दिया गया। इसके बाद राकेश कुमार ने उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की जिसमें उन्होंने सरकार के इस फैसले पर रोक लगाने एवं पूरी प्रक्रिया पुनः आयोजित करवाने की प्रार्थना की। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने क्षेत्राधिकार के आधार पर यह याचिका खारिज कर दी। अदालत ने यह भी कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता स्वयं प्रतियोगिता का एक प्रतिभागी था इसलिए उसके द्वारा जनहित याचिका नहीं की जा सकती।
राकेश कुमार की ही तरह कुछ अन्य लोग भी विभिन्न विभागों से इस प्रतियोगिता के संबंध में जानकारी मांग रहे थे। नोंदिता कोरिया का जो सुझाव पत्र वित्त मंत्रालय से कई बार आवेदन करने पर भी राकेश को पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हुआ था वही पत्र मुंबई के एक प्रतिभागी अनिल खत्री को रिजर्व बैंक से सूचना मांगने पर हासिल हो गया। इस पत्र के प्राप्त होने पर सभी को हैरान करने वाली जानकारी मिली। नोंदिता कोरिया द्वारा रुपये का जो प्रतीक 2005 में रिजर्व बैंक को भेजा गया था वह चिह्न बिल्कुल वही था जिसे आज हम रुपये के प्रतीक के तौर पर पहचानते हैं। इस जानकारी ने सबको चौंकाया जरूर लेकिन इससे ही सरकार की मंशा भी समझने में मदद मिली। राकेश कुमार बताते हैं, ‘नोंदिता कोरिया के पत्र में सुझाए गए चिह्न को देखकर यह स्पष्ट हुआ कि सरकार पहले ही अपना मन बना चुकी थी कि रुपए का प्रतीक किसे चुनना है। यह पूरी प्रतियोगिता सिर्फ एक दिखावा और अपने कुछ नजदीकियों को पुरस्कृत करने का माध्यम ही थी।जूरी के सदस्य वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक से भी थे जिन्हें इस चिह्न की पहले से ही जानकारी थी। चुने गए अंतिम पांच चिह्न देखकर भी यह साफ होता है कि ये सभी एक ही तरह की सोच के हैं। शायद यही कारण था कि इतना कम समय लगाते हुए जूरी ने हजारों आवेदनों में से उन्हीं को चुना जिसका सुझाव सालों पहले ही प्राप्त हो चुका था। सरकार के इस पूर्वाग्रह के कारण शायद कई ऐसी रचनाओं को देखा भी नहीं गया होगा जो एक बेहतर विकल्प हो सकती थीं।
डी उदया कुमार के जिस चिह्न को आज हम रुपये के प्रतीक के रूप में पहचानते हैं उसके बारे में यह भी कहा जा रहा है कि वह प्रतियोगिता के मानकों पर भी खरा नहीं उतरता था। इस चिह्न को सबसे पहले बनाने वाली नोंदिता कोरिया बताती हैं, ‘मैंने प्रतियोगिता के दौरान इस चिह्न में संशोधन और सुधार करके एक नया चिह्न प्रस्तुत किया था। पुराने चिह्न को जब छोटा किया जाता था तो उसकी ऊपर की दोनों रेखाएं आपस में मिल जाती थीं इसलिए वह प्रतियोगिता के मानकों पर खरा नहीं उतरता था।खत्री बताते हैं, ‘विज्ञापन के अनुसार प्रतिभागियों से अपने चिह्न को विभिन्न आकारों में प्रस्तुत करने को कहा गया था। उदया कुमार का यह चिह्न उन मानकों पर खरा नहीं उतरता था। जूरी ने भी यह खामी देखी होगी लेकिन फिर भी वही चिह्न चुन लिया गया।इस प्रतियोगिता के लिए प्रत्येक प्रतिभागी को 500 रुपये आवेदन शुल्क के तौर पर जमा करने थे। हजारों प्रतिभागियों द्वारा जमा किए गए आवेदन शुल्क से तो सरकार की कमाई हुई ही लेकिन पैसों का यह खेल यहीं समाप्त नहीं होता। जानकार बताते हैं कि राष्ट्रीय स्तर के ये प्रतीक चिह्न राष्ट्रीय सम्मान से जुड़े तो होते ही हैं साथ ही वे अरबों रुपये के व्यापार को भी प्रभावित करते हैं। रुपये के इस चिह्न को भारतीय मुद्रा के साथ-साथ कंप्यूटर, लैपटॉप और मोबाइल फोन के कीपैड तक में उतारा जाता है। ऐसे में बड़ी कंपनियां सबसे पहले इस चिह्न को अपने उत्पादों में उतारने के लिए करोड़ों रुपए लगा सकती हैं और सबसे पहले इसे हासिल करके हर जगह छापना चाहती हैं। आरोप लग रहे हैं कि अगर सरकार ने पहले ही तय कर लिया था कि रुपये का चिह्न क्या होना है तो मुमकिन है कि कुछ बड़े व्यापारियों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका रही हो।
उधर, डी उदया कुमार कहते हैं, ‘मुझे इस संबंध में कोई भी जानकारी नहीं थी कि किसी ने रुपये के प्रतीक के संबंध में पहले कभी सरकार को सुझाव दिया है। प्रतियोगिता के बारे में मुझे आईआईटी बॉम्बे के मेरे एक मित्र ने बताया था। फिर दिल्ली में अंतिम प्रेजेंटेशन के दौरान मैंने सुना कि किसी प्रतिभागी ने इस संबंध में पहले कभी सरकार को सुझाव भेजा था।’  यह बात सिर्फ राष्ट्रीय स्तर तक सीमित नहीं है। रुपये का प्रतीक चिह्न अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी हमारी पहचान बन चुका है  या बन रहा है। इतने महत्वपूर्ण और राष्ट्रीय सम्मान के चिह्न के चयन में हुई अनियमितताओं से आप लोग भी शर्मिंदा तो हो सकते हैं लेकिन भविष्य में जब भी आपका सामना इस प्रश्न से होगा कि भारतीय रुपये के प्रतीक का निर्माता कौन है तो पूरे अंक आपको डी उदया कुमार के रूप में दिया हुआ उत्तर ही दिला सकता है।  
0 अन्य प्रतीक चिह्न
सिर्फ रुपए का प्रतीक चिह्न ही ऐसा नहीं है जिसमें नियमों की अनदेखी की गई हो। राष्ट्रीय महत्व के अन्य कई प्रतीक चिह्नों का चयन पिछले कुछ सालों में इसी तरह से किया गया है। ऐसे ही चिह्नों के निर्धारण में हुई गड़बड़ियों के बाद राकेश कुमार सिंह द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। इस याचिका में ऐसे कुल पांच चिह्नों का जिक्र किया गया था जिनमें सरकार मनमाने तरीकों से फैसले कर चुकी है। सूचना के अधिकार का प्रतीक/लोगो भी इनमें से एक है। सूचना का अधिकार एक ऐसा अधिकार है जो सीधे तौर से जनता के ही हाथों में है। इस अधिकार के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए कई संस्थाएं कार्य कर रही हैं। स्वयं सरकार भी इस अधिकार के प्रति लोगों को जागरूक करने की बात करती है। लेकिन इस अधिकार का जो श्लोगोश् सरकार द्वारा तय किया गया है उससे अभी तक अधिकतर लोग परिचित नहीं हैं। राकेश कुमार की जनहित याचिका की पैरवी कर रहे अधिवक्ता कमल कुमार पांडे बताते हैं, ‘सूचना के अधिकार के श्लोगोश् का निर्धारण यदि एक राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता आयोजित करके होता और ज्यादा से ज्यादा लोग इसमें शामिल होते तो इसके दोहरे परिणाम होते। एक तरफ तो ज्यादा लोगों की भागीदारी से ज्यादा विचार और रचनाएं सरकार तक पहुंचतीं वहीं दूसरी तरफ ऐसी प्रतियोगिता लोगों को इस अधिकार के प्रति जागरूक भी करती।
सूचना के अधिकार का श्लोगोश् सरकार ने बिना कोई प्रतियोगिता करवाए ही किसी व्यक्ति से बनवा लिया था। लेकिन जिन प्रतीक चिह्नों अथवा श्लोगोश् के निर्धारण के लिए सरकार द्वारा प्रतियोगिताएं आयोजित की भी गईं वहां भी ऐसा सिर्फ औपचारिकता पूरी करने को ही किया गया। सरकार की अति महत्वाकांक्षी योजना श्आधारश् के लोगो का चयन भी कई खामियों से भरा है। श्समाज के अंतिम व्यक्ति को उसकी पहचान का बोध करानेश् के उद्देश्य से चलाई जा रही इस योजना के लोगो के लिए एक प्रतियोगिता करवाई गई। प्रतियोगिता का विज्ञापन सिर्फ अंग्रेजी भाषा में जारी किया गया। इस योजना के बारे में लोगों को जानकारी देने और अधिक से अधिक लोगों को इससे जोड़ने के लिए भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण में अलग से एक समिति का भी गठन किया गया है जिसने कि इस प्रतियोगिता में जूरी का भी कार्य किया। लेकिन इस विशेष समिति द्वारा भी इस प्रतियोगिता में ज्यादा से ज्यादा लोगों को शामिल करने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया गया। लोगो का चयन करने हेतु जिस जूरी को चुना गया था उसमें से कई लोग चयन के दिन उपस्थित भी नहीं थे और जो सदस्य उपस्थित थे उन्होंने मात्र तीन घंटे में 2,270 आवेदनों में से सबसे बेहतरीन लोगो को छांटने का करिश्मा कर दिखाया। विजेता को एक लाख रुपये का इनाम मिला और श्आधारश् को उसका लोगो।
ये चिह्न या लोगो सिर्फ राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों, संस्थाओं या संस्थानों के प्रतीक नहीं होते बल्कि उनको एक ऐसी विशेष पहचान भी देते हैं जिसमें हमारे समाज और सांस्कृतिक धरोहर की भी झलक मिलती है। अनिल खत्री बताते हैं, ‘ऐसी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों को किसी इनाम का लालच नहीं बल्कि देश के प्रति अपने योगदान की लालसा होती है। यह तथ्य ही प्रतिभागियों को उत्साहित कर देता है कि उनकी रचना देश के किसी महत्वपूर्ण मुद्दे या संस्थान का प्रतीक बनेगी। लेकिन जब इन प्रतियोगिताओं में ऐसी धोखाधड़ी सामने आती है तो लोग अपने ही देश से ठगा हुआ महसूस करते हैं।
इंडियन डिजाइन काउंसिल ने भी एक ऐसी ही प्रतियोगिता आयोजित की थी। इस संस्था पर सारे देश के डिजाइनों की जिम्मेदारी है, लेकिन डिजाइन के निर्धारण में सबसे ज्यादा गड़बड़ियां यहीं हुई हैं। जापान के श्जी मार्कश् और जर्मनी के श्रेड डॉटश् की ही तरह भारत में श्आई मार्कश् के चयन हेतु यह प्रतियोगिता आयोजित हुई थी। इस प्रतियोगिता का विज्ञापन सिर्फ एक इंटरनेट ग्रुप पर जारी किया गया। यह ग्रुप सुधीर शर्मा नाम के एक व्यक्ति द्वारा बनाया गया था जो स्वयं ही इस प्रतियोगिता की जूरी में भी शामिल थे। इस ग्रुप के सीमित सदस्य हैं और सिर्फ वे सदस्य ही इस ग्रुप की गतिविधियों को देख सकते हैं। प्रतियोगिता के लिए चुने गए पांच सबसे बेहतरीन लोगो में से चार सुधीर शर्मा के संस्थान से ही थे। चयन प्रक्रिया में भी सुधीर शर्मा की अहम भूमिका थी। आखिर में जो डिजाइन चुना गया वह सुधीर शर्मा के संस्थान वालों द्वारा ही बनाया गया था। इस तरह से एक राष्ट्रीय चिह्न चुनने पर काफी लोगों द्वारा आपत्ति जताई गई जिसके चलते इस प्रतियोगिता को रद्द करके एक नए सिरे से आयोजित किया गया।
ऐसी ही एक प्रतियोगिता रेल मंत्रालय ने भी आयोजित की थी। प्रतियोगिता के विज्ञापन में कहा गया कि भारतीय रेल के लोगो की पुनर्कल्पना हेतु प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है। इस प्रतियोगिता में विजेता के लिए पांच लाख रुपये का इनाम रखा गया। पांच मई, 2010 को जारी हुए विज्ञापन में आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि 12 मई, 2010 तय की गई। इस तरह से पूरी प्रतियोगिता के लिए सिर्फ एक सप्ताह का समय दिया गया। इस प्रतियोगिता में जिस श्पैम एडवर्टाइजिंग ऐंड मार्केटिंगश् कंपनी को विजेता घोषित किया गया वह पहले से भी भारतीय रेल के लिए काम कर रही थी। कुछ समय बाद रेल मंत्रालय द्वारा यह कहा गया कि नया लोगो सिर्फ राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान इस्तेमाल किया जाएगा और भारतीय रेल का लोगो वही रहेगा जो कई सालों से है। इस प्रतियोगिता की चयन समिति में सभी लोग रेल मंत्रालय से ही थे और डिजाइन के क्षेत्र से किसी भी विशेषज्ञ को चयन समिति में नियुक्त नहीं किया गया। राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय रेल भी एक प्रमुख प्रायोजक था। जाहिर है इस नए लोगो को खेलों के टिकट से लेकर और कई जगह छापने का काम बड़ी-बड़ी कंपनियों को दिया गया होगा। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता बताते हैं, ‘रेलवे द्वारा करवाई इस प्रतियोगिता से उन कंपनियों के अलावा किसी को फायदा नहीं हुआ जिनको इस नए लोगो को छापने के ठेके दिए गए होंगे और जिसने इसे बनाकर इनाम जीता। ऐसी अनावश्यक प्रतियोगिता आयोजित करना खुले आम जनता के पैसों को लूटने का एक तरीका ही है।रेलवे द्वारा लाखों रुपये खर्च करके और लाखों का ईनाम देकर बनवाए गए इस नए लोगो को आज कहीं भी इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।
बहरहाल राकेश कुमार द्वारा इन सभी गड़बड़ियों को न्यायालय के सामने प्रस्तुत करने से आने वाले समय में ऐसी लूट होने की आशंका कुछ हद तक कम हो गई है। बीती 30 जनवरी को दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस जनहित याचिका में फैसला देते हुए केंद्र सरकार को निर्देश दिए हैं। इन निर्देशों में तीन महीने के भीतर सरकार को अपने सभी मंत्रालयों एवं विभागों में ऐसी प्रतियोगिताएं आयोजित करवाने हेतु नियमावली तैयार करने को कहा गया है। अधिवक्ता कमल कुमार पांडेय कहते हैं, ‘उच्च न्यायालय का यह फैसला हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है। अभी तो सरकार ने इन चिह्नों के जरिए लूट का नया रास्ता ढूंढ़ा ही था। न्यायालय का अगर यह आदेश न आता तो आने वाले कुछ समय में न जाने कितने और ऐसे ही मनमाने फैसले सरकार द्वारा कर लिए गए होते। इस लिहाज से राकेश कुमार देश के लिए एक बहुत बड़ा काम इस मायने में तो कर ही चुके हैं कि भ्रष्टाचार की एक पूरी सड़क पर उन्होंने नाकाबंदी कर दी है।