ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)
शिंदे या मीरा हो सकती हैं मन की सक्सेसर
सियासी गलियारों में प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह की बिदाई की उल्टी गिनती आरंभ हो चुकी है। अब अटकलें लगाई जा रही हैं कि सोनिया गांधी के लिए मनमोहन के स्थान पर कौन सा चेहरा मुफीद होगा। एक तीर से कई शिकार करने के आदी कांग्रेस के रणनीतिकार अब मनमोहन के सक्सेसर के तौर पर लोकसभाध्यक्ष मीरा कुमार एवं बिजली मंत्री सुशील कुमार शिंदे के नामों से उपजने वाली स्थितियों का अध्ययन कर रहे हैं। दरअसल कांग्रेस चाह रही है कि प्रधानमंत्री बदलकर वह एक ओर तो घपले, घोटाले और भ्रष्टाचार की अपनी छवि से पीछा छुड़ा लेगी और दूसरी ओर दलित कार्ड खेलकर इसका लाभ उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में उठा लेगी। यूपी इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि राहुल और सोनिया गांधी का संसदीय क्षेत्र भी इसी सूबे में है, अगर वहां कांग्रेस अपनी नाक नहीं बचा पाई तो भद्द तो आखिर राजमाता और युवराज की ही पिटनी है।
वास्तु के फेर में अण्णा!
हिन्दुस्तान मूल का वास्तु जब पश्चिमी सभ्यता की सील लगाकर वापस आया है तबसे यह लोगों के सर चढ़कर बोल रहा है। क्या उद्योगपति, क्या लोकसेवक, क्या जनसेवक हर कोई वास्तुविदों की मंहगी फीस का भोगमान भोगकर अपने अपने घरों दुकानों का वास्तु दोष दूर करवा रहे हैं। इसी साल अगस्त के बाद चर्चाओं में आए अण्णा हजारे को भी वास्तुविदों ने घेर लिया और फिर क्या था अण्णा के घर का वास्तु ठीक करवाने में जुट गए वास्तुविद। दिल्ली से लौटे अण्णा को वास्तु दोष ठीक होने तक मजबूरी में पद्यावती मंदिर के गेस्ट हाउस को अपना आशियाना बनाकर रहना पड़ा। एक सप्ताह से अण्णा मौन व्रत धारण किए हुए अण्णा का जब पुराना आवास ठीक हुआ तब जाकर वे अब अपने यादव माता मंदिर वाले आवास में चले गए हैं।
मनमोहन और प्रणव का हनीमून समाप्त
कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी का केम्प छोड़कर प्रधानमंत्री के तारणहार बने वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी अब वजीरे आजम से खफा खफा नजर आ रहे हैं। मंत्रीमण्डल विस्तार के एन पहले इस तरह की चर्चाएं सियासी फिजां में छा गईं थीं कि मुखर्जी ने सोनिया का दामन छोड़ अब मन से मन मिला लिया है। कहा जा रहा है कि मनमोहन सिंह ने उन्हें उप प्रधानमंत्री बनाने का वायदा भी किया था जो गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम के त्यागपत्र की धमकी के कारण सपना ही रह गया। इसके बाद प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा एक चिट्ठी को मीडिया में लीक किए जाने से प्रणव दा बुरी तरह आहत हुए और उन्होंने सोनिया गांधी से मिलकर सारी की सारी शिकायतें एक ही सांस में कह डाली। घपले, घोटाले, भ्रष्टाचार, बाबा रामदेव, अण्णा हजारे पर गूंगी गुड़िया बनीं सोनिया गांधी इसी इंतजार में थीं। उन्होंने प्रणव की बातें सुनकर मनमोहन को अल्टीमेटम देने का मन बना ही लिया है।
पेंच का पेंच फंसा जुलानिया के गले में
मध्य प्रदेश और केंद्र सरकार के बीच ग्यारह साल से झूला झूल रही मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा और सिवनी जिले की महात्वाकांक्षी पेंच परियोजना वैसे तो पच्चीस साल से अधिक उमर की हो चुकी है। चुनावों के दौरान राजनैतिक दल इसे उछालकर अपना मतलब साध लिया करते हैं बाद में मामला ठंडे बस्ते के हवाले ही कर दिया जाता है। हाल ही में भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी राधेश्याम जुलानिया जो एमपी में ईरीगेशन के पीएस भी हैं का सार्वजनिक अभिनंदन होते होते बचा सिवनी में। दिल्ली में डीओपीटी यानी कार्मिक विभाग के एक अधिकारी कक्ष में चल रही चर्चा के अनुसार एमपी विधानसभा के उपाध्यक्ष हरवंश सिंह जो कि कांग्रेसी नेता हैं से चर्चा में मशगूल जुलानिया द्वारा सूबे की सत्ताधारी भाजपा के नेताओं को अंडर एस्टीमेट कर दिया। फिर क्या था जनता उग्र हो गई। किसी तरह जुलानिया वहां से अपनी इज्जत बचाकर भागे।
नायर को राजभवन के लिए सोनिया की हरी झंडी
सोनिया गांधी पीएमओ में सबसे ज्यादा किसी से खफा थीं तो वह थे प्रमुख सचिव टी.के.नायर से। उनकी सेवानिवृति के उपरांत उन्हें पीएम ने अपना सलाहकार बना लिया। इससे सोनिया का गुस्सा सातवें आसमान पर आ गया। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने जब सोनिया को बताया कि उनके और चिदम्बरम के बीच रार को भड़काने में नायर की भूमिका अच्छी खासी रही है तो सोनिया ने आनन फानन उन्हें वहां से हटाने का निर्देश दे दिया। अब समस्या यह है कि नायर को आखिर भेजा कहां जाए। अमूमन बड़े नौकरशाह सेवा निवृति के बाद भी सारी सुविधाएं चाहते हैं। इसलिए सोनिया को कहा गया कि नायर को राज्यपाल बना दिया जाए तो उचित होगा। पहले तो सोनिया इसके लिए तैयार नहीं हुईं बाद में राजस्थान राजभवन के लिए उन्होंने नायर के नाम पर अपनी सहमति दे ही दी।
दादा की लाड़ली होंगी अब उत्तराधिकारी
दादा यानी राजग के पीएम इन वेटिंग रहे एल.के.आड़वाणी की लाड़ली यानी प्रतिभा उनके साथ अब राजनैतिक तौर पर सक्रिय हो चुकी हैं। वे दादा की संभावित अंतिम रथ यात्रा में उनका कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। प्रत्यक्षतः तो वे दादा का ख्याल रखने उनके साथ चल रही हैं किन्तु इसके कई अनेक मायने और हैं। दादा के साफ निर्देश हैं कि रथ यात्रा में अभिवादन वे और उनकी लाड़ली ही स्वीकार करेंगी। देश भर में दादा की रथ यात्रा के बहाने प्रतिभा भी सर्व स्वीकार्य ही हो जाएं एसी चाहत है दादा की। सालों साल राजनीति करने वाले तिरासी बसंत देख चुके एल.के.आड़वाणी की सेहत अब जवाब देने लगी है। वे समय रहते अपना राजनैतिक उत्तराधिकारी नियुक्त करना चाह रहे हैं। उनके पुत्र की दिलचस्पी राजनीति में ज्यादा नहीं है, सो बिटिया ही दादा का नाम रोशन करेंगीं।
. . . तो क्यों दौड़े गए थे दिल्ली
अगस्त 2011 से देश में चर्चा का केंद्र बन चुके गांधी वादी समाजसेवी अण्णा हजारे और उनके गांव रालेगण सिद्धि पर अब समूचे विश्व की नजर है। अगस्त में लोग अण्णा में गांधी की छवि देख रहे थे। उसके बाद टीम अण्णा की हरकतों के कारण वे विवादित होते गए। अण्णा के गांव के सरपंच सुरेश पठारे को पता नहीं क्या सूझी कि वे अपने साथियों के साथ दिल्ली कूच कर गए और जाते जाते मीडिया को स्कूप दे गए कि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के बुलावे पर वे दिल्ली जा रहे हैं। सरपंच दिल्ली आए और बेआबरू होकर वापस लौट गए। राहुल गांधी ने उनसे मिलने की जहमत नहीं उठाई। कहा जा रहा है कि सांसद पी.टी.थामस ने यह मुलाकात अरेंज करवाई थी। राहुल के करीबियों का कहना था कि मिलना था तो मीडिया को मिलने के बाद बताना था, पहले से हल्ला कर मिलने का क्या मतलब!
क्या चिटनिस पर होगी कार्यवाही!
मध्य प्रदेश की शिक्षा मंत्री अर्चना चिटनिस सरकारी दौरे पर दिल्ली आईं और कोहराम मचाकर चली गईं। चिटनिस ने शिक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में भारतीय मूल की शिक्षा पद्यति को जमकर सराहा और उसे अपनाने की बातें कहकर देशप्रेम जताया। वहीं चौबीस घंटे भी नहीं बीते और अर्चना चिटनिस एक ब्रितानी संस्था के प्रोग्राम की चीफ गेस्ट की आसंदी पर जा बैठीं। ब्रिटिश काउंसिल द्वारा शिक्षकों और शालाओं को पुरूस्कार दिए जाने वाले इस प्रोग्राम में उनके सूबे का एक भी शाला या शिक्षक स्थान नहीं पा सका। देश के हृदय प्रदेश की शिक्षा मंत्री के चोबीस घंटे में ही दो चेहरे देखकर दिल्लीवासी हतप्रभ हैं। सियासी गलियारों में यह बात जमकर उछल रही है कि क्या शिक्षा मंत्री इस तरह से दो चेहरे जनता को दिखाएंगी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ ही साथ संगठन क्या यह सब महाराज ध्रतराष्ट्र के मानिंद देखकर मौन रहेंगे।
ये रहे एलआईसी के दो चेहरे!
जीवन के साथ भी जीवन के बाद भी का नारा बुलंद करने वाले भारतीय जीवन बीमा निगम के दो चेहरे अब जनता के सामने आए हैं। लोगों का जीवन बचाने के लिए उन्हें आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने वाली सरकारी कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम ने तीन मार्च तक तीन सिगरेट कंपनियों में 3561 करोड़ रूपए का निवेश किया है। एलआईसी ने इंडियन टुबेको कंपनी, गुटखा कंपनी धर्मपाल लिमिटेड और एक अन्य को आर्थिक इमदाद दी है। जनकल्याणकारी संस्था एलआईसी का मौखटा उतारने पर पता चलता है कि वह लोगों को कैंसर के मुंह में ढकेल रही है इसके लिए उसने आईटीसी में अपना निवेश दुगना कर दिया है। सरकारी कंपनी ने अपने निवेशकों को बताए बिना ही पैसा जनसंहार के हथियार में लगा दिया है।
राज्यसभा की फिराक में निशंक
उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री की हाट सीट से उतरने के बाद रमेश पोखरियाल निशंक के तेवर कुछ तल्ख समझ में आ रहे हैं। निशंक के करीबी आला कमान पर दबाव बना रहे हैं कि उन्हें राज्यसभा के रास्ते केंद्रीय राजनीति में भेजा जाए। उधर आला कमान निशंक का उपयोग राज्य में दुबारा सत्ता पाने के लिए करना चाह रहा है। निशंक नुकसान न पहुंचाएं और उनका उपयोग भी हो जाए इसलिए पार्टी चाह रही है कि निशंक को विधानसभा अध्यक्ष बना दिया जाए। अगर निशंक स्पीकर बनते हैं तो स्पीकर को खण्डूरी मंत्रीमण्डल में कबीना मंत्री बना दिया जाएगा। दरअसल पार्टी की नेशनल लेबल की दूसरी लाईन को नेताओं को भय है कि निशंक अगर केंद्र में आए तो उनकी लाईन छोटी हो सकती है।
आईएएस देंगे तिहाड़ के आधा दर्जन कैदी!
सत्तर के दशक के उत्तरार्ध मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्वकाल में जब इंदिरा गांधी को तिहाड़ जेल भेजा गया था तबसे जबर्दस्त चर्चाओं में आया तिहाड़। इस जेल में राजनेताओं के साथ ही साथ एक से एक जरायमपेशा लोग बंद रहे हैं। तिहाड़ की जेल नंबर तीन में हत्या अपहरण, लूट, धोखाधड़ी की सजा काट रहे छः कैदियों द्वारा नया इतिहास लिखने की तैयारी की जा रही है। जेल प्रशासन भी इन कैदियों के जज़़्बे को सलाम करता नजर आ रहा है। जेल प्रशासन द्वारा भी इन कैदियों के लिए परीक्षा की तैयारियों के लिए जरूरी पाठ्य सामग्री मुहैया करवाई जा रही है। 2009 में बलात्कार के मामले में सजा काटने वाले एक कैदी को सिविल सेवा की परीक्षा पास करने पर रिहा भी किया गया था। सरकारी प्रचार के लिए जिम्मेदार पीआईबी या राज्यों के जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों का नेता प्रेम बड़ा कारण है कि जेल का यह दूसरा चेहरा कम ही लोगों के सामने आ पाता है।
इतनी गत तो मत करिए फ्रीडम फाईटर्स की!
देश को गोरे ब्रितानियों के हाथों मुक्त करवाने वाले आजादी के परवाने दीवाने स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों की तादाद आज मुट्ठी भर भी नहीं बची है। इनको सम्मान देने के बजाए भारतीय रेल अपने उपर एक बोझ स्वरूप ही इन्हें महसूस कर रहा है। स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों को मानार्थ रेल्वे पास जारी किए जाते हैं जिसके आधार पर वे निशुल्क यात्रा के अधिकारी हो जाते हैं। केंद्र सरकार के रेल मंत्री खुद लोकसभा में इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि अंडमान के राजनैतिक कैदियों को छोड़कर शेष स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों के पास राजधानी, शताब्दी और दुरन्तो गाडियों में वैध नहीं हैं। जनसेवकों के लिए अब इन मुट्ठी भर सैनानियों के वोट भी मायने नहीं रखते। कम से कम सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस तो इनके बलिदान और जज़्बे को सलाम कर इस दिशा में कुछ प्रयास करती।
पुच्छल तारा
मैं भी अण्णा तू भी अण्णा, अगस्त में अण्णा हजारे के पक्ष में चली बयार अब लोग गुनगुनाते नजर आते हैं। यवतमाल से राहुल तेलरांधे ने ईमेल भेजकर रोचक सच्ची जानकारी भेजी है। राहुल लिखते हैं कि जनसेवक और लोकसेवकों का हवाईजहाज और हेलीकाप्टर का लोभ समझ में आता है, पर गांधीवादी अण्णा हजारे आखिर किस लोभ में पुष्पक विमान की सवारी गांठ रहे हैं। अब तो अण्णा भी चार्टर्ड प्लेन और हेलीकाप्टर का लोभ नहीं छोड़ पा रहे हैं। पिछले दिनों अण्णा की सेवा में एक राजनेता के करीबी के स्वामित्व वाली निजी एविएशन कंपनी का चार्टर्ड प्लेन अण्णा की चाकरी में लगा था। अण्णा भी मजे से मुस्कुराते हुए इस हवाई जहाज की सवारी गांठकर हवा हवाई हो गए।