शनिवार, 21 सितंबर 2013

पीसीबी ने रातों रात बदल दिया कार्यकारी संक्षेप

पीसीबी ने रातों रात बदल दिया कार्यकारी संक्षेप

किसके कहने पर मुजरा कर रहा है प्रदूषण नियंत्रण मण्डल

(ब्यूरो कार्यालय)

घंसौर (साई)। लगता है मानो मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल मध्य प्रदेश सरकार की मिल्कियत न होकर अब वह मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के आवंथा समूह की संपत्ति हो गया है। जी हां, हालात देखकर तो यही लगने लगा है कि एमपीपीसीबी अब आवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के हित साधने के लिए नियमों को भी बलाए ताक पर रखने से गुरेज नहीं कर रहा है। एमपीपीसीबी की वेब साईट झाबुआ पावर लिमिटेड के लिए मनचाहे बदलाव सहजता से करती जा रही है।
गौरतलब है कि झाबुआ पावर, केंद्र सरकार की छटवीं सूची में अधिसूचित आदिवासी विकासखण्ड घंसौर के ग्राम बरेला में कोल आधारित पावर प्लांट की स्थापना करने जा रहा है। इसके प्रथम चरण की लोक सुनवाई मण्डल के क्षेत्रीय कार्यालय जबलपुर के अधिकारियों की उपस्थिति में 22 अगस्त 2009 को एवं दूसरे चरण की लोक सुनवाई 22 नवंबर 2011 को घंसौर तहसील के ग्राम गोरखपुर में संपन्न हुई।
इन दोनों ही लोकसुनवाई में नियम कायदों को बलाए ताक रखने के आरोप मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल पर लगे। मण्डल ने अपनी वेब साईट पर दूसरी लोक सुनवाई की जानकारी ही नहीं डाली। इस लिहाज से 22 नवंबर 11 को हुई लोकसुनवाई शून्य ही मानी जा सकती है। इसके अलावा उस वक्त झाबुआ पावर की ओर से डाला गया कार्यकारी सारांश 600 मेगावाट का वही पुराना था जो प्रथम चरण के लिए डाला गया था।
जब इस मामले को मीडिया के माध्यम से अधिकारियों के संज्ञान में लाया गया तो पता नहीं कैसे और किसके कहने पर अचानक ही लोकसुनवाई के दूसरे दिन 23 नवंबर को लोकसुनवाई की तिथि 22 नवंबर डाल दी गई। अर्थात लोकसुनवाई के दूसरे दिन मुनादी पीटी जा रही है कि कल लोकसुनवाई हो चुकी है जिसे आपत्ति करना हो कल जाकर कर लेता! यहीं पीसीबी का जादू और गौतम थापर की चरण वंदना प्रदूषण नियंत्रण मण्डल द्वारा समाप्त नहीं होती है।
कहा जा रहा है कि 6400 करोड़ रूपयों की लागत से बनने वाले झाबुआ पावर लिमिटेड के इस संयंत्र के ट्रबल शूटर्स जिसमें छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से कार्यालय संचालित करने वाले प्रमुख बताए जा रहे हैं के द्वारा मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल को पूरी तरह साध लिया गया है। इसके लिए सात अंकों में राशि के आदान प्रदान की चर्चाएं भी जोरों पर हैं। इन चर्चाओं में कितनी सच्चाई है यह बात तो कंपनी के कारिंदे या पीसीबी के मुलाजिम ही जानें, पर वेब साईट पर की गई छेड़छाड़ से इन चर्चाओं को बल अवश्य ही मिलता है। उधर दूसरी ओर प्रदूषण नियंत्रण के लिए जिम्मेदार मध्य प्रदेश सरकार का एक विभाग इन दिनों मशहूर उद्योगपति गौतम थापर की देहरी पर मुजरा करता नजर आ रहा है।

मजे की बात तो यह है कि प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की वेब साईट पर जनसुनवाई के तीसरे चरण में 352 नंबर पर अंकित मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा घंसौर में संस्थापित होने वाले पावर प्लांट के दूसरे चरण के लिए डाला गया कार्यकारी सारांश रातों रात बदलकर 600 के बजाए अब 660 का कर दिया गया है। इसकी इबारत के आरंभ में अब कार्यकारी सारांश को कार्यकारिणी संक्षेप दर्शा दिया गया है।

स्वास्थ्य प्रशासन के निकम्मेपन से बढ़ रहे डेंगू के मरीज

स्वास्थ्य प्रशासन के निकम्मेपन से बढ़ रहे डेंगू के मरीज

न प्रशिक्षण, न कोई एडवाईज़री, अनुभवहीन लोगों के हाथों में है कमान

(अय्यूब कुरैशी/गजेंद्र ठाकुर/विकराल सिंह बघेल)

सिवनंी/छपारा/केवलारी (साई)। सिवनी जिले में डेंगू के मरीजों की बढ़ती तादाद यह स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है कि जिले में स्वास्थ्य विभाग द्वारा इसकी रोकथाम की दिशा में महज कागजी कार्यवाही कर जनसंपर्क विभाग के जरिए विज्ञप्ति जारी की जाकर अपनी खाल को बचाने का प्रयास किया जा रहा है।
केवलारी में गत दिवस मिले डेंगू के लार्वा से हड़कम्प मच गया है। केवलारी के अनेक मरीजों में डेंगू के संभावित लक्षण पाए गए। उन मरीजों को केवलारी में उपचार के अभाव में सिवनी भेजा गया। खबर है कि सिवनी में कुछ मरीजों के परिजनों द्वारा मरीज को सिवनी में भी उपचार न मिल पाने से बेहतर इलाज हेतु नागपुर ले जाया गया। वहीं कुछ को नागपुर रिफर किया गया है।

छपारा में डेंगू से बच्चे की मौत
डेंगू ने अब छपारा में दस्तक दे दिया जहां कक्षा 4 थीं का एक छात्र डेंगू की चपेट में आकर मौत के मुंह में समा गया।
डेंगू जैसी गंभीर बीमारी, सिवनी, केवलारी, कुरई और छपारा में में पहुंच गया, परंतु इस बात से जिला स्वास्थ्य महकमे को कोई फर्क नहीं पड़ता, उसे तो कुंभकर्णीय नींद से उठने की फुर्सत नहीं तभी तो जानकारी मिलने के बाद भी स्वास्थ्य महकमा सक्रिय नहीं है। बताया जाता है कि छपारा विकासखंड के अंतर्गत ग्राम मटामा निवासी राजेश साहू का पुत्र जय साहू कक्षा चारं का छात्र था जो अपनी मां के साथ दुर्गानगर ललमटिया छपारा में रहता था। 16 सितंबर को जय साहू को अचानक तेज बुखार आया तब छपारा में डॉक्टर को दिखाया गया जहां डॉक्टर ने ब्लड जांच कराने को कहा। बताया जाता है कि जय की जब ज्यादा तबियत खराब हो गई तो उसे छिंदवाड़ा ले जाया गया, जहां चिकित्सकों ने उसे डेंगू बता दिया और नागपुर रिफर कर दिया जहां जय की मौत हो गई। एक मासूम बच्चे की डेंगू से मौत हो जाने की खबर स्वास्थ्य अमले को है अथवा नहीं? यह तो वे ही जाने परंतु अब तक स्वास्थ्य विभाग का छपारा में सक्रिय न होना इस बात का प्रमाण है कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी डेंगू को लेकर गंभीर नहीं है क्योंकि यदि वह लोग गंभीर होते तो स्वास्थ्य विभाग का एक दल छपारा पहुंचकर फागिंग मशीन चलवा देते वहीं लार्वा की जांच के लिए टीम भी घूमने लगती।

सिवनी में मिले थे मरीज
ज्ञातव्य है कि पूर्व में सिवनी के विवेकानंद और शहीद वार्ड में डेंगू के संभावित मरीज मिले थे। जैसे ही डेंगू के मरीज मिलने की बात सामने आई, स्वास्थ्य विभाग और नगर पालिका प्रशासन दोनों ही के हाथ पैर फूल गए थे। एक ओर तो नगर पालिका प्रशासन द्वारा फागिंग मशीन और अन्य मच्छर रोधी उपायों की मद में लाखों रूपयों की हर साल होली खेली जाती रही है, वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य विभाग द्वारा भी जिला मलेरिया अधिकारी कार्यालय के जरिए मच्छरों न पनपें इसके लिए लाखों रूपए पानी में बहा दिए जाते हैं। इतना सब कुछ होने के उपरांत भी सिवनी में मलेरिया के मरीज तो ठीक पर डेंगू के मरीज और लार्वा मिलना नगर पालिका और स्वाथ्य विभाग के नपुंसक प्रशासन के गाल पर करारे तमाचे से कम नहीं था।

आनन फानन जारी हुई विज्ञप्तियां
जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य विभाग और नगर पालिका प्रशासन सिवनी ने डेंगू से निपटने क्या उपाय किए यह बात तो वे ही जानें पर जनसंपर्क कार्यालय के माध्यम से दोनों ही के द्वारा हड़बड़ी में विज्ञप्तियां जारी कर अपनी अपनी खाल को बचाने का कुत्सित प्रयास किया गया।

संवेदनशील कलेक्टर ने दिए कड़े निर्देश
जिले के संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव ने सिवनी शहर में डेंगू की भयावह होती स्थिति को देखकर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, सहित जिले के स्थानीय निकायों, ग्राम पंचायतों आदि को कड़े निर्देशजारी कर कहा है कि डेंगू और मलेरिया के साथ सख्ती से निपटा जाए।

हवा में उड़ा दिए कलेक्टर के निर्देश
सिवनी में स्वास्थ्य विभाग एवं नगर पालिका परिषद् सहित स्थानीय निकाय या ग्राम पंचायतों को जिला कलेक्टर के निर्देश से कोई लेना देना नहीं है। सभी ने जिला कलेक्टर के निर्देशों को हवा में ही उड़ा दिया। अगर ऐसा नहीं था तो फिर क्या कारण है कि सिवनी जिले में डेंगू का लार्वा विवेकानंद और शहीद वार्ड से निकलकर समूचे जिला मुख्यालय तो छोड़िए समूचे जिले में कूच कर गया है।

विधायक पतियों को नहीं किसी का डर
भारतीय जनता पार्टी के एक पदाधिकारी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान कहा कि दरअसल, नगर पालिका परिषद् अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी के संपर्क सीधे प्रदेश के बड़े नेता अरविंद मेनन और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से हैं तथा स्वास्थ्य विभाग में वर्षों से पदस्थ मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.वाय.एस.ठाकुर की पत्नि श्रीमती शशि ठाकुर लखनादौन से भाजपा विधायक हैं और जिला मलेरिया अधिकारी का प्रभार वाले डॉ.एच.पी.पटेरिया की पत्नि श्रीमती नीता पटेरिया सिवनी विधायक हैं। संभवतः यही कारण है कि तीनों के तीनों, अपने उंचे सियासी रसूख के चलते संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव के कड़े निर्देशोंको कचरे की टोकरी में चुपचाप सरका देते हैं।

जिले भर में भय का माहौल
गत रात्रि समाचार चेनल्स पर दिल्ली में डेंगू के मरीजों की तादाद एक हजार के लगभग होने तथा दो मरीजों की डेंगू से मौत की खबर से लोगों में भययुक्त सन्नाटा पसर गया है। सिवनी के अलावा केवलारी, बरघाट, कुरई, लखनादौन, घंसौर आदि विकासखण्ड में भी लोग डेंगू के डंक से बेहद बुरी तरह डरे हुए हैं।

अनुभवहीन लोगों के हाथों कमान!

स्वास्थ्य विभाग में अफसरशाही के बेलगाम घोड़े किस कदर दौड़ रहे हैं इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लंबे समय के उपरांत भी स्वास्थ्य और मलेरिया विभाग द्वारा इसके लिए एडवाईज़री नहीं जारी की गई है। मजे की बात तो यह है कि मलेरिया जागरूकता रैली निकलने के साथ ही सिवनी में डेंगू के मरीजों के मिलने का सिलसिला आरंभ हो गया है। वस्तुतः डेंगू से निपटने के लिए स्वास्थ्य या मलेरिया प्रशासन को प्रशिक्षित लोगों के हाथों में इसकी कमान सौंपी जानी थी, किन्तु कमीशनबाजी के मकड़जाल में उलझा स्वास्थ्य और मलेरिया विभाग आशा कार्यकर्ताओं के हाथों में इसकी कमान सौंपकर लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ ही करता नजर आ रहा है।

एस्ट्रोटर्फ: देर आयद दुरूस्त आयद!

एस्ट्रोटर्फ: देर आयद दुरूस्त आयद!

(शरद खरे)

सिवनी के हॉकी खिलाड़ियों के लिए यह राहत की बात है कि 22 सितम्बर से उनके लिए सिंथेटिक हॉकी मैदान खेलने के लिए खुलने वाला है। यह सिवनी के नागरिकों विशेषकर हॉकी के खिलाड़ियों के लिए बहुप्रतिक्षित था। लंबे समय से लोग इसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। वर्ष 2011 के दिसंबर माह में टर्फ बिछकर तैयार थी। इसके उपरांत इसे पूर्ण करने में लगभग 20 माह का समय लग गया। यह बीस माह का समय कम नहीं होता है।
हो सकता है कि इसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाथों लोकार्पित करवाने के लिए भाजपा के जनसेवकों ने एड़ी चोटी एक कर दी हो। संभवतः इसी कारण इसका शेष काम मंथर गति से चलाया गया हो। अब चुनाव की आचार संहिता लगने के पूर्व इसे लोकार्पित करना बेहद जरूरी हो गया था। वरना यह काम चुनावों के उपरांत अर्थात दिसंबर या जनवरी में नई सरकार चाहे वह कांग्रेस की बनती या भाजपा की तीसरी पारी होती, जो कि भविष्य के गर्भ में है के हाथों संपन्न होता। तब इसका पॉलीटिकल माईलेज शायद ही भाजपा ले पाती। अगर भाजपा सरकार बनती और भाजपा इसका लाभ ले भी पाती तो विधानसभा चुनावों में तो हॉकी प्रेमियों को निराशा ही हाथ लगती। हो सकता है कि भाजपा को इस मामले मेें एक डर भी रहा हो कि कहीं विपक्षी कांग्रेस द्वारा इसे मुद्दा बना लिया जाता तो भाजपा को उल्टे बांस बरेली के झेलने पड़ जाते।
सिवनी में सिंथेटिक हॉकी के मैदान की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। सिवनी में हॉकी के लिए कोई मैदान आरक्षित नहीं है। ले देकर पुलिस ग्राउंड ही है जहां हॉकी खेली जाती है। दशकों पहले कोतवाली के सामने वाले मैदान पर हॉकी का अभ्यास हुआ करता था। प्रौढ़ हो रही पीढ़ी इस बात को गर्व के साथ युवा पीढ़ी को बता सकती है कि उस वक्त ब्रदर्स क्लब की प्रेक्टिस के दौरान दर्शकों का जुनून देखते ही बनता था। उस समय आने जाने वाले पैदल और सायकल सवार (चूंकि उस वक्त मोटर सायकल स्कूटर अधिक मात्रा में नहीं हुआ करते थे) रूककर घंटों इनके अभ्यास को देखने पर मजबूर हो जाया करते थे। रोजाना होने वाले अभ्यास में ऐसा दृश्य बन जाता था मानो यहां कोई राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता हो रही हो।
कालांतर में जनसेवकों के ध्यान न दिए जाने से सिवनी में हॉकी रसातल की ओर अग्रसर होती गई। हॉकी संघ भी महज शोभा की सुपारी ही बनकर रह गए। सिवनी के नामचीन हॉकी खिलाड़ियों की फेहरिस्त बहुत लंबी है, पर अचानक ही नब्बे के दशक के आगाज़ के उपरांत हॉकी खिलाड़ियों का प्रदर्शन प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर बोथरा होता गया। एक जमाना था जब सिवनी में बाबा राघवदास, अशोक एण्ड अशोक आदि हॉकी स्पर्धाएं खेली जाती थीं। इन स्पर्धाओं में अपने जमाने के हुनरमंद हॉकी खिलाड़ी राजेंद्र गुप्त, यहूसु होलू, के साथ ही साथ अपेक्षाकृत युवा संतोष पटेल आदि अंपायरिंग करते दिखते तो उस वक्त की जवान पीढ़ी अपने आपको आनंदित महसूस करती। पुलिस ग्राउंड में मैच के दौरान यह आलम होता कि पैर रखने को जगह नहीं मिलती।
उस समय बाहुबली होटल के संचालक ठाकुर दास जैन उर्फ ढब्बू भैया आदि की मित्र मण्डली खिलाड़ियों का उत्साह इस कदर बढ़ाती नजर आती कि खिलाड़ियों के हौसले आसमान छूने लगते। वह एक दौर था जब तत्कालीन सांसद पंडित गार्गी शंकर मिश्र भी जमीन पर बैठकर हॉकी के मैच का लुत्फ उठाते। आज वह नजारा देखने को नहीं मिलता है। हॉकी के शौकीनों की आज भी सिवनी में कमी नहीं है। हॉकी के कदरदान तो बहुत हैं पर सिवनी में हॉकी ने दम तोड़ दिया है।
सिवनी को एस्ट्रोटर्फ मैदान मिलने से इस बार हॉकी के खिलाड़ियों और हॉकी प्रेमियों के मन में उत्साह का संचार होना लाजिमी है। एक यक्ष प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही है, कि अगर दिसंबर 2011 में सिंथेटिक शीट को बिछा दिया गया था तो आखिर 20 माह तक इंतजार किस बात का किया गया? क्या बीस माह तक सिवनी के हॉकी के उदीयमान खिलाड़ियों को इस तैयार मैदान पर खेलने से रोककर हॉकी संघ या जनसेवकों ने उनका गला नहीं घोंटा है? अगर इसका लोकार्पण प्रभारी मंत्री के हाथों ही होना था तो बीस माह मुख्यमंत्री का इंतजार क्यों किया गया?

बहरहाल, देर आयद, दुरूस्त आयद की तर्ज पर हॉकी के मैदान का लोकार्पण हो रहा है। बीती ताहि बिसार दे की तर्ज पर इसका स्वागत किया जाना चाहिए। अब आवश्यक्ता इस बात की है कि हॉकी के इस सिंथेटिक मैदान की गरिमा किस प्रकार बरकरार रखी जाए इस बारे में विचार किया जाए। इस मामले में हमारी निजी राय में जिस तरह स्टेडियम को फुटबाल मैदान में तब्दील कर उसका बेहतरीन रखरखाव किया है, एम.के.नेमा ने इसी तरह किसी सक्षम अधिकारी या एम.के.नेमा के ही हवाले कर दिया जाए यह हॉकी का मैदान। आज स्टेडियम की गरिमा बरकरार है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। लोग सुबह शाम यहां पैदल सैर भी किया करते हैं। इस लिहाज से हॉकी के इस मैदान की सुरक्षा का भी माकूल इंतजाम करना निहायत जरूरी है। हॉकी का मैदान प्राईवेट बस स्टैंड के मुहाने पर है। शाम ढलते ही बस स्टैंड के इर्द गिर्द मयकशों का हुजूम लग जाता है। अगर हॉकी के इस मैदान की सुरक्षा के पुख्ता इंतजामात मुकम्मल नहीं हो पाए तो इसके ओपन बार में तब्दील होते देर नहीं लगेगी। उसके बाद पुलिस अधीक्षक के अधीन कार्य करने वाला खेल एवं युवक कल्याण विभाग के सर पर सुबह सवेरे इस मैदान के आसपास से डिस्पोजेबल ग्लास, पानी के पाऊच और खाली प्लास्टिक की बोतलें, शराब के अध्धे पव्वे, नमकीन की पन्नियां, सिगरेट के टोटे और माचिस बिनवाने का सरदर्द अलग से आन पड़ेगा।