शनिवार, 17 सितंबर 2011

फोरलेन के रास्ते की सारी बाधाएं हटीं: सांसद बसोरी

फोरलेन के रास्ते की सारी बाधाएं हटीं: सांसद बसोरी

सिवनी फोरलेन मामले में प्रकाश की किरण हुई प्रस्फुटित

अगर बालाघाट जबलपुर आमन परिवर्तन का रोड़ा हटा तो बन सकती है सिवनी के लिए नजीर

रेल संघर्ष समिति के सुव्यवस्थित से वनबाधा हटने के आसार

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। ‘‘उत्तर दक्षिण गलियारे में सिवनी जिले में फोरलेन की सारी बाधाएं हट चुकी हैं। सिवनी बालाघाट के लोग दिल्ली जाकर संबंधितों से मिल चुके हैं। अभी तक इसका काम आरंभ क्यों नहीं हुआ इस बारे में पता लगाना पड़ेगा। इस मामले को मेरे द्वारा लोकसभा में नहीं उठाया गया है।‘‘ उक्ताशय की बात आज सिवनी मण्डला लोकसभा क्षेत्र के सांसद बसोरी सिंह मसराम द्वारा कही गई।

दूरभाष पर चर्चा के दौरान श्री मसराम ने कहा कि मामला न्यायालय ने वापस कर दिया है। इस मार्ग पर लगी सारी रोक हट चुकी हैं। जब उनसे यह कहा गया कि इस मार्ग की जर्जर हालत और जानलेवा गड्ढ़ों में लोग कालकलवित हो चुके हैं, तब सांसद मसराम ने कहा कि इस बारे में वे पता करने का प्रयास करेंगे कि अभी तक सड़क निर्माण का काम क्यों नहीं आरंभ कराया गया। सांसद मसराम ने स्वीकार किया कि इस मामले को अभी तक उन्होंने लोकसभा में नहीं उठाया है।

उधर बालाघाट से बरास्ता नैनपुर जबलपुर जाने वाले रेलखण्ड में अमान परिवर्तन के काम को अगर वनविभाग द्वारा स्वीकृति दे दी जाती है तो इसी आधार पर उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे में सिवनी जिले के विवादित मार्ग को अनुमति मिलने की संभावनाएं बलवती हो जाती हैं। बालाघाट रेल संघर्ष समिति के सतत और सही दिशा में किए गए प्रयासों का परिणाम है कि मामला अब पकने की स्टेज में आ गया है।

ज्ञातव्य है कि वर्ष 1997 में बालाघाट से जबलपुर के बीच नेरोगेज को ब्राडगेज में परिवर्तित करने का काम आरंभ हुआ था। सरकारी मकड़जाल में उलझी इस अमान परिवर्तन की महात्वाकांक्षी परियोजना को चौदह साल घिसटने के बाद भी वन विभाग की अनुमति नहीं मिल सकी है। इस मार्ग में पेंच कान्हा कारीडोर का 19 एकड़ का हिस्सा आ रहा है। इस वन भूमि को हस्तांतरित करने की अनुमति मांगी गई है।

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि रेल संघर्ष समिति बालाघाट द्वारा नागरिकों के मशविरे के उपरांत सही दिशा में किए गए सटीक प्रयासों का ही नतीजा है कि मामला मंत्रालय ने परीक्षण के लिए पर्यावरण विभाग के भोपाल स्थित क्षेत्रीय कार्यालय को भेज दिया है। गौरतलब है कि इस क्षेत्रीय कार्यालय की सौगात तत्कालीन केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री कमल नाथ द्वारा मध्य प्रदेश को दी गई थी।

सूत्रों ने बताया कि क्षेत्रीय कार्यालय को निर्देश दिए गए हैं कि वाईल्ड लाईफ विशेषज्ञों की एक उच्च स्तरीय समिति का गठन कर इस मामले का परीक्षण करवाया जाए। इस समिति में केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारियों की भागीदारी सुनिश्चित करने को कहा गया है। अगर इस समिति ने रेल लाईन के निर्माण हेतु वन भूमि के हस्तांतरण की अनुमति दे दी जाती है तो बालाघाट जबलपुर रेल खण्ड कं अमान परिवर्तन का रास्ता साफ हो जाएगा। सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि वन एवं पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन को महाकौशल के एक कद्दावर संसद सदस्य द्वारा इस प्रोजेक्ट में वन विभाग की अनुमति देने के लिए प्रभावी तरीके से ब्रीफ किया गया है। नटराजन के सहयोगात्मक तेवर देखकर संभावना व्यक्त की जा रही है कि इस योजना को जल्द ही हरी झंडी मिलने की उम्मदी है।
यहां उल्लेखनीय होगा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में बनाई गई स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे में मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में मोहगांव से लेकर खवासा तक लगभग 22 किलोमीटर लंबे सड़क निर्माण का काम इसी आधार पर रोका गया है। कहा जा रहा है कि इसके बीच से 8.7 किलोमीटर का हिस्सा पेंच कान्हा कारीडोर से होकर गुजर रहा है।

18 दिसंबर 2008 को तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि के आदेश पर रोके गए इस काम के उपरांत सड़क के रखरखाव का काम ही बंद कर दिया गया था। जिसके परिणाम स्वरूप सड़कों पर बड़े बड़े जानलेवा गड्ढ़े हो गए हैं, जिससे यहां से गुजरने वालों में रोष और असंतोष पनप गया है। वहीं दूसरी ओर सिवनी जिले के निवासियों के रिसते घावों पर मरहम लगाने के बजाए नमक और मिर्च छिड़कने की गरज से एनएचएआई द्वारा बंडोल के समीप एक अस्थाई टोल बूथ बनाकर टोल वसूली का काम भी आरंभ करवा दिया गया था। इस टोल बूथ में टोल वसूल कर एनएचएआई के खाते में जमा करने का काम हरियाणा की एक सिक्यूरिटी एजेंसी को दिया गया है। बताया जाता है कि इस कंपनी को प्रतिमाह पचास लाख रूपए से अधिक की राशि का भुगतान एनएचएआई द्वारा किया जा रहा है।

सिवनी से गुजरने वाले फोरलेन सड़क मार्ग के संबंध में सिवनी बालाघाट के संसद सदस्य के.डी.देशमुख पूर्व में ही कह चुके हैं कि इस मामले को उन्होंने संसद में उठाने की जहमत तो नहीं की किन्तु वे एनएचएआई के सतत संपर्क में हैं। के.डी.देशमुख ने इस मामले में एनएचएआई के सतत संपर्क में रहकर क्या प्रयास किए इसका खुलासा उन्होंने नहीं किया है।

कांग्रेस के बाद भाजपा के निजाम की सर्जरी

कांग्रेस के बाद भाजपा के निजाम की सर्जरी

सोनिया की बीमारी रहस्यमय किन्तु गड़करी की अमाशय की हुई सर्जरी

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी द्वारा भारत गणराज्य के चिकित्सकों पर भरोसा न जताकर दुनिया के चौधरी अमरिका के दर पर जाकर अपनी शल्य क्रिया करवाई गई। वे किस बीमारी से ग्रसित हैं यह बात आज भी किसी को नहीं पता है। हाल ही में भाजपाध्यक्ष नितिन गड़करी ने देश के चिकित्सकों पर भरोसा जताया और अपनी अमाशय की सर्जरी देश की व्यवसायिक राजधानी मंबई में करवाई है।

देश के शासन की पकड़ परोक्ष तौर पर अपने हाथों में रखने वालीं कांग्रेस की सबसे ताकतवर महिला श्रीमति सोनिया गांधी अपनी सर्जरी करवाकर एक माह तक विश्राम के उपरांत स्वदेश वापस आ गईं हैं। उनकी बीमारी के बारे में अभी भी तरह तरह के कयास ही लगाए जा रहे हैं। वैसे उनका इलाज जिस अस्पताल में हुआ वह अस्पताल केंसर के इलाज के लिए मशहूर है। सोनिया की सेहत सियासी हल्कों में रहस्य बनकर रह गई है।

कांग्रेस सोनिया गांधी के स्वास्थ्य को लेकर चुप्पी साधे हुए है। कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के केंद्र 10, जनपथ के सूत्रों का कहना है कि चिकित्सकों ने उन्हें आईसोलेटेड रहने का मशविरा दिया है। संभवतः यही कारण है कि महामहिम राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभादेवी पाटिल और प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह को भी सोनिया से मिलने की अनुमति नहीं दी गई। कांग्रेस के ताकतवर महासचिव और सोनिया के राजनैतिक सलाहकार अहमद पटेल वो खुशनसीब हैं जो सोनिया से चंद मिनिटों के लिए मिल पाए हैं।

उधर प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नितिन गड़करी को कुछ दिनों से मधुमेह की शिकायत थी। गड़करी के करीबी सूत्रों का कहना है कि गड़करी के ब्लड में शक्कर की मात्रा अनियंत्रित तरीके से बढ़ने की शिकायत थी। गड़करी को मुंबई के सैफी अस्पताल में दाखिल करवाया गया था, जहां उनके अमाशय की सर्जरी की गई। गड़करी की हालत अब बेहतर है और उन्हें एक सप्ताह के लिए आराम की सलाह दी गई है।

महाराजा की राह पर भारतीय रेल

महाराजा की राह पर भारतीय रेल

ममता ने बजाया रेल्वे का बाजा

प्रधानमंत्री बने रहे मूकदर्शक

रेल्वे की किटी हुई एक करोड़ से कम

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। इक्कीसवीं सदी के स्वयंभू प्रबंधन गुरू लालू प्रसाद यादव द्वारा रेल मंत्री रहते हुए भारतीय रेल के लिए जो ताबूत तैयार किया था उसमें पूर्व रेल मंत्री ममता बनर्जी ने खीलें ठोंक दीं। लगता है वर्तमान रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी द्वारा भारतीय रेल के ताबूत में आखिरी कील ठोंकने की तैयारी की जा रही है। अरबों करोड़ की मिल्कियत वाली भारतीय रेल के खजाने में रक्षित नकद महज पौन करोड़ से कम ही बचा है।

गौरतलब है कि एक समय में शान से सर उठाने वाले महाराजा अर्थात एयर इंडिया आज पूरी तरह कर्ज में ही सांसे ले रहा है। इसके पीछे निजी एयर लाईंस को लाभ पहुंचाना और अकुशल प्रबंधन ही प्रमुख कारक है। 2007 में समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में जब भारतीय रेल के पास लगभग ग्यारह हजार करोड़ रूपए रक्षित नकद की मद में था, वह अब महज सत्तर लाख से भी कम बचा है।

पश्चिम बंगाल पर फतह करने की उधेड़ बुन में लगी रहीं ममता बनर्जी ने भारतीय रेल को बेपटरी कर दिया। ममता की अनदेखी से रेल्वे को हर रोज लगभग बीस करोड़ रूपए का नुकसान उठाना पड़ा रहा था। विश्व में सबसे बड़े नेटवर्क और कर्मचारियों के परिवारों को पालने वाली भारतीय रेल कुछ दिनों में कंगाली का सरताज बनने जा रही है। विशेषज्ञों के अनुसार आने वाले दिनों में भारतीय रेल के कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़ने वाले हैं। हालात इस कदर बिगड़ सकते हैं कि रेल्वे अपने सेवानिवृत कर्मचारियों को पेंशन देने के लिए भी इसका उसका मुंह ताकने पर मजबूर हो जाएगी।

विशेषज्ञों का मानना है कि थकी हुई पटरियों और संसाधनों में पूर्व रेल मंत्री ममता बनर्जी ने मनमाने तरीके से नई रेल गाड़ियों की घोषणा तो कर दी किन्तु उसके लिए आवश्यक संसाधन की दिशा में कोई प्रयास नहीं किए। सत्ता पाने के लिए नेताओं द्वारा रेल का किराया तो नहीं बढ़ाया पर रेल गाड़ियों की संख्या में ममता ने अपने कार्यकाल में तीन सौ का इजाफा कर दिया। बिना इनपुट के ज्यादा आउटपुट होने से रक्षित धन की टंकी में छेद हो गया और अब ग्यारह हजार करोड़ में से महज एक करोड़ से भी कम राशि बच पाई है इसमें।

उधर रेल के वर्तमान निजाम दिनेश त्रिवेदी का कहना है कि वे यात्री किराया बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं। अगर यात्री किराया नहीं बढ़ाया गया तो निश्चित तौर पर भारतीय रेल के संचालन के लिए रेल्वे को सरकार से राहत पैकेज की दरकार होगी। दिनेश त्रिवेदी ने इस बात के संकेत दिए हैं कि वे इसके लिए प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और योजना आयोग के दरवाजे खटखटाएंगे।

एमपी को मिलेंगी सात लाख मसहरियां

एमपी को मिलेंगी सात लाख मसहरियां

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मनुष्यों की जान के दुश्मन बने छोटे से मच्छर जनित मलेरिया रोग के प्रति अब केंद्र सरकार कुछ जागरूक होती दिख रही है। मलेरिया से बचाव के लिए केंद्र सरकार द्वारा देश भर में मच्छरदानियां भेजने की योजना बनाई है। ये निशुल्क ही प्रदान की जाने वाली हैं। इस नई तकनीक से बनी मच्छरदानी के संपर्क में आते ही मच्छर की मौत हो जाएगी।

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा केंद्र द्वारा विशेष धागे से तैयार करवाई गई मच्छरदानियों की पहली खेप में लगभग दो करोड़ मच्छर दानियां बनवाई हैं। पहली खेप में मध्य प्रदेश को लगभग सात लाख मच्छरदानियां दी जा रही हैं।

गौरतलब है कि इसके पहले भी केंद्र सरकार द्वारा मलेरिया की रोकथाम के लिए मच्छरदानियां निशुल्क ही प्रदाय की जाती रहीं हैं। उन मच्छरदानियों में एक कीटनाशक का घोल मिलाया जाता था। इस कीटनाशक का असर समाप्त होते ही पुनः इन्हें घोल में डुबाना होता था। इसका दुष्प्रभाव मनुष्य पर भी पड़ता दिख रहा था। साथ ही साथ तीन चार बार घोल में डुबाने के बाद ये प्रयोग के लिए उपयुक्त नहीं रह जाती थीं।

उल्लेखनीय होगा कि केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय मलेरिया उन्नमूलन कार्यक्रम चलाया जाता था। इक्कीसवीं सदी में अब हर जिलों में जिला मलेरिया अधिकारी का कार्यालय भर रह गया है। मलेरिया विभाग के कर्मचारियों आधिकारियों को अन्य कामों में बेगार पर लगा दिया गया है। अब वह गुजरे जमाने की बात हो गई जब गांवों, कस्बों, शहरों में मलेरिया विभाग के अधिकारी डीडीटी का छिड़काव कर घरों के सामने गेरू से चोखाना बनाकर उसमें छिड़काव की तिथि अंकित किया करते थे। दो ढाई दशकों से केंद्र और राज्यों की सरकारों द्वारा मलेरिया के प्रति पूरी तरह से उदासीनता ही दिखाई जा रही है।