बुधवार, 3 जून 2009

चुनौतियों से भरा है 15वींं लोकसभा का सफर

(लिमटी खरे)

आजाद भारत में पंद्रहवीं लोकसभा का सत्र आरंभ हो चुका है। इस बार अनेक नए चेहरे संसदीय सौंध पहुंचकर देश की सबसे बड़ी पंचायत की कार्यवाही से रूबरू होंगे। अनेक मामलों में नई लोकसभा का सफर चुनौतिपूर्ण तो माना जा रहा है, किन्तु अवसरों के मार्ग भी प्रशस्त होते दिख रहे हैं।मनमोहन सरकार में इस बार कोई दागी मंत्री नहीं है।
इस बार अटल बिहारी बाजपेयी, जार्ज फर्नाडिस, सोमनाथ चटर्जी जैसी धुरंधर हस्तियों की आसंदी पर कोई नया चेहरा ही दिखाई पड़ने वाला है। कई सालों से पिछले दरवाजे (राज्यसभा) के रास्ते आने वाले विपक्षी नेताओं के इस बार चुन कर आने से लोकसभा में स्वस्थ्य बहस होने की उम्मीद है।सरकार में शामिल द्रमुक और तृणमूल कांग्रेस सरकार की नाक में काफी हद तक दम कर सकते हैं। गठबंधन में ताकतवर होकर शामिल हुए दोनों ही दलों के सुप्रीमों अपनी अपनी तुनक मिजाजी के लिए कुख्यात हैं। द्रमुक नेता और तमिलनाडू के पूर्व मुख्यमंत्री करूणानिधि ने सरकार के गठन के पहले ही अपनी नाराजगी दिखाकर कांग्रेस को बेकफुट पर आने मजबूर कर दिया था। करूणा ने अपने कुनबे को सरकार में न केवल शामिल कराया वरन् मनचाहे विभाग भी लिए। आने वाले समय में अगर अपनी जायज या नाजायज मांगों को लेकर द्रमुक ने कांग्रेस को आंखें दिखाई तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।सरकार का दूसरा प्रमुख घटक दल तृणमूल कांग्रेस है, जिसकी नेता ममता बनर्जी कब किस बात पर भड़क जाएं कहा नहीं जा सकता है। वैसे ममता की नजरें देश की राजनीति से इतर पश्चिम बंगाल के चुनावों पर हैं। जिसे देखकर कहा जा सकता है कि ममता शायद ही कांग्रेस से नाता तोड़ने की बात सोचें, किन्तु पश्चिम बंगाल में अगर दोनों मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ते हैं तो केंद्र सरकार मुश्किल में अवश्य आ सकती है।इस बार लोकसभा में सरकार मजबूर भी नहीं दिखाई पड़ रही है। प्रधानमंत्री आशवस्त दिखाई दे रहे हैं, कि ब्लेकमेलिंग कम से कम होगी। इन परिस्थितियों में सरकार और विपक्ष की भूमिका अत्यंत महात्वपूर्ण हो गई है। कांंग्रेसनीत सरकार को यह साबित करना होगा कि आम आदमी के हित सर्वोपरि हैं। जनता जनार्दन अब गोहत्या, राम जन्मभूमि, वेमनस्यता आदि से आगे आकर कुछ सकारात्मक देखने को उतावली है।एसा नहीं कि इस लोकसभा में चुनौतियां ही चुनौतियां हों। इस बार पहले की तुलना में अवसरों की भी भरमार नजर आ रही है। आम चुनावों में औंधे मुंह गिरी भाजपा और कमजोर राजग विपक्ष में बैठ रहा है। कमजोर विपक्ष से सरकार की हर राह आसान होती नजर आ रही है।माना जा रहा है कि इस बार विपक्ष आरंभ से ही सरकार को घेरने के स्थान पर सकारात्मक भूमिका में होगा। वैसे भी भाजपा के थिंक टेंक और अनुभवी नेता इस बार ज्यादा संख्या में चुनकर लोकसभा में पहुंचे हैं, जिससे सदन की गरिमा के अक्षुण रहने की उम्मीद की जा सकती है।इस बार विपक्षी की ओर से राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व के आलंबरदार लाल कृष्ण आड़वाणी के अलावा संघ पृष्ठभूमि के स्पष्टवक्ता मुरली मनाहेहर जोशी, समय के साथ चलने वाली सुषमा स्वराज, विद्या विषारद जसवंत सिंह, छात्र नेता से राजनीति में कूदे शरद यादव, राजनाथ सिंह, तर्कशास्त्र में निपुण यशवंत सिन्हा जैसे मुखर वक्ताओं से लोकसभा में सरकार को सामना करना पड़ेगा।इसके अलावा वामपंथी दलों के कमजोर दबाव के चलते सरकार उदारीकरण का मार्ग अपनाने में परेशानी महसूस नहीं करेगी। इस बार पेंशन, बीमा कानून संशोधन आदि जैसे महत्वपूर्ण विधेयकों के ध्वनिमत से पारित होने की उम्मीद की जा सकती है। विदेश नीति पर भी ज्यादा शोरशराबा होने की उम्मीद नहीं है। साथ ही सार्वजनिक उपक्रमों की विनिवेश की प्रक्रिया सुचारू रूप में आगे बढ सकती है।इस लोकसभा की ताकत और पूंजी के रूप में युवा और महिलाएं सामने हैं। इस बार सदन के संसदीय इतिहास में पहली बार 59 महिलाएं चुनकर पहुंची हैं, जो अपने आप में एक रिकार्ड है। इतना ही नहीं कांग्रेस ने मीरा कुमार के रूप में दलित महिला को स्पीकर पद पर बिठाकर एक नजीर पेश की है।पढ़े लिखे सुसंस्कृत युवाओं की संख्या इस बार ज्यादा नजर आ रही है। 40 से कम उम्र वाले सांसदों की संख्या 79 है, जो सुखद संकेत है कि आने वाला कल युवाओं के हाथों में जा रहा है। अनुभवहीन युवा कितना और कैसा अनुभव लेते हैं यह तो वक्त ही बताएगा पर इनके आने से संसद में बहस का स्तर सुधर सकेगा।इस सबके अलावा दागी प्रत्याशी इसके सबसे बड़े कलंक कहे जा सकते हैं इस बार डेढ़ सौ दागी प्रत्याशी चुनाव जीतकर संसद की दहलीज पर पहुंचे हैं। इनमें से 21 के खिलाफ संगीन मामले विचाराधीन है। परिवारवाद की साफ छाया भी इस संसद में दिख रही है। सोनिया, राहुल गांधी, मेनका, वरूण गांधी के अलावा शरद पंवार, सुप्रिया सुले, पी.ए.संगमा और अगाथा, मुलायम और अखिलेश यादव, अजीत सिंह ओर जयंत, करूणानिधि और अझागिरी की जोड़ी परिवारवाद को हवा दे रही है।



छग और मध्य प्रदेश से आरंभ हुई आड़वाणी की मुखालफत

संघ प्रमुख के दिल्ली प्रवास के बाद गर्माई अड़वाणी विरोधी फिजा

आडवाणी के नेतृत्व पर बीजेपी में विरोध शुरू

आडवाणी के कारण हारे : भाजपा सांसद

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के आधार स्तंभ माने जाने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन राव भागवत के दिल्ली प्रवास के उपरांत अब राजग के पीएम इन वेटिंग रहे लाल कृष्ण आड़वाणी का विरोध तेज हो गया है। पहले छत्तीसगढ़ से विरोध के मध्यम स्वर उठे थे, पर मध्य प्रदेश में खण्डेलवाल ने तो बिगुल फूंक ही दिया है।गौरतलब होगा कि अपने आप को सर्वमान्य नेता बनाने की चाह में पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आड़वाणी ने शतरंज की बिसात पर सभी घटकों को साधकर अपने आप को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का पीएम इन वेटिंग घोषित करवा लिया था। जिसकी बुरी तरह आलोचना हुई और अंतत: वे वेटिंग में ही रहे।पार्टी की शर्मनाक हार के बाद भले ही संघ और भाजपा अपने अपने स्तर पर हार के कारणों की समीक्षा कर रहे हों किन्तु पार्टी के अंदर ही अंदर खदबदाता असंतोष का लावा धीरे धीरे फटकर सतह पर आता दिखने लगा है। पहले जगदलपुर के सांसद बलीराम कश्यम ने आड़वाणी पर निशाना साधा तो उसके बाद मध्य प्रदेश से राज्यसभा सदस्य प्यारे लाल खण्डेलवाल ने अब पार्टी अध्यक्ष को शिकायती पत्र लिख है, जिसमें हार का ठीकरा आड़वाणी के सर पर फोड़ा गया है।छत्तीसगढ के बस्तर संसदीय क्षेत्र से लगातार चौथी बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले भारतीय जनता पार्टी सांसद बलिराम कश्यप ने कहा था कि चुनाव में श्री लाल—ष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करना पार्टी की सबसे बडी गलती थी।गौरतलब होगा कि कश्यप ने यहां जगदलपुर में मतगणनास्थल के बाहर पत्रकारों के सवालों के जवाब में कहा था कि देश की जनता ने श्री आडवाणी को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार नहÈ किया, इसी वजह से पार्टी की पराजय हुई।अब मध्य प्रदेश से यह बिगुल फुंक चुका है पार्टी के वरिष्ठ नेता प्यारेलाल खण्डेलवाल ने खतोखिताब के माध्यम से अपनी बात कही है। मध्य प्रदेश के वरिष्ठ नेता खंडेलवाल ने इस बात पर ऐतराज जताया कि बीजेपी संसदीय दल की बैठक बुलाए बगैर ही पार्टी ने आडवाणी को निर्विरोध उम्मीदवार घोषित करने का फैसला ले लिया। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, खंडेलवाल ने कहा है कि पार्टी को पूरी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए था। संसदीय दल की बैठक बुलानी चाहिए थी।सूत्र बताते हैं कि यह आडवाणी के लिए मुसीबतों की शुरुआत हो सकती है। इस बारे में वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी और खंडेलवाल के बीच बैठक हो चुकी है। जोशी को आडवाणी के विरोधी खेमे का नेता माना जाता है। खंडेलवाल के घर के बाहर मौजूद पत्रकारों ने जब जोशी से इस मुलाकात के बारे में पूछा तो उन्होंने परोक्ष रूप से अपनी बात कहते हुए कहा, ``आप क्या सोचते हैं मैं यहां कोई साजिश रचने आया हूं?``



भाजपा बोली - ``वी हेव वन मोर गांधी``!

कांग्रेस में दो, भाजपा में तीन गांधी

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। गांधी का उपनाम कांग्रेस की बपौती नहीं, यह बात भाजपा ने सैकड़ों बार कही होगी, किन्तु इस बार चुनकर आए सांसदों के मामले में भाजपा यह कहने की स्थिति में आ गई है कि अगर कांग्रेस के पास नेहरू गांधी परिवार के दो सदस्य हैं तो भाजपा के पास उसके अलावा एक और गांधी है।कांग्रेस के पास श्रीमति सोनिया गांधी और राहुल गांधी तो भाजपा के पास इसी परिवार की श्रीमति मेनका गांधी और वरूण गांधी हैं। यह सुखद संयोग कहा जाएगा कि महाराष्ट्र के अहमदनगर संसदीय क्षेत्र से भाजपा के मनसुख लाल गांधी भी शामिल हैं। मनसुखलाल तेरहवीं लोकसभा में विजयी हुए थे एवं बाजपेयी सरकार में मंत्री भी बने थे।वैसे भी गुलामी से आजादी के इतिहास में भारतीय राजनीति में गांधी का नाम सर्वाेपरि रहा है। वैसे गांधी का नाम आरंभ से ही कांग्रेस की संपत्ति रहा है। यही कारण है कि इस उपनाम के साथ जुड़े लोगों को कांग्रेस में बहुत ही मान प्रतिष्ठा के साथ देखा जाता है।