शनिवार, 29 अगस्त 2009

ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

भाजपा की अंदरूनी मारकाट से संघ भी आया आजिज

भारतीय जनता पार्टी और अनुशासन एक सिक्के के दो पहलू हुआ करते थे, किन्तु अब यह इतिहास की बात हो गई है। भाजपा में अनुशासनहीनता के इतने उदहारण सामने आ चुके हैं कि अब लगने लगा है कि देश की सबसे गैर अनुशासित पार्टी में शुमार हो चुका है भाजपा का। कल तक भाजपा का मार्गदर्शन करने वाला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी अब भाजपा को उसके ही हाल पर छोडने का मानस बनाने लगा है। हाल ही में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने इस मसले पर संघ की लाईन साफ कर दी है। बकौल भागवत अब संघ द्वारा भाजपा के मांगने पर ही उसे मशविरा दिया जाएगा। भागवत ने कहा कि भाजपा के अंदर जो कुछ भी हो रहा है, वह किसी भी तरह से अच्छा नहीं माना जा सकता है। संघ प्रमुख ने कहा कि अब संघ द्वारा भाजपा के मांगने पर ही सलाह दी जाएगी। सच ही है, भाजपा के अंदर मची घमासान में पडकर संघ भला क्यों अपनी मिट्टी खराब करे।

कैसे रहेंगे स्टेटस सिंबाल के बिना

राजनेता और ब्यूरोक्रेट्स के लिए सुरक्षा कर्मियों का काफिला उनके स्टेटस सिंबाल से कम नहीं है। कांग्रेस नीत संप्रग सरकार ने इस तरह के नेताओं और अधिकारियों की सुरक्षा कम कर दी है। हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री पी.चिदंबरम ने एक आदेश जारी कर 30 अति विशिष्ट व्यक्तियों की एक्स स्तर की सुरक्षा वापिस ले ली है। साथ ही मायावती, लालू प्रसाद यादव, मुरली मनोहर जोशी, मुलायम सिंह यादव, राम विलास पासवान, शिवराज पाटिल, जगमोहन जैसे जन जन के नेताओं की एनएसजी भी वापस लेने की सिफारिश की गई है। सवाल यह उठता है कि जन जन के नेताओं को अपनी ही जनता से खतरा कैसार्षोर्षो और बिना स्टेटस सिंबाल के ये राजनेता सांस ले सकेंगे इस बात में भी संशय ही है।

मोदी के आपरेशन ``सी एच`` को झटका

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा के साथ ही साथ में काफी गहरी पैठ रखते हैं। मोदी नपे तुले कदमों से पार्टी सुप्रीमो के सिंहासन की ओर बढ़ रहे थे। चर्चा है कि मोदी को उम्मीद थी कि उनका अघोषित एवं परोक्ष तौर पर चलने वाला आपरेशन ``सीएच`` (आपरेशन भाजपा के चेयरमेन की कुर्सी पाना) इस साल के दिसंबर तक पूरा हो जाएगा। सूत्रों के अनुसार मोदी मान कर चल रहे थे कि वषाZंत तक वे भाजपा के अध्यक्ष की कुर्सी पर विराजमान हो जाएंगे। उनके प्रमुख प्रतिद्वंदी के तौर पर उभरे बाला साहेब आप्टे और सुषमा स्वराज इन दिनों चर्चाओं के बाहर हैं। मोदी की किस्मत का सितारा उतना बुलंद नहीं दिख रहा है। भाजपा के अंदर मचे घमासान ने उनके इस आपरेशन को झटका दे दिया है। लाल कृष्ण आड़वाणी और अरूण जेतली इस मामले में मोदी के साथ हैं। सीएम से सीएच बनने की मोदी की चाह लगता है इतनी जल्दी पूरी होने वाली नहीं है।

अपने ही जाल में उलझे कमल नाथ

अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल की महात्वाकांक्षी परियोजना स्विर्णम चतुभुZज के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे में मध्य प्रदेश के सिवनी जिले से होकर गुजरने वाले फोरलेन मार्ग को लेकर सियासत पूरी तरह गर्मा चुकी है। आरोप प्रत्यारोपों के दौर के बीच 21 अगस्त को सिवनी में एतिहासिक बंद के दरम्यान केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के गली गली मे पुतले जलाए। चूंकि कमल नाथ महाकोशल के सर्वमान्य नेता माने जाते हैं अत: महाकौशल के ही सिवनी जिले में कमल नाथ का इस कदर विरोध होने से उन्हें पीडा होना लाजिमी है। इसके बाद एक के बाद एक घटनाक्रमों को अंजाम दिया गया। 27 अगस्त को दिल्ली में जारी कमल नाथ के बयान ने भ्रम और बढा दिया है। बकौल कमल नाथ सारा भ्रम सर्वोच्च न्यायालय में दायर एक जनहित याचिका के निर्णय के चलते पैदा हुआ है। सिवनी वासी अब यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि आखिर कौन सी जनहित याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल है और इस पर कब और कौन सा निर्णय दिया गया है। वस्तुत: इस मामले में अब तक न तो कोई याचिका ही प्रकाश में आई है और न ही निर्णय

हुड्डा ने प्रशस्त किए अक्टूबर में चुनाव के मार्ग

हरियाणा विधानसभा को भंग करने की मुख्यमंत्री भूपेदं्र सिंह हुड्डा की सिफारिश के बाद अब लगने लगा है कि अक्टूबर के पहले पखवाड़े तक हरियाणा, महाराष्ट्र और अरूणाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव करवा लिए जाएंगे। सितम्बर से अक्टूबर के बीच त्योहारों की सीरिज के चलते माना जा रहा है कि अक्टूबर मध्य तक तीनों राज्यों में चुनाव करवा लिए जाएंगे। सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस भी इसी फिराक में दिख रही है कि इन तीनों राज्यों मे ंवह अपना वर्चस्व कायम रख सके। वैसे भी तेजड़ियों (व्यापार एवं मंहगाई में तेजी की संभावना व्यक्त करने वाले) के अनुसार दीपावली के बाद मंहगाई का ग्राफ तेजी से उपर उठने की संभावना है। पहले से ही कमर तोड़ मंहगाई के चलते टूटी जनता की कमर और अधिक टूटने की उम्मीद है। इससे पहले ही कांग्रेस चाहती है कि तीन राज्यों के चुनावों को अंजाम दे दिया जाए।

सकते में हैं चापलूस

झारखण्ड मे ंमुख्यमंत्री परिवर्तन के बाद नए निजाम के तेवर देखकर चापलूस बहुत असमंजस में हैं, कल तक सीएम के दाएं बाएं रहकर उनके कान भरकर अपना उल्लू सीधा करने वालों को अब नए निजाम के दरबार में जगह नहीं मिल पा रही है। झारखण्ड के ब्यूरोक्रेट्स अपने सीएम के सामने पडकर उनसे डायरेक्ट आई कान्टेक्ट बनाने के प्रयास करते नजर आ रहे हैं। नए मुख्यमंत्री ने इन अधिकारियों को जमकर लताड़ना आरंभ कर दिया है। अधिकारियों को सीएम ने ताकीद कर दिया है कि वे उनके अधीनस्थों से मिलकर ही सारे कामों को अंजाम दें। इसके बाद भी अगर को उषा (उत्सुक्ता की शांति) रह जाए, तब ही वे सीएम के दरबार में हाजिरी दें। बार बार चेहरा दिखाने से कुछ भी हासिल नही होने वाला है। सीएम कागजों के बजाए वास्तव में काम को अंजाम देने की मंशा रख रहे हैं। अब बेचारे कामचोर और चापलूस अधिकारी सकते में हैं, कि वे आखिर दरबार में जगह बनाएं तो कैसे।

मिस्टर क्लीन बनने की तैयारी में बसपा

ताज कारीडोर, चंदा और मूर्तियों के विवाद में फंसी बहुजन समाज पार्टी अब अपनी इमेज सुधारने की कवायद करने वाली है। बताते हैं कि बसपा सुप्रीमो मायावती को उनके शोहदों ने मशविरा दिया है कि सूबे में बसपा की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, अत: अब मायावती ने इमेज सुधारने की पहल करने का फैसला लिया है। आने वाले साल में बसपा का चेहरा अगर बदला बदला दिखे तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। बताते हैं कि बसपा ने एक साल का एजेंडा बना लिया है, जिसमें कानून व्यवस्था के साथ ही साथ विकास की योजनाओं और जनहित को सर्वोपरि रखने का मूल मंत्र बनाया गया है। लोकसभा के नतीजों से बसपा में भूचाल आ गया है, और बसपा के नीति निर्धारकों ने अपना नया एजेंडा बसपा सुप्रीमो के सामने रख दिया है। बसपा सुप्रीमो ने संबंधित महकमों को पाबंद कर दिया है कि निर्माणाधीन स्मारकों का काम शीघ्र ही पूरा कर लिया जाए एवं इस कार्यकाल में और स्मारकों की स्थापना न की जाए। देखना है कि बसपा के नीति निर्धारकों की यह पहल कितना रंग लाती है।

मराठा क्षत्रप ने बढाई दिग्गी राजा की मुसीबत

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो शरद पंवार ने कांग्रेस की नींद में खलल डाल दिया है। मराठा क्षत्रप शरद पवार ने साफ तौर पर कह दिया है कि उसे महाराष्ट्र सूबे की 288 में से 122 सीटें चाहिए। इससे पूर्व कांग्रेस के सबसे शक्तिशाली महासचिव दिग्विजय सिंह ने कह दिया था कि जब विदेशी मूल का मुद्दा ही नहीं रहा तो राकांपा को अब कांग्रेस में मिल जाना चाहिए। सूत्र बताते हैं कि राजा दिग्विजय सिंह का यह मशविरा मराठा क्षत्रप को रास नहीं आया। मराठा क्षत्रप यह कतई बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं कि उनके सूबे में कोई भी किसी तरह का हस्ताक्षेप करे, वह भी सूबे में उनकी पार्टी के कांग्रेस में विलय की सलाह देकर। मराठा क्षत्रप काफी तेश में दिखाई पड़ रहे हैं। अर्जुन सिंह के बाद कांग्रे्रस की राजनीति के अघोषित चाणक्य माने जाने वाले दिग्विजय िंसंह की चालों को समझकर मराठा क्षत्रप शरद पंवार ने अपना दांव खेल दिया है। गेंद अब कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के पाले में है, देखना है वे इस मसले का क्या निकाल निकालतीं हैं।

पुच्छल तारा

फोरलेन सिवनी से होकर जाएगी अथवा नहीं। इसका जवाब अभी भी एक पेटी में बंद है, यह पेटी कहां है कोई नहीं जानता अगर पेटी मिल भी जाए तो इसकी चाबी कहां है इसे खोजना बहुत मुश्किल है। यह पोराणिक जादुई कथा नहीं वरन 21वीं सदी में सच्ची कथा है। जितने मुंह उतनी बातों की तर्ज पर चल रहा है सारा मामला। ठोस आधार अब तक मिला है तो वह है पूर्व जिला कलेक्टर पी.नरहरि का कूटनीति भरा एक पत्र जिसमें सिवनी से खवासा की ओर के मार्ग पर वृक्षों की कटाई पर रोक लगाई गई थी। कहा तो यहां तक जा रहा है कि लखनादौन से सिवनी मार्ग की निर्माण एजेंसी के पेटी कांटेक्टर मीनाक्षी ने नरहरि को साध लिया था, किन्तु इसके बाद की निर्माण एजेंसी गुजराती मूल के सद्भाव द्वारा एसा कोई जतन नहीं किया जा सका। जिलाधिकारी के पास असीमित अधिकार होते हैं, सो ये एजेंसी हाथ पर हाथ धरे बैठे है। अगर यही एजेंसी जिलाधिकारी के उक्त आदेश को उच्च न्यायालय या आयुक्त राजस्व जबलपुर के सामने चुनौति दे दे तो मामला कुछ सेटिल होने की उम्मीद है। इस मामले में जिले की जनता उनका साथ देगी ही साथ ही साथ राजनेताओं द्वारा निर्माण एजेंसी का साथ दिया जाना मजबूरी होगी।

मंगलवार, 25 अगस्त 2009

कांग्रेस द्वारा भाजपा का सरेआम दोहन

0 केंद्र सरकार का उपक्रम दे रहा राज्य सरकार को अलसेट

0 समूचे प्रदेश में बांट दिए करोड़ों के चेक

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। केंद्र सरकार के एक उपक्रम द्वारा मध्य प्रदेश में संचालिए केंद्र सरकारक की महात्वाकांक्षी परियोजना प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना में जमकर पलीता लगाया जा रहा है। इस कंपनी द्वारा सौ फीसदी काम को ही सबलेट कर पेटी कांटेक्टर्स को प्रदाय कर दिया गया है।प्राप्त जानकारी के अनुसार केंद्रीय संचार मंत्रालय की एक सहयोगी कंपनी टेलीकम्यूनिकेशन कंसलटेंट इं लिमिटेड (टीसीआईएल) द्वारा मध्य प्रदेश में पीएमजीएसवाय के तहत लगभग आधे प्रदेश में अपना साम्राज्य कायम कर लिया है। बताया जाता है कि उक्त कंपनी द्वारा लगभग 5 जिलों में सड़क निर्माण का काम किया जा रहा है।राजधानी दिल्ली स्थित ग्रेटर कैलाश पार्ट वन के टीसीआईएल भवन स्थित इस कंपनी के मुख्यालय में व्याप्त चर्चाओं के अनुसार इस सरकारी उपक्रम द्वारा मध्य प्रदेश में 2005 के उपरांत करोड़ों रूपयों के सड़क निर्माण के कार्यों के ठेके प्राप्त किए हैं।टीसीआईएल के सूत्रों का कहना है कि अचानक अस्तित्व में आई इस कंपनी को प्री क्वालिफिकेशन सार्टिफिकेट (पीक्यू) कैसे हासिल हो गया। सूत्रों के अनुसार चूंकि यह सरकार एक उपक्रम है अत: इस बारे में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा ज्यादा खुर्दबीनी नहीं की गई है।सूत्रों ने यह भी बताया कि उक्त कंपनी द्वारा अर्जित किए गए सड़क निर्माण के ठेकों को सबलेट कर पेटी कांटेक्टर्स को दे दिया गया है। बताया जाता है कि कंपनी को दिया गया सौ फीसदी काम ही सबलेट पर निर्मित हो रहा है। सूत्रों ने बताया कि नियमानुसार 25 फीसदी से अधिक का काम सबलेट नहीं किया जा सकता है।बताया जाता है कि उक्त सरकारी उपक्रम द्वारा पूर्व में सड़क निर्माण जैसा कोई काम नहीं किया गया है, फिर इसे किस आधार पर इतनी व्यापक मात्रा में सड़कों के ठेके आंख मूंदकर प्रदाय कर दिए गए हैं। चर्चाएं तो यहां तक है कि इस कंपनी की पीक्यू भी फर्जी हो सकती है।मध्य प्रदेश में चल रही बयार के अनुसार उक्त कंपनी द्वारा जिन पेटी कांटेक्टर्स के माध्यम से सड़क निर्माण का काम कराया जा रहा है, वह भी घटिया गुवणत्ता का है। कंपनी के पास योग्य कंसलटेंट, अनुभवी तकनीकि जानकारी वाले इंजीनियर्स आदि तंत्र के अभाव में कंपनी द्वारा पेटी कांटेक्टर्स के कार्य की गुणवत्ता का आंकलन नहीं किया जा पा रहा है।इतना ही नहीं मध्य प्रदेश सरकार का संबंधित अमला भी इस घटिया गुणवत्ता वाले काम को आंख मूंदकर संपादित होने दे रहा है।

शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

जसवंत और आड़वाणी की जिन्ना भक्ति में फर्क

जसवंत और आड़वाणी की जिन्ना भक्ति में फर्क

(लिमटी खरे)

एक असे से अनुशासित काडर बेस्ड पार्टी होने का दंभ भरने वाली भाजपा की सांसे अनुशासन के मामले में ही उखड़ने लगी हैं। भाजपा ने कभी अपने हनुमान रहे जसवंत सिंह को रावण बनाकर पार्टी से बाहर का रास्ता अवश्य दिखाकर औरों को अनुशसित रहने का संदेश अवश्य दे दिया हो किन्तु पार्टी में अब एक अंतहीन बहस चल पड़ी है।वैसे जिन्ना का महिमा मण्डन सबसे अधिक संघ को नागवार गुजरता है। इसके साथ ही साथ शिवसेना ने भी उग्र तेवर अिख्तायार कर रखे हैं। इसके पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी ने भी जिन्ना की मजार पर जाकर उनकी तारीफों में कमोबेश इसी तरह के कशीदे गढ़े थे।आज यह समझना बड़ा ही मुश्किल लग रहा है कि पाकिस्तान के जिस कायदे आजम जिन्ना के बारे में लाल कृष्ण आड़वाणी के बयानों को पार्टी ने कुनैन की कड़वी गोली समझकर लील लिया था, आज वह अपने पुराने विश्वस्त जसवंत सिंह को उसी गिल्त के लिए बाहर का रास्ता कैसे दिखा रही है, वह भी जसवंत का पक्ष सुने बिना।वैसे यह बात भी समझ से परे ही है कि कुशाग्र बुद्धि के धनी राजनेता जसवंत सिंह को आखिर एसी कौन सी जरूरत आ पड़ी थी कि वे जिन्ना को इस वक्त महिमा मण्डित करना चाह रहे थे। जसवंत ने जिन्ना को हीरो बनाकर सरदार वल्लभ भाई पटेल को जिस तरह विलेन बनाने का प्रयास किया है, वह संघ सहित भाजपा को नागवार गुजरा है।आम चुनावों में भाजपा के शर्मनाक प्रदर्शन के उपरांत जसवंत सिंह के तेवर काफी तल्ख ही नजर आ रहे थे। उनके निशाने पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के चुनिंदा नेता थे। जसवंत सिंह ने सीधे तोर पर यह आरोप लगाकर सभी को चौंका दिया था कि भाजपा की हार के जिम्मेदार लोगों को पार्टी द्वारा अहम पद देकर उपकृत क्यों किया जा रहा है। जसवंत भी नहीं जानते होंगे कि अनजाने में ही सही वे पार्टी प्रमुख को एक एसा मुद्दा थमा देंगे जो उनके लिए पार्टी में रहना दुश्वार कर देगा।हमारी राय में भारतीय जनता पार्टी देश की प्रमुख राजनैतिक पार्टी है। इस पार्टी में अनुशासन अवश्य तार तार होने लगा है, किन्तु भाजपा से अगर जसवंत सिंह को सुनवाई का मौका दिए बिना ही बाहर कर दिया जाता है तो यह प्रजातंत्र नहीं बल्कि ``हिटलरशाही`` की श्रेणी में आएगा।इस देश में सभी को अपने विचार व्यक्त करने का है। उसके विचारों से सहमत या असहमत होने का हक औरों को है। मगर जिन्ना का नाम आते ही भाजपा के प्याले में आने वाला इस तरह का तूफान समझ से परे ही है। वैसे भाजपा को चाहिए था कि जसवंत सिंह के विचारों पर पार्टी मंच में बहस कराई जाती, फिर जसवंत सिंह को सुना जाता और तब फैसला लिया जाता।इस तरह आनन फानन बाहर का रास्ता दिखा देने से भाजपा के खिलाफ यह संदेश भी जाएगा कि अगर भाजपा सत्ता में आई और देशवासियों ने पार्टी लाईन से इतर कुछ कदम उठाया तो उनके साथ भी कुछ अहित घट सकता है। भाजपा के अंदर अनुशासन का डंडा चलाना न चलाना पार्टी का अपना अंदरूनी मामला है, किन्तु हमारी समझ में पार्टी के अंदर कम से कम प्रजातंत्र तो होना ही चाहिए।अगर भाजपा ने सरदार पटेल के बारे में अनर्गल लिखने पर जसवंत सिंह का बखाZस्त किया है, तो भाजपा के शीर्ष नेताओं को अपनी गिरेबां में झांककर अवश्य ही देखना चाहिए कि आज कौन सा नेता सरदार पटेल के मार्ग का अनुसरण करता नजर आ रहा है। क्या आज भाजपा के शीर्ष नेता अपने निहित स्वाथोंZ को पार्टी लाईन से पहले प्राथमिकता में स्थान नहीं दे रहे हैंर्षोर्षो यहां राजेश खन्ना अभिनीत रोटी फिल्म के गाने का जिकर करना लाजिमी होगा - ``पहला पत्थर वो मारे जिसने पाप न किया हो, जो पापी न हो।`` क्या भाजपा का नेतृत्व इस बारे में सोचने की जहमत उठाएगार्षोर्षोवैसे भाजपा के नेतृत्व के इस रवैए के कारण भाजपा ने अपने कई धुरंधर साथियों को खोया है। पार्टी के थिंक टेंक माने जाने वाले गोविंदाचार्य ने सितंबर 2000 में पार्टी को अलविदा कह दिया था। भाजपा के शीर्ष नेताओं से वैचारिक तालमेल न बन पाने के कारण गोविंदाचार्य को अलग राह अपनानी पड़ी जो भाजपा को बहुत भारी पड़ा।उत्तर प्रदेश में भाजपा की रीढ़ माने जाने वाले कल्याण सिंह को भी नेतृत्व की खिलाफत के कारण 1999 में पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था, फिर लोकसभा चुनावों की गरज से जनवरी 2004 में कल्याण की घर वापसी अवश्य हुई पर चंद सालों के उपरांत जनवरी 2009 में उन्होंने पार्टी को आखिरी सलाम ठोंकर नई राह तलाशना आरंभ कर दिया।गोविंदाचार्य की करीबी रहीं भाजपा की फायर ब्रांड नेत्री उमाश्री भारती की बदोलत दिसंबर 2003 में दस सालों के बाद मध्य प्रदेश की सत्ता हासिल हुई थी। पार्टी के नेताओं के रवैए के चलते नवंबर 2004 में उन्हें भी पार्टी ने बाय बाय कह दिया। उमाश्री ने पार्टी से निकलते ही अटल आड़वाणी को ही कटघरे में खड़ा कर दिया था।दिल्ली के धुरंधर नेता मदन लाल खुराना का जाना भाजपा के लिए दिल्ली प्रदेश में सफाए का कारण बना। अगस्त 2005 में पार्टी के नेताओं की मुगलई के चलते वे आक्रमक हुए और उन्हें पार्टी से बाहर होना पड़ा। खुराना के जाने के बाद दिल्ली प्रदेश में पार्टी मानो टूट सी गई।अतिमहात्वाकांक्षी उमरदराज भाजपा नेता लाल कृष्ण आड़वाणी और पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह की जिन्ना भक्ति में फर्क को ढूंढना होगा। दोनों ही नेताओं ने कमोबेश एक सा कदम उठाया है, फिर जसवंत को इतना बड़ा दण्ड और आड़वाणी को माफी देकर भाजपा ने अपना दोहरा चरित्र उजागर कर ही दिया है।भाजपा की प्रमुख प्रतिद्वंदी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा युवाओं को आगे लाकर 21वीं सदी में युवाओं को बागडोर सौंपने की कवायद की जा रही है, और भाजपा को वयोवृद्ध नेता एल.के.आड़वाणी का विकल्प ही नहीं सूझ रहा है, तभी तो भाजपा ने दुबारा आड़वाणी को विपक्ष का नेता पद थमा दिया।भाजपा में मची गलाकाट स्पर्धा के चलते अब शक ही है कि आने वाले दिनों में भारतीय जनता पार्टी ``सशक्त भाजपा, सशक्त भारत`` का गगनभेदी नारा लगा सके। विचारधारा में धड़ों में बंटी दिखाई देने वाली भाजपा के लिए आने वाला समय काफी हद तक कष्टकारी माना जा सकता है।

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0 बरेला पावर प्लांट

सामाजिक जिम्मेदारी के लिए महज .034 प्रतिशत

0 कम से कम दो फीसदी प्रतिवर्ष का प्रावधान करना था कंपनी को

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश मे जबलपुर के समीप डलने वाले झाबुआ पावर लिमिटेड के लगभग तीन हजार करोड़ रूपयों की लागत वाले पावर प्लांट द्वारा घंसौर क्षेत्र में सामाजिक जिम्मेदारी के लिए चार सालों में महज एक करोड़ रूपयों का प्रवधान किया गया है।उर्जा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि निजी क्षेत्रों द्वारा संचालिए किए जाने वाले पावर प्लांटस को अपनी कुल लागत का कम से कम दो फीसदी प्रतिवर्ष उत्पादन आरंभ होने तक व्यय करना होता है। यह प्रतिशत उत्पादन आरंभ होने के साथ ही बढ़कर तीन से पांच फीसदी तक पहुंच जाता है।गौरतलब होगा कि जबलपुर संभाग के सिवनी जिले की घंसौर तहसील में मशहूर थापर ग्रुप की कंपनी झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा 600 मेगावाट का एक पावर प्लांट डाला जा रहा है, जिसकी लागत 2900 करोड़ आंकी गई है। कंपनी ने पावर प्लांट के लिए घंसौर के ग्राम बरेला में लगभग 600 एकड़ जमीन को 45 करोड़ रूपए की लागत से क्रय कर लिया है।कंपनी के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि जिन कास्तकारों की जमीन ली गई है, उस क्षेत्र जनसंख्या लगभग 76 हजार 797 है, एवं सभी ग्रामीणों का प्रमुख व्यवसाय कृषि ही है। इस पावर प्लांट के डलने से इसकी लगभग एक हजार फिट उंची चिमनी से उड़ने वाली राख (फ्लाई एश) से आसपास के खेतों में प्रभाव अवश्य ही पड़ेगा।वैसे भी मध्य प्रदेश पर्यावरण निवारण मण्डल के प्रतिवेदन में स्पष्ट कहा गया है कि कोयला जलित बायलर ही वायू प्रदूषण का मुख्य कारक होगा। सूत्रों की माने तो इस संयंत्र से उतपन्न होने वाला ध्वनि प्रदूषण इतना भयावह होगा कि पर्यावरण निवारण मण्डल द्वारा कर्मचारियों को इयर प्लग और इयर मफलर का उपयोग करने की सलाह भी दी गई है।उर्जा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि अगर यह संयंत्र 2900 करोड़ की लागत का डाला जा रहा है तो इसमें सोशल एक्टीविटीज के लिए दो फीसदी के हिसाब से राशि का प्रावधान किया जाना था। सूत्रों ने यह भी बताया कि कंपनी द्वारा स्थनीय लोगों की एक कमेटी बनाकर स्थानीय जरूरत के हिसाब से इसे खर्च किया जाता है।सूत्रों की माने तो यह राशि प्रोजेक्ट स्टेज तक के लिए ही है। प्रोडक्शन आरंभ होने पर इसे बढ़ाकर तीन से पांच फीसदी किया जाता है, ताकि पर्यावरण एवं अन्य घटकों के प्रभावों को स्थानीय स्तर पर कम किया जा सके। माना जा रहा है कि शनिवार 22 अगस्त को घंसौर में अतिरिक्त कलेक्टर, सिवनी श्रीमति अलका श्रीवास्तव की उपस्थिति में होने वाली जनसुनवाई में इन तथ्यों पर विचार अवश्य किया जाएगा।

गुरुवार, 20 अगस्त 2009

20 अगस्त 2009

हांफती सुरक्षा व्यवस्था का नतीजा था शाहरूख कांड

(लिमटी खरे)

अमेरिका में एयर पोर्ट पर जांच के नाम पर वालीवुड के किंग खान को रोकने का मामला भारतीय मीडिया ने जबर्दस्त तरीके से उछाला है। आखिर एसा हुआ क्या है, जिसके पीछे इतनी हायतौबा मचाई जा रही है। अमेरिकी अधिकारी वहां के कानून का पालन ही तो सुनिश्चित कर रहे थे।पूर्व महामहिम राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम हों या तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाडिस सभी के साथ अमेरिकी अधिकारियों ने एक सा सलूक किया। दरअसल अमेरिकी कानून किसी को भी इससे छूट प्रदान नहीं करता है, साथ ही साथ सितम्बर 2001 की घटना के बाद वहां सुरक्षा प्रक्रिया और भी चाक चौबंद हो गई है। इससे पहले हुई घटनाएं बहुत कम ही प्रकाश में आ पाईं हैं, क्योंकि जिनके साथ यह घटा उन्होंने समझ लिया था कि यह अमेरिका की सुरक्षा प्रणाली का एक हिस्सा है।इससे उलट भारत में एक के बाद एक आतंकी हमलों ने भी देश की सरकार की तंद्रा नहीं तोड़ी है। हमारे देश की हांफती सुरक्षा व्यवस्था के बीच चाहे जो बेरोकटोक आवागमन करने को स्वतंत्र है। रही बात नियम कायदों के पालन को सुनिश्चित करने की तो देशप्रेम का जज्बा अब कम ही देखने को मिलता है। चंद सिक्कों की खनक के आगे हमारे देश में कानून तार तार होता भी दिख जाता है।दरअसल होना यह चाहिए कि हिन्दुस्तान में भी आने वाले विदेशियों की जांच उसी कड़ाई के साथ की जानी चाहिए जिस सख्ती के साथ यूरोप के देशों में होती है। सब बातों से उपर हमें हमारी आंतरिक सुरक्षा को ध्यान में रखकर ठोस कार्ययोजना बनाना चाहिए एवं इसका पालन सुनिश्चित करने के लिए ईमानदार अफसरों को पाबंद करना अत्यावश्यक है।पता नहीं क्यों भारत सरकार सदा से ही दुनिया के चौधरी अमेरिका के सामने अपने आप को हीन भावना से ग्रसित पाती है। अमेरिका का कोई डेलीगेट अगर भारत यात्रा पर होता है, तो उसके लिए सारे नियम कायदे ताक पर रख दिए जाते हैं। हमें अभी भी याद है कि जब बिल िक्लंटन भारत यात्रा पर आए थे, तब उनके सुरक्षा काफिले में तैनात कुत्तों को पांच सितारा ली मेरीडियन होटल में रूकवाया गया था।इतना ही नहीं सत्ता के शीर्ष केंद्र माने जाने वाले साउथ और नार्थ ब्लाक में भी अमेरिकी खुफिया एजेंसी के अफसरान बेरोकटोक इस तरह घूमा करते थे, जैसे बाग में सैर कर रहे हों। मजे की बात तो यह है कि जब अंकल सैम (बिल िक्लंटन) ने राजघाट पर जाकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को नमन करना चाहा तब समूचा राजघाट खाली करवाकर अमेरिकी एजेंसी के हवाले कर दिया गया था, जहां उनके खोजी कुत्ते झींगा मस्ती करते नजर आए थे।शाहरूख खान शायद भूल गए कि वे हिन्दुस्तान के रूपहले पर्दे के अदाकार हैं। हिन्दुस्तान की जनता उनकी अदाकारी के चलते उन्हें सर माथे पर बिठाती है, पर दुनिया के चौधरी अमेरिका को इससे क्या लेना देना। वहां का सिस्टम तो वही करेगा जिसके लिए उसे पाबंद किया गया है।एशिया और अरब देश के मुस्लिमों के साथ अमेरिका में इस तरह का सलूक आम बात है। क्या इससे पहले छपने वाली खबरोंं की बिनहा पर शाहरूख खान ने कभी आवाज बुलंद करने की कोशिश की। यहां बुंदेलखण्ड की एक कहावत का जिक्र लाजिमी होगा - ``जोन की नईयां फटी बिमाई, उ का जाने पीर पराई।`` अर्थात जिसके पैर फटे न हों वह दूसरे की पीड़ा क्या खाक समझेगा।आज शाहरूख के खुद के साथ एसा हुआ है, तब उन्हें लगा कि यह सब उनके नाम के साथ ``खान`` सरनेम जुड़े होने के चलते हुए। हो सकता है शाहरूख की नाराजगी का कारण और भी कुछ हो। एक एक सेकंड और मिनिट को रूपयों मेंं तोलने वाले शाहरूख खान को अगर घंटो बिना काम के ही बिठा लिया जाए तो उनकी त्योरियां चढ़ना स्वाभाविक ही है।हमारा मानना है कि भारत में रसूखदार लोगों को आम आदमी के लिए बने नियम कायदों का पालन करने की आदत नहीं होती है, यही कारण है कि वे विदेशों में भी इस सुविधा का उपभोग करना चाहते हैं, जो कि असंभव ही है। यहां ब्रिटेन का एक प्रसंग लाजिमी प्रतीत हो रहा है। ब्रितानी प्रधानमंत्री टानी ब्लेयर के पुत्र को निर्धारित से कम उम्र में शराब पीने के आरोप में पकड़ा गया। वहां के कानून के अनुसार अगर कोई कम उम्र का बच्चा शराब का सेवन करता है तो उसके माता पिता को थाने आकर दरोगा की चेतावनी सुननी होती है। टानी ब्लेयर ने उस कानून का पालन किया और थाने जाकर दरोगा की फटकार सुनी। हमारे यहां आप किसी सांसद विधयक तो क्या पार्षद के बच्चे को बंद करके तो देखें!वैसे इस मामले को तूल देकर मुद्दा बनाने के बजाए अगर इससे सबक लेकर हम अपने देश की सुरक्षा व्यवस्था को फूलप्रूफ बनाने में जुट जाएं तो आने वाले दिनों में हम भी कम से कम सुरक्षा के मामले में अमेरिका की तरह ही नििष्फकर नजर आएंगे, हालात देखकर इसकी संभावनाएं नगण्य ही प्रतीत होती हैं।


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सुषमा मनाएंगी वसुंधरा को

0 राजनाथ के लिए तारणहार बनकर उभरीं सुषमा

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश की विदिशा संसदीय सीट से परचम फहराने वाली भाजपा की मुखर नेत्री सुषमा स्वराज एक बार फिर ताकतवर होकर उभर रहीं हैं। पार्टी अपने महत्वपूर्ण निर्णयों में सुषमा स्वराज की न केवल राय को ही वजन दे रही है, बल्कि राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया से नेता प्रतिपक्ष के पद से त्यागपत्र के लिए उन्हें ही अधिकृत किया गया है।भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि भाजपा में जारी अंदरूनी मारकाट के चलते वसुंधरा राजे से त्यागपत्र लेना अब शीर्ष नेतृत्व की प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने वसुंधरा राजे को त्यागपत्र देने के लिए मनाने के लिए सुषमा स्वराज को अधिकृत कर दिया है।सूत्रों ने यह भी कहा कि अब वसुंधरा राजे से पार्टी की ओर से इस मामले में सुषमा स्वराज के अलावा और कोई भी नेता बात नहीं करेगा। वैसे वसुंधरा राजे के पक्ष में विधायकों की लंबी फौज को देखकर पार्टी के कुछ नेता उनसे सहानभूति भी रखने लगे हैं। वहीं दूसरी ओर पार्टी द्वारा एक बार उनके त्यागपत्र का फैसला लेने के बाद अब समझौते की बात करके नेतृत्व अपनी किरकिरी भी नहीं करवाना चाहेगा।बताया जाता है कि पार्टी की ओर से वसुंधरा राजे को त्यागपत्र के एवज में पार्टी महासचिव का पद भी आफर कर दिया गया है। भाजपा की एक आधार स्तंभ रहीं विजयाराजे सिंधिया की पुत्री वसुंधरा राजे का रसूख राजस्थान में खासा देखने को भी मिल रहा है। पार्टी नेतृत्व को डर है कि कहीं दूसरे नेता प्रतिपक्ष के चुनाव के समय विधायकों के माध्यम से वसुंधरा राजे अपनी कोई और मांग मनवाने पर न अड़ जाएं।सूत्रों का दावा है कि सुषमा स्वराज द्वारा बड़ी ही आसानी से वसुंधरा राजे को त्यागपत्र देने और नए नेता प्रतिपक्ष के चुनाव के लिए तैयार करवा लिया जाएगा। यही कारण है कि पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने उन्हें यह महती जवाबदारी सौंपी है।


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. . . तो जबलपुर की सड़कों का निकल जाएगा कचूमर

- हवाई किले बना रही है झाबुआ पावर लिमिटेड

- कोल परिवहन हेतु ठोस व्यवस्था नहीं

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। जबलपुर से लगभग सौ किलोमीटर दूर सिवनी जिले की घंसोर तहसील के ग्राम बरेला में स्थापित होने वाले पावर प्लांट में लाए जाने वाले कोयले का परिवहन अभी भी अस्पष्ट है। वैसे कंपनी इसे रेल मार्ग से परिवहन करना दर्शा रही है। इसके साथ ही साथ रेल मार्ग के विकल्प के तौर पर सड़क मार्ग से कोयले का परिवहन किया जाएगा तो जबलपुर एवं सिवनी की सड़कों का कचूमर निकल जाएगा।कोयला मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों की माने तो झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा घंसौर तहसील के बरेला में स्थापित किए जाने वाले इस संयंत्र के लिए कोयले की आपूर्ति (लगभग 32 लाख टन प्रतिवर्ष) अनूपपुर की साउथ ईस्टर्न कोलफील्डस की खदान से किया जाना दर्शाया गया है।इसमें सबसे रोचक तथ्य यह है कि कोयले का परिवहन रेल मार्ग द्वारा होना बताया गया है। गौरतलब होगा कि कोयला अनूपपुर से ब्राडगेज से लाकर जबलपुर से नेरोगेज से लाया जाएगा, जो संभव प्रतीत नहीं होता है। आने वाले समय में नैनपुर से जबलपुर के अमान परिवर्तन का काम आरंभ हो जाएगा, तब नेरो गेज की पटरियां उखाड़ दी जाएंगी। इन परिस्थितियों में संयंत्र के संचालकों द्वारा सड़क मार्ग को ही विकल्प के तौर पर उपयोग में लाया जाएगा।वैसे भी अगर कोयले को रेल मार्ग द्वारा ब्राड गेज के माध्यम से अनूपपुर से जबलपुर लाया जाता है, तो कंपनी को फिर जबलपुर नैनपुर मार्ग (नेरोगेज) में इसे लादने के लिए दुबारा लोडिंग अनलोडिंग की समस्या से दो चार होना पड़ेगा। बताया जाता है कि जबलपुर के यार्ड में ब्राडगेज के रेक तो खड़े हो सकते हैं किन्तु नेरोगेज के रेक खड़े करने के लिए वहां अलग से रेल लाईन भी बिछानी पड़ेगी। इस तरह कंपनी द्वारा दिए गए प्रस्ताव में अनेक पेंच नजर आ रहे हैं।यहां उल्लेखनीय तथ्य यह है कि घंसोर एवं लखनादौन तहसील की सड़कें इतने भारी भरकम लोड को सहने के लिए तैयार नहीं हैं, और न ही ये इतने वजन के लिए केंद्रीय सड़क रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीआरआरआई) के मापदण्डों के हिसाब से निर्मित हैं। इन परिस्थितियों में यही कहा जा सकता है कि अपनी प्रोजेक्ट रिपोर्ट में झाबूआ पावर लिमिटेड द्वारा हवाई किले तैयार किए गए हैं।वर्तमान में सिवनी जिले की लखनादौन और घंसौर तहसीलों की सड़कें पहले से ही खस्ताहाल में हैं, फिर अगर इन सड़कों पर से भारी मात्रा में कोयले का परिवहन किया जाएगा तो आने वाले समय में इन सड़कों के चिथड़े उड़ने में समय नहीं लगेगा। बरेला में डलने वाले इस प्लांट में ट्रकों के माध्यम से कोयला या तो लखनादौन अथवा धूमा के रास्ते ही लाया जाएगा। आबादी वाले क्षेत्रों में ट्रकों की धमाचौकड़ी से दुघZटनाओं की संख्या में इजाफा होने से इंंकार नहीं किया जा सकता है।

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आखिर क्या संदेश देना चाहती है दिल्ली सरकार

0 राजीव गांधी के 65 वें जन्मदिवस पर जारी किया दिल्ली सरकार ने अजीबोगरीब विज्ञापन

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। इक्कीसवीं सदी के भारत की परिकल्पना कर आधारशिला रखने वाले पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के 65वें जन्मदिवस पर दिल्ली की सत्ता पर तीसरी बार काबिज हुई शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा आज जारी किया गया विज्ञापन लोगो के बीच चर्चा का केंद्र बना रहा।दिल्ली सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी डीआईपी/793/09-10 क्रमांक से जारी आधे पृष्ठ के रंगीन विज्ञापन में यूपीए अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री डॉ. मन मोहन सिंह के साथ ही साथ दिल्ली सरकार की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित के रंगीन छाया चित्र लगे हुए हैं।प्रिंट मीडिया में छपे इस विज्ञापन में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी की फोटो के साथ कुछ परिन्दों को आकाश में उड़ते हुए दिखाया गया है, एवं साथ ही सफेद अक्षरों से बस ``राजीव`` ही लिखा हुआ है। इस विज्ञापन में राजीव गांधी के चित्र के आसपास 62 परिंदे उड़ते दिखाए गए हैं।जनचर्चा के अनुसार अखबारों को विज्ञापन जारी कर दिल्ली की कुर्सी पर लगातार तीसरी बार बैठने वाली श्रीमति शीला दीक्षित आखिर क्या संदेश देना चाह रही हैं। व्याप्त चर्चाओं के अनुसार कांग्रेस नेतृत्व के भाटचारण के उद्देश्य से जारी किया गया यह विज्ञापन अगर कोई कोटेशन या संदेश युक्त होता तो जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई के खर्च का ओचित्य समझ में भी आता, किन्तु वस्तुत: एसा कुछ भी इस विज्ञापन में नजर नहीं आता है।

बुधवार, 19 अगस्त 2009

19 augest 2009

आलेख 19 अगस्त 2009

इस तरह किया जा रहा है प्रियदर्शनी के सपनों को साकार

(लिमटी खरे)

लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र में जब उनकी अग्रजा प्रियंका वढ़ेरा ने अपनी दादी स्वर्गीय श्रीमति इंदिरा गांधी की साड़ी पहनी तो सारे न्यूज चेनल्स और प्रिंट मीडिया की सुर्खियां बन गईं थीं प्रियंक। मीडिया ने तो प्रियंका में उनकी दादी की छवि तक देख ली थी।श्रीमति इंदिरा गांधी के निधन के उपरांत इस सीट पर उनके वंश का ही कब्जा रहा है। आपको यह जानकर अत्यंत आश्चर्य होगा कि जिस दूरदृष्टा कुशल प्रशासक श्रीमति इंदिरा गांधी के नाम पर कांग्रेस और श्रीमति सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी अपनी राजनैतिक बिसात चला रहे हैं, उनके सपने को ही वे भूल गए हैं।हाल ही में जगदीशपुर के दौरे के दौरान राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती पर सरेआम आरोप लगाया है कि राज्य सरकार उनके संसदीय क्षेत्र में तीन हजार करोड़ रूपए की पेपर मिल परियोजना को लगने नहीं दे रही है। राहुल का आरोप है कि हिन्दुस्तान पेपर मिल की पूरी योजना तैयार है किन्तु सरकार जमीन मुहैया नहीं करा रही है।राहुल गांधी सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस के महासचिव हैं, वे जो भी बात कहेंगे निश्चित रूप से वजनदारी एवं प्रमाण होने पर ही कहेंगे। अमेठी और रायबरेली दोनों ही संसदीय क्षेत्रों में विकास कार्यों में रोड़े अटकाने की बात राहुल गांधी द्वारा कही जाती रहीं हैं, जाहिर है राहुल के पास इसके प्रमाण अवश्य मौजूद होंगे।जब सवाल राहुल गांधी की दादी और पूर्व प्रधानमंत्री प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी की इच्छा का आता है, तो निश्चित तौर पर इस मामले मेंं राहुल गांधी द्वारा सुश्री मायावती को कटघरे में खड़ा नहीं किया जा सकेगा। स्व.श्रीमति गांधी की इच्छा थी कि अमेठी में एक आयुर्विज्ञान महाविद्यालय (मेडीकल कालेज) की स्थापना की जाए।आज लगभग ढाई दशकों बाद भी उनके वारिसान सक्षम होने के बावजूद भी श्रीमति इंदिरा गांधी की इच्छा को पूरा करने में अपने आप को अक्षम पा रहे हैं। इस मामले का रोचक पहलू यह है कि सालों पूर्व बतौर मुख्यमंत्री सुश्री मायावती द्वारा इस मेडीकल कालेज के लिए अनापत्ति भी जारी की जा चुकी है।राज्य सरकार की अनापत्ति के उपरांत मेडीकल काउंसिल ऑफ इंडिया की टीम द्वारा भवन स्थल आदि का निरीक्षण परीक्षण भी किया जा चुका है। कांग्रेसनीत संप्रग सरकार दूसरी मर्तबा सत्ता पर काबिज हुई है, मगर स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी की इच्छा आज भी अधूरी ही है।1980 में अमेठी से सांसद रहे स्व.संजय गांधी की याद को चिरस्थायी बनाए रखने की गरज से संजय गांधी मेमोरियल ट्रस्ट ने अमेठी में मेडीकल कालेज खोलने का निर्णय लिया था। 1981 में संजय गांधी अस्पताल के शिलान्यास के समय स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी ने कहा था कि इस अस्पताल में सिर्फ रोगियों का इलाज ही नहीं होगा। यहां मेडीकल कालेज खोला जाएगा जहां से चिकित्सक बनने वाले युवा देश में रोगियों का उपचार करेंगे।प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी के हाथों लगाया गया यह पौधा 1989 में अस्पताल के रूप में आरंभ हो गया। उस दोरान प्रस्तावित मेडीकल कालेज भी कांग्रेस की श्रीमति सोनिया गांधी और भाजपा की श्रीमति मेनका गांधी की परस्पर विरोधी दलों की धुरी की सियासत की भेंट चढ़ गया। बाद में इसका नाम बदलकर स्व. राजीव गांधी के नाम पर कर दिया गया।मजे की बात तो यह है कि राजीव गांधी मेडीकल कालेज के नाम पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अनापत्ति जारी कर दी गई है। कितनी बड़ी विडम्बना है कि गांधी परिवार की बपौती बना रहा अमेठी संसदीय क्षेत्र जिसका प्रतिनिधित्व पूर्व प्रधानमंत्री स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी, स्व.संजय गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी, ने किया हो और कांग्र्रेस के महासचिव एवं कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी कर रहे हों, वह स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी के एक सपने को हकीकत में बदलने में पच्चीस साल लगा दे, और फिर भी कामयाम न हो पाएं, तब बाकी देश की उन्नति एवं देश के आखिरी आदमी तक विकास की किरण पहुचाने के कांग्रेस के सपने को दिवा स्वप्न से कम क्या समझा जाए

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सुषमा के पक्ष में बहने लगी बयार

0 सुषमा बन सकतीं हैं भाजपाध्यक्ष!

0 अमेरिकी राष्ट्रपति की तर्ज पर हो सकता है भाजपा में संविधान संशोधन

0 संघ का वरद हस्त भी सुषमा के साथ

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो भारतीय जनता पार्टी को पहली महिला अध्यक्ष के रूप में सुषमा स्वराज मिल सकती हैं। संघ में भी सुषमा को लेकर सकारात्मक बयार बहने लगी है। पार्टी अपने संविधान में संशोधन कर अध्यक्ष का कार्यकाल तीन से घटाकर दो साल और कोई भी नेता अपने जीवनकाल में महज दो बार ही अध्यक्ष रहने की बात ला सकती है।पिछले कुछ सालों में यह बात साफ तौर पर उभरकर सामने आ चुकी है कि देश में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अलावा अगर कोई दूसरा शक्तिशाली राष्ट्रीय दल है, तो वह है, भारतीय जनता पार्टीं। अटल बिहारी बाजपेयी के सक्रिय राजनीति से किनारा करने के उपरांत भाजपा का तेजी से गिरता ग्राफ संघ की पेशानी पर पसीने की बूंदे ला रहा है।संघ के सूत्रों का कहना है कि भाजपा में प्राणवायू फंूकने के लिए संघ ने अपनी रणनीति को अंतिम रूप दे दिया है। आने वाले दिनों में भाजपा नए क्लेवर में दिखे तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। सूत्रों ने यह भी बताया कि सुषमा स्वराज को संघ के आला नेताओं ने बुलाकर इस विषय मेंं समझाईश भी दे दी है।सूत्रों का कहना है कि संघ नेतृत्व ने मध्य प्रदेश में विदिशा से सांसद चुनी गई सुषमा स्वराज को बुलाकर साफ कह दिया है कि वे अपना मन बना लें और पार्टी का नेतृत्व संभालने की तैयारी कर लें, ताकि भाजपा में अमूलचूल परिवर्तन लाया जा सके। वैसे भी सुषमा स्वराज की छवि आम भारतीय नारी की ही मानी जाती है।कुशल वक्ता के तौर पर अपनी छवि बनाने वाली श्रीमति स्वराज के अंदर कुशल प्रशासक के गुण भी हैं। संगठनात्मक क्षमता उनमें कूट कूट कर भरी है, इस बात में कोई संदेह नहीं है। वैसे भी संघ और भाजपा के अंदर कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी की काट के तौर पर कोई तेज तर्रार नेत्री को खोजा जा रहा था।फायर ब्रांड नेत्री उमश्री भारती के शार्ट टेंपर होने के कारण वे सोनिया गांधी की बराबरी का कद नहीं पा सकीं किन्तु धीर गंभीर और सोच समझकर चलने वाली श्रीमति सुषमा स्वराज को भाजपा में आसानी से स्वीकार्यता मिल जाएगी, और वे श्रीमति सोनिया गांधी के सामने खड़े होने का माद्दा भी रखतीं हैं। पूर्व में वेल्लारी में वे लोकसभा में श्रीमति सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव भी लड़ चुकीं हैं।उधर भारतीय जनता पार्टी के सूत्रों का कहना है कि पार्टी अपने संविधान में भी कुछ बदलाव कर सकती है। इसमें अध्यक्ष का कार्यकाल तीन साल से घटाकर दो साल करने पर विचार चल रहा है। इसके साथ ही साथ अमेरिका के राष्ट्रपति की तर्ज पर भाजपाध्यक्ष के लिए भी कुछ पाबंदिया लगाने पर विचार किया जा रहा है।सूत्रों के अनुसार आने वाले दिनों में कोई भी नेता अपने जीवनकाल में महज दो बार ही पार्टी अध्यक्ष बन सकता है। इसके साथ ही साथ लगातार दो बार भी कोई अध्यक्ष नहीं बना रह सकेगा इस तरह की व्यवस्था भी की जा रही है। सूत्रों ने बताया कि अभी ये सारे तथ्य वैचारिक स्थिति में ही हैं। पार्टी के अंदर इन विषयों पर चर्चा के उपरांत ही इन्हें लागू कराने की दिशा में पहल की जाएगी।

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. . . तो बरगी बांध का जलभराव क्षेत्र हो जाएगा कम

0 रोजाना 3416 टन फ्लाई एश जाएगी जल भराव क्षेत्र में

0 बढ़ जाएगा प्रदूषित पानी और वायू प्रदूषण का खतरा

0 फोरलेन में अडंगा लगाने वाला एनजीओ क्या आगे आएगा पर्यावरण बचाने!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले की घंसौर तहसील में थापर ग्रुप की कंपनी झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा स्थापित किए जाने वाले 600 मेगावाट के पावर प्रोजेक्ट से सिवनी जिले के पर्यावरण को भारी मात्रा में खतरा हो सकता है। इस संयंत्र से निकलने वाली फ्लाई एश की तादाद प्रतिदिन इतनी अधिक होगी कि बरगी बांध के जल भराव क्षेत्र में खासी कमी आने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।मध्य प्रदेश प्रदूषण निवारण मण्डल की आधिकारिक वेव साईट पर इस परियोजना की जनसुनवाई के बारे में प्रकाशित प्रतिवेदन में कहा गया है कि इस संयंत्र के लिए पानी की आपूर्ति 10 किलोमीटर दूर गढ़ाघाट और पायली से रानी अवंतिबाई सागर परियोजना के जल भराव वाले क्षेत्र से की जाएगी। वहीं इसकी कंडिका 5.3 में इसकी दूरी 100 किलोमीटर दर्शाई गई है।इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके इर्द गिर्द कोई राष्ट्रीय स्मारक नहीं है। बताया जाता है कि पायली डेम के पास वाले मंदिर को पुरातत्व विभाग ने अपने संरक्षण में ले लिया है। इस प्रतिवेदन में साफ किया गया है कि हवा का बहाव उत्तर एवं उत्तर पूर्व की ओर होगा।गोरतलब होगा कि प्रस्तावित संयंत्र से उत्तर और उत्तर पूर्व की दिशा में बरगी बांध का सिवनी जिले वाला जल भराव क्षेत्र है। इसमें साफ किया गया है कि प्रतिदिन उत्तसर्जित होने वाली जमीनी राख की मात्रा 853 टन एवं उड़ने वाली राख (फ्लाई एश) की तादाद 3416 टन प्रतिदिन होगी।यहां यह तथ्य भी उल्लेखनीय होगा कि फ्लाई एश थोडी बहुत नहीं वरन 275 मीटर अर्थात लगभग एक हजार फिट उंची चिमनी से उड़ेगी। इस उंचाई से उड़ने वाली राख आसपास के वन, खेती युक्त जमीन और जलाशयों के साथ ही साथ बरगी बांध के भराव वाले क्षेत्र में साल दर साल क्या तबाही मचाएगी इसका अनुमान लगाना मुश्किल ही है।इस तरह साढ़े तीन हजार टन राख रोजाना उड़कर बरगी बांध के सिवनी जिले की सीमा में आने वाले जल भराव के क्षेत्र में जाएगी जिससे बरगी बांध का पानी न केवल प्रदूषित होगा बल्कि राख तेजी से नीचे बैठकर गाद (सिल्ट) की मोटी परत जमा देगी जिससे जल भराव की तादाद काफी हद तक कम हो जाएगी। एक माह में बरगी बांध में एक लाख पांच हजार 896 टन तथा साल भर में यह मात्रा बढ़कर 12 लाख 46 हजार 840 टन हो जाएगी।इस प्रतिवेदन में कहा गया है कि कुछ समय के लिए जल प्रदूषण नहीं के बराबर होगा किन्तु बाद में जल प्रदूषण के बारे में साधा गया मौन संदिग्ध ही प्रतीत होता है। इसके अलावा 853 टन प्रतिदिन निकलने वाली जमीनी राख जो एक माह में ही 26 हजार 443 टन अथवा साल भर में 3 लाख 11 हजार टन राख को कंपनी कहां रखेगी या इसका परिवहन सड़क मार्ग से करेगी या नहीं इस बारे में भी कंपनी का मौन अनेक संदेहों को जन्म देता है।पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना स्विर्णम चतुभुZज के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे में सिवनी जिले के कुछ किलोमीटर के मार्ग में वन्य प्राणियों और पर्यावरण के नाम पर फच्चर फंसाने वाला गैर सरकारी संगठन वाईल्ड लाईफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया क्या पर्यावरण के असंतुलन को साधने भी आगे आएगा यह यक्ष प्रश्न आज भी बरकरार है।

मंगलवार, 18 अगस्त 2009

अब घंसौर को झुलसाने की तैयारी

2900 करोड़ का पावर प्रोजेक्ट डल रहा है बरेला में

दस हजार टन कोयला रोज जलाया जाएगा

22 अगस्त की जनसुनवाई रोकने की मांग

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले की आदिवासी बाहुल्य तहसील घंसौर को झुलसाने की तैयारी की जा रही है। मशहूर थापर ग्रुप के प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा घंसोर के बरेला ग्राम में 600 मेगावाट के पावर प्रोजेक्ट की तैयारी की जा रही है। गुपचुप तरीके से इसकी जनसुनवाई भी 22 अगस्त को आहूत की गई है।उर्जा मंत्रालय के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि झाबुआ पावर लिमिटेड नामक कंपनी द्वारा मध्य प्रदेश सरकार के साथ मिलकर आदिवासी बाहुल्य घंसौर के बरेला ग्राम में यह प्रोजेक्ट डाला जा रहा है। उधर कोल मंत्रालय के सूत्रोें ने बताया कि इस प्रोजेक्ट के लिए उपयोग में आने वाले कोयले के लिए कोल लिंकेज अभी प्रदान नहीं किया गया है।मध्य प्रदेश पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की वेव साईट पर इस परियोजना की जन सुनवाई के तथ्य मौजूद हैं। इसके लिए 3.20 एमटीपीए ईंधन की आवश्यक्ता दर्शाई गई है। पानी की आवश्यक्ता की पूर्ति रानी अवंतिबाई सागर परियोजना (बरगी बांध) के सिवनी जिले के गडाघाट और पायली के करीब वाले डूब क्षेत्र से पूरी की जाएगी।परियोजना में दर्शाया गया है कि इसका बायलर पूरी तरह कोयले पर ही आधारित होगा। इसके साथ ही साथ 220 एकड़ सरकरी, 360 एकड़ गैर कृषि एवं मात्र 20 एकड़ कृषि भूमि का क्रय किया गया है। इसके लिए आवश्यक कोयले को साउथ ईसटर्न कोल लिमिटेड के अनूपुर शहडोल स्थित खदान से कोयला आयात किया जाएगा। मजे की बात तो यह है कि यह परियोजना प्रतिघंटा 3262 मीट्रिक टन पानी पी जाएगी।इस परियोजना में क्षेत्र के लोगों की बड़ी मात्रा में जमीने खरीदे जाने की खबर है। बताया जाता है कि कमजोर वर्ग के लोगों को इसका मुआवजा लगभग 70 हजार रूपए प्रतिएकड़ तो प्रभावशाली और राजनैतिक पहुंच संपन्न लोगों की जमीनों को प्रतिएकड़ दो से ढाई लाख रूपए का मुआवजा दिया गया है।इस परियोजना के मुख्य महाप्रबंधक आर.पी. चितले ने दूरभाष पर चर्चा के दौरान कहा कि नियमानुसार कंपनी जिन परिवारों की जमीन का अधिगृहण कर रही है, उन परिवारों के एक सदस्य को नौकरी पर अवश्य रखेगी। शेष बचे स्थानों के बारे में उन्होंने कहा कि स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी। चितले यह स्पष्ट नहीं कर सके कि स्किल्ड लेबर या अनिस्किल्ड लेबर के तौर पर ग्रामीणों को नौकरी या प्राथमिकता दी जाएगी।साथ ही जमीन क्रय करने की बात पर उन्होने सफाई देते हुए कहा कि आदिवासियों की जमीन कंपनी सीधे सीधे नहीं खरीद सकती है, अत: सरकार ने पहले इस जमीन को खरीदा है फिर कंपनी ने सरकार से यह जमीन ली है। सीजीएम चितले यह स्पष्ट नहीं कर सके कि कुल खरीदी गई जमीन में कितनी जमीन आदिवासियों से खरीदी गई है।व्याप्त चर्चाओं के अनुसार महज कुछ ही आदिवासियों की जमीन को कंपनी ने लिया है, शेष जमीन सामान्य वर्ग के लोगों की ही खरीदी गईं हैं, वह भी कहीं ओने पोने दाम पर तो कहीं अनमोल कीमतें देेकर।सूत्रों का यह भी कहना है कि जनसुनवाई का बजट भी आठ अंको की राशि में रखा गया है, किन्तु सिवनी जिले में शनिवार 22 अगस्त को होने वाली जनसुनवाई के बारे में लोगों को जानकारी का न होना अनेक संदेहों को जन्म दे रहा है। बताया जाता है कि इस बारे में न तो आसपास के गांवों में पर्यावरण एवं अन्य प्रभावों की जानकारी ही दी गई है और न ही मुनादी पीटी गई है कि जनसुनवाई 22 अगस्त को है। मांग की जा रही है कि 22 अगस्त को होने वाली जनसुनवाई को तत्काल निरस्त कर पहले क्षेत्रवासियों को इसके फायदे के साथ ही साथ दुष्प्रभावों की जानकारी दी जाए और फिर दावे आपत्ति पर जनसुनवाई आहूत की जाए।

सोमवार, 17 अगस्त 2009

आलेख 17 अगस्त 2009

क्या महज ``औपचारिक`` रह गई है गांधी टोपी!

(लिमटी खरे)


कहने को तो कांग्रेस द्वारा गांधी नेहरू परिवारों का गुणगान किया जाता है, किन्तु इसमें राष्ट्रपिता मोहन दास करमचंद गांधी का शुमार है या नहीं यह कहा नहीं जा सकता है। जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, के बाद अब सोनिया गांधी और राहुल गांधी के इर्द गिर्द ही कांग्रेस की सत्ता की धुरी घूमती महसूस होती है।
वैसे तो महात्मा गांधी और उनकी अपनाई गई खादी को भी अपनी विरासत मानती आई है कांग्रेस। पर अब लगता है कि वह इन दोनों ही चीजों से दूर होती चली जा रही है। अधिवेशन, चुनाव, मेले ठेलों में तो कांग्रेसी खादी के वस्त्रों का उपयोग जमकर करते हैं, किन्तु उनके सर से गांधी टोपी नदारत ही रहा करती है।
कांग्रेस सेवादल के ड्रेस कोड में शामिल है गांधी टोपी। जब भी किसी बड़े नेता या मंत्री को कांग्रेस सेवादल की सलामी लेनी होती है तो उनके लिए चंद लम्हों के लिए ही सही गांधी टोपी की व्यवस्था की जाती है। सलमी लेने के तुरंत बाद नेता टोपी उतारकर अपने अंगरक्षक की ओर बढ़ा देते हैं, और अपने बाल काढ़ते नजर आते हैं, ताकि फोटोग्राफर अगर उनका फोटो लें तो उनका चेहरा बिगड़े बालों के चलते भद्दा न लगे।
इतिहास गवाह है कि गांधी टोपी कांग्रेस विचारधारा से जुड़े लोगों के पहनावे का हिस्सा रही है। अस्सी के दशक के आरंभ तक नेताओं के सिर की शान हुआ करती थी गांधी टोपी। पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू हों या मोरारजी देसाई, किसी ने शायद ही इनकी कोई तस्वीर बिना गांधी टोपी के देखी हो।
लगता है कि वक्त बदलने के साथ ही साथ इस विचारधारा के लोगों के पहनावे में भी अंतर आ चुका है। अस्सी के दशक के उपरांत गांधी टोपी धारण किए गए नेताओं के चित्र दुर्लभ ही देखने को मिलते हैं। करीने से काढे गए बालों और पोज देते नेता मंत्री अवश्य ही दिख जाया करते हैं।
आधुनिकता के इस युग में महात्मा गांधी के नाम से पहचानी जाने वाली गांधी टोपी अब नेताओं के सर का ताज नहीं बन पा रही है। इसका स्थान ले लिया है कांग्रेस के ध्वज के समान ही तिरंगे दुपट्टे (गमछे) ने। जब नेता ही गांधी टोपी का परित्याग कर चुके हों तो उनका अनुसरण करने वाले कार्यकर्ता भला कहां पीछे रहने वाले हैं।
एसा नहीं कि गांधी टोपी आजाद भारत के लोगों के सिरों का ताज न हो। आज भी महाराष्ट्र में अनेक गांव एसे हैं, जहां बिना इस टोपी के कोई भी सिर दिखाई दे जाए। इसके साथ ही साथ कर्नाटक और तमिलनाडू के लोगों ने भी गांधी टोपी को अंगीकार कर रखा है।
अस्सी के दशक के आरंभ तक अनेक प्रदेशों में चतुर्थ श्रेणी के सरकारी नुमाईंदों के ड्रेस कोड में शामिल थी गांधी टोपी पहनकर सरकारी कर्मचारी अपने आप को गोरवांिन्वत महसूस भी किया करते थे। कालांतर में गांधी टोपी ``आउट ऑफ फैशन`` हो गई। यहां तक कि जिस शिख्सयत को पूरा देश राष्ट्रपिता के नाम से बुलाता है, उसी के नाम की टोपी को कम से कम सरकारी कर्मचारियों के सर की शान बनाने में भी देश और प्रदेशों की सरकरों को जिल्लत महसूस होती है। यही कारण है कि इस टोपी को पहनने के लिए सरकारें अपने मातहतों को पाबंद भी नहीं कर पाईं हैं।
यह सच है कि नेताओं की भाव भंगिमओं, उनके आचार विचार, पहनावे को उनके कार्यकर्ता अपनाते हैं। जब नेताओं के सर का ताज ही यह टोपी नहीं बन पाई हो तो औरों की कौन कहे। यहां तक कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की विर्कंग कमेटी में उपसिथत होने वाले नेताओं के सर से भी यह टोपी उस वक्त भी नदारत ही मिलती है।
मर्द के सर पर टोपी और औरत के सर पर पल्लू, अच्छे संस्करों की निशानी मानी जाती है। फिर आधी सदी से अधिक देश पर राज करने वाली लगभग सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस के नेताओं को इसे पहनने से गुरेज कैसा। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू रहे हों या महामहिम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, किसी ने कभी भी इनकी बिना टोपी वाले छायाचित्र नहीं देखे होंगे। आधुनिकता और पश्चिमी फैशन की चकाचौंध में हम अपने मूल संस्कार ही खोते जा रहे हैं, जो निश्चित तौर पर चिंताजनक कहा जा सकता है।
वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने एक सूबे में तो वन्दे मातरम को सरकारी कार्यालयों में अनिवार्य कर दिया है। यह सच है कि भाजपा का जन्म राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के आचार विचारों से ही हुआ है। क्या संघ के पूर्व संस्थापकों ने कभी गांधी टोपी को नहीं अपनायार्षोर्षो अगर अपनाया है तो फिर आज की भाजपा की पीढ़ी इससे गुरेज क्यों कर रही हैर्षोर्षो
युवाओं के पायोनियर (अगुआ) बन चुके कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भी किसी कार्यक्रम में अगर जरूरत पड़ती है तो गांधी टोपी को सर पर महज औपचारिकता के लिए पहन लेते हैं, फिर मनमोहक मुस्कान देकर इसे उतारकर अपने पीछे वाली कतार में बैठे किसी नेता को पकड़ा देते हैं।
अगर देश के नेता गांधी टोपी को ही एक वजनयुक्त औपचारिकता समझकर इसे धारण करेंगे तो फिर उनसे गांधी के सिद्धांतें पर चलने की आशा करना बेमानी ही होगा। यही कारण है कि हाल ही के संसद के सत्र में कांग्रेस के शांताराम लक्ष्मण नाइक ने सवाल पूछा था कि क्या महात्मा गांधी को उनके गुणो, ईमानदारी, प्रतिबद्धता, विचारों और सादगी के साथ दोबारा पैदा किया जा सकता है। इस समय उनकी बहुत जरूरत है। हम सब अपने उद्देश्य से भटक गए हैं और हमें महात्मा गांधी के मार्गदर्शन की जरूरत है। भले ही यह महात्मा गांधी के क्लोन से ही मिले।

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बदल रहा है कांग्रेस का सत्ता और शक्ति का केंद्र

0 10 जनपथ के बजाए अब ताकतवर होने लगा है 12 तुगलक लेन!

0 जल्द ही सोनिया से राहुल को हस्तांतरित हो सकती है ताकत

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। राजनैतिक विश्लेषक चाहे जो भी आंकलन लगाएं किन्तु अब लगने लगा है कि कांग्रेस का सत्ता और शक्ति का केंद्र 10 जनपथ (कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) से खिसककर 12 तुगलक लेन (महासचिव राहुल गांधी का सरकारी आवास) की ओर बढ़ने लगा है।
राहुल गांधी के करीबी सूत्रों का दावा है कि भविष्य को देखते हुए कांग्रेस के पदाधिकारी और मंत्री अब 10 जनपथ के बजाए 12 तुगलक लेन की देहरी को सलाम करते नजर आ रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस में अब सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया तेजी से आरंभ हो गई है।
सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार के मंत्रियों में अब यह प्रतिस्पर्धा आरंभ हो गई है कि कौन राहुल गांधी के ज्यादा करीब है। निकटता पाने के उद्देश्य से मंत्रियों ने नए हथकंडे भी अपनाने आरंभ कर दिए हैं। बताया जाता है कि मंत्रियों ने अपने अपने विभागों की नई योजनाओं के श्रीगणेश के लिए राहुल गांधी को बकायदा पत्र लिखकर अनुरोध भी किया है।
सूत्रों की मानें तो मुकुल वासनिक, कांतिलाल भूरिया, नारायण सामी, विलासराव देशमुख, अंबिका सोनी, एम.एस.गिल, सुबोध कांत सहाय, कुमारी सैलजा, सी.पी.जोशी सहित लगभग एक दर्जन मंत्रियों ने राहुल गांधी को उनके विभाग की नई योजनाओं के उद्घाटन करने का अनुरोध किया है। यह अलहदा बात है कि राहुल गांधी ने अभी तक एक भी न्योता स्वीकार नहीं किया है।
कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि कुशाग्र बुद्धि के धनी कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिंह की चौसर की चालों को समझ पाना कांग्रेस के नेताओं के लिए आसान बात नहीं है। पहले तो दिग्गी राजा राहुल गांधी के अघोषित राजनैतिक गुरू बने, फिर उन्होंने विधानसभा और लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी के लिए भविष्य का रोड़मेप तैयार किया।
एक के बाए एक सफलता मिलने के बाद जब राहुल गांधी कांग्रेस की राजनीति में लगभग स्थापित हो चुके हैं, तब यह दांव खेला गया है, ताकि सत्ता में भी राहुल गाधी की दखल बढ़ाई जा सके और सत्ता तथा शक्ति के नए केंद्र के रूप में युवा तुर्क राहुल गांधी को स्थापित किया जा सके।
सूत्रों के अनुसार अब तक कांग्रेंस की धुरी संभालने वाले दो धु्रवों 23 मदर टेरेसा क्रीसेंट (सोनिया के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल का आवास) और सत्य मार्ग पर गांधी परिवार के पुराने विश्वस्त विसेन्ट जार्ज के आवास पर भी इसकी आहट साफ सुनी जा सकती है।
अपने पसंद के युवा नेताअों को लाल बत्ती से नवाजकर राहुल गांधी ने वरिष्ठ मंत्रियों को यह संदेश दे दिया है कि युवा मंत्री अपने कामकाज के साथ ही साथ वरिष्ठों के काम पर नजर रखकर राहुल गांधी को रिपोर्टिंग करेंगे। उधर अनेक दिग्गज नेताओं की आंख की किरकिरी बने सोनिया के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल को भी पैजामे के अंदर रखने की दिग्विजय सिंह की रणनीति काफी कारगर होती दिख रही है।

रविवार, 16 अगस्त 2009

उपचुनाव में होगी राजा, महाराजा, नाथ और पचौरी की अग्निपरीक्षा

ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

उपचुनाव में होगी राजा, महाराजा, नाथ और पचौरी की अग्निपरीक्षा

मध्य प्रदेश में गोहद और तेंदूखेड़ा और सोनकच्छ विधानसभा उपचुनावों में राजा दिग्विजय सिंह, महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ ही साथ सूबे के कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। प्रत्याशी चयन में कौन बाजी मारता है, इसे लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। प्रत्याशी चयन को लेकर प्रदेश प्रभारी महासचिव बी.के.हरिप्रसाद भी जल्द ही सूबे के दौरे पर आने वाले हैं। गोहद में सिंधिया की राय को वजन देना हरिप्रसाद की मजबूरी होगी, किन्तु राजा दिग्विजय सिंह भी इस सीट पर नजरें गड़ाए हुए हैं। यह सीट यहां के विधायक माखनला जाटव की लोकसभा चुनावों के दौरान गोली लगने से हुई मृत्यु के कारण रिक्त हुई है। वहीं दूसरी और सुरेश पचौरी ने होशंगाबाद संसदीय क्षेत्र को अपनी कर्मभूमि बनाया है, सो तेंदूखेड़ा में उनकी राय को किनारे नहीं किया जा सकता है। तेंदूखेड़ा विधायक उदय प्रताप सिंह होशंगाबाद से सांसद चुने गए हैं। इसी तरह सोनकच्छ विधानसभा में पूर्व विधायक और सांसद सज्जन वर्मा के चलते इस सीट पर उम्मीदवार केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ की पसंद का हो सकता है। वैसे कांग्रेस के लिए तीनों सीटें प्रतिष्ठा का प्रश्न इसलिए भी हैं, क्योंकि तीनों ही सीटों पर कांग्रेस काबिज रही है।

सचमुच हीरो बने शिवराज

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को सूबे के लोग पांव पांव वाले भईया के नाम से जानने वालो की कमी नहीं है। एक आम ग्रामीण हिन्दुस्तानी की छवि को शिवराज सिंह चौहान ने अंगीकार किया है, जो तारीफेकाबिल ही कहा जा सकता है। सूबे में शिवराज ने जनता के दुखदर्द को समझा है, यही कारण है कि मध्य प्रदेश में जनता से जुड़ी योजनाओं को ईमानदारी से अमली जामा पहनाया जा रहा है। शिवराज सिंह चौहान दरियादिल हैं, इस बात का प्रमाण बीते दिनों देखने को मिला। मध्य प्रदेश की नेता प्रतिपक्ष श्रीमति जमुना देवी पिछले दिनों गुर्दे में संक्रमण के चलते बीमार हो गईं थीं। शिवराज सिंह को जैसे ही इस बात की जानकरी मिली उन्होंने दलगत राजनीति से उपर उठकर तत्काल उन्हें मुंबई भेजने के लिए राजकीय विमान उनके लिए न केवल मुहैया करवाया वरन् वे विमानतल तक स्वयं ही उन्हें बिदा करने भी गए। इसके उपरांत उन्होंने मुंबई जाकर जमुना देवी का हालचाल भी जाना। सूबे में शिवराज की इस हरकत से लोग बाग बाग हैं, कि सूबे का निजाम हो तो एसा जो दलगत राजनीति से उपर उठकर सच्ची मानवता की सेवा को अंगीकार किए हुए है।

कांग्रेंस के रास्ते पर चली भाजपा

अब तक कांग्रेस में ही खतो खिताब की राजनीति होती थी, वह भी एसी कि पत्र लिखने के बाद वह सोची समझी रणनीति के तहत आश्चर्यजनक तरीके से लीक कर दिया जाता था, फिर मचता था बवाल। लगता है कांग्रेस की इस परंपरा को भाजपा ने भी अंगीकार कर ही लिया है, पर थोड़ा संशोधन करके। जहां कांग्रेस में अपनी बात कहने के लिए पत्रों का सहारा लिया जाता रहा है, वहीं अब भाजपा में किताबों के जरिए सियासत गर्माने लगी है। वैसे कांग्रेस में पूर्व केंद्रीय मंत्री कुंवर अर्जन सिंह पत्र लिखने में उस्ताद माने जाते रहे हैं, फिर उनकी किताबें भी खासी चर्चाओं में रही हैं। भाजपा में पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी की किताब ``माय कंट्री माय लाईफ`` फिर इसका उर्दू संस्करण `मेरा वतन मेरी जिंदगी` ने तूफान मचाया। हाल ही में राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के विरोधियों द्वारा लिखी गई किताब भी जबर्दस्त चर्चाओं में है। पत्रकार अजीज बर्नी जब आड़वाणी की उर्दू वाली किताब के विमोचन पर मंच पर आसीन हुए तो संघ को नागवार गुजरा। बर्नी ने मुंबई आतंकी हमले के लिए संघ को जिम्मेदार ठहराया था। इसके साथ ही साथ हाल ही में पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह ने भी एक किताब लिखकर ताल ठोंक दी है।

चिंतन बैठक की खबरें भी होंगी लीक
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भारतीय जनता पार्टी की शिमला में होने वाली चिंतन बैठक के मसले पर भाजपा ने अपना स्टेंड साफ कर दिया है कि इस बैठक की प्रेस ब्रीफिंग नहीं होगी। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि यह पार्टी मंच का मामला है, अत: मीडिया को इसका ब्योरा उपलब्ध नहीं कराया जाएगा। पार्टी के इस रवैए से मीडिया में गहरी नाराजगी का आलम है। कुछ पत्रकारों ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से इसकी शिकायत की तो उन्हें अप्रत्याशित तौर पर जो जवाब मिला वह किसी स्कूप से कम नहीं है। एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि बैठक के ब्योरे भले ही पत्रकारों को महरूम रखा जाएगा, किन्तु अंदरखाने में पक रही खिचड़ी को विधिवत लीक करने वाले नेता भी तो बैठक में शिरकत करने वाले हैं। फिर भला पत्रकारों को चिंता किस बात की। गौरतलब होगा कि पूर्व में भाजपा की ही एक बैठक में साध्वी उमाश्री भारती ने पार्टी के कुछ नेताओं पर ऑफ द रिकार्ड खबरें लीक करने का सावर्जनिक तौर पर आरोप लगाया जा चुका है।
गणतंत्र और स्वाधीनता दिवस में अंतर नहीं समझ सके नेता
दिल्ली से राज्यसभा के रास्ते संसदीय सौंध तक पहुंचने वाले परवेज हाशमी के समर्थकों को शायद गणतंत्र दिवस और स्वाधीनता दिवस में अंतर मालून नहीं है। दिल्ली वासियों को स्वाधीनता दिवस के मौके पर और हाशमी को राज्य सभा में चुने जाने पर बधाई देने की गरज से बड़े होडिंग लगवाए गए हैं। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के सचिव अनीस मलिक और ताज मलिक द्वारा अपने चित्रों के साथ ही साथ कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी, वजीरेआला डॉ.एम.एम.सिंह, दिल्ली की निजाम शीला दीक्षित, सांसद संदीप दीक्षित, परवेज हाशमी आदि के चित्रों से युक्त बधाई के इस होर्डिंग में साफ लिखा हुआ है कि ``दिल्ली वासियों को गणंत (वास्तविक गणतंत्र) दिवस की हादिZक शुभकामनाएं``। कितने आश्चर्य की बात है कि लगभग सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस जो आधी सदी से देश पर राज कर रही है उसके नुमाईंदे गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस में फर्क ही नहीं कर पा रहे हैं।


घर वापसी की कवायद शुरू
2003 में जब मध्य प्रदेश में विधान सभा चुनावों में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी की जड़ें उखड़ गईं और भारतीय जनता पार्टी की तत्कालीन तेज तर्रार नेत्री उमाश्री भारती सत्ता पर काबिज हुईं तब सूबे के ब्यूरोक्रेट्स ने प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली की दौड़ लगाना आरंभ कर दिया था। 2004 में भारतीय प्रशासनिक और पुलिस सेवा के मध्य प्रदेश काडर के अधिकारियों की तादाद देखकर लगने लगा था कि छोटा मोटा वल्लभ भवन (राज्य सचिवालय) दिल्ली में ही न बन जाए। पांच साल की प्रतिनियुक्ति की अवधि समाप्त होने के उपरांत अब ब्यूरोक्रेट्स की घर वापसी आरंभ हो गई है। प्रदेश काडर की भारतीय पुलिस सेवा की अधिकारी एवं सिवनी में पुलिस अधीक्षक रहीं प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव को उनके मूल काडर में वापस भेज दिया गया है। गौरतलब होगा कि वे केंद्रीय विद्यालय संगठन में पांच सालों तक बतौर ज्वाईंट कमिश्नर पदस्थ रहीं थीं, उनका नाम सीबीएसई के अध्यक्ष के लिए भी जोर शोर से चलाया गया था।


जबर्दस्त खौफजदा हैं स्वाईन फ्लू से
मेिक्सको के रास्ते भारत आए स्वाईन फ्लू ने देशवासियों को खौफजदा कर रखा है। इलेक्ट्रानिक मीडिया ने लोगों की पेशानी पर पसीने की बूंदे छलका दी हैं। महानगरों में लोग अब भीड़भाड़ वाले इलाकों में जाने से बच रहे हैं। माल की रोनक घट गई है। यहां तक कि स्कूलों में भी जबरिया अवकाश घोषित कर दिए गए हैं। मुंबई में तो बाकायदा अनेक सिनेमाघरों में शो रद्द कर दिए गए हैं। मुंबई में होने वाला चार दिवसीय एनिमेशन फेस्टिवल 2009 भी स्थगित कर दिया गया है। इलेक्ट्रानिक मीडिया की चीख पुकार के बाद सरकार हरकत में आई और केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी को हस्ताक्षेप करते हुए मीडिया विशेषकर इलेक्ट्रानिक मीडिया से इस मसले में संयम बरतने की अपील की गई। सोनी की अपील कारगर साबित हुई और पिछले कुछ दिनों से इसका खौफ काफी हद तक कम दिखाई पड़ रहा है। सच ही है बेवजह तूल देकर मीडिया अगर किसी मामले को उछाले तो अफरा तफरी मचना स्वाभाविक ही है।


खत्म नहीं हुए भाजपा के बुरे दिन
आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की बुरी तरह भद्द पिटी है। इसके बाद भाजपा की बासी कढ़ी में फिर उबाल आने लगा है। भाजपा के नेता एक दूसरे पर लानत मलानत भेजने से नहीं चूक रहे हैं। भाजपा में अंदर ही अंदर यह सवाल जोर पकड़ने लगा था कि क्या कारण है कि भाजपा की दुर्गति के लिए जवाबदेह लोगों को दंडित करने के स्थान पर पुरूस्कृत किया जा रहा हैर्षोर्षो पार्टी के दूसरी और तीसरी पंक्ति के नेताओं ने बाकयदा पत्र लिखकर अपनी पीड़ा व्यक्त की थी। इतना ही नहीं पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने तो पार्टी के सभी पदों से त्यागपत्र तक दे दिया था। उस वक्त इस असंतोष को पाटने के लिए पार्टी हाईकमान ने इन सारे सवालों के जवाब ढूंढने के लिए चिंतन बैठक करने का फैसला किया था। बदले हालातों में असंतुष्ट नेताओं की तबियत इसको लेकर नासाज सी नजर आ रही है। अब वे कहने लगे हैं कि देश में सूखे और स्वाइन फ्लू का कहर है और भाजपा के नेताओं के शिमला में सर जोड़कर बैठने का क्या ओचित्य है, जबकि चुनावों में काफी समय है।


स्वाइन फ्लू का ममला पहुंचा सर्वोच्च न्यायालय
स्वाइन फ्लू का आतंक अब हर जगह कहर बरपा रहा है। एक वकील दिलीप अण्णासाहेब ने प्रधान न्यायधीश के.जी.बालकृष्णन की अध्यक्षता वाली पीठ में एक याचिका दायर की है, जिसमें जन्माष्टमी पर हांडी फोड़ और गणेशोत्व के कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। दिलीप ने कोर्ट से इसे आउट ऑफ टर्न सुनवाई का अनुरोध किया था। दिलीप का कहना था, कि इन उत्सवों में भीड़भाड़ सामान्य दिनों से कहीं अधिक रहा करती है, अत: स्वाइन फ्लू के वायरस तेजी से फैलने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है। खण्डपीठ ने इसे तत्काल सुनने से खारिज करते हुए कहा है कि याचिका पर सामान्य तय प्रक्रिया के तहत ही विचार संभव हो सकेगा।

कहां कराएं अधिवेशन, असमंजस में कांग्रेस
लोकसभा चुनावों में अप्रत्याशित सफलता पाने के उपरांत अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का एक दिनी अधिवेशन होने वाला है। पहले खबर थी कि राजीव गांधी के जन्मदिन पर 20 अगस्त को यह सम्मेलन मुंबई में होने की खबर थी,, किन्तु बाद में यह महज अटकल साबित हुई। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि मुंबई में भयावह बारिश और इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों के चलते इतना व्यापक आंदोलन मुंबई में कराना संभव प्रतीत नहीं हो रहा है। अब खबर है कि यह सम्मेलन देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में होगा। दिल्ली की निजाम शीला दीक्षित इन दिनों इस सम्मेलन की मेजबानी को लेकर काफी परेशान नजर आ रही हैं। इसका कारण यह है कि राष्ट्रमण्डल खेलों की तैयारियों के चलते दिल्ली के अधिकांश स्टेडियम की मरम्मत का काम चल रहा है। इसके साथ ही साथ ढाई तीन हजार आगंतुकों को ठहराने से लेकर खाने की व्यवस्था भी एक बड़ी चुनौति से कम नहीं है। बताते हैं कि शीला दीक्षित इस सम्मेलन को हरियाणा में कराने की जुगत में लगी हुईं हैं, ताकि उनके सर से यह बोझ उतरकर भूपेंद्र सिंह हुड्डा के माथे पर डाल दिया जाए।


बिना ताली के ही हो गया पीएम का संबोधन
हर राजनेता की एक दिली ख्वाईश होती है कि वह लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित अवश्य करे। नेहरू गांधी परिवार से इतर डॉ.मनमोहन सिंह पहले एसे कांग्रेसी प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने लगतार छटवीं मर्तबा यह सौभाग्य पाया है। शायद यह पहला मौका होगा जबकि किसी वजीरे आजम ने स्वतंत्रता दिवस पर अपने उद्बोधन में किसी भी तरह की कोई घोषणा नहीं की हो। पीएम के हाव भाव देखकर लग रहा था कि वे खासे दबाव में हैं। भारत में आतंकवाद फैलाने के लिए जवाबदार पाकिस्तान का उल्लेख डॉ.एम.एम.सिंह के भाषण में न होना भी घोर आश्चर्य का विषय था। इसी तरह देश को स्वाधीनता दिलाने वालों का भी उन्होंने नमन किया, किन्तु उन्होंने इसमें भी नेहरू और गांधी को ही तवज्जो दी। पीएम ने महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, इंंदिरा गांधी, राजीव गांधी के नामों का ही उल्लेख किया। आजादी के मतवाले सुभाष चंद बोस और सरदार भगत सिंह से उन्होंने कन्नी ही काट रखी थी। जब पीएम ने खाद्य सुरक्षा कानून का जिकर किया तब सामने बैठे स्कूली बच्चों ने आधे अधूरे मन से ही ताली बजाई।



पुच्छल तारा
शेरशाह सूरी के जमाने के प्रमुख मार्ग जो राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक सात और ग्रान्ट नेशनल रोड़ के नाम से जाना जाता है, का एक बड़ा भाग स्विर्णम चतुभुZज के उत्तर दक्षिण गलियारे का हिस्सा बन चुका है। इस मार्ग से कुछ हटकर केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ का संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा भी है, जो मध्य प्रदेश महाराष्ट्र सीमा पर अवस्थित है। वर्तमान में यह मार्ग मध्य प्रदेश के सिवनी जिले से होकर गुजरना प्रस्तावित है। कुछ ताकतें इसे सिवनी के बजाए छिंदवाड़ा से होकर ले जाने पर आमदा हैं। एसे में सिवनी जिले के उत्साही नौजवान संजय तिवारी और भोजराज मदने के प्रयासों से गठित हुआ है ``जनमंच``। जनमंच के बेनर तले यह प्रयास जारी है कि इसे सिवनी से ही यथावत रखा जाए। इस हेतु जनमंच के कुछ सदस्य सर्वोच्च न्यायालय में हस्ताक्षेपकर्ता बनने की गरज से अपनी दूसरी दिल्ली यात्रा पर हैं। सिवनी वासी इन युवाओं के खासे शुक्रगुजार होंगे क्योंकि वे सभी सदस्य अपने स्वयं के व्यय पर दिल्ली जाकर एक ऐसे वकील को खोजने में सफल रहे हैं, जो बिना किसी मेहनताने के पूरा केस लड़ने को तैयार है। जनमंच अपने इस मिशन में कामयाब हो यह दुआ हर सिवनी वासी के दिल से निश्चित तौर पर निकल ही रही होगी।

16 AUGEST 2009

आलेख 16 अगस्त 2009

हिन्दी आजाद भारत की राष्ट्रभाषा है ममता जी,

(लिमटी खरे)

भारत की आजादी की 62 वीं वर्षगांठ पर भी हम आत्मनिर्भर न हो पाए हों तो आश्चर्य की बात है। 62 सालों के बाद एक बच्चा वृद्ध हो जाता है, और तो और सरकार भी 62 साल में अपने कर्मचारी को सेवानिवृत्त भी कर देती है। 62 साल का समय कम नहीं होता है।इन 62 सालों में हम देश की करंसी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं दिला सके, हिन्दी को राष्ट्रभाषा नहीं बना सके। आज भी लोग मन से हिन्दी बोलने में शरम महसूस ही करते हैं। क्षेत्रों में हिन्दी के बजाए अंग्रेजी को ही लोग अधिक महत्व देते हैं। हालात देखकर कभी कभी लगने लगता है कि कहीं अंग्रेजी तो हमारी मातृ भाषा नहींर्षोर्षो वैसे भी आज औसत आयु 60 ही मानी जा रही है, फिर 62 सालों के बाद भी हिन्दी की चिंदी इस तरह उड़ाई जा रही है।हमारे देश में भी मीडिया ने हिन्दी के बजाए हिंगलिश (हिन्दी और अंग्रेजी का मिला जुला स्वरूप) को अंगीकार कर लिया है। अभी कुछ दिनों पहले फ्रांस ने एक सर्कुलर जारी कर फ्रांसिसी भाषा के अखबारों को ताकीद किया था कि अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग निश्चित प्रतिशत से ज्यादा न करे। विडम्बना ही कही जाएगी कि हिन्दुस्तान में हिन्दी के संरक्षण के लिए सरकार के प्रयास नाकाफी ही हैं।देश के कमोबेश हर बड़ी परीक्षाएं अंग्रेजी माध्यम में ही संचालित होती हैं। यहां तक कि सर्वोच्च न्यायलय और देश की सबसे बड़ी पंचायत अर्थात संसद में भी अंग्रेजी का खासा बोलबाला है। देश के महामहिम राष्ट्रपति हों या प्रधानमंत्री सभी देश को संबोधित करते हैं, अंग्रेजी भाषा को ही प्रमुखता देते हैं।हिन्दी भाषी राज्यों से हटकर अन्य राज्यों में सूचना पटल या अन्य उदघोषणाएं भी या तो क्षेत्रीय भाषा में होतीं हैं, या फिर अंग्रेजी में। अधिकतर कांप्टीटिव एक्जाम्स का माध्यम अंग्रेजी ही होता है। क्या यही हैं हमारे द्वारा छ: दशकों में चुनी गई सरकारों की प्रतिबद्धताएं!अभी हाल ही में खबर है कि भारतीय रेल भी अंग्रेजी को ही अंगीकार करने जा रही है। कहा जा रहा है कि रेल मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण महकमे को संभालने के बाद ममता बनर्जी ने एक फरमान जारी किया है कि रेल्वे की परीक्षाएं या तो अंग्रेजी में संचालित की जाएं या फिर क्षेत्रीय भाषाओं में।अख्खड़पन, मनमानी और व्यक्तिवादिता के लिए मशहूर ममता बनर्जी देश की राष्ट्रभाषा के साथ संवैधानिक रूप से छेड़छाड़ करना चाह रही हैं, जो निंदनीय है। ममता बनर्जी को अपनी इस अवैध मंशा को लागू कराने के लिए मंत्रीमण्डल की बैठक (केबनेट) में इसे लाना होगा।इसके बाद बारी आएगी संसद की, फिर देश की अदालतें खुलीं हैं। कुल मिलाकर ममता अपनी मर्जी को आसानी से अमली जामा नहीं पहना सकती हैं। सवाल यह उठता है कि आखिर ममता बनर्जी के दिमाग में इस तरह का ख्याल कौंधा भी तो कैसेर्षोर्षो ममता बनर्जी ने अपने इस फरमान को अमली जामा पहनाने के लिए बाकायदा एक समिति का गठन भी कर दिया है, जो अपने प्रतिवेदन के साथ रेल मंत्री के अनुमोदन के उपरांत इसे लागू करने की कवायद में जुट जाएगी।हिन्दी अंग्रेजी के साथ ही साथ संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान पा चुकी क्षेत्रीय भाषाओं में परीक्षा कराने से कोई रोक नही रहा है, पर यह हमारे देश की राष्ट्रभाषा की अस्मत का सवाल है। अभी लोग क्षेत्रीयता को लेकर तरह तरह के जहर उगल रहे हैं। शुक्र है कि भाषा विवाद अभी शांत है, ममता बनर्जी का यह प्रयास भाषा विवाद को जन्म देकर एक नया बखेड़ा खड़ा करेगा।क्षेत्रीय भाषाओं को तरजीह देने की बात समझ में आती है, किन्तु हिन्दी के बजाए अंग्रेजी को महत्व देना समझ से परे ही है। सवाल यह उठता है कि हिन्दी हमारी राष्ट्रभाष है, फिर हिन्दी की इस तरह दुर्दशा कोई कैसे कर सकता है। क्षेत्रीय भाषाओं को निश्चित तौर पर बढ़ावा मिलना चाहिए, किन्तु हिन्दी जो कि राष्ट्रभाषा है की इस तरह उपेक्षा करना संभव नहीं है, यह असंवेधानिक करार दिया जा सकता है, किन्तु आजाद भारत में वर्तमान परिस्थितियों में देश के नीति निर्धारक अपने अपने फायदों के लिए कानून की व्याख्या अपने हिसाब से करने में माहिर हैं।वर्तमान में रेल्वे की ग्रुप डी की परीक्षाएं हिन्दी, अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं में होती हैं। ग्रुप सी की परीक्षाएं अंग्रेजी और हिन्दी में करवाई जाती हैं। ग्रुप सी में क्षेत्रीय भाषा को जोड़ने की मांग लंबे अरसे से की जा रही थी। क्षेेत्रीय भाषा को इसमें शामिल करने में कोई असहमत नहीं था, किन्तु जैसे ही हिन्दी को इससे प्रथक करने की बात आई वैसे ही खलबली मचना स्वाभाविक ही है।कितने आश्चर्य की बात है कि आजाद हिन्दुस्तान में जहां राजभाषा के विकास के लिए गृह मंत्रालय के अधीन अलग से राजभाषा विकास विभाग की स्थापना की है। आफीशियल लेंग्वेज को प्रोत्साहन देने के लिए केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय एक तरफ पूरा जोर लगा रहा है, वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार की रेल मंत्री द्वारा इस मुहिम पर पानी फेरने की कवायद की जा रही है।प्रधानमंत्री को चाहिए कि अगर उनके अधीनस्थ कोई मंत्रालय इस तरह राष्ट्र की संपत्ति के साथ खिलवाड़ करता है तो उसे चेतावनी देकर इस तरह की परिपाटी को तत्काल रोकें। साथ ही साथ सरकार यह भी सुनिश्चित करे कि कोई भी सरकारी नुमाईंदा संविधान के साथ छेड़छाड़ की बात भी मन में न लाए, वरना आने वाले समय में संविधान की धज्जियां उड़ती नजर आएंगी।

गुरुवार, 13 अगस्त 2009

आलेख 13 अगस्त 2009

हर वर्ग में लोकप्रिय हो चुका है ब्लाग

(लिमटी खरे)

भारत में अस्सी के दशक में इंटरनेट की कल्पना करना बेमानी ही समझा जाता था। आज इंटरनेट का जादू लोगों के सर चढ़कर बोल रहा है। इंटरनेट पर सूचनाओं का आदान प्रदान जिस दु्रत गति से हो रहा है, उसे देखकर लगने लगा है कि बमुश्किल पांच सालों में देश का हर गांव इंटरनेट की पहुंच में होगा।इंटरनेट पर वेब साईट्स का निर्माण काफी कठिन समझा जाता था, इसके लिए वेब स्पेस किराए पर लेना होता है। वर्तमान में वेब साईट का निर्माण या संचालन बहुत बड़ी बात नहीं रह गई है। जो लोग वेब स्पेस किराए पर नहीं ले सकते हैं, उनकी सुविधा के लिए है ``ब्लाग``।ब्लाग में आप अपने विचारों को रखकर दुनिया भर के लोगों के सामने परोस सकते हैं। सेलीब्रिटीज के ब्लाग जब तब चर्चा का केंद्र बने रहते हैं। इन सेलीब्रिटीज की देखादेखी आम भारतीय ने भी अपने अपने ब्लाग आरंभ कर दिए हैं। ब्लाग को अस्तित्व में आए दस साल पूरे हो गए हैं।इतिहास खंगालने पर ज्ञात होता है कि 1999 में पहली मर्तबा पीटर मरहोल्ज की निजी वेब साईट पर ब्लाग शब्द का प्रयोग पहली बार हुआ था। सेन फ्रांसिस्को पायरा लैब्स ने ब्लागिंग का सार्वजनिक मंच ब्लागर की शुरूआत की। अमेरिका के एक इंटरनेट प्रोग्रामर जोसफ िफ्रट्जपैट्रिक ने अपनी मित्रमण्डली को ताजा गतिविधियों से एक दूसरे को रूबरू रखने के लिए लाईवजर्नल नामक ब्लाग होस्टिंग सेवा की शुरूआत की।साल दर साल प्रगति के सौपान गठने वाले ब्लाग ने कई सफर तय किए हैं। 2002 में दुनिया के चौधरी कहे जाने वाले अमेरिका के राजनयिकों ने अपने संस्मरणों को सार्वजनिक करना आरंभ किया वह भी ब्लाग के माध्यम से। यहां इंस्टापंडित और द डेली डिश के नाम से दो ब्लाग आरंभ हुए जिनमें अमेरिका के लोकप्रिय राजनेताओं ने अपने संस्मरण दर्ज करवाए।इसके उपरांत 2003 में इंटरनेट का किंग बन चुका सर्च इंजन गूगल ने ब्लॉगर का अधिगृहण कर लिया। रेडिफ ने भी ब्लागिंग सेवा आरंभ कर दी। इराक पर अमेरिका के हमले की खबरें जब ब्लाग के माध्यम से सार्वजनिक हुईं तो यह लोगों के बीच चर्चा और कोतुहल का विषय बन गइंZ।इसके बाद 2004 के अंत में आए सुनामी तूफान के दौरान ब्लाग खबरों के स्त्रोत का प्रमुख जरिया बन गया था। ``सी - ईट`` जैसे ब्लाग ने संचार व्यवस्था भंग हो जाने पर प्रभावित इलाकों से आए संदेशों को प्रकाशित करने का नेक काम किया, और इसी के साथ ये राहत बचाव दल तथा मीडिया के लिए ताजा जानकारियों के महत्वपूर्ण स्त्रोत बनकर उभरे। इसी साल ब्लाग शब्द मरियम वेबस्टर डिक्शनरी में स्थान पा चुका था।इंटरनेट का अखबार माना जाने वाला न्यूज ब्लॉग ``द हफिंग्टन पोस्ट`` 2005 में अस्तित्व में आया। भारतीय ब्लागरों ने कश्मीर में आए 2005 के भूकंप के बाद बचाव और राहत सामग्री उपलब्ध कराने की गरज से 26 अक्टूबर 2005 को `ब्लाग क्वेक डे` की शुरूआत की।11 जुलाई 2006 को मुंबई ट्रेेन बम धमाकों के बाद भारत सरकार ने कुछ ब्लागों पर रोक लगा दी थी। सरकार का मानना था कि उन ब्लागोेें के माध्यम से जनता के बीच नफरत और उन्माद फैलाने वाली भावनाओं को उकेरा जा रहा था। इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को ब्लागस्पाट डॉट काम और टाईपपैड डॉट काम के पूरे डोमेन को ही ब्लाक करने का फरमान जारी कर दिया गया था, कालांतर में यह प्रतिबंध हटा दिया गया था।वैसे ब्लॉग की शुरूआत इंटरनेट की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है, क्योंकि इसके माध्यम से सूचनाओ का आदान प्रदान जिस उन्मुक्त तरीके से सीधे सीधे आसानी से हो पाता है, वह किसी और तरीके से संभव प्रतीत नहीं होता है। इससे आप अपने बचपन की सहेजी यादें, जवानी की कारगुजारियां, प्रोढ़ावस्था के अनुभव और बुढ़ापे की खट्टी मीठी यादों को सबके बीच सहजता से परोस सकते हैं।संचार क्रांति के इस युग में जिस तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं, उसे देखकर भविष्य में क्या रोमांच हो जाए कहा नहीं जा सकता है। ब्लॉग ने अपने दस सालों के इस सफर में जिस तेजी से लोकप्रियता की पायदानें चढ़ीं हैं, उसे देखकर यह कहना गलत नही होगा कि आने वाले समय में ब्लाग का जादू हर हिन्दुस्तानी के सर चढ़कर बोलेगा।
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युवाओं पर खासा जोर लगा रहे हैं युवराज

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस की नजर में देश के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी का ध्यान युवाओं की तरफ ज्यादा दिखाई पड़ रहा है। कांग्रेस को मजबूत करने की गरज से अब कांग्रेस के युवराज छात्र राजनीत में भी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। राजधानी दिल्ली में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनावों पर राहुल बारीक नजर रखे हुए हैं।उमर दराज कांग्रेसियों की बेसाखी के बजाए राहुल की पसंद युवा शक्ति दिख रही है। यही कारण है कि मंत्रीमण्डल में भी उन्होंने युवाओं की ज्यादा से ज्यादा भागीदारी सुनिश्चित करने की कोशिश की थी। राहुल गांधी चाहते हैं कि 21वीं सदी का भारत युवाओं का भारत हो।राहुल गांधी के करीबी सूत्रों का दावा है कि उमर दराज नेताओं की ``पावर टेक्टिस`` राजनीति से वे आजिज आ चुके हैं। यही कारण है कि राहुल गांधी युवाओं को आगे लाकर भारत को युवा बनाने की तैयारियों में पूरी तरह जुट गए हैं। देश भर में टेलेंट सर्च इसकी की एक कड़ी माना जा रहा है।सूत्रों ने यह भी बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई) की जीत सुनिश्चित करने की जवाबदेही राहुल गांधी ने केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस महासचिव मुकुल वासनिक के कांधों पर डाल दी है। गौरतलब होगा कि कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी भी इन चुनावों में खासी दिलचस्पी लेतीं हैं। यही कारण है कि जीत के तुरंत बाद एनएसयूआई के पदाधिकारी सीधे सोनिया गांधी के दरबार में जाते हैं।राहुल के करीब सूत्र यह भी बताते हैं कि पिछली मर्तबा इसके अध्यक्ष का पद कांग्रेस के हाथ से निकल जाने को लेकर कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी खासे खफा हैं, एवं इस बार वे कोेई चांस लेने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। वैसे भी युवाओं को लुभाने के लिए युवक कांग्रेस द्वारा इसी माह से ``यूथ मार्च`` के नाम से एक मुखपत्र का आरंभ किया जा रहा है।वैसे चौक चौराहों पर राहुल गांधी के विजन को लेकर चर्चाएं आम हो चुकी हैं। पढे लिखे युवा चिकित्सक, इंजीनिर, प्रबंधक, पत्रकार आदि हर वर्ग के लोग राहुल गांधी के जज्बे पर सहमत होते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस में युवाओं की सदस्य संख्या का आंकड़ा दो करोड़ को छूने वाला है।

बुधवार, 12 अगस्त 2009

आलेख 12 अगस्त 2009


किस बात का चिंतन करने जा रही है भाजपा!

(लिमटी खरे)

लगभग तीस साल पुरानी भारतीय जनता पार्टी के सामने वर्तमान में चुनौतियों के अंबार लगे हुए हैं। कभी काडर बेस्ड सबसे अनुशासित पार्टी समझी जाने वाली भाजपा में इन दिनों अनुशासन तार तार हो चुका है। पार्टी के अंदर ओर बाहर नेतृत्व सहित अनेक मुद्दों पर अनेक धड़ों में बंटी पार्टी में घमासन मचा हुआ है।यह सच है कि जिस तरीके से सुनोजित षणयंत्र के तहत उज्जवल छवि के धनी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी को दरकिनार कर चतुर सुजान लाल कृष्ण आड़वाणी द्वारा अपने आप को भाजपा और राजग का सर्वमान्य ``पीएम इन वेटिंग`` घोषित करवा लिया था, उसे देखकर लगने लगा था कि आड़वाणी के भरोसे राजग की वेतरणी शायद ही पार हो सके।लोकसभा चुनावों में औंधे मुंह गिरी भाजपा अभी भी हताशा से अब तक उबर नहीं सकी है। मुश्किल तमाम भाजपा की चिंतन बैठक का स्थान तय किया जा सका। शिमला में अगले सप्ताह होने वाली चिंतन बैठक में वैसे तो हार के कारणों पर प्रकाश डालते हुए भविष्य की रणनीति ही बनाई जाएगी।वैसे 30 वषीZय भाजपा के इतिहास में पहला एसा मौका होगा जबकि पार्टी की अिग्रम पंक्ति के नेता इस कदर लाचार और निरीह नजर आ रहे हैं। पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी भाजपा को उसके हाल पर ही छोड़ने का उपक्रम आरंभ कर दिया है। 1984 में लोकसभा में महज दो सीटें जीतने के बाद भी भाजपा इतनी निस्तेज नजर नहीं आई जितनी कि वर्तमान में दिख रही है।राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के सामने चुनौतियां ही चुनौतियां हैं। भाजपा के भविष्य के मार्ग शूल से अटे पड़े हैं। गुटबाजी, अनुशासनहीनता, कहल के साथ ही धड़ों में बंटा नेतृत्व भाजपा की प्रमुख चुनौतियों में शामिल है। कुल मिलाकर भाजपा लोकसभा चुनाव में पराजय के कारणों पर विस्तार से चर्चा करने से कतरा ही रही है।एक समय में अनुशासन के लिए विरोधी दलों से स्तुतिगान गववाने वाली भाजपा अब अन्य दलोें की ही तरह अनुशासनहीनता के उस मुकाम तक पहुंच चुकी है, जहां अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए अपनी ही पार्टी के अन्य नेताओं की गिरेबां पकड़ने, उन पर कीचड़ उछालने, उन की छीछालेदर करने से परहेज नहीं किया जाता है।अभी लोगों की स्मृति से वह दृश्य विस्मृत नहीं हुआ होगा, जबकि पार्टी की ही बैठक में तत्कालीन भाजपा नेत्री उमाश्री भारती ने इसी सब के लिए पार्टी के नेताओं को जिम्मेदार बताया था। इतना ही नहीं खुद पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी नेताओं के बड़ाबेलेपन से आजिज आ चुके हैं।पार्टी के इस चिंतन शिविर के एजेंडे में निश्चित तौर पर भविष्य की रणनीति तो होगी ही। भाजपा का मजबूत होना सिर्फ भाजपा ही नहीं देश के लिए भी आवश्यक है। पिछले दो दशकों में देश के राजनैतिक परिदृश्य से साफ हो गया है कि देश में सिर्फ कांग्रेस और भाजपा ही एसे राजनैतिक दल हैं, जिन्हें राष्ट्रीय दल के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है। शेष राजनैतिक दल भी इन्हीं की गणेश परिक्रमा में जुटे रहते हैं।वैसे भी लोकतंत्र में दमदार विपक्ष होना अत्यावश्यक है। जय प्रकाश नारायण रहे हों या राम मनोहर लोहिया, इनके सामने विपक्षी दलों द्वारा कमजोर प्रत्याशी को ही मैदान में उतारा जाता रहा है, इसका कारण यह था कि जवाहर लाल नेहरू या इंदिरा गांधी सरीखे कद्दावर नेता भी यह नहीं चाहते थे कि वे सत्ता के मद में चूर होकर बेलगाम हो जाएं। वर्तमान समय में राजनेताओं ने सारी वर्जनाएं तोड़ कर रख दी हैं।सची ही है अगर विपक्ष मजबूत होगा तो सरकार पर अंकुुश अपने आप ही लग जाता है। विडम्बना ही कही जाएगी कि परस्पर विरोधी राजनैतिक दलों के सदस्य होने के बाद भी राजनेताओं द्वारा अंडर टेबिल हाथ मिलाकर देश को पतन के मार्ग पर ढकेला जा रहा है, जो चिंता का विषय है।भाजपा के अपने लिए ही नहीं वरन देश के लिए एक बार फिर अपने पैरों के नीचे जमीन लाना जरूरी है। भाजपा को आज आवश्यक्ता आत्मावलोकन की है। जिन सिद्धांतों और उद्देश्यों को लेकर भाजपा की स्थापना की गई थी, वे आज की कार्यप्रणाली में कहीं परिलक्षित होते नहीं दिख रहे हैं।जिन मुद्दों को लेकर पार्टी ने जनता जनार्दश का विश्वास हासिल कर उनके बीच पैठ बनाई थी, आज जब भाजपा ने ही उन मुद्दों को भुला दिया तो जनता ने भी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। पार्टी ने लोकसभा चुनावों के पूर्व जिस तरह से अटल बिहारी बाजपेयी को पाश्र्व में ढकेला था वह बेहद आश्चर्यजनक ही माना जा सकता है। इसके बाद 7 रेसकोर्स रोड़ (प्रधानमंत्री के सरकारी आवास) पर कब्जा बनाने की चाह में आड़वाणी ने सभी को बाहुपाश में ले लिया था।आज आवश्यक्ता इस बात की है कि पार्टी के नेता सेवा भाव को अपनाएं न कि स्वयंसिद्धि के मार्ग को। पार्टी के शीर्ष नेताओं को चाहिए कि रेवड़ी बांटने की परंपरा बंद कर अपने पराए का भेद मिटाए, और इस चिंतन बैठक के बहाने ही हार के कारणों पर चर्चा कर एक सकारात्मक एजेंडा तैयार करे, ताकि भाजपा को संजीवनी मिल सके।

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संघ ने तैयार किया भविष्य की भाजपा का खांका

0 संघ फिर कसने लगा है भाजपा की मुश्कें

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। पिछले कुछ सालों से अपने मूल मार्ग से भटक चुकी भारतीय जनता पार्टी को पटरी पर लाने के लिए अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भाजपा पर अपना नियंत्रण बढ़ा दिया है। आलम यह है कि दिल्ली आने वाले भाजपा नेता भाजपा मुख्यालय के बजाए संघ के मुख्यालय ``केशव कुंज`` की देहरी अधिक चूमते नजर आते हैं।आम चुनावों में भाजपा के प्रदर्शन से बुरी तरह खफा संघ नेतृत्व, चुनावों की पराजय में आरोप प्रत्यारोपों से खासा आहत नजर आ रहा है। मुख्य धारा से लगभग भटक चुकी भाजपा को राह पर लाने के लिए अब संघ ने भाजपा में अपनी दखल तेजी से बढ़ा दी है।गौरतलब होगा कि हाल ही में संपन्न हुए राज्य सभा के चुनावों में प्रत्याशी तय करने में संघ की भूमिका काफी हद तक महात्वपूर्ण रही है। भले ही संघ का कोई प्रतिनिधि भाजपा की चिंतन बैठक में शिरकत न कर रहा हो किन्तु इस बैठक पर संघ की पूरी नजर है। सूत्र बताते हैं कि ``भविष्य की भाजपा`` रणनीति तैयार कर ली है।सूत्रों की मानें तो चिंतन बैठक में आमंत्रितों की सूची संघ पृष्ठभूमि वाले भाजपा के संगठन मंत्री रामलाल द्वारा तैयार की जा रही है। अंतिम रूप देने के पहले यह संघ की नजरों से अवश्य गुजारी जाएगी ताकि आमंत्रितों में कोई गलत नेता शामिल न हो सके और कोई विश्वस्त छूट न सके।ज्ञातव्य है कि पिछले लगभग डेढ़ दशक में संघ ने अपना नियंत्रण भाजपा से लगभग हटा ही लिया था। इसी बीच संयोग से भाजपा शीर्ष पर पहुंच गई थी। इस दौर में भाजपा के फैसले संघ के बजाए अटल आड़वाणी की जुगल जोड़ी लिया करती थी। इस समय संघ की ओर से परोक्ष रूप से इस जोड़ी को फैसले लेने फ्री हेण्ड दिया गया था।इसके उपरांत संघ में भी शीर्ष स्तर पर बदलाव हुए। नई सोच के अगुआ के आने से भाजपा पर अंकुश लगाना आरंभ किया गया है। इसके साथ ही साथ भाजपा की स्वतंत्रता के दिन भी समाप्त होते नजर आ रहे हैं। जिन्ना प्रकरण से कमजोर हुए आड़वाणी की पकड़ भाजपा में बुरी तरह कमजोर हो गई, भाजपा आम चुनावों में धड़ाम से गिर गई, भाजपा के निजाम राजनाथ भी एक कदम बिना संध की सलाह के आगे नहीं बढ़ाते हैं।संघ के कदमतालों से भाजपा के राज्यों के क्षत्रप भी भविष्य की रणनीति तैयार करने माहौल को भांपने लगे हैं। राज्यों से दिल्ली आने वाले भाजपा नेता अब भाजपा के राष्ट्रीय मुख्यालय 11 अशोक रोड़ के साथ ही साथ संघ के दिल्ली के झंडेवालान स्थित मुख्यालय ``केशव कुंज`` में अपनी आमद देने लगे हैं।

सोमवार, 10 अगस्त 2009

11 AUGEST 2009

आलेख 11 अगस्त 2009

कितनी दूर जाएगी लेडील स्पेशल

(लिमटी खरे)

केंद्रीय रेल मंंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने महिला होने के नाते अपनी बिरादरी के लिए ``लेड़ीज स्पेशल`` का तोहफा दिया है, जिसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम होगी। यह सुविधा महानगरों के इर्द गिर्द रहने वाली महिलाओं को अपने कार्यस्थल आने जाने के सुरक्षित मार्ग प्रशस्त करेगी, मगर ममता बनर्जी शायद यह भूल गईं कि सूचे देश में महिलाएं हैं, जो रोजाना अपने घरों से दूर अपने कार्यस्थल पर आती जाती हैं, उन्हें भी सुरक्षा की दरकार है।
रक्षा बन्धन के पावन पर्व पर दिल्ली से चलाई गई महिला स्पेशल ट्रेन निश्चित तौर पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की महिलाओं के लिए किसी अनमोल तोहफे से कम नहीं कही जा सकती है। कामकाजी महिलाओं के लिए सुरक्षित परिवहन के साधन मुहैया करवाकर ममता बनर्जी ने अपने नाम के अनुसार महिलाओं के प्रति अपनी ममता को जाहिर कर दिया है।
वैसे महिलाओं के लिए रेल का सफर आज भी किसी चुनौति से कम नहीं माना जा सकता है। महिलाओं की सुरक्षा और सुविधा को दृष्टिगत रखकर किए गए इस फैसले से महिला जगत में खुशी की लहर दौड़ जाना स्वाभाविक ही है। देर आयद दुरूस्त आयद की तर्ज पर ही सही इस कदम का सभी को खुले दिल से स्वागत किया जाना चाहिए। यद्यपि यह सुविधा अभी चंद मार्गों पर ही लागू की गई है, उम्मीद की जानी चाहिए कि केंद्र सरकार जल्द ही कोई ठोस कार्ययोजना बनाकर इसे समूचे देश में लागू करेगी।
वैसे अभी ज्यादा समय नहीं बीता है, और प्रोढ़ हो चुकी पीढ़ी के मन मस्तिष्क से यह बात विस्मृत नहीं हुई होगी कि हमारे देश में संस्कृति के हिसाब से अस्सी के दशक के आरंभ से पहले बालक और बालिकाओं के लिए पृथक स्कूल ही श्रेष्ठ माने जाते रहे हैं। कोएड शिक्षा पाश्चात संस्कृति की विष्टा कही जा सकती है, क्योंकि इसके फायदे कम नुकसान ज्यादा ही सामने आए हैं।
युवा होते बालक बालिकाओं में शारीरिक परिवर्तन प्राकृतिक ही है। इसमें नया कुछ नहीं है। किन्तु विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण ने शालाओं को गंदगी से सराबोर कर दिया है। संचार क्रांति के युग में अश्लील एसएमएस और एमएमएस आज मोबाईल की शोभा बने हुए हैं। यह देश में सांस्कृतिक हास माना जा सकता है।
देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली के पुराने शहर में दिल्ली गेट के पास एक अनूठा बाजार बनाया जा रहा है, जो सिर्फ महिलाओें के लिए ही होगा। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में भी एक पार्क की अवधारणा स्थानीय शासन मंत्री बाबू लाल गौर के दिमाग में आई है, जहां सिर्फ महिलाएं ही प्रवेश पा सकेंगी।
पुरूष प्रधान भारतीय संस्कृति में महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने के सरकारी दावे कितने सच्चे हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं है। देश में आजादी से अब तक स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी ही अकेली महिला प्रधानमंत्री रही हैं। इतना ही नहीं वर्तमान महामहिम राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल देश की पहली महिला राष्ट्राध्यक्ष और मीरा कुमार देश की पहली महिला लोकसभाध्यक्ष हैं।
महानगरों के अलावा छोटे शहरों में कामकाजी महिलाएं विशेषकर शिक्षिका या नर्स जब लदी फदी जीप, बस, या अन्य साधनों से अपने कार्यस्थल पर जाती हैं, तो वे किस कदर की परेशानी और जिल्लत का सामना करती हैं, यह बात वे ही बता सकतीं हैं। परिवहन के साधनों में महिलाओं को उनके पुरूष सहयात्री खा जाने वाली निगाहों से ही देखा करते हैं।
यहां हम भाजपा नेता अरूण शोरी के लेख की उस लाईन का जिकर जरूर करना चाहेंगे जिसे उन्होंने विशुद्ध पत्रकार रहते हुए लिखी थी, कि हम दूसरे की मां बहनों को देखते समय यह भूल जाते हैं, कि जब हमारी मां बहने सड़कों पर निकलती होंगी तो वे भी किसी के लिए ``माल`` ही बन जाती होंगी।
जहां तक परिवहन साधनों का सवाल है, तो साफ है कि महिलाओं के लिए सुरक्षित परिवहन साधनों का जबर्दस्त अभाव है। थ्री व्हीलर पर सफर करना महिलाओं को बहुत असुरक्षित लगता है। बस, रेल, टेक्सी आदि में भी महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और अभद्रता करना हमारे भद्र समाज के पुरूषों का पुराना शगल रहा है।
ममता बनर्जी की महिला स्पेशल वाली इस सोच के लिए वे नि:संदेह बधाई की पात्र हैं। वैसे भारतीय रेल को चाहिए कि अपने नेटवर्क के अंतर्गत आने वाले शहरों मेें कामकाजी महिलाओं के लिए अलग रेल चलाना अगर वर्तमान में संभव नहीं हो तो कम से कम कुछ कूपे तो महिलाओं के लिए आरक्षित किए ही जा सकते हैं।
इसके साथ ही साथ राज्य सरकारों का भी यह दायित्व बनता है कि उनके सूबों में चल रहे सरकारी और निजी परिवहन साधनों में महिलाओं के लिए प्रथमिकता और सुरक्षा मुहैया कराने अपनी प्रतिबद्धता का पालन कड़ाई से सुरक्षित करें। सूबे के निजाम यह न भूलें कि उनको जन्म देने वाली भी एक महिला ही थी, और उसकी कलाई पर राखी बांधने वाली एक महिला ही है, साथ ही उनके बच्चों की मां भी एक महिला ही है।
यह अलहदा बात है कि जब केंद्र या राज्य में पद पा जाने के बाद उनकी माता बहन और अर्धांग्नी अब आम जनता की सवारी का उपयोग नहीं ही करती होंगी किन्तु आम जनता में महिलाओं की तादाद बहुत ज्यादा है, जो अपने देश और राज्य के शासक से अपनी सुरक्षा की गुहार जरूर लगा रही है।

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अनेक मंत्रियों को साईज में लाने की तैयारी

0 मंत्रीमण्डल विस्तार जल्द

0 ममता की बरगेनिंग के सामने झुक सकती हैं सोनिया

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। संसद के मौजूदा सत्र के अवसान के बाद अब देश की राजनैतिक राजधानी की फिजां में इस बात को लेकर गहमागहमी मची हुई है कि जल्द ही होने वाले केबनेट विसतार में किस किस मंत्री का कद कम किया जा सकता है। वैसे एक से अधिक मंत्रालय संभालने वाले मंत्रियों से उनके अतिरिक्त विभाग छीने जा सकते हैं।
अगले साल पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनावों के मद्देनजर त्रणमूल कांग्रेस चीफ ममता बनर्जी सरकार पर मंत्रियों की संख्या बढ़ाने का दवाब बनाए हुए है। प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों का दावा है कि ममता इस विस्तार में अपने विश्वस्त सुदीप बंदोपाध्याय को मंत्री बनवाने में सफल हो सकतीं हैं। प्रधानमंत्री और कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी ने इस बारे में सैद्धांतिक सहमति दे दी है।
सूत्रों ने यह भी बताया कि ममता बनर्जी चाह रहीं हैं कि सुदीप को न केवल स्वतंत्र प्रभार वाला राज्यमंत्री बनाया जाए, वरन त्रणमूल के खाते में इस्पात या उद्योग मंत्रालय और आ जाए। वर्तमान में उद्योग मंत्रालय आनंद शर्मा के पास तो इस्पात हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पास है।
कहा जा रहा है कि आनंद शर्मा के अलावा सी.पी.जोशी, कुमारी सैलजा, प्रथ्वीराज चौव्हाण, सलमान खुशीZद श्रीप्रकाश जैसवाल, के.वी.थामस जैसे मंत्री जिनके पास एक से अधिक विभाग हैं, के पास से एक एक मंत्रालय छीना जा सकता है। अल्पसंख्यक मंत्रालय के लिए बिहार के इकलौते संसद सदस्य मौलाना इसराउल हक का नाम तेजी से उभरकर सामने आया है।

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सुषमा बन सकती हैं सोनिया की काट

0 भाजपा प्रमुख के पद पर सुषमा स्वराज की दावेदारी प्रबल

0 संघ नेतृत्व के पास है भविष्य की चाबी

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। तू डाल डाल मैं पात पात की तर्ज पर अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पदचिन्हों को देख भारतीय जनता पार्टी अपने भविष्य के रोड़मेप बनाने की जुगत में जुट गई है। दस साल से कांग्रेस सुप्रीमों बनी ताकतवर महिला सोनिया गांधी की काट के रूप में अब सुषमा स्वराज को भाजपा में अध्यक्ष बनाने की मुहिम छेड़ी गई है।
गौरतलब होगा कि इस साल के अंत में भाजपा में संगठनात्मक चुनाव होना है, जिसमें भाजपा के नए मुखिया का चयन किया जाएगा। कदमताल देखकर साफ होने लगा है कि राजनाथ सिंह को अब सेवावृद्धि मिलने की संभावनाएं बहुत ही कम हैं। वैसे भी राजनाथ के कार्यकाल से न तो भाजपा खुश है और न ही संघ।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि संघ परिवार में अगले भाजपा अध्यक्ष को लेकर रस्साकशी और लामबंदी चरम पर आ गई है। भाजपाध्यक्ष के लिए जो नाम अभी वजनदारी के साथ सामने आए हैं, उनमें सुषमा स्वराज के अलावा पूर्व अध्यक्ष डॉ.मुरली मनोहर जोशी, अरूण जेतली और वरिष्ठ उपाध्यक्ष बाला साहेब आप्टे के नाम प्रमुख हैं।
संघ के सूत्रों के अनुसार संघ प्रमुख मोहन भागवत की नजरों में अध्यक्ष के लिए पहली पसंद मुरली मनोहर जोशी ही हैं, उनके विकल्प के तौर पर सुषमा स्वराज के नाम पर वे तैयार हो सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक आम चुनावों में मुंह की खा चुके ``पी एम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी`` को संघ इस मामले में फ्री हेण्ड देने के मूड में दिखाई नहीं दे रहा है।
संघ परिवार में चल रही चर्चाओं के अनुसार भाजपा के एक धड़े द्वारा संघ के आला नेताओं को यह समझाने का प्रयास भी किया जा रहा है कि सुषमा स्वराज पूर्व में कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को दक्षिण भारत की वेल्लारी सीट पर चुनौती दे चुकी हैं। इसके अलावा महिला को अध्यक्ष बनाने से देश भर में महिलाओं में एक अच्छा संदेश जाएगा।
वैसे भी सोनिया गांधी के मुकाबले सुषमा स्वराज की छवि आम घरेलू भारतीय नारी की है। सुषमा स्वराज को निर्विवाद नेता के साथ ही साथ कुशल वक्ता भी माना जाता है। भाजपा में भी सुषमा स्वराज के नाम पर किसी को आपत्ति नहीं होगी। वर्तमान समीकरणें को देखकर भाजपा के वषाZंत में भावी अध्यक्ष के रिक्त होने वाले फ्रेम मेें सुषमा स्वराज की तस्वीर ही सबसे फिट बैठती दिख रही है।

रविवार, 9 अगस्त 2009

10 AUGEST 2009

आलेख 10 अगस्त 2009

आखिर क्यों करें हम सच का सामना

(लिमटी खरे)

मीडिया के एक स्वरूप निजी समाचार चेनल्स द्वारा अपनी टेलीवीजन रेटिंग प्वाईंट (टीआरपी) बढ़ाने के चक्कर में न जाने क्या क्या गुल खिलाए जाते हैं। दिन में एक वक्त सभी समाचार चेनल्स अपराध आधारित खबरें दिखातें हैं, तो कभी राशिफल से दर्शकों को लुभाने का प्रयास करते नजर आते हैं। कुछ समाचार चेनल्स तो घंटों तक फूहड़ हंसी मजाक की महफिल को दिखाते रहते हैं। सवाल यह उठता है कि ये समाचार चेनल्स खबरों को दिखाने का काम कर रहे हैं, या फिर टीआरपी बढ़ाने और ज्यादा विज्ञापन बटोरने के चक्कर में समाज के सामने कुछ और परोस रहे हैं।
पहले कहा जाता था कि अखबार समाज का दर्पण होता है। दरअसल उस समय मीडिया का मतलब अखबार ही होता था। उस जमाने में समाचार पत्र से इतर और अन्य साधन नहीं हुआ करते थे। आज समाज में प्रिंट के अलावा इलेक्ट्रानिक मीडिया और अब तो वेब मीडिया की खासी दखल हो चुकी है।
``सच का सामना`` सीरियल का विषय ही कुछ इस तरह का है कि लोगों की दिलचस्पी इसकी ओर बढ़ना स्वाभाविक ही है। सेक्स एक एसा विषय है, जिसके बारे में समाज का हर तबका जानने हेतु जिज्ञासू रहता है। आदि अनादि काल से यह कौतुहल का विषय रहा है। पुरातन काल में सेक्स को शास्त्र का दर्जा दिया गया था, कामदेव इस विधा के देवता माने गए थे।
महषिZ वात्सायन ने कामशास्त्र की रचना कर डाली। चंदेलों के राज में मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में खजुराहो के मंदिर में उन्मुक्त काम क्रीड़ा मेें रत प्रतिमाएं आज देश और विदेशी सैलानियों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र बनी हुई है। बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में रजनीश नामक चिंतक ने इसका बखूबी इस्तेमाल किया था।
हमारा उद्देश्य किसी की भावना को ठेस पहुंचाना कतई नहीं है, किन्तु आचार्य रजनीश ने भारत में सेक्स तो पश्चिम में शांति को उकेरा और पूरब और पश्चिम दोनो ही जगहों पर रजनीश को हाथों हाथ लिया गया। कम समय में ही आचार्य रजनीश ने समूचे विश्व में अपना साम्राज्य खड़ा कर लिया था।
देखा जाए तो सच का सामना सीरियल मूलत: लोगों की निजी जिंदगी में तांकझांक ज्यादा करता है। आज भारत में अधकचरी पश्चिमी सभ्यता ने अपने लिए उपजाउ माहौल अवश्य तैयार कर लिया है, जो बहुत घातक है। भारत में टेलीवीजन पर दिखाए जाने वाले सीरियल ने समाज को गंदे बदबूदार सड़ांध मारते नाले में उतरने को मजबूर कर दिया है, जिसकी केवल निंदा करने से काम नहीं चलने वाला। इसके लिए देश के नीति निर्धारकों को ठोस और सार्थक कदम उठाने की आवश्यक्ता है।
आज आवश्यक्ता इस बात की है कि इन सीरियल के माध्यम से इसके निर्माता निर्देशक समाज को क्या संदेश देना चाहते हैंर्षोर्षो इस पर बहस होनी चाहिए। प्रेरणास्पद सीरियल के बजाए चिटलरी से भरपूर समाज और परिवार को तोड़ने, परस्त्री या पुरूष गमन, या बच्चों के लिए मनोरंजन के बजाए उनके मन मस्तिष्क में जहर घोलने वाले सीरियल पर तत्काल लगाम लगनी चाहिए।
हमें यह कहने में कोेई संकोच नहीं कि सच का सामना सीरियल व्यक्ति की नकारात्मक प्रवृत्तियों को रेखांकित करने वाला है। यह सीरियल स्वस्थ्य मनोरंजन के बजाए आदमी के अंदर की छिपी हुई कमीनगी को ग्लेमरस बनाकर परोसने का साधन मात्र है।
हमारे मतानुसार अगर आपको सच ही स्वीकारना है तो आप किसी पुजारी अथवा पादरी अथवा अपने परिजनों से बात कीजिए। अगर आपमें इतना साहस नहीं है तो डायरी लिखिए, क्योंकि आप समाज में हर व्यक्ति से झूठ बोल सकते हैं, किन्तु अपने आप से नहीं। अपने जिन्दगी के काले सफों को चंद सिक्कों की खनक के लिए जनता के सामने घटिया तरीके से परोसने का ओचित्य समझ से परे ही है।
आने वाले दिनों में इस सच का सामना सीरियल के कारण देश में परिवारोेंं का विघटन आरंभ हो जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। विडम्बना ही कही जाएगी कि राजीव खण्डेलवाल के इस सीरियल में उनके सामने हाट सीट पर बैठने उनकी मां विजयलक्ष्मी ही तैयार नहीं है। राजीव को सोचना चाहिए कि इस तरह के घिनौने सीरियल के लिए जब उनकी मां ही तैयार नहीं हैं तो वे और देशवासियों की मां बहनों के सामने आखिर क्या परोस रहे हैंर्षोर्षो
हमारी निजी राय में तो इस तरह के घटिया और समाज को दिशाहीन बनाने वाले सीरियल तत्काल बंद कर देना चाहिए साथ ही सरकार को चाहिए कि सामज को दिग्भ्रमित करने वाले सीरियल पर भी रोक लगाए एवं सूचना प्रसारण मंत्रालय को एक समिति बनाकर सीरियल दिखाने के पहले उसका उद्देश्य और समाज को मिलने वाली दिशा के बारे में तसल्ली होने के बाद ही इन्हें दिखाए जाने की अनुमति प्रदान करे, अन्यथा आने वाले समय में समाज का भयावह स्वस्प होगा और चेनल्स के साथ ही साथ सरकार भी इसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार होगी।

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क्या सोनिया कांग्रेस में करेंगी महिला आरक्षण लागू!
0 महिलाओं की भागीदारी 33 फीसदी हो सकेगी कांग्रेस मेंर्षोर्षो
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। सवा सौ साल पुराने कांग्रेस संगठन में बदलाव की अटकलों के बीच अब यह चर्चा भी सियासी गलियारों में तेजी से घुमड़ने लगी है कि भले ही महिला आरक्षण बिल संसद में परवान न चढ़ सका हो पर क्या कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी द्वारा कांग्रेस संगठन में इसे लागू करने की हिम्मत जुटा सकेंगीर्षोर्षो
कांग्रेस में सत्ता और शक्ति के केंद्र 10 जनपथ से जुड़े सूत्रों का कहना है कि महिला होने के नाते श्रीमति सोनिया गांधी की इच्छा है कि पार्टी स्तर पर महिला आरक्षण को सबसे पहले लागू करवाया जाए। इसके लिए वे अनेक स्तरों पर पार्टी फोरम में चर्चा कर नेताओं के मानस को टटोल रहीं हैं।
सूत्रों ने आगे बताया कि उच्च स्तरीय कोर कमेटी ने इस मुद्दे पर रायशुमारी कर ली है। पार्टी में विर्कंग कमेटी में भी इस बात को लेकर चर्चा हो चुकी है कि भले ही संसद की सीढ़ियां चढ़ते चढ़ते महिला आरक्षण बिल की सांसे फूल गईं हों पर पार्टी स्तर पर इसे लागू करवाने से कोई रोक नहीं सकता है।
उधर कांग्रेस मुख्यालय 24 अकबर रोड़ में चल रही चर्चाओं के अनुसार अगर पार्टी में 33 फीसदी स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिए जाते हैं तो अनेक स्वयंभू महाबलियों का कद कम हो जाएगा, जिसके लिए वे इस फिराक में जोड़ तोड़ कर रहे हैं कि इसे लागू न किया जाए और अगर लागू होता भी है, तो किस स्वरूप में लागू किया जाए।
सूत्रों ने आगे बताया कि कांग्रेस अध्यक्ष को यह मशविरा भी दिया गया है कि पार्टी में संविधान संशोधन कर लाटरी सिस्टम के जरिए महिलाओं को पद दिए जाएं इससे अंगद की तरह पैर जमाए नेताओं को एक तरफ आईना दिखाया जा सकेगा, वहीं दूसरी ओर इस लागू करने के साथ ही पार्टी नेतृत्व विवादों से भी परे रह सकेगा।
बताया जाता है कि कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को मशविरा दिया है कि कांग्रेस अपने संविधान में आवश्यक संशोधन कर पार्टी में 33 फीसदी पद महिलाओं के लिए आरक्षित कर दे। कांग्रेस द्वारा अगर संविधान संशोधन कर लिया जाता है तो फिर अन्य सियासी दलों को भी मजबूरी में अपने अपने संविधान में संशोधन कर महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण करना होगा।

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भाजपा को उसके हाल पर छोड़ा संघ ने
0 चिंतन बैठक से किनारा करने की तैयारी में है संघ
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। भविष्य की रणनीति और लोकसभा में हुई शर्मनाक पराजय के मामले में होने वाली चिंतन बैइक से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपने आप को दूर ही रखने का फैसला लिया है। संघ के कोई भी प्रतिनिधि के शिमला में 19 से 21 अगस्त तक आहूत बैठक में शामिल होने की संभावनाएं नहीं हैं।
संघ के विश्वस्त सूत्रो का कहना है कि संघ का शीर्ष नेतृत्व भाजपा को फिलहाल इस बैठक के मामले में उसके हाल पर ही छोड़ने का मानस बना रहा है। संघ अपने किसी भी प्रतिनिधि को इस बैठक में भेजने को राजी नहीं दिख रहा है। स्पून फीडिंग से उलट संघ अब इस मामले में इस रणनीति को अपना रहा है कि भारतीय जनता पार्टी अपनी चुनौतियों से खुद ही जूझे।
उधर भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों ने कहा कि पार्टी ने संघ से इस बैठक में शिरकत करने का आग्रह किया है। पहले संघ की ओर से सुरेश सोनी के नाम की चर्चा हो रही थी, कि वे इस बैठक में संघ का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं, किन्तु बाद में उनका नाम भी वापस ले लिया गया है। भाजपा की ओर से इस बैठक के लिए तय की गई सूची में संघ के किसी सदस्य का नाम न होना भी आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है।

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