शुक्रवार, 21 मई 2010

एटीएम बब्बा नहीं रहे

एटीएम बब्बा नहीं रहे

पहली बार 1967 में हुआ था एटीएम का प्रयोग

भारत में जन्मा था एटीएम का जनक

(लिमटी खरे)

आधुनिकता के इस युग में लोग बहुत ही अधिक सुविधाभोगी हो चुके हैं। इस काल में जीवन चक्र को सहज बनाने में जिन लोगों ने अपना अपना योगदान दिया है, उनमें जान शेफर्ड बेरान का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा, वह इसलिए कि उन्होंने लोगों को पैसा निकालने के लिए बैंक की समयसीमा और लंबी लंबी कतारों से छुटकारा दिलाते हुए आटोमेटेड टेलर मशीन (एटीएम) का अविष्कार किया था, जो आज कमोबेश हर एक नागरिक के पास है।

स्काटलैंड मूल के माता पिता की संतान शेफर्ड का भारत से गहरा नाता रहा है। उनका जन्म भारत गणराज्य के मेघालय सूबे के शिलांग में हुआ था। कहते हैं आवश्यक्ता ही अविष्कार की जननी है। इसे ही चरितार्थ किया था शेफर्ड ने। सप्ताहांत का आनंद लेने के शौकीन शेफर्ड को बैंक से पैसा निकालने की झंझट के चलते वीकेंड के मजे खराब हो जाया करते थे। एक दिन नहाते नहाते उनके दिमाग में आया कि क्यों न एसी मशीन को इजाद किया जाए जिससे कहीं भी कभी भी धन की निकासी की जा सके। शेफर्ड ने स्वचलित चाकलेट वेंडिग मशीन को देखकर सोचा कि क्यों न इसी तर्ज पर धन निकासी की व्यवस्था की जाए।

धुन के पक्के 23 जून 1925 को जन्मे शेफर्ड ने एटीएम मशीन को बना ही दिया। पहली बार 27 जून 1967 को उत्तरी लंदन के एनफील्ड में बारक्लेज बैंक की शाखा में इसे प्रयोग के तौर पर लगाया गया। यह मशीन वर्तमान एटीएम मशीन से बिल्कुल भिन्न हुआ करती थी। इसका नाम उस वक्त डी ला रूई ऑटोमेटिक कैश सिस्टम (डीएससीएस) कहा जाता था। उस वक्त रसायन युक्त कोडिंग से विशेष जांच के उपरांत ही पैसा निकाला जाता था। इसमें एक खांचे में उपभोक्ता द्वारा अपना चेक रखकर अपनी निजी पहचान संख्या दर्ज करता था, तब दूसरे खांचे से दस पाउंड के नोट बाहर आते थे। एटीएम नोट निकालने वाला पहला उपभोक्ता मशहूर फिल्म ‘आन द बजेस‘ फिल्म के नायक रेग वर्नी थे।

यही युग था जब एटीएम मशीन के युग का सूत्रपात हुआ था। शेफर्ड ने आरंभिक समय में इसका पिन नंबर छः अंकों का रखा था। बाद में उनकी पत्नि का कहना था कि उन्हें चार अंकों की संख्या ही आसानी से याद रह पाती है, सो शेफर्ड ने इसे छः से बदलकर चार अंकों में कर दिया। आज समूची दुनिया में पिन कोड चार अंकों का ही है।

ब्रिटेन मंे स्काटलेंड के लोगों को वैसे तो बहुत ही कंजूस माना जाता है, पर ब्रितानी इस बात को गर्व से कह सकते हैं कि उनके बीच का ही एक व्यक्ति जो भारत मंे जन्मा हो, ने एक मशीन का अविष्कार कर दुनिया भर के बैंक की तिजोरियों के ताले चोबीसों घंटे के लिए खोल दिए हों। आज प्रोढ हो चली पीढी के स्मृति से यह बात कतई विस्मृत नहीं हुई होगी कि एटीएम संस्कृति के आने से पहले किस तरह लोग घंटों लाईन में लगकर बैंक में अपना जमा धन निकलवाया करते थे। रविवार या अवकाश के दिनों में लोगों को किस कदर परेशानियों से दो चार होना पडता था। कहा जाता था कि बैंक कभी भी लगातार तीन दिन तक बंद नही रहते। आज वे सारे मिथक टूट चुके हैं।

आज बिजली, बल्व, सायकल आदि के अविष्कारकों को हमने अपने पाठ्यक्रम की किताबों में पढा है, पर अनेक एसे अविष्कारक हुए हैं, जिनके बारे में बहुत ज्यादा प्रचारित नहीं हो सकता है। मसलन इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन के जनक सुजाता को कम ही लोग जानते हैं। सुजाता दक्षिण भारत के एक फिल्मकार थे। सरकार की उपेक्षा के कारण इस तरह की प्रतिभाओं के बारे में लोग जान ही नहीं पाते हैं। टेलीफोन के अविष्कारक अलेक्जेंडर ग्राहम बेल, बिजली के बल्व के अविष्कारक टॉमस आल्वा एडिसन को तो लोग जानते हैं, किन्तु फ्रिज, टीवी, वाशिंग मशीन, गैस चूल्हा, मोबाईल आदि रोजमर्रा उपयोग में आने वाली वस्तुओं के अविष्कारकों के बारे में कम ही लोग जानते हैं।

बीसवी शताब्दी के उत्तारर्ध में विज्ञान और टेक्नालाजी का विकास जिस दु्रत गति से हुआ और बदलाव की प्रक्रिया इतनी तेज रही कि लोगों केा इनके अविष्कारकों के बारे में जानने या याद रखने की फुर्सत ही नहीं मिल सकी। आने वाले दिनों में कागज की मुद्रा के स्थान पर प्लास्टिक मनी जिसे ई ट्रांजक्शन भी कहते हैं, का प्रचलन बहुत ज्यादा बढ सकता है। आज भी क्रेडिट, डेबिट कार्ड पूरी तरह प्रचलन में आ चुके हैं। लोग आज अपनी अंटी में ज्यादा रूपया रखने के बजाए इस तरह के कार्ड रखने में ही ज्यादा समझदारी समझते हैं। हमें धन्यवाद देना चाहिए जान शेफर्ड बैरन का जिन्होंने बैंक की तिजोरियों के दरवाजे चौबीसों घंटों के लिए खोल दिए वरना आज भी हम बाबा आदम के जमाने की व्यवस्था पर ही चलने को मजबूर रहते। शेफर्ड को एटीएम का जनक नहीं पितामह कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। एटीएम बब्बा नहीं रहे इस बात का दुख सभी को होना चाहिए।

नकली नोटों के सौदागर



कौन जीतेगा - प्रजातंत्र या कमलनाथ ?

कौन जीतेगा - प्रजातंत्र या कमलनाथ ? 
राजेश स्थापक 

उत्तर भारत को दक्षिण भारत से जोड़ने वाले उत्तर-दक्षिण गलियारे का भविष्य केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्री कमलनाथ की जिद, संकुचित मानसिकता एवं स्वार्थ के कारण खतरे में पड़ता दिखायी दे रहा है। अपने व्यक्तिगत लाभ के लिये व्यास नदी की धारा मोड़ने वाले कमलनाथ अब विशेषज्ञों द्वारा स्वीकृत उत्तर-दक्षिण गलियारे को अपनी मर्जी के हिसाब से अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा की ओर मोड़ना चाहते हैं। कमलनाथ की जिद के चलते राष्ट्रीय महत्व के इस गलियारा के अंतर्गत फोरलेन रोड का काम मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में आकर रूक गया है एवं फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट की पेशी के बीच अटका पड़ा है। इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने में कमलनाथ की ही विशेष भूमिका रही है।

वर्ष 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के सभी दिशाओं को फोरलेन मार्ग से जोड़ने का प्रस्ताव रखा था जो बाद में स्वीकृत होकर प्रधानमंत्री स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के नाम से अस्तित्व में आकर अटल सरकार के कार्यकाल के दौरान ही क्रियान्वित होने लगा। वर्ष 2004-05 के लोकसभा चुनाव के बाद केन्द्र में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए (संप्रग) की सरकार बनी। तब एक बारगी ऐसा लगा की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की इस परियोजना को कांग्रेस सरकार शायद ही आगे बढ़ाये। परंतु इस परियोजना का महत्व और उपयोगिता को देखते हुए वर्ष 2004-05 में बनी मनमोहन सिंह सरकार ने इस परियोजना को न केवल आगे बढ़ाया बल्कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस परियोजना को पूर्ण कराने में व्यक्तिगत रूचि लेकर तत्कालीन भूतल परिवहन मंत्री टी.आर. बालू को भी निर्देशित किया।

इसी परियोजना के अंतर्गत उत्तर भारत के श्रीनगर को दक्षिण भारत के अंतिम छोर कन्याकुमारी तक फोरलेन सड़क से जोड़ा जाना है जिसे नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर नाम दिया गया। जाहिर है नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा न केवल आर्थिक बल्कि सामरिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी है।

नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर के निर्माण का कार्य तक टी.आर. बालू के भूतल परिवहन मंत्री रहते तेज गति से चला। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद केन्द्र में पुनः कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार बनी। इस सरकार में विभिन्न कारणों के चलते कमलनाथ का कद कम करते हुए उन्हें सड़क परिवहन मंत्रालय दिया गया। कमलनाथ को सड़क परिवहन मंत्री बनते अपनी वर्षों पुरानी मंशा (जिसका जिक्र वे 29 जुलाई 2009 को राज्यसभा में दिये अपने बयान में कर चुके हैं) को पूरा करने का मौका मिल गया क्योंकि उत्तर-दक्षिण गलियारा उनके संसदीय क्षेत्र मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले से मात्र 70 कि.मी. दूर सिवनी जिले से होकर नागपुर जा रहा था। दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के स्कूल के जमाने से मित्र रहे ताकतवर कमलनाथ को लगा कि नदी की धारा की तरह वे नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर की दिशा अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा की तरफ मोड़ सकते हैं तब जबकि वे स्वयं उस मंत्रालय के मंत्री हैं जो यह गलियारा बना रहा है।

यहां से नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर को छिंदवाड़ा ले जाने की योजना पर अमल शुरू हुआ। इसके लिये सबसे पहले वर्ष 2007 के अंतिम महीनों में एक काल्पनिक खबर छपवायी गयी कि कान्हा नेशनल पार्क से एक बाघ 180 कि.मी. पैदल चल पेंच नेशनल पार्क पहुंचा जिससे लगभग 15 कि.मी. दूर से नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर के अंतर्गत फोरलेन सड़क को बनाया जाना है।

कॉरीडोर की फोरलेन सड़क को छिंदवाड़ा ले जाने के लिये वन्यप्राणियों और पर्यावरण का सहारा लेकर कथित तौर पर कमलनाथ के चचेरे भाई अशोक कुमार जो वार्डल्ड लाईफ ट्रस्ट नाम का एक अन्जान संगठन वन्यप्राणियों के संरक्षण के नाम पर चलाते हैं, ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर के माध्यम से यह निवेदन किया कि यदि सिवनी से नागपुर के बीच नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर की फोरलेन सड़क बनती है तो यह पेंच नेशनल पार्क के वन्यप्राणियों पर दुष्प्रभाव डालेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने वन्यप्राणी विशेषतौर से बाघों को ध्यान में रखते हुए तत्काल केन्द्रीय साधिकार समिति (सी.ई.सी.) को इस मामले की जांच कर रिपोर्ट सौंपने को कहा। सी.ई.सी. की टीम में कमलनाथ के प्रभाव वाले नेशनल टाईगर कन्जर्वेशन ऑथारिटी के सदस्य सचिव डॉक्टर राजेश गोपाल को वन्यजीव विशेषज्ञ के बतौर शामिल किया गया। जैसी की उम्मीद थी डॉक्टर राजेश गोपाल ने अपनी विद्वता का परिचय देते हुए मध्य भारत के सिवनी जिले के जंगलों की ऐसी रिपोर्ट तैयार किया कि ऐसा लगा की देश के सारे बाघ इसी क्षेत्र में रहते हैं। डॉ. राजेश गोपाल ने यहां तक लिख डाला कि पेंच नेशनल पार्क से कान्हा नेशनल पार्क जिसके बीच की दूरी लगभग 200 कि.मी. दूर है एवं जिसके बीच से नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर को गुजरना है बाघ के पेंच से कान्हा नेशनल पार्क का प्राकृतिक रास्ता है। इसी रिपोर्ट ने डॉ. राजेश गोपाल की कमलनाथ के प्रति इरादे स्पष्ट कर दिया। वास्तव में पेंच और कान्हा किसी भी तरह से जंगल से जुड़े नहीं हैं। दोनों के बीच हजारों गांव कस्बे, रेल मार्ग, सड़क मार्ग, बांध, नदी इतनी कि इन सबको पार करके किसी बाघ को 200 कि.मी. दूरी पर कान्हा नेशनल पार्क तक पहुंचना लगभग असंभव कार्य है। तब जबकि सभी को पता है आज नेशनल पार्क के अंदर बाघों का शिकार धड़ल्ले से किया जा रहा है तब 200 कि.मी. के आबादी वाले इलाकों से गुजरकर कोई बाघ जीवित कैसे बचेगा।

भले ही डॉ. राजेश गोपाल की रिपोर्ट काल्पनिक एवं एक उद्देश्य विशेष को लेकर लिखी गयी हो लेकिन यह रिपोर्ट ने पर्यावरण एवं वन्यप्राणियों के शुभचिन्तकों एंव संवेदनशील मीडिया की कुछ सहानुभूति पाने में सफल हो गयी। दिल्ली और मुम्बई जैसे महानगरों में बैठे पर्यावरणविदों और मीडिया को लगा कि वास्तव में सिवनी से गुजरने वाले नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर की फोरलेन सड़क से जंगली जानवरों को नुकसान पहुंचेगा। जबकि वास्तव में मध्य भारत के इस दुर्गम आदिवासी क्षेत्र की वास्तविकता किसी को पता नहीं है। स्वयं कमलनाथ के चचेरे भाई और वाईल्ड लाईफ ट्रस्ट के उपाध्यक्ष  और वन्यप्राणियों के कथित संरक्षक अशोक कुमार को छिंदवाड़ा के जंगलों की वास्तविकता नहीं पता जहां से में फोरलेन मार्ग को ले जाने का सुझाव सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत अपनी याचिका में दे रहे हैं।

वास्तव में पेंच नेशनल पार्क छिंदवाड़ा से घने जंगलों से जुड़ा हुआ है छिंदवाड़ा के ये घने जंगल प्रसिद्ध पर्यटन क्षेत्र पचमढ़ी तक एक समान जुड़े हैं। यह सम्पूर्ण क्षेत्र सतपुड़ा पर्वतमाला का सघन वनों वाला क्षेत्र है जिसे वनविभाग ने देश की सर्वश्रेष्ठ जैवविविधताओं वाले क्षेत्रों में शामिल किया है। इस क्षेत्र के घने जंगलों में स्थानीय वन विभाग और ग्रामीणों को अक्सर बाघ और उसके पदचिन्ह दिखायी देते हैं। स्पष्ट है कि पेंच नेशनल पार्क के जंगली जानवर पार्क से सटे छिंदवाड़ा जिले के घने जंगलों की तरफ स्वाभाविक रूप से जायेंगे न कि उस तरफ जहां बसाहट हो, और सड़क मार्ग हो। लेकिन बाघ विशेषज्ञ डॉ. राजेश गोपाल ऐसा नहीं मानते हैं।

पिछले पांच वर्षों में देश के नेशनल पार्कों के अंदर मारे जा रहे बाघों के बारे में कभी न चिन्ता करने वाले डॉ. राजेश गोपाल और बाघों के कथित संरक्षक अशोक कुमार ने पेंच नेशनल पार्क और इस क्षेत्र के जंगलों और जंगली जानवरों के बारे में दिल्ली में बैठे मीडिया को न केवल गुमराह करने का प्रयास किया बल्कि फोरलेन सड़क को नरसिंहपुर-छिंदवाड़ा होते नागपुर ले जाने का पक्ष लेकर इस क्षेत्र की सर्वश्रेष्ठ जैवविविधता, लाखों पेड़ और देश के लुप्त होते बाघों को खतरे में डाल दिया।

यही नहीं इन कथित और छद्म पर्यावरणविदों को छिंदवाड़ा से नागपुर फोरलेन सड़क को बनाने के वो दुष्परिणाम भी नहीं दिख रहे हैं जिसे एक आम व्यक्ति आसानी से सोच सकता है। केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ को जिद के दुष्परिणाम क्या निकलेंगे गौर करें। यदि फोरलेन सिवनी से सीधे नागपुर की बजाये छिंदवाड़ा होते हुए नागपुर बनायी जाती है जैसा कमलनाथ चाहते हैं तो इसका मतलब है सारे देश के लोगों को 70 कि.मी. अतिरिक्त वाहन चलाना पड़ेगा। यही नहीं इससे वर्तमान दर के हिसाब से लगभग 14 लाख रूपये अतिरिक्त पेट्रोल और डीजल का खर्चा वाहन मालिकों पर पड़ेगा। बात यहीं खत्म नहीं होती है 70 कि.मी. अतिरिक्त चलने से इस क्षेत्र में 900 टन कार्बन का उत्सर्जन प्रतिवर्ष होगा जो पर्यावरण और वनों के लिये कितना विनाशकारी है उसका पता शायद कमलनाथ और उनके चचेरे भाई अशोक को नहीं है। बात समाप्त यहीं नहीं होती है यदि कमलनाथ अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा से नागपुर फोरलेन बनवाते हैं तो उन्हें छिंदवाड़ा से नागपुर के बीच स्थित जंगलों के उच्च क्वालिटी वाले प्रथम वर्ग श्रेणी के 81,500 वृक्षों की बलि देना होगा यही नहीं छिंदवाड़ा से नागपुर के बीच जलेबी आकार की 22 कि.मी. लम्बी घाटी जो छिंदवाड़ा के हिस्से वाले पेंच नेशनल पार्क के करीब है पर फोरलेन सड़क यदि बना भी दी जाये तो इस घाटी पर बड़े वाहन बमुश्किल चल पायेंगे। ऊपर से 22 कि.मी. लम्बी इस घाटी के घाट को कम करने के लिए उसका विस्तार लगभग 30-32 कि.मी. तक करना पड़ेगा जिसका असर इस क्षेत्र की जैवविविधता और पेंच पार्क के बचे हुए चंद बाघों पर बुरी तरह से पड़ेगा।

सभी को पता है कि स्वर्णिम चतुर्भुज जैसी महत्वपूर्ण परियोजना के पहले विशेषज्ञों द्वारा सर्वे कर फोरलेन सड़क बनाये जाने का प्लान तैयार किया गया था। आश्चर्य है टी.आर. बालू के सड़क परिवहन मंत्री रहते जो परियोजना सुगमता से चल रही थी वो कमलनाथ के सड़क परिवहन मंत्री बनने के बाद कैसे पर्यावरण मंत्रालय और कोर्ट कचहरी में उलझ कर रह गयी। क्यों कमलनाथ एक ही मंजिल के लिये तीन रास्तों का विकल्प दे रहे हैं। उनका दूसरा विकल्प है नॉर्थ-साउथ कॉरीडोर की फोरलेन सड़क नरसिंहपुर से छिंदवाड़ा होते हुए नागपुर जाये जिसके लिये कमलनाथ लगभग ढ़ाई लाख वृक्षों को कटवाने को तैयार हैं।

आखिर क्यों ? कमलनाथ छिंदवाड़ा से फोरलेन सड़क तमाम सच्चाईयों के बाद ले जाना चाहते हैं। क्या वास्तव में आज तक पिछड़े एवं अविकसित आदिवासी छिंदवाड़ा जिले की जनता अगले चुनाव में उन्हंे फोरलेन सड़क के नाम पर वोट देगी। क्या उद्योपति कमलनाथ छिंदवाड़ा से नागपुर के बीच के क्षेत्रों में आदिवासी इलाकों में उद्योगों को मिली बेहिसाब छूट का फायदा उठाकर स्वयं और अपने उद्योपति मित्रों के उद्योग खुलवाना चाहते हैं। क्या कमलनाथ छिंदवाड़ा में विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज-स्पेशल इकॉनामिक जोन) बनाकर अपने संसदीय क्षेत्र में घटते जनाधार को रोकना चाहते हैं या फिर क्या यह सब कमलनाथ अपनी जिद के कारण कर रहे हैं।

निःसंदेह यह सोच का विषय है कि क्या एक शक्तिशाली नेता और मंत्री अपने स्वार्थ के लिये देश के पर्यावरण, वन्यप्राणी और आम व्यक्तियों के साथ-साथ सरकारी खजाने पर इस तरह का खिलवाड़ कर सकता है क्योंकि लखनादौन से सिवनी के आगे 12 कि.मी. आगे अब तक फोरलेन सड़क बनाने में सरकार के बारह सौ करोड़ रूपये खर्च हो चुके और इस क्षेत्र में फोरलेन सड़क बनाने के लिये हजारों पेड़ पहले ही काटे जा चुके हैं। क्या सिवनी के आदिवासी जिन्होंने कभी जंगल बचाने के लिये अंग्रेजों के विरूद्ध जंगल सत्याग्रह कर अंग्रेजी बंदूकों की गोली खाकर शहादत दिया था। ऐसे आदिवासी जिनके लिये सिवनी से नागपुर जाने वाली फोरलेन सड़क लाईफ लाईन साबित होगी। क्या सिवनी के आदिवासियों अपने क्षेत्र के विकास को छीने जाने के बाद भी बाघ और जंगलों के प्रति वैसी सहानुभूति रखर पायेंगे जैसी वे आज तक रखते आये हैं। पिछले दिनों जब सिवनी जिले में कमलनाथ के विरूद्ध फोरलेन बचाओ आंदोलन हुआ था उस दौरान इस क्षेत्र के आदिवासियों ने यही चर्चा थी कि बाघों के कारण उनका विकास नहीं हो पा रहा है।

फिलहाल यह सम्पूर्ण मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है लेकिन पर्यावरण और बाघों के झूठे संरक्षण के नाम पर कमलनाथ अपने मकसद में कामयाब भी हो गये तो भी मूक बाघ, जंगली जानवर, वृक्ष, गरीब आदिवासी और सिवनी जिले के लाखों लोग जो पहले ही 21 अगस्त को कमलनाथ के 100 से ज्यादा पुतले जला चुके है कमलनाथ को कभी माफ नहीं करेंगे। क्योंकि स्वयं राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अधिकारी सिवनी से नागपुर फोरलेन सड़क के पक्ष में है और बाघ एवं अन्य जानवरों की सुरक्षा के लिये उन्होंने विश्व स्तर के व्यवहारिक सुझाव भी जिम्मेदार लोगों को बताया है। अब देखना है कि सुप्रीम कोर्ट में ताकतवर, बलशाली कमलनाथ की जीत होती है या सिवनी जिले के 10 लाख लोगों की।

इसके अलावा इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी सिवनी जिले के दस लाख लोगों के अलावा देश भर के मीडिया और बुद्धिजीवियों को भी बेसब्री से इंतजार है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के इस मामे में सिवनी के पक्ष में फैसले से देश भर में पर्यावरण के संरक्षण के साथ विकास जरूरी है का आधार बन जायेगा या फिर पर्यावरण और जंगली जानवरों के कथित संरक्षण के नाम पर देश में जगह-जगह बनाये जा रहे बांध, सड़कें, भवनों पर रोक लगना प्रारंभ हो जायेगी। क्योंकि सिवनी के लोगों और आदिवासी वर्ग में यह बात घर करने लगी है कि जंगलों एवं जंगली जानवरों की रक्षा करें हम और फ्लाई ओवर, मेट्रो ट्रेन और गगनचुम्बी इमारतों की सुविधायें ले दिल्ली और मुम्बई के लोग खासतौर से वाईल्ड ट्रस्ट ऑफ इंडिया के अशोक कुमार जैसे लोग जिन्होंने पर्यावरण के नाम पर कभी एक पौधा नहीं लगाया, जिन्होंने बाघों को बचाने के लिये कुछ नहीं किया वे दिल्ली के अपने वातानुकूलित ऑफिस में बैठे-बैठे सैंकड़ों कि.मी. दूर सिवनी के जंगल और बाघों की चिन्ता कर रहे हैं।