शुक्रवार, 18 मई 2012

प्रभात झा पर लटक रही है तलवार!


प्रभात झा पर लटक रही है तलवार!

शिव प्रभात की जुगलबंदी में हो रहे भ्रष्टाचार को पचा नहीं पा रहे आल नेता

(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)। भारतीय जनता पार्टी के नेशनल प्रेजीडेंट नितिन गड़करी को भले ही दूसरा टर्म मिल जाए पर सूबों के अध्यक्षों पर यह बात लागू होगी अथवा नहीं इस मामले में पार्टी की गाईड लाईन अभी स्पष्ट नहीं है। देश के हृदय प्रदेश में 2008 में कांग्रेस को उखाड़ फेंकने के बाद भाजपा की जड़ें अब उखड़ने लगीं हैं। इसका कारण एक के बाद छोटे बड़े नौकरशाहों से करोड़ों अरबों रूपए बरामद होना है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दिल्ली में झंडेवालान स्थित मुख्यालय केशव कुंजके भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि वैसे तो गड़करी के दूसरे टर्म पर आम सहमति बन गई है, पर येदयीरप्पा के मामले में जिस तरह गड़करी के नागपुर स्थित आवास पर खड़ी उनकी कार से बच्ची के शव मिलने की बात फिर उछाली जा रही है इससे गड़करी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
सूत्रों ने आगे कहा कि उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में भाजपा का प्रदर्शन लचर ही माना जा रहा है। बावजूद इसके गड़करी को दूसरा टर्म देने पर संघ की सहमति के पीछे आड़वाणी जुंडाली और सुषमा, जेतली, अनन्त कुमार, वेंकैया नायडू जैसे धुरंधरों को साईज में लाने की मंशा साफ दिख रही है।
संघ के सूत्रों ने कहा कि गड़करी पर संघ प्रमुख इसलिए भी दांव लगाने को आतुर दिख रहे हैं क्योंकि घपलों, घोटालों और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी कांग्रेसनीत संप्रग सरकार अपना कार्यकाल शायद ही पूरा कर पाए। संघ को मिले फीडबैक के आधार पर पिछले दिनों महामंत्री राम लाल ने पाधिकारियों की बैठक में इस मसले को उठाया था।
सूत्रों ने कहा कि पार्टी संविधान में तब्दीली के मसौदे पर संघ की मुहर लग चुकी है। इसे मुंबई के अधिवेशन में पेश किया जाएगा। इसमें पार्टी अध्यक्ष के कार्यकाल में संशोधन की बात अवश्य लाई गई है किन्तु इसके जरिए सूबाई निजामों को राहत मिलेगी इस मामले में मौन ही साधे रखा गया है।
उधर, मध्य प्रदेश के संबंध में संघ के सूत्रों का कहना है कि भले ही प्रदेश में विपक्ष में बैठी कांग्रेस निष्क्रीय हो या भाजपा के मैनेज करने पर उदासीन होने का स्वांग रच ही हो, पर सूबे में भाजपा का जनाधार गिरने की खबर संघ के आला नेताओं को मिली है। संघ के आला नेता इस बात से खासे परेशान हैं कि मध्य प्रदेश में संघ के तैनात नुमाईंदों के मुंह में सत्ता की मलाई का स्वाद लग गया है। अनेक जिलों में पदस्थ संगठन मंत्री तो सत्ता की ही भाषा बोलने लगे हैं।
सूत्रों ने यह भी कहा कि एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपाध्यक्ष प्रभात झा के बीच जबर्दस्त सामांजस्य होना अच्छी बात है किन्तु संघ के आला नेता इसे पचा नहीं पा रहे हैं। सत्ता और संगठन मिलकर सूबे में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं। रोज किसी ना किसी नौकरशाह की तिजोरी करोड़ों रूपए उगल रही है, इसका संदेश भाजपा के प्रतिकूल ही जा रहा है।
अगर यह भाजपा के सत्ता में आते ही होता तो निश्चित तौर पर यह कांग्रेस के कुशासन के बतौर पेश किया जाता किन्तु नौ सालों से प्रदेश में भाजपा का राज है इसलिए यह मामला भारतीय जनता पार्टी की सरकार के खिलाफ ही जा रहा है। इसके चलते जमीनी कार्यकर्ता जनता से नजरें मिलाने में हिचक रहे हैं।

जिला प्रशासन की भूमिका संदिग्ध


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . .  85

जिला प्रशासन की भूमिका संदिग्ध

किसानों के शोषण में सहभागी बना है प्रशासन

(शिवेश नामदेव)

सिवनी (साई)। देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के छटवीं सूची में अधिसूचित आदिवासी बाहुल्य घंसौर विकास खण्ड के ग्राम बरेला में स्थापित किए जाने वाले 1260 मेगावाट के कोल आधारित पावर प्लांट में जमीनों की खरीद फरोख्त में किसानों को छलने वाले किसानों का जिला प्रशासन सिवनी ने अप्रत्यक्ष तौर पर साथ देने का मामला प्रकाश में आया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार बरेला में निर्माणाधीन पावर प्लांट के लिए आदिवासी किसानों की जमीनों की खरीद फरोख्त में दलालों की पौ बारह हो गई। इन दलालों को जबलपुर और नरसिंहपुर के कांग्रेस और भाजपा नेताओं का वरद हस्त होना बताया जा रहा है। ये दलाल पहले तो किसानों को बहला फुसला कर उनकी जमीन संयंत्र प्रबंधन के हाथों में बिकवा दी फिर उस जमीन की कीमत मांगने पर मारपीट पर उतारू हो गए।
घंसौर में संयंत्र के सामने बैठे आंदोलनकारी आदिवासी किसानों का कहना है कि जिला प्रशासन सिवनी अपना पल्ला यह कहकर झाड़ रहा है कि यह सौदा चूंकि संयंत्र प्रबंधन और किसानों के बीच सीधे सीधे हुआ है अतः इसमें जिला प्रशासन की कोई भूमिका ही नहीं रह जाती है, पर कागजी हकीकत और कुछ बयां कर रही है।
अनशन पर बैठे एक किसान ने घंसौर अनुविभाग के अनुविभागीय दण्डाधिकारी और भूअर्जन अधिकारी का 5 नवंबर 2010 का वह नोटिस दिखाया जिसमें साफ तौर पर वर्णित था कि ग्राम गोरखपुर की 4.66 हेक्टैयर जमीन को पावर प्लांट को देने के लिए चिन्हित किया गया है। अतः क्यों ना भू अधिग्रहण नियमों के तहत उसके प्रकाश में यह जमीन लेकर कंपनी के हवाले कर दिया जाए। इस खेल में तहसीलदार और एसडीओ की भूमिका संदिग्ध बताई जा रही है।
गौरतलब है कि संसद की एक समिति ने गुरूवार 17 मई को कहा कि सरकार को निजी क्षेत्र के उपयोग के लिए जमीन का अधिग्रहण नहीं करना चाहिए। भारतीय जनता पार्टी की सुमित्रा महाजन की अध्यक्षता वाली ग्रामीण विकास विभाग की स्थायी समिति ने विधेयक के बारे में अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भूमि अधिग्रहण के सभी मामलों में उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए और जिनकी जमीन ली जाती है, उनका तथा अन्य प्रभावित लोगों का उचित पुनर्वास और बंदोबस्त किया जाना चाहिए।
आदिवासियों के हितों का दावा करने वाली कांग्रेस और भाजपा की जिला इकाई भी इस मामले में अपना मुंह सिले हुए है। यह सब देखने सुनने के बाद भी केंद्र सरकार का वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, मध्य प्रदेश सरकार, मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल, जिला प्रशासन सिवनी सहित भाजपा के सांसद के.डी.देशमुख विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, कमल मस्कोले, एवं क्षेत्रीय विधायक जो स्वयं भी आदिवासी समुदाय से हैं श्रीमति शशि ठाकुर, कांग्रेस के क्षेत्रीय सांसद बसोरी सिंह मसराम एवं सिवनी जिले के हितचिंतक माने जाने वाले केवलारी विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर चुपचाप नियम कायदों का माखौल सरेआम उड़ते देख रहे हैं।

(क्रमशः जारी)

महिला सशक्तीकरण की दिशा में सरकारी पहल


महिला सशक्तीकरण की दिशा में सरकारी पहल

(शरद खरे)
नई दिल्ली (साई)। तलाकशुदा पत्नि को भी अब अपने पूर्व पति की अचल संपत्ति में बराबर हिस्सा मिलेगा। केंद्र सरकार ने इस आशय का एक विधेयक पारित कर दिया है। धारा 13 बी के तहत लिए जाने वाले आपसी सहमति के तलाक में छः माह की अनिवार्य अवधि के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है।
सरकार ने पति की अचल आवासीय संपत्ति में पत्नी को स्पष्ट रूप से निर्धारित हिस्सा देने के लिए राज्यसभा में लंबित एक विधेयक में नये संशोधनों को मंजूरी दे दी है। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में कल केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक के दौरान इस महीने के शुरू में राज्यसभा में पेश किये गए विवाह कानून (संशोधन) विधेयक में नये संशोधनों पर विचार-विमर्श हुआ।
विधि मंत्रालय के इस विधेयक से हिन्दू विवाह अधिनियम १९५५ और विशेष विवाह अधिनियम १९५४ में और संशोधन लाये जाने हैं। सरकार ने आपसी सहमति से तलाक के मामले में दोनों पक्षों को सुलह का मौका देने के लिए छह महीने की अनिवार्य अवधि की व्यवस्था बरकरार रखने का फैसला किया है।विपक्ष की मांग को ध्यान में रखते हुए अब यह निर्णय लिया गया है कि पति और पत्नी के अलग होने पर पति की अचल आवासीय संपत्ति में पत्नी और बच्चों को स्पष्ट रूप से निर्धारित हिस्सा दिया जाएगा।

कापीराईट संशोधन विधेयक पारित


कापीराईट संशोधन विधेयक पारित
(प्रियंका श्रीवास्तव)
नई दिल्ली (साई)। राज्यसभा ने कल कॉपीराइट संशोधन विधेयक २०१० पारित कर दिया। इसके तहत कॉपीराइट अधिनियम में कुछ महत्वपूर्ण संशोधन किये गए हैं। इस विधेयक से व्यावहारिक कठिनाइयां दूर होंगी और डिजिटल वर्ल्ड तथा इन्टरनेट से जुड़े नये मुद्दों का समाधान मिल सकेगा।
मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल द्वारा पेश किये गए इस विधेयक में १९५७ में मूल रूप से पारित किये गए भारतीय कानूनों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों और विश्व बौद्धिक संपदा संगठन के प्रावधानों के अनुरूप बनाने की व्यवस्था है। कपिल सिब्बल ने कहा कि सरकार कापी राईट के संबंध में एक ऐसा संशोधन लाई है, जो आर्टिस्ट हैं, जो लिरिसिस्ट है, जो म्युजिक कम्पोजर है, उसको अब भागीदारी मिलेगी रॉयल्टिज में।
उन्होंने कहा कि अमूमन यह होता था कि जो प्रोड्यूसर थे वो सभी राइट्स एसाइन करवा लेते थे और उसके बाद फिर दूसरे मिडियम्स में यूज करके, कोई रॉयल्टी जो ओरिजनल आर्टिस्ट हैं उनको नहीं मिलती थी। चर्चा शुरू करते हुए मनोनीत सदस्य और प्रख्यात गीतकार जावेद अख्तर ने शिकायत की कि गीतों पर कंपनियों का अधिकार हो जाता है और लेखकों तथा गायकों को उनकी व्यावसायिक सफलता से कोई खास लाभ नहीं मिलता। फिल्म अभिनेत्री और समाजवादी पार्टी सदस्य जया बच्चन ने गीतों और संगीत की बड़े पैमाने पर हो रही चोरी का जिक्र करते हुए सदन से अनुरोध किया कि विधेयक में इस मुद्दे का हल निकालने की व्यवस्था होनी चाहिए।

वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जेल में!


वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जेल में!

सांसद देशमुख दे रहे असामाजिक तत्वों को प्रश्रय

जरायमपेशा लोगों का हित साध रहे शिवराज 

(प्रदीप माथुर)

छिंदवाड़ा (साई)। बालाघाट सिवनी के सांसद केशव दयाल देशमुख के अज़ीज, उर्दू स्कूल सिवनी के सांसद प्रतिनिधि एवं जिला वक्फ बोर्ड सिवनी के अध्यक्ष शोऐब राजा गैर जमानती वारंट में धरे गए और इन दिनों छिंदवाड़ा जेल की हवा खा रहे हैं। शोऐब लंबे समय से फरार घोषित थे, इसी फरारी की अवधि में मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने सांसद देशमुख के करीबी शोऐब को जिला वक्फ बोर्ड जैसी प्रतिष्ठित संस्था के अध्यक्ष का महत्वपूर्ण दायित्व भी सौंप दिया था।
प्राप्त जानकारी के अनुसार शोऐब पिता रिय्ााज खान को जुलाई 2001 को कातलबोडी के पास चौरई पुलिस ने गिरफ्तार किय्ाा। बताय्ाा जाता है कि इसके बाद शोऐब का केस प्रथम श्रेणी न्य्ााय्ाालय्ा में चल रहा था परंतु बार बार वारंट आने के बाद पेशी में ना जाने के कारण शोऐब को 31 मई 2008 को तत्कालीन न्य्ााय्ािक मजिस्टेड चौरई ओ. पी. रजक ने कायर््ावाही करते हुए धारा 299 के तहत फरारी घोषित कर दिय्ाा और उनके विरूद्ध स्थाई वारंट जारी किय्ो।
बताया जाता है कि तब से लेकर अब तक शोऐब फरार ही रहे। इसी बीच उन्होने सांसद के. डी. देशमुख से अपनी नजदीकिय्ाा बढांई और उनके माध्य्ाम से उर्दू स्कूल के विधाय्ाक प्रतिनिधि का पद प्राप्त कर लिय्ाा।। बताया जाता है कि सांसद के.डी.देशमुख की कृपा के चलते ही उन्हें वक्फ बोर्ड जैसी प्रतिष्ठित संस्था का जिलाध्यक्ष पद भी नसीब हुआ है।
वक्फ बोर्ड के सूत्रों का कहना है कि अध्यक्ष बनने के पहले आवेदक को एक शपथ पत्र देना होता है जिसमें उसे पाक साफ होने के साथ ही साथ किसी तरह के आपराधिक मामलों में लिप्त नहीं होना बताना होता है। इसमें प्रकरण विचाराधीन ना होना भी एक प्रमुख शर्त बताई जाती है।
सूत्रों की मानें तो शोऐब राजा ने वक्फ अध्य्ाक्ष बनने के लिए य्ाह शपथ पत्र्ा म.प्र. वक्फ बोर्ड में जमा किय्ाा तथा गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्होन मान. उच्च न्य्ााय्ाालय में अग्रिम जमानत के लिय्ो आवेदन लगाय्ाा जिसके तहत 14469/2011 के तहत मान. न्य्ााय्ााधीश एन. के. गुप्ता ने शोऐब राजा की जमानत खारिज कर दी। तब शोऐब गत दिवस छिंदवाडा न्य्ााय्ाालय्ा में पहुंचे और आत्मसमर्पण करना चाहा, परंतु शोऐब पिता रिय्ााज उद््दीन के नाम जेल वारंट जारी कर दिय्ाा जिसके चलते शोऐब को छिंदवाडा की जेल पहंुचा गय्ाा।
समाचार लिखे जाने तक शोऐब को जमानत नही मिल पाई थी, अब जबकि वक्फ बोर्ड जैसी प्रतिष्ठित संस्था के अध्य्ाक्ष बनने के लिए शोऐब राजा जैसे व्य्ाक्ति के द्वरा झ्ाूठा शपथ पत्र्ा देना और बाद मंे उन्हे पुराने मामले को लेकर जेल हो जाना म.प्र. वक्फ बोर्ड कमेटी के लिय्ो दुर्भाग्य्ा की बात है।

नक्सली हमले में सुरक्षा कर्मी की मौत

नक्सली हमले में सुरक्षा कर्मी की मौत

(अभय नायक)
रायपुर (साई)। छत्तीसगढ़ में कल रात संदिग्ध नक्सलवादियों के हमले में राज्य की महिला और बाल कल्याण मंत्री लता उसेंदी का एक सुरक्षागार्ड मारा गया। यह घटना बस्तर डिवीजन के नवगठित कोंडागांव जिला में लता उसेंदी के आवास पर हुई। उस समय वह घर पर मौजूद नहीं थी। मोटर साइकिल पर सवार दो हमलावरों ने मंत्री के निवास पर पहुंचकर वहां खड़े गार्ड पर अंधाधुध गोलिया चलाना शुरू कर दी जिससे गार्ड की मौके पर ही मृत्यु हो गई।
प्राप्त जानकारी के अनुसार कोंडागांव शहर के भीड़ भाड़ वाले इलाके में महज देर शाम राज्य के किसी मंत्री के बंगले पर माओवादी हमले से लोग सकते में हैं। जंगल में तैनात सुरक्षाकर्मी की गोलीमार कर हत्या करने के बाद आरोपी उसके हथियार भी लूट कर फरार हो गए। घटना के बाद पूरे इलाके में खोजबीन शुरू कर दी गई है।
वहीं मंत्री के बंगले के आसपास भी कड़ी सुरक्षा इंतजाम बैठा दिए गए हैं। इस बीच, मामले को गंभीरता से लेते हुए मुुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह कल रात ही रायपुर में एक उच्च स्तरीय बैठक लेकर स्थिति की समीक्षा की और कोंडागांव जिले के पुलिस अधीक्षक को तत्काल प्रभाव से हटा दिया।

बारी का विवादित फतवा


बारी का विवादित फतवा
(सलीम अख्तर सिद्दीकी)
इन दिनों इंटरनेट पर कहा जा रहा है कि मोरक्को के एक काजी जमजमी अबुल बारी ने पिछले साल मई में फतवा दिया था कि इसलाम के अनुसार पत्नी की मौत के बाद भी शादी बरकरार रहती है और पति, पत्नी के देहांत के छह घंटे के अंदर उसके शव के साथ सहवास कर सकता है। बात यहीं खत्म नहीं होती, अब कहा जा रहा है कि मिस्र की संसद में ऐसा कानून बनाने का प्रस्ताव लाया गया है, जो पत्नी की मौत के बाद उसके साथ हमबिस्तर होने की इजाजत दे। जो बात सुनने में ही खराब लगे, उसके बारे में कानून बनाने की बात हास्यास्पद ही नहीं लगती, बल्कि घृणा भी होती है। शव के साथ सहवास करने की बात, चाहे वह पत्नी ही क्यों न, कोई सोच भी नहीं सकता। विकृत मानसिकता का शख्स ही ऐसा कर सकता है।
मिस्र की महिलाओं ने इस तरह का कानून बनाने जाने विरोध किया है, जो स्वाभाविक भी है। लेकिन किसी उलेमा का कड़ा ऐतराज अभी तक नजरों से नहीं गुजरा है। इतना तय है कि फतवे का इसलाम से कोई लेना-देना नहीं हो सकता। यह जरूर उनकी चाल लगती है, जो किसी भी प्रकार इसलाम को बदनाम करने की साजिश करते रहे हैं। इसलाम में कई फिरके हैं, लेकिन उनमें तमाम तरह के मतभेद होने के बावजूद इसका जबरदस्त विरोध की करेंगे। जिस बात का कुरआन और हदीस में कोई जिक्र नहीं है, उसे सही ठहरकार उसके मुताल्लिक कानून बनाने की बात करना निहायत शर्म की बात है। दुनिया का कोई भी धर्म या संस्कृति इस तरह की कुंठित हरकत को सही नहीं ठहरा सकता। शरीयत के किसी भी मामले में दखअंदाजी पर सख्त ऐतराज जताने वाले दुनियाभर के उलेमा क्यों खामोश हैं, यह समझ नहीं आया है? ऐसा नहीं है कि उलेमा आधुनिक दूर-संचार के साधनों से अनजान हैं। दारुल उलूम देवबंद की वेबसाइट है। फतवा भी ऑन लाइन दिया जाता है। कई पत्रिकाओं में इस बारे में छप चुका है। यह खबर इंटरनेट पर तैर रही है, लेकिन हमारे उलेमाओं की नजर इस पर क्यों नहीं पड़ी?
द सैटेनिक वर्सेज के लेखक सलमान रुश्दी पर मौत का फतवा लगाने और तसलीमा नसरीन पर तलवार भांजने वाले उलेमा क्या कर रहे हैं? हम इस बात के हिमायती नहीं कि किसी पर मौत का फतवा लगाया जाए, लेकिन बेसिर-पैर की बात करके जो भी इसलाम को बदनाम करने का काम कर रहा है, उसकी निंदा करने और फतवे को खारिज करने के लिए तो उलेमाओं को सामने आना ही चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। यदि इसका जबरदस्त विरोध नहीं किया गया, तो यही कहा जाएगा कि बात सही ही होगी और इसे भी इसी तरह इसलाम का हिस्सा मान लिया जाएगा, जिस तरह कुछ अफ्रीकी मुसलिम देशों में लड़कियों के खतना करने को माना जाने लगा है। किसी तरह का फतवा कुरआन और हदीस की रोशनी में दिया जाता है, लेकिन आम मुसलमान भी बता देगा कि इस तरह के कुकृत्य की इजाजत न तो कुरआन दे सकता है और न ही हदीस।
जिस मिस्र की संसद में पत्नी के शव के साथ सहवास करने की इजाजत देने वाला कानून बनाने का प्रस्ताव लाने की बात कही जा रही है, वहां शव को ममी के रूप में शताब्दियों तक सुरक्षित रखने की परंपरा रही है, लेकिन इतिहास में ममी के साथ सहवास करने का कोई उल्लेख इतिहास में नहीं मिलता। अगर मिलता भी, तो वह इसलाम का हिस्सा नहीं होता। ममियों का इतिहास इसलाम के वजूद में आने से पहले का है। इसलाम ममी संस्कृति को ही खारिज कर चुका है। मिस्र के राष्ट्रपति जमाल अब्दुल नासिर ने एक बार मिस्र की ममी संस्कृति पर गर्व होने की बात की थी, लेकिन उलेमाओं ने उनकी निंदा की थी और राष्ट्रपति को अपने शब्द वापस लेने पड़े थे।
सवाल यह है कि आखिर काजी जमजमी अबुल बारी किसका हित साध रहे हैं और किसको बदनाम करना चाहते हैं? अभी पिछले दिनों ही खबर आई थी कि अमेरिकी सैन्य पाठ्यक्रम में इसलाम के विरुद्ध युद्ध करने का पाठ पढ़ाया जा रहा था। जब एक छात्र ने इस पर आपत्ति जताई, तो पेंटागन ने उस पर पाबंदी लगा दी है। अमेरिका का यह शगल नया नहीं है। वह अपनी सुविधानुसार पाठ्यक्रम तैयार करता रहा है। जब वह तालिबान के साथ मिलकर अफगानिस्तान से रूसियों को खदेड़ने में लगा था, तब वह तालिबान को जेहाद का पाठ पढ़ा रहा था। जब जेहाद का पाठ उसी पर भारी पड़ा तो अब इसलाम के विरूद्ध युद्ध करने का सबक दिया जाने लगा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि अबुल बारी जैसे लोग अमेरिका जैसे देशों के एजेंट हों, जिनका काम इसलाम को बदनाम करना ही हो। यदि ऐसा है, तो उनकी कोशिशों को नाकाम करने लिए दुनियाभर के उलेमाओं को आगे आना ही होगा। बहुत बेहतर हो कि दुनिया के सबसे बड़े इसलामिक केंद्र दारुल उलूम देवबंद से इसकी शुरूआत हो।

(विस्फोट डॉट काम से साभार)

फिजूलखर्च जयललिता ने साधा करोड़ों में मीडिया को


फिजूलखर्च जयललिता ने साधा करोड़ों में मीडिया को

(रितू सक्सेना)
चेन्नई (साई)। 16 मई का दिन राजा की रिहाई के बाद भी डीएमके के लिए जश्न मनाने का दिन हो या न हो लेकिन तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने इस दिन को धूमधाम से मनाया. उनके सरकार के एक साल पूरा होने के इस धूमधाम की धमक राजधानी दिल्ली में भी दिखाई दी. राजधानी के सभी प्रमुख अंग्रेजी अखबारों का कवर मुंहमांगी कीमत देकर खरीद लिया. केवल दिल्ली ही नहीं बल्कि देश के लगभग सभी अंग्रेजी अखबारों के फ्रंट और बैक कवर जयललिता के गुणगान से पटे रहे.
देश के करीब-करीब सभी प्रमुख अंग्रेजी समाचार पत्रों के 16 मई, 2012 के अंक में मुख्य पृष्ठ पर जया ही छाई हैं। कुछ अखबारों में चार पेज के भी विज्ञापन दिए गए हैं। अंग्रेजी अखबारों के पहले पेज पर जया की आदमकद फोटो के साथ वन ईयर ऑफ एचीवमेंट्स रू हंड्रेड ईयर्स लीप फारवर्ड की कैच लाइन भी है। सूत्रों के अनुसार इस विज्ञापन अभियान के लिए 25 करोड़ का बजट तय किया गया था। कई समाचार पत्रों में जयललिता को उनके चुनावी वादों जैसे चावल के मुफ्त वितरण, मिक्सर ग्राइंडर्स, गायें-बकरियां और बेटी की शादी के लिए मंगलसूत्र देते हुए चित्रों को भी दर्शाया गया है। विज्ञापनों के माध्यम से जयललिता ने यह संदेश भी देने की कोशिश की है कि केंद्र सरकार गैर कांग्रेसी राज्यों के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है।
चूंकि जयललिता सरकार ने अपनी उपलब्धियों का बखान करने वाले विज्ञापन चेन्नई के साथ-साथ दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलूर के भी अंग्रेजी अखबारों में दिए हैं इसलिए यह माना जा रहा है कि वह खुद को राष्ट्रीय नेता के तौर पर उभारना चाहती हैं। एक साथ इतनी बड़ी राशि विज्ञापन पर खर्च करने के मामले में जयललिता ने कई बड़ी कंपनियों को पीछे छोड़ दिया है। 2007 में वोडाफोन ने जब भारत में कदम रखा था तो उसने एक दिन में मीडिया कवरेज पर दस करोड़ रुपये खर्च किए थे।
जयललिता के इस कदम पर द्रमुक प्रमुख करुणानिधि की बेटी कनिमोझी ने कहा है कि ऐसे विज्ञापन तो तब जारी किए जाने चाहिए जब आपने कुछ हासिल किया हो। मुझे समझ नहीं आया कि जयललिता ने एक साल में क्या हासिल किया है? भाकपा नेता गुरुदास गुप्ता के अनुसार, यह संसाधनों की बर्बादी के अलावा और कुछ नहीं।

बोरिंग डिपार्टमेंट


बोरिंग डिपार्टमेंट

(अतुल खरे)

कलाकार - अमिताभ बच्चन, संजय दत्त, लक्ष्मी मंचु, राणा डग्गुबती, नतालिया कौर, मधु शालिनी, विजय राज, अभिमन्यु शेखर सिंह, दीपक तिजोरी।

निर्माता निर्देशक - रामगोपाल वर्मा।

चर्चित निर्माता निर्देशक रामगोपाल वर्मा अंडरवर्ल्ड की दुनिया पर इससे पहले भी कंपनी और सरकार जैसी फिल्में बना चुके हैं। लेकिन, उनकी यह विशेषज्ञता डिपार्टमेंट फिल्म में नहीं दिखती। पुलिस डिपार्टमेंट के नियम-कानूनों की लक्ष्मण रेखा लांघकर गुंडों का सफाया करने का कॉन्सेप्ट नया तो नहीं है फिर भी इस फिल्म की कहानी अच्छी है जिसे वर्मा ठीक से डायरेक्ट नहीं कर पाए।
अंडरवर्ल्ड के आतंक को खत्म करने के लिए होम मिनिस्टर, होम सेक्रेटरी और डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस गुप्त मीटिंग करके एक डिपार्टमेंट बनाते हैं। भ्रष्ट पुलिस अफसर और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट महादेव भोसले (संजय दत्त) इसके हेड हैं। उनकी टीम में एक इमानदार अफसर शिव नारायण(राणा डग्गुबती) भी शामिल है। डिपार्टमेंट में महादेव और शिव के बीच पावर गेम शुरू हो जाता है। इन दोनों की लड़ाई का फायदा भ्रष्ट नेता और पूर्व अंडरवर्ल्ड डॉन सर्जेराव गायकवाड (अमिताभ बच्चन) उठाता है। वह दोनों का इस्तेमाल कर अपनी सत्ता चलाता है।
फिल्म को शुरुआती कुछ मिनटों में देखने के बाद ऐसा लगता है कि यह फिल्म बहुत रोमांचक होगी। लेकिन, कुछ देर बाद कई छोटे-छोटे प्लॉट में बंटी कहानी बोर करने लगती है। क्रिएटिविटी के नाम पर किया गया कैमरा मूवमेंट समझ से परे है। जैसे कि जब पुलिस अफसर बात करते रहते हैं तो कैमरा उनके फेस और एक्सप्रेशन्स को फिल्माने के बदले उनके बॉडी लैंग्वेज के साथ चाय-पानी के ग्लास पर फोकस रहती हैं।
अमिताभ बच्चन फिल्म की इज्जत बचाते हैं और इसमें जान फूंकते हैं। बिग बी की एक्टिंग शानदार है। संजय दत्त और राणा डग्गुबती ने साधारण एक्टिंग की है। मधु शालिनी और अभिमन्यु अपनी भूमिका में बहुत असहज लगे हैं। विजय राज ने अच्छी एक्टिंग की है लेकिन उनका कैरेक्टर आधा-अधूरा लिखा गया है। दीपक तिजोरी और लक्ष्मी मंचु की कोई खास भूमिका नहीं है।
डायरेक्शन के मामले में भी राम गोपाल वर्मा पिछड़ गए हैं। एक बेहतर कहानी को पर्दे पर आधे-अधूरे ढंग से रामगोपाल वर्मा ने उतारा है। कैरेक्टर्स के बीच बिना किसी खास संवाद के बेमतलब के एक्शन सीन्स हैं। फिल्म पर डायरेक्टर की पकड़ कमजोर है।
म्यूजिक/डायलॉग्स/सिनेमेटोग्राफी/एडिटिंग-रामगोपाल वर्मा ने फिर साबित किया है कि फिल्म में गीतों को लेकर उनके पास कोई खास टेस्ट नहीं है। रिमिक्स सॉन्ग श्थोड़ी सी जो पी ली हैश् और नतालिया कौर का आइटम सॉन्ग सी ग्रेड का लगता है। खराब एडिटिंग के साथ-साथ क्रिएटिविटी के नाम पर बेअसर सिनेमेटोग्राफी की गई है। कुछ डायलॉग्स प्रभावशाली हैं लेकिन कुल मिलाकर इसे बेहतर नहीं कहा जा सकता।
इस बोरिंग डिपार्टमेंट को अमिताभ बच्चन के लिए देखा जा सकता है। बाकी इस फिल्म में कुछ भी ऐसा खास नहीं, जिसके लिए इसे देखा जाए।