सोमवार, 21 नवंबर 2011

झाबुआ पावर नियमानुसार सारे काम कर रही है: मिश्रा


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 21

झाबुआ पावर नियमानुसार सारे काम कर रही है: मिश्रा

स्वास्थ्य और शैक्षणिक गतिविधियां संतोषजनक

एयरपोर्ट और डिफेंस का क्लीयरेंस मिला

कार्यवाही है महज कागजों पर

झाबुआ पावर के लिए बिनैकी तक ब्राडगेज डालेगा रेल्वे!

प्लांट सिवनी में कार्यालय जबलपुर में!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। ‘‘देश की मशहूर कंपनी थापर के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड के मध्य प्रदेश में के सिवनी जिले में लगने वाले पावर प्लांट का काम नियमानुसार हो रहा है। कंपनी द्वारा स्वास्थ्य और शैक्षणिक गतितिविधियों के साथ ही साथ क्षेत्र के विकास का काम संतोषजनक स्तर पर किया जा रहा है। कंपनी ने विमानन विभाग और डिफेंस का क्लीयरेंस भी प्राप्त कर लिया है।‘‘ उक्ताशय की बात झाबुआ पावर के घंसौर स्थित प्रमुख श्री मिश्रा ने आज दूरभाष पर चर्चा के दौरान कहीं।

श्री मिश्रा ने कहा कि झाबुआ पावर की 22 नवंबर की जनसुनवाई का विस्त्रत प्राक्कलन मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल (पीसीबी) की वेब साईट पर है, जिसे देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि कार्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी के तहत जिले के एनजीओ सौपान को काम सौंपा गया है। इसके अलावा स्वास्थ्य परीक्षण और शिक्षा के क्षेत्र में भी ध्यान दिया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि यह सिवनी जिले की सीमा का अंतिम छोर है इसलिए कंपनी ने अपना कार्यालय जिला मुख्यालय सिवनी के बजाए जबलपुर में रखा हुआ है। सिवनी में एक लाईजनिंग अफसर के बतौर एम.के. मिश्रा काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय रेल द्वारा जबलपुर से बिनैकी तक ब्राडगेज डालने का काम युद्ध स्तर पर किया जा रहा है।

गौरतलब है कि झाबुआ पावर लिमिटेड के कोल आधारित पावर प्लांट की जनसुनवाई मंगलवार 22 नवंबर को सिवनी जिले के आदिवासी मुख्यालय घंसौर में रखी गई है। इसके पूर्व पहले चरण के लिए 22 अगस्त 2009 को की गई लोक सुनवाई का विस्त्रत प्राक्कलन (डीपीआर) प्रदूषण नियंत्रण मंडल की वेब साईट पर काफी शोर शराबा होने पर 17 अगस्त को डाला गया था। इस बार 22 नवंबर की लोक सुनवाई का डीपीआर 21 नवंबर तक वेब साईट पर नहीं है। जन सुनवाई का पेज नंबर तीन खोलने पर उसमें 352 नंबर पर झाबुआ पावर का जिकर तो आता है पर हिन्दी और अंग्रेजी के बटन पर क्लिक करने पर पेज केन नॉट बी डिस्पलेड आ जाता है। जिससे साफ जाहिर है कि इस गफलत में पीसीबी भी झाबुआ पावर के साथ कदम से कदम मिलाकर ही चल रहा है।

श्री मिश्रा की स्वीकारोक्ति आश्चर्यजनक है कि उन्हें 1000 फिट उंची चिमनी की रक्षा और एविएशन से क्लियरेंस मिल गया है। गौरतलब है कि सिवनी से महज कुछ एरियल डिस्टेंस पर ही गोंदिया में पायलट प्रशिक्षण केंद्र है। साथ ही जबलपुर में भी विशाल आर्मी बेस है। इन परिस्थितियों में झाबुआ पावर को सहजता से क्लयरेंस मिलने की बात गले नहीं उतर पा रही है।

इस पावर प्लांट के पहले चरण के डीपीआर में साफ उल्लेखित था कि कोल आधारित इस प्लांट की अस्सी फीसदी राख हवा में उड़ेगी और महज बीस फीसदी राख ही बाटम राख होगी। इस डीपीआर में हवा का रूख उसी ओर दर्शाया गया था जिस ओर मध्य प्रदेश की जीवन रेखा नर्मदा नदी पर बरगी बांध बनाया गया है। बरगी बांध में उड़कर जाने वाली रखा न केवल पानी को जहरीला बनाएगी वरन् उसकी तलहटी में सिल्ट जमा कर चंद सालों में ही जल भराव क्षेत्र को तेजी से कम कर देगी। नर्मदा बचाओ आंदोलन के नेता भी इस मामले में संदिग्ध तरीके से मौन बैठे हुए हैं।

डीपीआर में कंपनी ने इस परियोजना को 2013 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा है। वर्तमान में क्षेत्र की स्थिति देखकर यह नहीं लगता है कि कंपनी द्वारा आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र घंसौर में कोई विशेष काम किया हो। यहां सारा का सारा काम संस्कारधानी जबलपुर के प्रभावशाली लोगों के हाथों में हैं। स्थानीय लोगों को इसमें बुरी तरह उपेक्षित ही रखा गया है। कंपनी भले ही स्वास्थ्य और शैक्षणिक सुविधा का ध्यान रखने की बात कह रही हो पर जमीनी हकीकत इससे उलट ही है। क्षेत्र में कंपनी द्वारा एक भी नर्सरी, प्राथमिक, माध्यमिक, हाई या हायर सेकेन्डरी स्कूल या अस्पताल नहीं खोला गया है।

यहां कंपनी पर आदिवासियों की जमीन हड़पने के आरोप भी लगे हैं। बताया जा रहा है कि आदिवासियों की जमीनें तो एक लाख रूपए एकड़ खरीदी गईं और अन्य समृद्ध कास्तकारों की जमीन तीन से दस लाख रूपए एकड़ में खरीदी गई हैं। कितने आदिवासी लोगों को इसमें रोजगार दिया गया है इस मामले में भी कंपनी ने मौन साध रखा है। कंपनी दावा कर रही है कि यह काम जनहित का है, वस्तुतः इसमें बनने वाली बिजली को कंपनी द्वारा बेचा जाकर लाभ कमाया जाएगा। कंपनी ने यह बात कहीं भी साफ नहीं की है कि इसमें बिजली के उत्पादन का कितना प्रतिशत वह सिवनी जिले को देगी।

कंपनी इस मामले में भी मौन साधे हुए है कि प्रदूषण से जन धन की हानी के लिए कंपनी क्या कदम उठाएगी? कंपनी ने इसके लिए सहायता कार्ड और इलाज की जवाबदेही भी नहीं ली गई है। इस क्षेत्र में ग्राम अतरिया जो प्लांट से महज डेढ़ किलोमीटर दूर है, को अपने प्रोजेक्ट में शामिल नहीं किया गया है। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव अतरिया ग्राम पर ही पड़ने की उम्मीद जताई जा रही है।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारत सरकार की छटवीं अनुसूची में घंसौर को अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया गया है। कानून के जानकारों का कहना है कि अधिसूचित क्षेत्रों में खनन या अन्य उद्देश्यों के लिए भी आदिवासियों की जमीनों को न तो खरीदा जा सकता है और न ही अधिग्रहित किया जा सकता है। बताया जाता है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस तरह की एक व्यवस्था दी जा चुकी है।

इतना सब कुछ होने पर भी भाजपा के सांसद के.डी.देशमुख विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, कमल मस्कोले, एवं क्षेत्रीय विधायक जो स्वयं भी आदिवासी समुदाय से हैं श्रीमति शशि ठाकुर, कांग्रेस के क्षेत्रीय सांसद बसोरी सिंह मसराम एवं सिवनी जिले के हितचिंतक माने जाने वाले केवलारी विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर का मौन किस खास उद्देश्य विशेष की ओर इशारा कर रहा है।

(क्रमशः जारी)

परमाणु करार पर होगी संसद में रार


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 32

परमाणु करार पर होगी संसद में रार

भाजपा को साधने में लगे कांग्रेस के ट्रबल शूटर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। नोट फॉर वोट मामले का प्रमुख कारक परमाणु करार संधि अब प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह के लिए गले की फांस बनता जा रहा है। परमाणु करार का फंदा मनमोहन के गले में कसता जा रहा है। भारत सरकार के घरेलू न्यूक्लियर लायबिलटी कानून के कारण भारत को अरबों खरबों रूपए के परमाणु व्यापार से अपने आप को दूर रखना पड़ रहा है। उधर दुनिया का चौधरी अमेरिका अब भारत पर दबाव बना रहा है कि वह सीएससी को संसद में पारित कराए और अमल में लाए।

गौरतलब है कि भारत ने सीएससी पर पिछले साल अक्टूबर में दस्तखत किए थे, लेकिन इसे व्यवहार में लाने के लिए भारत को इसे अपनी संसद से पारित करवाना जरूरी होगा। भारत को न्यूक्लियर साजोसामान और ईंधन की सप्लाई पर लगे बैन को न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप की ओर से उठा लेने के बाद भारत में विदेशी कंपनियों को परमाणु रिएक्टर लगाना आसान कर दिया गया। पर दो साल पहले भारत की संसद ने परमाणु बिजली घरों में दुर्घटना के बाद हर्जाना तय करने वाला घरेलू न्यूक्लियर लायबिलिटी कानून पारित किया था, जिसे लेकर अमेरिकी और यूरोपीय कंपनियों ने घोर विरोध किया था। इस वजह से अमेरिकी कंपनियां भारत में परमाणु बिजली घरों में निवेश के लिए तैयार नहीं हो रही हैं। अमेरिका को इस वजह से भारत के अरबों डॉलर के परमाणु बाजार से दूर रहना पड़ सकता है।

अमेरिकी कंपनियों की आपत्तियों को दूर करने के लिए ही भारत सरकार ने परमाणु दायित्व कानून के कुछ नियम ढीले करने की घोषणा सरकार ने की है लेकिन अमेरिकी कंपनियां इससे भी संतुष्ट नहीं हैं। उनकी मांग है कि भारत जल्द से जल्द सीएससी को अनुमोदित कर इसे व्यवहार में लाए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसीलिए अमेरिका के सुप्रीमो बराक ओबामा से शुक्रवार को बाली में हुई मुलाकात में सीएससी को अनुमोदित करने का भरोसा दिया है।

मनमोहन के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि संसद में वह विपक्ष को इसके लिए कैसे राजी करे। पीएमओ में चल रही चर्चाओं के अनुसार नोट फॉर वोट मामले में भाजपा के सांसद भगोरा और फग्गन तथा कुलकर्णी के प्रति सरकार का लचीला रवैया भाजपा नेताओं की सोच बदलने में सहायक साबित होगा। कांग्रेस के ट्रबल शूटर इस जुगाड़ में लग गए हैं कि किसी तरह लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज और राज्य सभा में अरूण जेतली को शीशे में उतार लिया जाए।

अब भारत की संसद अपने लायबिलटी कानून के प्रावधानों के खिलाफ जाने वाले सीएससी का अनुमोदन आसानी से करेगी इसमें संदेह है। इसी वजह से एक साल बाद भी सरकार सीएससी को अनुमोदित करने के लिए संसद में नहीं पेश कर सकी है। विदेशी खासकर अमेरिकी परमाणु कंपनियां चाहती हैं कि भारत जल्द से जल्द सीएससी को अनुमोदित करे ताकि इसे आधार बनाकर ही वह भारत में रिएक्टर लगाने का समझौता कर सके। अमेरिका की दो कंपनियों जीई और वेस्टिंगहाउस को गुजरात और आंध्र प्रदेश में 24 हजार मेगावॉट क्षमता के 16 परमाणु रिएक्टर लगाने की हरी झंडी भारत ने दी है , लेकिन इस पर काम शुरू नहीं हो पाया है। अमेरिका को लग रहा है कि भारत में जिम्मेदारी कानून को लेकर स्थिति जल्द साफ हो तो अमेरिकी कंपनियों को भारत में बीसियों अरब डॉलर के बड़े ठेके हाथ लगेंगे।

(क्रमशः जारी)

महाकौशल के उपभोक्ता हैं आईडिया से त्रस्त!


एक आईडिया जो बदल दे आपकी दुनिया . . .  27

महाकौशल के उपभोक्ता हैं आईडिया से त्रस्त!

सिवनी में मची है आईडिया की मुगलई

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। अभिषेक बच्चन हैं आईडिया के ब्रांड एम्बेसेडर, और उनके ननिहाल वाले सूबे में आईडिया की हालत पतली ही नजर आ रही है। आईडिया के उपभोक्ता देश के हृदय प्रदेश में बुरी तरह त्रस्त हैं। प्रदेश में महाकौशल अंचल में आने वाले सात जिलों में आईडिया का करोबार जिस तरह से चल रहा है वह देखकर लोग आश्चर्य कर रहे हैं। एक उपभोक्ता द्वारा लिए गए नेट कनेक्शन को दो माह बाद भी उसे नहीं सौंपा जाना आश्चर्य का विषय ही माना जा रहा है। नेट के बेहद धीरे होने की शिकायत महाकौशल के हर जिले में आम हो गई है।

एक उपभोक्ता द्वारा दूरभाष पर बताया गया कि उसने आईडिया का नेट कनेक्शन लिया था। नेट तो आरंभ से ही इतनी धीमी गति में चल रहा है मानो आकाशवाणी का सवा तीन बजे का धीमी गति का समाचार हो। नेट पर सर्फिंग करने पर उसे साईट खोलने में घंटों ही लग जाते हैं। जैसे तैसे मेल चेक करने की बारी आती है तब लागिन करने पर ही कनेक्शन दम तोड़ देता है।

वहीं सिवनी जिले के एक उपभोक्ता ने बताया कि उसने आईडिया का नेट सैटर के साथ कनेक्शन लिया था। उसका सिम नंबर 89917851010105568677 एवं मोबाईल नंबर 9617664970 प्रदाय किया गया था। उसने सिम ली ओर नेट आरंभ किया एक दिन बाद वह बंद हो गया। इसकी शिकायत के लिए वह दर दर भटका अंत में दुकान जाकर उसने पूछा तो पता चला कि उसके दस्तावेज पूर्ण नहीं थे। जब उस उपभोक्ता ने बारीकी से जांच की तो ज्ञात हुआ कि उसके दस्तावेज तो पूर्ण थे। उसका नेट सेटर और सिम दोनों ही आईडिया के कारिंदों ने रख ली है जो उसे दो माह बाद भी नहीं मिल पाई है।

(क्रमशः जारी)

नियमविरूद्ध संलग्लनीकरण कर रहे एसी ट्रायबल


नियमविरूद्ध संलग्लनीकरण कर रहे एसी ट्रायबल

(अभिषेक दुबे)

सिवनी। आदिवासी विकास विभाग में इन दिनों नियम विरूद्ध संलग्नीकरण का खेल खेला जा रहा है जिससे विभागीय शैक्षणिक संस्थाओं में शिक्षक और प्राचार्य अपना मूल काम छोड़कर लिपिक और लेखापाल के काम में लगे हुए हैं। वर्तमान में जिले के आधा दर्जन से ज्यादा स्कूलों के लेखापाल आश्चर्यजनक तौर पर आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त कार्यालय में संलग्न हैं। इन लेखापालों की फौज से सहायक आयुक्त क्या काम ले रहे हैं यह बात शोध का विषय ही मानी जा रही है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार शासकीय बालक उच्चतर माध्यमिक शाला गणेशगंज के लेखापाल पी.के.राय, शासकीय हाई स्कूल पीपर वानी की लेखापाल उषा फरबे, शासकीय हाई स्कूल देवगांव के लेखापाल सुधीर राजनेगी, शासकीय आदर्श शाला घंसौर के यशवंत एवं उत्कृष्ठ शाला घंसौर के लेखापाल हेमंत पटेल इन दिनों सहायक आयुक्त कार्यालय में प्रतिनियुक्ति पर हैं।

यहां उल्लेखनीय होगा कि पिछले शैक्षणिक सत्र में जबलपुर संभाग का परीक्षा परिणाम सबसे कम आया था। दूबरे पर दो असाढ़ की तर्ज पर सिवनी जिला इसमें भी सबसे निचली पायदान पर ही था। इनमें भी ट्रायबल विभाग की शालाओं का परीक्षा परिणाम सबसे कम था। लेखापालों के संलग्न हो जाने से प्राचार्य और शिक्षकों को बाबूगिरी का काम करना पड़ रहा है जिससे अध्ययन अध्यापन कार्य बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।

चर्चाओं के अनुसार आखिर सहायक आयुक्त कार्यालय में एसा कौन सा बड़ा वित्तीय कार्य हो रहा है कि सहायक आयुक्त द्वारा आधा दर्जन लेखापालों को संलग्न कर रखा है। नियमानुसार लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण, शिक्षा एवं आदिवासी विकास विभाग में संलग्नीकरण की प्रथा बंद की जा चुकी है। गोरतलब है कि जिला पंचायत सिवनी में संलग्न शासकीय हाई स्कूल गोसांई खमरिया के बाबू को जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने आते ही तत्काल प्रभाव से वापस शाला में भेज दिया था।

कहा जा रहा है कि जितने भी लेखापाल एसी ट्रायबल कार्यालय में संलग्न हैं वे से सहायक आयुक्त को मासिक चढोत्री के दम पर सिवनी में नियम विरूद्ध पदस्थ हैं। विभागीय सूत्रों का कहना है कि एसी कार्यालय में पदस्थ लिपिक योगेश शर्मा इन दिनों एसी के मुंह लगे हैं और वे अपनी हुकूमत विभाग में चला रहे हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार योगेश शर्मा को कोई काम नहीं दिया गया है। उनके जिम्मे एसी के लिए नेताओं से लाईजनिंग की अघोषित जवाबदारी सौंपी गई है।

शिवराज ने पलटा अपना ही निर्णय


ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

शिवराज ने पलटा अपना ही निर्णय
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अब अपने कौल से ही पलटते नजर आ रहे हैं। पहले खेती की जमीनों का अधिग्रहण न करने के निर्देश देते हैं फिर उद्योगों के दबाव में आकर गरीब आदिवासियों की जमीन को कांग्रेस के नेताओं के दबाव में निजी कंपनियों के हवाले करने से भी वे गुरेज करते नहीं दिख रहे हैं। गौरतलब है कि इसी साल अगस्त में भोपाल में शीर्ष स्तरीय निवेश संवर्धन साधिकार समिति की बैठक की अध्यक्षता करते हुए मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने कहा था कि कम होती जा रही खेती की जमीन के मद्देनज़र किसानों की जमीनें अधिगृहीत नहीं की जायेंगी। वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश के ही सिवनी जिले में देश की मशहूर थापर ग्रुप के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड के लिए 600 एकड़ में प्रस्तावित छः सौ मेगावाट के पावर प्लांट को डालने के लिए शिवराज सरकार द्वारा गरीब आदिवासियों की जमीन भी माटी मोल कंपनी को दिलवाई जा रही है।

मन बच जाएंगे सोनिया की नासाजी से
देश के वजीरे आजम डॉ. मनमोहन सिंह के सितारे अब वापस बुलंदी पर जाते दिखने लगे हैं। सोनिया गांधी की नासाज तबियत से वे ज्यादा सक्रिय नहीं हो पा रही हैं। सोनिया से मिलने और उन्हें मशविरा देने वालों की तादाद में भी कमी की गई है। पीएमओ के सूत्रों ने कहा कि मनमोहन सिंह अपनी कुर्सी बचाने के लिए अब कुछ भी करने को तैयार हो गए हैं। सूत्रों ने आगे कहा कि उनकी जुंडाली ने अब सोनिया की रहस्यमय बीमारी के बारे में भी मीडिया को भरमाने की योजना बनाई है ताकि सोनिया की रहस्यमय बीमारी एक बार फिर सुर्खियों में आ जाए और सोनिया के करीबी लोग मनमोहन पर वार करने के स्थान पर डैमेज कंट्रोल में जुट जाएं। इसलिए राहुल को कांग्रेस संगठन की कमान सौंपी जाए। अगर एसा होता है तो मनमोहन के लिए यह राहत की बात इसलिए होगी क्योंकि कुछ दिन तक उन पर वार नहीं किए जाएंगे।

दिग्गी ने साधा युवराज को
मध्य प्रदेश में दस साल तक लगातार शासन करने वाले राजा दिग्विजय सिंह अब प्रधानमंत्री पद के काफी करीब पहुंच चुके हैं। मनमोहन की संभावित बिदाई के बाद अगर किसी की किस्मत खुलेगी तो वे होंगे राजा दिग्विजय सिंह। राहुल भले ही प्रधानमंत्री बनने के लिए आतुर न दिख रहे हों पर दिग्गी राजा जल्दी में ही दिख रहे हैं। वे राहुल गांधी पर दबाव बना रहे हैं कि अब समय आ चुका है राहुल को पद संभाल लेना चाहिए। सूत्रों ने यह भी कहा कि दिग्गी राजा ने राहुल गांधी के आसपास एसे लोगों की फौज जमा दी है जो दिग्गी की कठपुतली बने हुए हैं। वे राहुल को उसी रंग का चश्मा लगाकर दुनिया दिखा रहे हैं जिस रंग की दुनिया दिग्विजय सिंह दिखाना चाहते हैं। अव्वल तो राहुल पार्टी की कमान संभालेंगे फिर मनमोहन को बाहर का रास्ता दिखाएंगे। सोनिया ने मनमोहन को प्रधानमंत्री चुना अब राहुल के मन बन सकते हैं महासचिव दिग्विजय सिंह।

हिमाचली अधिकारी एमपी से कर रहे पीएचडी
भाजपा शासित हिमाचल प्रदेश के एक अधिकारी दिल्ली में नौकरी करते हुए आश्चर्यजनक तौर पर रोजाना हृदय प्रदेश की राजधानी भोपाल में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। यह चमत्कार वे अपने भाजपा शासित मध्य प्रदेश के एक अधिकारी मित्र के जरिए कर रहे हैं। उप संचालक स्तर के उक्त अधिकारी अपने ही समकक्ष तथा समान विभाग के अधिकारी के माध्यम से पत्रकारिता में शोध के काम को अंजाम दे रहे हैं। उन्होंने अपने समान विभाग के एक अन्य अधिकारी जो सेवानिवृति की कगार पर ही हैं से संपर्क साधा और अपनी बात रखी। मध्य प्रदेश काडर के उक्त अधिकारी द्वारा चुटकी बजाते हुए उन्हें आश्वस्त किया कि वे दिल्ली में अपनी नौकरी करें, मध्य प्रदेश के माखन लाल चतुर्वेदी जर्नलिज्म प्रतिष्ठान में वे उनके लिए जुगाड़ लगवा देंगे।

आखिर कैसे बदल जाते हैं शिवराज के सुर!
मध्य प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चौहान जब अपने सूबे में होते हैं तो वे सूबे की भलाई के लिए सब कुछ करने को आमदा होते हैं पर जब वे दिल्ली यात्रा पर होते हैं तो उनके सुर ही बदल जाते हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान एमपी में अपनी रियाया की भलाई के लिए कांग्रेस नीत केंद्र सरकार को पानी पी पी कर कोसते हैं। केंद्र से सहयोग न मिलने की बात बार बार की जाती है। जब दिल्ली में शिवराज के कदम पड़ते हैं तब वे भूल जाते हैं कि एमपी में उन्होंने क्या क्या वायदे किए क्या क्या घोषणाएं की? दिल्ली आकर शिवराज सिंह चौहान दिल्ली की ही भाषा में बात करने लगते हैं। शिवराज सबसे ज्यादा पक्षपात प्रदेश के सिवनी जिले के साथ कर रहे हैं। ब्राडगेज, फोरलेन और पेंच मामले में तो वे प्रदेश में चिंघाड़ते हैं, पर जब दिल्ली में संबंधित मंत्रियों से भेंट करते हैं तब सिवनी के मामले को वे मानो भूल ही जाते हैं।

आम आदमी से दूर होती कांग्रेस
नेहरू गांधी परिवार (महात्मा गांधी नहीं) से इतर वजीरे आजम की कुर्सी पर बैठे कांग्रेस के सिपाही डॉ.मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार और कांग्रेस दोनों ही ने आम आदमी का विश्वास पूरी तरह खो दिया है। इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में मंहगाई, घपले, घोटाले और भ्रष्टाचार में आशातीत बढोत्तरी से आम आदमी हिला हुआ है। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी की कांग्रेस पर पकड़ बहुत ही कमजोर हो चुकी है। गौरतलब है कि खुद को पाक साफ बताने के चक्कर में वजीरे आजम डॉक्टर मनमोहन सिंह ने इस साल के आरंभ में संपादकों की टोली को चाय पर बुलाकर उन्हें अपने अघोषित प्रवक्ता बना दिया था। युवा तरूणाई के प्रतीक कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी पर लोगों की निगाहें थीं। लोगों को उम्मीद थी कि मंहगाई, घपले, घोटाले और भ्रष्टाचार पर राहुल गांधी कम से कम दो शब्द तो बोलेंगे, वस्तुतः एसा हुआ नहीं।

सत्ता और संगठन में खिंची तलवारें
मध्य प्रदेश में सरकार और संगठन के बीच अघोषित युद्ध का आगाज होता दिख रहा है। वैसे तो सूबे के संगठन के निजाम प्रभात झा और सरकार के निजाम शिवराज सिंह के बीच विवाद सड़कों पर नहीं आया है फिर भी इसकी सुगबुगाहटें सियासी गलियारों में सुनाई देने लगी है। शिवराज के गण यानी उनके मंत्री बेलगाम और बयानवीर हो चुके हैं। वहीं भाजपा उपाध्यक्ष रघुनंदन शर्मा को झा ने इसलिए हटा दिया क्योंकि उन्होंने शिवराज के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर टिप्पणी की थी। अब मध्य प्रदेश महिला मोर्चा की उपाध्यक्ष श्रीमति नीता पटेरिया और शिवराज में ठनती दिख रही है। नीता वैसे तो शिवराज के गुणगान करती रहती हैं पर जब बारी नीता पटेरिया के विधानसभा क्षेत्र की आती है तो शिवराज बहुत ज्यादा सख्त रवैया अपनाते हैं।

नहीं हट सका पेंच का पेंच
मध्य प्रदेश से होकर गुजरने वाले उत्तर दक्षिण गलियारे में भेडिया बालक मोगली की कर्मभूमि पेंच नेशनल पार्क का फच्चर अभी भी नहीं निकल सका है। देश की सबसे बड़ी अदालत के द्वारा व्यवस्था दिए जाने के लगभग साल भर बीत जाने के बाद भी मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के वाईल्ड लाईफ बोर्ड ने इसकी सुध नहीं ली है। जब मामला केंद्रीय मंत्री कमल नाथ, जयंती नटराजन, सी.पी.जोशी के पास पहुंचा तो दो टूक जवाब मिला कि मध्य प्रदेश से प्रस्ताव आने पर ही कोई कार्यवाही संभव है। अब सवाल यह उठता है कि कांग्रेस और भाजपा के राजनैतिक गोदे (अखाड़े) का मुद्दा बन चुका यह मार्ग आखिर तीन साल बीतने के बाद भी बन क्यों नहीं पा रहा है। जाहिर है इस राजनीतिक विवाद में कहीं न कहीं बलशाली राजनेताओं की अपनी सियासत हावी है।

आखिर कौन है झाबुआ पावर के पीछे
देश की मशहूर कंपनी थापर ग्रुप के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर के द्वारा स्थापित किए जाने वाले 1200 मेगावाट के कोल आधारित पावर प्लांट के अवैध कारनामो को वैध किया जा रहा है। इसके लिए जनसुनवाई की कानों कान खबर तक नहीं दी जा रही है। मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल भी कंपनी के साथ ही खड़ा दिख रहा है। कंपनी के पावर प्लांट लगते ही मध्य प्रदेश की जीवन रेख नर्मदा बुरी तरह प्रदूषित होना तय ही है। बावजूद इसके पहली जनसुनवाई के पांच दिन पहले ही सारी जानकारी हायतौबा मचने के बाद डाली गई। अब 22 को जन सुनवाई है पर दो दिन पहले तक मण्डल की वेब साईट पर इसकी जानकारी तो है पर पेज नहीं खुलता। सियासी गलियारों में यह चर्चा आम हो चुकी है कि कौन है जो थापर गु्रप के इस 2900 करोड़ रूपए की लागत के पावर प्लांट में 15 से 20 फीसदी कमीशन लेकर उसकी मदद को तत्पर है।

एमपी में बौराई भाजपा कांग्रेस
मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्ष में बैठी कांग्रेस दोनों ही आपा खोती जा रही है। एक तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के खिलाफ वारंट जारी होता है तो दूसरी ओर कांग्रेस के सूबे के निजाम कांति लाल भूरिया द्वारा प्रदेश की महिला मंत्रियों को नचैया कह डाला। सूबे में कांग्रेस भाजपा के बौराएपन से असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। आलम देखकर लगने लगा है मानो किसी को भी सूबे की रियाया की दुख तकलीफ की चिंता नहीं रही। देश की राजनैतिक राजधानी में चल रही बयार के अनुसार कांग्रेस की राजमता श्रीमति सोनिया गांधी की तबियत नासाज होने से वे संगठन पर ध्यान नहीं दे पा रही हैं। उधर अनुभवहीन भाजपाध्यक्ष नितिन गड़करी चाहकर भी एमपी में सत्ता को काबू में रखने में असफल ही दिख रहे हैं।

परमाणु करार को बेकरार होता मन
वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह का मन इन दिनों कहीं नहीं लग पा रहा है। एक तरफ तो कांग्रेस उन्हें बदलने पर आमदा हैं तो दूसरी तरफ दुनिया के चौधरी अमेरिका की चिंता उन्हें खाई जा रही है। परमाणु करार पर देश में रार छिड़ी हुई है। इसी के चलते अस्तित्व में आया था नोट फॉर वोट कांड। कहते हैं इस कांड में अब भाजपा और कांग्रेस में तो समझौता हो गया है। दरअसल मनमोहन ने हाल ही में बाली में ओबामा से इस मामले में सहमति देने का आश्वासन दे चुके हैं। समस्या यह है कि दुर्घटना की स्थिति में सीएसी लागू हो या घरेलू बिल। कन्वेन्शन ऑफ सप्लिमेंटरी कंपनसेशन (सीएससी) वस्तुतः 1997 में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु उर्जा एजेंसी (आईएईए) की एक संधि है, इसके साथ ही भारत में अपना अलग घरेलू लायबिलिटी कानून अस्तित्व में है। भाजपा मान गई तो ठीक वरना मनमोहन को अमेरिका की नाराजगी भी झेलनी पड़ सकती है।

ममता ने चमकाया मनमोहन को!
पेट्रोल के दाम बढ़ाकर सहयोगी दलों विशेषकर ममता बनर्जी का तीखा आक्रोश देखकर कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के हाथ पांव फूल चुके हैं। इसके दामों में लगातार बढ़ोत्तरी से उपजे जनाक्रोश को भी झेलना अब सरकार के बस की बात नहीं लग रही है। मूल लागत में करों को जोड़कर लगभग दुगने दामों पर तेल बेचने के बाद भी सरकार की नवरत्न कंपनियों को डीजल, मिट्टी का तेल और रसोई गैस बेचने में रोजाना 360 करोड़ रूपयों का घाटा उठाना पड़ रहा है जो आश्चर्यजनक ही माना जा हरा है। पीएमओ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि इस वक्त इन तीनों उत्पादों के दामों बढ़ोत्तरी निश्चित तौर पर आत्मघाती ही होगा। सरकार घबराई हुई है कि अगर दाम बढ़ाए तो ममता के तलख तेवरों का सामना कैसे हो पाएगा? अब सरकार बीच का रास्ता निकालने में जुट गई है।

पुच्छल तारा
इन दिनों रूपहले पर्दे पर रजनीकांत और शहरूख खान के चलचित्रों की चर्चाएं जोरों से हैं। शाहरूख की रा वन की चर्चा तेज हुई तो रजनीकांत की रोबोट ने दखल दे डाली। मध्य प्रदेश से शिवेश नामदेव ने एक ईमेल भेजा है। शिवेश लिखते हैं कि रा वन के रिलीज के साथ रजनीकांत की पंच लाईन हो गई है कि -
‘‘रा वन फिल्म का बाक्स ऑफिस कलेक्शन निश्चित तौर पर रोबोट के सायकल स्टेंड के कलेक्शन से कम ही होगा।‘‘