सोमवार, 21 नवंबर 2011

शिवराज ने पलटा अपना ही निर्णय


ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

शिवराज ने पलटा अपना ही निर्णय
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अब अपने कौल से ही पलटते नजर आ रहे हैं। पहले खेती की जमीनों का अधिग्रहण न करने के निर्देश देते हैं फिर उद्योगों के दबाव में आकर गरीब आदिवासियों की जमीन को कांग्रेस के नेताओं के दबाव में निजी कंपनियों के हवाले करने से भी वे गुरेज करते नहीं दिख रहे हैं। गौरतलब है कि इसी साल अगस्त में भोपाल में शीर्ष स्तरीय निवेश संवर्धन साधिकार समिति की बैठक की अध्यक्षता करते हुए मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने कहा था कि कम होती जा रही खेती की जमीन के मद्देनज़र किसानों की जमीनें अधिगृहीत नहीं की जायेंगी। वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश के ही सिवनी जिले में देश की मशहूर थापर ग्रुप के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड के लिए 600 एकड़ में प्रस्तावित छः सौ मेगावाट के पावर प्लांट को डालने के लिए शिवराज सरकार द्वारा गरीब आदिवासियों की जमीन भी माटी मोल कंपनी को दिलवाई जा रही है।

मन बच जाएंगे सोनिया की नासाजी से
देश के वजीरे आजम डॉ. मनमोहन सिंह के सितारे अब वापस बुलंदी पर जाते दिखने लगे हैं। सोनिया गांधी की नासाज तबियत से वे ज्यादा सक्रिय नहीं हो पा रही हैं। सोनिया से मिलने और उन्हें मशविरा देने वालों की तादाद में भी कमी की गई है। पीएमओ के सूत्रों ने कहा कि मनमोहन सिंह अपनी कुर्सी बचाने के लिए अब कुछ भी करने को तैयार हो गए हैं। सूत्रों ने आगे कहा कि उनकी जुंडाली ने अब सोनिया की रहस्यमय बीमारी के बारे में भी मीडिया को भरमाने की योजना बनाई है ताकि सोनिया की रहस्यमय बीमारी एक बार फिर सुर्खियों में आ जाए और सोनिया के करीबी लोग मनमोहन पर वार करने के स्थान पर डैमेज कंट्रोल में जुट जाएं। इसलिए राहुल को कांग्रेस संगठन की कमान सौंपी जाए। अगर एसा होता है तो मनमोहन के लिए यह राहत की बात इसलिए होगी क्योंकि कुछ दिन तक उन पर वार नहीं किए जाएंगे।

दिग्गी ने साधा युवराज को
मध्य प्रदेश में दस साल तक लगातार शासन करने वाले राजा दिग्विजय सिंह अब प्रधानमंत्री पद के काफी करीब पहुंच चुके हैं। मनमोहन की संभावित बिदाई के बाद अगर किसी की किस्मत खुलेगी तो वे होंगे राजा दिग्विजय सिंह। राहुल भले ही प्रधानमंत्री बनने के लिए आतुर न दिख रहे हों पर दिग्गी राजा जल्दी में ही दिख रहे हैं। वे राहुल गांधी पर दबाव बना रहे हैं कि अब समय आ चुका है राहुल को पद संभाल लेना चाहिए। सूत्रों ने यह भी कहा कि दिग्गी राजा ने राहुल गांधी के आसपास एसे लोगों की फौज जमा दी है जो दिग्गी की कठपुतली बने हुए हैं। वे राहुल को उसी रंग का चश्मा लगाकर दुनिया दिखा रहे हैं जिस रंग की दुनिया दिग्विजय सिंह दिखाना चाहते हैं। अव्वल तो राहुल पार्टी की कमान संभालेंगे फिर मनमोहन को बाहर का रास्ता दिखाएंगे। सोनिया ने मनमोहन को प्रधानमंत्री चुना अब राहुल के मन बन सकते हैं महासचिव दिग्विजय सिंह।

हिमाचली अधिकारी एमपी से कर रहे पीएचडी
भाजपा शासित हिमाचल प्रदेश के एक अधिकारी दिल्ली में नौकरी करते हुए आश्चर्यजनक तौर पर रोजाना हृदय प्रदेश की राजधानी भोपाल में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। यह चमत्कार वे अपने भाजपा शासित मध्य प्रदेश के एक अधिकारी मित्र के जरिए कर रहे हैं। उप संचालक स्तर के उक्त अधिकारी अपने ही समकक्ष तथा समान विभाग के अधिकारी के माध्यम से पत्रकारिता में शोध के काम को अंजाम दे रहे हैं। उन्होंने अपने समान विभाग के एक अन्य अधिकारी जो सेवानिवृति की कगार पर ही हैं से संपर्क साधा और अपनी बात रखी। मध्य प्रदेश काडर के उक्त अधिकारी द्वारा चुटकी बजाते हुए उन्हें आश्वस्त किया कि वे दिल्ली में अपनी नौकरी करें, मध्य प्रदेश के माखन लाल चतुर्वेदी जर्नलिज्म प्रतिष्ठान में वे उनके लिए जुगाड़ लगवा देंगे।

आखिर कैसे बदल जाते हैं शिवराज के सुर!
मध्य प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चौहान जब अपने सूबे में होते हैं तो वे सूबे की भलाई के लिए सब कुछ करने को आमदा होते हैं पर जब वे दिल्ली यात्रा पर होते हैं तो उनके सुर ही बदल जाते हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान एमपी में अपनी रियाया की भलाई के लिए कांग्रेस नीत केंद्र सरकार को पानी पी पी कर कोसते हैं। केंद्र से सहयोग न मिलने की बात बार बार की जाती है। जब दिल्ली में शिवराज के कदम पड़ते हैं तब वे भूल जाते हैं कि एमपी में उन्होंने क्या क्या वायदे किए क्या क्या घोषणाएं की? दिल्ली आकर शिवराज सिंह चौहान दिल्ली की ही भाषा में बात करने लगते हैं। शिवराज सबसे ज्यादा पक्षपात प्रदेश के सिवनी जिले के साथ कर रहे हैं। ब्राडगेज, फोरलेन और पेंच मामले में तो वे प्रदेश में चिंघाड़ते हैं, पर जब दिल्ली में संबंधित मंत्रियों से भेंट करते हैं तब सिवनी के मामले को वे मानो भूल ही जाते हैं।

आम आदमी से दूर होती कांग्रेस
नेहरू गांधी परिवार (महात्मा गांधी नहीं) से इतर वजीरे आजम की कुर्सी पर बैठे कांग्रेस के सिपाही डॉ.मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार और कांग्रेस दोनों ही ने आम आदमी का विश्वास पूरी तरह खो दिया है। इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में मंहगाई, घपले, घोटाले और भ्रष्टाचार में आशातीत बढोत्तरी से आम आदमी हिला हुआ है। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी की कांग्रेस पर पकड़ बहुत ही कमजोर हो चुकी है। गौरतलब है कि खुद को पाक साफ बताने के चक्कर में वजीरे आजम डॉक्टर मनमोहन सिंह ने इस साल के आरंभ में संपादकों की टोली को चाय पर बुलाकर उन्हें अपने अघोषित प्रवक्ता बना दिया था। युवा तरूणाई के प्रतीक कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी पर लोगों की निगाहें थीं। लोगों को उम्मीद थी कि मंहगाई, घपले, घोटाले और भ्रष्टाचार पर राहुल गांधी कम से कम दो शब्द तो बोलेंगे, वस्तुतः एसा हुआ नहीं।

सत्ता और संगठन में खिंची तलवारें
मध्य प्रदेश में सरकार और संगठन के बीच अघोषित युद्ध का आगाज होता दिख रहा है। वैसे तो सूबे के संगठन के निजाम प्रभात झा और सरकार के निजाम शिवराज सिंह के बीच विवाद सड़कों पर नहीं आया है फिर भी इसकी सुगबुगाहटें सियासी गलियारों में सुनाई देने लगी है। शिवराज के गण यानी उनके मंत्री बेलगाम और बयानवीर हो चुके हैं। वहीं भाजपा उपाध्यक्ष रघुनंदन शर्मा को झा ने इसलिए हटा दिया क्योंकि उन्होंने शिवराज के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर टिप्पणी की थी। अब मध्य प्रदेश महिला मोर्चा की उपाध्यक्ष श्रीमति नीता पटेरिया और शिवराज में ठनती दिख रही है। नीता वैसे तो शिवराज के गुणगान करती रहती हैं पर जब बारी नीता पटेरिया के विधानसभा क्षेत्र की आती है तो शिवराज बहुत ज्यादा सख्त रवैया अपनाते हैं।

नहीं हट सका पेंच का पेंच
मध्य प्रदेश से होकर गुजरने वाले उत्तर दक्षिण गलियारे में भेडिया बालक मोगली की कर्मभूमि पेंच नेशनल पार्क का फच्चर अभी भी नहीं निकल सका है। देश की सबसे बड़ी अदालत के द्वारा व्यवस्था दिए जाने के लगभग साल भर बीत जाने के बाद भी मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के वाईल्ड लाईफ बोर्ड ने इसकी सुध नहीं ली है। जब मामला केंद्रीय मंत्री कमल नाथ, जयंती नटराजन, सी.पी.जोशी के पास पहुंचा तो दो टूक जवाब मिला कि मध्य प्रदेश से प्रस्ताव आने पर ही कोई कार्यवाही संभव है। अब सवाल यह उठता है कि कांग्रेस और भाजपा के राजनैतिक गोदे (अखाड़े) का मुद्दा बन चुका यह मार्ग आखिर तीन साल बीतने के बाद भी बन क्यों नहीं पा रहा है। जाहिर है इस राजनीतिक विवाद में कहीं न कहीं बलशाली राजनेताओं की अपनी सियासत हावी है।

आखिर कौन है झाबुआ पावर के पीछे
देश की मशहूर कंपनी थापर ग्रुप के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर के द्वारा स्थापित किए जाने वाले 1200 मेगावाट के कोल आधारित पावर प्लांट के अवैध कारनामो को वैध किया जा रहा है। इसके लिए जनसुनवाई की कानों कान खबर तक नहीं दी जा रही है। मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल भी कंपनी के साथ ही खड़ा दिख रहा है। कंपनी के पावर प्लांट लगते ही मध्य प्रदेश की जीवन रेख नर्मदा बुरी तरह प्रदूषित होना तय ही है। बावजूद इसके पहली जनसुनवाई के पांच दिन पहले ही सारी जानकारी हायतौबा मचने के बाद डाली गई। अब 22 को जन सुनवाई है पर दो दिन पहले तक मण्डल की वेब साईट पर इसकी जानकारी तो है पर पेज नहीं खुलता। सियासी गलियारों में यह चर्चा आम हो चुकी है कि कौन है जो थापर गु्रप के इस 2900 करोड़ रूपए की लागत के पावर प्लांट में 15 से 20 फीसदी कमीशन लेकर उसकी मदद को तत्पर है।

एमपी में बौराई भाजपा कांग्रेस
मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्ष में बैठी कांग्रेस दोनों ही आपा खोती जा रही है। एक तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के खिलाफ वारंट जारी होता है तो दूसरी ओर कांग्रेस के सूबे के निजाम कांति लाल भूरिया द्वारा प्रदेश की महिला मंत्रियों को नचैया कह डाला। सूबे में कांग्रेस भाजपा के बौराएपन से असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। आलम देखकर लगने लगा है मानो किसी को भी सूबे की रियाया की दुख तकलीफ की चिंता नहीं रही। देश की राजनैतिक राजधानी में चल रही बयार के अनुसार कांग्रेस की राजमता श्रीमति सोनिया गांधी की तबियत नासाज होने से वे संगठन पर ध्यान नहीं दे पा रही हैं। उधर अनुभवहीन भाजपाध्यक्ष नितिन गड़करी चाहकर भी एमपी में सत्ता को काबू में रखने में असफल ही दिख रहे हैं।

परमाणु करार को बेकरार होता मन
वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह का मन इन दिनों कहीं नहीं लग पा रहा है। एक तरफ तो कांग्रेस उन्हें बदलने पर आमदा हैं तो दूसरी तरफ दुनिया के चौधरी अमेरिका की चिंता उन्हें खाई जा रही है। परमाणु करार पर देश में रार छिड़ी हुई है। इसी के चलते अस्तित्व में आया था नोट फॉर वोट कांड। कहते हैं इस कांड में अब भाजपा और कांग्रेस में तो समझौता हो गया है। दरअसल मनमोहन ने हाल ही में बाली में ओबामा से इस मामले में सहमति देने का आश्वासन दे चुके हैं। समस्या यह है कि दुर्घटना की स्थिति में सीएसी लागू हो या घरेलू बिल। कन्वेन्शन ऑफ सप्लिमेंटरी कंपनसेशन (सीएससी) वस्तुतः 1997 में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु उर्जा एजेंसी (आईएईए) की एक संधि है, इसके साथ ही भारत में अपना अलग घरेलू लायबिलिटी कानून अस्तित्व में है। भाजपा मान गई तो ठीक वरना मनमोहन को अमेरिका की नाराजगी भी झेलनी पड़ सकती है।

ममता ने चमकाया मनमोहन को!
पेट्रोल के दाम बढ़ाकर सहयोगी दलों विशेषकर ममता बनर्जी का तीखा आक्रोश देखकर कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के हाथ पांव फूल चुके हैं। इसके दामों में लगातार बढ़ोत्तरी से उपजे जनाक्रोश को भी झेलना अब सरकार के बस की बात नहीं लग रही है। मूल लागत में करों को जोड़कर लगभग दुगने दामों पर तेल बेचने के बाद भी सरकार की नवरत्न कंपनियों को डीजल, मिट्टी का तेल और रसोई गैस बेचने में रोजाना 360 करोड़ रूपयों का घाटा उठाना पड़ रहा है जो आश्चर्यजनक ही माना जा हरा है। पीएमओ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि इस वक्त इन तीनों उत्पादों के दामों बढ़ोत्तरी निश्चित तौर पर आत्मघाती ही होगा। सरकार घबराई हुई है कि अगर दाम बढ़ाए तो ममता के तलख तेवरों का सामना कैसे हो पाएगा? अब सरकार बीच का रास्ता निकालने में जुट गई है।

पुच्छल तारा
इन दिनों रूपहले पर्दे पर रजनीकांत और शहरूख खान के चलचित्रों की चर्चाएं जोरों से हैं। शाहरूख की रा वन की चर्चा तेज हुई तो रजनीकांत की रोबोट ने दखल दे डाली। मध्य प्रदेश से शिवेश नामदेव ने एक ईमेल भेजा है। शिवेश लिखते हैं कि रा वन के रिलीज के साथ रजनीकांत की पंच लाईन हो गई है कि -
‘‘रा वन फिल्म का बाक्स ऑफिस कलेक्शन निश्चित तौर पर रोबोट के सायकल स्टेंड के कलेक्शन से कम ही होगा।‘‘

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