बुधवार, 21 अप्रैल 2010

पानी रे पानी तेरा रंग कैसा . . .

पानी रे पानी तेरा रंग कैसा . . .

कहां गई सुराही, छागल, मटके

पानी का व्यवसायीकरण बनाम राजनैतिक दिवालियापन

पानी माफिया की मुट्ठी में कैद है हिन्दुस्तान की सियासत

(लिमटी खरे)

ब्रितानी जब हिन्दुस्तान पर राज किया करते थे, तब उन्होंने साफ कहा था कि आवाम को पानी मुहैया कराना उनकी जवाबदारियों में शामिल नहीं है। जिसे पानी की दरकार हो वह अपने घर पर कुंआ खोदे और पानी पिए। यही कारण था कि पुराने घरों में पानी के स्त्रोत के तौर पर एक कुआ अवश्य ही होता था। ईश्वर की नायाब रचना है मनुष्य और मनुष्य हर चीज के बिना गुजारा कर सकता है, पर बिना पानी के वह जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता। आज चान्द या मंगल पर जीवन की खोज की जा रही है। इन ग्रहों पर यही खोजा जा रहा है कि अगर वहां पानी होगा तो वहां जीवन भी हो सकता है।

देश की विडम्बना तो देखिए आज देश को ब्रितानियों के हाथों से आजाद हुए छ: दशक से भी ज्यादा का समय बीत चुका है, किन्तु आज भी पानी के लिए सुदूर इलाकों के लोग तरस रहे हैं। अरे दूर क्यों जाते हैं, देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में अलह सुब्बह चार बजे से ही भोर होते होते लोग घरों के बर्तन लेकर नलों पर जाकर पानी भरकर लाने पर मजबूर हैं। दिल्ली के दो चेहरे आपको देखने को मिल जाएंगे। एक तरफ संपन्न लोगों की जमात है जिनके घरों पर पानी के टेंकर हरियाली सींच रहे हैं, तो दूसरी ओर गरीब गुरबे हैं जिनकी दिनचर्या पानी की तलाश से आरम्भ होकर वहीं समाप्त भी हो जाती है।

देश की भद्र दिखने वालीं किन्तु साधारण और जमीनी सोच की धनी रेलमन्त्री ममता बनर्जी ने रेल यात्रियों को सस्ता पानी मुहैया कराने की ठानी है। उनके इस कदम की मुक्त कंठ से प्रशंसा की जानी चाहिए कि कम से कम किसी शासक ने तो आवाम की बुनियादी आवश्यक्ता पर नज़रें इनायत की। देखा जाए तो पूर्व रेलमन्त्री और स्वयंभू प्रबंधन गुरू लालू प्रसाद यादव ने रेल में गरीब गुरबों के लिए जनता भोजन आरम्भ किया था। दस रूपए में यात्रियों को पुडी और सब्जी के पेकेट मिलने लगे। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि लालू प्रसाद यादव की कुल्हड में चाय और जनता भोजन की योजना सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गई। वास्तविक धरातल पर अगर देखा जाए तो आम यात्री को न कुल्हड में चाय नसीब है और न ही जनता खाना ही मुहैया हो पा रहा है। चुंनिन्दा रेल्वे स्टेशन पर जनता खाना दिखाकर उसकी तस्वीरों से रेल मन्त्रियों को सन्तुष्ट किया जाता है।

कितने आश्चर्य की बात है कि रेल में जनता खाना कहने को दस रूपए का है, और पीने के पानी की बोतल 12 से 15 रूपए की। इस तरह की विसंगति की ओर किसी का ध्यान गया क्यों नहीं। बहरहाल रेल मन्त्री ने अपने यात्रियों को पांच या छ: रूपए में पानी की बोतल मुहैया करवाने के लिए वाटर फिल्टर और पैकेजिंग प्लांट की शुरूआत कर एक अच्छा कदम उठाया है। देखा जाए तो रेल मन्त्री ममता बनर्जी की इस पहल के दूसरे पहलू पर भी गोर किया जाना चाहिए। जब भारतीय रेल अपने यात्रियों को आधी से कम दर में पानी मुहैया कराने का सोच सकती है तो समझा जा सकता है कि देश में पानी का माफिया कितना हावी हो चुका है कि सरकार पानी जैसी मूल भूत सुविधा के सामने पानी माफिया के आगे घुटने टेके खडी हुई है।

चालीस के पेटे में पहुंच चुकी पीढी के दिलोदिमाग से अभी यह बात विस्मृत नहीं हुई होगी जब वे परिवार के साथ सफर किया करते थे तो साथ में पानी के लिए सुराही या छागल (एक विशेष मोटे कपडे की बनी थैली जिसमें पानी ठण्डा रहता था) अवश्य ही रखी जाती थी। राजकुमार अभिनीत मशहूर फिल्म ``पाकीजा`` में जब राजकुमार रेलगाडी में चढता है तो मीना कुमारी के पास रखी सुराही से पानी पीता है। कहने का तात्पर्य यह कि उस वक्त पानी बेमोल था, आज पानी अनमोल है पर इसका मोल बहुत ज्यादा हो गया है।

कितने आश्चर्य की बात है कि करोडों रूपयों के लाभ को दर्शाने वाली भारतीय रेल अपने यात्रियों पर इतनी दिलदार और मेहरबान नहीं हो सकती है कि वह उन्हें निशुल्क पानी जैसी सुविधा भी उपलब्ध करा सके। आईएसओ प्राप्त भोपाल एक्सपे्रस सहित कुछ रेलगाडियों में वाटर प्यूरीफायर लगाए गए थे, जिसमें एक रूपए में एक लीटर तो पांच रूपए में एक लीटर ठण्डा पानी उपलब्ध था। समय के साथ रखरखाव के अभाव में ये मशीनें अब शोभा की सुपारी बनकर रह गईं हैं।

देश के शासकों द्वारा अस्सी के दशक तक पानी के लिए चिन्ता जाहिर की जाती रही है। पूर्व प्रधानमन्त्री चन्द्रशेखर ने अपनी भारत यात्रा में स्वच्छ पेयजल को देश की सबसे बडी समस्या बताया था। स्व.राजीव गांधी ने तो स्वच्छ पेयजल के लिए एक मिशन की स्थापना ही कर दी थी। इसके बाद अटल बिहारी बाजपेयी ने पानी के महत्व को समझा और गांवों में पेयजल मुहैया करवाने पर अपनी चिन्ता जाहिर की थी। वर्तमान में कांग्रेस के नेतृत्व में ही सरकार चल रही है। इसके पहले नरसिंहराव भी कांग्रेस के ही प्रधानमन्त्री रहे हैं। आश्चर्य तो तब होता है जब राजीव गांधी द्वारा आरम्भ किए गए मिशन के बावजूद उनकी ही कांग्रेस द्वारा बीस सालों में भी स्वच्छ पेयजल जैसी न्यूनतम सुविधा तक उपलब्ध नहीं कराई गई है।

आज पानी का व्यवसायीकरण हो गया है। उद्योगपति अब नदियों तालाबों को खरीदने आगे आकर सरकार पर दबाव बनाने लगे हैंं क्या हो गया है महात्मा गांधी के देश के लोगों को! कहां गई नैतिकता, जिसके चलते आधी धोती पहनकर बापू ने उन अंग्रेजों केा खदेडा था, जिनके बारे में कहा जाता था कि ब्रितानियों के राज में सूरज डूबता नहीं है। सरकार अगर नहीं चेती तो वह दिन दूर नहीं जब देश में केंसर की तरह पनपता माफिया लोगों के सांस लेने की कीमत भी उनसे वसूल करेगा।

दिग्गी के जहर बुझे तीर के निहितार्थ

दिग्गी के जहर बुझे तीर के निहितार्थ

चिदम्बरम को साईज में लाने आलकमान ने की है कवायद

कांग्रेस की इंटरनल केमिस्ट्री से बेहतर वाकिफ हैं राजा

थुरूर प्रकरण से ध्यान हटाने की थी कोशिश

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 21 अप्रेल। व्यापार जगत की खबरों को देने वाले एक समाचार पत्र में नक्सलवाद पर अपना आलेख छपवाकर दिग्गी राजा ने ठहरे पानी में कंकर मारकर हलचल तो पैदा कर दी है। राजनैतिक विश्लेषक अब मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्री राजा दिग्विजय सिंह के इस जहर बुझे तीर के पीछे के मन्तव्य खोजने में लगे हैं। वैसे दिग्विजय सिंह के राजनैतिक जीवन के हिसाब से कहा जा सकता है कि राजा ने यह तीर भले ही निकाला अपने तरकश से हो, पर इसको रोशन करने वाले तार दस जनपथ की ही बैटरी में जाकर जुडेंगे, जहां से इसे उर्जा मिल रही है।

दस जनपथ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी के बाद कांग्रेस के नंबर दो ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह ने यह कदम कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी से विचार विमर्श के उपरान्त ही उठाया है। सूत्रों ने कहा कि गृह मन्त्री बनने के बाद पलनिअप्पम चिदम्बरम की लोकप्रियता का ग्राफ बहुत ही तेजी से उपर आया है। उनकी कार्यप्रणाली के चलते अब गुप्तचर संस्थाएं सीधे उन्हें रिपोर्ट करने लगीं हैं। सरकार में नंबर दो पोजीशन पा चुके चिदम्बरम के पर कतरकर उन्हें साईज में लाने आलाकमान ने अपने विश्वस्त राजा दिग्विजय सिंह के मार्फत यह कदम उठाया है।

इस मामले में यह तर्क भी दिया जा रहा है कि राजा दिग्विजय सिंह कांग्रेस की रग रग से वाकिफ हैं, यही कारण है कि कभी राजनीति में कांग्रेस के चाणक्य रहे कुंवर अर्जुन सिंह के शागिर्द राजा दिग्विजय सिंह ने तिवारी कांग्रेस के गठन के वक्त भी उस नाजुक दौर में न केवल अर्जुन सिंह को साधे रखा था, वरन् कांग्रेस में भी मध्य प्रदेश जैसे सूबे में अपनी कुर्सी सलामत रखी थी। राजा दिग्विजय सिंह के बारे में कहा जाता है कि वे कांग्रेस का अन्दरूनी रसायन शास्त्र बखूबी जानते हैं, वे जानते हैं कि किससे किसे मिलाने पर क्या समीकरण बन सकते हैं।

सूत्रों का कहना है कि शशि थुरूर प्रकरण में कांग्रेस की बुरी तरह भद्द पिट रही थी, इसी के चलते राजा दिग्विजय सिंह ने ही सोनिया गांधी को मशविरा दिया था कि इस तरह का एक आलेख अगर वे अपने नाम से प्रकाशित करवा देते हैं तो लोगों का ध्यान इससे बट जाएगा। राजा ने इसके लिए व्यापार की खबरों वाला अखबार इसलिए चुना क्योंकि राजनीति में रूचि रखने वाले लोग कम ही पढा करते हैं, और आलेख के प्रकाशन तक गोपनीयता बनी रहेगी। अगले दिन जब उस अखबार के रिफरेंस से बडे अखबारों में खबर छपी तक जाकर लोग चेते और मामले ने तूल पकडा।

इसके बाद एक के बाद एक खबरें मीडिया जगत में तय रणनीति के मुताबिक प्लांट की जाती रहीं ताकि चिदम्बरम को अहसास हो जाए कि आलाकमान उनकी सक्रियता से खफा है। लोगों को आश्चर्य तो तब हुआ जब सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस के एक जिम्मेदार महासचिव ने यह बात पार्टी फोरम के बजाए अखबार के माध्यम से की और उन पर अनुशासनात्मक कार्यवाही का नाम तक नहीं लिया गया, सिर्फ चेताया गया, वह भी इतने गम्भीर मसले पर। शनै: शनै: सबको समझ में आ गया कि राजा अगर गुर्राया है तो इसके पीछे चाबी कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केन्द्र 10 जनपथ से ही भरी गई है।

वैसे मीडिया में प्लांट की गई इस खबर में दम लगने लगा है कि छत्तीसगढ और उडीसा में नक्सली कार्यवाही की आड में चिदम्बरम खनन कंपनियों का हित साध रहे हैं। इन क्षेत्रों में खनन का काम करने वाली वेदान्ता कम्पनी के एक संचालकों में देश के गृह मन्त्री पलनिअप्पम चिदम्बरम भी रह चुके हैं। राज्य सभा के रास्ते संसदीय सौंध पहुंचे मणि शंकर अय्यर ने तो साफ तौर पर यह बात कह दी थी कि यूपीए सरकार की नक्सल नीति वेदान्ता, एस्सार, पोस्को और मित्तल जैसे बडे व्यवसायिक घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाई गई है।