शनिवार, 2 जून 2012

रहस्यमयी बीमारी के इलाज हेतु यूएस जाएंगी राजमाता!


रहस्यमयी बीमारी के इलाज हेतु यूएस जाएंगी राजमाता!

राहुल को लेकर हो सकता है प्रयोग

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को कौन सी बीमारी हुई है और वे किसकी शल्य क्रिया कराकर लौटी हैं इस बारे में आज भी देश के किसी नागरिक को कुछ नहीं पता है, यहां तक कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को भी इस बात की जानकारी नहीं है कि आखिर सोनिया का मर्ज क्या है। इस माह एक बार फिर सोनिया अपने रूटीन चेकअप या आपरेशन के लिए विदेश जाने वाली हैं, उस वक्त राहुल के हाथों में कमान सौंपकर एक प्रयोग किया जा सकता है।
ज्ञातव्य है कि पिछले साल दो अगस्त को कांग्रेस की राजमाता सोनिया गांधी दुनिया के चौधरी अमरीका की शरण में गईं थीं। भारत गणराज्य में आयुर्विज्ञान, आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथ आदि मामलों में नित नए प्रयोग करने वाली कांग्रेस की अध्यक्षा को देश की चिकित्सा प्रणाली और चिकित्सकों पर रत्ती भर विश्वास नहीं था तभी उन्होंने अपनी इस रहस्यमय बीमारी के लिए अमरिका की उंगली थामी।
कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ (सोनिया गांधी को आवंटित सरकारी आवास) के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि इस माह के मध्य में एक बार फिर सोनिया गांधी अमरीका जा रही हैं। उनकी यह यात्रा कितनी लंबी होगी इस बारे में सूत्रों ने मौन साध रखा है, किन्तु सूत्रों ने इस बात के संकेत अवश्य ही दिए हैं कि सोनिया की यात्रा उनके स्वास्थ्य कारणों से है और वे इस दरम्यान अपनी शल्य क्रिया अथवा रूटीन चेकअप करवाएंगी।
सोनिया की इस रहस्यमय बीमारी के बारे में लगभग दस माह बीत जाने के बाद भी कांग्रेस की चुप्पी आश्चर्यजनक ही मानी जा रही है। सोनिया की बीमारी के बारे में कयास लगाने वालों ने इसे कैंसर की बीमारी निरूपित करने से भी गुरेज नहीं किया है। जेड़ प्लस सुरक्षा वाली सोनिया की सुरक्षा में लगा एसपीजी का दस्ता भी अपना मुंह सिले हुए है। कांग्रेस और नेहरू गांधी परिवार पर लगातार वार करने वाले सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी यह पूछने की जहमत नहीं उठाई है कि सोनिया किस बीमारी के इलाज के लिए विदेश गईं और उनकी यात्रा एवं उनके साथ गए सरकारी सुरक्षा दस्ते के देयकों का भोगमान किसने भोगा?
उधर, सूत्रों ने यह भी कहा कि आदि अनादिकाल में चलने वाली सामंतशाही आज भी आजाद भारत गणराज्य में बरकरार है। देश की सत्ता का हस्तांतरण सोनिया गांधी के हाथों से राहुल गांधी के हाथों में धीरे धीरे होने लगा है। राहुल गांधी ने इस फेरबदल की प्रक्रिया को काफी पहले ही अंजाम दे दिया था। वे देश भर का दौरा कर रहे हैं। देश भर में सांसद विधायकों से राहुल गांधी रूबरू हो रहे हैं।
कांग्रेस का एक बहुत बड़ा वर्ग चाह रहा है कि राहुल गांधी जल्द ही देश के प्रधानमंत्री बनें ताकि बदलाव की बयार को महसूस किया जा सके, और पुराने पापों को धोकर खाता बही नए सिरे से तैयार हो सके। यह बात आईने की तरह साफ है कि सत्ता की बागडोर संभालने का निर्णय राहुल और सोनिया का नितांत निजी मामला है। राहुल अभी सत्ता संभालने के इच्छुक कतई नहीं नजर आ रहे हैं।
राहुल के बेहद करीबी एक नेता ने पहचान उजागर ना करने की शर्त पर कहा कि राहुल गांधी मूल रूप से मनमोहन सिंह की कार्यप्रणाली से बेहद खफा हैं। राहुल के निशाने पर केंद्र सरकार के वे मंत्री हैं जिनके नाम नीरा राडिया प्रकरण में उजागर हुए हैं। राहुल उस जहाज का कप्तान कतई नहीं बनना चाह रहे हैं जिस जहाज में ज्यादातर मंत्रियों की आयु 66 पार हो चुकी है।
उन्होंने कहा कि सरकार की कमान संभालने के पूर्व राहुल चाहते हैं कि सरकार और पार्टी की छवि सुधरे। इसके लिए वे लगातार प्रयासरत भी हैं। पिछले एक साल में राहुल के ट्यूटर राजा दिग्विजय सिंह के गलत कदमों से राहुल गांधी को काफी नुकसान हुआ है, जिसके बारे में राहुल बेहद देरी से जागे।
कांग्रेस की कोर कमेटी से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो सोनिया के विदेश जाने के पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी द्वारा अपने दुलारे पुत्र राहुल गांधी को कांग्रेस की चाबी सौंप दी जाएगी। अपेक्षाकृत अधिक ताकतवर होकर राहुल कांग्रेस संगठन में चाबुक चला सकते हैं जिसके प्रभाव बारिश में ही समझ में आने लगेंगे।

सरकारी सिस्टम में ढलेगी कांग्रेस!


सरकारी सिस्टम में ढलेगी कांग्रेस!

कांग्रेस में नए कोषाध्यक्ष की तलाश तेज

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)।अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का चेहरा मोहरा बदलने वाला है। जल्द ही कांग्रेस के नेशनल हेडक्वार्टर में उमर दराज लोग पदों पर दिखाई नहीं देने वाले हैं। कांग्रेस में वयोवृद्ध कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के स्थान पर नए खजांची की तलाश तेज हो गई है। वोरा को उत्तर प्रदेश में लाट साहब बनाकर उनकी जीवन भर की सेवा का सम्मान किया जाने वाला है। कांग्रेस को सरकारी सिस्टम में ढालने की कवायद की जा रही है।
कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के नए केंद्र 12, तुगलक लेन (राहुल गांधी को आवंटित सरकारी आवास) की फिजां में तैर रहे तथ्यों के अनुसार राहुल गांधी अब कांग्रेस का चेहरा मोहरा दोनों बदलने की कवायद में लग गए हैं। पचास के पेटे में पहुंच चुके लोगों को तो इसमें राहत मिल सकती है पर साठ की उमर पार कर चुके नेताओं को घर बैठना ही होगा।
कहा जा रहा है कि जिस तरह केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा साठ या बासठ की आयु पार करने के उपरांत कर्मचारी को सेवा निवृत्ति दे दी जाती है वैसे ही कांग्रेस में अब साठ पार के नेताओं को जबरिया घर बिठा दिया जाएगा। नेहरू गांधी परिवार के वफादार कुछ नेताओं को अवश्य ही सरकारी सिस्टम की तरह साठ के बाद भी पुर्ननियुक्ति दी जा सकती है, पर इनकी तादाद बेहद कम होगी।
राहुल के करीबी सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस में सबसे बुजुर्ग खजांची मोती लाल बोरा का नाम पहले महामहिम राष्ट्रपति पद के लिए सुझाया गया था किन्तु बाद में उनके कद के हिसाब से इसमें अनेक लोगों द्वारा फच्चर फंसा दिया गया। राहुल को सुझाया गया है कि जीवन भर कांग्रेस की सेवा करने वाले वोरा को अब ससम्मान सेवानिवृत्त कर दिया जाना चाहिए।
सूत्रों ने कहा कि राहुल को यह सुझाव पसंद आया और उन्होंने मोती लाल वोरा को उनकी उमर देखते हुए सक्रिय राजनीति से विदा देते हुए बी.एल.जोशी के स्थान पर उत्तर प्रदेश का महामहिम राज्यपाल बना देने का फैसला लिया है। जैसे ही यह बात यूपी के सरताज मुलायम सिंह यादव को उनकी बांछे खिल गईं।
कहा जा रहा है कि वोरा को उत्तर प्रदेश के लाट साहब जोशी को तत्काल हटवाना चाह रहे हैं। दरअसल, जोशी के दरबार में मिलने वालों से बेहद सख्ती से पेश आया जाता है। यही कारण है कि मुलायम को जोशी फूटी आंख नहीं सुहा रहे हैं। कांग्रेस को राष्ट्रपति चुनावों के लिए मुलायम को प्रसन्न करना मजबूरी है, और इसीलिए वे जोशी के स्थान पर किसी नरमदिल नेता को वहां भेजना चह रही है।
कांग्रेस के अंदरखाने में इस बारे में लोग आवश्वस्त हैं कि मुलायम और वोरा की जोड़ी जमकर जमेगी। वोरा के कार्यकाल में विपक्ष के लिए भी आधी रात को दरवाजे खुले रहते थे। वैसे भी लाट साहब को की गई राज्य सरकार की शिकायत अंततः राज्य सरकार के पास ही जांच के लिए भेजी जाती है, इसलिए विपक्ष के तेवरों को शांत करने के लिए राज्यपाल अगर विपक्ष को ज्यादा तवज्जो देते हैं तो यह मौजूदा सरकार के लिए राहत की ही बात होती है।
बहरहाल, यूपीए के रात्रिभोज में मुलायम सिंह यादव और मोती लाल वोरा की जुगलबंदी देखने को मिली। एक ओर जहां मुलायम ने मुक्त कंठ से वोरा की तारीफ की तो वोरा भी मुलायम के लिए बदले बदले नजर आए। कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि काना फूसी के दरम्यान मुलायम ने वोरा के कान में यूपी का लाट साहब बनकर आने का न्योता भी दे डाला है।

हिंसा प्रतिहिंसा की आग में झुलसता बिहार


हिंसा प्रतिहिंसा की आग में झुलसता बिहार
पटना (साई)। ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या के बाद अचानक कई सवाल हवा में तैरने लगे हैं। क्या बिहार फिर से हिंसा-प्रतिहिंसा के दौर में लौटेगा, अगर हां, तो उसके आधार क्या हैं, वह कितना टिकाऊ व वास्तविक होगा। सिर्फ दस-पंद्रह  साल पहले रणवीर सेना व नक्सलवादियों के बीच एक का बदला दस से लेने की लड़ाई चल रही थी। सैकड़ों लोग मारे गये। दोनों पक्षों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा। और सबसे बड़ी बात यह है कि तब राज्य मशीनरी लकवाग्रस्त थी। लोगों को कहीं से न्याय की उम्मीद नहीं थी। वह  स्थिति  हिंसा -प्रतिहिंसा के लिए तर्क मुहैया कराती थी।  बिहार ने बड़ी कीमत चुकाने के बाद समझा कि हिंसा किसी सवाल का जवाब नहीं देती, उल्टे वह नये सवाल खड़ा कर देती है।
इस बीच दलितों व सवर्णाे दोनों की स्थिति व समझ में बदलाव आया। अब न तो किसी दलित को कुरसी पर बैठने से रोका जाता है, न ही किसी सवर्ण की जमीन पर दिन-दहाड़े कोई लाल झंडा गाड़ने को उतावला है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीति भी इसी दौर में आगे बढ़ी व कल तक दो विपरीत ध्रुवों पर खड़े महादलितों व सवर्णाे के बीच  समन्वय बना, लेकिन इसे अंतिम तौर पर स्थायी मान लेना भूल होगी। अब अगर फिर से हिंसा की राजनीति हुई, तो उसका वास्तविक भौतिक आधार कमजोर होगा, लेकिन  बिहार की राजनीति ऊपर से भले ही स्थिर हो, थोड़ा नीचे जाने पर  उसमें गति दिखती है। इसीलिए नया ध्रुवीकरण पैदा करने की कोशिश हो सकती है। यहां यह समझ लेना चाहिए कि आज पूरे देश की राजनीति बदल चुकी है। आज  विकास एजेंडा है। उधर, जिस तरह केंद्र की नीतियां विकास दर को नीचे ले जा रही है, उससे गरीब प्रदेशों को सबसे अधिक नुकसान होगा। इस दौर को आप आर्थिक मुक्ति का दौर भी कह सकते हैं। बिहार में लाखों लोगों को रोजगार देना है। इस सबके लिए  विकास के एजेंडे पर टिके रहना बेहद जरूरी है, जिसके  लिए शांति पहली शर्त है।
यह संतोष की बात है कि आज बिहार की राजनीति  विकास के एजेंडे पर आगे बढ़ रही है। इस एजेंडे से बिहार भटका व जातीय गोलबंदी की राजनीति हुई, तो सबका नुकसान होगा।  इससे बचने के लिए समाज व सरकार दोनों को आगे आना पड़ेगा। समाज के किसी हिस्से को यह नहीं लगे कि उन्हें व्यवस्था में न्याय पाने के मौके नहीं हैं । सरकार को हस्तक्षेप करना होगा। चाहे वह बथानी टोले के हत्यारों को सजा दिलाने की बात हो या ब्रह्मेश्वर मुखिया के हत्यारों को सलाखों के पीछे डालना हो। समाज के प्रबुद्ध लोगों को भी तुरंत सक्रिय हो कर हस्तक्षेप करना होगा। बताना होगा कि शांति व बातचीत ही किसी समस्या का हल है। अंततरू गांधी का रास्ता ही सर्वश्रेष्ठ रास्ता है।
ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या के बाद रणवीर सेना एक बार फिर चर्चा में आ गयी है। बिहार में जातीय सेनाओं के इतिहास में रणवीर सेना लंबे समय तक न केवल वजूद में रही, बल्कि इसने क्रूर तरीके से लोगों की हत्याएं भी कीं। रणवीर सेना का गठन भोजपुर में भाकपा माले (लिबरेशन) की अगुआई में 80 के दशक में शुरू हुई भूमि और मजदूरी के सवाल पर संघर्ष की प्रतिक्रिया की उपज था। तब माले भी भूमिगत नक्सली संगठन था। सहार, संदेश और एकवारी इलाके में भूमिहीन मजदूरों और छोटे किसानों को गोलबंद कर माले ने सवर्ण समुदाय के बड़े किसानों के खिलाफ लड़ाई शुरू की थी। उन पर आर्थिक नाकेबंदी लगायी गयी थी और इस कारण करीब पांच हजार एकड़ भूमि परती थी। इसकी प्रतिक्रिया में बड़े जोतदार गोलबंद होने लगे। जातीय तनाव भी चरम पर था।

0 ब्रह्मेश्वर  मुखिया
ब्रह्मेश्वर 17 वर्षाे तक खोपिरा पंचायत के निर्विरोध मुखिया रहे। भोजपुर जिले के संदेश के खोपिरा गांव के रहने वाले ब्रह्मेश्वर मुखिया का परिवार  किसान रहा है। खुद शिक्षक थे। 26 कांडों के आरोपित रहे ब्रह्मेश्वर  जेल से रिहाई के बाद अहिंसा और शांति की बात करने लगे थे। उन्होंने पांच मई को अखिल भारतीय राष्ट्रवादी किसान महासंघ का गठन किया था।

0 बेलाउर में गठित हुई थी रणवीर सेना
भोजपुर जिले के बेलाउर गांव में एक सिगरेट को लेकर विवाद ने तूल पकड़ा। माले समर्थक बीरबल यादव की गांव के ही एक व्यकित से झड़प हो गयी। चूंकि बेलाउर व आसपास के गांवों में पहले से जमीन और मजदूरी को लेकर संघर्ष चल रहा था, ऐसे में इस घटना ने आग में घी का काम किया। बेलाउर गांव के एक स्कूल में सितंबर1994 में किसानों की बैठक हुई, जिसमें खोपिरा के ब्रह्मेश्वर मुखिया और बेलाउर के वकील चौधरी समेत कई अन्य लोग मौजूद थे।

(प्रभात खबर से साभार)

तलवार भांजते भाजपाई क्षत्रप


तलवार भांजते भाजपाई क्षत्रप

भाजपा की गुटबाजी सड़कों पर!

(महेश रावलानी)

नई दिल्ली (साई)। भाजपा में अब वर्चस्व की लड़ाई सड़कों पर आ गई है। नितिन गड़करी को दूसरे टर्म के लिए हरी झंडी मिलने, नरेंद्र मोदी का कद अनायास ही बढ़ने और एल.के.आड़वाणी को बलात हाशिए पर लाने के परिणाम स्वरूप भाजपा के अंदर ही अंदर सियासी उबाल आने लगा है। भाजपा में बयान युद्ध चरम पर पहुंच गया है। आड़वाणी के इशारे के बाद अब भाजपा के क्षत्रपों के बीच बयान युद्ध चरम पर पहुंच गया है।
भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की ओर से पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी को आड़े हाथ लिए जाने के दूसरे दिन पार्टी के मुखपत्र में एमपी भाजपा के निजाम प्रभात झा ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पर प्रहार किया गया है। किसी का नाम लिए बिना इसमें कहा गया कि किसी के ऐसे व्यवहार से पार्टी नहीं चल सकती कि सिर्फ उसकी चलेगी, नहीं तो किसी की नहीं चलेगी।
पार्टी के मुखपत्र कमल संदेश के ताजम अंक के संपादकीय में मोदी का नाम लिए बिना कहा गया कि पार्टी व्ययस्थाओं से चलती है। पार्टी किसी एक के सहयोग से नहीं, बल्कि सभी के सहयोग से चलती है। सिर्फ मेरी ही चलेगी, मेरी नहीं तो किसी की नहीं चलेगी, की तर्ज पर न संगठन चलता है, न समाज और न ही परिवार।
गौरतलब है कि हाल में मुंबई में संपन्न भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मोदी ने इस शर्त पर उसमें शिरकत की कि पहले राष्ट्रीय कार्यकारिणी से उनके कट्टर प्रतिद्वन्द्वी सुनील जोशी को हटाया जाए। गडकरी को उनकी इस मांग के सामने झुकना पड़ा। इससे पूर्व दिल्ली में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जोशी को हटाए जाने की मांग नहीं मानी जाने के कारण मोदी उसमें नहीं आए थे।
कमल संदेश में कहा गया कि जरूरत से ज्यादा जब हम किसी की प्रशंसा करते हैं तो व्यक्ति के बिगड़ने की संभावना का द्वार हम स्वतरू खोल देते हैं। इसमें कहा गया कि ऊंचाई पर हम जाते हैं तो हमारी समक्ष की ऊंचाई भी बढ़नी चाहिए। पर अक्सर देखा गया है कि अधिक ऊंचाई पर जाने पर आदमी यह जानते हुए भी कि उसे एक न एक दिन नीचे आना होगा, बावजूद इसके वह नीचे वालों पर आंखे तरेरता है। संपादकीय में कहा गया कि भाजपा शासित कर्नाटक और गुजरात में पिछले दिन जो कुछ हुआ, उससे आम आदमी को काफी तकलीफ हुई। तकलीफ उनको भी हुई है जो भाजपा के कार्यकर्ता और समर्थक हैं।
भाजपा नेताओं को जल्दबाजी नहीं करने और अपने वजूद की लड़ाई नहीं लड़ने की नसीहत देते हुए इसमें कहा गया कि कभी कभी अधिक भीड़ होने के कुछ आवश्यक यात्री को भी स्टेशन पर ही रुक जाना पड़ता है। वह यात्री दूसरी रेल का इंतजार करता है। वह जल्दबाजी में न किसी यात्री को घसीटता है, न रेल पर पथराव करता है और न पटरी उखाड़ता है।
आडवाणी की तारीफ करते हुए इसमें कहा गया कि अटलजी, आडवाणीजी और डॉ मुरली मनोहर जोशीजी भारतीय राजनीति के क्षितिज पर इसलिए सालों से चमक रहे हैं कि इन्होंने सदैव संगठन को सर्वाेपरि माना है। अपने को भाजपा के भीतर रखा, बावजूद इसके कि उनका कद बहुत बड़ा है पर उन्होंने अपने कद को पार्टी के कद से ऊंचा नहीं किया।
उधर आडवाणी ने कल अपने ब्लाग में गडकरी का नाम लिए बिना उनके कुछ फैसलों पर खुली नाराजगी जताते हुए कहा था कि भाजपा को अंतरावलोकन करने की जरुरत है, क्योंकि जनता अगर संप्रग से क्रुध है तो वह भाजपा से भी निराश है। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और झारखंड के संबंध में पार्टी के कुछ निर्णयों से संप्रग सरकार के भ्रष्टाचार के विरुद्ध भाजपा के अभियान को धक्का लगा है।
विवाद को हवा मिलते ही अब एमपी भाजपाध्यक्ष प्रभात झा रक्षात्मक मुद्रा में आ चुके हैं। इंदौर में वरिष्ठ भाजपा नेता प्रभात झा ने पार्टी के मुखपत्र कमल संदेशके ताजा अंक में छपे अपने विशेष संपादकीय को लेकर आज सफाई देते हुए कहा कि उनके आलेख का मकसद सियासत के मौजूदा दौर में भाजपा संगठन को मजबूत बनाये रखने का संदेश देना है।
झा ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘मेरे संपादकीय के अलग-अलग अर्थ निकाले जा रहे हैं, लेकिन इसे लेकर मेरा अर्थ यही है कि अनास्था के इस दौर में देश फिलहाल भाजपा की ओर उम्मीद की निगाहों से देख रहा है। लिहाजा सभी भाजपा कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है कि वे खुद को मजबूत बनाये रखें।
वरिष्ठ भाजपा नेता ने अपने आलेख की शुरुआत कर्नाटक, गुजरात और राजस्थान में पिछले दिनों सामने आये घटनाक्रम का हवाला देते हुए की है, जहां पार्टी भीतरी खींचतान से जूझती दिखायी दी थी। बहरहाल, ‘कमल संदेशके संपादक ने जोर देकर कहा कि उन्होंने पार्टी के मुखपत्र में बडी जिम्मेदारी सेसंपादकीय लिखा है और इस आलेख का मुंबई में 2425 मई को संपन्न भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से कोई ताल्लुक नहीं है। झा ने पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को भाजपा का सर्वश्रेष्ठनेता बताया, जिन्होंने हाल ही में अपने ब्लॉग में पार्टी को आत्मचिंतन की सलाह दी है।
उन्होंने कहा, ‘आडवाणी हमारी पार्टी के सर्वश्रेष्ठ नेता हैं। उनकी अभिव्यक्ति और वाणी हमें रास्ता दिखाती है। उन्होंने पार्टी को मजबूत बनाने के लिये अपने ब्लॉग में जो अपेक्षाएं जतायी हैं, हम सब मिलकर उन्हें साकार करने की कोशिश करेंगे।झा ने इस बात को खारिज किया कि आडवाणी ने अपने ब्लॉग के जरिये भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर अप्रत्यक्ष हमला किया है। उन्होंने कहा, ‘आडवाणी सबको स्नेह देते हैं। वह किसी पर हमला नहीं करते।
उधर, भाजपा में उभर रहे गतिरोध और मतभेदों के बीच गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज यहां पार्टी के सबसे वरिष्ठ दो नेताओं अटल बिहारी वाजपेयी तथा लालकृष्ण आडवाणी से मुलाकात की। पिछले कुछ साल से अस्वस्थ चल रहे वाजपेयी का जिक्र आज भी कई नेता पार्टी के भीतर अपनी स्वीकार्यता बढाने के लिए करते हैं। अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर तेजी से उभर रहे मोदी की वाजपेयी से मुलाकात को भी इसी तरह की एक कोशिश माना जा रहा है। वाजपेयी की पुरानी तस्वीरों, भाषणों और कविताओं को वरिष्ठ भाजपा नेता अकसर इस्तेमाल करते हैं क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री की लोकप्रियता भाजपा के भीतर और बाहर अभी भी बेजोड है।
सूत्रों के अनुसार मोदी ने वाजपेयी की सेहत का हालचाल जानने के लिए उनसे मुलाकात की और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। अहमदाबाद लौटने से पहले मोदी ने आडवाणी से भी मुलाकात की। उनकी मुलाकात ऐसे समय में हुई है जब आडवाणी ने अपने एक ब्लॉग में पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी पर उनके कुछ फैसलों को लेकर अप्रत्यक्ष निशाना साधा है। गडकरी के साथ मोदी के संबंध भी बहुत मधुर नहीं रहे हैं। आडवाणी गुजरात के गांधीनगर से लोकसभा सदस्य हैं। मोदी तथा आडवाणी के बीच भी कुछ मुद्दों पर मतभेद रहे हैं लेकिन आडवाणी अलग अलग मौकों पर तथा अपने ब्लॉग एवं भाषणों में गुजरात के मुख्यमंत्री की जमकर तारीफ भी करते रहे हैं।