शनिवार, 3 नवंबर 2012

ठाकुरों के वर्चस्व की जंग दिख रही हिमाचल में


नेक टू नेक फाईट है हिमाचल में

ठाकुरों के वर्चस्व की जंग दिख रही हिमाचल में

(लिमटी खरे)

शिमला (साई)। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर है। मतदाताओं का मौन देखकर यह कहना मुश्किल है कि इस बार उंट किस करवट बैठेगा। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही अपनी अपनी सरकार बनाने के प्रति आश्वस्त नजर आ रहे हैं। राज्य सभा के रास्ते केंद्र में राजनीति करने वाले केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा का कद हिमाचल प्रदेश में काफी हद तक कम हो गया है।
देखा जाए तो हिमाचल प्रदेश में दो ठाकुरों के बीच वर्चस्व की जंग ही सामने आ रही है। एक तरफ सत्ताधारी भाजपा के निजाम प्रेम कुमार धूमल हैं तो दूसरी तरफ पांच मर्तबा प्रदेश की कमान संभाल चुके वीरभद्र सिंह हैं। कांग्रेस और भाजपा में गुटबाजी चरम पर ही दिख रही है।
कांग्रेस के खेमे से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो देश की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी कांग्रेस राज्य में 68 में से 45 सीटें अपनी झोली में डाल सकती है। सूबे में भ्रष्टाचार मुख्य म  ुद्दा बनता नहीं दिख रहा है। वीरभद्र सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार की खासी फेहरिस्त होने के बाद भी उनकी मांग ही सूबे में सबसे ज्यादा देखने को मिल रही है।
राज्य में वीरभद्र सिंह काफी ताकतवर साबित हुए हैं। वीरभद्र ने अपने 53 समर्थकों को टिकिट देकर उपकृत किया है। राज्य में कांग्रेस में गुटबाजी भी चरम पर है। वीरभद्र ने शेष 15 सीटों पर बिना ना नुकुर के अपनी दावेदारी छोड़ी है। इन 15 सीटों पर केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा के अनुयायी मैदान में हैं।
कांग्रेस के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि वीरभद्र सिंह ने अपने सारे उम्मीदवारों के निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा पूरा कर लिया है। वीरभद्र चाह रहे हैं कि वे अपने ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवार जिताकर ले आएं ताकि आलाकमान के सामने उनकी स्थिति आनंद शर्मा के मुकाबले अधिक मजबूत होकर उभरे।
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के नेशनल हेडक्वार्टर के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि राज्य में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी में आनंद शर्मा को आलाकमान का आर्शीवाद मिला हुआ है। वीरभद्र सिंह ने अब तक साठ सीटों पर प्रचार किया है। शेष आठ को आनंद शर्मा के लिए छोड़ दिया है।
भाजपा से टूटकर अलग हुए पूर्व सांसद महेश्वर सिंह ने वामपंथियों का साथ पकड़कर नए समीकरणों का आगाज किया है। इसके साथ ही साथ अगड़ी और पिछड़ी जातियों के वोट अब तक कांग्रेस और भाजपा की झोली में जाकर गिरते रहे हैं सूबे में। इस मर्तबा राजपूत वोटर्स का बिखराव होता दिख रहा है, जो भाजपा के लिए चिंता का विषय हो सकता है। वहीं दूसरी ओर दलित वोटर्स में बसपा की हिस्सेदारी सीधे सीधे कांग्रेस के लिए घातक साबित हो सकती है।
ज्ञातव्य है कि वर्ष 2007 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की झोली में 43.78 प्रतिशत वोट तो कांग्रेस को 38.90 एवं अन्य को 17.32 प्रतिशत वोट मिले थे। इसी तरह 2009 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को जहां 49.58 तो कांग्रेस को 46.41 एवं अन्य के खाते में 3.81 फीसदी वोट आए थे।
वहीं भाजपा की ओर से भी कमोबेश चालीस के उपर सीटें जीतने का दावा परोक्ष तौर पर ठोंका जा रहा है। भाजपाध्यक्ष नितिन गडकरी के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला उछलने से भाजपा अब भ्रष्टाचार के मामले में बैकफुट पर ही दिख रही है। कहा जा रहा है कि चुनावों के परिणाम केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा का कद और भविष्य तय करने में खासे सहायक साबित होंगे।
कांग्रेस और भाजपा की आंतरिक स्थिति देखकर कहा जा सकता है कि भाजपा को जीत का विश्वास इसलिए है क्योंकि उसका विकास का मजबूत दावा है, इसके साथ धूमल सरकार को भ्रष्टाचार पर संरक्षण देने के आरोपों से भी उसे जूझना पड़ रहा है। भापजा में मुख्यमंत्री कौन होगा इसमें संशय नहीं है। संगठन लगातार सक्रिय है पर गुटबाजी चरम पर है। इसके साथ ही साथ भाजपा को हिमाचल लोकतांत्रिक मोर्चा नुकसान पहुंचा सकता है।
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस को एंटी एंकबंेसी यानी सत्ता विरोधी वोट की उम्मीद सबसे ज्यादा है। कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी बात यह है कि उसके पास वीरभद्र सिंह जैसा कद्दावर नेता है एवं इसे पहले की ही तरह बहुजन समाज पार्टी से नुकसान उठाना पड़ सकता है। भ्रष्टाचार, घपले और घोटाले में आकंठ डूबी संप्रग सरकार की छवि का नुकसान कांग्रेस को होने की उम्मीद जताई जा रही है। इतना ही नहीं संगठन यहां मृतप्राय ही है इसलिए गुटबाजी सतही ही मानी जा सकती है।
वैसे, हिमाचल प्रदेश के समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के ब्यूरो ने बताया है कि हिमाचल प्रदेश में कल होने वाले विधानसभा चुनाव की सभी तैयारियां पूरी हो गई हैं। मतदानकर्मियों के दल दूर-दराज के इलाकों में पहुंचने शुरु हो गए हैं। मतदानकर्मियों और इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों को उन स्थानों पर हेलीकॉप्टरों से पहुंचाया जा रहा है जहां सड़क मार्ग से पहुंचना कठिन है। मतदान सुबह आठ बजे शुरू होगा और शाम पांच बजे तक वोट डाले जा सकेंगे। कुल सात हजार दो सौ मतदान केंद्र बनाए गए हैं। हमारे संवाददाता ने बताया है कि दो हजार उन्नीस मतदान केंद्रों को संवेदनशील और अति संवेदनशील घोषित किया गया है।
सरकारी सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि प्रदेश में स्वतंत्र, निष्पक्ष और शांतिपूर्ण मतदान करवाने के लिए सभी आवश्यक प्रबंध पूरे कर लिये गये हैं। कांगड़ा जिले के पंजाब के साथ लगती सीमाओं १८ प्रवेश बिंदुओं पर सुरक्षा चौकी को बढ़ा दिया गया है तथा बाहर से आने वाले वाहनों पर खास निगरानी रखी जा रही है। प्रदेश के साथ लगती अन्य प्रदेश की सीमाओं को सील बंद किया है। जिले के पौंगडैंग के बीच टापू में स्थित मतदान केंद्र के लिये पोलिंग पार्टी आज सुबह नांव के माध्यम से रवाना हो रही है।

संघ तलाश रहा गडकरी का विकल्प!

अस्ताचल की ओर गड़करी का सूर्य . . . 3

संघ तलाश रहा गडकरी का विकल्प!

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे उद्योगपति, व्यवसाई राजनीतिज्ञ नितिन गडकरी के उज्जव भविष्य पर ग्रहण लग चुका है। गड़करी से अब आरएसएस भी पीछा छुडाते दिख रहा है। हाल ही में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के तेवरों से प्रतीत होने लगा है कि गड़करी की बिदाई की डुगडगी किसी भी वक्त बज सकती है।
झंडेवालान स्थित केशव कुंज के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने किनारा कर लिया है। साथ ही गडकरी की जगह भाजपा के शीर्ष पद के लिए नए अध्यक्ष की तलाश में लग गया है।
चेन्नई से समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के ब्यूरो से प्रीति सक्सेना ने बताया कि तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में संघ के तीन दिवसीय अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक के बाद पत्रकारों के सवाल का जवाब देते हुए सर कार्यवाहक दत्तात्रेय होसाबेले ने कहा कि गडकरी एक स्वयं सेवक हैं और उनके मसले पर एक चर्चा होगी लेकिन मसले पर कोई भी निर्णय भाजपा को ही लेना है यह उनका आंतरिक मामला है।
एक अन्य सवाल के जवाब में होसाबेले ने कहा कि गडकरी के भ्रष्टाचार के लिए कोई अलग मानदंड नहीं उनके मामले की जांच होनी चाहिए। उल्लेखनीय है कि संघ के कार्यकारी मंडल की बैठक के दूसरे दिन भाजपा के विषयों पर एक चर्चा की जाएगी जिसमें पार्टी के संगठन महामंत्री रामलाल और सह संगठन मंत्री पार्टी की प्रगति के बारे में अपना प्रतिवेदन देंगे।
संघ के उच्चपदस्थ सूत्रों समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को संकेत दिए कि गडकरी के दोबारा अध्यक्ष बनाए जाने के मुद्दे पर जिस तरह से बंटा हुआ है उसको देखते हुए संघ के सर्वेसर्वा मोहन भागवत ने गडकरी की जिद को छोड़कर दूसरे विकल्प पर चर्चा शुरू की है। संघ सूत्रों की मानें तो संघ प्रमुख ने दिल्ली प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष डा. हर्षवर्धन का नाम आगे बढ़ाया है।
भाजपा और संघ पर करीबी नजर रखने वालों की मानें तो पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की तरफ से लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज का नाम आगे बढ़ाया जा रहा है जबकि संघ का एक धड़ा उत्तर पदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह को दोबारा अध्यक्ष बनवाना चाहता है। मगर संघ पमुख की तरफ से दोनों ही नामों पर प्रतिरोध किए जाने की उम्मीद है।
वास्तव में संघ गडकरी के समय से पार्टी पर बनी अपनी पकड़ को ढीली नहीं पड़ने देना चाहता। संघ के इसी नीति के चलते वह राजनाथ को अपना समर्थन देने में हिचक रहा है क्योंकि यदि राजनाथ को वह अगर अध्यक्ष बनवाता है तो वह उनका दूसरा कार्यकाल होगा ऐसे में वह संघ की कितनी सुनेंगे इस पर संघ को एतबार नहीं है।

एमपी में मीडिया सैंसरशिप लागू


लाजपत ने लूट लिया जनसंपर्क ----- 4

एमपी में मीडिया सैंसरशिप लागू

(विस्फोट डॉट काम)

भोपाल (साई)। मिशन २०१३ में जुटे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा अब मीडिया पर शिकंजा कसना आरंभ कर दिया है। मध्य प्रदेश में अघोषित तौर पर प्रेस की सेंसरशिप लागू कर दी गई है। भाजपा या सरकार के पक्ष वाले संस्थानों को विज्ञापनों से लादा जा रहा है जबकि अन्य मुंह ताकने पर मजबूर हैं।
मध्य प्रदेश में भले ही अपराधियों, भ्रष्टाचारियों और बलात्कारियों के मामले हर रोज उजागर हो रहे हैं लेकिन विकास और जन कल्याण के क्षेत्र में व्याप्त भारी निराशा के बाद भी भाजपा ने जनसंपर्क विभाग की पीठ पर सवार होकर चुनाव की वैतरणी पार करने की व्यूह रचना की है। इसी के तहत सबसे पहले अखबारों को सरकारी विज्ञापन का चाबुक दिखाकर अपने कब्जे में करने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया गया है।
जनसंपर्क विभाग के सर्वाधिक रसूखदार और अमीर अपर संचालक लाजपत आहूजा को इसी रणनीति के अंतर्गत हाल ही में विज्ञापन के साथ-साथ समाचार शाखा का प्रभार भी सौंपा गया है। दरअसल इन्हीं दो शाखाओं में जनसंपर्क विभाग समाहित है। प्रदेश के इतिहास में पहली बार इस तरह विज्ञापन और समाचार शाखा एक ही अधिकारी के हाथों में सौंपी जा रही है।
यूं तो जनसंपर्क विभाग में कई अपर संचालक हैं, किंतु लाजपत आहूजा भारतीय जनता पार्टी का सर्वाधिक चहेता अधिकारी है। फर्क इतना ही है कि वह भाजपा के कार्यालय दीनदयाल परिसर की बजाय जनसंपर्क संचालनालय में बैठते है। भाजपा सरकार के नौ वर्ष के कार्यकाल में सरकारी विज्ञापन के कुबेर के खजाने की चाबी कमोबेश आहूजा की जेब में ही रही है। पूर्व मुख्य सचिव राकेश साहनी भी इस अधिकारी के साथ बहुत कृपालु थे। फलस्वरूप अघोषित रिश्तों के कारण उनके कार्यकाल में तो इसकी सभी उंगलिया घी में डूबी रहती थीं।

आतंक पर पाक करे अपना वायदा पूरा


आतंक पर पाक करे अपना वायदा पूरा

(अनेशा वर्मा)

गुडगांव (साई)। भारत सरकार की ओर से विदेश मंत्री ने स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच फिर से शुरू करने के फैसले का यह मतलब नहीं है कि मुंबई आतंकी हमलावरों के खिलाफ कार्रवाई करने की उसकी मांग में ढील आई है। दिल्ली के निकट गुड़गांव में संवाददाता सम्मेलन में विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि इस बारे में पाकिस्तान को अपने वायदे को पूरा करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अपने नागरिकों पर हुए हमलों की जबावदेही से जुड़े मुद्दों के बारे में हम निश्चित रूप से चिंतित है। हम अपने पड़ौसी देश पाकिस्तान सहित सभी देशों से आशा करते हैं कि उन्हें बार - बार किए गए अपने वायदे को पूरा करना चाहिए और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।
उधर, सरकारी सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को यह भी बताया कि भारत-पाक क्रिकेट मैच देखने के लिए भारत करीब पांच हजार पाकिस्तानी नागरिकों को वीजा जारी करेगा। यह वीजा केवल एक शहर के लिए होगा। टूर्नामेंट के अन्य मैचों को दूसरे शहरों में देखने की अनुमति मांगने वाले पाकिस्तानी नागरिकों को हर मैच के लिए अलग वीजा जारी करने का फैसला किया जाएगा।

हजारों करोड़ डकारे! अब ओर की चाहत!


हजारों करोड़ डकारे! अब ओर की चाहत!

(निधि गुप्ता)

मुंबई (साई)। कांग्रेस अब शायद घपले, घोटाले और भ्रष्टाचार का ही पर्याय बनकर रह गई है। महाराष्ट्र में केंद्र सरकार की बाल विकास योजना में एक हजार करोड़ रूपए का घोटाला सामने आया है। खाद्य सुरक्षा पर चल रही सरकारी योजनाओं की निगरानी के लिए नियुक्त सुप्रीम कोर्ट के कमिश्नर ने अपने प्रतिवेदन में इस चौंकाने वाले तथ्य का खुलासा किया है।
प्रतिवेदन के मुताबिक निजी कंपनियों ने फर्जी महिला मंडल बना कर पूरी योजना पर कब्जा कर लिया। कमिश्नर ने सिफारिश की है कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में पूरे इस मामले में नेताओं, अफसरों व ठेकेदारों की मिली-भगत की निष्पक्ष जांच करवायी जाए। बताया जाता है कि पूरे घोटाले की जानकारी सुप्रीम कोर्ट कमिश्नर्स और नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स ने मुख्यमंत्री को दी थी लेकिन फिर भी कुछ नहीं हुआ।
उधर, पीएमओ के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि समन्वित बाल विकास योजना यानी आईसीडीएस कुपोषण से लड़ने के लिए देश की सबसे बड़ी खाद्य सुरक्षा योजना है। दो अक्टूबर 1975 को शुरू हुई इस योजना के संदर्भ में 7 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने आईसीडीएस में ठेका देने पर रोक लगा दी थी। लेकिन इस आदेश के बाद भी महाराष्ट्र सरकार ने 2009 में नियम बदल कर सामुदायिक संगठनों और महिला संस्थानों को ठेका लेने की इजाजत दे दी।
उल्लेखनीय है कि ये योजना 6 साल के बच्चों और उनकी माताओं को मुफ्त भोजन मुहैया कराने के लिए है। 2012-13 के केंद्रीय बजट में इस योजना को 15 हजार 850 करोड़ रूपए की राशि आवंटित की गई है।
महाराष्ट्र में फिलहाल योजना में कुल 553 प्रोजेक्ट काम कर रहे हैं। इन प्रोजेक्ट का जिम्मा 3 महिला मंडलों के हाथ में है, लिहाजा सीधी अंगुली इन पर उठ रही है। इनमें से 364 प्रोजेक्ट ग्रामीण इलाके में, 85 प्रोजेक्ट आदिवासी इलाके में और 104 प्रोजेक्ट शहरों के स्लम इलाके में काम कर रहे हैं।