शनिवार, 28 जुलाई 2012

अंबिका पर नहीं प्रणव को एतबार!


अंबिका पर नहीं प्रणव को एतबार!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। केंद्र सरकार की नीतियों रीतियों को विभिन्न संचार माध्यमों के जरिए जन जन तक पहुंचाने के लिए पाबंद केंद्र सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय पर अब केंद्र सरकार के साथ ही साथ देश के तेरहवें महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को भी एतबार नहीं रहा! इसके पहले वज़ीरे आज़म डॉ.मनमोहन सिंह ने भारतीय सूचना सेवा के अधिकारियों के बजाए निजी पत्रकारों को अपना मीडिया एडवाईजर बनाया था।
एक समय था जब सूचना प्रसारण मंत्रालय के डीएव्हीपी प्रभाग द्वारा केंद्र सरकार की उपलब्धियों, जन हितैषी योजनाओं आदि की सारगर्भित जानकारियों से युक्त चलचित्र बनाए जाते थे। इन चलचित्रों को डाक्यूमेंट्री फिल्म कहा जाता था और उस समय रूपहले पर्दे पर मनोरंजक फिल्म आरंभ होने के पहले इन डाक्यूमेंट्री फिल्म को दिखाया जाता था। इसे न्यूज रील भी कहा जाता था।
समय का पहिया घूमता रहा। मनोरंजन के साधनों में तेजी से इजाफा हुआ, और टाकीज़ का स्थान टीवी ने ले लिया। अब थियेटर में फिल्म देखने वालों की भीड़ चौथाई से भी कम बची है। इन परिस्थितियों में न्यूज रील बनाने और दिखाने का ओचित्य ही समाप्त सा हो गया है।
परिवर्तन के इस युग में नही बदला है तो सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा अपने आप को। आज भी यह मंत्रालय बाबा आदम के युग में ही लकीर का फकीर की तरह जी रहा है। आज भी इसके साउंड एण्ड ड्रामा प्रभाग, संगीत प्रभाग, प्रदर्शनी प्रभाग आदि में भारी भरकम कर्मचारी सरकारी तनख्वाह पा रहे हैं, जिनके पास कहने को कोई काम नहीं है। साल भर में दो एक प्रदर्शनी लगाकर ये अपने कर्तव्यों की इतश्री कर लेते हैं।
पत्र सूचना कार्यालय, डीएव्हीपी आदि में लायक अधिकारियों, कर्मचारियों की फौज के होने के बाद भी प्रधानमंत्री कार्यालय को एक अदद सूचना सलहकार आउटसोर्स करना सूचना प्रसारण मंत्रालय के प्रति प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह का अविश्वास ही दर्शाता है। हरीश खरे और पंकज पचौरी इस बात का साक्षात उदहारण हैं कि पीएमओ ने भारतीय सूचना सेवा संवर्ग के किसी भी अधिकारी को इस योग्य नहीं समझा कि वह पीएमओ को संभाल सके।
पीएमओ के उपरांत अब देश के पहले नागरिक के कार्यालय अर्थात प्रेजीडेंट हाउस में भी कुछ इसी तरह का नजारा देखने को मिला है। राष्ट्रपति भवन के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि महामहिम राष्ट्रपति के उन कार्यक्रमों को यू ट्यूब पर डाला है जिनमें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने हिस्सा लिया है। अधिकारियों ने कहा कि समारोहों को वेबसाइट पर डालने का उद्देश्य युवा पीढ़ी तक पहुंचना है। सूत्रों के अनुसार मुखर्जी के 13वें राष्ट्रपति के रुप में शपथ लेने के दो दिन बाद यह पहल शुरु की गई। राष्ट्रपति भवन नवनिर्वाचित राष्ट्रपति के लिए सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर पहले ही एक पेज बना चुका है जिसमें लोग अपनी व्यथा रख सकेंगे।

शेखर को हुई पितृरत्न की प्राप्ति!


शेखर को हुई पितृरत्न की प्राप्ति!

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। मुश्किलों के भंवर में फंसी कांग्रेस के लिए अब यह नई मुसीबत से निपटना मुश्किल ही प्रतीत हो रहा है जिसमें डीएनए टेस्ट में कांग्रेस के सीनियर लीडर और उत्तराखंड के पूर्व सीएम एनडी तिवारी ही रोहित शेखर के बायोलॉजिकल पिता निरूपित किया है। तिवारी पर इसके पहले भी रंगरंगेलियां मनाने के आरोप लग चुके हैं। एनडी तिवारी इस मामले को निजी मामला निरूपित कर मीडिया से तूल ना देने की बात अवश्य कह रहे हैं, पर तिवारी भूल जाते हैं कि मामले की निजता तब तक ही रहती है जब तक वह पुलिस या अदालत के पास ना चला जाए।
डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट में कहा गया है कि नारायण दत्त तिवारी रोहित शेखर के बायोलॉजिकल पिता और उज्ज्वला बायोलॉजिकल मां हैं। यह खुलासा होने के बाद रोहित शेखर ने कहा कि मैं इस लंबी लड़ाई के दौरान जिस तकलीफ से गुजरा हूं, वह शब्दों में नहीं व्यक्त किया जा सकता। उन्होंने कहा कि उनके नाना ने मरते वक्त कहा था कि तुम इस लड़ाई को जारी रखना। आज उनकी आत्मा को भी शांति मिली होगी।
डीएनए टेस्ट का नतीजा सार्वजनिक किए जाने से खुश उज्ज्वला ने कहा, कि उन्हें रोहित शेखर पर गर्व है कि उन्होंने इतनी कठिन और लंबी लड़ाई लड़ी और जीती। यह सच्चाई उन्हें शुरू से मालूम थी, मगर आज दुनिया के सामने भी आ गई। यह सच की जीत है। जब उनसे पूछा गया कि अब इस सच के बाहर आने के बाद आप चाहती हैं कि एनडी तिवारी आप से माफी मांगें, तो उन्होंने कहा, कि वे कुछ नहीं चाहती, जब तक कि उनके दिल से न निकले। मीडियाकर्मियों ने जब पूछा कि क्या रोहित शेखर और को उनका हक मिलना चाहिए, तो उज्जवला ने कहा, वे और उनके पुत्र अभी कोर्ट की शरण में हैं और जो भी उनका कानूनी हक है, जो भी उन्हें कोर्ट से मिलेगा वे उसे ग्रहण करेंगी, उन्हें नारायण दत्त तिवारी से कुछ नहंी चाहिए।
उधर, डीएनए रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद नारायण दत्त तिवारी ने कहा कि यह उनका निजी मामला है। उनकी ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि उनका लंबा राजनीतिक जीवन रहा है और उनहोंने हमेशा राष्ट्र हित को प्राथमिकता दी है। बयान में इसे अपना निजी मामला बताते हुए उन्होंने लोगों से अपील की है कि इसे तूल न दें।
इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने तिवारी को बड़ा झटका देते हुए डीएनए रिपोर्ट सार्वजनिक न करने की उनकी याचिका खारिज कर दी थी। 87 वर्षीय तिवारी ने कोर्ट से डीएनए रिपोर्ट सार्वजनिक न करने की गुजारिश की थी। उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि कोर्ट अभी तक यह तय नहीं कर पाया है कि यह मामला दिल्ली हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता भी है या नहीं? ऐसे में रिपोर्ट सार्वजनिक करना उनके साथ भारी अन्याय होगा। अधिकार क्षेत्र पर फैसला आने तक रिपोर्ट सार्वजनिक न की जाए। कोर्ट ने तिवारी की दलील को नहीं माना और उनकी याचिका खारिज कर दी।
गौरतलब है कि तिवारी काफी समय तक अपना ब्लड सैंपल देने से बचते रहे थे। आखिरकार मई में दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर देहरादून में उनका ब्लड सैंपल लिया गया था। देहरादून में एनडी तिवारी के घर श्अनंत वनश् में एक जिला जज की मौजूदगी में डॉक्टरों ने ब्लड सैंपल लिया था। तिवारी के डीएनए को उनका बेटा होने का दावा करने वाले रोहित शेखर और उनकी मां उज्ज्वला के डीएनए से मिलान किया गया है।
एक समाचार पत्र को दिए साक्षात्कार में रोहित ने बताया कि अमिताभ बच्चन की फिल्म त्रिशूल से उन्हें राह मिली थी। उन्होंने कहा कि मैं शायद दुनिया का पहला ऐसा इनसान हूं जो बास्टर्ड साबित होने की लड़ाई लड़ रहा हूं। लोग सम्मान के लिए लड़ते हैं, जायज संतति साबित होने के लिए लड़ते हैं। लेकिन मैं दुनिया को बताना चाहता हूं कि मैं मिस्टर एनडी तिवारी की नाजायज औलाद हूं।
जब मैं बड़ा हो रहा था, मैं त्रिशूल फिल्म को बार-बार देखता था। उस फिल्म में अमिताभ बच्चन संजीव कुमार से कहते थे, तुम मेरे नाजायज बाप हो। उनका यह डायलॉग मुझे काफी प्रभावित करता। मैं अमिताभ का फैन था, उनकी हर फिल्म देखना पसंद करता था। लेकिन जब मैंने यह जाना कि मिस्टर तिवारी मेरे जैविक पिता हैं और मिस्टर शर्मा जो मेरे स्कूल में मेरे पिता के रूप में पैरेंट्स-टीचर मीटिंग अटेंड करते हैं मेरे जैविक पिता नहीं है, मुझे लगने लगा कि यह फिल्म मेरी कहानी बता रही है। इस बात ने मेरे अंदर इस जुनून को पैदा किया कि में मिस्टर तिवारी को बताऊं कि आप मेरे नाजायज बाप हैं।
समाचार पत्र को दिए साक्षात्कार में रोहित ने कहा कि वैसे में उनसे बहुत जुड़ाव महसूस नहीं करता था। इस बात की कोई गुंजाइश भी नहीं थी। हालांकि मैं उनसे 14 साल की उम्र से ही लगातार मिला करता था। वे हमें अपने पास नहीं रखते थे, हम उनसे मिलने जाया करते थे। हर तीन महीने में हम उनसे मिलने जाया करते थे। मां मुझे स्कूल से पिक कर लेती थी और हम उनके दिल्ली वाले मकान पर जाते थे। उन दिनों वे अपने राजनीतिक कैरियर के शीर्ष पर थे। या तो वे मुख्यमंत्री होते या केंद्र में कैबिनेट मंत्री। उनके बंगले पर जबरदस्त सुरक्षा होती, सैकड़ों लोग उनसे मिलने के लिए इंतजार करते रहते। मगर हमें आने जाने में कोई रोक नहीं होती। वहां के स्टाफ मुझसे बड़े प्यार से व्यवहार करते, मुझे घर का बच्चे मानते। मेरे साथ खेलते, बात करते और मुझे कुछ न कुछ खिलाते। मैं चकित हो जाता कि ऐसा क्यों है। मुझे स्पेशल ट्रीटमेंट क्यों मिल रहा है। हमारे लिए यह इनसान क्या है। यह मेरे बर्थडे पार्टी में क्यों आता है।
मुझे इतने उपहार क्यों देता है। जब मिस्टर तिवारी विदेश दौरे पर जाते तो मेरे लिए बड़े खूबसूरत पेंसिल बॉक्स लाते। उन दिनों विदेशी चीजें बड़ी मुश्किल से दिखती थीं। मैं उन्हें अपने स्कूल में दिखाता था। जब वे विदेश नहीं भी जाते तो मेरे लिए सेब और आम के बक्से भिजवाते। आप अगर जानते हों कि राजनेता किस तरह तोहफे भिजवाते हैं तो आप इसे समझ सकते हैं।
एक बार हम लोग उनसे मिलने लखनऊ गये थे। उस वक्त वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। मैं उस वक्त आठ या नौ साल का था, मैंने देखा कि अमिताभ बच्चन सफेद कुरता पायजामा में उनसे मिलने के लिए उनका इंतजार कर रहे थे। अमिताभ उस वक्त इलाहाबाद के एमपी थे। मैंने मिस्टर तिवारी से कहा कि मैं अपने अपने हीरो के साथ एक तसवीर खिचवाना चाहता था। जब उन्होंने कहा कि यह मुमकिन नहीं है तो मैंने उनके स्टेट एयरक्राफ्ट में उड़ने की फरमाइश की। मैंने उनकी गोद में बैठ कर एयरक्राफ्ट में पूरी दिल्ली का चक्कर लगाया था।
अपने साक्षात्कार में रोहित ने कहा कि मैं अपनी तरफ ध्यान दिया जाना पसंद करता था। मगर जब मैं नौ या दस साल का था, मैंने लोगों से पूछना शुरू कर दिया कि क्यों यह इनसान मुझे इतने तोहफे देता है। मेरा एक बड़ा भाई भी है, जो मेरी मां के कानूनी पति बीपी शर्मा का बेटा है। उसे इतना तोहफा नहीं मिलता, हालांकि मुझे जरूर उन तोहफों को उनके साथ शेयर करने कहा जाता। और यह भी कि मेरी मां क्यों उसे अपने साथ तिवारी के पास नहीं ले जाती।
मैं गौर करता कि उनसे मुलाकात के बाद मेरी मां रोती हुई वापस होतीं। जब-जब उनसे मुलाकात होती उसके कुछ दिन बाद मेरी मां को अस्थमा का दौरा आ जाता। ज्यादातर वो और मेरी मां अकेले में बातें करते और उनमें तीखी बहस होती। उस वक्त मिस्टर तिवारी मुझे बाहर खेलने के लिए भेज देते, अपने स्टाफ के साथ। उसी दौरान मैंने महसूस करना शुरू कर दिया कि बेडरूम एक निजी क्षेत्र है और लिविंग रूम सार्वजनिक। मेरी मां क्यों एक ऐसे आदमी से मिलने आती है, जो उनके साथ इतना बुरा व्यवहार करता है। मेरे प्रति भी उनका व्यवहार बदलने लगा था। कई बार वह मेरे साथ खेलते, बातें करते और गाना गाते। गाना उन्हें काफी पसंद था। मगर कई बार ऐसा भी होता कि वे मेरी मौजूदगी पर ध्यान तक नहीं देते।
एक बार जब मैं 11 या 12 साल का था मेरी नानी ने मुझे बताया कि मिस्टर तिवारी मेरे असली पिता हैं। मैं उनकी बात सुनकर हंस पड़ा। जब मैंने अपनी मां से यह बताया तो उन्होंने कहा कि यह सच है। इसी कारण मिस्टर तिवारी से उनकी बहस होती है। वे उनपर दवाब डाल रही हैं कि वे मुङो अपना बेटा स्वीकार करें। लेकिन वे कहते हैं उनकी पत्नी इस बात के लिए तैयार नहीं है।
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार एनडी तिवारी ने उज्जवला पर डोरे उस समय डाले जब उज्जवला के पिता केंद्र में मंत्री थे। उधर रोेहित ने भी अपने साक्षात्कार में इस बात को विस्तार से बताया है। रोहित का कहना है कि नारायण दत्त तिवारी तब मेरी मां के नजदीक आये जब वह मेरे नाना प्रोफेसर शेर सिंह से मिलने उनके पास आया करते थे। यह सत्तर का दशक था। मेरे नाना उस वक्त केंद्रीय मंत्री थे और वे हरियाणा राज्य के संस्थापकों में से एक थे। मेरे नाना उनके लिए गुरु सरीखे थे। मेरी मां का वैवाहिक संबंध सुखद नहीं रहा और वे उस दौरान नाना के साथ रहा करती थीं। हालांकि मिस्टर बीपी शर्मा मेरे लिए अच्छे पिता साबित हुए मगर वे मेरी मां के लिए अच्छे पति नहीं थे। मेरे नाना इस बात को समझते थे। मिस्टर तिवारी को भी इस बात का अहसास था। उन्होंने मेरी मां से कला कि उनकी शादी भी असफल साबित हुई है। वे उस दौरान पचास के लपेटे में थे। उन्होंने मेरी मां से कहा कि वे उनसे एक बच्चा चाहते हैं, क्योंकि उनकी बीवी उन्हें यह सुख दे पाने में सक्षम नहीं है। उन्होंने मेरी मां से वादा किया कि जैसे ही उनका तलाक हो जाता है वे उनसे शादी कर लेंगे। मेरे नाना ने उन पर भरोसा किया और मेरी मां भी सहमत हो गयीं।
जब मेरा जन्म हुआ तो मां ने मुझे रोहित शेखर नाम दिया, उन्हें भरोसा था कि मिस्टर तिवारी मुङो पुत्र के रूप में स्वीकार कर लेंगे। जब बर्थ सर्टिफिकेट पर हस्ताक्षर करने की बारी आयी तो मिस्टर तिवारी ने यह बहाना बनाया कि इससे उनके राजनीतिक कैरियर पर नकारात्मक असर पड़ेगा। आखिरकार बीपी शर्मा को उस पर हस्ताक्षर करने पड़े। मगर उन्होंने कभी मुङो रोहित शेखर शर्मा नहीं कहा, उन्हें विश्वास था कि मिस्टर तिवारी अपनी बात से पलटेंगे नहीं।
मैं एक गुस्सैल और संशयग्रस्त किशोर था और कई बार अपनी मां पर बरस पड़ता था कि उन्होंने मेरा जीवन बरबाद कर दिया। 1993 में मिस्टर तिवारी की पत्नी गुजर गयीं और मेरी मां ने सोच अब अंततरू वे मुझे अपना पहचान दे देंगे। लेकिन मिस्टर तिवारी ने हमसे सारे नाते तोड़ लिये। मैं कह सकता हूं कि उन दिनों मेरी जिंदगी नरक में गुजर रही थी। मुझे पढ़ने में और सोने में परेशानी होती थी। मैं गुस्से से भरा था और खुद को अपमानित महसूस करता था। उस दौरान मैं कालेज में थे, मैं डिप्रेशन और इन्सोमिया से पीड़ित था। मैं किसी तरह क्लास जाता और पढ़ाई करता। मैंने फिर से 2002 में उनसे मुलाकात की। उस वक्त वे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे। मैंने पहली बार उनसे चेतावनी भरे लहजे में बात की। मगर उनका रुख सहयोगी था, उन्होंने अकेले में मुझे पुत्र के रूप में स्वीकारा।

शेखर को हुई पितृरत्न की प्राप्ति!


शेखर को हुई पितृरत्न की प्राप्ति!

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। मुश्किलों के भंवर में फंसी कांग्रेस के लिए अब यह नई मुसीबत से निपटना मुश्किल ही प्रतीत हो रहा है जिसमें डीएनए टेस्ट में कांग्रेस के सीनियर लीडर और उत्तराखंड के पूर्व सीएम एनडी तिवारी ही रोहित शेखर के बायोलॉजिकल पिता निरूपित किया है। तिवारी पर इसके पहले भी रंगरंगेलियां मनाने के आरोप लग चुके हैं। एनडी तिवारी इस मामले को निजी मामला निरूपित कर मीडिया से तूल ना देने की बात अवश्य कह रहे हैं, पर तिवारी भूल जाते हैं कि मामले की निजता तब तक ही रहती है जब तक वह पुलिस या अदालत के पास ना चला जाए।
डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट में कहा गया है कि नारायण दत्त तिवारी रोहित शेखर के बायोलॉजिकल पिता और उज्ज्वला बायोलॉजिकल मां हैं। यह खुलासा होने के बाद रोहित शेखर ने कहा कि मैं इस लंबी लड़ाई के दौरान जिस तकलीफ से गुजरा हूं, वह शब्दों में नहीं व्यक्त किया जा सकता। उन्होंने कहा कि उनके नाना ने मरते वक्त कहा था कि तुम इस लड़ाई को जारी रखना। आज उनकी आत्मा को भी शांति मिली होगी।
डीएनए टेस्ट का नतीजा सार्वजनिक किए जाने से खुश उज्ज्वला ने कहा, कि उन्हें रोहित शेखर पर गर्व है कि उन्होंने इतनी कठिन और लंबी लड़ाई लड़ी और जीती। यह सच्चाई उन्हें शुरू से मालूम थी, मगर आज दुनिया के सामने भी आ गई। यह सच की जीत है। जब उनसे पूछा गया कि अब इस सच के बाहर आने के बाद आप चाहती हैं कि एनडी तिवारी आप से माफी मांगें, तो उन्होंने कहा, कि वे कुछ नहीं चाहती, जब तक कि उनके दिल से न निकले। मीडियाकर्मियों ने जब पूछा कि क्या रोहित शेखर और को उनका हक मिलना चाहिए, तो उज्जवला ने कहा, वे और उनके पुत्र अभी कोर्ट की शरण में हैं और जो भी उनका कानूनी हक है, जो भी उन्हें कोर्ट से मिलेगा वे उसे ग्रहण करेंगी, उन्हें नारायण दत्त तिवारी से कुछ नहंी चाहिए।
उधर, डीएनए रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद नारायण दत्त तिवारी ने कहा कि यह उनका निजी मामला है। उनकी ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि उनका लंबा राजनीतिक जीवन रहा है और उनहोंने हमेशा राष्ट्र हित को प्राथमिकता दी है। बयान में इसे अपना निजी मामला बताते हुए उन्होंने लोगों से अपील की है कि इसे तूल न दें।
इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने तिवारी को बड़ा झटका देते हुए डीएनए रिपोर्ट सार्वजनिक न करने की उनकी याचिका खारिज कर दी थी। 87 वर्षीय तिवारी ने कोर्ट से डीएनए रिपोर्ट सार्वजनिक न करने की गुजारिश की थी। उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि कोर्ट अभी तक यह तय नहीं कर पाया है कि यह मामला दिल्ली हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता भी है या नहीं? ऐसे में रिपोर्ट सार्वजनिक करना उनके साथ भारी अन्याय होगा। अधिकार क्षेत्र पर फैसला आने तक रिपोर्ट सार्वजनिक न की जाए। कोर्ट ने तिवारी की दलील को नहीं माना और उनकी याचिका खारिज कर दी।
गौरतलब है कि तिवारी काफी समय तक अपना ब्लड सैंपल देने से बचते रहे थे। आखिरकार मई में दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर देहरादून में उनका ब्लड सैंपल लिया गया था। देहरादून में एनडी तिवारी के घर श्अनंत वनश् में एक जिला जज की मौजूदगी में डॉक्टरों ने ब्लड सैंपल लिया था। तिवारी के डीएनए को उनका बेटा होने का दावा करने वाले रोहित शेखर और उनकी मां उज्ज्वला के डीएनए से मिलान किया गया है।
एक समाचार पत्र को दिए साक्षात्कार में रोहित ने बताया कि अमिताभ बच्चन की फिल्म त्रिशूल से उन्हें राह मिली थी। उन्होंने कहा कि मैं शायद दुनिया का पहला ऐसा इनसान हूं जो बास्टर्ड साबित होने की लड़ाई लड़ रहा हूं। लोग सम्मान के लिए लड़ते हैं, जायज संतति साबित होने के लिए लड़ते हैं। लेकिन मैं दुनिया को बताना चाहता हूं कि मैं मिस्टर एनडी तिवारी की नाजायज औलाद हूं।
जब मैं बड़ा हो रहा था, मैं त्रिशूल फिल्म को बार-बार देखता था। उस फिल्म में अमिताभ बच्चन संजीव कुमार से कहते थे, तुम मेरे नाजायज बाप हो। उनका यह डायलॉग मुझे काफी प्रभावित करता। मैं अमिताभ का फैन था, उनकी हर फिल्म देखना पसंद करता था। लेकिन जब मैंने यह जाना कि मिस्टर तिवारी मेरे जैविक पिता हैं और मिस्टर शर्मा जो मेरे स्कूल में मेरे पिता के रूप में पैरेंट्स-टीचर मीटिंग अटेंड करते हैं मेरे जैविक पिता नहीं है, मुझे लगने लगा कि यह फिल्म मेरी कहानी बता रही है। इस बात ने मेरे अंदर इस जुनून को पैदा किया कि में मिस्टर तिवारी को बताऊं कि आप मेरे नाजायज बाप हैं।
समाचार पत्र को दिए साक्षात्कार में रोहित ने कहा कि वैसे में उनसे बहुत जुड़ाव महसूस नहीं करता था। इस बात की कोई गुंजाइश भी नहीं थी। हालांकि मैं उनसे 14 साल की उम्र से ही लगातार मिला करता था। वे हमें अपने पास नहीं रखते थे, हम उनसे मिलने जाया करते थे। हर तीन महीने में हम उनसे मिलने जाया करते थे। मां मुझे स्कूल से पिक कर लेती थी और हम उनके दिल्ली वाले मकान पर जाते थे। उन दिनों वे अपने राजनीतिक कैरियर के शीर्ष पर थे। या तो वे मुख्यमंत्री होते या केंद्र में कैबिनेट मंत्री। उनके बंगले पर जबरदस्त सुरक्षा होती, सैकड़ों लोग उनसे मिलने के लिए इंतजार करते रहते। मगर हमें आने जाने में कोई रोक नहीं होती। वहां के स्टाफ मुझसे बड़े प्यार से व्यवहार करते, मुझे घर का बच्चे मानते। मेरे साथ खेलते, बात करते और मुझे कुछ न कुछ खिलाते। मैं चकित हो जाता कि ऐसा क्यों है। मुझे स्पेशल ट्रीटमेंट क्यों मिल रहा है। हमारे लिए यह इनसान क्या है। यह मेरे बर्थडे पार्टी में क्यों आता है।
मुझे इतने उपहार क्यों देता है। जब मिस्टर तिवारी विदेश दौरे पर जाते तो मेरे लिए बड़े खूबसूरत पेंसिल बॉक्स लाते। उन दिनों विदेशी चीजें बड़ी मुश्किल से दिखती थीं। मैं उन्हें अपने स्कूल में दिखाता था। जब वे विदेश नहीं भी जाते तो मेरे लिए सेब और आम के बक्से भिजवाते। आप अगर जानते हों कि राजनेता किस तरह तोहफे भिजवाते हैं तो आप इसे समझ सकते हैं।
एक बार हम लोग उनसे मिलने लखनऊ गये थे। उस वक्त वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। मैं उस वक्त आठ या नौ साल का था, मैंने देखा कि अमिताभ बच्चन सफेद कुरता पायजामा में उनसे मिलने के लिए उनका इंतजार कर रहे थे। अमिताभ उस वक्त इलाहाबाद के एमपी थे। मैंने मिस्टर तिवारी से कहा कि मैं अपने अपने हीरो के साथ एक तसवीर खिचवाना चाहता था। जब उन्होंने कहा कि यह मुमकिन नहीं है तो मैंने उनके स्टेट एयरक्राफ्ट में उड़ने की फरमाइश की। मैंने उनकी गोद में बैठ कर एयरक्राफ्ट में पूरी दिल्ली का चक्कर लगाया था।
अपने साक्षात्कार में रोहित ने कहा कि मैं अपनी तरफ ध्यान दिया जाना पसंद करता था। मगर जब मैं नौ या दस साल का था, मैंने लोगों से पूछना शुरू कर दिया कि क्यों यह इनसान मुझे इतने तोहफे देता है। मेरा एक बड़ा भाई भी है, जो मेरी मां के कानूनी पति बीपी शर्मा का बेटा है। उसे इतना तोहफा नहीं मिलता, हालांकि मुझे जरूर उन तोहफों को उनके साथ शेयर करने कहा जाता। और यह भी कि मेरी मां क्यों उसे अपने साथ तिवारी के पास नहीं ले जाती।
मैं गौर करता कि उनसे मुलाकात के बाद मेरी मां रोती हुई वापस होतीं। जब-जब उनसे मुलाकात होती उसके कुछ दिन बाद मेरी मां को अस्थमा का दौरा आ जाता। ज्यादातर वो और मेरी मां अकेले में बातें करते और उनमें तीखी बहस होती। उस वक्त मिस्टर तिवारी मुझे बाहर खेलने के लिए भेज देते, अपने स्टाफ के साथ। उसी दौरान मैंने महसूस करना शुरू कर दिया कि बेडरूम एक निजी क्षेत्र है और लिविंग रूम सार्वजनिक। मेरी मां क्यों एक ऐसे आदमी से मिलने आती है, जो उनके साथ इतना बुरा व्यवहार करता है। मेरे प्रति भी उनका व्यवहार बदलने लगा था। कई बार वह मेरे साथ खेलते, बातें करते और गाना गाते। गाना उन्हें काफी पसंद था। मगर कई बार ऐसा भी होता कि वे मेरी मौजूदगी पर ध्यान तक नहीं देते।
एक बार जब मैं 11 या 12 साल का था मेरी नानी ने मुझे बताया कि मिस्टर तिवारी मेरे असली पिता हैं। मैं उनकी बात सुनकर हंस पड़ा। जब मैंने अपनी मां से यह बताया तो उन्होंने कहा कि यह सच है। इसी कारण मिस्टर तिवारी से उनकी बहस होती है। वे उनपर दवाब डाल रही हैं कि वे मुङो अपना बेटा स्वीकार करें। लेकिन वे कहते हैं उनकी पत्नी इस बात के लिए तैयार नहीं है।
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार एनडी तिवारी ने उज्जवला पर डोरे उस समय डाले जब उज्जवला के पिता केंद्र में मंत्री थे। उधर रोेहित ने भी अपने साक्षात्कार में इस बात को विस्तार से बताया है। रोहित का कहना है कि नारायण दत्त तिवारी तब मेरी मां के नजदीक आये जब वह मेरे नाना प्रोफेसर शेर सिंह से मिलने उनके पास आया करते थे। यह सत्तर का दशक था। मेरे नाना उस वक्त केंद्रीय मंत्री थे और वे हरियाणा राज्य के संस्थापकों में से एक थे। मेरे नाना उनके लिए गुरु सरीखे थे। मेरी मां का वैवाहिक संबंध सुखद नहीं रहा और वे उस दौरान नाना के साथ रहा करती थीं। हालांकि मिस्टर बीपी शर्मा मेरे लिए अच्छे पिता साबित हुए मगर वे मेरी मां के लिए अच्छे पति नहीं थे। मेरे नाना इस बात को समझते थे। मिस्टर तिवारी को भी इस बात का अहसास था। उन्होंने मेरी मां से कला कि उनकी शादी भी असफल साबित हुई है। वे उस दौरान पचास के लपेटे में थे। उन्होंने मेरी मां से कहा कि वे उनसे एक बच्चा चाहते हैं, क्योंकि उनकी बीवी उन्हें यह सुख दे पाने में सक्षम नहीं है। उन्होंने मेरी मां से वादा किया कि जैसे ही उनका तलाक हो जाता है वे उनसे शादी कर लेंगे। मेरे नाना ने उन पर भरोसा किया और मेरी मां भी सहमत हो गयीं।
जब मेरा जन्म हुआ तो मां ने मुझे रोहित शेखर नाम दिया, उन्हें भरोसा था कि मिस्टर तिवारी मुङो पुत्र के रूप में स्वीकार कर लेंगे। जब बर्थ सर्टिफिकेट पर हस्ताक्षर करने की बारी आयी तो मिस्टर तिवारी ने यह बहाना बनाया कि इससे उनके राजनीतिक कैरियर पर नकारात्मक असर पड़ेगा। आखिरकार बीपी शर्मा को उस पर हस्ताक्षर करने पड़े। मगर उन्होंने कभी मुङो रोहित शेखर शर्मा नहीं कहा, उन्हें विश्वास था कि मिस्टर तिवारी अपनी बात से पलटेंगे नहीं।
मैं एक गुस्सैल और संशयग्रस्त किशोर था और कई बार अपनी मां पर बरस पड़ता था कि उन्होंने मेरा जीवन बरबाद कर दिया। 1993 में मिस्टर तिवारी की पत्नी गुजर गयीं और मेरी मां ने सोच अब अंततरू वे मुझे अपना पहचान दे देंगे। लेकिन मिस्टर तिवारी ने हमसे सारे नाते तोड़ लिये। मैं कह सकता हूं कि उन दिनों मेरी जिंदगी नरक में गुजर रही थी। मुझे पढ़ने में और सोने में परेशानी होती थी। मैं गुस्से से भरा था और खुद को अपमानित महसूस करता था। उस दौरान मैं कालेज में थे, मैं डिप्रेशन और इन्सोमिया से पीड़ित था। मैं किसी तरह क्लास जाता और पढ़ाई करता। मैंने फिर से 2002 में उनसे मुलाकात की। उस वक्त वे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे। मैंने पहली बार उनसे चेतावनी भरे लहजे में बात की। मगर उनका रुख सहयोगी था, उन्होंने अकेले में मुझे पुत्र के रूप में स्वीकारा।