शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

छत्तीसगढ़ के सांसद ने साधा सिवनी वासियों का हित!


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छत्तीसगढ़ के सांसद ने साधा सिवनी वासियों का हित!

सिवनी को ब्राडगेज से जोड़ने माहोले ने लगाया था लोस में प्रश्न

सिवनी के सांसदों की नहीं टूटी तब भी तंद्रा

नैनपुर छिंदवाड़ा का सर्वे हुआ था 2003 - 04 में

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। परिसीमन में सिवनी लोकसभा का अवसान हो गया। सिवनी की अंतिम सांसद रहीं श्रीमति नीता पटेरिया। वे 2004 से 2009 तक सांसद रहीं। उनके कार्यकाल में भी सिवनी की ब्राडगेज का मामला दिल्ली में सिवनी के जनसेवक नहीं उठा सके। इसी दर्मयान बिलासपुर के सांसद पुन्नू लाल माहोले ने मण्डला से बरास्ता सिवनी होकर छिंदवाड़ा जाने वाले रेल खण्ड के अमान परिवर्तन के संबंध में प्रश्न उठाया था, तब भी सिवनी में ब्राडगेज पर सियासत करने वालों की तंद्रा नहीं टूटी। सिवनी ब्राडगेज का मामला सिवनी के बजाए छत्तीसगढ़ के संसद सदस्य द्वारा देश की सबसे बड़ी पंचायत में उठाया जाना निश्चित तौर पर सिवनीवासियों के लिए सुखद संयोग ही माना जाएगा।

गौरतलब है कि लगभग डेढ़ दशक पहले तक सिवनी, छिंदवाड़ा और मण्डला लोकसभा सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। आदिवासियों की लगातार उपेक्षा के कारण महाकौशल में भाजपा का वर्चस्व बढ़ता ही चला गया। कांग्रेस के परंपरागत आदिवासी वोट बैंक उसके हाथ से फिसल गए। आदिवासियों ने अपनी उपेक्षा का सबक महाकौशल के हर लोकसभा सीट पर खड़े कांग्रेस के उम्मीदवारों को सिखाया। यहां तक कि एक उपचुनाव में छिंदवाड़ा के ताड़नहार कमल नाथ को भी भाजपा के सुंदर लाल पटवा ने धूल चटवा दी थी। वर्तमान में नरसिंहपुर, मण्डला और छिंदवाड़ा पर कांग्रेस तो जबलपुर और बालाघाट पर भाजपा का कब्जा है।

यहां उल्लेखनीय होगा कि लोकसभा में ही छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के सांसद पुन्नू लाल माहोले द्वारा मण्डला से छिंदवाड़ा रेल खण्ड के अमान परिवर्तन के बारे में प्रश्न पूछा गया था। माहोले के पूछे गए अतारांकित प्रश्न संख्या 4502 के जवाब में 25 अगस्त 2005 को तत्कालीन रेल राज्यमंत्री आर.वेलू ने कहा था कि नैनपुर से छिंदवाड़ा (139.6 किमी) खंड का छोटी लाईन से बड़ी लाईन परिवर्तन हेतु 2003-04 में सर्वेक्षण किया था, सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, इस परियोजना की लागत उस वक्त ऋणात्मक प्रतिफल के साथ 228.22 करोड़ रूपए आंकी गई थी। यह प्रस्ताव अलाभकारी प्रकृति का होने के कारण अस्वीकार कर दिया गया था। इसके बाद इसे ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया गया था।

यहां एक बात और महत्वपूर्ण होगी कि एक मर्तबा तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.व्ही.नरसिंहराव द्वारा भी चुनावी घोषणा के तौर पर परमहंसी आश्रम श्रीधाम में जगतगुरू शंकराचार्य जी के समक्ष यह कहा गया था कि उनके संसदीय क्षेत्र रहे महाराष्ट्र के रामटेक से गोटेगांव तक बड़ी रेल लाईन लाई जाएगी। दुर्भाग्य से वे दुबारा प्रधानमंत्री नहीं बन पाए और छिंदवाड़ा नैनपुर से इतर रामटेक गोटेगांव की यह घोषणा खालिस चुनावी वायदा बनकर रह गई।
(क्रमशः जारी)

शिवराज से ज्यादा काबिल हैं गौर!


शिवराज से ज्यादा काबिल हैं गौर!

एक ही झटके में केंद्र से एक हजार करोड़ हथियाए गौर ने

हजारों करोड़ की इमदाद के बाद केंद्र कैसे कर रहा पक्षपात!

सूचना केंद्र द्वारा गढ़े गए गौर की तारीफों में कशीदे

दिल खोलकर राशि स्वीकृत की शहरी विकास मंत्री ने

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। भाजपनीत मध्य प्रदेश सरकार द्वारा सदा से ही केंद्र सरकार पर पक्षपात के आरोप लगाए जाते रहे हैं। मध्य प्रदेश सूचना केंद्र द्वारा गुरूवार 29 सितम्बर को स्थानीय प्रशासन और विकास मंत्री बाबूलाल गौर के हवाले से जारी खबर के अनुसार कांग्रेसनीत केंद्र सरकार द्वारा मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार पर पूरी उदारता दिखाई जा रही है। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से ज्यादा दमदार और काबिल होकर उभर रहे हैं पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल गौर।

गुरूवार 29 सितम्बर को बाबू लाल गौर ने मध्य प्रदेश कोटे से केंद्र में मंत्री बने और शहरी विकास मंत्रालय के निजाम कमल नाथ से भेंट की। इस दौरान बाबू लाल गौर ने कमल नाथ के दिल में हृदय प्रदेश के प्रति सहानुभूति का पूरा लाभ उठाया तथा उनके विभाग से 1070 करोड़ नब्बे लाख रूपए की भारी भरकम राशि झटक ली। इतनी बड़ी राशि लाने में सफल रहे बाबू लाल गौर निश्चित तौर पर इस मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से भारी पड़ते दिख रहे हैं। केंद्रीय मंत्री कमल नाथ ने इस राशि के बारे में आश्वासन नहीं दिया है उन्होंने इसकी बाकायदा स्वीकृति जारी की है।

जनसंपर्क विभाग के मध्य प्रदेश सूचना केंद्र द्वारा जारी समाचार के अनुसार मध्यप्रदेश के नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री  बाबूलाल गौर ने आज यहां नई दिल्ली में केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री कमलनाथ से भेंट की। इस अवसर पर श्री कमलनाथ ने भोपाल के बी.आर.टी.एस. कॉरीडोर की पुनरीक्षित योजना के लिए 121 करोड़ रुपये स्वीकृत किये जाने की जानकारी श्री गौर को दी। कमल नाथ ने श्री गौर को प्रदेश के 33 शहरों में केन्द्र सरकार की सहायता से चलायी जा रही यू.आई.डी.एस.एस.एम.टी. योजना के तहत विकास कार्यों के लिए 20 शहरों को द्वितीय किश्त के रूप में 171 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत करने की जानकारी दी।

विज्ञप्ति में आगे कहा गया है कि प्रदेश के 19 नगरों की नई पेयजल योजनाओं के लिए श्री गौर ने कमल नाथ से 642 करोड़ रुपये की स्वीकृति दिये जाने का आग्रह किया। इस पर श्री नाथ ने 642 करोड़ रुपये की स्वीकृति दिये जाने पर सहमति दी। इंदौर की रिवर साइड कॉरीडोर की डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डी.पी.आर.) के लिए 97 करोड़ रुपये की स्वीकृति दिये जाने पर भी सहमति दी गई।

नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री श्री गौर ने यू.आई.डी.एस.एस.एम.टी. योजना के अंतर्गत प्रदेश के नगरीय क्षेत्रों की 6 शहरों की 47 योजनाओं के डी.पी.आर. (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) तैयार करने के लिए राशि की मांग की। इस पर कमलनाथ ने आठ करोड़ 22 लाख रुपये की राशि स्वीकृत करने पर सहमति दी। कमलनाथ ने खण्डवा और शिवपुरी नगर की जल प्रदाय योजनाएं जन भागीदारी (पी.पी.पी.) के आधार पर क्रियान्वित करने के लिए नवाचार के लिए एक करोड़ 68 लाख रुपये की स्वीकृति प्रदान की।

श्री गौर ने कमलनाथ से सागर नगर में आवागमन में सुधार के लिए सागर तालाब के चारों ओर चकरााघाट से बस स्टैण्ड तक तालाब के बाहर रिंग रोड बनाने के लिए केन्द्रीय सहायता का आग्रह किया। श्री गौर ने सागर में ही लोहिया पार्क के विस्तार और सुधार के लिए केन्द्रीय सहायता दिये जाने का आग्रह किया। इस पर कमलनाथ ने दोनों प्रस्तावों की विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट भेजने के लिए कहा।

फग्गन के बाद निशाने पर होंगे महाकौशल के अन्य सांसद


फग्गन के बाद निशाने पर होंगे महाकौशल के अन्य सांसद

इशारों ही इशारों में सुषमा कह गईं बड़ी बात

नोट फॉर वोट का निशाना थे परिसीमन में प्रभावित सांसद

अमर सिंह के पास हो सकती है सांसदों की सूची

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। नोट फॉर वोट मामले में मध्य प्रदेश के मण्डला संसदीय क्षेत्र के पूर्व भाजपा सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते के मामले में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज द्वारा इशारों ही इशारों में अनेक गूढ़ बातें कह डालीं। मण्डला में गुरूवार को हुई जनाक्रोश महारैली के उपरांत सियासत गर्माती दिख रही है। भाजपा के रौद्र रूप को देखकर अब कांग्रेस द्वारा भाजपा को घेरने की कवायद की जा रही है।

इस महारैली को संबोधित करते हुए सुषमा स्वराज ने 22 जुलाई 2008 को संसद में नोटों की गड्डियां लहराने का जिकर करते हुए कहा कि अल्पमत में आ चुकी कांग्रेस नीत केंद्र सरकार ने सांसदों की खरीद फरोख्त का कुत्सित और घ्रणित कार्य किया। सुषमा का आरोप है कि सरकार बचाने के लिए 19 सांसदों की दरकार थी और इस हेतु सांसदों को करोड़ों रूपयों की रिश्वत दी गई। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि बहुमत जुटाने के लिए गरीब परिस्थिति के सांसदों और विशेषकर उन सांसदों को लक्ष्य बनाया गया जिनके संसदीय क्षेत्र या तो परिसीमन में विलुप्त हो रहे थे या फिर आरक्षित हो रहे थे।

सुषमा का सीधा आरोप था कि इसके लिए सांसदों को एक करोड़ रूपए पेशगी और दो करोड़ रूपए मतदान के बाद देने का वायदा किया गया था। सुषमा स्वाराज के इस बयान से भाजपा में ही अंदर ही अंदर खलबली मची हुई है। भाजपा में अब उन सांसदों को संदेह की नजर से देखा जाने लगेगा जिनके संसदीय क्षेत्र या तो समाप्त हो गए या आरक्षित हो गए हैं। उल्लेखनीय है कि महाकौशल क्षेत्र का तीस साल पुराना सिवनी संसदीय क्षेत्र परिसीमन में विलुप्त हो गया है साथ ही साथ नोट फॉर वोट मामले में जेल में बंद फग्गन सिंह कुलस्ते भी महाकौशल के मण्डला संसदीय क्षेत्र के सांसद थे।

उधर अमर सिंह के करीबी सूत्रों का कहना है कि अगर कांग्रेस ने अमर सिंह की मदद नहीं की तो वे भी अपने कुछ पत्ते खोलकर कांग्रेस और भाजपा के लिए मुसीबत का बड़ा कारण बन सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि अमर सिंह के पास वह सूची है जिसमें नोट फॉर वोट के लिए पैसे का लेनदेन भी दर्ज है। इसमें मध्य प्रदेश के भाजपा सांसदों का नाम भी दर्ज होना बताया जा रहा है।

अब अण्णा हुए ब्लागीय!


अब अण्णा हुए ब्लागीय!

बनाया ब्लाग और हुए हाईटेक

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेसनीत केंद्र सरकार को औंधे मुंह गिराकर देश को एक सूत्र में पिरोने वाले गांधीवादी समाजसेवी अण्णा हजारे भी अब हाईटेक हो गए हैं। अपना ब्लाग बनाकर उसके लिंक ट्विटर पर भेज अण्णा ने लोगों के बीच अपनी बात सहजता से पहुंचाने का प्रयास आरंभ कर दिया है। अपने ब्लाग के माध्यम से अण्णा हजारे अब सरकार के आरोपों का जवाब और सरकार पर तीखे प्रहार आसानी से कर सकेंगे।

सरकार की खुसुर पुुसुर से आजिज आ चुके अण्णा हजारे ने अपने ब्लाग पर लिखा है कि उन्होंने अपना अनशन किसी शासकीय एजेंट या पसंदीदा मंत्री के कहने पर नहीं वरन् अंतरात्मा की आवाज पर तोड़ा था। जो मंत्री अण्णा से बात करने आए थे उनसे अण्णा ने महज सरकारी प्रतिनिधि के बतौर बात की। गौरतलब है कि अण्णा ने अपना अनशन महाराष्ट्र कोटे से मंत्री बने विलास राव देशमुख से चर्चा के उपरांत समाप्त किया था। अण्णा और देशमुख दोनों एक ही सूबे के हैं।

बिजली की बचत हेतु केंद्र ने उठाए कदम


बिजली की बचत हेतु केंद्र ने उठाए कदम

सरकारी भवनों में सोलर सिस्टम किया अनिवार्य

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। लगता है बिजली की कमी से जूझ रहे भारत गणराज्य में अब बिजली की बचत के लिए केंद्र सरकार संजीदा हो गई है। केंद्रीय नवीन एवं नवीनीकरण उर्जा मंत्रालय ने देश के हर सूबे को ताकीद किया है कि राज्य के हर सरकारी कार्यालय में जल्द ही सोलर सिस्टम लगाकर बिजली की बचत सुनिश्चित की जाए। नवीनीकरण उर्जा विकास विभाग के माध्यम से राज्यों में कराए जाने वाले इस काम के लिए केंद्र सरकार द्वारा तीस से नब्बे फीसदी तक का अनुदान दिया जाएगा।

नवीनीकरण उर्जा मंत्री फारूख अब्दुला के करीबी सूत्रों का कहना है कि उनके निर्देश पर विभाग द्वारा एक महती कार्ययोजना को अंजाम दिया जा रहा है। इस योजना के तहत देश के हर प्रदेश में सरकारी कार्यालयों में जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सोलर मिशन के तहत सोलर सिस्टम लगाया जाएगा। इस सिस्टम से सूर्य की रोशनी से दिन रात कार्यालय रोशन रह सकेंगे। मंत्रालय का उद्देश्य बिजली की कमी से जूझते देश को इससे निजात दिलाना है। सूत्रों ने यह भी कहा कि इसके लिए खरबों रूपए के बजट प्रावधान का प्रस्ताव है जो जल्द ही योजना आयोग को प्रेषित कर दिया जाएगा।

गुरुवार, 29 सितंबर 2011

लोकसभा चुनावों का मुख्य मुद्दा रहा है ब्राडगेज!


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लोकसभा चुनावों का मुख्य मुद्दा रहा है ब्राडगेज!

हर बार ब्राडगेज का आश्वासन देकर छला गया सिवनी वासियों को

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। जब जब लोकसभा चुनाव हुए हैं तब तब ब्राडगेज जैसे ज्वलंत और जनता से जुड़े मुद्दे को पार्टियों द्वारा उठाकर इस मामले में आश्वासन दे जनता का विश्वास जीता जाता रहा है। जीतने के बाद पांच साल तक न तो किसी सांसद ने उसे मिले जनादेश की चिंता की है और ना ही लोकसभा में इस मामले को उठाने का ही प्रयास किया है, और न ही पराजित उम्मीदवार ने ही इस मामले के लिए सांसद को जगाने का प्रयास किया। हार के बाद पराजित उम्मीदवार ने भी उसे नियति मानकर पांच साल के लिए मौन साधे रखा।
सिवनी लोकसभा जब तक अस्तित्व में रही हर बार जनता की भावनाओं का जमकर उपयोग किया गया है, प्रत्याशियों द्वारा। चूंकि रेल का ममला केंद्र सरकार का होता है अतः लोकसभा चुनावों के दौरान प्रमुख राजनैतिक दल के प्रत्याशियों द्वारा इस संवेदनशील मुद्दे को हथियार की तरह इस्तेमाल कर सिवनी में शतायु हो चुकी नेरोगेज रेल लाईन को ब्राड गेज में तब्दील कराने का आश्वासन दिया जाता रहा है।
एक मर्तबा तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.व्ही.नरसिंहराव द्वारा भी चुनावी घोषणा के तौर पर परमहंसी आश्रम श्रीधाम में जगतगुरू शंकराचार्य जी के समक्ष यह कहा गया था कि उनके संसदीय क्षेत्र रहे महाराष्ट्र के रामटेक से गोटेगांव तक बड़ी रेल लाईन लाई जाएगी। दुर्भाग्य से वे दुबारा प्रधानमंत्री नहीं बन पाए और छिंदवाड़ा नैनपुर से इतर रामटेक गोटेगांव की यह घोषणा खालिस चुनावी वायदा बनकर रह गई।
सिवनी विधानसभा से दो बार कांग्रेस प्रत्याशी रहे आशुतोष वर्मा द्वारा अलबत्ता इस मामले को अपने हाथ में लेकर रामटेक गोटेगांव को भारतीय रेल के नक्शे पर लाने का हर संभव प्रयास किया गया किन्तु उनकी आवाज भारतीय रेल के नक्कारखाने में तूती ही साबित हुई। पिछले बजट में इस मार्ग का जिकर होने से कुछ आशाएं अवश्य जगी हैं, किन्तु यक्ष प्रश्न अब भी यही है कि जब नागपुर से छिंदवाड़ा, सिवनी, नैनपुर होकर मण्डला और जबलपुर जाने वाला जो मार्ग अस्त्तिव में है उसका छिंदवाड़ा से नैनपुर और मण्डला का रेलखण्ड ही अभी तक नहीं बन पाया है तो नई रेल लाईन कब और कैसे आ पाएगी।
यहां उल्लेखनीय होगा कि जब जब चुनाव समाप्त हुए तो विजयी सांसद ने जनता से किए गए इस चुनावी वायदे को पूरा करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई है। लोकसभा सचिवालय के सूत्रों का कहना है कि सिवनी जिले के किसी भी संसद सदस्य द्वारा अब तक नैनपुर से बरास्ता सिवनी होकर छिंदवाड़ा जाने वाले रेलखण्ड के संबंध में प्रश्न नहीं उठाया गया है। सिवनी की सियासती जमीन इतनी भुरभुरी है कि बरास्ता राज्यसभा संसदीय सौंध तक पहुंचाने कांग्रेस और भाजपा को एक भी दावेदार नहीं मिला है इसलिए इस रेलखण्ड से संबंधित बात राज्य सभा में भी नहीं उठ सकी है।

लोकसभा चुनावों के आते ही सिवनी वासियों के मस्तिष्क पटल पर विकास का जो नक्शा उकेरा जाता रहा है उसमें ब्राडगेज को विशेष स्थान दिया जाता रहा है। लोगों को लगने लगता बस एक दो बरस में ही सिवनी ब्राडगेज से जुड़ जाएगा और फिर सिवनी के विकास के रास्ते प्रशस्त हो जाएंगे। सिवनी के निवासियों के युवा सदस्यों को इस विकास का भागीदार बनाकर यहां उद्योग धंधे स्थापित हो जाएंगे, फिर सिवनी में राम राज्य की स्थापना को कोई नहीं रोक सकता है।
(क्रमशः जारी)

बाबा आदम के जमाने में जी रही है कांग्रेस


बाबा आदम के जमाने में जी रही है कांग्रेस

तकनीकि मामलों में कांग्रेस मुख्यालय फिसड्डी

लिमटी खरे

नई दिल्ली। इक्कीसवीं सदी के भारत के स्वप्नदृष्टा तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की अर्धांग्नी एवं विश्व की ताकतवर महिलाओं में शुमार श्रीमति सोनिया गांधी के नेतृत्व में सवा सौ साल पुरानी और देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस का नेशनल हेडक्वार्टर आज भी बाबा आदम के जमाने में सांसे ले रहा है। तकनीकि मामलों में यह कार्यालय अन्य राजनैतिक पार्टियों के मुकाबले बेहद पिछड़ा ही है।

कांग्रेस की नजर में भविष्य के वजीरे आजम और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी एवं कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी का अपना निजी कार्यालय भले ही सूचना प्रोद्योगिकी के मामले में चाक चौबंद हो पर कांग्रेस का राष्ट्रीय मुख्यालय आज भी इस मामले में कराह ही रहा है।

हाल ही में रहीद किदवई की प्रकाशित एक पुस्तक कांग्रेस मुख्यालय का पता 24 अकबर रोड़ में इस बात का खुलासा हुआ है। कांग्र्रेस पर आरोप लगाया गया है कि उसने अपने मुख्यालय में अनेक अवैध निर्माण भी करवाए हैं। 295 पेज की यह किताब देश की सबसे पुरानी सियासी पार्टी कांग्रेस की अंदरूनी बातों को उजागर करती है।

कांग्रेस मुख्यालय का आलम यह है कि न तो यहां वाईफाई है और न ही अनेक महासचिवों और पदाधिकारियों के पास कंप्यूटर ही। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति इंदिरा गांधी से श्रीमति सोनिया गांधी तक कांग्रेस के मुख्यालय में कमरों के निर्माण तो करवाए गए हैं किन्तु शौचालयों की तादाद सीमित ही है। आलम यह है कि कांग्रेस अध्यक्ष सहित 11 महासचिवों के लिए तो शौचालय सहित कमरे हैं किन्तु अन्य पदाधिकारियों और आगंतुकों के लिए दो शौचालय हैं जो चोबीसों घंटे सड़ांध उगलते रहते हैं। किताब की बात को सच मानें तो मुख्यालय में एक भी शौचालय नहीं है जहां महिलाएं प्रसाधन कर सकें।

अण्णा को प्रथम नागरिक बनाने की तैयारी



अण्णा को प्रथम नागरिक बनाने की तैयारी

प्रतिभा ताई के बाद अण्णा का आशियाना होगा रायसीना हिल्स पर!

आम चुनावों के अण्णा को पिंजरे में बंद करने की कवायद

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। अण्णा के रामलीला मैदान के सफलतम अनशन के बाद लोग उनकी तुलना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से करने लगे थे। इंटरनेट पर तो अण्णा हजारे के चित्र वाले नोट भी बनकर आ गए थे। 16 अगस्त की धूम देशवासियों के सर चढ़कर बोल रही थी। लोगों का जोश और जुनून देखते ही बन रहा था। अण्णा प्रकरण में सत्ताधारी कांग्रेस के प्रबंधकों के सारे दांव उल्टे पड़ने के बाद अब सियासी दलों के नेता अण्णा की चौखट चूमते नजर आ रहे हैं।

अगले आम चुनावों में अगर अण्ण हजारे की दहाड़ एक बार फिर सुनाई पड़ी तो लोगों की भावनाओं का खिलवाड़ कर सत्ता की मलाई चखने वाले सियासी दल चारों खाने चित्त ही नजर आएंगे। इसी डर के चलते अब सियासी दलों के प्रबंधकों ने अण्णा के आसपास अपने ताने बाने बुनने आरंभ कर दिए हैं। प्रबंधकों का मानना है कि अण्णा जिस भी दल की गोद में बैठेंगे उसे चुनावों में खासा फायदा होने की उम्मीद है।

गौरतलब है कि अगले साल 2012 में जुलाई में देश का पहला नागरिक चुना जाना है एवं आम चुनाव मई 2014 में प्रस्तावित हैं। इस तरह अगर अण्णा को अपना उम्मीदवार बनाकर प्रस्तुत किया जाए तो निश्चित तौर पर यह संदेश जाएगा कि वह दल भ्रष्टाचार को मिटाने संकल्पित है। अण्णा का आशियाना रायसीना हिस्ल पर स्थित ब्रिटिश वायसराय जनरल के आवास यानी वर्तमान राष्ट्रपति भवन बनते ही अण्णा हजारे संवैधानिक मर्यादाओं के पालन के लिए पाबंद हो जाएंगे।

चर्चाओं के अनुसार शीर्ष सियासी दल कांग्रेस और भाजपा में इस विषय पर गंभीर मंथन भी चल रहा है। वैसे अण्णा के अनशन की समाप्ति पर यह संभावना व्यक्त की गई थी। उस वक्त ‘वे थे राष्ट्रपिता और ये होंगे राष्ट्रपति‘ शीर्षक की खबर ने सियासी हल्कों में तहलका भी मचाया था।

केंद्र बालाघाट में तैनात करेगा पेशेवर युवा


केंद्र बालाघाट में तैनात करेगा पेशेवर युवा

नक्सल प्रभावित जिलों की सुध ली सरकार ने

मण्डला, बालाघाट डिंडोरी हैं नक्सल प्रभावित

पीएम की मुहर हेतु लंबित है मामला

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश में तेजी से पैर पसारते नक्सलवाद पर अब केंद्र सरकार कुछ संजीदा होती नजर आ रही है। पिछले दिनों दिल्ली में हुई कलेक्टर्स कांफ्रेस के बाद केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने एक मसौदा तैयार किया है जिसके तहत विभाग की केंद्र पोषित योजनाओं के लिए सूबों के नक्सल प्रभावित जिलों में पेशेवर युवाओं की तैनाती का प्रस्ताव किया गया है। ये युवा जिलाधिकारियों का सहयोग करेंगे।

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने बताया कि इस योजना को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समक्ष पिछले दिनों हुई नक्सल प्रभावित जिलों के कलेक्टर्स की बैठक में रखा गया था। नक्सल प्रभावित जिलों के कलेक्टर्स ने सरकार के इस प्रस्ताव को सराहा था। प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास फेलो प्रोग्राम को अब सिर्फ प्रधानमंत्री कार्यालय की अंतिम मुहर की दरकार है।

लोक कार्यक्रम और ग्रामीण प्रौद्योगिकी परिषद (कपार्ट) द्वारा स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से कार्यक्रमों का संचालन कराया जाता है। प्रधानमंत्री फेलो प्रोग्राम पर आने वाला पूरा खर्च कपार्ट उठाएगा। इससे खजाने पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा। इसके लिए उन स्वयंसेवी संगठनों का सहयोग लिया जाएगा, जो नक्सली क्षेत्रों में पहले से ही काम कर रहे हैं।

गौरतलब है कि वर्तमान में मध्य प्रदेश के बालाघाट मण्डला और डिंडोरी जिलों को नक्सल प्रभावित जिलों की श्रेणी में रखा गया है। मध्य प्रदेश सरकार ने सीधी, सिंगरोली, शहडोल, उमरिया और अनूपपुर को इसमें शामिल करने का प्रस्ताव दिया है। इस प्रस्ताव में बालाघाट और मण्डला जिले की सीमा से लगे सिवनी जिले को शुमार न किया जाना आश्चर्यजनक है क्योंकि कुछ सालों पहले तक सिवनी जिले में भी नक्सलवाद की पदचाप केवलारी और बरघाट विकासखण्ड में सुनाई देती रही है।

वैसे इस तरह के पेशेवर युवाओं को देश के 180 नक्सल प्रभावित जिलों में पदस्थ किए जाने की योजना है। वर्तमान में मध्य प्रदेश सहित छत्तीसगढ़, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखण्ड, बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल मुख्य रूप से नक्सलवाद की समस्या से जूझ रहे हैं। पिछले साल जुलाई माह में कर्नाटक को नक्सल प्रभावित राज्यों की सूची से हटा दिया गया था।

कलमाड़ी ने खेला था टिकिटों का भी खेल



कलमाड़ी ने खेला था टिकिटों का भी खेल

अपनों को बांट दी 72 करोड़ रू की टिकिटें

वेब साईट पर सोल्ड पर वास्तव में बिकी ही नहीं 75 फीसदी टिकिटें

टिकिट बिक्री के बाद जारी किए बिक्री के विज्ञापन!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। ‘हरि अनंत हरि कथा अनंता‘ की तर्ज पर कामन वेल्थ गेम्स की आयोजन समिति के अध्यक्ष रहे सुरेश कलमाड़ी के चमत्कार एक के बाद एक खुलते जा रहे हैं। हरि अर्थात भगवान के चमत्कार जनकल्याण के लिए थे किन्तु कलमाड़ी के चमत्कार कामन वेल्थ गेम्स के रास्ते खुद की वेल्थ सुधारने के लिए थे। इस आयोजन के लिए जनता के गाढ़े पसीने की कमाई के 72 करोड़ रूपयों की टिकिटें उपहार में ही बांट दी गई थीं।

उद्घाटन और समापन समारोह के लिए 23 हजार टिकिटें उपहार में दी गई थीं। लोगों ने इन्हें ले तो लिया किन्तु खेल देखने नहीं पहुंचे, परिणाम स्वरूप स्टेडियम में चालीस फीसदी सीट खाली ही रहीं। टिकिटों के लिए दर्शकों ने दस दिन में चालीस लाख से ज्यादा बार इसकी वेब साईट खंगाली किन्तु वहां टिकिटें सोल्ड ही मिलीं। और तो और दिल्ली में टिकिट बेचने के लिए एक भी काउंटर नहीं खोला गया। आईआरसीटीसी को सिर्फ एक आउटलेट के लिए दो करोड़ रूपयों का भुगतान कर दिया गया।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (केग) के प्रतिवेदन ने यह खुलासा किया है। आयोजन समिति द्वारा जून 2010 में टिकिटिंग सलाहकरा के द्वारा अनुबंध समाप्त होने पर विशेषज्ञ की राय के बिना ही खुद के द्वारा निर्णय ले लिए गए। अफरातफरी का माहौल इस कदर था कि सितम्बर 2010 तक टिकिटों की बिक्री आरंभ नहीं हो सकी।

इतना ही नहीं शुरूआत में टिकिटों से मिलने वाले राजस्व का लक्ष्य सौ करोड़ रखा गया था। बाद में इससे कुल राजस्व 39 करोड़ 17 लाख रूपए ही प्राप्त हुए। आश्चर्यजनक पहलू तो यह है कि टिकिट की बिक्री और प्रबंधन में ही 23 करोड़ 37 लाख रूपए खर्च हो गए। टिकिटों से कुल शुद्ध राजस्व करोड़ महज 15 करोड़ अस्सी लाख रूपए ही मिल पाया।

बुधवार, 28 सितंबर 2011

भारत माता के देश में लाचार है जननी


भारत माता के देश में लाचार है जननी

(लिमटी खरे)

दुनिया के चौधरी अमेरिका की मशहूर पत्रिका न्यूजवीक ने एक सर्वे कराया है जिसमें भारत गणराज्य में महिलाओं की दयनीय स्थिति का वर्णन मिलता है। भारत को सौ में से महज 41.9 अंक ही मिल पाए हैं। जिस देश का पहला नागरिक महिला हो, जिस देश में लोकसभाध्यक्ष महिला हो, जिस देश के तमिलनाडू, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश जैसे सूबों की निजाम महिला हो, जिस देश की सरकार का रिमोट कंट्रोल भी कथित तौर पर महिला के पास हो, उस देश में महिलाओं की बदतर स्थिति कैसे हो सकती है। इन परिस्थितियों में तो यही माना जाएगा कि न्यूजवीक का सर्वेक्षण कोरी बकवास से ज्यादा कुछ नहीं है। वस्तुतः यह कोरी बकवास नहीं है। यह जमीनी हकीकत है भारत गणराज्य की। लिंगानुपात भी भारत में चिंताजनक स्तर पर है। वैध अवैध सोनोग्राफी सेंटर्स में जन्म के पहले ही कन्या भ्रूण हत्या के मामलों में चीन नंबर वन तो भारत दूसरी पायदान पर है।

2004 में जैसे ही कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार केंद्र पर काबिज हुई, और सरकार के अघोषित सबसे शक्तिशाली पद पर कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी बैठीं तभी लगने लगा था कि आने वाले समय में सरकार द्वारा महिलाओं के हितों का विशेष ध्यान रखा जाएगा। सात साल बीत गए पर महिलाओं की स्थिति में एक इंच भी सुधार नहीं हुआ है। महिलाओं के फायदे वाले सारे विधेयक आज भी सरकार की अलमारियों में पड़े हुए धूल खा रहे हैं। लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को एक तिहाई (33 फीसदी) भागीदारी सुनिश्चित करने संबंधी विधेयक अंततः लोकसभा में पारित ही नहीं हो सका। राजनैतिक लाभ हानि के चक्कर में संप्रग सरकार ने इस विधेयक को हाथ लगाने से परहेज ही रखा।

आजाद हिन्दुस्तान में देश की सबसे शक्तिशाली महिला होकर उभरने के बावजूद भी सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस की मुखिया सोनिया गांधी चौदहवीं लोकसभा में महिला आरक्षण जैसे महात्वपूर्ण बिल को पास नहीं करवा सकीं। अपने घोषणापत्र में कांग्रेस ने अवश्य कहा है कि सरकार में आने पर महिलाओं की तीस फीसदी भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। पिछली मर्तबा संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी पर कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही मौन साध रखा था। अगर कांग्रेस के मनमोहनी घोषणापत्र को अमली जामा पहनाया गया तो निश्चित रूप से आने वाले आम चुनावों के बाद आजादी के छः दशकों के उपरांत देश में महिलाओं की दशा में सुधार परिलक्षित हो सकता है, वस्तुतः एसा नहीं होगा नहीं, क्योंकि घोषणा पत्र को मतदाताओं को लुभाने के लिए ही किया जाता रहा है।

महिलाओं की हालत क्या है यह बताता है उत्तर प्रदेश में किया गया एक सर्वेक्षण। सर्वे के अनुसार 1952 से 2002 के बीच हुए 14 विधानसभा चुनावों में प्रदेश में कुल 235 महिला विधायक ही चुनी गईं थीं। इनमें से सुचिता कृपलानी और मायावती ही एसी भाग्यशाली रहीं जिनके हाथों मंे सूबे की बागड़ोर रही। चुनाव की रणभेरी बजते ही राजनैतिक दलों को महिलाओं की याद सतानी आरंभ हो जाती है। चुनावी लाभ के लिए वालीवुड के सितारों पर भी डोरे डालने से बाज नहीं आते हैं, देश के राजनेता। भीड़ जुटाने और भीड़ को वोट मंे तब्दील करवाने की जुगत में बड़े बड़े राजनेता भी रूपहले पर्दे की नायिकाओं की चिरोरी करते नज़र आते हैं।

देश के ग्रामीण इलाकों में महिलाओ की दुर्दशा देखते ही बनती है। कहने को तो सरकारों द्वारा बालिकाओं की पढ़ाई के लिए हर संभव प्रयास किए हैं। किन्तु ज़मीनी हकीकत इससे उलट है। गांव का आलम यह है कि स्कूलों में शौचालयों के अभाव के चलते देश की बेटियां पढ़ाई से वंचित हैं। प्राचीन काल से माना जाता रहा है कि पुरातनपंथी और लिंगभेदी मानसिकता के चलते देश के अनेक हिस्सों मंे लड़कियों को स्कूल पढ़ने नहीं भेजा जाता। एक गैर सरकारी संगठन द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार उत्तर भारत के अनेक गांवों में बेटियों को शाला इसलिए नहीं भेजा जाता, क्योंकि वे अपनी बेटी को शिक्षित नहीं करना चाहते। इसकी प्रमुख वजह गांवों मंे शौचालय का न होना है।

शौचालयों के लिए केंद्र सरकार द्वारा समग्र स्वच्छता अभियान चलाया है। इसके लिए अरबों रूपयों की राशि राज्यों के माध्यम  से शुष्क शोचालय बनाने में खर्च की जा रही है। सरकारी महकमों के भ्रष्ट तंत्र के चलते इसमें से अस्सी फीसदी राशि गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से सरकारी मुलाजिमों ने डकार ली होगी। सदियों से यही माना जाता रहा है कि नारी घर की शोभा है। घर का कामकाज, पति, सास ससुर की सेवा, बच्चों की देखभाल उसके प्रमुख दायित्वों में शुमार माना जाता रहा है। अस्सी के दशक तक देश में महिलाओं की स्थिति कमोबेश यही रही है। 1982 में एशियाड के उपरांत टीवी की दस्तक से मानो सब कुछ बदल गया।

नब्बे के दशक के आरंभ में महानगरों में महिलाओं के प्रति समाज की सोच में खासा बदलाव देखा गया। इसके बाद तो मानो महिलाओं को प्रगति के पंख लग गए हों। आज देश में जिला मुख्यालयों में भी महिलाओं की सोच में बदलाव साफ देखा जा सकता है। कल तक चूल्हा चौका संभालने वाली महिला के हाथ आज कंप्यूटर पर जिस तेजी से थिरकते हैं, उसे देखकर प्रोढ़ हो रही पीढी आश्चर्य व्यक्त करती है। कहने को तो आज महिलाएं हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर हैं, पर सिर्फ बड़े, मझौले शहरों की। गांवों की स्थिति आज भी दयनीय बनी हुई है। देश की अर्थव्यवस्था गावों से ही संचालित होती है। देश को अन्न देने वाले अधिकांश किसानों की बेटियां आज भी अशिक्षित ही हैं।

आधुनिकीकरण की दौड़ में बड़े शहरों में महिलाओ ने पुरूषों के साथ बराबरी अवश्य कर ली हो पर परिवर्तन के इस युग का खामियाजा भी जवान होती पीढ़ी को भुगतना पड़ रहा है। मेट्रो में सरेआम शराब गटकती और धुंए के छल्ले उड़ाती युवतियों को देखकर लगने लगता है कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति कितने घिनौने स्वरूप को ओढ़ने जा रही है। पिछले सालों के रिकार्ड पर अगर नज़र डाली जाए तो शराब पीकर वाहन चलाने, पुलिस से दुर्व्यवहार करने के मामले में दिल्ली की महिलाओं ने बाजी मारी है। टीवी पर गंदे अश्लील गाने, सरेआम काकटेल पार्टियां किसी को अकर्षित करतीं हो न करती हों पर महानगरों की महिलाएं धीरे धीरे इनसे आकर्षित होकर इसमें रच बस गईं हैं। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि महानगरों और गांव की संस्कृति के बीच खाई बहुत लंबी हो चुकी है, जिसे पाटना जरूरी है। अन्यथा एक ही देश में संस्कृति के दो चेहरे दिखाई देंगे।

बहरहाल सरकारों को चाहिए कि महिलाओं के हितों में बनाए गई योजनाओं को कानून में तब्दील करें, और इनके पालन में कड़ाई बरतें। वरना सरकारों की अच्छी सोच के बावजूद भी छोटे शहरों और गांव, मजरों टोलों की महिलाएं पिछड़ेपन को अंगीकार करने पर विवश होंगी।

पेंच और कान्हा के नाम पर भी ब्राडगेज के लिए नहीं हुए प्रयास


0 सिवनी से चलेगी पेंच व्हेली ट्रेन . . . 4

पेंच और कान्हा के नाम पर भी ब्राडगेज के लिए नहीं हुए प्रयास

उदासीन जनप्रतिनिधियों के हवाले रही है जिले की जनता

जबलपुर नैनपुर से कान्हा तो छिंदवाड़ा नागपुर से जुड़ सकता है पेंच

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विख्यात है कान्हा नेशनल पार्क। नब्बे के दशक में सिवनी और छिंदवाड़ा जिले की सीमा में पड़ने वाले पेंच नेशनल पार्क ने अपनी जगह बनाना आरंभ किया। प्रसिद्ध धुमंतु रूडयार्ड किपलिंग की द जंगल बुक के हीरो मोगली के भी इसी पेंच नेशनल पार्क में होने की बात से पेंच के प्रति देश विदेश के लोगों का आकर्षण बढ़ गया है। दो नेशनल पार्क होने के बाद भी सिवनी और मण्डला जिले को ब्राडगेज से जोड़ने का काम नहीं किया गया।

गौरतलब है कि देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाले डेढ़ सौ साल पुरानी कांग्रेस ने आदिवासी बाहुल्य मण्डला और सिवनी जिले के साथ सदा से अन्याय ही किया है। कांग्रेस ने बालाघाट और छिंदवाड़ा को तो ब्राडगेज से जोड़ दिया किन्तु जब मण्डला और सिवनी की बारी आई तो हाथ खड़े कर दिए। कहने को इन जिलों के कांग्रेसी नेता अपने जनप्रतिनिधि के कमजोर होने की बात कहकर अपनी खाल अवश्य ही बचा लेते हैं किन्तु वे भूल जाते हैं कि नब्बे के दशक तक सिवनी और मण्डला जिले पर कांग्रेस का ही कब्जा रहा है।

नब्बे के दशक के उपरांत महाकौशल जो कभी कांग्रेस का गढ़ माना जाता था में आदिवासी वर्ग की उपेक्षा के चलते अन्य दलों ने सेंध लगा दी। इक्कीसवीं सदी के आगाज के साथ ही कांग्रेस के हाथ से महाकौशल में जमीन रेत की तरह फिसलती गई। आज महाकौशल से गिनती के विधायक और सांसद ही बचे हैं कांग्रेस के। कांग्रेस ने सिवनी और मण्डला जिले के साथ घोर उपेक्षा का रवैया अपनाया। दोनों ही जिलों को बड़ी रेल लाईन से दूर रखा जिससे दोनों ही जिलों में औद्योगिक निवेशों की संभावनाएं लगभग समाप्त हो चुकी हैं।

वर्तमान में संस्कारधानी जबलपुर से बालाघाट बरास्ता नैनपुर तथा छिंदवाड़ा से नागपुर तक ब्राडगेज प्रस्तावित है। सूत्रों की मानें तो छिंदवाड़ा से नैनपुर बरास्ता सिवनी के रेल खण्ड निर्माण में पेंच नेशनल पार्क का हिस्सा नहीं आ रहा है। इस दृष्टि से जल्द ही इस मार्ग का निर्माण प्रस्तावित है। सूत्रों का कहना है कि अगर महाकौशल के नेताओं ने अपने स्वार्थ का फच्चर इसमें नहीं फंसाया तो मार्ग निर्माण 2014 तक पूरा होने की उम्मीद की जा सकती है।

वैसे बालाघाट से जबलपुर रेलखण्ड में नैनपुर जंक्शन से कान्हा नेशनल पार्क और छिंदवाड़ा से नागपुर रेलखण्ड में रामाकोना या बिछुआ कि आसपास से पेंच नेशनल पार्क में प्रवेश का प्वाईंट बनाया जा सकता है। सिवनी के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करने वाले नेताओं की कुदृष्टि वैसे भी सिवनी पर केंद्रित ब्राडगेज रेल खण्ड पर पड़ रही है, जिससे बचने के प्रयास आम जनता को ही करना होगा।

(क्रमशः जारी)

हाईकोर्ट में मामला एनएचएआई अंजान


हाईकोर्ट में मामला एनएचएआई अंजान

हम वेतन नहीं लेते इसलिए जानकारी हेतु बाध्य नहीं: सिंघई

नई दिल्ली (ब्यूरो)। उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे में सिवनी जिले की क्या स्थिति है, उच्च न्यायालय में अज्ञात लोगों के खिलाफ लूट का मामला एनएचएआई ने दाखिल कराया है या किसी अन्य ने इस बारे में एनएचएआई के परियोजना निदेशक और पूर्व में सिंचाई विभाग में पदस्थ रहे एस.के.सिंघई को कुछ भी जानकारी नहीं है। दिल्ली प्रवास पर आए सिंघई ने दूरभाष पर चर्चा के दौरान कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि इस मार्ग का क्या हो रहा है।

एनएचएआई के सहायक परियोजना अधिकारी दिलीप पुरी ने इस संबंध में जानकारी मांगने पर अपने उच्चाधिकारी एस.के.सिंघई से संपर्क करने की बात कही। वहीं दूरभाष नंबर 9425426644 पर चर्चा के दौरान एस.के.सिंघई ने कहा कि वे सरकारी काम से दिल्ली आए हैं। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में अस्थाई टोल बूथ किसके आदेश पर स्थापित हुआ था, इसका नोटिफिकेशन हुआ या नही, इसे किसने तोड़ा, इस मामले में पुलिस में क्या एफआईआर दर्ज की गई, इस मामले को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में किसने लगाया इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है।

श्री सिंघई ने कहा कि वे किसी के नौकर नहीं हैं और जनता के गाढ़े पीसने की कमाई से संचित धन से वेतन भी नहीं लेते हैं। इसके अलावा उन्होंने कहा कि वे अपने विभागीय मंत्री के अलावा किसी अन्य को जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं हैं। गौरतलब है कि एस.के.सिंघई मूलतः मध्य प्रदेश शासन के सिंचाई विभाग के मुलाजिम हैं जो केंद्र सरकार के भूतल परिवन मंत्रालय के अधीन संचालित एनएचएआई में प्रतिनियुक्ति पर हैं। श्री सिंघई पूर्व में सिंचाई विभाग में लंबे समय से वे सिवनी में पदस्थ रहे हैं। उनकी बरघाट विधानसभा में पदस्थापना के दौरान विशेषकर अरी क्षेत्र में की गई अनियमितताओं के चलते वे चर्चाओं का केंद्र रहे हैं।

व्याप्त चर्चाओं के अनुसार सिवनी से विशेष दिलचस्पी रखने वाले परियोजना निदेशक एस.के.सिंघई के असहयोगात्मक रवैए के कारण सिवनी जिले में लखनादौन से खवासा तक के फोरलेन हाईवे में जगह जगह परखच्चे उड़ चुके हैं। एनएचएआई के सूत्रों का ही कहना है कि जब इस मामले को इस साल की शुरूआत में ही देश की सबसे बड़ी अदालत ने वाईल्ड लाईफ बोर्ड के पास भेज दिया है तब लगभग नौ माह बाद भी इस मार्ग के 8.7 किलोमीटर के विवादित हिस्से को छोड़कर शेष पर काम आरंभ न किए जाने के लिए प्रोजेक्ट निदेशक ही पूरी तरह जिम्मेदार माने ला सकते हैं। इसके साथ ही साथ सिवनी शहर में भी नगझर से लूघवाड़ा होकर शीलादेही जाने वाला मार्ग जो जिला मुख्यालय के अंदर से होकर गुजरता है का रखरखाव भी विभाग द्वारा नहीं किया गया है।

भाजपा समर्थित पत्रकारों की बल्ले बल्ले


भाजपा समर्थित पत्रकारों की बल्ले बल्ले

कांग्रेस की कब्र खोदने वाले पत्रकारों को गोद में बिठा रही है कांग्रेस

प्रणव पुत्र को लांच किया भाजपा के कर्णधारों ने!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कभी कांग्रेस को पानी पी पी कर कोसने वाले पत्रकारों पर कांग्रेस जमकर मेहरबान नजर आ रही है। 2004 में दूरदर्शन से बाहर किए गए एक पत्रकार को सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने पत्रकारों के लिए अधिमान्यता समिति में न केवल स्थान दिया है वरन् उन्हें हाथों हाथ भी लिया जा रहा है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी अपनी राजनैतिक विरासत को अपने पुत्र को सौंपने की तैयारी में दिख रहे हैं।

पश्चिम बंगाल से विधायक प्रणव मुखर्जी के पुत्र अभिजीत को हाल ही में मीडिया सर्किल में लांच किया गया। लांचिग के लिए प्रणव दा ने आड़वाणी के एक करीबी पर पूरा एतबार जताया। मीडिया सर्किल तब हैरान रह गया जब प्रणव के कांग्रेसी विधायक पुत्र अभिजीत की लांचिग पार्टी में कांग्रेस के बजाए भाजपा को कव्हर करने वालों पत्रकारों की तादाद बेहद ज्यादा थी।

उधर वर्ष 2004 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के आते ही दूरदर्शन से एक पत्रकार को यह कहकर निकाल दिया गया था कि वह भाजपा मानसिकता का है। आज वही पत्रकार कांग्रेस की नाक का बाल बना हुआ है। अंबिका सोनी ने तो उस पत्रकार को अधिमान्यता समिति में स्थान भी दे दिया है। और तो और एक दिन जब कांग्रेस बीट कव्हर करने वाले पत्रकार जनार्दन द्विवेदी से मिलने घंटों कमरे के बाहर बैठे रहे तब अंदर द्विवेदी और उन्हीं भाजपा मानसिकता वाले पत्रकार के बीच हंसी ठठ्ठों के दौर भी चलते रहे।

नप सकते हैं प्रफुल्ल पटेल



नप सकते हैं प्रफुल्ल पटेल

कैग की रिपोर्ट में लगे पटेल पर गंभीर आरोप

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट पर अगर गौर फरमाया गया और सरकार ने गठबंधन धर्मसे उपर राष्ट्र धर्म को समझा तो पूर्व नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल का आशियाना आदिमत्थू राजा, सुरेश कलमाड़ी जैसे दिग्गजों के साथ तिहाड़ में बन सकता है। पटेल पर आरोप है कि उन्होने एविएशन मिनिस्टर रहते हुए अपने चाहने वालों को तबियत से फायदा पहुंचाया है।

कहा जा रहा है कि बतौर नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने एयर इंडिया और इंडियन एयर लाईंस का बट्टा बिठाने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी। पटेल की नीतियों के चलते अंतरदेशीय और समुद्रपारीय दोनों ही सरकारी विमान सेवाओं का वित्तीय प्रबंधन धाराशायी हो गया। इस मामले की अगर निष्पक्ष जांच हो जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है। जांच में साफ हो जाएगा कि एवीएशन विभाग द्वारा किस तरह एयर इंडिया और इंडियन एयरलाईंस को दरकिनार कर निजी एयर लाईंस को बढ़ावा देने की गरज से मार्गों को खोला था।

अनेक राज्यों में सड़क परिवहन निगम की यात्री बसों के समानांतर निजी यात्री बसों को अवैध तरीके से संचालित करने से निगम बंद हो चुके हैं या तालाबंदी की ओर अग्रसर हैं। मध्य प्रदेश में राज्य परिवहन निगम में तो ताला ही लग गया है। सूबे में अवैध बस संचालन पूरे शबाब पर है। कमोबेश इसी तर्ज पर पटेल ने निजी एयरलाईंस के लिए आकर्षक और लाभ वाले मार्ग पूरी तरह खोल दिए थे। इतना ही नहीं पटेल के कार्यकाल में 111 नए बोईंग विमान खरीदने का आदेश भी विवादों में ही है। चर्चा है कि जिस कंपनी से पटेल ने सौदा किया वह पटेल की ही कंपनी के नाम से जानी जाती है। इसके अलावा पटेल के अन्य सांसद या मंत्री मित्र भी वायूयानों में खासी दिलचस्पी रखते हैं।

नागपुर को संवारा जा रहा है गड़करी के लिए


नागपुर को संवारा जा रहा है गड़करी के लिए

लोकसभा में ओरंजसिटी से अजमाएंगे नितिन किस्मत

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नितिन गड़करी ने पिछले दरवाजे के बजाए जनता का सामना कर नेतागिरी करने का साहस जुटा लिया है। वे 2014 में होने वाले आम चुनाव में अपनी सक्रिय हिस्सेदारी करने वाले हैं। वे अपने जीवन का पहला लोकसभा चुनाव नागपुर से लड़ने के इच्छुक बातए जा रहे हैं।

भाजपा निजाम नितिन गड़करी के करीबी सूत्रों ने कहा कि जब वे भाजपाध्यक्ष बनाए गए थे तभी उन्हें मशविरा दिया गया था कि वे बरास्ता राज्यसभा संसद में पहुंच जाएं। इसके लिए उन्होंने सैद्धांतिक सहमति भी दे दी थी किन्तु उस वक्त उनके सामने लाल कृष्ण आड़वाणी और सुषमा स्वराज जैसे नेता थे जो लोकसभा से थे। अगर गड़करी राज्य सभा से जाते हैं तो दोनों ही नेता उन पर भारी पड़ने लगेंगे। इसलिए वक्त की मांग थी कि गड़करी या तो लोकसभा से जाएं या फिर चुनाव ही न लड़ें। गड़करी की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि वे पहली मर्तबा ही राष्ट्रीय स्तर पर कोई मुकाबले में उतरेंगे।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और नितिन गड़करी आज तक कोई चुनाव नहीं जीता है। इससे पहले चुनाव के मामले में उन्हें कभी भी सफलता नहीं मिली है। 1985 में उन्होंने नागपुर पश्चिम से एकमात्र विधानसभा चुनाव लड़ा था, जिसमें उनकी हार हुई थी। हालांकि वे महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य रहे हैं। वे 1994 से 1999 के बीच भाजपा-शिवसेना की सरकार में लोकनिर्माण मंत्री भी थे। वैसे तो गडकरी ने लोकसभा चुनाव के बारे में आधिकारिक घोषणा नहीं की है। लेकिन भाजपा सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि गड़करी के द्वारा अपने प्रस्तावित निर्वाचन क्षेत्र के बारे में जानकारी जुटाने, समय देने से लगने लगा है कि वे लोकसभा महासमर में उतरने की तैयारी में हैं।

नीलकंठ बनने को तैयार नहीं युवराज


नीलकंठ बनने को तैयार नहीं युवराज

मीडिया प्रबंधन में जुटी राहुल जुंडली

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। सागर मंथन से अमृत के साथ विष भी निकला। अमृत तो सभी पीना चाह रहे थे पर विषपान को कोई तैयार नही ंथा। भगवान शिव ने विषपान किया और अपनी गर्दन में उसे रख लिया। तभी वे नीलकण्ठ कहलाए। दो दशकों से कांग्रेस भी देश को मथ रही है। सत्ता में आते ही सत्ता का अमृत सभी चखना चाहते हैं पर जमीनी स्तर पर उखड़ते कांग्रेस के पैरों जिसे विष की संज्ञा दी जा रही है का पान करने को राहुल गांधी भी तैयार नहीं दिख रहे हैं।

कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी के करीबी सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी द्वारा भविष्य के सभी संभावित रोड़ मेप्स पर गहन अध्यययन किया जा रहा है। देश की वर्तमान हालत को देखकर राहुल ने कोई भी पद लेने से साफ इंकार कर दिया है। सूत्रों के अनुसार न तो राहुल कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष ही बनना चाह रहे हैं और ना ही वे प्रधानमंत्री बनने को आतुर हैं।

सूत्रों के अनुसार युवराज के अघोषित राजनैतिक गुरू राजा दिग्विजय सिंह के मशविरे पर राहुल गांधी द्वारा हर बार पूछने पर रटा रटाया जवाब कि वे देश के कोने कोने में जाकर कांग्रेस को मजबूत करने का प्रयास करना चाह रहे हैं दे देते हैं। सूत्रों का कहना है कि घपलों, घोटालों, भ्रष्टाचार से कांग्रेस की होती दुर्गत देखकर राहुल गांधी खुद भी भयाक्रांत हैं। इन परिस्थितियों में जवाबदारी लेने का साफ मतलब है कि विषपान करना।

इन दिनों राहुल गांधी अपनी छवि चमकाने का जतन कर रहे हैं। युवराज की छवि निखार के लिए एक दर्जन से अधिक पीआर कंपनियों को टटोला गया है। चर्चा है कि राहुल को कहा गया है कि वे हर सप्ताह या पखवाड़े में एसा कुछ अवश्य करें जिससे वे मीडिया की सुर्खियां बटोर सकें।