सोमवार, 12 दिसंबर 2011

तपस्वियों की जन्मभूमि है महाकौशल प्रांत


0 महाकौशल प्रांत का सपना . . . 8

तपस्वियों की जन्मभूमि है महाकौशल प्रांत

महर्षि, ओशो, शंकराचार्य जैसी विभूतियों को जन्मा है महाकौशल ने



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। भारत गणराज्य का हृदय प्रदेश मध्य प्रदेश वैसे तो कभी का आत्मनिर्भर हो चुका होता, किन्तु राजनैतिक इच्छा शक्ति के अभाव में आज भी यह हर मोर्चे पर जूझ ही रहा है। हृदय प्रदेश में महाकौशल प्रांत भी है जिसे प्रथक करने का आंदोलन अब जोर पकड़ने लगा है। महाकौशल प्रांत में न जाने कितने तपस्वी हुए हैं जिनके तप अनुभव आदि से देश विदेश में शांति और संपन्नता ने द्वार खटखटाए हैं।

महाकौशल प्रांत के गर्भ से अनेक एसी महान विभूतियों ने जन्म लिया है जिन्होंने देश विदेश में अध्यात्म, तप, त्याग और बलिदान का मार्ग दिखाते हुए लोगों में सकारात्मक उर्जा का संचार किया है। इन विभूतियों में सनातन पंथी हिन्दु धर्म के द्विपीठाधीश्वर जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी का नाम सबसे उपर आता है। शंकराचार्य ही महाराज पिछले चार दशकों से ज्यादा समय से देश को दिशा देने का काम कर रहे हैं। समय समय पर उनके बातए मार्ग पर चलकर लोक पुण्य अर्जित करते हैं।

माना जाता है कि परमपूज्य शंकराचार्य जी की पादुका पूजन मात्र से ही वेतरणी को पार किया जा सकता है। सिवनी जिले का यह सौभाग्य ही माना जाएगा कि जगतगुरू का अवतरण सिवनी जिला बना। जिस तरह भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का साक्षी मथुरा वृंदावन बना उसी तरह जगतगुरू की बाल क्रीड़ाओं का साक्षी सिवनी जिला बना। मानवता और धर्म का सार बताने वाले दिव्य महापुरूष के द्वारा निर्मित और पूजित पूजन स्थलों में आज भी धर्मध्वाजा शान से लहराती दिख जाती है।

देश विदेश में अपने बौद्धिक कौशल का लोहा मनवाकर विश्व को शांति के मार्ग पर चलने का पथ दिखाने वाले आध्यात्मिक गुरू महर्षि महेश योगी (महेश श्रीवास्तव) भी इसी महाकौशल की माटी में अवतरित हुए हैं। वे महाकौशल की प्रस्तावित राजधानी जबलपुर की विभूति हैं। महर्षि महेश योगी ने अपने आध्यात्मिक कौशल के बल पर न केवल भारत वरन समूचे विश्व में भारत का डंका बजाया है। आज उनके द्वारा स्थापित महार्षि विद्या मंदिर देश के कमोबेश हर जिले में विद्यार्थियों के विद्यार्जन का जरिया बने हुए हैं, जिनमें करोड़ों विद्यार्थी लाभान्वित हुए बिना नहीं हैं। प्रायमरी से लेकर स्नातकोत्तर तक हर स्तर का शिक्षण महर्षि के विद्यालयों में संभव है।

यह महज संयोग नहीं है कि इस तरह की महान विभूतियों का अवतरण महाकौशल प्रांत में हुआ, यह इस धरा का सौभाग्य ही माना जाएगा कि देश विदेश में प्रथक तरीके से आध्यात्म का पाठ पढ़ाने वाले चर्चित आचार्य रजनीश भी नरसिंहपुर जिले के गाडरवारा में ही अवतरित हुए। ओशो ने समूचे विश्व में अपनी आध्यात्मिक चेतना का लोहा मनवाया। महाराष्ट्र के पूना शहर को अपनी कर्मस्थली के तौर पर चुनकर उन्होंने देश में भी आध्यात्मिक चेतना का जो संचार किया वह अनवरत जारी है।

इसके साथ ही साथ दिल्ली को कर्मस्थली बनाने वाले स्वामी प्रज्ञानंद अपने आध्यात्मिक संदेशों से देश विदेश में कीर्ति फैला रहे हैं वे भी जबलपुर जिले से हैं। राजस्थान के जयपुर को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले स्वामी प्रज्ञनानंद जी भी सिवनी जिले के केवलारी तहसील के साठई गांव में अवतरित हुए हैं। जगतगुरू शंकराचार्य स्वरूपानंद जी महाराज से दीक्षित स्वामी प्रज्ञनानंद जी के शिष्य देश भर फैले हुए हैं। उनके मधुर कंठ से निकलने वाली भागवत कथा का आनंद लेते हुए श्रृद्धालु इतने भाव विभोर हो उठते हैं कि कथा के पंडाल में ही भक्तिमय नृत्य आरंभ हो जाता है।

इन समस्त विभूतियों के बारे में जिकर करने का ओचित्य महज इतना ही है कि महाकौशल की माटी को कर्मभूमि बनाने वाले जनसेवकों को इस माटी के महत्व के बारे में बताया जा सके। महाकौशल की माटी से चुनाव जीतकर राजनीतिक पायदान चढ़ने वाले नेताओं को यह बताया जा सके कि वे किस पावन धरा को अपनी कर्मभूमि बनाए हुए हैं। अब वक्त आ गया है जब इन जनसेवकों को अपनी माटी का कर्ज उतारकर प्रथक महाकौशल के आंदोलन में जान फूॅकना होगा।

(क्रमशः जारी)

लोकसभा में गूंजेगा झाबुआ पावर के पावर प्लांट का मामला!


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 29

लोकसभा में गूंजेगा झाबुआ पावर के पावर प्लांट का मामला!

दो विभागों के लिए एक दर्जन प्रश्नों की तैयारी


(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। गौतम थापर के स्वामित्व वाले आवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के छटवीं अनूसूची में अनुसूचित आदिवासी विकासखण्ड घंसौर में डलने वाले 1260 (कागजों पर 1200) मेगावाट के कोल आधारित पावर प्लांट का मामला लोकसभा में उठाया जा सकता है। उक्ताशय के संकेत सांसदों के निवास साउथ ब्लाक में निवासरत एक संसद सदस्य के करीबी सूत्रों ने दिए हैं।

सूत्रों ने आगे कहा कि मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल और मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले आवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा आदिवासियों के हितों पर कुठाराघात किए जाने का मामला एक कांग्रेसी संसद सदस्य ने उठाने का मन बना लिया है। इस हेतु वे आवश्यक प्रपत्र एकत्रित करने में जुट गए हैं। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि जिस स्थान पर यह संयंत्र संस्थापित होने वाला है वहां के कांग्रेस के सांसद बसोरी सिंह मसराम और पड़ोसी भाजपाई सांसद के.डी.देशमुख ने इस बारे में संसद में मौन साध रखा है।



लोकसभा परिसर में चहलकदमी कर रहे मध्य प्रदेश के एक संसद सदस्य ने मीडिया के एक वरिष्ठ सदस्य से इस बारे में चर्चा करते हुए कहा कि उन्हें विभिन्न माध्यमों से गौतम थापर द्वारा आदिवासियों के हितों के साथ खेलने की शिकायतें मिली हैं। उन्होंने कहा कि वे इस बारे में जानकारियां एकत्र कर रहे हैं और संसद में ध्यानाकर्षण में इस बात को उठाने का प्रयास करेंगे। इस बारे में उन्होंने आदिवासी विकास विभाग से संबंधित पांच तो वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से संबंधित आठ बिंदुओं पर तैयारी भी आरंभ कर दी है।

मीडिया के बीच चल रही चर्चाओं के अनुसार आदिवासियों के नाम पर सालों से राजनीति करने वाली कांग्रेस और भाजपा के क्षेत्रीय सांसदों द्वारा इस मसले को आखिर उठाया क्यों नहीं जा रहा है? गौरतलब है कि परिसीमन में समाप्त हुई सिवनी लोकसभा का आधा हिस्सा आरक्षित मण्डला और बाकी हिस्सा बालाघाट संसदीय क्षेत्र में मिला दिया गया है। गौतम थापर के स्वामित्व वाले आवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा 1200 मेगावाट का प्रस्तावित जो कागजों पर अब 1260 मेगावाट का हो चुका है, का कोल आधारित संयंत्र छटवीं अनुसूची में अधिसूचित आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील में डाला जा रहा है। यह सिवनी जिले का हिस्सा है और मण्डला संसदीय क्षेत्र में आता है। मण्डला से आदिवासी समुदाय के कांग्रेस के सांसद बसोरी सिंह मसराम और जिले के शेष भाग के सांसद भाजपा के के.डी.देशमुख हैं।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सिवनी जिले में परिसीमन के उपरांत बचे चार विधानसभा क्षेत्रों में एक में कांग्रेस और तीन पर भाजपा का कब्जा है। संयंत्र वाला हिस्सा लखनादौन विधानसभा का हिस्सा है यहां की भाजपा विधायक श्रीमति शशि ठाकुर खुद भी आदिवासी समुदाय से हैं। वहीं दूसरी ओर सिवनी से भाजपा की श्रीमति नीता पटेरिया, बरघाट से भाजपा के कमल मस्कोले तो केवलारी से कांग्रेस के हरवंश सिंह ठाकुर विधायक और विधानसभा उपाध्यक्ष हैं।

(क्रमशः जारी)

शर्मा, बनर्जी की नजदीकी खल रही है त्रिवेदी को


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 51

शर्मा, बनर्जी की नजदीकी खल रही है त्रिवेदी को

उद्योगपति मंत्री के कहने पर हुए रेल मंत्री शांत



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। त्रणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो श्रीमति ममता बनर्जी और केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री आनंद शर्मा की नजदीकी देखकर त्रणमूल के एक वरिष्ठ सांसद के पेट में मरोड़ उठना आरंभ हो गया है। अब आनंद शर्मा पर सीधा विदेश निवेश यानी एफडीआई के मामले में भरमाने के आरोप लगने लगे हैं। गुरूवार को संपन्न हुई मंत्रीमण्डल की बैठक में रेलमंत्री दिनेश त्रिवदी ने प्रधानमंत्री की उपस्थिति में न केवल का बहिष्कार किया वरन् एफडीआई पर अपनी पार्टी का पुराजोर विरोध भी दर्ज करवाया।

पीएमओ के सूत्रों ने बताया कि कैबनेट बैठक में उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने प्रधानमंत्री को बताया कि एफडीआई के मसले पर उन्होंने उड़ीसा के निजाम नवीन पटनायक और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से चर्चा कर उन्हें राजी कर लिया है। उन्होंने कहा कि बैठक के कुछ घंटे पूर्व ही प्रगति मैदान में उनकी और ममता बनर्जी की चर्चा के दौरान सुश्री बनर्जी ने इस मसले पर कांग्रेस को समर्थन का भरोसा जतलाया था।

सूत्रों ने कहा कि जैसे ही आनंद शर्मा ने यह बात कही वैसे ही रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी आपा खो बैठे और हत्थे से उखड़ते हुए कहने लगे कि आप एसा कैसे कह सकते हैं। वे इस कैबनेट में सुश्री ममता बनर्जी के निर्देश पर एफडीआई के विरोध के लिए विशेष तौर पर हाजिर हुए हैं। इतना ही नहीं उन्होंने अपनी फाईलें समेटी और बैठक छोड़कर बाहर आ गए। बाद में मूलतः उद्योगपति जनसेवक मंत्री कमल नाथ ने दिनेश त्रिवेदी को समझा बुझाकर वापस कैबनेट में लाया गया।

सूत्रों ने आगे कहा कि एफडीआई के मसले पर वैसे भी मंत्रीमण्डल दो भागों में बंटा नजर आ रहा था। एफडीआई के समर्थन में वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह, पलनिअप्पम चिदंबरम, प्रणव मुखर्जी, शरद पवार, कमल नाथ, सलमान खुर्शीद, कपिल सिब्बल, विलास राव देशमुख, आनंद शर्मा आदि थे तो इसका विरोध करने वालों में ए.के.अंटोनी, जयराम रमेश, दिनेश त्रिवेदी, के.वी.थामस जैसे चेहरे थे।

सूत्रों की मानें तो एफडीआई के मसले पर कांग्रेसनीत संप्रग सरकार की कैबनेट की बैठक बाद में उत्तर प्रदेश चुनाव पर केंद्रित दिखी जब जयराम रमेश ने यह कहा कि अगर एफडीआई लागू किया जाता है तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस चारों खाने चित्त गिर जाएगी। इसके बाद मामला एफडीआई से हटकर यूपी चुनाव पर आकर टिक गया। शरद पंवार तो यहां तक बोल गए कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का वजूद ही कहां रह गया है। एक मंत्री ने तो दबी जुबान से चुटकी लेते हुए यह तक कह डाला कि कांग्रेस (आनंद शर्मा), और त्रणमूल कांग्रेस (ममता बनर्जी) के बीच सहमति बनना दिनेश त्रिवेदी को खल रहा है।

(क्रमशः जारी)

सौ साल की हो गई बेदिल वालों की दिल्ली


सौ साल की हो गई बेदिल वालों की दिल्ली



(एडविन अमान)

नई दिल्ली। आज दिल्ली वासी यह बात कह सकते हैं कि दिल्ली दिल वालों की है या बेदिल वालों की यह बात खोजते खोजते उन्हें एक सदी बीत गई है। दिल्ली को राजधानी बने सौ साल हो गए। इन सौ सालों में यहां का इतिहास बदला, भूगोल बदला, संस्कृति बदली, लोग बदले, स्वाद बदला, समाज बदला, साधन बदले और अब भी बदलती जा रही है दिल्ली। दिल्ली की एक बात नहीं बदली और वह है दिल्ली की बदहाली। राजधानी बनने से आज तक दिल्ली बुरी तरह बदहाल नजर आती रही है।

जब जार्ज पंचम ने एक निहायत ही बेनाम सी जगह बुराड़ी में दरबार सजाकर कोलकाता की जगह दिल्ली को देश की राजधानी बनाने की घोषणा की थी तो उस समय यह शहर शाही अंदाज में डूबा था। तब यहां की आबादी पांच लाख से भी कम थी और आज सौ साल के बाद इस महानगर की आबादी एक करोड़ सढ़सठ लाख से ज्यादा है। यहां की जनसंख्या में हर साल पांच लाख का इजाफा हो रहा है।

वैसे तो दिल्ली राजधानी 1911 में ही बन गई थी लेकिन 1930 के बाद जब नए ढंग से सज-संवर कर तैयार हुई तो लाहौर, कलकत्ता और मुंबई की तरह इसने भी नई दुनिया में अपनी पहचान बनाई। सत्ता का गढ़ तो था ही, कारोबार के लिहाज से भी दिल्ली खास हो गई। इतनी खास कि हर कोई यहां आने को तैयार था। शहर में पश्चिमी जीवनशैली का रंग घुलने लगा। मनोरंजन के नए अड्डे बने। अंग्रेज अधिकारी और उनके कारिंदे अपने साथ अंग्रेजी खानों का जायका लेकर दिल्ली आए।

पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक के चटपटे और मीठे स्वाद से अलग कनॉट प्लेस के इलाके में वेंगर्स और गेलॉर्ड जैसे रेस्तरांओं ने यहां के स्वाद को भी बदला। 1947 में विभाजन के बाद हजारों की संख्या में यहां आए विस्थापितों के साथ एक बार दिल्ली पर पंजाबियत का रंग चढ़ा।

पुरानी दिल्ली के स्वाद की गलियों में? मालदार दिल्ली में नेताओं के बंगले में? संसद में बनते नियमों में? रोजगार की तलाश में यहां आए लोगों के सपनों में? डिस्को में बन चुके मनोरंजन के नए मुहावरों में? सरकारी दफ्तरों के बाबुओं के आश्वासनों में? बस के इंतजार में खड़े लोगों के गुस्से में? या फिर किसी के सपनों की कीमत लगते दलालों में? कभी दिल्ली सात शहर हुआ करती थी। अब इसके कई रंग हैं। हर रंग की अपनी अलग कहानी है। क्योंकि इस शहर ने 100 सालों में जो भोगा है और जो देखा है वह कम नहीं।

कमल नाथ याद रहे सोनिया को भूल गए कांग्रेसी


कमल नाथ याद रहे सोनिया को भूल गए कांग्रेसी

सोनिया के जन्मदिन पर पसरी रही खामोशी



(नंद किशोर)

भोपाल। मध्य प्रदेश में अनेक जिलों में कांग्रेस के नेताओं को अपनी राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी का जन्म दिन भी याद नहीं रहा। अपने अपने क्षेत्र के क्षत्रपों के जन्म दिवसों पर तो कांग्रेस के नेताओं द्वारा जिला कांग्रेस कमेटी अध्यक्षों की उपस्थिति में केक काटकर फटाके फोड़कर खुशियों का इजहार किया गया, किन्तु जब कांग्रेस की नेशनल प्रेजीडेंट श्रीमति सोनिया गांधी के जन्म दिन की बारी आई तो कांग्रेस की जिला ईकाई रजाई तानकर सोती ही रही।

मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि मध्य प्रदेश के डेढ़ दर्जन से ज्यादा जिलों में सोनिया गांधी के जन्म दिन को लेकर कोई उत्साह नहीं देखा गया। अपने अपने सूबाई क्षत्रपों के जन्म दिन के पहले रक्तदान, फलवितरण जैसे प्रोग्रामों की एडवांस में सूचना देने वाली विज्ञप्ति जारी करने वाले कांग्रेस के वीर सोनिया के जन्म दिन पर क्यों खामोश रहे इस बारे में कयास लगाए जा रहे हैं। जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के क्षत्रपों और कार्यकर्ताओं को लगने लगा है कि सोनिया अब बीमार हैं और वे ज्यादा दिन अध्यक्ष पद नहीं संभाल पाएंगी इसलिए अब उनके जन्म दिन पर खर्च करने का क्या ओचित्य!

वहीं दूसरी ओर अब कांग्रेस के नेताओं की आंखें इस बात पर टिक गईं हैं कि क्या प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कांति लाल भूरिया जिलों से सोनिया गांधी के जन्म दिन के प्रोग्राम का सचित्र विवरण और पेपर कटिंग बुलवाई जाएंगी? ताकि अपने नेशनल प्रेजीडेंट के जन्म दिन को भुलाने वाली जिला इकाईयों पर कोई कार्यवाही की जा सके। इस मामले को प्रदेश प्रभारी महासचिव बी.के.हरिप्रसाद के संज्ञान में भी लाया जा रहा है कि कमल नाथ के प्रभाव वाले एक जिले में भी सोनिया गांधी का जन्मदिन नहीं मनाया गया।

तकनीकि महाविद्यालयों में भी होंगे छात्रसंघ चुनाव


तकनीकि महाविद्यालयों में भी होंगे छात्रसंघ चुनाव



(अंशुल गुप्ता)

भोपाल। मध्य प्रदेश के तकनीकि शिक्षण संस्थानों में भी अब प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव संपन्न करवाए जाएंगे। निजी इंजीनियरिंग कालेज को इसकी जद में रखा गया है अथवा नहीं इस बारे में अभी कुहासा बरकरार ही है। इस आशय की घोषणा तकनीकी शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने राजधानी के एसवी पॉलीटेक्निक में आयोजित एल्युमिनी मीट में की।

प्रदेश के इतिहास में यह पहला मौका होगा जब इंजीनियरिंग कॉलेजों में भी छात्र संघ चुनाव होंगे। प्रदेश में 223 इंजीनियरिंग कॉलेज हैं जिनमें दस लाख से भी ज्यादा छात्र पढ़ते हैं। गौरतलब है कि उच्च शिक्षण संस्थानों में भी करीब दस साल बाद इसी साल से प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव होना शुरू हुए हैं।

महाविद्यालयों में प्रत्यक्ष चुनाव के दरम्यान होने वाली हिंसा और पैसे के दुरूपयोग को देखकर सरकार ने पूर्व में इस तरह के चुनावों को बंद करवाकर मेरिट के आधार पर चुनावों के द्वारा छात्रसंघ का गठन किया जाता था। इस की प्रक्रिया में होनहार छात्रों को आगे आने का मौका अवश्य ही मिलता था किन्तु छात्रसंघ की जवाबदारी उसकी पढ़ाई में आड़े आती थी।