गुरुवार, 1 जुलाई 2010

प्रधानमंत्री जी क्‍या आप भी गैस पीडितों को भूल गए

क्या आप भी ओबामा से डर गए मनमोहन जी!
भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री का नहीं खुल पाया अमेरिका के सामने मुंह!

सामरिक विषयों के साथ भोपाल गैस कांड पर चर्चा उचित नहीं समझी मनमोहन ने

आखिर क्यों डरते हैं भारत के नीति निर्धारक अमेरिका से

(लिमटी खरे)

दुनिया का चौधरी माना जाता है अमेरिका को। सारे विश्व के कायदे कानून से परे हटकर अनेकों बार मनमानी की है अमेरिका ने, पर समूची दुनिया उसके डंडे के डर के आगे नतमस्तक रही है। बीसवीं शताब्दी में अमेरिका को टक्कर देता रहा है सोवियत रूस, किन्तु कालांतर में सोवियत रूस भी आपसी लडाई में बुरी तरह टूट गया है। बीसवीं सदी के अंतिम दशकों में चीन एक महाशक्ति बनकर उभरा है। आज अमेरिका और चीन दोनों ही एक दूसरे के सामने हैं। अमेरिका को नंबर वन बरकरार रखने और चीन को पहली पायदान तक पहुंचने के लिए अगर किसी की दरकार है तो वह है भारत गणराज्य के सहयोग की।

छब्बीस साल पहले भारत गणराज्य के हृदय प्रदेश में हुई गैस त्रासदी दुनिया की भीषणतम औद्योगिक क्रांति थी। इसमें बीस हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे, और लाखों लोग आज भी इसका दंश भुगत रहे हैं। भारत गणराज्य की कांग्रेस और भाजपा की नपुंसक सरकारों द्वारा छब्बीस साल तक अपने ही वतन के लोगों को इस आग में जलने दिया। देश के गद्दारों ने इस भीषणतम त्रासदी के गुनाहगारों को देश से बाहर भिजवाने के मार्ग प्रशस्त किए। गुनाहगारों को देश से बाहर भेजा गया तो इस तरह मानों वे किसी दूसरे देश के राजनयिक हों या राष्ट्र के अतिथि! यह सब देख सुनकर घोर आश्चर्य होता है कि देश के गद्दारों को किस तरह कांग्रेस ने अपने दामन में आज भी स्थान दिया हुआ है।

अपने निहित स्वार्थों को परवान चढाकर मारे गए लोगों और पीडितों और उनके परिजनों को मुआवजा न दिलवाकर सत्ता के इन दलालों ने अपनी जेबें भर लीं। सालों साल अपने सीने में राज दफन करने वालों ने किस कदर 26 साल तक अपने सीने में यह बोझ दबाए रखा, फिर भी वे सीना तानकर चलते रहे। आज उन सारे के सारे जनसेवकों की नैतिकता एक बार अचानक जागी है, कोई किसी को दोषी बता रहा है, तो कोई राज की बातें अपनी आत्मकथा में लिखने की बात कहकर अपने आला नेताओं को भयाक्रांत करने का प्रयास कर रहा है। कुल मिलाकर देश के सियासी रंगमंच पर सारे किरदार स्वांग रचकर खडे हो गए हैं और एक बार फिर छब्बीस साल के अंतराल के उपरांत ये सभी भारत गणराज्य की जनता को मामा (बेवकूफ) बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

मध्य प्रदेश में शिवराज के नेतृत्व वाली प्रदेश सरकार इस प्रकरण को दोबारा नए सिरे से आरंभ करने की दलील दे रही है। भाजपा के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यह बात भूल जाते हैं कि उनको प्रदेश पर राज करते चार साल से अधिक का समय हो चुका है। इसके पहले वे सालों साल संसद सदस्य रहे हैं, तब उन्होंने भोपाल गैस पीडितों के हक के लिए क्या किया, इस बात को आवाम ए हिन्द जानना चाहता है। इसके साथ ही साथ उनके पहले भारतीय जनता पार्टी के सुंदर लाल पटवा, उमाश्री भारती और बाबू लाल गौर भी मध्य प्रदेश पर काबिज रह चुके हैं। शिवराज जी आपके साथ ही साथ भारती, गौर और पटवा की भूमिका पर भी आपको प्रकाश डालना होगा। विडम्बना यही है कि ये सब आपकी पार्टी के हैं या रहे हैं तो आपकी जुबान इस मामले में सिली ही रहेगी। भाजपा के तेवर भोपाल गैस मामले में जितने तीखे होना चाहिए था, उतने तीखे दिख नहीं रहे हैं। भाजपा भी बचाव की मुद्रा हमें ही ज्यादा दिखाई दे रही है।

उधर कांग्रेस इस मामले आक्रमक के बजाए रक्षात्मक मुद्रा में प्रतीत हो रही है। कांग्रेस के दामन पर इस मसले में छीटे ज्यादा उछलने की आशंका है। तत्कालीन प्रधानमंत्री और वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के पति स्व.राजीव गांधी पर भी इस मामले की कालिख उडकर जाती हुई प्रतीत हो रही है। मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कुंवर अर्जुन सिंह से पूछने का साहस कोई भी नेता नहीं जुटा पा रहा है कि आखिर कौन सी एसी विषम परिस्थितियां उपज गईं थीं कि उन्होंने इस कांड के प्रमुख दोषी और यूनियन कार्बाईड के तत्कालीन भारत प्रमख वारेन एण्डरसन को व्हीव्हीआईपी ट्रीटमेंट देकर, तत्कालीन जिला पुलिस अधीक्षक स्वराज पुरी और तत्कालीन जिला दण्डाधिकारी मोती सिंह की अभिरक्षा में भोपाल से भागने दिया।

कांग्रेस का डर स्वाभाविक है कि अगर इस मामले में सोनिया गांधी अपना मुंह खोलती हैं तो उनके पति की मिट््टी खराब करने में कुंवर अर्जुन सिंह को देर नहीं लगेगी, किन्तु इस मामले में भाजपा का स्टेंड समझ से परे है। भारतीय जनता पार्टी आखिर कुंवर अर्जुन सिंह से पूछने में हिचक क्यों रही है। क्या भाजपा के अंदर भोपाल गैस कांड से प्रभावितों के प्रति हमदर्दी समाप्त हो चुकी है? क्या भाजपा की संवदेनाएं मर चुकी हैं? अगर नहीं तो भाजपा दिल्ली में जाकर कुंवर अर्जुन सिंह के निवास के सामने धरना देने से कतरा क्यों रही है। केंद्र में तो कांग्रेस की सरकार है, यह मामला पालिटिकल माईलेज के लिए भाजपा को सूट हो सकता है, पर भाजपा फिर भी मौन ही साधे हुए है, जो वास्तव में आश्चर्यजनक ही लगता है। इतना ही नहीं भोपाल गैस पीडितों की सहायता के लिए आगे आए गैर सरकारी संगठन भी खबरों में बने रहने के लिए एकता का प्रदर्शन कर रहे हैं। क्या यह उनका दायित्व नहीं बनता है कि वे भी इस मामले में दिल्ली जाकर जंतर मंतर पर कुंवर अर्जुन सिंह और तत्कालीन केंद्र सरकार की भूमिका पर शोर शराबा करे?

छब्बीस साल बाद फैसला आने के बाद सबसे निरीह, दीन हीन हालत में कोई दिख रहा है तो वह है भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह, कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और कांग्रेस की ही नजरों में भविष्य के प्रधानमंत्री और युवराज राहुल गांधी। देश के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन ने तो भोपाल गैस कांड के बारे में अपना मुंह खोला है, पर राहुल और सोनिया ने अपने जबडों को भींचकर रखा है। केंद्र सरकार ने मंत्री समूह का गठन कर दिया है, पर आज भी गैस पीडितों के सीनों पर सांप ही लोट रहे हैं। केंद्र और राज्य सरकारें चाहे जितने आयोग का गठन कर प्रयोग कर ले पर हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि नतीजा सिफर ही होगा, क्योंकि जब तक किसी भी चीज को टाईम फ्रेम (समय सीमा) में न बांधा जाए तब तक कुछ भी हल नहीं निकाला जा सकता है।

भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह अमेरिका यात्रा पर गए। वे दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति अमेरिका के महामहिम राष्ट्रपति से मिले, सामरिक विषयों पर चर्चा भी हुई, पर ओबामा का मन मोहने वाले डॉ.मनमोहन सिंह यह भूल गए कि उन्हें ओबामा से बीस हजार लोगों के कातिल और लाखों को स्थाई तौर पर अपंग बनाने वाले यूनियन कार्बाईड और वारेन एंडरसन के बारे में भी चर्चा करना है। एंडरसन के प्रत्यापर्ण के बारे में अगर मनमोहन सिंह चर्चा करते तो कुछ न कुछ बात आगे बढती। वैसे भी भारत अमेरिका के बीच प्रत्यार्पण संधि लागू है, जिसके तहत एण्डरसन को भारत लाया जा सकता था।

एक बात आज तक किसी को समझ में नहीं आई है कि आखिर एसा क्या है कि भारत गणराज्य के नीति निर्धारक दुनिया के चौधरी अमेरिका से खौफजदा रहते हैं। बुश जब हिन्दुस्तान आते हैं तो हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि पर पुष्प अर्पित करने के पहले अमेरिकी श्वान बापू की समाधि का निरीक्षण करते हैं। कहा जाता है कि ब्रितानियों का सूरज कभी नहीं डूबता था, बावजूद इसके आधी धोती पहनकर बापू ने इन ब्रितानियों को भारत से खदेडा। आज समूचे विश्व में बापू को शांति और अहिंसा का दूत माना जाता है, फिर क्या अमेरिकी श्वान का उनकी समाधिस्थल पर जाना बापू के अपमान की श्रेणी में नहीं आता है। इतना ही नहीं जब बुश के साथ डॉ.मनमोहन सिंह फोटो खिचावाते हैं तो हमारे वजीरे आजम सावधान मुद्रा में तो बुश हंसते हुए मनमोहन के कांधे पर हाथ रखे होते हैं। फोटो देखकर लगता है मानो शेर के साथ किसी बिल्ली को खडा कर दिया गया हो, जो थर थर कांप रही हो।

इस बात का जवाब तो डॉ. मनमोहन सिंह से आवाम ए हिन्द चाहता है कि आखिर क्या वजह थी कि दुनिया के चौधरी अमेरिका के प्रथम नागरिक बराक ओबामा के सामने आपने भोपाल गैस कांड के मसले पर अपना मुंह क्यों नहीं खोला? भाजपा न पूछे न पूछे, भाजपा कांग्रेस के किस अहसान तले दबी है यह तो वह ही जाने, पर कांग्रेस के सच्चे सिपाहियों को चाहिए कि वे देश की खातिर अपनी राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी, अपने युवराज राहुल गांधी और प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिह से यह सवाल अवश्य करे कि आखिर कौन सी एसी वजह है कि सभी ने भोपाल गैस कांड के मामले में अपनी जुबानें बंद कर रखीं हैं।