बुधवार, 31 मार्च 2010

भाई बहन में झगडा कैसा!

भाई बहन में झगडा कैसा! 
कांग्रेसी ही बढा रहे गांधी बच्चन परिवार में दूरियां
अहम में से `अ` को अलग करें सोनिया
(लिमटी खरे)

पिछली शताब्दी में रूपहले पर्दे के महानायक रहे बच्चन  और राजनीति के सिरमौर रहे नेहरू गांधी परिवार के बीच खटास गहराती ही जा रही है। एक समय एक दूसरे के पूरक समझे जाने वाले दोनों ही परिवार इक्कसवीं सदी में एक दूसरे के खून के प्यासे ही दिख रहे हैं, भले ही अन्दर से दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति सम्मान और प्यार बना हो पर परिदृश्य में उकरे चित्रों को देखकर यह माना जा सकता है कि दोनों एक दूसरे को पसन्द तो कतई नहीं कर रहे हैं।
बच्चन परिवार की बहू और गुजरे जमाने की मशहूर अभिनेत्री जया बच्चन जब कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी को कोसती नज़र आतीं हैं, और मीडिया जब इस बात को तूल देता है तब अमिताभ आगे आकर दोनों ही परिवारों के पुराने संबन्द्धों के चलते इस विवाद का शमन करते नज़र आते हैं। अमिताभ अपनी अर्धांग्नी जया के बारे में यह कह देते हैं कि जया को नहीं पता कि बच्चन और गांधी परिवार की नजदीकियां कितनी हैं, जया नासमझ हैं।
बच्चन और गांधी परिवार की नजदीकियों को समझने के लिए कुछ पन्ने पलटाने ही पडेंगे। पूर्व प्रधानमन्त्री प्रियदर्शनी स्व.श्रीमति इन्दिरा गांधी के नौरत्नों में से एक रत्न हरिवंश राय बच्चन भी हुआ करते थे। इसके बाद अगली पीढी में अमिताभ बच्चन और स्व.राजीव गांधी गलबहियां कितनी सशक्त थीं यह बात सभी बेहतर तरीके से जानते हैं।
दोनों ही परिवार कितने करीब थे इसका प्रमाण इटली मूल की सोनिया एन्टोनिया माईनो (सोनिया गांधी का असली नाम) का राजीव गांधी की अर्धांग्नी बनने का किस्सा ही है। जब सोनिया और राजीव गांधी के विवाह की बारी आई तब राजीव गांधी बरात लेकर अमिताभ बच्चन के घर ही गए थे। सोनिया का कन्यादान भी तेजी बच्चन के हाथों हुआ था। तेजी बच्चन भले ही सोनिया के लिए देवकी (पाउलो अर्थात सोनिया की असली माता) न हों पर यशोदा की भूमिका में तो नज़र आईं। इस लिहाज से अमिताभ बच्चन और सोनिया गांधी भाई बहन ही हुए।
9 दिसम्बर 1946 को इटली के ओवासांजो में जन्मी स्टीफनो मानियो और पाउलो की पुत्री सोनिया को भारतीय संस्कारों के बारे में जो जानकारी मिली वह उनके विवाह के उपरान्त ही मिली। भारत में भगवान कृष्ण के लालन पालन और संस्कारित करने के लिए हर पल यशोदा का नाम ही सामने आता है। उन्हें जन्म देने वाली माता देवकी को लोग गाहे बेगाही ही याद करते होंगे। इसी तरह पाउलो के बजाए सोनिया के लिए तेजी बच्चन और उनके परिवार का सम्मान ज्यादा जरूरी होना चाहिए। अमिताभ उनके भाई हुए, राजनीति में भाई भाई का नहीं होता है, यह कहावत यहां चरितार्थ होती दिख ही रही है।
एक समय अपने बाल सखा और सोनिया के पति राजीव गांधी को स्पष्ट बहुमत दिलाने के लिए अमिताभ भी राजनीति के कीचड में उतरे थे। वे इलहाबाद से संसद सदस्य बने, पर जब उन्हें लगा कि इस तरह की राजनीति से उनकी एंग्री यंग मेन और सुपर स्टार वाली छवि मटियामेट हो सकती है, उन्होंने तत्काल इस तरह की राजनीति से तौबा कर ली। इसके बाद एबीसीएल नामक कंपनी के गर्त में जाने के बाद अमिताभ टूट से गए थे। इस समय उनके लिए तारणहार बनकर आए थे, अमर सिंह। कहते हैं कि अमर सिंह ने सुब्रत राय सहारा आदि के माध्यम से अमिताभ को आर्थिक इमदाद मुहैया करवाई थी, जिससे अमिताभ फिर से सामान्य हो सके। यही कारण है कि अमिताभ ने बरास्ता अमर सिंह, मुलायम और समाजवादी पार्टी के प्लेटफार्म पर अपनी रेल लगा दी थी।
राजनीति के शातिर किन्तु छिछोरे खिलाडी अमर सिंह ने अपनी दोधारी चालों से बच्चन और गांधी परिवार के बीच पक रही सुगंधित खीर में निब्बू निचोडना आरम्भ कर दिया। नीबू की बून्दो से खीर का दूध फट गया और कालान्तर में केसर और अन्य मावों की सुगंध धीरे धीरे दुर्गन्ध में तब्दील हो गई। हद तो तब हो गई जब देश की व्यवसायिक राजधानी मुम्बई में बान्द्रा सीलिंक के दूसरे चरण के उद्घाटन मेें सदी के महानायक की उपस्थिति को लेकर बवाल कटा।
कांग्रेस के सिपाहसलार इस मामले में अपना दामन पाक साफ बताने के लिए तरह तरह के जतन करने लगे। यहां तक कि मुख्यमन्त्री अशोक चव्हाण ने बयान दे दिया कि यदि उन्हें अमिताभ की मौजूदगी पूर्व जानकारी होती तो वे वहां नहीं जाते। कांग्रेस के आलाकमान को चाहिए कि चव्हाण के इस बयान पर ही उनसे त्यागपत्र मांग लें। मामला अमिताभ की मौजूदगी का नहीं मामला चव्हाण की बयानबाजी का है। क्या एक सूबे के निजाम को यह पता नहीं होता कि जिस प्रोग्राम में वह शिरकत करने जा रहा है वहां कौन कौन से अतिथि आमन्त्रित होंगे। अगर एसा है तो एसे मिट्टी के माधव के हाथों देश के इतने बडे सूबे की कमान किस योग्यता के आधार पर अब तक सौंपी हुई है।
अमिताभ की मौजूदगी को लेकर जिन कांग्रेसियों के पेट में मरोड हो रही है, वे सभी अब मुम्बई के प्रोग्राम के बजाए अमिताब के द्वारा गुजरात के ब्राण्ड एम्बेसेडर होने पर आपत्ति दर्ज करा रहे हैं। सदी का महानायक अगर किसी प्रोग्राम में शिरकत करने पहुंच भी गया तो क्या सूबेे निजाम अशोक चव्हाण में इतनी नैतिकता भी नहीं बची कि वह राष्ट्रनायक की मौजूदगी को तर्क या कुर्तक के जरिए सही साबित कर आलोचकों के मुंह पर अलीगढ के ताले जड दे।
यह भी तय है कि सोनिया एन्टोनिया माईनो एवं गांधी परिवार के अन्य सदस्यों को अमिताभ की वहां उपस्थिति से कोई अन्तर नहीं पडा होगा। सोनिया और राहुल गांधी के अब तक के कदमताल से साफ हो जाता है कि वे दोनों कभी भी अमिताभ बच्चन या उनके परिवार को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष तरीके से अपमानित करने का विचार भी मन में नहीं ला सकते हैं। फिर कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनू सिंघवी भी कह रहे हैं कि आलाकमान अर्थात कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी ने कभी भी अमिताभ बच्चन से दूरी बनाने के कोई निर्देश नहीं दिए हैं।
इसके बाद अर्थ अवर के दौरान दिल्ली में अमिताभ बच्चन के सुपुत्र अभिषेक बच्चन को ब्राण्ड एम्बेसेडर बनाया जाना भी चर्चाओं का हिस्सा बन गया। चव्हाण के राग मल्हार को आगे बढाते हुए दिल्ली की मुख्यमन्त्री शीला दीक्षित ने भी अपने हाथ झाडते हुए यह कह दिया कि उन्हें भी अभिषेक के एम्बेसेडर होने की जानकारी कतई नहीं है। सवाल यह उठता है कि कांग्रेस के दो मुख्यमन्त्री इस तरह के गैर जिम्मेदाराना बयान दे रहे हों और आलाकमान धृतराष्ट्र तो विपक्ष दल चीर हरण के दौरान गुरू द्रोणाचार्य की भूमिका में हों तब बेचारी द्रोपदी (देश की निरीह जनता) की लाज बचाने भगवान कन्हैया कहां से आ पाएंगे।
बहरहाल तेजी बच्चन की मानस बेटी बन चुकीं सोनिया गांधी 28 फरवरी 1968 को हरिवंश राय बच्चन के घर में ही राजीव गांधी की हुईं थीं। अमिताभ बच्चन उनके सगे भाई तो नहीं पर अग्रज से बढकर हैं। राजीव गांधी और अमिताभ के दोस्ती के किस्से मशहूर हैं। आज राजीव गांधी नहीं हैं, तो इन दोनों ही परिवारों के बीच घुलती खटास को समाप्त करने की जवाबदारी सोनिया की ही है। विडम्बना है कि सोनिया ने भारत की इस संस्कृति को समझ ही पाया है कि अहम में से अगर `अ` निकाल दिया जाए तो वह हम में तब्दील हो जाता है। हमारी निजी राय में सोनिया को आगे आना चाहिए और उनके भाई अमिताभ पर हो रहे इस तरह के हमलों को रोकने के लिए कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को निर्देश देना होगा। दलगत राजनीति अपनी जगह है, पर सत्ता पाने और खबरों में बने रहने के लिए पारिवारिक विघटन होगा और नैतिकता का क्षरण होने लगा तो आने वाले समय में भारत का राजनैतिक परिदृश्य सुनहरा के बजाए बदबू मारते कीचड से सना ही नज़र आएगा।

सिवनी जिला थर्ड ग्रेड के शहरों में शामिल!


सिवनी जिला थर्ड ग्रेड के शहरों में शामिल!

मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियां 1 अप्रेल से बन्द करेंगी ब्राडबेण्ड सुविधा

बीएसएनएल की चलेगी मोनोपल्ली

फोरलेन के चलते आईं हैं मोबाईल कंपनियां

(लिमटी खरे)

सिवनी 31 मार्च। आईडिया, रिलायंस, एयरटेल, टाटा आदि जैसी नामी गिरामी कंपनियों ने राजस्व के मामले में मध्य प्रदेश के सिवनी जिले को थर्ड ग्रेड (सी ग्रेड) के जिलों की सूची में सिवनी जिले को शामिल कर दिया है। 1 अप्रेल से सिवनी में मोबाईल के क्षेत्र में निजी सेवा प्रदाता कंपनियों ने इस जिले में ब्राड बेण्ड की सुविधा अवरूद्ध करने का निर्णय लिया है। एक अप्रेल के उपरान्त जिले में इंटरनेट की ब्राड बेण्ड सेवा सिर्फ और सिर्फ भारत संचार निगम लिमिटेड द्वारा ही निबाZध रूप से प्रदाय की जाएगी।

गौरतबल है कि 2003 के उपरान्त सिवनी जिले में बीएसएनएल के अलावा शेष मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों ने एकाएक निवेश करना आरम्भ कर दिया था। रिलायंस, टाटा, आईडिया, एयरटेल आदि मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों ने सिवनी जिले में आमद दी और उपभोक्ताओं को नेटवर्क देने की गरज से यहां अपने अपने मोबाईल टावर और रिटेल आउटलेट स्थापित करना आरम्भ किए। जिले में एकाएक लोगों का मोबाईल प्रेम जागा। आलम यह है कि अब कमोबेश हर हाथ में एक मोबाईल और आधे से ज्यादा लोगों के पास दो से अधिक मोबाईल दिख ही जाते हैं।

सिवनीवासी आश्चर्यचकित थे कि आखिर मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों को क्या सूझी कि वे बिना किसी सर्वे के ही सिवनी में आकर कूद गईं। रिलायंस कंपनी के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों को सिवनी से कोई विशेष लगाव या दिलचस्पी नहीं है, दरअसल सिवनी का यह सौभाग्य है कि यह स्विर्णम चतुभुZज के उत्तर दक्षिण गलियारे पर अवस्थित है। चूंकि कंपनियों को चतुभुZज और इसके अंगों पर निबाZध तौर पर मोबाईल सेवा उपलब्ध कराना है, इसीलिए सिवनी में नामी गिरामी मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों द्वारा अपना नेटवर्क उपलब्ध कराया गया है। एक पन्थ दो काज की दृष्टि से कंपनियों ने यहां इंटनेट सुविधा भी मुहैया करवाई थी। बाद में राजस्व के नज़रिए से उन्हें घाटा दिखाई पडने लगा।

प्राप्त जानकारी के अनुसार निजी क्षेत्र की सेवा प्रदाता कंपनियों को सिवनी जिले से वांछित राजस्व न मिल पाने से क्षुब्ध होकर इन कंपनियों ने सिवनी जिला वासियों को सबक सिखाने की सोची है। सम्भवत: यही कारण है कि इन सेवा प्रदाता कंपनियों द्वारा पूर्व में इंटरनेट सुविधा, फिर हाई स्पीड और अब ब्राडबेण्ड सुविधा प्रदान की गई है, जिसमें से ब्राड बेण्ड सुविधा को वापस लेने का निर्णय लिया गया है।

उधर दूसरी और जिलावासियों ने इन कंपनियों को हाथों हाथ इसलिए भी लिया था क्योंकि बीएसएनएल का नेटवर्क सदा ही माशाअल्लाह मिलता था। लोग तो यहां तक कहने लगे थे कि बीएसएनल का तातपर्य ``भीतर से नहीं लगता`` या ``भूले से नहीं लगता`` हो गया है। आज भी आलम यह है कि शहर के अन्दर ही अगर आमने सामने बैठकर एक दूसरे का बीएसएनएल का नंबर मिलाया जाए तो आउट ऑफ कवरेज एरिया का टेप सुनाई पड जाता है। जबलपुर रोड पर स्थित क्षेत्रीय परिवहन कार्यलय में तो इसका नेटवर्क भूले से नहीं मिल पाता है। अब इन कंपनियों के ब्राडबेण्ड के क्षेत्र में मैदान से हटने के उपरान्त अब बीएसएनएल के ब्राडबेण्ड के अकेले रह जाने से उसकी मोनोपल्ली बढने की संभावना बढ गई है। इन परिस्थितियों में उपभोक्ताओं को गुणवत्ता के साथ सेवाएं मिल पाएं इसमें शंका ही नज़र आ रही है।

सोमवार, 29 मार्च 2010

नप सकते हैं पीएम इन वेटिंग

ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)
नप सकते हैं पीएम इन वेटिंग

राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन के कतार में रहने वाले प्रधानमन्त्री (पीएम इन वेटिंग) एल.के.आडवाणी पर मुसीबतों का पहाड टूटता दिख रहा है, लगता है सयानी उमर में उनकी मट्टी खराब हो सकती है। अठ्ठारह साल पहले यूपी सूबे में घटी एक घटना आडवाणी के गले की फांस बनती दिख रही है। हाल ही में बाबरी विध्वंस काण्ड के नौवें गवाह के तौर पर पेश हुई 1990 बैच की भारतीय पुलिस सेवा की अधिकारी अंजु गुप्ता ने इस मामले में बयान देकर आडवाणी की पेशानी पर पसीने की बून्दे छलका दी हैं। गुप्ता ने साफ तोर पर इस बात को अपनी गवाही में उकेरा है कि बाबरी ढांचे को गिराने हेतु कार्यकर्ताओं को उकसाने के लिए आग में घी का काम किया था आडवाणी के जोशीले उद्बोधन ने। बाबरी विध्वंस के दौरान फैजाबाद में सहायक पुलिस अधीक्षक रहीं अंजू गुप्ता को आडवाणी की सुरक्षा की जवाबदारी दी गई थी, इस लिहाज से वे पूरे समय आडवाणी के साथ थीं। आडवाणी और अन्य नेताओं के बीच उस दौरान क्या क्या चर्चाएं हुईं, क्या रणनीति बनी वे बेहतर समझ सकतीं हैं। उन्होंने अपने बयान में जो बातें कहीं हैं, वे सम्भवत: बताने योग्य रही होंगी। आडवाणी का कद आज बहुत उंचा है, उन्हें सर उठाकर देखने से किसी की भी टोपी सर से गिर सकती है। इस मान से अंजू गुप्ता ने अनेक बातें छिपाकर भी रखीं होंगी। सवाल यह उठता है कि आखिर अंजू गुप्ता को यह दिव्य ज्ञान कहां से प्राप्त हो गया कि 18 साल बाद वे सच का सामना करने का साहस जुटा सकीं। तत्कालीन एएसपी फैजाबाद अंजू गुप्ता ने 1992 में ही अपनी ही पुलिस के रोजनामचे में इस बात को दर्ज क्यों नहीं कराया! इस मामले में अंजू गुप्ता पर भी अलग से प्रकरण पंजीबद्ध किया जाना चाहिए, कि लोकसेवक होते हुए भी उन्होंने सच्चाई को 18 साल तक छुपाकर रखा।
 
पत्थरों से तुले तोमर
अब तक नेताओं को लड्डू, पेडा, फलों से तुलने की बातें सुनी होंगी, पर किसी नेता को इनके साथ पत्थरों से तुलते देखा है। आपका उत्तर होगा, नहीं। जी हम बताते हैं मध्य प्रदेश में एक बडे नेता के पत्थरों से तुलने का वाक्या। दरअसल भारतीय जनता पार्टी की मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष रहे नरेन्द्र तोमर को टीम गडकरी में केन्द्रीय और महती जवाबदारी सौंपी गई है। जब नरेन्द्र तोमर भोपाल पहुंचे तो उनके समर्थकों के द्वारा उन्हें लड्डुओं से तोलने का प्रोग्राम तय किया। यह प्रोग्राम मन से किया गया था, या बेमन से इस बात का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तोमर के लड्डुओं से तुलने के बाद एक बुजुर्ग महिला के हाथ पत्थर ही लगे। हुआ यूं कि जब तोमर तुलने के उपरान्त वहां से हटे तो कार्यकर्ताओं ने लड्डू बांटना आरम्भ किया। इसी बीच एक बुजुर्ग महिला ने डलिया में रखे लड्डू उठा लिए, नाराज कार्यकर्ताओं ने उससे लड्डू छुआ लिए। तब उस बुजुर्ग महिला ने अपना हाथ तराजू में रखी बोरी में दे मारा। उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उसने बोरियों में पत्थर रखे पाए। उसने इसकी शिकायत वहां उपस्थित पदाधिकारियों से की। पदाधिकारी भी सन्न रह गए और उन्होंने दबी जुबान से इसकी जांच की बात भी कह दी। अब पता नहीं तोमर को पता चला कि नहीं कि वे लड्डू के बजाए पत्थरों से तुल गए हैं। पता चले भी तो क्या जब किराए के कार्यकर्ताओं से स्वागत कराया जाएगा तो एसा नहीं तो कैसा होगा।

मान गए फोर्टिस अस्पताल को
देश के फाईव स्टार संस्कृति वाले अस्पतालों के द्वारा सरकार के नियम कायदों का किस कदर सरेआम माखौल उडाया जा रहा है, इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण राजधानी दिल्ली के जाने माने फोर्टिस अस्पताल की दशा देखकर लगाया जा सकता है, यह दुस्साहस भी तब किया जा रहा है, जब दिल्ली उच्च ने 22 मार्च 2007 को 38 निजी अस्पतालों को अपनी क्षमता के 10 फीसदी बिस्तर गरीब मरीजों के लिए आरक्षित रखने के निर्देश दिए थे। पिछले पांच सालों में राजधानी के फोर्टिस अस्पताल ने महज पांच गरीब मरीजों की तीमारदारी की है। इस लिहाज से एक गरीब मरीज ही एक साल में यहां इलाज करा सका है। अगर यह स्थिति है तो देश के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मन्त्री गुलाम नबी आजाद को खुशफहमी पाल लेना चाहिए कि करोडों अरबों के टर्नओवर वाले अस्पताल में एक ही गरीब एक साल में आया, मतलब देश के गरीबों में बीमारी ने घर करना बन्द कर दिया है। यह बात हम नहीं दिल्ली सरकार की स्वास्थ्य मन्त्री किरण वालिया कह रहीं हैं। विधानसभा के पटल पर जानकारी देते हुए वालिया ने कहा कि 16 मई 2008 को स्वास्थ्य विभाग के तहत फोर्टिस अस्पताल का पंजीयन कराया गया है। इतना ही नहीं जिस स्थान पर यह अस्पताल संचालित हो रहा है, वह जमीन राजन ढल चैरिटेबल ट्रस्ट को आवंटित है। यह अस्पताल कौन संचालित कर रहा है इस बारे में वालिया मौन हैं, पर हकीकत यह है कि उक्त ट्रस्ट के बजाए और कोई इस अस्पताल को संचालित कर मलाई काट रहा है। है न आश्चर्य की बात, यह सब कुछ विश्व में सबसे बडे प्रजातन्त्र हिन्दुस्तान में ही सम्भव है।
ढाई करोड हवा में उडा दिए शिवराज ने
केन्द्र सरकार के साथ ही साथ देश के सूबों की सरकारों ने विश्व व्यापी आर्थिक मन्दी के चलते मितव्ययता बरतने की अपील की और उसे अंगीकार भी किया। देश के हृदय प्रदेश कहे जाने वाले मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान ने मितव्ययता की एक अजब नजीर पेश की है। मितव्ययता का स्वांग रचने के लिए शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल में श्यामला स्थित मुख्यमन्त्री आवास से मन्त्रालय तक सायकल पर चलकर मीडिया की खूब सुर्खियां बटोरीं, पर असलियत कुछ और बयां कर रही है। 2006 से 2008 तक मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान ने सरकारी हवाई जहाज और हेलीकाप्टर के होते हुए भी अपने जानने वालों को उपकृत करने की गरज से पांच निजी एवीएशन कंपनियों को दो करोड 63 लाख रूपए का भुगतान किया है। नई दिल्ली की सारथी एयरवेज, एवीएशन सर्विस इण्डिया, रान एयर सर्विस, सर एवीएशन सर्विस इण्डिया, एस.आर.सी. एवीएशन और इन्दौर फ्लाईंग क्लब को इस राशि का भुगतान किया गया है। सवाल यह उठता है कि जब राज्य सरकार के पास अपना उडन खटोला है तब किराए से उडन खटोला लेने का क्या औचित्य है। इसके पहले दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में भी उन्होंने भी अपने जानने वालों की एवीएशन कंपनियों को बहुत लाभ पहुंचाया था, पर आवाज कौन उठाए, पैसा जनता के गाढे पसीने की कमाई पर डाका डालकर जो निकाला जा रहा है।
का वषाZ जब कृषि सुखानी
बहुत पुरानी कहावत है कि जब खेती ही सूख जाए तब बारिश का क्या फायदा! यही बात देश में स्वाईन फ्लू की वेक्सीन के बारे में लागू हो रही है। हम भारतवासी अपनी पीठ थपथपा सकते हैं कि अब स्वाईन फ्लू की वेक्सीन इजाद कर ली गई है। वहीं दूसरी ओर अब देश के आला अफसरान यह कहते घूम रहे हैं कि अब इसकी जरूरत नहीं है। इसका टीका अब लगाने से कोई फायदा नहीं है, क्योंकि पिछले दो सालों में देश में कहर बरपाने वाले एच1 एन1 वायरस का असर अब काफी हद तक कम हो चुका है। ठण्ड में यह बीमारी चरम पर होती है, किन्तु अब देश में इससे पीडितों के मामलों में तेजी से कमी होने के बाद इस टीके का ओचित्य ही नहीं रह गया है। वैसे भी मेक्सीको के रास्ते भारत में आई इस बीमारी को लेकर भारत सरकार कितनी चौकन्नी थी कि देश के हवाई अड्डों पर चौकस व्यवस्था के बाद भी देश में इस वायरस ने अपना कहर बरपा ही दिया। एक बार अगर यह बीमारी देश में प्रवेश कर गई तो फिर हवाई अड्डों पर मुस्तैदी किस काम की रही। जो वायरस देश की फिजां में रच बस गया, उसके बाद कितने भी मरीज देश में प्रवेश कर जाएं तो क्या असर पडता है। कहते हैं न कि ``बुिढया के मरने का गम नहीं, गम तो इस बात का है कि मौत ने घर देख लिया।``
माता रानी के दर्शन हुए और आसान
उत्तर भारत में त्रिकुटा की पहाडियों पर विराजीं माता वैष्णों देवी के दर्शन अब और आसान हो गए हैं। कुछ सालों पहले तक अपार कष्ट झेलकर माता रानी के दर्शन को लाखों श्रृद्धालु जाया करते थे, आज उनकी तादाद करोडों में पहुंच गई है। पहले बेहद संकरी गुफा में से होकर माता के भक्त पिण्डियों के दर्शन कर पाते थे। सुप्रसिद्ध भजन गायक गुलशन कुमार के गीतों और सस्ते कैसेट के बाद अचानक ही माता रानी के भक्तों की संख्या में विस्फोटक बढोत्तरी दर्ज की गई थी। इसके बाद माता रानी के दर्शनों हेतु भक्तों को सुविधाएं उपलब्ध कराने और व्यवस्था बनाने के लिए माता रानी श्राईन बोर्ड का गठन किया गया था। वर्तमान में माता रानी के दर्शन हेतु दो क्रत्रिम गुफाएं हैं। इस साल श्राईन बोर्ड ने यहां तीसरी गुफा का निर्माण भी करा दिया है। अभी माता रानी की तीन पिडिंयो के दर्शन हेतु महज एक से डेढ सेकण्ड का समय ही मिल पाता है, जो अब बढने की उम्मीद है। नई गुफा 10 फुट उंची और 15 फुट चौडी एवं 48 मीटर लंबी बनाई गई है। गत दिवस जम्मू काश्मीर के महामहिम राज्यपाल एन.एन.वोहरा ने इस गुफा के माध्यम से माता रानी के दर्शन भी कर लिए हैं। माना जा रहा है कि भक्तों की बढती तादाद को देखकर इसे जल्द ही खोला जा सकता है।
महिलाओं के मामले में पिछडा है राजस्थान
सरकारी सेवा में महिलाओं को स्थान देने के मामले में देश का राजस्थान सूबा काफी हद तक पीछे है। आजादी के छ: दशकों के बाद राजस्थान उच्च न्यायालय महज चार महिला न्यायधीश ही दे पाया है। 1949 में सूबे में उच्च न्यायालय की स्थापना के 29 साल के बाद कान्ता कुमार भटनागर 26 सितम्बर 1978 से 14 जून 1992 तक यहां रहने के उपरान्त चेन्नई हाईकोर्ट की मुख्य न्यायधीश बनीं, मोहिनी कपूर 13 जुलाई 1985 से 17 नवंबर 1995, ज्ञानसुधा मिश्रा 21 अप्रेल 1994 से 12 जुलाई 2008 के उपरान्त 13 जुलाई को झारखण्ड हाई कोर्ट की सीजे तो मीना वी. गोम्बर सितम्बर 2009 से यहां पदस्थ हैं। इसके अलावा राज्य काडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा के 187 स्वीकृत पदों में से 28 तो 159 भारतीय पुलिस सेवा के पदों में से 12, राज्य प्रशासनिक सेवा आरजेएस में 87 मेें से 26 पदों पर ही महिलाएं काबिज हैं। उच्च न्यायालय में वर्तमान में 40 में से 27 जज कार्यरत हैं जिनमें से एक ही महिला है। उच्च न्यायिक सेवा में 142 में से 16 महिला जज तो न्यायिक सेवा में 697 में से 98 ही महिला जज हैं। न्यायिक सेवा के 839 पदों में से महज 114 पदों पर ही महिलाओं का कब्जा बरकरार है।
नियम तो बना, पालन कौन करे
मानव के लिए मोबाईल टावर से निकलने वाली किरणें बहुत हानीकारक हैं। इसके लिए नियम कायदे बन चुके हैं, पर सवाल यह उठता है कि इसका पालन कौन करे। जिस तरह सिगरेट की डब्बी पर स्टार लगाकर लिखी हुई चेतावनी को धूम्रपान करने वाला धुंआ छोडते हुए ही पढता है, उसी तरह नियमों का पालन करवाने वाले अपनी जवाबदेही निभा रहे हैं। दिल्ली में 1532 मोबाईल टावर को नगर निगम दिल्ली द्वारा बनाए गए मानकों का पालन न करने पर नोटिस जारी हो चुका है, पर अब तक सील होने की बात कहें तो महज एक मोबाईल टावर को ही सील किया गया है। दिल्ली में ही 5364 मोबाईल टावर लगे हैं, जिनमें से 2412 टावर वैध पाए गए हैं, 2952 टावर अर्वध हैं। वैसे तो 227 मोबाईल टावर सील हो चुके हैं, पर 1532 को नोटिस देने के बाद एक ही सील हो पाया है। असलियत यह है कि मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों को होने वाली अनापशनाप कमाई के चलते सेवा प्रदाता कंपनियां अधिकारियों के समक्ष नोटों की थैलियों के मुंह खोल दिया जाता है, फिर क्या है नियम बनते हैं बनते रहें। कहा है न कि जब सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का।
सपनि बन्द, पूर्व विधायक हलाकान
मध्य प्रदेश के राजनेताओं द्वारा घुन की तरह मध्य प्रदेश सडक परिवहन निगम को खा लिया गया। घाटे में जाने वाले इस निगम को बन्द कर दिया गया है। इसके स्थान पर अब अनुबंधित यात्री बसों के नाम पर अवैध बसों का इतना जबर्दस्त रेकट पनप चुका है जिसे तोड पाना किसी के बस की बात नहीं प्रतीत होती है। यात्री बसों के बन्द होने से सूबे के पूर्व विधायक और अधिमान्य पत्रकार हलाकान ही नज़र आ रहे हैं। दरअसल अधिमान्य पत्रकारों और पूर्व विधायकों को सपनि में निशुल्क यात्रा की सुविधा प्रदान की गई थी। अब अनुबंधित यात्री बस में उन्हें बहुत ही परेशानी का सामना करना पडता है। पडोसी सूबे महाराष्ट्र में यह सुविधा बाकायदा जारी है। अब पूर्व विधायक इस सेवा के लिए लामबन्द होते दिख रहे हैं। पूर्व विधायकों का कहना है कि उन्हें यात्रा भत्ता अलग से दिया जाए ताकि वे अपने क्षेत्र सहित अन्य जिलों में भी जनसंपर्क को जीवित रख सकें। मामला सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान तक पहुंच गया है, पर इस मामले में वे अभी शान्त ही दिख रहे हैं। पत्रकारों को अलबत्ता पेंशन और स्वास्थ्य बीमा का झुनझुना पकडा दिया गया है।
सरदर्द बनीं अवैध सिम
मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों के बीच मची गलाकाट स्पर्धा के चलते अधिक से अधिक उपभोक्ता बनाने की अघोषित जंग छिड गई है। इस कस्टमर वार में सरकारी नियम कायदों को साफ साफ धता बताया जा रहा है। देश के कमोबेश हर जिले के एक एक कस्बे में सेवा प्रदाता कंपनियों के वैध और अवैध डीलर को मिलने वाला टारगेट पूरा करने के लिए अनैतिक तरीकों का प्रयोग हो रहा है। बताते हैं कि बिना पहचान पत्र के ही सिम चालू कर बेच दी जाती हैं। ये सिम एकाध सप्ताह तक तो काम करती हैं, फिर पहचान के अभाव में इन्हें बन्द कर दिया जाता है, इस तरह कंपनी के उपभोक्ताओं की संख्या में दिन दूगनी रात चौगनी बढोत्तरी दर्ज हो रही है। इस काम में कंपनी की शान में तो चार चान्द लग जाते हैं पर वैध सिम लेकर सालों से उपभोग करने वाले उपभोक्ताओं को इसका खामियाजा भुगतना पड रहा है। आम शिकायत है कि अपरिचित नंबर से अश्लील एसएमएस और फोन काल पर अश्लील वार्तालाप के साथ ही साथ मिस्ड काल मारकर लोग परेशान किया करते हैं। अब देखना यह है कि ट्राई इस मामले में क्या कदम उठाती है।
हो गया हिसाब किताब बराबर
24 जनवरी को भारत सरकार के एक विज्ञापन में पाकिस्तान के पूर्व वायू सेना प्रमुख तनवीर महमूद अहमद की फोटो प्रकाशित होने पर जबर्दस्त बवाल कटा था। अब पाकिस्तान के एक सरकारी विज्ञापन में भारत की पंजाब पुलिस के लोगो के प्रकाशन का मामला सामने आया है। हिन्दुस्तान की पंजाब पुलिस के लोगो के साथ उर्दू में जारी इस विज्ञापन में आतंकवादी और अन्य वारदातों को रोकने में पुलिस की मदद की गुहार लगाई गई है। भारत और पाकिस्तान दोनों ही के लोगो में अंग्रेजी वर्णमाला के पी अक्षर से पीपी लिखा है। दोनो ही के लोगो में उपर के स्थान को छोडकर शेष स्थान को पुष्प चक्र से घेरा गया है। भारत की पंजाब पुलिस में उपर अशोक चक्र तो पकिस्तान की पंजाब पुलिस के लोगो में सितारा बना हुआ है। दोनों ही लोगो के रंग और डिजाईन लगभग एक से हैं, अन्तर सिर्फ राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह का ही है। लोग तो यह कहते भी पाए जा रहे हैं कि चलो हमने आपकी छापी आपने हमारी, हो गया हिसाब किताब बराबर।
पुच्छल तारा
आज की भागदौड भरी जिन्दगी के बीच अगर बचपन को याद किया जाए तो कुछ सुखद यादें ताजा हो ही जाती हैं। समय किस कदर बदल चुका है, लोगों के बीच पहले खतो खिताब का सिलसिला चलता था। पत्र पाने के लिए प्रेयसी भी घंटों डाकिए की राह तकती थी। पत्र आते थे और अपने साथ आनन्द लाते थे। मध्य प्रदेश से अभिषेक दुबे ने इसी बात को रेखांकित करते हुए एक मेल भेजा है। याद करिए उस समय को जब हम अक्सर कहा करते थे कि चलो मिलते हैं और कुछ करने की योजना बनाते हैं। अब समय बदल गया है अब हम कहते हैं कि चलो प्लान करते हैं और फिर किसी दिन मिलते हैं। मित्र वही हैं, हम वही हैं, कुछ नहीं बदला है, बदला है तो बस हमारी प्राथमिकताएं।

रविवार, 28 मार्च 2010

कैसे लगी सेफ्टी वेन में आग

कैसे लगी सेफ्टी वेन में आग
भूतल परिवहन मन्त्रालय के ठेकेदार का एक और कारनामा
फोरलेन निर्माण कंपनी `सद्भाव` का वाहन जलकर खाक
नहीं ली थी थिनर के परिवहन की अनुमति!
(लिमटी खरे)

सिवनी 28 मार्च। पाश्र्च में ढकेल दिए गए और कभी भाजपा के चेहरे रहे अटल बिहारी बाजपेयी सरकार की महात्वाकांक्षी स्विर्णम चतुZभुज परियोजना के अंग और वर्तमान में विवादस्पद हुए उत्तर दक्षिण गलियारे का निर्माण करा रही गुजरात मूल की कंपनी सद्भाव की सेफ्टी वेन 27 मार्च को अपरान्ह उसके बेस केम्प बटवानी में धू धू कर जल उठी। इस वेन में लगभग बीस बैरल थिनर रखा हुआ था।
गौरतलब है कि गुजरात मूल की सद्भाव कंपनी द्वारा उत्तर दक्षिण फोर लेन गलियारे के सिवनी से लेकर खवासा तक के मार्ग का निर्माण कराया जा रहा है। यहां उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि सिवनी जिले की पश्चिमी सीमा से लगे छिन्दवाडा जिले का प्रतिनिधित्व केन्द्रीय भूतल परिवहन मन्त्री कमल नाथ द्वारा किया जाता है। सिवनी जिले सहित महाकौशल को कमल नाथ की कर्मभूमि ही माना जाता है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार शनिवार 27 मार्च को सद्भाव कंपनी का 20 बेरल थिनर गुजरात के सूरत से ट्रांसपोर्ट के माध्यम से सिवनी पहुंचा था। इस थिनर को जिला मुख्यालय सिवनी से दक्षिण दिशा में लगभग 10 किलोमीटर दूर कंपनी के बेस केम्प बटवानी तक पहुंचाने के लिए इस सेफ्टी वेन का उपयोग किया गया था। अपरान्ह जैसे ही सेफ्टी वेन थिनर के कंटेनर लेकर बेस केम्प पहुंची अचानक ही उसमें आग लग गई और वह धू धू कर जल उठी। चन्द मिनिटों में ही सेफ्टी वेन जलकर खाक हो गई।
यह तो अच्छा हुआ कि यह हादसा शहर के अन्दर नहीं हुआ अन्यथा किसी बडी घटना के घटने से इंकार नहीं किया जा सकता था। इस सेफ्टी वेन में आग कैसे लगी इसके कारणों का अभी पता नहीं चल सका है। चूंकि वाहन में चालक या अन्य कोई कर्मचारी उस वक्त नहीं था, इसलिए आग के लगने का कारण स्पष्ट नहीं हो सका है। कंपनी के सूत्र इस हादसे का कारण वेन में शार्ट सिर्कट होना बता रहे हैं। कंपनी ने बदनामी से बचने के लिए आनन फानन मामले को रफा दफा कर दिया है।
सवाल यह उठता है कि कंपनी द्वारा अगर इतनी अधिक मात्रा में थिनर जैसे ज्वलनशील पदार्थ का परिवहन किया जा रहा था तो उसे बाकायदा सम्बंधित विभाग से ज्वलनशील पदार्थ के परिवहन की अनुज्ञा लेना चाहिए थी। बताते हैं कि कंपनी ने एसा कोई भी लाईसेंस नहीं लिया गया था। वैसे भी जिले में फोरलेन के निर्माण में लगी सद्भाव और मीनाक्षी कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा की जा रही अनियमितताओं के बारे में बार बार चेतान के बाद भी शासन प्रसासन के कानों में जूं न रेंगना, किसी अन्य निहित स्वार्थ की ओर इशारा करने के लिए काफी कहा जा सकता है।

इसका भोगमान कौन भुगतेगा मोहतरमा


इसका भोगमान कौन भुगतेगा मोहतरमा

हिमाचल की लाट साहेब ने आमन्त्रित किया अपने गृह जिले की जनता को

सर्वदलीय प्रोग्राम में दिखी कांग्रेसी छटा

सम्मान समारोह के बहाने सधे विधानसभा उपाध्यक्ष पर निशाने

(लिमटी खरे)

सिवनी 28 मार्च। मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले सिवनी की बेटी एवं सूबे की पूर्व मन्त्री और प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष श्रीमति उर्मिला सिंह को हिमाचल प्रदेश का महामहिम राज्यपाल बनाने पर जिले की जनता फूली नहीं समा रही है। श्रीमति सिंह के राज्यपाल बनने के बाद पहली बार जिले में आगमन पर जिले के कांग्रेसी बहुत ही उत्साहित नज़र आए। इस अवसर पर कांग्रेस के बेनर तले उनका सर्वदलीय सम्मान समारोह भी आयोजित किया गया। इस सम्मान समारोह में कांग्रेस की छटा साफ तौर पर परिलक्षित हुई। सम्मान समारोह में वक्ताओं द्वारा उर्मिला सिंह की तारीफ में कशीदे गढने के साथ ही साथ विधानसभा उपाध्यक्ष पर निशाने साधे गए।
सम्मान समारोह में श्रीमति उर्मिला सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि सौभाग्य से उन्हें एसे प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया है, जो देवताओं की तपोभूमि के तौर पर जाना जाता है। उन्होंने सिवनी जिले के निवासियों को परिवार के साथ अलग अलग समय पर हिमाचल प्रदेश आने और आनन्द उठाने की बात कही गई। वहां उपस्थित लोग इस तरह की चर्चा में मशगूल दिखे कि हम आ तो जाएं, पर वहां होने वाले खर्च का भोगमान कौन भोगेगा!
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में लाट साहेब रहे महामहिम राज्यपाल बलराम जाखड के कार्यकाल में करोडों रूपए की राशि अतिथि सत्कार में फूंक दी गई है। सूचना के अधिकार में जब इस बात को निकलवाया गया तब पता चला कि न जाने कितने लोग राजभवन के अतिथि बनकर ``एश`` करके चले गए। यक्ष प्रश्न तो यह है कि यह राशि आखिर आई कहां से। उत्तर कमोबेश साफ ही है कि यह राशि जनता के गाढे पसीने की कमाई से ही निकलकर आई थी। जनता के पैसे पर एश करने कराने के इस सिलसिले में मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार भी मौन साधे हुए है, जो अश्चर्य का ही विषय कहा जाएगा।
कहने को तो यह प्रोग्राम सर्वदलीय था। मंच पर कांग्रेसी नेता बहुतायत में दिखे। साथ ही भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष सुदर्शन बाझल, भाजपा के पूर्व मन्त्री डॉ.ढाल सिंह बिसेन और भाजपा के ही पूर्व विधायक नरेश दिवाकर के अलावा और किसी भी दल का कोई नुमाईन्दा मंचासीन नही ंहो सका। साथ ही पूरे पण्डाल में लगे फ्लेक्स में कांग्रेस के नेता ही उर्मिला सिंह को बधाई देते दिखे।
समूचे घटनाक्रम को देखने से एक बात साफ तौर पर समझ में आ रही थी कि यह सम्मान समारोह हिमाचल की राज्यपाल श्रीमति उर्मिला सिंह के सम्मान में कम, वरन् सिवनी जिले के एक और सपूत और सूबे के विधानसभा उपाध्यक्ष ठाकुर हरवंश सिंह पर निशाना साधने का अधिक लग रहा था। उर्मिला सिंह सहित समस्त वक्ताओं ने परोक्ष तौर पर हरवंश सिंह को निशाना बनाते हुए ही अपनी बात रखी, जिसकी चर्चा समारोह में मुक्त कंठ से होती रही।
गौरतलब है कि पूर्व केन्द्रीय मन्त्री सुश्री विमला वर्मा के कार्यकाल तक सिवनी जिला कांग्रेस का अभैद्य गढ माना जाता रहा है। उनके सक्रिय राजनीति से विदा लेते ही राजनैतिक नेतृत्व की कमान ठाकुर हरवंश सिंह के हाथों में आ गई। उस दौरान जिले में पांच विधानसभा सीटें हुआ करतीं थीं। जिनमें से परिसीमन के उपरान्त विलोपित हुई आदिवासी बहुल्य घंसौर का प्रतिनिधित्व श्रीमति उर्मिला सिंह के द्वारा ही किया जाता था। कालान्तर में जिले की केवलारी विधानसभा जिसका प्रतिनिधित्व ठाकुर हरवंश सिंह द्वारा किया जाता है को छोडकर शेष भाजपा के अभैद्य दुर्ग में तब्दील हो गई है, जो निश्चित तौर पर शोध का विषय ही कहा जाएगा।
चर्चा तो यहां तक भी है कि घंसौर जिले के ग्राम बिनैकी में लगने वाले मशहूर थापर ग्रुप ऑफ कम्पनीज के प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा लगाए जाने वाले पावर प्लांट के मार्ग में कोई बाधा न आए इस हेतु कम्पनी द्वारा उर्मिला सिंह से कनेक्शन जोडने के लिए जतन किए जा रहे हैं, और सिवनी जिले से हिमाचल दर्शन को पहुंचने वाले पर्यटकों के उपर होने वाले खर्च का भोगमान या तो हिमाचल का राजभवन भोगेगा या फिर पावर प्लांट की स्थापना करने वाली कंपनी।

शुक्रवार, 26 मार्च 2010

साध्वी एक कदम आगे दो कदम पीछे!

साध्वी एक कदम आगे दो कदम पीछे!

अवकाश पर है जनशक्ति पार्टी

आखिर चित्त स्थिर क्यों नहीं रख पातीं उमाश्री

(लिमटी खरे)

भारतीय जनशक्ति पार्टी की सुप्रीमो उमाश्री भारती ने अपने ही दल से त्याग पत्र दे दिया है, यह खबर चौंकाने वाली ही मानी जाएगी। मीडिया ने उमाश्री के इस कदम को जोर शोर से उछाला है। वास्तव में हुआ क्या है! अरे उमाश्री ने तीन माह का अवकाश मांगा है, और कुछ नहीं। हर एक मनुष्य को काम करने के बाद अवकाश की आवश्यक्ता होती है। सरकारी सेवकों को भी तेरह दिन के सामान्य अवकाश के साथ अर्जित और मेडीकल लीव का प्रावधान है, तब उमाश्री ने अगर तीन माह का अवकाश मांग लिया तो हंगामा क्यों बरपा है। कुछ दिनों पहले कांग्रेस द्वारा अपनी उपेक्षा की पीडा का दंश झेल रहे कांग्रेस की राजनीति के हाशिए में ढकेल दिए गए चाणक्य कुंवर अर्जन सिंह ने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में कहा था कि वे जीवन भार राजनीति करते रहे और अब उमर के इस पडाव में अपने द्वारा अर्जित अवकाश का उपभोग कर रहे हैं, तब तो हंगामा नहीं हुआ था।

उमाश्री भारती ने भारतीय जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दिया है। उन्होंने भाजश छोडी है, अथवा नहीं यह बात अभी साफ नहीं हो सकी है। गौरतलब होगा कि 2005 में भाजपा से बाहर धकिया दिए जाने के बाद अपने ही साथियों की हरकतों से क्षुब्ध होकर उमाश्री भारती ने भारतीय जनशक्ति पार्टी का गठन किया था। उमाश्री ने उस वक्त भाजपा के शीर्ष नेता एल.के.आडवाणी को आडे हाथों लिया था। कोसने में माहिर उमाश्री ने भाजपा का चेहरा समझे जाने वाले अटल बिहारी बाजपेयी को भी नही ंबख्शा था। उमाश्री के इस कदम से भाजपा में खलबली मच गई थी। चूंकि उस वक्त तक उमाश्री भारती को जनाधार वाला नेता (मास लीडर) माना जाता था, अत: भाजपाईयों के मन में खौफ होना स्वाभाविक ही था।

उमाश्री को करीब से जानने वाले भाजपा नेताओं ने इस बात की परवाह कतई नहीं की। उमाश्री ने 2003 में मध्य प्रदेश विधान सभा के चुनावी महासमर का आगाज मध्य प्रदेश के छिन्दवाडा जिले में अवस्थित हनुमान जी के सिद्ध स्थल ``जाम सांवरी`` से किया था। जामसांवरी उमाश्री के लिए काफी लाभदायक सिद्ध हुआ था, सो 2005 में भी उमाश्री ने हनुमान जी के दर्शन कर अपना काम आरम्भ किया। उमाश्री का कारवां आगे बढा और भाजपाईयों के मन का डर भी। शनै: शनै: उमाश्री ने अपनी ही कारगुजारियों से भाजश का उभरता ग्राफ और भाजपाईयों के डर को गर्त में ले जाना आरम्भ कर दिया।

कभी चुनाव मैदान में प्रत्याशी उतारने के बाद कदम वापस खीच लेना तो कभी कोई नया शिगूफा। इससे उमाश्री के साथ चलने वालों का विश्वास डिगना आरम्भ हो गया। पिछले विधानसभा चुनावों में भाजश कार्यकर्ताओं ने उमाश्री को चुनाव मैदान में कूदने का दबाव बनाया। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि एसा इसलिए किया गया था ताकि भाजश कम से कम चुनाव तक तो मैदान में डटी रहे। कार्यकर्ताओं को भय था कि कहीं उमाश्री फिर भाजपा के किसी लालीपाप के सामने अपने प्रत्याशियों को वापस लेने की घोषणा न कर दे। 2008 का मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव उमाश्री भारती के लिए आत्मघाती कदम ही साबित हुआ। इस चुनाव में उमाश्री भारती अपनी कर्मभूमि टीकमगढ से ही औंधे मुंह गिर गईं। कभी भाजपा की सूत्रधार रहीं फायर ब्राण्ड नेत्री उमाश्री भारती ने इसके बाद 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में फिर एक बार भाजपा द्वारा उनके प्रति नरम रूख मात्र किए जाने से उन्होंने लोकसभा में अपने प्रत्याशियों को नहीं उतारा।

माश्री भारती का राजनैतिक इतिहास देखने पर साफ हो जाता है कि उनके कदम और ताल में कहीं से कहीं तक सामंजस्य नहीं मिल पाता है। वे कहतीं कुछ और हैं, और वास्तविकता में होता कुछ और नज़र आता है। गुस्सा उमाश्री के नाक पर ही बैठा रहता है। बाद में भले ही वे अपने इस गुस्से के कारण बनी स्थितियों पर पछतावा करतीं और विलाप करतीं होंगी, किन्तु पुरानी कहावत ``अब पछताए का होत है, जब चिडिया चुग गई खेत`` से उन्हें अवश्य ही सबक लेना चाहिए।

मध्य प्रदेश में उनके ही दमखम पर राजा दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली दस साला सरकार को हाशिए में समेट पाई थी भाजपा। उमाश्री भारती मुख्य मन्त्री बनीं फिर झण्डा प्रकरण के चलते 2004 के अन्त में उन्हें कुर्सी छोडनी पडी। इसके बाद एक बार फिर नाटकीय घटनाक्रम के उपरान्त वे पैदल यात्रा पर निकल पडीं। मीडिया में वे छाई रहीं किन्तु जनमानस में उनकी छवि इससे बहुत अच्छी बन पाई हो इस बात को सभी स्वीकार कर सकते हैं।

अबकी बार उमाश्री भारती ने अपने द्वारा ही बुनी गई पार्टी के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दिया है। उन्होंने कार्यकारी अध्यक्ष संघप्रिय गौतम को त्यागपत्र सौंपते हुए कहा है कि वे स्वास्थ्य कारणों से अपना दायित्व निभाने में सक्षम नहीं हैं, सो वे अपने आप को समस्त दायित्वों से मुक्त कर रहीं हैं, इतना ही नहीं उन्होंने बाबूराम निषाद को पार्टी का नया अध्यक्ष बनाने की पेशकश भी कर डाली है। उमाश्री की इस पेशकश से पार्टी में विघटन की स्थिति बनने से इंकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वे चाहतीं तो संघप्रिय गौतम पर ही भरोसा जताकर उन्हें अध्यक्ष बनाने की पेशकश कर देतीं।

उधर भाजपा ने अभी भी उमाश्री भारती के मामले में मौन साध रखा है। यद्यपि भाजपा प्रवक्ता तरूण विजय का कहना है कि उन्हें पूरे मामले की जानकारी नहीं है, फिर भी भाजपा अपने उस स्टेण्ड पर कायम है, जिसमें भाजपा के नए निजाम ने उमाश्री भारती और कल्याण सिंह जैसे लोगों की घर वापसी की संभावनाओं को खारिज नहीं किया था। कल तक थिंक टेंक समझे जाने वाले गोविन्दाचार्य से पूछ पूछ कर एक एक कदम चलने वाली उमाश्री के इस कदम के मामले में गोविन्दाचार्य का मौन भी आश्चर्यजनक ही माना जाएगा। बकौल गोविन्दाचार्य -``भाजपा अब भगवा छटा वाली कांग्रेस पार्टी हो गई है।`` अभी हाल ही में उमाश्री को भाजपा के एक प्रोग्राम में देखा गया था, जिसमें नितिन गडकरी मौजूद थे। भाजपा द्वारा उमाश्री भारती की इन सारी ध्रष्टताओं को माफ कर अगर गले लगा लिया जाता है तो क्या भरोसा कि आने वाले समय में वे किसी छोटी मोटी बात से आहत होकर फिर भाजपा को कोसें और अब उनके निशाने पर अटल आडवाणी का स्थान नितिन गडकरी ले लें।

गुरुवार, 25 मार्च 2010

स्कूली बच्चों से गए गुजरे हैं ``जनसेवक``

स्कूली बच्चों से गए गुजरे हैं ``जनसेवक``

केवल 162 सांसद ही रहे लोकसभा में मौजूद

आडवाणी, मलायम पास, राहुल सोनिया फिसड्डी

(लिमटी खरे)

देश की जनता जिन पर भरोसा कर उन्हें जनादेश देकर देश की सबसे बडी पंचायत ``लोकसभा`` में अपने भविष्य के सपने गढने की गरज से भेजती है, वे ही ``जनसेवक`` लोकसभा में उपस्थिति दर्ज कराने के बजाए अपना ही भविष्य गढने में लग जाते हैं। लोकसभा में अनुपस्थित रहने के साथ ही साथ अपने संसदीय क्षेत्र के लोगों के हितों के मामलों में उपेक्षात्मक रवैया अपनाकर न केवल ये जनसेवक अपने निहित स्वार्थ साधते हैं, वरन ये इन्हें मिले जनादेश का भी अनादर ही करते हैं।

जनसेवक भले ही अपने बच्चों को शालाओं में शत प्रतिशत उपस्थिति देने को पाबन्द रहने के उपदेश देते हों, पर जब इनकी अपनी बारी आती है तो ये जिम्मेदारियों से मुंह मोडने में गुरेज नहीं करते हैं। लोकसभा की उपस्थिति पंजी पर अगर नज़र डाली जाए तो कुछ इसी तरह की बातें निकलकर सामने आती हैं। बजट सत्र के पहले चरण में 22 से 15 मार्च तक के कार्यकाल में ही 544 में से महज 162 संसद सदस्यों ने रोजाना सदन में आकर उपस्थिति दर्ज करवाई है।

विचित्र किन्तु सत्य यहीं देखने को मिलता है। एक ओर कांग्रेस की राजमाता और यूपीए अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी कांग्रेस संसदीय दल की हर बैठक में सांसदों को सदन में मौजूद रहने पर जोर देती हों, पर जब उनका अपना रिपोर्ट कार्ड देखा जाता है तो वे ही पिछडती नज़र आती हैं। गौरतलब होगा कि परमाणु दायित्व विधेयक एवं अन्य मसलों पर सरकार को पहले ही काफी लानत मलानत झेलनी पडी थी। आश्चर्य तो तब होता है जब आम बजट और लेखानुदान मांगों पर चर्चा के दौरान ही सदन में कोरम भी पूरा नहीं हो पाता है।

बजट सत्र के पहले चरण में 22 मार्च से 16 मार्च तक सदन में कुल 15 बैठकें आहूत हुईं हैं। लोकसभा की उपस्थिति पंजी पर नज़र डाली जाए तो नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषम स्वराज, राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आडवाणी, समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव, भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के गुरूदास दासगुप्ता, माक्र्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी के वासुदेव आचार्य की उपस्थिति सदन में शत प्रतिशत रही है। कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी सदन में महज 10 दिन तो युवराज राहुल गांधी ने 13 दिन हाजिरी दी है। कल्याण सिंह और रूपहले पर्दे की अदाकारा जया प्रदा महज एक एक दिन ही अपनी सूरत दिखाने सदन में गए।

सवाल यह उठता है कि आखिर इन जनसेवकों के पास सदन में मौजूद रहने के अलावा एसा कौन सा जरूरी काम है, जिसके चलते ये सदन से गायब रहते हैं। समूचे हिन्दुस्तान में इनका सडक, रेल या वायूमार्ग से आवागमन वह भी विलासिता वाली श्रेणी में बिल्कुल मुफ्त होता है। दिल्ली में रहने को आरामदायक निशुल्क आवास, निशुल्क बिजली एवं अन्य सुविधाओं के होते हुए ये जनसेवक आखिर लोकसभा से गायब रहने में ज्यादा दिलचस्पी क्यों लेते हैं। गौरतलब होगा कि एक प्रोग्राम के दौरान कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी ने अपनी पीडा का इजहार करते हुए भले ही मजाक में यह कहा था कि क्लास बंक करने का मजा कुछ और ही होता है। यहां सोनिया का क्लास से तातपर्य लोकसभा से ही था।

जनता अपने द्वारा दिए गए विशाल जनादेश प्राप्त जनसेवकों से पूछना चाहती है कि आखिर कौन सी एसी वजह है, जिसके चलते ये सदन की कार्यवाही में भाग लेने से इतर कोई और दूसरे काम में अपने आप को झोंक देते हैं। देखा जाए तो इन जनसेवकों की पहली जवाबदारी उनके संसदीय क्षेत्र के लोगों की समस्याओं को सरकार के सामने लाकर उसे दूर करना है। विडम्बना ही कही जाएगी कि आज की राजनीति में गलत परंपराओं का संवर्धन किया जा रहा है।

चुनाव के उपरान्त परिणामों का एनालिसिस कुछ इस तरह से किया जाता है कि जिस क्षेत्र से उन्हें वोट नहीं मिलते हैं, उस क्षेत्र के लोगों को नारकीय जीवन जीने पर मजबूर कर दिया जाता है, और जहां लोगों ने उन्हें हाथों हाथ लिया हो उस क्षेत्र को चमन बना दिया जाता है। यही आलम कार्यकर्ताओं का होता है। धडों में बंटे राजनीतिक दलों में जनसेवक अपने अनुयाईयों को पूरी तरह उपकृत कर दूसरे के फालोअर्स की जडों में मठ्ठा डालने से नहीं चूकते हैं।

बहरहाल, जनसेवकों की लोकसभा में इस तरह समाप्त होती दिलचस्पी को बहुत अच्छा शगुन नहीं माना जा सकता है। जिस तरह एक सरकारी कर्मचारी को आकिस्मक, अर्जित और स्वास्थ्य अवकाश मिलता है, उसी तरह चुने गए या मनोनीत जनसेवकों के लिए भी एक आचार संहिता बनकर इसका कडाई से पालन सुनिश्चित होना चाहिए। निर्धारित दिनों से ज्यादा अगर जनसेवक अपने कर्तव्यों से नदारत रहता है, तो उसके वेतन में से दुगनी राशि काटकर सरकारी खाते में जमा करा देना चाहिए। वर्तमान में चुने और मनोनीत जनसेवकों के लिए आचार संहिता है, पर परिस्थितियों को देखकर उसे पर्याप्त नहीं माना जा सकता है।

जब आना, जाना, रहना, बिजली पानी आदि सब कुछ निशुल्क है तो फिर संसद सत्र के दौरान बंक (स्कूल कालेज में पढाई के दौरान विद्यालय या कालेज से गायब रहने के लिए विद्यार्थियों द्वारा प्रयुक्त एक शब्द) मारने का ओचित्य समझ से परे ही है। विद्यार्थियों को तो जुलाई से अप्रेल तक दस माह लगातार (अवकाशों को छोडकर) अपने गुरूकुल जाना होता है, पर संसद के सन्त्र तो पूरे साल नहीं चला करते। इन जनसेवकों को पगार किस बात की मिलती है, क्या इनकी जवाबदेही तय नहीं होना चाहिए, क्या इन्हें मौज करने और मलाई खाने तथा रसूख दिखाने के लिए जनता के गाढे पसीने की कमाई दी जाती है, आदि न जाने कितने अनुत्तरित प्रश्न देश की जनता के मानस पटल पर उभरते होंगे। नए नियम कायदों में सरकारी नौकर को पेंशन से वंचित रखा जा रहा है, पर जनसेवक चाहे सांसद हो या विधायक उसे बराबर पेंशन की पात्रता आज भी न केवल बरकरार है, वरन् उसे गाहे बेगाहे बढाने के प्रस्ताव भी ध्वनि मत से पारित कर दिए जाते हैं। इस तरह का भेदभाव `अनेकता में एकता` वाले इस हिन्दुस्तान में ही सम्भव है।

मंगलवार, 23 मार्च 2010

हमारा पहला अद्भुत और अकल्पनीय अनुभव है प्राडकास्ट

हमारा पहला अद्भुत और अकल्पनीय अनुभव है पाड्कास्ट

इंटरनेट का इन्द्रजाल समझना बहुत ही मुश्किल है। इंटर नेट पर जहां तक आप सोच सकते हैं आप उससे कहीं आगे जा सकते हैं। इसके साथ ही साथ ब्लाग ने तो धूम मचा दी है। कल तक अखबारों में पत्र संपादक के नाम में अपनी भावनाएं प्रकाशित करवाने के लिए हमें संपादक के रहमो करम पर ही निर्भर रहना पडता था। आज ब्लाग इससे काफी आगे निकल चुका है। ब्लाग पर आप जो चाहे जैसा चाहें प्रकाशित करवा सकते हैं।
ब्लाग में ही नई विधा
पाड्कास्ट
का आगाज हो चुका है। हमने सुना ही था कि अचानक गिरीश बिल्लोरे जी से पिछले शुक्रवार हमारी वीडियो चेट हो गई उन्होंने हमसे एक साक्षात्कार चाहा। समय तय हुआ शनिवार का, पर शनिवार को हम दिल्ली से भोपाल के लिए निकल रहे थे सो चर्चा न हो सकी। रविवार भी बीत गया। हम भूल चुके थे इस वार्तालाप को।
सोमवार की रात लगभग साढे दस बजे बिल्लोरे जी ऑन लाईन थे, जी टॉक पर। बिल्लोरे जी ने कहा कि तब साक्षात्कार सम्भव है। हमने सहमति दे दी। विषय था विज्ञापनों में अश्लीलता। हो गई चर्चा आरम्भ लगभग एक घंटा कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। आज सुबह जब हमने ब्लाग पर अपने आप को सुना तो यह अनुभव निश्चित तौर पर अकल्पनीय ही था। आप सभी से अनुरोध है कि इस लिंक पर िक्लक करके आप
पाड्कास्ट को सन सकते हैं, और बिल्लोरे जी से अगर संपर्क करना चाहें तो उनका मेल आई डी भी नीचे सहज सुलभ सन्दर्भ के लिए प्रस्तुत है।

गिरीश बिल्‍लोरे जी ने हमें यह लिंक भेजा था

लिमटी खरे जी से सुनिये उनकी अपनी बात यहां=>
यदि आप भी दिल की बात कहना चाहतें तो कीजिये मेरे आई डी पर बस एक मेल girishbillore@gmail.com

``राज योग`` की तैयारी में हैं बाबा रामदेव

``राज योग`` की तैयारी में हैं बाबा रामदेव

सोनिया की राह पर चल पडे हैं राम किशन यादव

543 सीट पर उतारेंगे बाबा अपने प्रत्याशी

राहुल से गुपचुप भेंट नहीं चढ सकी परवान

(लिमटी खरे)
ईसा से दो शताब्दी पूर्व पतांजली नामक ऋषि द्वारा सूत्रबद्ध किए गए योग ने अब समूचे विश्व में अपना एक अलग स्थान बना लिया है। आज योग एक अच्छा खासा उद्योग और धन्धा बन गया है। ``स्टेटस सिंबाल`` बने योग के शिविरों में आम आदमी का प्रवेश बहुत आसानी के साथ नहीं हो सकता है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। प्राचीन ऋषि पतांजली के योग को नए क्लेवर में प्रस्तुत करने वाले स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने योग के माध्यम से कमाई अकूत दौलत को अब राजनीतिक बियाबान में झोंकने का मन बनाया है। राम किशन यादव से बाबा रामदेव बने आने वाले लोकसभा चुनावों में सभी 543 सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारने की घोषणा कर चुके हैं। बाबा रामदेव की राजनीति में आने की उत्कंठ इच्छा पिछले लोकसभा चुनावों में ही नज़र आने लगी थी, जब उन्होंने विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने के भाजपा के चुनावी नारे को अपना सुर दिया था, और उसके बाद भाजपा की तरह उन्होंने भी इस मुद्दे से किनारा कर लिया था। अब जबकि राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी ने एक बार पुन: काले धन के मुद्दे को छुआ है, तब फिर बाबा ने इस मामले में हुंकार लगा दी है।
स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह सबसे पहले योग के माध्यम से लोगों को जोडा, फिर न्यूज चेनल्स और दीगर धार्मिक चेनल्स पर अपना अधिकार जमाना आरम्भ किया। सुबह सवेरे आंख खुलते ही स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव के दर्शन आम हो गए हैं। कहा जाता है कि बार बार अगर आप किसी को देखें तो उसकी आदत सी पड जाती है। घर में पालतू जानवर ही परिवार का हिस्सा हो जाते हैं तो फिर औरों की कौन कहे।
इसके उपरान्त स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने पतांजलि योग पीठ के साथ ही साथ भारत स्वाभिमान ट्रस्ट की स्थापना की। यह संस्था किन उद्देश्यों के लिए बनाई गई थी, यह बात तो सिर्फ और सिर्फ बाबा रामदेव ही जानते हैं। इस संस्था से युवाओं को जोडने का अभियान छेडा गया। इसके बाद पिछले साल के आरम्भ में देश भर के हर पेशे के लोगों को अलग अलग स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने हरिद्वार बुलवा भेजा। इनके साथ बाबा ने अलग अलग गुफ्तगूं की। मामला तब भी किसी को समझ में नहीं आया कि बाबा को आखिर क्या हो गया कि उन्होंने वकील, डॉक्टर यहां तक कि मीडिया को भी पतांजली में न्योत दिया।
धीरे धीरे मामला खुला और फिर स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव के मन में उछाल मारते राजनीति के कीडे के बारे में खुलासा हुआ। अब बाबा देश के हर जिले में भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के सात से दस लाख सदस्य बनाने का लक्ष्य लेकर आगे बढ रहे हैं। बाबा शायद नहीं जानते कि अनेक जिलों में तो सभी बडे राजनीतिक दलों के सदसयों की संख्या ही इतनी नहीं है। बाबा के अन्दर अहंकार कूट कूट कर भर चुका है, इस बात में कोई सन्देह नहीं है। तभी तो बाबा हुंकार भर रहे हैं कि मतदान नहीं करने वाले लोग उनके समर्थन में आएंगे। बकौल बाबा एसे लोग उन्हें ही वोट देने की बाट जोह रहे हैं। बाबा का कहना है कि वे घर से अकेले ही निकले थे, और आत्मबल से आगे बढते गए। आज करोडों लोग बाबा के साथ होने का दावा वे स्वयं कर रहे हैं। बाबा यह भूल जाते हैं कि राष्ट्रपिता की उपाधि पाने वाले मोहनदास करमचन्द गांधी भी मां के पेट से अकेले ही पैदा हुए थे, उन्होंने भी आत्मबल से करोडों लोगों को अपने साथ जोडा। बाबा को समझना चाहिए कि एयर कण्डीशन्ड आश्रम, वाहन और योगस्थलों के बल पर वे भारत और लोगों के दिलों पर राज नहीं कर सकते। लोगों के दिलों में आज भी आधी धोती वाला महात्मा बसा हुआ है, क्योंकि उस महात्मा के अन्दर कोई निहित स्वार्थ नहीं था। सुप्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता की चन्द पंक्तियों का उल्लेख यहां लाजिमी होगा -``जब नाश मनुज का छाता है! पहले विवेक मर जाता है!!``
स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव यह अवश्य कह रहे हैं कि वे राजनीति से गन्दगी साफ करना चाह रहे हैं देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाना चाह रहे हैं। इसके अलावा बाबा का कहना है कि वे विदेश में जमा करीब 258 लाख करोड रूपए और देश ें जमा करीब 60 लाख करोड रूपए के काले धन को देश के विकास में लगाएंगे। बाबा के पास इतने सटीक आंकडे हैं तो वे यह भी जानते होंगे कि किस ``जनसेवक`` का कितना धन कहां जमा है। अगर वाकई बाबा देश का भला करना चाह रहे हैं तो उन्हें अपने अन्दर यह माद्दा भी पैदा करना होगा कि वे सीबीआई, आयकर विभाग, और सम्बंधित विभाग के पास जाकर इस काले धन के प्रमाण दें और उसे वापस लाने के मार्ग प्रशस्त करें और अगर बाबा महज पब्लिसिटी स्टंट के लिए यह कह रहे हैं, तो उनकी निन्दा भी की जानी चाहिए।
आज यक्ष प्रश्न तो यह खडा हुआ है कि आखिर बाबा रामदेव देश भर में 543 प्रत्याशी खोजेंगे कैसे। क्या होगा बाबा के चयन का पैमाना। बाबा रामदेव के सामने सबसे बडी चुनौति तो यह होगी कि प्रत्याशी चयन में वे किसे चुनेंगे, और जिसे चुनेंगे क्या भरोसा है कि वह बाबा के इस कथित अभियान के मापदण्डों पर खरा उतरे। बाबा को यह नहीं भूलना चाहिए कि इसके पहले जय गुरूदेव का गगनभेदी घोष करने वाले उनके समर्थकों ने टाट फट्टी पहनकर दूरदशीZ पार्टी के बेनर तले चुनाव लडा था, कमोबेश यही कमद महषिZ महेश योगी की पार्टी ने उठाया था। दोनों ही सन्तों की पार्टियों का क्या हुआ यह बात किसी से छिपी नहीं है। इनके राजनीति में उतरने के कदम को लोगों ने आत्मघाती करार दिया था, और समय के साथ वही हकीकत भी सामने आई।
बाबा के मन में क्या है यह बात तो वे ही बेहतर जानते होंगे। बाबा का कहना है कि वे न तो चुनाव लडेंगे और न ही कोई पद ही स्वीकार करेंगे। लगता है बाबा ने देश की राजनैतिक फिजां का बहुत बारीकी से अध्ययन किया है। इतालवी मूल की सोनिया गांधी कल तक विदेशी महिला थी, पर आज मीडिया ने ही उन्हें त्याग की प्रतिमूर्ति बनाकर खडा कर दिया है। बाबा को यह बात समझ में आ गई है, इसलिए वे चुनाव न लडकर, पद न लेकर सिर्फ रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में ही रखना चाह रहे हैं। संस्कृत की एक उक्ति का प्रयोग यहां प्रासंगिक होगा -``न दिवा स्पनं कुर्यात`` अर्थात दिन में सपने नहीं देखना चाहिए। बाबा की यह अभिलाषा भी दिन में सपने देखने की ही तरह है। सम्भवत: उनके समर्थकों और रणनीतिकारों ने बाबा को यह समझा दिया हो कि योग के माध्यम से आप घरों घर पहुंच चुके हैं, अत: चुनाव में आपकी एक अपील ही आपके प्रत्याशी को जिता देगी। वस्तुत: जमीनी हकीकत इससे बहुत उलट होती है, जिससे बाबा को अंधेरे मेें ही रखा जा रहा है।
उनका कहना है कि उनके प्रत्याशी किस पार्टी के बेनर तले चुनाव लडेंगे इसकी घोषणा तीन साल बाद अर्थात 2013 में की जाएगी। 2014 में अगले लोकसभा चुनाव होने हैं। स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव का यह कथन उनके अन्दर के परिपक्व राजनेता के गुण उजागर करने के लिए काफी कहा जा सकता है। इसका कारण यह है कि बाबा अभी तीन साल तक सभी राजनैतिक दलों के साथ समझौता (बारगेनिंग) के द्वार खुले रखना चाह रहे हैं। इसके अलावा कुछ माह पूर्व बाबा ने कांग्रेस की नज़र में देश के भावी प्रधानमन्त्री राहुल गांधी के साथ भी एक गुप्त बैठक की थी। हो सकता है राहुल गांधी को बाबा की बातें और शर्तें पसन्द न आईं हों और दोनों के बीच मामला आगे न बढ सका हो।
स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने अब अपनी निर्धारित रणनीति के तहत ``जनसेवकों`` पर प्रत्यक्ष और परोक्ष कटाक्ष भी आरम्भ कर दिए हैं। लखनउ में बहुजन समाज पार्टी के 25 साल पूरे होने पर हुए कार्यक्रम में बसपा सुप्रीमो मायावती को हजार रूपए के नोटों की माला पहनाने के मामले में भी उन्होंने टिप्पणी कर डाली। बाबा का कहना है कि देश की दौलत से गरीबों के उत्थान के बजाए गले में नोटों की माला पहनने वालों को उनका यह अभियान रास नहीं आएगा। इसके पहले यूपी की सीएम मायावती ने बाबा पर तीखा प्रहार करते हुए कहा था कि एसे बाबाओं से बचकर रहना चाहिए जो कसरत के बहाने अपनी दुकानदारी चलाते हैं और लोगों को लूटते हैं। मायावती के इस प्रहार से बाबा बुरी तरह तिलमिला गए, बाबा को यह नहीं भूलना चाहिए कि राजनीति में आरोप प्रत्यारोप की कोई वर्जना नहीं होती है। आने वाले समय में अगर बाबा ने अपना यही क्रम और तेवर रखे तो उनके कपडे उतारने में राजनेता चूकने वाले नहीं।
वैसे बाबा के कदमतालों को देखकर काफी पहले ही सन्देह होने लगा था कि बाबा की मंशा योग के बजाए राजनीति करने और कराने में ज्यादा है। स्वाईन फ्लू के बारे में बाबा ने कहा कि लंग यानी फेफडे में पावर हो तो यह बीमारी क्या बिगाड लेगी। तब भी बाबा ने मुफ्त में इलाज नहीं किया। बाबा पर पूर्व में औषधियों में मानव अंगों के प्रयोग होने के आरोप लगे। इसके बाद स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने आदि शंक्राचार्य के सिद्धान्त पर ही उंगली उठा दी। बाद में मीडिया पर लानत मलानत भेज उन्होंने सन्त समाज को सन्तुष्ट किया। इसके बाद भी देश भर में बाबा के पुतले जलाए गए। यक्ष प्रश्न तो आज भी यही खडा है कि अगर बाबा ने आदि शंकराचार्य के ``ब्रम्ह सत्य, जगत मिथ्या`` नामक वेदान्त के सिद्धान्त को चुनौती देकर यह नहीं कहा था कि इस सिद्धान्त दर्शन ने कबाडा कर दिया है, इसे लोग भाग्यवादी बन गए हैं, तो फिर अखिल भारतीय अखाडा परिषद और शारदापीठ के शंकराचार्य राजरोश्वरानन्द के समक्ष हरिद्वार में पेश होकर मौखिक और लिखित माफी क्यों मांगी थी। हम तो बाबा रामदेव से बस इतना जानना चाहते हैं कि क्या योग में एसा कोई आसन है, जिससे वाणी पर नियन्त्रण किया जा सके। अगर है तो उसे बाबा रामदेव और विदेश राज्यमन्त्री शशि थुरूर को अवश्य ही करना चाहिए, ताकि वे अपनी जुबान पर लगाम लगाकर रख सकें।
बाबा ने एक बार फिर मीडिया की सुर्खियां बटोरने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जब समलेंगिगता को मान्यता दी गई तो इसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में जाने की बात कही थी। आज इतना समय बीत जाने के बाद भी बाबा का यह कौल कहां गायब हो गया है, इस बारे में बाबा ही बेहतर जानते होंगे। मध्य प्रदेश के ग्वालियर के बाबा शिवराज गिरी ने बाबा रामदेव को चुनौति दी थी कि बाबा यह साबित कर दिखाएं कि योग के माध्यम से कैंसर और एड्स जैसी बीमारियों का इलाज सम्भव है। पिछले कुंभ के दौरान इलहाबाद में बाबा गिरी ने बाबा को आडे हाथों लेते हुए कहा था कि धर्म और योग के प्रचार का स्वागत किया जाना चाहिए, किन्तु इसका उत्पादों की तरह व्यापार नहीं किया जाना चाहिए। शिवराज गिरी ने बाबा रामदेव पर आरोप लगाते हुए कहा था कि बाबा ने योग को व्यापार बना दिया है, जो भारतीय संस्कृति के खिलाफ है।
बहरहाल मन में देश पर राज करने का सपना संजोने वाले बाबा रामदेव ने पाखण्डी बाबाओं को भी आडे हाथों लिया है। बाबा का कहना है कि वे खुद पाखण्डी बाबाओं के खिलाफ रणनीति बनाकर उनका बहिष्कार करने का काम करेंगे। लोग अभी भूले नहीं हैं कि बाबा ने किस तरह जगतगुरू शंक्राचार्य के बारे में पहले अनर्गल टिप्पणी की थी, और फिर गुपचुप तरीके से शंक्राचार्य से माफी भी मांगी थी। स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने कहा कि देश के सभी सन्तो को अपनी तथा अपनी संस्था की समूची धन संपत्ति के ब्योरे को सार्वजनिक करना चाहिए, ताकि किसी तरह का किन्तु और परन्तु न रह जाए। बकौल राम किशन यादव वे खुद इसका पालन कर रहे हैं, उनकी संस्था को मिलने वाले दान व उसके खर्च का पूरा हिसाब सार्वजनिक किया जाता है। बाबा यह बताना अलबत्ता भूल ही गए कि उनकी संस्था को मिलने वाले दान, उनकी औषधियों से होने वाली कमाई, योग शिविरों से होने वाली आवक और इस सबके खर्च को उन्होने कब और कहां सार्वजनिक किया है। आज भी उनके भोले भाले अनुयायी अपने बाबा की संपत्ति के विवरण को जानने के लिए आतुर हैं। कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि बाबा की मिल्कियत हजारों करोड रूपयों में है, वे चाहें तो राजनीति में आए बिना और विदेशों से काले धन को वापस लाने के बजाए उनके पास के ही धन को अगर सत्कर्म में खर्च करना आरम्भ कर दें तो भारत देश में गरीबों को तो कम से कम राहत मिल ही जाएगी।

सुनाई देने लगी है मध्यावधि की पदचाप

सुनाई देने लगी है मध्यावधि की पदचाप

पवार लगा रहे हैं कांग्रेसनीत सरकार में सेंध
 
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 23 मार्च। कांग्रेसनीत केन्द्र सरकार के दिन शायद गिनती के ही बचे हैं। महिला आरक्षण बिल पर यादवी त्रिफला के नकारात्मक रूख और शरद पवार के चेहरे की चमक बता रही है कि आम चुनाव 2014 के बजाए बीच में कभी भी संपन्न हो सकते हैं। कांग्र्रेस द्वारा मंहगाई और टी ब्रदर्स (ठाकरे बंधुओं) से मेल मिलाप के लिए पंवार को जमकर कोसा था, उसके उपरान्त पंवार अभी अपने आप को कछुए के मानिन्द खोल में ही बन्द रखे हुए हैं।
इतिहास गवाह है कि महिला आरक्षण विधेयक पर जब भी चर्चा की गई या किसी सरकार ने इसे पास कराने का जतन किया वह सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई, या किया भी है तो वापस सत्ता में नहीं लौटी है। हरदन हल्ली डड्डीगोडा देवगोडा ने जब कोशिश की तो सत्ता के गलियारे से उन्हें बाहर फेंक दिया गया था। इसके उपरान्त इन्द्र कुमार गुजराल ने इसमें हाथ लगाया तो वे भी चले गए। अटल बिहारी बाजपेयी ने इसे पास कराने की मंशा बनाई तो वे दुबारा सत्ता में नहीं लौटे।
सत्ता के गलियारों में चल रही चर्चाओं के अनुसार वर्तमान में प्रधानमन्त्री डॉ.मनमोहन सिंह ने फिर पिटारे में हाथ डाला है, तो वे भी सत्ता में दुबारा लौट पाएं इसकी संभावनाएं बलवती होती जा रही हैं। वैसे भी कांग्रेस ने मंहगाई और बाला साहेब ठाकरे से हाथ मिलाने के मुद्दे पर पवार को आडे हाथों लिया था। इसके बाद से ही पंवार मौके की तलाश में थे कि किस तरह कांग्रेस को सबक सिखाया जाए। पंवार की नाराजगी उस समय और बढ गई थी जब कांग्रेस प्रवक्ता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने उन्हें भला बुरा कह दिया था, यद्यपि कांग्रेस ने चतुर्वदी को प्रवक्ता पद से हटा दिया गया है, पर पवार की नाराजगी कम होती नहीं दिख रही है।
पिछले दिनों यादव बंधुओं के सरकार से समर्थन वापस लेने के उपरान्त शरद पवार संसद के गलियारे में भाजपा के नेताओ ंसे यह कहते सुने गए थे कि अब कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के दिन ज्यादा नहीं बचे हैं। इसके पीछे पवार द्वारा महिला आरक्षण बिल के जिन्न का ही हवाला दिया जा रहा था। एक तरफ पवार द्वारा शिवसेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे के दरबार में जाकर कांग्रेस को सन्देश दे दिया कि वे कांग्रेस के बंधुआ नहीं हैं, वहीं दूसरी तरफ वर्तमान में पवार और भाजपा नेताओं की नजदीकियों कांग्रेस के मैनेजरों की नज़रों में बुरी तरह खल रही है।
भारतीय जनता पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्रों की माने तो केन्द्रीय कृषि मन्त्री और राकापां सुप्रीमो शरद पवार तो साफ तौर भाजपा के आला नेताओं को आश्वस्त कराते नज़र आए हैं कि कांग्रेसनीत संप्रग सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं करने वाली और आम चुनावों के लिए देश को पांच साल इन्तजार नहीं करना पडेगा।

सोमवार, 22 मार्च 2010

समूचे कुंए में ही घुली है भांग

समूचे कुंए में ही घुली है भांग
महिला बाल विकास के बाद अब रेल्वे ने दिखाया करिश्मा ए विज्ञापन
दिल्ली पाकिस्तान में तो गुजरात में ग्वालियर
बंगाल के चक्कर में हिन्दुस्तान को ही भूलीं ममता
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली 22 मार्च। रेल मन्त्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में रेल महकमा किस कदर अलसाया हुआ अंगडाई ले रहा है इसकी एक बानगी है बीते दिनों रेल विभाग द्वारा जारी एक विज्ञापन। इस विज्ञापन में रेल विभाग ने वह कमाल कर दिखाया है जो आज तक काई नहीं कर सका है।
गौरतलब है कि इसके पहले केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास विभाग ने अपने विज्ञापन में पाकिस्तान के फौजी अफसर की फोटो छापकर लानत मलानत झेली थी। वह मामला अभी शान्त नहीं हुआ है और अब ममता बनर्जी के इस नक्शे ने बवाल काट दिया है। भारतीय रेल की एन नई रेलगाडी ``महाराजा एक्सप्रेस`` के लिए जारी विज्ञापन में नई दिल्ली से बरास्ता आगरा, ग्वालियर, खजुराहो, बांधवगढ, बाराणसी, गया होकर कोलकत्ता जाना दर्शाया गया है।
मजे की बात तो यह है कि इस नक्शे में दिल्ली को पकिस्तान में ग्वालियर को गुजरात में खजुराहो को माहाराष्ट्र में बाराणसी को उडीसा में कोलकता और गया को अरब महासागर में होना दर्शाया गया है। दिल्ली की राजनैतिक फिजां में चल रही चर्चाओं के अनुसार रेल मन्त्री की नज़र पश्चिम बंगाल के मुख्यमन्त्री की कुर्सी पर ही लगी हुई हैं, यही कारण है कि जब से वे रेल मन्त्री बनी हैं तब से देश भर में सिर्फ कोलकता एक्सप्रेस की सीटी ही सुनाई दे रही है।
ममता बनर्जी ने रेल मन्त्री बनते ही एक फरमान जारी कर दिया था कि त्रणमूल कांग्रेस के मन्त्री अपना ज्यादा से ज्यादा समय पश्चिम बंगाल में दें। बाद में एक और फरमान जारी कर ममता ने पश्चिम बंगाल में रेल्वे के विज्ञापनों से प्रधानमन्त्री डॉ मन मोहन सिंह और कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के नामों को भी हटवा दिया था।
रेल मन्त्री ममता बनर्जी का पूरा का पूरा ध्यान पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनावों पर है, यही कारण है रेल महकमे में मुगलई मची हुई है। रेल में चलने वाले चल टिकिट परीक्षकों का आलम यह है कि रात की गाडियों में उनके मुंह से शराब की लफ््फार दूर से ही सूंघी जा सकती है। ये टीटीई लोगों की जेब काटने से नहीं चूक रहे हैं। रेल्वे में दुघZटनाओं में जबर्दस्त बढोत्तरी हो चुकी है। महिला एवं बाल विकास विभाग के उपरान्त भारतीय रेल मन्त्रालय के इस तरह के कारनामे को देखकर यही कहा जा सकता है कि मनमोहन सिंह जी पूरे कुंए में ही भांग घुली हो तो फिर अंजाम ए हिन्दुस्तान क्या होगा।

जनसेवकों के `एश` के मार्ग प्रशस्त

ये है दिल्ली मेरी जान 
(लिमटी खरे)
 जनसेवकों के `एश` के मार्ग प्रशस्त
देश के जनसेवकों (विधायक, सांसद, मन्त्री और नौकरशाह) के फाईव स्टार संस्कृति में लौटने के दिन वापस आने ही वाले हैं। कांग्रेसनीत केन्द्र सरकार द्वारा मितव्ययता की निर्धारित सीमा 31 मार्च को पूरी होने वाली है, जनसेवकों के तेवर देखकर अब लगता नहीं है कि एक साल पूरे होने के बाद इसे एक्सटेंशन मिल सके। अगर मितव्वयता और खर्च में कटौती जारी रखना है तो इसके लिए नया आदेश जारी करना होगा। गौरतलब होगा कि इस तरह का आदेश वित्तीय वर्ष 2009 - 2010 के लिए जारी किया गया था। वित्त वर्ष 31 मार्च 2010 को समाप्त होने जा रहा है, और जनसेवकों के एश करने के मार्ग प्रशस्त हो जाएंगे। पिछले साल वैश्विक आर्थिक मन्दी और खराब मानसून के चलते सरकारी खजाने पर बोझ कम करने के उद्देश्य से मितव्ययता की मुहिम चलाई गई थी। यह मुहिम किस कदर औंधे मुंह गिरी यह किसी से छिपा नहीं है। कांग्रेस की राजमाता सोनिया गांधी ने दिल्ली से मुम्बई तक का विमान का सफर इकानामी क्यास में किया किन्तु उनके आसपास की 20 सीट सरकार ने अपने ही खर्च पर बुक करवाईं थीं, जो खाली गईं, इसी तरह कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने भी दिल्ली से चण्डीगढ तक का रेल का सफर शताब्दी एक्सप्रेस की एक पूरी की पूरी बोगी बुक करवाकर की। लोगों ने दोनों ही जनसेवकों की इस मितव्ययता को नमन किया। वैसे भी इकानामी क्लास में सोनिया के सफर करने के तुरन्त बाद ही उनके चहेते विदेश राज्य मन्त्री ने एक सोशल नेटविर्कंग वेव साईट पर इकानामी क्लास को केटल क्लास (मवेशी का बाडा) की संज्ञा भी दे दी थी।
मराठी बनाम बिहारी बनी टीम गडकरी
शिवसेना और महाराष्ट्र नव निर्माण सेना द्वारा समूचे महाराष्ट्र सूबे में उत्तर भारतीयों विशेषकर बिहारियों के साथ किए गए अत्याचार के बाद अब महाराष्ट्र प्रदेश से उठकर भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति में कमान संभलने वाले नितिन गडकरी की नई टीम को मराठा बनाम बिहारी के तौर पर देखा जाने लगा है। टीम गडकरी में बिहार की जिस कदर उपेक्षा की गई है, उससे बिहार के दर्जन भर से अधिक नेता अपने आप को अपमानित महसूस कर रहे हैं। बिहार मूल के शाट गन शत्रुध्न सिन्हा ने तो टीम गडकरी के खिलाफ तलवार पजा ली है। उन्होंने पहली बार सार्वजनिक तौर पर टीम गडकरी की निन्दा कर डाली है। सी.पी.ठाकुर ने पटना में हुई रैली में शामिल न होकर अपनी नाराजगी का इजहार कर दिया है। पार्टी के अन्दर बेनामी खतो खिताब का सिलसिला चल पडा है। नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज की उपेक्षा कर नरेन्द्र मोदी के विश्वस्तों को स्थान दिया गया है। उधर यशवन्त सिन्हा, मुख्तार अब्बास नकवी और शहनवाज हुसैन टीम गडकरी में शामिल न हो पाने से खफा हैं। वेकैया नायडू के गुर्गों को स्थान न मिलने से वे भी कोप भवन में हैं। अब जबकि इस साल बिहार में विधानसभा चुनाव हैं, तब टीम गडकरी में बिहार की उपेक्षा से भाजपा के नए निजाम नितिन गडकरी आखिर क्या सन्देश देना चाह रहे हैं, यह बात समझ से परे ही है।
पचौरी के लिए आसान नहीं है राज्य सभा से एन्ट्री
लगातार चार बार अर्थात 24 साल तक पिछले दरवाजे अर्थात राज्य सभा के संसद रहने के बाद पूर्व केन्द्रीय मन्त्री सुरेश पचौरी को अन्त में अपे्रल 2008 में संसद के गलियारे से मुक्त कर दिया गया। इसके पहले ही उन्हें मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बना दिया गया था। दो साल बीत जाने के बाद अब वे पुन: राज्य सभा के रास्ते संसदीय सौंध तक पहुंचने की जुगत लगाने में लगे हुए हैं। कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केन्द्र 10 जनपथ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि पचौरी राज्यसभा के रास्ते जाने के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी छोडने को तैयार हैं। इसी बीच विधानसभा में विपक्ष की नेता तथा एमपी की पूर्व उपमुख्यमन्त्री जमुना देवी ने सुरेश पचौरी के खिलाफ ताल ठोंक दी है। 1952 से लगातार विधायक रहने वाली आदिवासी दबंग महिला की छवि बनाने वाली जमुना देवी ने कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी से मिलकर राज्य सभा में टिकिट की मांग की है। इसके लिए वे विपक्ष के नेता का पद तजने को तैयार हो गईं हैं।  पचौरी की राह में पूर्व प्रदेशाध्यक्ष राधाकिशन मालवीय भी शूल बो रहे हैं, मालवीय अनुसूचित जाति के हैं, तथा कांग्रेस के सबसे ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह के विश्वस्त हैंं। वैसे राज्यसभा पर नज़रें गडाने वालों में मध्य प्रदेश बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रामेश्वर नीखरा भी प्रबल दावेदार बनकर उभर रहे हैं। मध्य प्रदेश में राज्यसभा से एक ही सीट मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
गृहमन्त्री का अरोप : दलित होना अभिषाप
महाराष्ट्र प्रदेश के गृह राज्य मन्त्री रमेश बागवे का कहना है कि सूबे की पुलिस उनका कहना इसलिए नहीं मानती क्योकि वे दलित हैं। यह बात उन्होने पत्रकारों से चर्चा के दौरान कही। पुणे में महिलाओं के लिए खुली जेल के उद्घाटन के अवसर पर बागवे को आमन्त्रित ही नहीं किया गया। इससे व्यथित होकर उन्होंने अपने दर्द को पत्रकारों के साथ बांटा। बागवे का आरोप है कि दलित होने के कारण सूबे की पुलिस उनके साथ बार बार अपमानजनक व्यवहार करती है। पिछले साल 07 नवंबर को जबसे रमेश बागवे ने गृह राज्य मन्त्री का कार्यभार सम्भाला है तबसे पुणे पुलिस उनके साथ सौतेला व्यवहार ही कर रही है। गृह राज्य मन्त्री की पीडा को समझा जा सकता है, क्योंकि बिना किसी पूर्व सूचना के ही उनके काफिले का पायलट वाहन ही हटा दिया गया। इसके पहले जब वे मन्त्री बने उसके कुछ दिनों बाद ही उनकी सुरक्षा व्यवस्था भी हटा ली गई थी। बागवे के साथ अगर पुलिस के मुलाजिम इस तरह की हरकत कर रहे हैं इससे साफ है कि पुलिस के इन नुमाईन्दों को उपर से ही इस तरह के कुछ कृत्य करने का इशारा किया गया होगा, वरना सूबे के मन्त्री से सूबे के सरकारी कर्मचारी की क्या मजाल कि वह पंगा ले ले।
ब्रन्हलाओं पर मेहरबान एमसीडी
नई दिल्ली महानगर पलिका निगम देश का एसा पहला निकाय होगा जो अपने किन्नर नागरिकों को पैंशन देगा। जी हां दिल्ली नगर निगम ने फैसला किया है कि वह दिल्ली के किन्नरों को एक हजार रूपए की पैंशन राशि देगा। नगर निगम ने इस आशय के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है, यह प्रसताव एक अप्रेल से लागू हो जाएगा। दरअसल निगम की बजट सत्र की बैठक में पार्षद मालती वर्मा ने किन्नरों को पेंशन दिए जाने का मुद्दा उठाया। इस पर एक अन्य पार्षद जगदीश मंमगाई ने वर्मा का समर्थन भी किया। अन्तत: दिल्ली नगर निगम ने यह प्रस्ताव पारित कर ही दिया। गौरतलब होगा कि दिल्ली में लगभग साढे तीन लाख किन्नर रहवास करते हैं। इस प्रस्ताव से दिल्ली नगर निगम पर पडने वाले अतिरिक्त वित्तीय भार की भरपाई कुछ मामलों में करारोपण या करों में बढोत्तरी के द्वारा ही की जाने की संभावना है। वैसे नगर निगम के इस तरह के प्रस्ताव से उमर के अन्तिम पडाव में रोजगार विहीन किन्नरों को बहुत ही राहत मिल सकती है।
जहां मलाई वहां ततैया
बसपा सुप्रीमो सुश्री मायावती ने बहुजन समाज पार्टी के 25 साल पूरे होने पर एक भव्य रैली का आयोजन किया। यह रैली दो कारणों से चर्चा में रही अव्वल तो सुश्री मायावती को पहनाई गई भारी भरकम नोटों की माला, और दूसरे सभा में मधुमिख्यों का हमला। नोटों की माला पहनाकर बसपा कार्यकर्ता ओर पहनकर बहन मायावती ने सरकरी नोट के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के नियम कायादों का सरेआम माखौल उडाया। वहीं अब आला हाकम इस बात की पतासाजी में लगे हैं कि मधुमख्खी जानबूझकर आईं थीं या फिर रैली में खलल डालने की सोची समझी साजिश थी। रैली स्थल अम्बेडकर पार्क के पास स्थित अम्बेडकर विश्वविद्यालय में उठते धुंए ने सभी को चौंकाया था। मधुमिख्खयां सम्भवत: इसी जगह से उडकर आईं थीं। यह तो गनमत थी कि मधुमिख्खयों ने कोई कोहराम नहीं मचाया, फिर भी मायावती को प्रसन्न करने के लिए अब इसकी बहुत बारीकी से जांच में जुटे हैं पुलिस के आला अफसर। किसी ने चुटकी लेते हुए कह ही दिया कि जहां मलाई (नोटों की माला) होगी मधुमख्खी वहां नहीं तो क्या गन्दगी पर बैठेगी।
अनोखे प्रवक्ता रहे हैं चतुर्वेदी
कांग्रेस के निर्वतमान प्रवक्ता सत्यव्रत चतुर्वेदी का कार्यकाल अपने आप में अनोखा कहा जा सकता है। अमूमन माना जाता है कि 13 नंबर लोगों के लिए शुभ नहीं होता है, किन्तु चतुर्वेदी 13 नंबर को बहुत ही शुभ मानते थे। 24 अकबर रोड स्थित अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कार्यालय में उनके कक्ष का नंबर 13 ही था। पहली बार वे तेरहवीं लोकसभा के लिए ही चुनकर आए थे। मजे की बात तो यह है कि डेढ साल से ज्यादा समय तक पार्टी क प्रवक्ता की जिम्मेदारी सम्भालने वाले सत्यव्रत चतुर्वेदी ने एक बार भी प्रेस ब्रीफिंग नहीं की। उन्होंने अपने पूरे कार्यकाल में पार्टी के किसी फैसले का न तो खण्डन किया और न ही पुष्टि। मीडिया सिर्कल में उन्हें ``शोभा की सुपारी`` कहा जाता था। वैसे प्रवक्ता पद से हटने के बाद उनके जलवे में कमी के बजाए इजाफा ही दिख रहा है। उन्हें अब बैठने के लिए पहले से बडा कमरा दे दिया गया है। यह वही कमरा है जहां पहले मीडिया के लोग बैठा करते थे, और आग लगने के बाद इसे बिढया रंग रोगन कर दिया गया है।
युवराज नहीं उडवाएंगे अपनी हंसी
राखी सावन्त और राहुल महाजन के स्वयंवर के उपरान्त अब हवा उडने लगी थी कि मशहूर क्रिकेटर युवराज सिंह भी टीवी पर रियलिटी शो के तहत अपना स्वयंवर रचाएंगे। युवराज ने एक निजी टीवी चेनल के रियलिटी शो में स्वयंवर से साफ इंकार कर दिया है। युवराज का कहना है कि शादी का ख्याल उनके दिमाग में अभी नहीं है, और उनका पहला प्यार क्रिकेट ही था और यही रहेगा भी। गौरतबल है कि युवराज सिंह का युवतियों में जबर्दस्त क्रेज है। इतना ही नहीं रूपहले पर्दे की आदाकाराओं के साथ उनके प्रेम प्रसंगों की अफवाहें भी जबर्दस्त तरीके से होती आई हैं। हो सकता है राखी सावन्त के स्वयंवर के बाद उनका अपने भावी पति से अलगाव के बाद पिटी राखी की भद्द और मादक पदार्थों के लिए चर्चित हुए प्रमोद महाजन के पुत्र राहुल महाजन के स्वयंवर के बाद अनेक प्रतिभागियों द्वारा न्यूज चेनल्स पर लगाए गन्दे गन्दे आरोंपों से वे घबरा गए हों, और रियलिटी शो की तरफ जाने से उन्होंने तौबा ही कर ली हो।
डीडी के बाद नया सरकारी चेनल!
सरकारी चेनल का नाम आते ही दूरदर्शन का लोगो जेहन में उभरना स्वाभाविक है। इससे हटकर हरियाणा सरकार द्वारा अब अपना सरकारी चेनल आरम्भ करने का मन बनाया है। इलेक्ट्रानिक चेनल की चकाचौंध में हरियाणा ने भी दांव लगाने का फैसला किया हैं इस बारे में हरियाणा सरकार का आवेदन सूचना प्रसारण मन्त्री अंबिका सोनी के पास लंबित है। हरियाणा के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि हरियाणा के विकास के क्रम को इलेक्ट्रानिक मीडिया में उचित और पर्याप्त स्थान न मिल पाने के चलते सरकार ने यह कदम उठाया है। वैसे भी हरियाणा सरकार के प्रयासों से पिछले दिनों सरकारी पत्र पत्रिकाओं को नए और आकर्षक क्लेवर में लाने के साथ ही साथ वरिष्ठ पत्रकारों को अनुबंध के आधार पर नौकरी, प्रदेश और जिला स्तर पर जनसंपर्क कार्यालयों का अत्याधुनिकीकरण किया जा चुका है। लगता है हरियाणा सरकार अब देश में अपने आप को स्थापित और अग्रणी बताने के लिए अपने ही मीडिया संसाधनों पर भरोसा कर रही है।
सिब्बल ने झाडे अपने हाथ!
केन्द्रीय मानव संसाधन और विकास मन्त्री कपिल सिब्बल ने केन्द्रीय विद्यालयों में मन्त्री के कोटे को समाप्त कर दिया है। पिछले दिनों हुई बैठक में उन्होंने उनके पास की 1200 सीटों के कोटे से अपने हाथ झाड लिए हैं। सिब्बल का मानना है कि एसा करने से उन लोगों का हक मारा जा रहा है, जो स्थानान्तरित होकर कहीं और जाते हैं। अब मन्त्री के हाथ में तो केन्द्रीय विद्यालय में प्रवेश का कोटा नहीं रहा किन्तु जिले के जिलाधिकारी (जिला कलेक्टर) और उस संसदीय क्षेत्र के सांसद के पास दो दो सीट का कोटा अभी भी मौजूद है। इतना ही नहीं राज्य सभा सदस्य भी अपने निर्वाचन वाले सूबे के किसी भी जिले में सिर्फ दो लोगों के प्रवेश की अनुशंसा कर सकता है। कुछ सालों पहले तक केन्द्रीय विद्यालय के अध्ययन अध्यापन के स्तर में आए सुधार से लोग अपने बच्चों को केन्द्रीय विद्यालय में प्रवेश दिलाना चाहते थे, किन्तु वर्तमान में अनेक केन्द्रीय विद्यालयों का पढाई का स्तर बहुत ही गिर गया है। इसके अलावा इसमें प्रवेश हेतु केटगरी भी बनाई गई है, जिससे गैर नौकरी पेशा लोगों के बच्चों का दाखिला इन विद्यालयों में कैसे हो पाएगा इस बारे में कबिल सिब्बल अगर चिन्ता करते तो देश के भविष्य का कुछ भला हो सकता था।
बेरोजगार पति हकदार है कानूनी लडाई का खर्च पाने को
माना जाता है कि भारतीय कानून अमूमन महिलाओं के साथ ज्यादा संवेदना रखता है। पारिवारिक विवादों के मामले में भी कानून का लचीला रूख महिलाओं के साथ ही होता है। अब तक पारिवारिक विवाद में हर्जा खर्चा पति द्वारा पित्न को ही देने के मामले सामने आए हैं। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में दिए गए एक फैसले में बेरोजगार पति को कानूनी लडाई लडने के लिए हर्जा खर्चा दिलवाया गया है। देश की शीर्ष कोर्ट ने एक बेरोजगार युवक को बैंग्लुरू की परिवार अदालत में अपना केस लडने के लिए उसकी पित्न को दस हजार रूपए की राशि अदा करने के आदेश दिए हैं। इस मामले में युवक की पित्न ने बताया कि वह फ्री लांसर लेखिका है, और उसके पति ने अपने आप को बेरोजगार साबित किया है। अमूमन सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पति को पित्न या उसके माता पिता को तलाक के मुकदमे के दौरान या उसके बाद भी गुजारा भत्ता देना होता है।
पन्ना टाईगर रिजर्व में मिले जानवरों के कंकाल!
बिना सींग के बारहसिंघा हो चुके मध्य प्रदेश के पन्ना टाईगर रिजर्व उद्यान में जानवरों के कंकाल मिलने से सनसनी फैल गई है। बिना सींग का बारहसिंघा इसलिए क्योंकि यह उद्यान बाघों के लिए संरक्षित है, और बाघ विहीन ही हो गया है। हाल ही में इस उद्यान में विकास कार्य के लिए की जा रही खुदाई में जानवरों के कंकाल मिले हैं। बताते हैं कि प्रथम दृष्टया तो दो स्थानों पर हुई खुदाई में मिले ये कंकाल भालू के लग रहे हैं, पर इनके परीक्षण के लिए इन्हें फोरेंसिक परीक्षण प्रयोगशाला भेज दिया गया है। यह टाईगर रिजर्व 543 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है और इस पर शिकारियों की नज़रें सालों से हैं, यही कारण है कि यहां एक भी बाघ नहीं बचा है। पिछले दिनों पेंच से एक बाघ यहां स्थानान्तरित किया गया था, वह भी कालर आईडी के साथ। मजे की बात यह है कि कालर आईडी वाला यह बाघ भी जंगल में कहीं खो गया। यह है बाघ संरक्षण वर्ष में हिन्दुस्तान के हृदय प्रदेश का हाल। 

पुच्छल तारा
आर्कमिडीज के सिद्धान्त तो सभी ने पढे होंगे पर 21वीं सदी में इसकी नई प्रकार से व्यख्या की गई है। नागपुर से स्वाति तिवारी ने ई मेल भेजा है -``जब दिल पूरी तरह या आंशिक तौर पर किसी लडकी के प्यार में डूब जाता है तो पढाई में हुआ नुकसान, लडकी की याद में बिताए गए समय के बराबर होता है।``

रविवार, 21 मार्च 2010

अरूण शोरी पर नज़रें तरेरीं आडवाणी ने

अरूण शोरी पर नज़रें तरेरीं आडवाणी ने
अपने यस मेन्स को टीम गडकरी में फिट करने के बाद अब निशाने पर शौरी
कांग्रेस से पींगे बढाने में लगे हैं शौरी
(लिमटी खरे)
 
नई दिल्ली 21 मार्च। संघ की मंशा पर भले ही अपेक्षाकृत युवा नितिन गडकरी को भाजपा की कमान मिल गई हो, और आडवाणी को नेता प्रतिपक्ष से हटाकर पाश्र्व में ढकेलने का प्रयास चल रहा हो, पर आडवाणी तो आडवाणी हैं, उन्होंने टीम गडकरी में अपने चहेतों को स्थान दिलवा ही दिया, भले ही वे रीढ विहीन क्यों न हों। इस आपरेशन से फारिग होने के बाद अब आडवाणी के निशाने पर संपादक से राजनेता बने अरूण शोरी पूरी तरह आ चुके हैं। आडवाणी और उनके समर्थको ने अब शौरी को राज्य सभा के रास्ते संसद में प्रवेश के रास्ते बन्द करने की कवायद आरम्भ कर दी है।
टीम गडकरी के नए नवेले प्रवक्ता बने पांचजन्य के संपादक तरूण विजय और राजग के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी के बीच अन्तरंगता किसी से छिपी नहीं है। एक ओर तरूण विजय ने खुलकर आडवाणी को बेक किया था, तो आडवाणी ने भी तरूण विजय के संक्रमण काल में उनका पूरा साथ दिया। जब पांचजन्य के संपादक के तौर पर काम करते हुए तरूण विजय पर घोटालों के आरोप लगे थे, तब तत्कालीन संघ प्रमुख सुदर्शन ने उन्हें वहां से चलता कर दिया था। आडवाणी ने उस वक्त अपना याराना निभाते हुए तरूण विजय को श्यामा प्रसाद मुखर्जी ट्रस्ट का निदेशक बनवा दिया।
आडवाणी के करीबी सूत्रों का कहना है कि वे चाहते थे कि संजय जोशी टीम गडकरी का हिस्सा न बन पाएं सो उन्होंने वह कर भी दिखाया। संजय जोशी के नाम के आते ही उनकी एक कथित सीडी की बात जोर शोर से पार्टी के अन्दर उछाल दी गई। इसी तरह शौरी से नाराज आडवाणी अब चाहते हैं कि शौरी के स्थान पर तरूण विजय को राज्य सभा के रास्ते भेजा जाए। आडवाणी भले ही तरूण विजय को उपकृत करना चाह रहे हों पर संघ और भाजपा के आला नेताओं के पास तरूण विजय के घपले घोटालों का कच्चे चिट्ठे का पुलिन्दा पहुंचाया जा रहा है।
सूत्रों का कहना है कि जब आडवाणी ने पाकिस्तान जाकर जिन्ना की तारीफ में मल्हार गाया था, तब भारतीय जनता पार्टी में संजय जोशी और अरूण शोरी ही थे, जिन्होंने इसका पुरजोर विरोध किया था। बताते हैं तभी से आडवाणी ने ठान लिया था कि माकूल वक्त आने पर राजनैतिक परिदृश्य से दोनों ही नेताओं को मिटा दिया जाएगा। लगता है अब आडवाणी की हसरत पूरी होने का समय आ गया है, यही कारण है कि टीम गडकरी में संजय जोशी और अरूण शौरी दोनों ही को स्थान नहीं मिल सका है।
उधर कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केन्द्र 10 जनपथ से जो खबरें छन छन कर बाहर आ रहीं हैं, उनके अनुसार अरूण शौरी इन दिनों कांग्रेस से नजदीकी बढाने के मार्ग खोजने में लगे हुए हैं। बताते हैं चूंकि शौरी को आभास हो चुका है कि उन्हें अब भाजपा द्वारा राज्य सभा में नहीं भेजा जा सकता इसीलिए वे नई संभावनाएं भी तलाश रहे हैं। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस के मैनेजर शौरी के मामले में दो धडों में बट गए हैं, एक शोरी को कांग्रेस में लाने का हिमायती है, ताकि भाजपा पर वार आसानी से किया जा सके, वहीं दूसरे का मानना है कि कल तक कांग्रेस को पानी पी पी कर कोसने वाले शोरी को आखिर किस आधार पर कांग्रेस में लाया जाए। इसी बीच कांग्रेस की सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी को यह समझाने का प्रयास भी जोर शोर से जारी है कि ये वही अरूण शोरी हैं, जिन्होंने विश्वनाथ प्रताप सिंह के बोफोर्स के मुद्दे को जबर्दस्त हवा दी थी और राजीव गांधी को मुंह की खानी पडी थी।

शनिवार, 20 मार्च 2010

अधोसंरचना विकास में भी भांजी मारी झाबुआ पावर ने

0 घंसोर को झुलसाने की तैयारी पूरी - - - (5)
 
अधोसंरचना विकास में भी भांजी मारी झाबुआ पावर ने 
चार साल में एक फीसदी से भी कम राशि का किया प्रावधान
 
आदिवासियों के हितों पर हो रहा कुठाराघात
 
प्रदेश सरकार को कितनी मिलेगी रायल्टी!
 
(लिमटी खरे)
 
नई दिल्ली 20 मार्च। भगवान शिव का जिला माने जाने वाले मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में थापर ग्रुप ऑफ कम्पनी के प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा आदिवासी बाहुल्य तहसील घंसौर के बरेला ग्राम में प्रस्तावित 600 मेगावाट के पावर प्लांट के प्रस्ताव में क्षेत्र के अधोसंरचना विकास में भी घालमेल किया जा रहा है। कम्पनी द्वारा आदिवासियों के हितों पर सीधा डाका डालकर स्कूल, उद्यान, अस्पताल आदि की मद में भी कम व्यय किया जाना दर्शाया गया है।
गौरतलब होगा कि इस पावर प्रोजेक्ट में प्रतिदिन दस हजार टन कोयला जलाकर उससे बिजली का उत्पादन किया जाना प्रस्तावित है। झाबुआ पावर लिमिटेड की प्रोजेक्ट रिपोर्ट के अनुसार इसके लिए 300 लोगों को रोजगार दिया जाना प्रस्तावित है। इन तीन सौ लोगों में कितने लोग स्थानीय और कितने स्किल्ड और अनस्किल्ड होंगे इस मामले में कंपनी ने पूरी तरह मौन ही साध रखा है।
केन्द्रीय उर्जा मन्त्रालय के सूत्रों का कहना है कि थापर ग्रुप ऑफ कम्पनीज के प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड के इस 1200 मेगावाट के पावर प्लांट के प्रथम चरण में 600 मेगावाट का पावर प्लांट लगाया जाना प्रस्तावित है। इस पावर प्लांट में निकलने वाली उर्जा के दुष्प्रभावों को किस प्रकार कम किया जाएगा इस बारे में कोई स्पष्ट बात नहीं कही गई है। इतना ही नहीं इस काम में इतना जबर्दस्त ध्वनि प्रदूषण होगा कि यहां काम करने वाले लोगों को इयर फोन आदि का प्रयोग करना ही होगा। इसके साथ ही साथ आसपास रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोग इसके ताप को सहन कर पाएंगे कि नहीं इस बारे में कहा नहीं जा सकता है।
इस परियोजना के पूरा होने तक चार सालों में अधोसंरचना विकास हेतु महज एक करोड रूपए की राशि प्रस्तावित की गई है, जिसे बहुत ही कम आंका जा रहा है। वैसे यहां पावर प्लांट लगाने वाली कंपनी द्वारा अस्पताल, स्कूल, बाग बगीचे आदि के लिए बहुत कम राशि का प्रावधान किया गया है। जानकारों का कहना है कि इस मद में एक से पांच प्रतिशत तक की राशि का प्रावधान किया जाना चाहिए था, ताकि इस परियोजना से होने वाले दुष्प्रभावों को कम करने के मार्ग प्रशस्त किए जाकर आदिवासियों को कुछ मुआवजा ही मिल पाता।
मजे की बात तो यह है कि इस पावर प्रोजेक्ट की स्थापना हेतु मध्य प्रदेश सरकार को कितनी रायल्टी मिलने वाली है, इस बात का भी खुलासा नहीं किया गया है। गौरतलब होगा कि हाल ही में हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा उस राज्य में स्थापित होने वाले पावर प्रोजेक्ट पर जितनी रायल्टी वर्तमान में प्रस्तावित है, उससे इतर बिजली उत्पादन होने की दशा में प्रोजेक्ट से एक फीसदी की दर से अतिरिक्त रायल्टी लेने का प्रावधान किया गया है, इस राशि से पावर प्रोजेक्ट की जद में आने वाली ग्राम पंचायतों को गुलजार किया जाना प्रस्तावित है। विडम्बना यह है कि आदिवासी बाहुल्य तहसील घंसौर के ग्राम बरेला में लगने वाले इस पावर प्लांट की कुल लागत कितनी है, कंपनी को स्थानीय क्षेत्र या जद में आने वाले गावों के विकास के लिए कितने फीसदी राशि का प्रावधान किया जाना है, राज्य सरकार को कितनी रायल्टी मिलेगी या फिर बिजली उत्पादन होने पर अतिरिक्त रायल्टी कितनी मिलेगी और कब तक मिलती रहेगी, इस बारे में कोई ठोस जानकारी न तो सरकार के पास से ही मुहैया हो पा रही है, और न ही कंपनी द्वारा पारदर्शिता अपनाते हुए बताया जा रहा है।

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

वैक्सीन से मौत!

वैक्सीन से मौत! 
पोलियो की वैक्सीन को लेकर निर्मूल नहीं थीं आशंकाएं
(लिमटी खरे)
मध्य प्रदेश के दमोह जिले में खसरे की वैक्सीन से चार बच्चों की मौत की खबर दर्दनाक और अफसोसजनक ही है। इस मामले को स्थानीय स्तर के बजाए व्यापक और राष्ट्रीय स्तर पर ही देखा जाना चाहिए। एक तरफ सरकार द्वारा पोलियो मुक्त समाज का दावा किया जा रहा है, वहीं जीवन रक्षक वैक्सीन ही अगर जानलेवा बन जाए तो इसे क्या कहा जाएगा। वैसे भी पल्स पोलियो अभियान बहुत ज्यादा सफल नहीं कहा जा सकता है। अफवाहें तो यहां तक भी हैं कि पोलियो की दवा पीने वाले बच्चे योनावस्था में सन्तान उतपन्न करने में अक्षम होते हैं। सरकार के दावों और प्रयासों तथा चिकित्सकों के परामर्श के बाद भी समाज का बडा वर्ग इसके प्रति उत्साहित नज़र नहीं आता है। इन परिस्थितियों में अगर वैक्सीन पीने से बच्चों की मौत की खबर फिजां में तैरेगी तो इसका प्रतिकूल असर पडना स्वाभाविक ही है।
आज देश में पोलियो का घातक रोग रूकने का नाम नहीं ले रहा है। वैसे पिछले कुछ सालों के आंकडे ठीक ठाक कहे जा सकते हैं, पर इन्हें सन्तोषजनक नहीं माना जा सकता है। सत्तर से अस्सी के दशक में तो हर साल दो से चार लाख बच्चे अर्थात देश में रोजाना पांच सौ से एक हजार बच्चे इस दानव का ग्रास बन जाते थे। आज यह संख्या प्रतिवर्ष चार सौ से कम ही कही जा सकती है। चिकित्सकों की राय मेें पोलियो के 1,2 और 3 विषाणु इसके संक्रमण के लिए जवाबदार माना गया है। इस विषाणु से संक्रमित बच्चों में महज एक फीसदी बच्चे ही लकवाग्रस्त होते हैं। सवाल यह नहीं है कि लकवाग्रस्त होने वाले बच्चों का प्रतिशत क्या है, सवाल तो यह है कि यह घातक विषाणु नष्ट हो रहा है, अथवा नहीं।
1988 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के आव्हान पर दुनिया भर के 192 देशों ने पोलियो उन्नमूलन का जिम्मा उठाया था। आज 22 साल बाद भी इस अभियान के जारी रहने का तात्पर्य यही है कि 22 सालों में भी इस विषाणु को समाप्त नहीं किया जा सका है। जाहिर है इसके लिए प्रभावी वैक्सीन की आज भी दरकार ही है। वैक्सीन से बच्चे के अन्दर पोलियो के विषाणु पनपने की क्षमता समाप्त हो जाती है, किन्तु अगर एक भी बच्चा छूटा तो वैक्सीन धारित बच्चे के अन्दर भी विषाणु पनपने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है।
भारत सहित पाकिस्तान, नाईजीरिया और अफगानिस्तान जैसे देशों को छोडकर अन्य सदस्य देशों ने 2005 में अपना निर्धारित लक्ष्य पूरा कर लिया था, किन्तु भारत जैसे देश में लाल फीताशाही के चलते यह अभियान परवान नहीं चढ सका। भारत टाईप 2 के विषाणु का सफाया कर चुका था, किन्तु उत्तर प्रदेश और बिहार से एक बार फिर पोलियो के विषाणुओं के अन्य सूबों में फैलने के मार्ग प्रशस्त हो गए। यहां तक कि बंगलादेश, सोमालिया, इण्डोनेशिया, नेपाल, अंगोला आदि समीपवर्ती देशों में पोलियो का जो वायरस पाया गया वह उत्तर प्रदेश के रास्ते इन देशों में पहुंचा बताया गया है।
पिछले साल देश में पोलियो के 610 मामले प्रकाश में आए थे। इनमें सबसे अधिक 501 उत्तर प्रदेश, 50 बिहार, 16 हरियाणा, 13 उत्तरांचल, 7 पंजाब, 6, दिल्ली, 5 महाराष्ट्र के अलावा तीन तीन गुजरात और मध्य प्रदेश, असम में दो तथा चण्डीगढ, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल और झारखण्ड में एक एक मामला प्रकाश में आया था। देश की स्वास्थ्य एजेंसियां दावा करती आ रहीं थीं कि 2010 के आते ही देश पोलियो से पूरी तरह मुक्त हो जाएगा। 2010 आ भी गया और पोलियो का साथ चोली दामन सा दिख रहा है। केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मन्त्रालय की एक नोडल एजेंसी के प्रतिवेदन के अनुसार त्रिपुरा के एक जिले में तो 95 फीसदी तो देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में चालीस फीसदी बच्चे खुराक पीने का चक्र ही पूरा नहीं कर पा रहे हैं।
पोलियो के दानव के इस घातक रूप के बावजूद भी न तो केन्द्र और न ही राज्यों की सरकरों की नीन्द टूटी है। मध्य प्रदेश के दमोह जिले में खसरे की वैक्सीन से चार बच्चों की मौत के बाद अब लोगों का वैक्सीन पर से भरोसा उठना स्वाभाविक ही है। दरअसल दमोह जिले में पिछले साल खसरे से अनेक बच्चों की मौत हुई थी, इसीलिए इस साल सावधानीवश बच्चों को खसरे की वैक्सीन देने का काम व्यापक स्तर पर किया गया। सभी अपने आंखों के तारों को खसरे से बचाने के लिए वैक्सीन पिलवाने गए। इनमें से कुछ बच्चों की तबियत बिगडी और उनमें डायरिया के लक्षण दिखने लगे। बताते हैं कि यह सब एक ही केन्द्र पर हुआ। इसके बाद बच्चों को अस्पताल में दाखिल कराया गया। इनमें से तीन की उसी रात तो एक की अगली सुबह मृत्यु हो गई।
इसके बाद जिम्मेदारी हस्तान्तरण और थोपने का अनवरत सिलसिला जारी है। मध्य प्रदेश सरकार का यह नैतिक दायित्व बनता है कि वह इस मामले की गहराई से छानबीन कर जिम्मेदारी किसकी थी, इसका पता करे। अब तक का इतिहास साक्षी है कि जब भी कोई जांच की या करवाई जाती है, तो उसमें लीपा पोती कर दी जाती है। यह मामला आम आदमी से जुडा हुआ है। इसमें गांव के निरक्षर ग्रामीण का विश्वास डिग सकता है। केन्द्र और राज्य सरकारें कहने को तो आम आदमी के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही ज्यादा संजीदा होने का स्वांग रचती हैं, पर इस मामले में उन्हें पूरी ईमानदारी से संजीदगी दिखानी ही होगी, वरना गांव के आम आदमी का आने वाले दिनों में महात्वाकांक्षी सरकारी स्वास्थ्य योजनओं पर से विश्वास उठ जाएगा और वह सरकारी अस्पताल या चिकित्सक के पास जाने के बजाए एक बार फिर नीम हकीमों के हत्थे ही चढ जाएगा।