सोमवार, 29 अप्रैल 2013

सोशल मीडिया में सिवनी विधायक की तलाश आरंभ


सोशल मीडिया में सिवनी विधायक की तलाश आरंभ

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। सोशल मीडिया इन दिनों सर चढ़कर बोल रहा है। सिवनी में भी इसका जादू देखने को मिल रहा है। सोशल नेटवर्किंग वेब साईट फेसबुक पर अब सिवनी के विधायक को खोजना आरंभ कर दिया गया है। अब तक विधायक और सांसदों के कामकाज की भी फेसबुक पर समीक्षा होना आरंभ हो जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
प्राप्त जानकारी के अनुसार छः कंडिकाओं से युक्त एक जानकारी फेसबुक पर सिवनी के युवा ना केवल जमकर शेयर कर रहे हैं, वरन् इसमें कंमेंट्स की तादाद भी बहुतायत में है। सिवनी के विधायक को लेकर लोगों की प्रतिक्रियाएं और सुझाव भी मांगे जा रहे हैं।
फेसबुक पर पड़े एक स्टेटस में सिवनी विधानसभा कि टिकट भाजपा से किसे दिया जाना चाहिए जो कम से कम निम्न योग्यताएं लिए हुए हो
1.          ईमानदार
2.         दिलेर
3.         अधिकारियों पर नकेल कसने में सक्षम, जरुतर पढ़ने पर अधिकारियों की एैसी तैसी करने मे सक्षम
4.         चमचों से घिरा न रहे
5.         लोगों से आसानी से मिलने जुलने वाला
6.         अन्य योग्यताएं अन्य लोग बताएं एवं नाम भी सुझाएं
इसको देखकर जिले भर में मिली जुली प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। ज्ञातव्य है कि सोशल मीडिया की ताकत को अब नकारा नहीं जा सकता है। मीडिया को भले ही विज्ञापनों के माध्यम से मैनेज करने और पेड न्यूज की खबरें आम हो रही हों पर देश भर में सोशल मीडिया की क्रांति से सभी वाकिफ हैं। यहां तक कि देश के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और मध्य प्रदेश के अनेक जिलों के जनसंपर्क कार्यालय भी जारी होने वाले समाचारों को फेसबुक पर फेसबुक शेयर करते नजर आ रहे हैं।

सराफा बाजार हुआ गुलजार!


सराफा बाजार हुआ गुलजार!

(विपिन सिंह राजपूत)

सिवनी (साई)। कैसा आश्चर्यजनक किंतु सुखदायक समय वर्तमान बाजार में परिलक्षित हो रहा है, परन्तु इस सभी में मध्यम वर्ग की सीमा तक ही उथल-पुथल है। बाजार भीड़ भरे हो चले हैं, खासकर महिला ग्राहकों के घोर उतावलेपन के कारण।
जी हां ग्राहकों की यह रेलमपेल और कहीं नहीं बल्कि सराफा बाजारों में है। जहां एक ओर आलू, प्याज, टमाटर, जैसी रोजमर्रा की सब्जियों के दाम लगातार उछाल पर हैं, वहीं सभी प्रकार की बाजारी वस्तुओं का राजा माने जाना वाला सोना अपनी मॅुंहचढ़ी कीमतों को छोड़ नीचे की ओर जा रहा है।
एक तो लग्नसरा की खरीददारी उपर से सोने का आकर्षण घटी दरों पर सोना खरीदने की सक्षम वर्ग की महिलाओं में होड़ मची है। आलम यह है कि सराफा बाजार और दुकानों में ग्राहकों की भारी संख्या को देखते हुए पुलिस प्रशासन ने भी अतिरिक्त पुलिस कर्मी यहां सुरक्षा की दृष्टि से तैनात कर दिए हैं।
आइए देखते हैं कि सोने की कीमतों का नाटकीय बदलाव जो कि सिवनी सराफा बाजार के आंकड़ों पर आधारित हैं- एक समय सोने की कीमतें रिकार्ड तोड़ ऊंचाई पर पहंचते हुए 32000 प्रति तोला तक पहंच गई थी जो अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मंदी के चलते इस समय रु.25000 प्रति तोला के स्तर के आस-पास पहुंच गई है।
सोना आदि काल से ही आकर्षण के साथ-साथ शक्ति का प्रतीक भी रहा है। जब मुद्रा का चलन नहीं हुआ करता था उस समय सोना ही वस्तुओें के विनिमय का माध्यम हुआ करता था। सोने के संग्रहण को लेकर विभिन्न राज्यों में खूनी युद्ध हुआ करते थे। कालांतर में मुद्रा का चलन आरंभ हुआ पर बावजूद इसके सोने का आकर्षण कम नहीं हुआ बल्कि बाजारों के चलने वाला स्त्रियों का सर्वाधिक चहेता बन यह तिजारियों में बंद हो गया।
सोने की चमक सभी को सदा से ही आकर्षित करती है। इसी आकर्षण के कारण लोग अधिक से अधिक सोना खरीदना चाहते हैं। यह चाहत तब और बढ़ जाती है जब कभी सोने की कीमत में अचानक थोड़ी भी गिरावट आती है। लोग इसे मौका मान इसका लाभ उठाना चाहते हैं।
आज कल बाजार में यही स्थिति है, सोने की कीमत में कमी आई है। सोने का आकर्षण तो आकर्षण है भले ही उसके बारे में कुछ भी क्यांे न कहा जाए जैसा आम तौर पर लोग बाग कहा करते हैं ‘‘चैन से सोना है तो सोने को कहें नो ‘‘। अधिकतर पौराणिक ग्रंथों में भी इसी बात को कई तरह से कहा गया है कि सोने की खरीददारी से जितनी खुशी नहीं होती उससे अधिक चिंता बढ़ जाती है। हमेशा यह चिंता सताए रहती है कि सोना कहीं चोरी न हो जाए। वहीं महान कवि रहीम ने लिखा है ‘‘कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय। वा खाए बौराए नर, वा पाए बौराए ..........
शास्त्र, पुराण, ऋषि-मुनि, चाहे जो कहें पर सोना आज भी सर्वोच्च पायदान पर बैठा हुआ है और स्त्रियों के लिए सौतिया डाह का कारक है। जो भी हो सराफा में आई सोने के मूल्यों में गिरावट ने खरीददारों को इसकी ओर तेजी से बड़ी संख्या में आकर्षित किया है। बाजारों की भीड़-भाड़ सोने की भारी लिवाली का संकेत दे रही है।

पेंच में पकड़ाया हाईटेक सट्टा!


पेंच में पकड़ाया हाईटेक सट्टा!

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। आईपीएल क्रिकेट का हाईटेक सट्टा आज पेंच नेशनल पार्क के टुरिया क्षेत्र में स्थित एक रिसोर्ट में पकड़ाने की खबर है। यद्यपि कुरई पुलिस ने इसकी पुष्टि नहीं की है पर सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि पुलिस के सेंट्रल स्कॉड ने तीन आरोपियों केा सात हजार रूपए के साथ धर दबोचा गया है।
पुलिस सूत्रों ने साई न्यूज को बताया कि आज टुरिया क्षेत्र के जंगल होम रिसोर्ट में तीन लोग आईपीएल क्रिकेट मैच पर सट्टा लगा रहे थे। मुखबिर सूचना के मिलने पर पुलिस के सैंट्रल स्कॉड ने वहां दबिश दी और आरोपियों को सट्टा खिलाते हुए पकड़ा। सूत्रों ने आगे बताया कि पुलिस ने इस होटल से दो दर्जन से ज्यादा मोबाईल, लेपटॉप, एलसीडी स्क्रीन एवं सात हजार रूपए नकद बरामद किए हैं।
वहीं दूसरी ओर कुरई पुलिस के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि बरघाट के अनुविभागीय अधिकारी पुलिस मोहन सिंह पटेल के नेतृत्व में सहायक उपनिरीक्षक श्री जाटव के साथ दल बल इस सूचना पर टुरिया की ओर रवाना हो चुका है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक पुलिस दल वापस नहीं लौटा है।
ज्ञातव्य है कि सिवनी जिले में क्रिकेट विशेषकर आईपीएल के दौरान इस पर करोड़ों के सट्टा खेले और खिलाए जाने की खबरें आम हो चली हैं। शहर के सभ्रांत परिवारो के युवा इसमें फंसकर उधारी के दलदल में फंसते जा रहे हैं।

अपराधियों के लिए शरण स्थली बना सिवनी!


अपराधियों के लिए शरण स्थली बना सिवनी!

(लिमटी खरे)

मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सीमा पर अवस्थित भगवान शिव के नाम पर बसे सिवनी के निवासी अब अपने आप को महफूज महसूस नहीं कर रहे हैं। पिछले आधे दशक में ही जो घटनाएं यहां घटी हैं उनसे नागरिकों में भय का वातावरण बन गया है। एक के बाद एक घटनाओं ने साबित कर दिया है कि जिन्दा बम के मुहाने पर ही बैठा है सिवनी जिला। नेशनल हाईवे पर होने के कारण वारदात कर यहां से भागना भी बहुत ही आसान होता है। जब तक मामले की सूचना पुलिस को मिलती है तब तक अपराधी कई किलोमीटर की दूरी नाप चुका होता है।
अस्सी के दशक के आगाज के पूर्व धूमा डकैती कांड जिसमें अमर सिंह और सज्जाद को फांसी हुई थी याद प्रोढ़ होती पीढ़ी को अवश्य ही होगी। इसके बाद वारदातें हुईं हैं, पर इन वारदातों को छिटपुट की संज्ञा दी जा सकती है। इसके बाद संध्या जैन मर्डर केस और परवेज भाई मर्डर केस, भोमा टोला रेप काण्ड आदि के बाद एक बार फिर सिवनी में शांति छा गई थी। फिर एकाएक उंट काण्ड का शोर हुआ।
इसके उपरांत अचानक ही बुधवारी बाजार के करीब पुराने दरोगा मोहल्ला में एक व्यक्ति के बम धमाकों में चिथड़े उड़ गए। कहते हैं, बोहरा समुदाय का असगर घर में ही बारूद बना रहा था। वह तो उपर वाले की नियामत थी कि कोई अनहोनी नहीं घटी, वरना उसी वक्त आधी बुधवारी तबाह हो जाती। इसी तरह मुंबई के एक टेक्सी चालक का शव मारकर लखनवाड़ा थाना क्षेत्र में फेंक दिया गया था, जिसके बारे में पता बाद में चला। उस दौरान तत्कालीन एसपी मीना़क्षी शर्मा का कहना था कि चूंकि यह हाईवे पर है अतःि यहां अपराध कर भागना आसान है। सिवनी में दक्षिण भारत से आए भानुकिरण ने सिवनी में ना केवल अपना राशन कार्ड बनवाया वरन वह सिवनी के लोगों से खसा घुल मिल गया था। कहते हैं भानु किरण पर हत्या के मुकदमे हैं।
इस साल फरवरी माह में अचानक ही सिवनी की परिस्थितियों और फिजां में जहर घुला और कर्फयू के साए में लोग घरों में दुुबके रहे। आश्चर्य तो इस बात पर हुआ जब यह पता चला कि 08 फरवरी को सिवनी में समाचार पत्र नहीं बंटे, और तो और मीडिया को भी शाम चार बजे तक घर से निकलने की इजाजत नहीं दी गई।
पत्रकारों के हितों को साधने के लिए सिवनी में अनेक पत्रकार संगठन कार्यरत हैं। इन संगठनों ने भी शासन प्रशासन के सामने अपना मुंह नहीं खोला। किसी भी संगठन या पत्रकार ने झूठे मुंह ही इस घटना की निंदा करते हुए एक पत्र तक प्रदेश के मुख्यमंत्री या जनसंपर्क मंत्री को लिखने की जहमत नहीं उठाए। किस आधार पर माना जाए कि ये संगठन पत्रकारों का हित साध रहे हैं। क्या ये संगठन बस नाम के लिए पत्रकारों के हित साधने की बात करते हैं।
कर्फयू कांड के बाद सिवनी में एसटीएफ ने छापा मारकर लगभग डेढ़ सौ जिंदा बम और दो माउजर बरामद किए। पुलिस सूत्र तो यहां तक दावा करते हैं कि होलिका दहन के दिन भी पुलिस को लगभग पचास बम मिले। इसमें एक मास्टर माईंड को एकता कालोनी से धर दबोचा गया। कुछ लोग हड्डी गोदाम में पकड़ाए। कहते हैं बम कांड का सरगना एक डेढ़ माह से एसटीएफ के सर्वलेंस में था। उसके तार उपर तक कहां तक जुड़े हैं यह बात तो भगवान ही जाने, पर सिवनी के लिए खतरे की घंटी अवश्य ही बन गई है।
सिवनी में केंद्र और प्रदेश सरकार की अनेक योजनाएं संचालित हो रही हैं। इन योजनाओं का काम मध्य प्रदेश के बाहर से आए ठेकेदारों द्वारा लिया गया है। ये ठेकेदार अपने साथ पूरा लाव लश्कर लेकर आते हैं। इन ठेकेदारों के कर्मचारियों में असमाजिक तत्वों का होना आम बात है क्योंकि परदेस में जब कोई विपदा आती है तो ये असमाजिक तत्व ही इनके तारण हार बनते हैं। स्थानीय स्तर पर नेतागिरी और अन्य दबावों को ये ठेेकदार कुछ प्रपंच तो कुछ धनबल के माध्यम से निपटाते हैं, शेष मामलों में इनके साथ आए चमत्कारी कारिंदे ही खेल दिखाते हैं।
यही देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर विकासखण्ड में लगाए जा रहे पावर प्लांट के अंदर काम करने वाले कर्मचारी भी किस प्रात के और किस तासीर के हैं यह कहा नहीं जा सकता है। उनमें से कितनों का आपराधिक रिकार्ड है यह भी किसी को नहीं पता। इस संयंत्र में काम करने वाले ठेकेदारों के बारे में भी किसी को पता नहीं है।
यह संयंत्र वर्ष 2008 से आरंभ हुआ है। तबसे अब तक यहां पदस्थ रहे पुलिस कर्मियों ने ना तो संयंत्र प्रबंधन और ना ही ठेकेदारों से अपने यहां काम करने वालों की कोई सूची बुलवाई ना ही कोई पता साजी करने का प्रयास किया है। एसा नही कि घंसौर थाने में संयंत्र प्रबंधन के लोगों का आना जाना ना हो। लगभग दो दर्जन लोग तो अब तक यहां चिमनी के निर्माण का काम करते करते ही चिमनी से गिरकर दम तोड़ चुके हैं। इन मजदूरों का मर्ग घंसौर थाने में अवश्य ही कायम हुआ होगा।
मृतक कहां के निवासी थे यह बात तो पुलिस के रिकार्ड में दर्ज होगी पर यह बात कि वह आया तो उसकी आमद या मुसाफिरी दर्ज क्यों नहीं है इस बारे में पुलिस के आला अधिकारियों ने पूछने की जहमत नहीं उठाई। घंसौर में एक अबोध दुधमुंही के साथ हुई दुष्कर्म की घटना पुलिस को आईना दिखाने के लिए पर्याप्त मानी जा सकती है। पुलिस प्रशासन को चाहिए कि वह यहां पदस्थ रहे संबंधित पूर्व अधिकारियों के इस कृत्य के लिए पुलिस मुख्यालय को आवगत अवश्य करवाएं। साथ ही भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो इसके लिए भी वक्त रहते माकूल कदम उठाए। लगता नहीं है कि फिरोज द्वारा किए गए दुष्कर्म के उपरांत भी पुलिस प्रशासन ने कोई सबक लेकर संयंत्र प्रबंधन की मश्कें कसीं होंगी। यह काम बहुत मुश्किल प्रतीत होता है क्योंकि इसमें राजनैतिक संरक्षण प्राप्त लोग अपना हित साध रहे हैं, इसलिए कार्यवाही निष्पक्ष और त्वरित शायद ही हो।

रविवार, 28 अप्रैल 2013

झाबुआ पावर में अघोषित तालाबंदी, मजदूर ठेकदारों का हुआ पलायन


झाबुआ पावर में अघोषित तालाबंदी, मजदूर ठेकदारों का हुआ पलायन

(संजीव प्रताप सिंह)

सिवनी (साई)। जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर विकासखण्ड में देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा डाले जाने वाले कोल आधारित पावर प्लांट के कथित कर्मचारी फिरोज द्वारा चार साल की दुधमुंही बच्ची के साथ किए गए दुष्कर्म के उपरांत अब भी वहां आक्रोश प्रस्फुटित हो रहा है जिसके परिणाम स्वरूप पावर प्लांट के अधिकांश ठेकेदार और कर्मचारी भाग खड़े हुए हैं।
ठेकेदारों और कर्मचारियों के वहां से भाग जाने से पावर प्लांट का काम ठप्प हो गया है। संयंत्र प्रबंधन के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑॅफ इंडिया को बताया कि इस साल मार्च में पावर प्लांट में बिजली का उत्पादन आरंभ हो जाना चाहिए था, जो अब तक नहीं हो सका है। वहीं संयंत्र के रविंद्र सिंह ने साई न्यूज को बताया कि इस साल के अंत तक पावर प्लांट में काम आरंभ होने की उम्मीद जताई जा रही थी, जो इन परिस्थितियों में अब आरंभ होता नहीं दिख रहा है।
ज्ञाततव्य है कि 17 अप्रैल को घंसौर में झाबुआ पावर प्लांट में वेल्डर का काम करने वाले फिरोज खान के द्वारा 04 वर्षीय मासूम के साथ कृत्य करने के बाद अब झाबुआ पावर प्लांट की परेशानी बढऩा शुरू हो गई है। स्थानीय सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि क्षेत्रीयजनों का आक्रोश को देखते हुए बाहर से आए मजदूर काम छोड़कर जाने लगे हैं, जिसके चलते वत्रमान में झाबुआ पावर प्लांट का कार्य अवरूद्ध पड़ा है।
वहीं सूत्रों की माने तो वहशी दरिंदे की दरिंदगी के बाद फिरोज जिस कंपनी में काम कर रहा था, उस कंपनी के ऊपर एफआईआर दर्ज हो सकती है। बताया जाता है कि उक्त कंपनी ने बगैर वेरीफिकेशन के उक्त व्यक्ति को भर्ती किया था। फिरोज के जैसे और भी कर्मचारी और मजदूर हो सकते हैं, जिसे पुलिस विभाग अब गंभीरता से ले रहा है।
अब भी गंभीर है मासूम
लगभग 10 दिनों से जिंदगी और मौत के बीच केयर अस्पताल नागपुर में संघर्ष कर रही मासूम गुडिय़ा आज भी वेंटीलेटर में है। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के नागपुर ब्यूरो से आशीष कौशल ने अस्पताल सूत्रों के हवाले से बताया कि घंसौर की मासूम अब भी वेंटीलेटर में है और उसे वेंटीलेटर से निकलना घातक हो सकता है। वहीं मासूम के लिये सड़कों में उतरकर उसके हक की बात करने वाले लोग अपने अपने स्तर से बच्चे के लिये दुआएं कर रहे हैं।

राहुल की कांग्रेस और क्षत्रपों की हकीकत!


राहुल की कांग्रेस और क्षत्रपों की हकीकत!

(लिमटी खरे)

कांग्रेस की नजरों में भविष्य के वजीरो आज़म राहुल गांधी मध्य प्रदेश दौरे के दरमियाान कांग्रेस के सिपाहियों से रूबरू हुए। मध्य प्रदेश कांग्रेस में व्याप्त गुटबाजी पर राहुल गांधी ने दो टूक राय व्यक्त की है। राहुल ने गुटबाजी करने वाले नेताओं को जमकर नसीहत दी है। बाहरी उम्मीदवारों को कांग्रेस मौका नहीं देगी और दो से अधिक बार चुनाव हारे नेता टिकिट की उम्मीद ना करें। राहुल ने नेताओं को आईना दिखा दिया कि पहले स्थानीय निकाय के चुनावों में परचम लहराओ फिर सांसद विधायक की टिकिट की दावेदारी करो। राहुल ने साफ कर दिया कि मध्य प्रदेश में छः या सात क्षत्रप टिकिट का फैसला नहीं करेंगे। कांतिलाल भूरिया, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कमल नाथ, सुरेश पचौरी, अरूण यादव का बाकायदा नाम लेते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस किसी की बपौती नहीं है। इस दरमियान राहुल गांधी के समक्ष सिवनी के कांग्रेस के नेताओं ने अपनी पीड़ा का जमकर इजहार किया।
राहुल के इन तेवरों के उपरांत इसी परिपेक्ष्य में सिवनी जिला कांग्रेस में अगर झांक कर देखा जाए तो अन्य दलों या निर्दलीय के बतौर अच्छा परफारमेंस दिखाने वाले युवा नेताओं को घोर निराशा का ही सामना करना पड़ेगा क्योंकि जोड़ तोड़ की राजनीति के चलते कांग्रेस के नेताओं को पिछले दरवाजे से सहयोग कर अपना सिक्का जमाकर कांग्रेस के खाते से विधानसभा टिकिट की जुगत में लगे नेताओं की आशाओं पर राहुल गांधी का यह फैसला तुषारापात ही करेगा। भले ही कांग्रेस के जिला स्तर के आला नेता अब इन नेताओं को वक्त का इंतजार करो, हम रास्ता निकालेंगे, कहकर दिलासा दिलवाएं, पर यह बात भी सत्य है कि अगर किसी बाहरी उम्मीदवार को कांग्रेस द्वारा मैदान में उतारने का मन बनाया जाता है तो राहुल गांधी की इस घोषणा को ढाल बना दिया जाएगा।
जहां तक रही दो से अधिक बार चुनाव हारने वाले नेताओं को टिकिट ना देने की बात तो सिवनी में एक भी नेता ऐसा नहीं है जो दो से ज्यादा बार चुनाव हारा हो। इस लिहाज से अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आशुतोष वर्मा, राजकुमार खुराना और प्रसन्न चंद मालू स्वाभाविक तौर पर सिवनी विधानसभा से एक बार फिर अपनी सशक्त उम्मीदवारी जता सकते हैं। यह बात भी सत्य है कि इन तीनों ही नेताओं को चुनाव जनता ने नहीं हरवाया है, कांग्रेस के भीतराघात से इन्हें पराजय झेलनी पड़ी है। सिवनी विधानसभा में शहरी मतदाताओं की तादाद बेहद ज्यादा है, शहरी क्षेत्र में पढ़े लिखे प्रबुद्ध वर्ग के बीच इन तीनों की छवि अच्छी है, फिर इनकी हार के कारणों को तीनों ने खोजा होगा और पाया होगा कि कांग्रेस ने ही उन्हें हरवाया है।
मध्य प्रदेश में चंद नेताओं की गणेश परिक्रमा कर नेता अपनी टिकिट पुख्ता कर लेते हैं। राहुल गांधी के सामने यह जमीनी हकीकत गई यह एक अच्छा संकेत है कि उन्होंने साफ कह दिया कि कांग्रेस किसी की बपौती नहीं है। यह बोलते हुए उन्होंने कांतिलाल भूरिया, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कमल नाथ, सुरेश पचौरी, अरूण यादव का नाम लिया। इससे लगता है कि राहुल गांधी की खुफिया टीम ने उन्हें मध्य प्रदेश के जमीनी हालातों से रूबरू करवा दिया है। सभी क्षत्रपों ने अपना अपना क्षेत्र बांटा हुआ है। सभी को अपनी चिंता है, कांग्रेस के बारे में कोई सोच भी नहीं रहा है। होना यह चाहिए कि हर क्षत्रप को उसके क्षेत्र की जवाबदेही सौंप दी जाए। अगर वह अपने क्षेत्र में कांग्रेस को जिताकर लाता है तब ही उसे केंद्र या प्रदेश में संगठन अथवा सत्ता में पद दिया जाए। इससे कांग्रेस का जमीनी आधार तैयार होगा।
वर्तमान में नेताओं की सोच बन चुकी है कि सिर्फ और सिर्फ खुद को विजयी बनवाया जाए, अगर दूसरा विधायक या सांसद उनके क्षेत्र में जीत गया तो उनके पास केंद्रित पावर सेंटर बंटकर कमजोर हो जाएगा। यही कारण है कि कांग्रेस के क्षत्रप खुद तो चुनाव जीत जाते हैं पर उनके प्रभाव वाले क्षेत्र में कांग्रेस औंधे मुंह गिरी नजर आती है। मध्य प्रदेश कोटे से वर्तमान में ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमल नाथ केंद्र में मंत्री हैं। 2004 से ये दोनोें लगातार मंत्री हैं। राहुल गांधी को चाहिए कि इनसे पूछे कि इन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र के अलावा प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए कितने दौरे किए, कितनी जनसभाएं की, कितने कार्यकर्ताओं से जाकर प्रदेश में कांग्रेस की जानकारी ली। निश्चित तौर पर राहुल अगर ऐसा करते हैं तो उनके सामने निराशाजनक परिणाम ही सामने आने की उम्मीद है, क्योंकि सभी जानते हैं कि प्रदेश कोटे से केंद्र में मंत्री बने नेताओं ने प्रदेश से पूरी तरह बेरूखी वाला रवैया ही अख्तियार किया हुआ है।
सिवनी जिला जो कभी कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, अब वहां कांग्रेस का नामलेवा भी नहीं बचा है। अस्सी के दशक की समाप्ति पर सिवनी की झोली में आया संसदीय क्षेत्र भी परिसीमन में षड़यंत्र के तहत छीन लिया गया और सिवनी के कांग्रेस के नेताओं ने मौन ही साधा हुआ है। सिवनी में पांच से चार विधानसभा क्षेत्र बचे हैं, जिनमें एक पर ही कांग्रेस का परचम लहरा रहा है। आखिर क्या कारण है कि कांग्रेस एक विधानसभा सीट तक ही सिमटकर रह गई है। आखिर क्या कारण है कि लखनादौन नगर पंचायत के चुनाव में कांग्रेस ने एक निर्दलीय को वाकोवर दे दिया था? क्या कारण है कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार और सिवनी मण्डला संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस के बसोरी सिंह मसराम के सांसद रहने के बाद भी बड़ी रेल लाईन के बारे में उन्होंने कोई पहल नहीं की? क्या कारण है कि 2008 से रूका फोरलेन का काम आरंभ करवाने सांसद ने लोकसभा में कोई प्रश्न नहीं किया। क्या कारण है कि सिवनी जिले में भाजपा के विधायको के अनेक मामले उछलने के बाद भी विधानसभा में एक भी मामला नहीं गूंजा? कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस और भाजपा के सांसद विधायक मिलकर जनता के सामने नूरा कुश्ती खेल रहे हों? जनता अगर जागी तो निश्चित तौर पर इस साल के अंत में वह इन नेताओं को हकीकत से दो चार करवा सकती है।

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

एमपी महाराष्ट्र बार्डर खवासा पर लगता जाम!


एमपी महाराष्ट्र बार्डर खवासा पर लगता जाम!

 (लिमटी खरे)

मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित है खवासा ग्राम, जहां मध्य प्रदेश सरकार के राजस्व और अफसरों के निजी खाते में जाने वाले राजस्व की प्राप्ति करोड़ों अरबों खरबों रूपयों में होती है। खवासा बार्डर सदा से ही चर्चा का केंद्र रही है। खवासा के इस बार्डर का सबसे दुखदाई पहलू यहां लगने वाला यातायात का जाम है। ट्रकों की लंबी कतारों को देखकर निजी वाहन वालों के पसीने आ जाते हैं। इस जाम के लगने के पीछे के कारणों पर अब तक ना तो किसी जिलाधिकारी ने ध्यान ही दिया है और ना ही ध्यान देने की जरूरत ही समझी है। वर्तमान जिला कलेक्टर भरत यादव ने एक साक्षात्कार में खवासा की सीमा चौकी पर छापे मारने की बात कही है जो प्रशंसनीय है।
देखा जाए तो खवासा में मुख्यतः परिवहन विभाग की जांच चौकी है जहां करोड़ों रूपयों के वारे न्यारे होते हैं। इस जांच चौकी के बारे में कहा जाता है कि यहां दक्षिण भारत सहित मध्य प्रदेश सहित देश के अनेक हिस्सों की कई ट्रांसपोर्ट कंपनियों द्वारा बाकायदा अपने माल वाहक वाहनों की सूची दी हुई है जिनसे निर्धारित से कम मात्रा में चौथ वसूली की जाती है। बाकी माल और यात्री वाहक वाहनों से हर माह चौथ वसूली के साथ ही साथ शासन द्वारा दिए गए लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उनका चालान भी काटा जाता है।
इस जांच चौकी के बारे में बताया जाता है कि यह जांच चौकी रिमोट कंट्रोल से संचालित होती है। अर्थात यहां तैनात परिवहन विभाग और पुलिस विभाग के प्रतिनियुक्ति पर आए कर्मचारियों के अलावा निजी गुंडा नुमा लोगों के द्वारा यहां सरकारी काम को अंजाम दिया जाता है। वैसे तो निजी गुर्गे जिला कलेक्टर की नाक के नीचे पंजीयक लेण्ड रिकार्ड अर्थात जहां जमीनों की खरीदी बिक्री होती है वहां भी काम करते दिख जाते हैं।
सूत्रों की बातों पर गर यकीन किया जाए तो इन निजी कर्मचारियों के हाथों में एक रिमोट घंटी का बटन होता है। सड़क पर लाल या पीली बत्ती देखते ही ये बटन दबा देते हैं और चौकी के अंदर सभी काम नियमानुसार संचालित होना आरंभ हो जाता है। बताते हैं यहां समिष और निरामिष भोजन बहत ही लजीज बनता है। यहां एक कैंटीन का संचालन भी होता है जहां शाकाहारी और मांसाहारी भोजन की माकूल व्यवस्था है। यहां यह सब कुछ निशुल्क ही है। कहा जाता है कि हर माह की चढ़ोत्री के हिसाब में इसे भी जोड़ दिया जाता है।
अगर, जिला कलेटर भरत यादव बिना सूचना के अचानक ही इस जांच चौकी में पहुंच जांए तो उन्हें सबसे पहले पिछले दरवाजे पर एक रजिस्टर रखा मिलेगा जिसमें नेताओं, पत्रकारों और प्रभावशाली लोगों के नाम और उन्हें दी जाने वाली मासिक चौथ की सूची मिल जाएगी। मेले ठेले, धरना प्रदर्शन आदि के लिए दी जाने वाली राशि का ब्योरा भी इसी पंजी में दर्ज होता है। निश्चित तौर पर यह राशि परिवहन विभाग या यहां पुलिस से प्रतिनियुक्ति पर आए कर्मचारी अपनी जेब से तो देते नहीं होंगे। जो भी दिया जाता होगा वह वाहनों के स्वामी से ही वसूला जाता होगा।
इस तरह के भ्रष्टाचार के सागर में आकण्ठ डूबी है खवासा की जांच चौकी। खवासा में इसके अलावा मंडी, विक्रय कर आदि की जांच चौकियां भी हैं। यहां जाम क्यों लगता है इस बारे में कोई भी कुछ बताने को तैयार नहीं होता है। ज्यादा पूछताछ करने पर निजी गुण्डानुमा गुर्गों द्वारा हमला तक बोल दिया जाता है। मजे की बात तो यह है कि यहां पुलिस का एक सहायता केंद्र भी स्थापित है, पर सब कुछ हो रहा है ढके मुंदे नहीं उजागर तौर पर। यहां कभी भी पूरी तैनाती नहीं मिल पाती है। इस तरह की चौकियों में ईमानदारी पूरी पूरी बरती जाती है। एक एक सिपाही या हवलदार पखवाड़े तक घर पर आराम फरमाते हैं पर उनके हिस्से में कोई समझौता नहीं होता है। कहते हैं कि यहां से गुजरने वाले वाहनों से चौथ वसूली के उपरांत उन्हें गेट पास दिया जाता है, गेट पास के पहले उनकी डायरी में चिड़िया कौआ जैसी आकृति बना दी जाती है जो हर माह अलग शक्ल की होती है जिससे यह पता चल जाता है कि उस वाहन की एंट्री उस माह के लिए हो चुकी है।
असली मरण तो आम आदमी की होती है। सिवनी जिले के विधायक और सांसदों की कर्तव्यों के प्रति अनदेखी के चलते सिवनी की स्वास्थ्य सुविधाएं जो एक समय में महाकौशल संभाग में आर्युविज्ञान कालेज जबलपुर के बाद नंबर दो पर आती थी आज खुद आईसीसीयू में पड़ी कराह रही है, नतीजतन मरीजों को छोटी मोटी बीमारी होने पर भी सिवनी के प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी जिला चिकित्सालय से नागपुर रिफर कर दिया जाता है। इसके पीछे चिकित्सकों को नागपुर के मंहगे अस्पतालों से मिलने वाला कमीशन ही बताया जा रहा है। जब मरीज नागपुर जाते हैं तो वे इस जाम में फंसकर नारकीय पीड़ा को भोगते हैं। स़क्षम लोग तो बरास्ता छिंदवाड़ा सौंसर होकर नागपुर पहुंच जाते हैं पर गरीब तो इसी रास्ते से जाने पर निर्भर हैं।
यहां यक्ष प्रश्न यह खड़ा हुआ है कि आखिर खवासा में एक साथ पचास से लेकर दो सौ ट्रकों की लाईन कैसे लग जाती है। अगर खवासा से महज दस किलोमीटर दूर महाराष्ट्र बार्डर की मानेगांव टेक चौकी से आप गुजरें तो वहां महज एकाध ट्रक ही खड़ा मिलता है। आखिर क्या वजह है कि महाराष्ट्र की जांच चौकी मिस्टर कलीन है और एमपी की जांच चौकी दागदार! मतलब साफ है कि दाल में कुछ काला है।

4 मई तक ज्यूडिशियल रिमांड पर सर्किल जेल का मेहमान बना फिरोज


4 मई तक ज्यूडिशियल रिमांड पर सर्किल जेल का मेहमान बना फिरोज

(संजीव प्रताप सिंह / नीलेश स्थापक)

लखनादौन / सिवनी (साई)। झाबुआ पावर लिमिटेड के कथित कर्मचारी फिरोज को चार मई तक के लिए ज्यूडिशियल रिमांड पर सर्किल जेल सिवनी भेजा गया है। पुलिस ने आरोपी की पुलिस रिमांड चाही थी किन्तु आरोपी को ज्यूडिशियल रिमांड दी गई है। आरोपी फिरोज आज शाम सात बजे लखनादौन के कोर्ट में पेश किया गया।
मौके पर मौजूद समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया ब्यूरो से नीलेश स्थापक और सीएनबीसी संवाददाता काबिज खान ने दूरभाष पर बताया कि आरोपी को भारी पुलिस बल के बीच लखनादौन के न्यायालय में ले जाया गया। लखन कुंवर की नगरी लखनादौन के कोर्ट के बाहर लगी भीड़ को देखकर लोगों के आक्रोश का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता था।
जैसे ही आरोपी को लेकर पुलिस कोर्ट के पास पहुंची आक्रोशित भीड़ बेकाबू हो गई और उसने जूतों चप्पल से फिरोज की पिटाई करने का प्रयास किया। महिलाएं बच्चे, नौजवान इस कदर आक्रोश मे ंथे कि पुलिस को स्थिति काबू करने में पसीना आ गया। पुलिस ने हल्के बल प्रयोग से भीड़ को दूर भगाया।
लखनादौन में कोर्ट के आसपास लगी भीड़ को देखकर इस बात का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि क्षेत्र के लोगों में इस दुधमुंही के साथ हुए दुष्कर्म से कितना आक्रोश है? वहीं जिले भर में सिवनी की गुडिया के साथ हुए दुष्कर्म की निंदा और भर्तस्ना का दौर जारी है।
ज्ञातव्य है कि देश के मशहूर उद्वद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर विकासखण्ड में एक पावर प्लांट की आधार शिला रखी जा रही है। इस पावर प्लांट के निर्माण के पूर्व हुई जनसुनवाई के दौरान संयंत्र प्रबंधन ने स्थानीय कुशल और अकुशल मजदूरों को रोजगार देने का वायदा प्रदेश सरकार से किया था।
इस पावर प्लांट में स्थानीय और महाकौशल के कांग्रेस और भाजपा के नेता नुमा ठेकेदारों ने संयंत्र प्रबंधन को बरगलाकर निर्माण कार्यों की धुरी अपने इर्द गिर्द समेट रखी है। पावर प्लांट के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि इस पावर प्लांट में मजदूरों की भर्ती एक स्थानीय नेतानुमा ठेकेदार की इजाजत के बिना नहीं होती है।
पुलिस सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि सिवनी की गुडिया के दुष्कर्म का आरोपी फिरोज इसी पावर प्लांट का कर्मचारी है जबकि पावर प्लांट के रवींद्र सिंह ने गत दिवस चर्चा के दौरान फिरोज का पावर प्लांट का कर्मचारी होने से इंकार किया था। सवाल यह उठता है कि अगर वह पावर प्लांट का कर्मचारी नहीं था तो बिहार का निवासी फिरोज आखिर घंसौर में इतने दिनों तक कर क्या रहा था?
0 स्थति में नहीं हुआ कोई सुधार सिवनी की गुड़िया की
गत 17 अप्रैल को दरिदंगी का शिकार हुई घंसौर की मासूम गुडिय़ा नागपुर के केयर अस्पताल में अब भी बेहोशी की हालत में है। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के नागपुर ब्यूरो से आशीष कौशल ने खबर दी है कि मेडिकल बुलेटिन में चिकित्सकों ने बताया कि बच्ची की हालत में किसी प्रकार का सुधार नहीं है और न ही उसे चेकअप के लिए किसी अन्य अस्पताल में ले जाया जा सकता है। लगभग 08 दिनों से बेहोशी की हालत में पड़ी मासूम गुडिय़ा का ब्रेन और हार्ट ने भी काम करना बंद कर दिया है।

कमल नाथ पर बरसीं सुषमा


कमल नाथ पर बरसीं सुषमा

(रश्मि सिन्हा)

नई दिल्ली (साई)। कल तक कमल नाथ की कार्यप्रणाली पर खुशी का इजहार करने वाली लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज के तेवर अब कमल नाथ के प्रति तल्ख होते दिख रहे हैं। चाको के इस्तीफे को लेकर शुरू हुई जंग में सुषमा सवराज ने कमल नाथ के उस बयान जिसमें कमल नाथ ने कहा कि चाको इस्तीफा नहीं देंगे पर सुषमा ने तल्ख तेवर अपनाते हुए कहा कि कमल नाथ को कोई अधिकार नहीं है कि इस तरह के बयान देने का कि जेपीसी के अध्यक्ष पी सी चाको इस्तिफा नहीं देंगें।
सोशल नेटवर्किंग वेब साईट पर दिए अपने संदेश में उन्होंने कहा कि पी सी चाको कांग्रेस के इशारे पर काम कर रहे है और कांग्रेस उन्हें बचा रही है मगर विपक्ष चाको का इस्तीफा लिए बगैर चुप नहीं बैठेगा। गौरतलब है कि जेपीसी के अध्यक्ष पीसी चाको का विपक्ष ने इस्तीफा मांगा है। जिसके बाद सुषमा का ये बयान सामने आया है।
वहीं, समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के दिल्ली ब्यूरो से राहुल अग्रवाल ने बताया कि  2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच कर रही जॉइंट पार्लियामेंटरी कमिटी (जेपीसी) के चेयरमैन पीसी चाको को पद से हटाने का दबाव बढ़ गया है। जेपीसी में शामिल विपक्षी पार्टी के सदस्यों ने लोकसभा स्पीकर मीरा सिंह को ज्ञापन सौंपकर उन्हें पद से हटाने की मांग की। विपक्षी सदस्यों का आरोप है कि चाको निष्पक्ष नहीं हैं।
जेपीसी में चाको समेत 30 सदस्य हैं। कांग्रेस से चेयरमैन चाको को मिलाकर 11, बीजेपी के छह, बीएसपी, जेडीयू और डीएमके के दो व एसपी, एआईडीएमके, एनसीपी, टीएमसी, बीजेडी, सीपीआई व सीआईएम के एक-एक सदस्य हैं। बताया जा रहा है कि चाको को छोड़ने के बाद बचे 29 में से 15 सदस्य उनके विरोध में हैं। विपक्षी सदस्य रिपोर्ट लीक होने और इसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री चिदंबरम को क्लीन चिट देने से नाराज हैं।
वहीं भाजपा के सूत्रों ने साई न्यूज को बताया कि बीजेपी की रणनीति है कि कमिटी में विपक्षी दलों के अन्य सदस्यों से तालमेल बिठाकर ऐसी स्थिति बनाई जाए कि जेपीसी पर बनी ड्राफ्ट रिपोर्ट को कमिटी ही खारिज कर दे। इस मामले में बीजेपी को विपक्ष के ज्यादातर विपक्षी सदस्यों का साथ मिलने की संभावना है, लेकिन समाजवादी पार्टी के रुख को लेकर वह आश्वस्त नहीं है।
भाजपा के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को आगे बताया कि बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने संकेत दिए हैं कि इस बार बीजेपी किसी भी हालत में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के इस्तीफे की मांग पर पीछे हटने के मूड में नहीं है। नकवी ने प्रधानमंत्री को लुटेरों का लाट साहब बताते हुए कहा है कि बीजेपी उनके इस्तीफे से कम पर कुछ भी मानने के लिए तैयार नहीं है।
चुनाव मैनेजमेंट कमिटी की बैठक में उन्होंने कहा कि बजट सत्र, इस सरकार का विदाई सत्र साबित होने जा रहा है। भले ही कांग्रेस घोटालों के घंटाघर पर खड़े होकर दोबारा जनादेश मांग रही हो लेकिन देश की जनता अब इस राष्ट्रीय बोझ को सहने के लिए तैयार नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार अपने कुशासन और लूट के लाट साहबान को बचाने में जुटी है, लेकिन वह कामयाब नहीं होगी।

पांचाली बन गए कांग्रेस के कार्यकर्ता


पांचाली बन गए कांग्रेस के कार्यकर्ता

(सुजीत श्रीवास्तव)

मोहनखेड़ा (साई)। मध्य प्रदेश के कांग्रेस के कार्यकर्ता महाभारत काल की पांचाली बनकर रह गए हैं। जी हां, यह बात आज कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के द्वारा कार्यकर्ताओं से पूछने पर सामने आई। दरअसल, राहुल गांधी ने कार्यकर्ताओं से पूछा कि कांग्रेस में कितने गुट हैं, कार्यकर्ता कुछ देर तो खामोश रहे फिर बोले पांच हैं महाराज। इसके बाद उनके बीच कानाफूसी होने लगी कि पांच नेताओं के बीच कार्यकर्ता पांचाली की तरह ही बंट रहे हैं।
आज संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के निर्वाचित प्रतिनिधियों और पार्टी कार्यकर्ताओं से बातचीत करते हुए उन्होंने उनसे पार्टी के मामलों में बड़ी भूमिका निभाने को कहा। मध्य प्रदेश में कांग्रेस गुटबाजी से जूझ रही है और यही हाल रहा तो अगले विधानसभा चुनाव के बाद भी कांग्रेस को सत्ता नहीं मिल पाएगी। इस सच्चाई से पार्टी के प्रतिनिधियों ने कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी को अवगत करा दिया है। विभिन्न प्रतिनिधियों ने गांधी को बताया है कि राज्य में कांग्रेस पांच गुटों में बंटी हुई है।
राहुल गांधी बुधवार को मध्य प्रदेश के दो दिवसीय दौरे पर धार जिले के मोहनखेड़ा पहुंचे। गांधी ने इस दौरान युवक कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में हिस्सा लिया और पार्टी प्रतिनिधियों, सांसद, विधायक, चुनाव में हारे उम्मीदवारों और पंचायत व नगरीय निकाय के प्रतिनिधियों से चर्चा की। प्रतिनिधियों से चर्चा के दौरान राहुल गांधी ने साफ तौर पर कहा कि वे केंद्र द्वारा संचालित योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने का काम करें। पार्टी में किसी तरह की गुटबाजी नहीं होनी चाहिए।
राहुल ने प्रतिनिधियों से पूछा कि राज्य में कांग्रेस का क्या हाल है। इस पर कार्यकर्ता कुछ देर तो खामोश रहे, फिर कहा कि राज्य में गुटबाजी है। नेताओं का नाम लेने से प्रतिनिधि सकुचाए। प्रतिनिधियों को लगा कि नेताओं का नाम लेना ठीक नहीं होगा। इतने में राहुल ने कहा कि खुलकर बताएं कि राज्य में किस तरह की गुटबाजी है। फिर क्या था मौजूद प्रतिनिधियों ने खुलकर कहा कि राज्य में पांच गुट हैं। यहां कांग्रेस दिग्विजय, सिंधिया, कमलनाथ, भूरिया व पचौरी गुटों में बंटी है। राहुल ने प्रतिनिधियों से ही पूछ डाला कि इसे कैसे खत्म किया जा सकता है, तो प्रतिनिधियों ने सुझाव दिया कि संभागीय स्तर पर पार्टी के कार्यक्रम हों और उन कार्यक्रमों में सभी नेताओं को एक मंच पर लाया जाए।
राहुल गांधी ने विभिन्न चरणों में पार्टी के तमाम जिम्मेदार लोगों से अलग-अलग चर्चा की और सभी से कहा कि वे गुटबाजी से अपने को दूर रखें। राहुल को कई प्रतिनिधियों ने सुझाव दिया कि वे संगठन से जुड़े लोगों को निर्देशित करें कि वे पार्टी की मजबूती के लिए काम करें।
राहुल गांधी के दो दिवसीय दौरे के पहले दिन पार्टी के कई प्रमुख नेता भी मौजूद थे। इनमें प्रदेश प्रभारी बी. के. हरिप्रसाद, राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह, प्रदेशाध्यक्ष कांतिलाल भूरिया, नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी, सज्जन सिंह वर्मा, मीनाक्षी नटराजन शामिल हैं। सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी ने कई नेताओं से अलग-अलग व बंद कमरे में भी चर्चा की। साथ ही उन्हें अपनी मंशा से भी अवगत करा दिया है।

सर्कस के बाजीगर ही निकल सकते हैं नेहरू रोड़ से


सर्कस के बाजीगर ही निकल सकते हैं नेहरू रोड़ से

(शिवेश नामदेव)

सिवनी (साई)। एक समय में शहर को दो हिस्सों में बांटने वाली नेहरू रोड़ आज बदहाली के कगार पर पहुंच चुकी है। इस सड़क से चौपहिया क्या दो पहिया वाहनों का गुजरना भी अब दुष्कर हो गया है। पैदल चलते राहगीरों को भी स्थान तलाशते हुए ही यहां से गुजरने पर मजबूर होना पड़ता है।
नगर के अति व्यस्ततम क्षेत्र नेहरू रोड में यातायात व्यवस्था को लेकर पुलिस प्रशासन और जिला प्रशासन सक्रिय नहीं है, जिसके चलते नेहरू रोड में स्थित दुकानों के सामने वाहनों की लंबी- लंबी लाईन लगे रहती है, जिसके चलते वहां से गुजरने वाले लोगों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इन दिनों सोने की कीमत में आई कमी को देखते हुए ज्वेलरी की दुकानो में अच्छी- खासी भीड़ इकत्र हो रही है। ज्वेलरी खरीदने जाने के लिए जाने वाले ग्राहक अपने वाहनों को सड़क के किनारे अव्यवस्थित खड़े कर देते हैं, जिसके चलते नेहरू रोड से गुजरने वाले अन्य लोगों को परेशानी उठानी पड़ती है।
अस्सी के दशक में जिला कोतवाली का पिकप वाहन जब इस सड़क पर निकलता था तब दुकानदार भय के चलते सायकलों को हटवा देते थे, जो नहीं हटवा पाते थे उनकी साईकल जप्त कर थाने ले जाई जाती थीं, जो बाद में चालान के उपरांत ही छोड़ी जाती थीं। अस्सी के दशक के उपरांत पुलिस ने भी इस ओर दिलचस्पी लेना बंद ही कर दिया।
अमूमन देखा गया है कि दुकानदार अपनी दुकान का सामान नेहरू रोड़ के एक डेढ़ फिट के फुटपाथ पर सजा देते हैं, इसके बाद बची जगहों पर उनकी दुकानों में खरीददारी के लिए आए ग्राहकों के वाहन खड़े हो जाते हैं। कई बार तो यहां सड़क पर खड़े चौपाया वाहन आवागमन को अवरूद्ध कर देते हैं।
प्रोढ़ हो चुकी पीढ़ी को याद होगा कि वर्तमान में जहां आनंद होटल संचालित हो रहा है वहां पर नेशनल बस सर्विस का गैराज हुआ करता था, इस गैराज में इस बस कंपनी की यात्री बसों की आवाजाही हुआ करती थी। महावीर व्यायामशाला वाली गली में ये यात्री बस कुछ मुश्किल के साथ पर घुस जाया करती थीं।
इस प्रसंग का उल्लेख करने का कारण यह है कि एक समय था जब इस मार्ग पर यात्री बस तक चल जाया करती थी, आज इस मार्ग में अतिक्रमण का जो आलम है उससे यहां पैदल चलना भी दुष्कर है। इससे साबित हो जाता है कि अगर नगर पालिका और यातायात पुलिस ने इस मार्ग पर अतिक्रमण से निपटने कोई कार्यवाही नहीं की है, नतीजतन आज सालों साल में अतिक्रमण स्थाई हो चुके हैं।
नेहरू रोड में अव्यवस्थित खड़े वाहनों को लेकर यातायात महकमा कभी भी गंभीर नहीं हुआ। यातायात महकमे की कार्यवाही छिंदवाड़ा चौक से शुरू होती है और बाहुबली चौक में जाकर खत्म हो जाती है, लेकिन आज तक जो भी यातायात प्रभारी रहे हैं, उन्होंने नेहरू रोड को नजरअंदाज ही किया है। यातायात को अवरूद्ध करने का कारनामा सिर्फ नेहरू रोड में ही किया जाता  है, ऐसा नहीं है।
सिवनी की अधिकांश बैंकों के सामने भी वाहन बेतरतीब खड़े कर दिये जाते हैं, जिस ओर बैंक प्रबंधन भी ध्यान नहीं देता। शुक्रवारी स्थित महाराष्ट्र बैंक, यूनियन बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, कचहरी चौक की स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की शाखा आदि ऐसी बैंक है, जिनके सामने वाहन पार्किंग की व्यवस्था नहीं है और न ही इन बैंकों और दुकानदारों ने कोई ऐसी व्यवस्था भी नहीं की है कि इन वाहनों को सुव्यवस्थित खड़े कर सके।
ऐसे में सिवनी की यातायात व्यवस्था को सुधारने की बात सिर्फ और सिर्फ बेईमानी ही लगती है। देखना यह है कि नवागत कलेक्टर भरत यादव और पुलिस अधीक्षक मिथलेश शुक्ला शहर को अतिक्रमण मुक्त बनाने के लिए कृत संकल्पित दिख रहे हैं, अब देखना है कि उनकी मुहिम किस स्तर तक परवान चढ़ पाती है।

आखिरकार चीनी मिल और सरकार के बीच हुए समझौते की खुली कलई


आखिरकार चीनी मिल और सरकार के बीच हुए समझौते की खुली कलई

(सचिन धीमान)

मुजफ्फरनगर (साई)। आज चीनी मिल मालिको और सरकार के बीच हो रहे आपसी समझौते की क्लई उस वक्त खुल गयी जब वीएम सिंह की किसान हितैषी जनहित याचिका को खारिज कराने के लिए प्रदेश सरकार के सोलीसिटर ही खडे नजर आये।
चालू पेरोई सत्र 2012-13 का चीनी मिलों ने गन्ना किसानों का लगभग साढे सात हजार करोड रूपये से अधिक भुगतान रोक रखा है। जिस पर वीएम सिंह ने एक जनहित याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बैंच में दायर करते हुए अपील की थी कि चालू पेराई सत्र में गन्ना किसानों का चीनी मिलों ने साढे सात हजार करोड रूपये से अधिक पैसा रोक रखा है। जिसे तत्काल 15 फीसदी ब्याज सहित दिलवाया जावे। ऐसा न करने पर मिलों की आरसी काट दी जाये। इसके साथ ही जब तक गन्ना किसान का भुगतान नहीं हो जाता। तब तक गन्ना किसान से किसी भी प्रकार के कृषि ऋण की वसूली स्थगित रखी जाये। साथ ही दलील देते हुए जनहित याचिका में यह भी कहा गया कि जहां मिलों की आरसी कटते ही मिले तत्काल गन्ना किसानों का भुगतान करेंगी वहीं प्रदेश सरकार को भी आरसी काटने के बाद 800 करोड का राजस्व प्राप्त होगा।
आज इस जनहित याचिका का विरोध करने के लिए कई दर्जन अधिवक्ता न्यायधीश उमानाथ की बैंच में उपस्थित थे। इस मामले में उस वक्त अजीब स्थिति देखने को मिली जब प्रदेश सरकार की ओर से ए.ए.जी. (एडिशनल सोलीसिटर) श्रीमति बुलबुल गुलियाल ने ही अजीब तर्क देते हुए वीएम सिंह के हल्फनामे में तकनीकी त्रुटि बताकर उसे खारिज करने तक की अपील कर डाली। सरकार वकील का यह कृत्य निश्चित तौर पर मिल मालिकांे के पक्ष में जाता दिखाई दिया। वीएम सिंह ने इस पर दलील देते हुए कहा कि माननीय उच्च न्यायालय का स्पष्ट आदेश है कि जनहित याचिका में तकनीकी त्रुटि नहीं देखी जाती। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ओर गन्ना आयुक्त का यह दायित्व है कि वह गन्ना किसानों का भुगतान ब्याज सहित तत्काल दिलाये। ऐसा न कर पाने पर मिलों की आरसी काटने का निर्देश गन्ना आयुक्त जारी करें। परंतु ऐसा करने के स्थान पर ये याचिका निरस्त कराने का काम किया जा रहा है।
अदालत में उस समय सनसनी फैल गयी जब न्यायमूर्ति उमानाथ ने ऑफ दि रिकार्ड यह तक कह डाला कि ये लोग तब तक गन्ना किसानों का भुगतान ब्याज सहित नहीं करेंगे और न ही तब तक आरसी काटेंगे जब तक दो-चार अधिकारी जेल नहीं चले जाते। सारी दलील सुनने के बाद उमानाथ की नेतृत्व वाली बैंच ने 2 मई को अगली सुनवाई का आदेश दिया। वीएम सिंह ने कहा कि मालिक ने चाहा तो गन्ना किसानों का बकाया भुगतान ब्याज सहित शीघ्र ही मिल जायेगा ओर उनकी आरसी भी रूकेंगी। अदालत ने वीएम सिंह के साथ विकास बालियान भी उपस्थित थे।