शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

जयराम रमेश का खुलासा

अक्षरधाम को नहीं मिली थी पर्यावरण मंजूरी
नई दिल्ली (ब्यूरो)। राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी द्वारा देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली से बहने वाली यमुना के कनारे जिस अक्षरधाम मंदिर को स्थापित करवाने में महती भूमिका निभाई थी, उस मंदिर ने पर्यावरण विभाग की अनुमति ही नहीं ली थी। जब देश की राजधानी में पर्यावरण महकमे का यह आलम है तो शेष भारत में पर्यावरण की उड़ती धज्जियों का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने शुक्रवार को कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में यमुना नदी के किनारे बने अक्षरधाम मंदिर को न तो पर्यावरण मंजूरी मिली थी और न ही मंदिर निर्माण करने वालों ने इसके लिए कभी आवेदन किया था। लेकिन मंत्री ने स्वीकार किया कि इस बारे में अब कुछ भी नहीं किया जा सकता।
यमुना नदी के किनारे 30 एकड़ से अधिक क्षेत्र में वर्ष 2005 में बनकर तैयार हुए स्वामीनारायण सम्प्रदाय के इस भव्य मंदिर के निर्माण के बारे में रमेश ने कहा कि अक्षरधाम मंदिर का निर्माण करने वालों ने पर्यावरण मंजूरी हासिल करने के लिए आवेदन तक नहीं किया। बिना पर्यावरण मंजूरी के इस मंदिर का निर्माण यमुना नदी के तट पर हुआ।
उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा, कि पर्यावरण मंत्रालय नदी नियमन क्षेत्र संबंधी अधिसूचना जारी करने के बारे में गंभीरता से विचार कर रहा है ताकि जिस तरह यमुना नदी के किनारे विनाशकारी निर्माण हुआ है, वैसा भविष्य में नहीं हो। यह पूछने पर कि क्या पर्यावरण नियमों का खुले तौर पर उल्लंघन कर अक्षरधाम मंदिर का निर्माण हुआ है, रमेश ने कहा कि निर्माण तो हो चुका है।  पर्यावरण मंत्रालय मंदिर के खिलाफ कोई कार्रवाई के बारे में विचार कर रहा है के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि हम अक्षरधाम मंदिर परिसर को नहीं गिरा सकते। हमें यमुना नदी के बाकी तटीय क्षेत्र को बचाना होगा।

संघ को बदनाम करने को लीक की जा रही स्वीकारोक्ति

संघ को बदनाम करने को लीक की जा रही स्वीकारोक्ति
नई दिल्ली (ब्यूरो)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सीबीआई पर शुक्रवार को आरोप लगाया कि वह उसे बदनाम करने के लिए आतंकी घटनाओं में स्वामी असीमानंद की स्वीकारोक्तियों को लीक कर रही है। संघ के वरिष्ठ नेता राम माधव ने यहां कहा कि इन लीक किए गए दस्तावेजों से इस बात की भी पुष्टि होती है कि सीबीआई की रुचि मामलों की जांच से कहीं अधिक कुछ संगठनों और व्यक्तियों की छवि खराब करने में है।
उन्होंने कहा कि लीक किए गए दस्तावेजों से यह भी साबित होता है कि अपराध-स्वीकारोक्तियां संभवतः दबाव में ली गई हैं। लीक किए दस्तावेजों के बारे में माधव ने दावा किया कि ये सभी अंतरविरोधी हैं और कोई विश्वसनीय सुबूत नहीं है। उन्होंने कहा कि ऐसा करके सीबीआई ने एक बार फिर अपनी इस बात को साबित कर दिया है कि वह कांग्रेस ब्यूरो आफ इंवेस्टीगेशन है।

भाजपा के झंडा फहराने पर बोले फारूख

भाजपा तनाव बढ़ाना चाहती है: फारूख
नई दिल्ली (ब्यूरो)। केंद्रीय अक्षय ऊर्जा मंत्री और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर के लाल चौक पर तिरंगा झंडा फहराने के भारतीय जनता पार्टी के कार्यक्रम की कड़ी आलोचना करते हुए शुक्रवार को कहा कि मुख्य विपक्षी दल के इस करतब से पिछले कुछ दिनों से शांत चल रहे इस राज्य में फिर से तनाव पैदा हो जाएगा। हरित इमारतों पर राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान अब्दुल्ला ने कहा कि झंडा फहराने से भाजपा किस प्रकार की एकता और अखंडता लाना चाहते हैं। इससे एकता की बजाए राज्य में तनाव फैलेगा।
उल्लेखनीय है कि भारतीय जनता पार्टी की युवा इकाई भारतीय जनता युवा मोर्चा ने इस वर्ष गणतंत्र दिवस के मौके पर श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने का एलान किया है। जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रम से राज्य में शांति की स्थिति बिगड़ सकती है। इससे पहलेए जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी भाजपा की युवा इकाई के इस कार्यक्रम की निंदा करते हुए कहा था कि इससे राज्य में हिंसा भड़क सकती है।

दिल्‍ली में ठंड का प्रकोप

राजधानी में चल रही है हाड़ गलाने वाली हवाएं
नई दिल्ली (ब्यूरो)। दिल्लीवासियों को शुक्रवार को भी कड़ाके की सर्दी से कोई राहत नहीं मिली और आज फिर उनकी सुबह ठिठुरन भरी सर्दी में हुई। शहर में न्यूनतम तापमान 4.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जो कि अभी भी सामान्य तापमान से तीन डिग्री कम है और कल के न्यूनतम तापमान 5.3 डिग्री से एक डिग्री सेल्सियस कम है। ठंड में पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों से आने वाली हवाओं ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा है।
लुढ़कते पारे और सर्द हवाओं के कारण दिल्लीवासियों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अभी तक ठंड के कारण राजधानी में तीन लोगों की मौत हो चुकी है। मौसम विभाग की माने तो ठंड से अभी लोगों को बहुत राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। कल न्यूनतम तापमान पांच डिग्री सेल्सियस के आसपास और अधिकतम 15 डिग्री सेल्सियस के करीब रहने की उम्मीद है।
आज सुबह दिल्लीवासियों को कोहरे से राहत जरूर मिली। दिल्ली में पिछले सप्ताह से कड़ाके की ठंड पड़ रही है और पिछले कई दिनों से अधिकतम तापमान 15 डिग्री सेल्सियस से नीचे ठहरा हुआ है हालांकि कल का अधिकतम तापमान 14.5 डिग्री दर्ज किया गया था जो कि अभी भी सामान्य से छह डिग्री नीचे है। गौरतलब है कि अभी तक का सबसे ठंडा दिन मंगलवार रहा जब न्यूनतम तापमान 3.7 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 12.7 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा था।
अर्जुन की राह पर दिग्विजय

(लिमटी खरे)

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दो ठाकुरों में क्या समानता है? दोनों ही क्षत्रियों को उपरवाले ने कुशाग्र बुद्धि का धनी बनाया है। इस फेहरिस्त में अव्वल हैं विन्ध्य के कुंवर अर्जुन सिंह तो दूसरे नंबर पर हैं राघोगढ़ के राजा दिग्विजय सिंह। बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशकों में अर्जुन सिंह का डंका कांग्रेस में बजता रहा है। वे कांग्रेस के लिए चाणक्य और ट्रबल शूटर की भूमिका में रहे हैं। मामला चाहे पंजाब की समस्या का हो या फिर केंद्र में सरकार बनाने का, हर मामले में अर्जुन सिंह की चालों का लोहा मानते रहे हैं राजनेता।

इक्कसवीं शताब्दी के पहले दशक के उत्तरार्ध में कुंवर अर्जुन सिंह की ढलती उम्र और उनकी ढीली होती पकड़ के कारण उनके ही पैदा किए और सिखाए शिष्यों ने सिंह को हाशिए पर ढकेलने के सारे जतन कर डाले, और इसमें वे काफी हद तक कामयाब भी हुए। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के पहले कार्यकाल में मानव संसाधन और विकास जैसा महत्वपूर्ण विभाग संभालने वाले सिंह को दूसरी पारी में दूध में से मख्खी की तरह निकालकर अलग कर दिया गया। इसके बाद अर्जुन सिंह के आवास में खामोशी ने अपना डेरा डाल दिया।

संप्रग की दूसरी पारी में जैसे जैसे घपले और घोटालों की गूंज और उसकी अनुगूंज तेज हुई तब कांग्रेस के कुशाग्र बुद्धि के धनी प्रबंधकों का ध्यान अर्जुन सिंह की खामोशी की ओर गया। जहर बुझे तीर चलाने में उस्ताद रहे अर्जुन सिंह की खामोशी काफी कुछ कह गई। राजनीति के जानकारों का मानना है कि मनमोहन सिंह पर एकाएक घपले घोटालों के वार के पीछे कहीं न कहीं यह खामोशी भी नजर आ रही है।

देश के हृदय प्रदेश के राजनैतिक तालाब से उपजे कांग्रेस के दोनांे ही क्षत्रपों ने अपने अपने हिसाब से राजनीति की धार पैनी की है। अर्जुन सिंह की खासियत यह रही है कि उनके वक्त उनके हर बयान के साथ समूची कांग्रेस खड़ी दिखाई देती थी, किन्तु दिग्विजय सिंह के साथ एसा होता नहीं दिख रहा है। अपने बयानो के बाद दिग्विजय सिंह अकेले ही नजर आ रहे हैं। अपनी बात कहने या सफाई देने के लिए भी दिग्गी राजा द्वारा ना तो अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मुख्यालय 24 अकबर रोड़ और ना ही मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यालय का उपयोग किया जा रहा है। पत्रकारवार्ता में मीडिया में इस तरह के प्रश्न उठ ही गए कि आखिर क्या वजह है कि दिग्विजय सिंह अपनी बात कहने के लिए पार्टी का प्लेटफार्म उपयोग नहीं कर पा रहे हैं?

वैसे दिग्विजय सिंह का बतौर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री दस साल का रिकार्ड देखा जाए तो वे जुबान के बड़े ही पक्के समझे जाते रहे हैं। यही कारण है कि 2003 में विधानसभा में बुरी तरह मात खाने के बाद उन्होंने दस साल तक सक्रिय राजनीति से परहेज का अपना कौल अब तक निभाया है। पता नहीं कैसे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव बनने के बाद वे लगातार कैसे विवादस्पद बयान देते और फिर उससे पलटते रहे।

करकरे से चर्चा के मुद्दे को ही लिया जाए, तो पहले बकौल दिग्विजय, करकरे ने उन्हें फोन किया था, अब वे काल रिकार्ड पेश करते वक्त फरमा रहे हैं कि यह काल उन्होंने यानी दिग्विजय सिंह ने लगाया था। आश्चर्य तो तब होता है जब उनका फोन एटीएस के मुंबई स्थित मुख्यालय में शाम पांच बजकर 44 मिनिट पर पहुंचता है, वह भी इंटरनेट पर एटीएस के पीबीएक्स नंबर पर। काल रिकार्ड बताते हैं कि इस नंबर पर 381 सेकण्ड बात हुई है।

सवाल यह उठता है कि जब दोपहर को ही मुंबई में ताज होटल पर आतंकवादियों ने कब्जा जमा लिया था, तब क्या एटीएस चीफ करकरे के पास आतंकियों से निपटने रणनीति बनने से इतर इतना समय था कि वे कांग्रेस महासचिव के साथ खुद को मिलने वाली धमकियों का दुखड़ा रोएं। इसके अलावा दिग्विजय सिंह खुद स्वीकार कर चुके हैं कि वे करकरे से कभी मिले नहीं थे, तब एसी स्थिति में क्या करकरे पहली ही बातचीत में दिग्गी राजा से मन की बात कह गए होंगे?

पहले काल रिकार्ड नहीं मिलने की बात करने वाले सिंह ने जादू की छड़ी से रिकार्ड भी तलब कर लिया। इसके बाद उन्होंने एनसीपी कोटे के महाराष्ट्र के गृह मंत्री आर.आर.पाटिल से माफी की मांग कर डाली है। एनसीपी और कांग्रेस के बीच इस मांग का क्या असर होगा यह तो वे ही जाने पर सूबे में दिग्विजय सिंह की दखल को स्थानीय क्षत्रप अलग नजर से अवश्य ही देखेंगे।

भाजपा के वरिष्ठ नेता वेंकैया नायडू के इस दावे में दम लगता है जिसमें उन्होंने कहा है कि कांग्रेस ने दिग्विजय को इस मिशन पर लगाया है जिसका मकसद लोगों का ध्यान कामन वेल्थ और टू जी घोटालों से भटकाना है। भले ही कांग्रेस ने इस मिशन पर उन्हें लगाया हो, पर एक बात तो है कि दिग्गी राजा के हिन्दू आतंकवादियों वाले बयान ने उन्हें मुस्लिम समाज में हीरो अवश्य ही बना दिया है। आज आवश्यक्ता इस बात की है कि कोई भी राजनेता इस मामले पर बहुत ही सोच समझकर बयान जारी करे, क्योंकि यह मामला 
आम नहीं वरन् भारत गणराज्य की अस्मिता के साथ जुड़ा हुआ है।

उल्लेखनीय होगा कि इसी आतंकी हमले के बाद केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। महाराष्ट्र में सियासत करने वाले अब्दुल रहमान अंतुले ने भी इस मामले में विवादस्पद बयान दिया था, पार्टी को अंतुले से भी किनारा ही करना पड़ा था।

बहरहाल कांग्रेस के ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह के पिछले कुछ सालों के कदम ताल को देखकर लगने लगा है मानो वे अपने गुरू कुंवर अर्जुन सिंह के पदचिन्हों पर से धूल हटाकर उनका अनुसरण करना चाह रहे हों, किन्तु अर्जुन सिंह की बात निराली ही थी। वे एक कदम चलते थे तो बीस कदम आगे की सोच लेते थे। भोपाल गैस कांड में एंडरसन को भारत से भगाने की बात को छोड़कर अर्जुन सिंह पर कोई और आरोप एसा नहीं है जिसमें उन्हें देश की अस्मिता के साथ जरा भी खिलवाड़ करने का प्रयास किया हो। रही बात दिग्विजय सिंह की तो अपने आप को स्थापित करने और अपनी कही बात को सच साबित करने के चक्कर में उनके द्वारा जो चालें चलीं जा रहीं हैं, वे किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं कही जा सकती हैं।

दरसअल यक्ष प्रश्न तो यह है कि जब 26 नवंबर 2008 को राजा दिग्विजय सिंह और स्व.हेमंत करकरे के बीच फोन पर कथित तौर पर बातचीत हुई उसके बाद राजा दिग्विजय सिंह ने यह बात दो सालों तक दबाकर क्यों रखी? हो सकता है दिग्विजय सिंह यह कह दें कि उसके उपरांत उन्होंने इंदौर प्रेस क्लब के प्रोग्राम में यह बात कही थी, किन्तु उसके बाद आज जिस वजनदारी से वे यह बात कह रहे हैं यही बात दो साल के अर्से में चिंघाड़ चिंघाड़ कर उन्होंने क्यों नहीं कही। कारण चाहे जो भी हो पर कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिंह की इस चाल में कहीं न कहीं षणयंत्र की बू अवश्य ही आ रही है।

यूपी में बतोर सीएम प्रोजेक्ट हो सकतीं हैं उमा

उमा के सहारे यूपी की वेतरणी पार करना चाहते हैं आड़वाण 

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के पीएम इन वेटिंग रहे लाल कृष्ण आड़वाणी के मन में अभी भी सात रेसकोर्स रोड़ (भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री का सरकारी आवास) में जाने की अभिलाषाएं जोर मार रही हैं। आड़वाणी अगले आम चुनावों के पहले भारतीय जनता पार्टी को हर सूबे में चाक चोबंद करना चाह रहे हैं, ताकि भाजपा का जनाधार बढ़ाने के साथ ही साथ संसद में भाजपा सदस्यों की संख्या बढ़ाई जा सके। आड़वाणी की अभिलाषा है कि मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को उत्तर प्रदेश में बतौर मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट किया जाए ताकि आबादी में देश के सबसे बड़े सूबे और अब तक सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री देने वाले राज्य में भाजपा की खोई साख को वापस लाया जा सके।
भाजपा में एल.के.आड़वाणी ही अकेले उमा की वापसी के हिमायती नजर आ रहे हैं। उमा की वापसी की खबरों से भाजपा अनेक धड़ों मंे बंट गई है। आड़वाणी खेमे के अन्य सदस्यों के साथ ही साथ नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज, राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरूण जेतली, वेंकैया नायडू, अनंत कुमार, राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान, सुरेश सोनी जैसे धुरंधर भी उमा की घर वापसी के घोर विरोधी नजर आ रहे हैं।
आड़वाणी के करीबी सूत्रों का कहना है कि आड़वाणी मानते हैं कि भाजपा से जा चुके कल्याण सिंह की जगह भरने के लिए उमा भारती ही सबसे उपयुक्त हांेगी। माना जा रहा है कि उमा के वापस आकर यूपी की कमान संभालते ही कल्याण पर भी वापसी का दबाव बढ़ सकता है। उधर उमा के भाजपा से मोहभंग की खबरें भी जोर पकड़ने लगी हैं।
आड़वाणी मण्डली का मानना है कि अगर यूपी में भाजपा को पुर्नजीवित करना है तो सूबे में उमा भारती जैसा ओबीसी और हिन्दुत्ववादी चेहरा मैदान में उतारना ही होगा। यूपी में बसपा सुप्रीमो मायावती की तोड़ के तौर पर भाजपा के पास उमा भारती ही सबसे उपयुक्त हैं। वैसे भी उमा भारती द्वारा बावरी मस्जिद विध्वंस में महती भूमिका निभाई थी, जिसके चलते आज भी उत्तर प्रदेश में उनके प्रशंसकों की लंबी फेहरिस्त मौजूद है।
गौरतलब होगा कि एल.के.आड़वाणी के मन में भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री बनने की उत्कंठ इच्छा हिलोरे मार रही है, यही कारण है कि वे तेज तर्रार साध्वी उमा भारती को भाजपा में वापस लाने का ख्वाब देख रहे हैं, साथ ही वे चाहते हैं कि उमा भारती को यूपी के अगले चुनावों के पहले बतौर मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करवा दिया जाए।

यूपी में रास्ता नहीं आसान
भाजपा के उमरदराज नेता एल.के.आड़वाणी भले ही उमा भारती को उत्तर प्रदेश में बतौर मुख्यमंत्री प्रस्तुत कर चुनाव लड़वाना चाह रहे हों, किन्तु भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई में उमा भारती का नाम आते ही भूचाल मचा हुआ है। राज्य के नेता किसी परदेशी नेतृत्व को अपने उपर थोपे जाने के खिलाफ लामबंद होते जा रहे हैं। उमा के पक्ष में तर्क दिया जा रहा है कि वे मायावती के मुकाबले पिछड़े वर्ग की भीड़ को आकर्षित करने में सफल होंगी,, किन्तु उनके विरोधियों का तर्क है कि पिछले दो सालों में उमा भारती के क्रिया कलाप देखकर कहा जा सकता है कि वे चुका हुआ बम ही साबित होने वाली हैं।