मंगलवार, 8 जनवरी 2013

अपनी ढपली अपना राग


अपनी ढपली अपना राग

(अनामिका)

नई दिल्‍ली (साई)। एक अनाम कथित तौर पर नाम वाली बलात्‍कार पीडित बाला के बारे में देश भर में जिसे जो बन पड रहा है वह उसके बारे में अपने विचार प्रकट करता जा रहा है। विदेशी अखबार ने तो देश के कानून को धता बताकर बाकायदा पीडिता का नाम उसके पिता के हवाले से ही उजागर कर दिया है। इसी बीच संत आशाराम बापू ने भी इस मामले में एक बयान देकर हाड गलाने वाली ठण्‍ड में तापमान बढा दिया है।

दिल्ली की जिस घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है उस पर कई लोग अपने विभिन्न विचार रख चुके हैं। मर्यादा से लेकर डेंटेड-पेंटेड तक की राय राजनीतिज्ञों ने रखी। अब जनता को सत्यसंग और शांति का पाठ पढ़ानेवाले धर्म गुरू आशाराम बापू भी रायचंदों की रेस में शामिल हो गए हैं। उनका कहना है कि उस घटना के लिए केवल वह 5 या 6 लोग दोषी नहीं बल्कि पीड़ित भी उन बलात्कारियों के बराबर की दोषी है।
आशाराम बापू ने तो पीड़ित को खुद को बचाने का भी रास्ता सुझा दिया। उन्होंने कहा कि अगर पीड़ित उन लोगों को भईया कहती और उनसे रुकने की प्रार्थना करती तो वह अपनी जिंदगी और इज्जत दोनों बचा सकती थी। आशाराम बापू इतना कहकर नहीं रूके। उन्होंने आगे कहा कि क्या एक हाथ से ताली बज सकती है? मुझे तो नहीं लगता। उन्होंने दोषियों को कड़ी सजा देने का भी विरोध किया और कहा कि कानून का गलत इस्तेमाल हो सकता है। उन्होंने दहेज उत्पीड़न कानून का उदाहरण देते हुए कहा कि दहेज उत्पीड़न कानून, कानून के गलत इस्तेमाल का सबसे बड़ा उदाहरण हैं।

आशाराम बापू के बयान की आलोचना भी शुरू हो गई है। कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी ने कहा कि नेताओं के साथ ही धार्मिक गुरुओं को भी बोलने से पहले सोच लेना चाहिए। भाजपा नेता बलबीर पुंज ने कहा कि इस कद के व्यक्ति ने बड़ा ही बचकाना बयान दिया है इसकी न केवल निंदा होनी चाहिए बल्कि इस पर हंसना भी चाहिए। भाजपा प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि माफ कीजिए यह बात बिल्कुल अस्वीकार्य है। आशाराम बापू ने दिल्ली की दिलेर के विषय में जो बात कही है वह निंदा योग्य और परेशान करनेवाली है। उन्हें अपने बयान को तुरंत वापस लेना चाहिए।

दिल्ली की घटना पर इससे पहले कई लोग अपनी राय दे चुके हैं इनमें कांग्रेस से लेकर भाजपा तक के लोग शामिल हैं। जहां कांग्रेस सांसद अभिजीत मुखर्जी ने महिला आंदोलनकारियों पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि जो लोग प्रदर्शन कर रहे हैं वह छात्र हैं इसमें उन्हें संदेह हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि जो महिलाएं प्रदर्शन में भाग लेने आ रही है वह काफी डेंटेड-पेंटेड होकर आ रही है। उनके इस बोल काफी हंगामा हुआ और बाद में उन्हें इस बात पर सफाई देनी पड़ी।

इसके अलावा हाल में मध्य प्रदेश के भाजपा विधायक कैलाश विजयवर्गीय ने महिलाओं ने मर्यादा का पाठ पढ़ाया था। उन्होंने कहा था कि एक ही शब्द मर्यादा। मर्यादा का उल्लघंन होता है तो सीता का हरण हो जाता है। लक्ष्मण रेखा हर व्यक्ति की खींची गई है। उस लक्ष्मण रेखा को कोई भी पार करेगा तो रावण सामने बैठा है। सीता का हरण करके ले जाएगा। इस बयान पर भी काफी हंगामा हुआ था और बाद में विधायक को अपना बयान वापस लेना पड़ा था। राय देने में आरएसएस के मोहन भागवत भी पीछे नहीं थे उन्होंने भारत और इंडिया का वर्गीकरण करते हुए कहा था कि बलात्कार जैसी घटनाएं भारत के मुकाबले इंडिया में ज्यादा होती हैं।

जहां तक बात आशा राम बापू की वह उन्होंने इससे पहले ऐसी बात कही है जिस पर काफी हल्ला मचा है। इससे पहले उन्होंने उनके आश्रम में दो बच्चों की रहस्यमयी मौत की जांच के बारे में कहा था कि अगर मोदी उसकी जांच के आदेश देते है तो गुजरात से उनकी सत्ता को वह उखाड़ फेकेंगे। बहरहाल मोदी की सरकार को तो कुछ नहीं हुआ लेकिन बच्चों की मौत पर सीआईडी ने चार्जशीट जरूर दाखिल कर दी।

राष्‍ट्रवादी हैं अलगाववादी नहीं भारत के मुसलमान


राष्‍ट्रवादी हैं अलगाववादी नहीं भारत के मुसलमान

(तनवीर जाफरी)

 अकबर ओवैसी द्वारा हिंदू समुदाय को व देश की एकता व अखंडता को निशाना बनाकर दिया गया उसका विद्वेषपूर्ण भाषण किसी भी कीमत पर भारतीय मुसलमानों को स्वीकार्य नहीं है। उनका यह भाषण केवल आंध्र प्रदेश की क्षेत्रीय राजनीति से निकल कर राष्ट्रीय राजनैतिक क्षितिज पर नज़र आने का उनका यह असफल प्रयास है। सांप्रदायिकता, अलगाववाद, किन्हीं दो संप्रदायों के बीच नफरत फैलाने या किसी संप्रदाय विशेष का अपमान करने वाले देश के किसी भी धर्म के किसी भी नेता को ब$ शा नहीं जाना चाहिए। इनके साथ रियायत बरतना सांप को दूध पिलाने के समान ही है।
भारतवर्ष के विभिन्न क्षेत्रों से अलगाववाद की राजनीति करने वाले नेताओं के स्वर बुलंद होते देखे जाते रहे हैं। कभी धर्म के नाम पर तो कभी क्षेत्र व भाषा के नाम पर। परंतु समय रहते ऐसी अलगाववादी आवाज़ें कभी खुद दब गईं तो कभी दबा दी गईं। परंतु भारत में ही रहकर अलगाववाद की राजनीति करने वाले नेता हैं कि अपनी स्वार्थपूर्ण व संकीर्ण राजनीति को परवान चढ़ाने की गरज़ से ऐसी हरकतों से बाज़ आने का नाम ही नहीं लेते। कभी कश्मीर से अलगाववाद की आवाज़ बुलंद होती है तो कभी बोडोलैंड के रूप में कोई समस्या सामने दिखाई देती है। कभी महाराष्ट्र में भूमिपुत्र या मराठी मानुस के नाम पर राजनैतिक रोटियां सेकी जाती हैं तो कभी खालिस्तान के नाम पर आंदोलन व हिंसा का दौर चलता दिखाई देता है। परंतु दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में जिस आज़ादी व तेज़ी के साथ अलगाववादी ताकतें अपना सिर उठाती हैं उसी प्रकार कुछ ही समय बाद इनके मिशन दम तोड़ते, फीके पड़ते व शिथिल होते भी नज़र आते हैं। गोया ऐसे नेताओं के पीछे लगने वाली जनता शीघ्र ही इनके स्वार्थपूर्ण राजनैतिक मकसद को समझ लेती है। वह ज़्यादा समय तक उनके बहकावे में नहीं रहती और अलगाववादी शक्तियों के वर$गलाने में आई जनता शीघ्र ही पुन: राष्ट्रवाद की मुख्यधारा में शामिल नज़र आती है।

इसी कड़ी में पिछले दिनों एक बार फिर अलगाववाद को हवा देने वाला ऐसा ही एक स्वर दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश राज्य से उठता दिखाई दिया। आंध्र प्रदेश तक ही सीमित क्षेत्रीय राजनैतिक दल मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुसलमीन (एमआईएम) के एक विधायक अकबरूद्दीन औवेसी ने आंध्र प्रदेश के आदिलाबाद जि़ले के निर्मल टाऊन में अपने लगभग दो घंटे के भाषण में दिल खोलकर अपनी भड़ास निकाली तथा देश की राजनैतिक व्यवस्था, हिंदू समुदाय को नीचा दिखाने, हिंदुओं की धार्मिक आस्था का मज़ाक उड़ाने, गौहत्या के विषय पर, मुसलमानों को धार्मिक संस्कारों पर चलने, विभिन्न मुस्लिम समुदायों को इकट्ठा होने, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय राजनीति तथा आंध्र प्रदेश की स्थानीय राजनीति जैसे विभिन्न मुद्दों पर जमकर अपनी भड़ास निकाली। इसमें कोई शक नहीं कि अकबर ओवैसी का यह भाषण अत्यंत गैर जि़म्मेदाराना, भड़काऊ, हिंदू व मुस्लिम समुदायों के मध्य नफरत फैलाने वाला तथा देश में अलगाववाद की भावना को भड़काने वाला तथा धर्म विशेष की आस्थाओं की खिल्ली उड़ाने वाला भाषण था। बड़े ही पूर्व नियोजित तरीके से ओवैसी अपना यह विवादित भाषण देने के बाद अपने इलाज के बहाने देश छोड़कर विदेश चला गया। निश्चित रूप से उसे यह मालूम था कि वह कैसा ज़हर उगल रहा है तथा शासन व प्रशासन की ओर से उसके विरुद्ध क्या कार्रवाई होनी है। ओवैसी ने क्या कहा और उसके क्या प्रभाव हो सकते हैं यह तो उसका भाषण सुनने वाला प्रत्येक व्यक्ति बहुत आसानी से समझ सकता है। परंतु उसने किस 'राजनैतिक दूरदर्शिता के मद्देनज़र इतना गैर जि़म्मेदाराना व विवादास्पद भाषण दिया यह भी समझने की ज़रूरत है।

दरअसल मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलिमीन अथवा एमआईएम आंध्र प्रदेश तक सीमित रहने वाला एक क्षेत्रीय व ओवैसी परिवार द्वारा गठित राजनैतिक संगठन है। इस समय एमआईएम के एक सांसद हैदराबाद से ही निर्वाचित सलाहुद्दीन ओवैसी हैं जोकि अकबर ओवैसी के ही बड़े भाई हैं तथा सात विधायक आंध्र प्रदेश के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों से निर्वाचित हैं। इन्हीं सात में एक विधायक हैं अकबर ओवैसी। एमआईएम द्वारा पहले आंध्र प्रदेश की किरण कुमार सरकार को समर्थन दिया जा रहा था। परंतु विभिन्न प्रकार के क्षेत्रीय मतभेदों के चलते या एमआईएम द्वारा आंध्र प्रदेश सरकार के समक्ष रखी गई लंबी-चौड़ी मांगों को पूरा न करने के कारण तथा अन्य राजनैतिक मतभेदों के चलते एमआईएम ने राज्य की कांग्रेस सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। ज़ाहिर है अब एमआईएम के समक्ष अब  न केवल अपने अस्तित्व को अलग दिखाने की चुनौती है बल्कि एमआईएम मु यमंत्री किरण कुमार व कांग्रेस पार्टी को यह भी जताना चाह रही है कि उसका कितना जनाधार है और वह आंध्र प्रदेश सरकार व कांग्रेस पार्टी को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं। दूसरी ओर यही एमआईएम के नेता राष्ट्रीय राजनीति के परिपेक्ष्य में इस बात को भी बड़े गौर से देख रहे हैं कि पूरे भारत के मुसलमान न सिर्फ विभिन्न क्षेत्रीय व राष्ट्रीय राजनैतिक दलों में बंटे हुए हैं बल्कि भारतीय मुसलमानों का कोई ऐसा मुस्लिम नेता भी राष्ट्रीय स्तर पर नहीं है जोकि पूरे देश के मुसलमानों को सर्वस मत रूप से नेतृत्व प्रदान कर सके। एमआईएम के नेता यह भी बखूबी जानते हैं कि देश का मुसलमान विभिन्न वर्गों व समुदायों के अतिरिक्त विभिन्न राजनैतिक विचारधाराओं में भी बंटा हुआ है। और यही वजह है कि देश के विभिन्न क्षेत्रों का मुसलमान समय-समय पर अलग-अलग राजनैतिक दलों को अपना समर्थन देता नज़र आता है। उदाहरण के तौर पर राष्ट्रीय स्तर पर जो मुस्लिम समुदाय कभी कांग्रेस पार्टी के पक्ष में मतदान किया करता था वह 6 दिसंबर 1992 के बाद कांग्रेस पार्टी से अलग तो ज़रूर हुआ परंतु मुसलमानों ने अपने ही धर्म का कोई नेता चुनने के बजाए विभिन्न क्षेत्रीय दलों को अपना समर्थन देना बेहतर समझा।

मसलन यदि उत्तर प्रदेश के मुसलमान मुलायम सिंह यादव व मायावती के साथ जाते दिखाई दिए तो बिहार का मुसलमान कभी लालू प्रसाद यादव तो कभी नितीश कुमार के साथ खड़ा हुआ नज़र आया। बंगाल में कभी क युनिस्ट पार्टी के साथ खड़ा हुआ तो कभी ममता बैनर्जी को सिर आंखों पर बिठाया। इसी प्रकार दक्षिण भारत में कभी क युनिस्ट पार्टी को अपना समर्थन दिया तो कभी तेलगुदेशम, मुस्लिम लीग व एमआईएम जैसी पार्टियों के साथ खड़े हो गए। एमआईएम के नेता अकबर ओवैसी की पूरी नज़र राष्ट्रीय स्तर पर इस प्रकार मुस्लिम समुदाय के विभाजित हो रहे मतों पर भी है। और उसे यह गलतफहमी भी है कि राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम नेतृत्व का जो अभाव पिछले 60 वर्षों से भारत में देखा जा रहा है संभवत: उस रिक्त स्थान को अकबर ओवैसी अपने ज़हरीले, भड़काऊ व सांप्रदायिकतापूर्ण भाषणों के द्वारा भर सकेगा। और इसी गलतफहमी का शिकार होते हुए उसने देश के 25 करोड़ मुसलमानों को संगठित होने का आह्वान किया। ठीक उसी प्रकार जैस कि कभी ठाकरे घराना मराठियों को एकजुट होने का आह्वान करने के लिए उनके मन में उत्तर भारतीयों के प्रति नफरत भरता है या प्रवीण तोगडिय़ा जैसे फायरब्रांड नेताओं की तरह जो हिंदू राष्ट्र बनाने के नाम पर तथा जेहादियों का खौफ फैलाकर देश के हिंदुओं को संगठित होने के लिए भारतीय मुसलमानों के खिलाफ ज़हर उगला करते हैं।

परंतु इस प्रकार दूसरे धर्म की खिल्ली उड़ाकर, दूसरे धर्म के लोगों का अपमान कर तथा दूसरे धर्म की धार्मिक मान्यताओं का मज़ाक उड़ाकर अकबर ओवैसी द्वारा राष्ट्रीय स्तर का नेता दिखाई देने का प्रयास करना सरासर गलत और बेमानी ही नहीं बल्कि गैर इस्लामी, गैर इंसानी और गैर कानूनी भी है। ओवैसी ने भारतीय मुसलमानों की भावनाओं को भड़काने के लिए बाबरी मस्जिद गिराए जाने तथा गुजरात दंगों का जि़क्र किया। इसमें कोई शक नहीं कि यह दोनों ही घटनाएं भारतीय लोकतंत्र व भारतीय राजनीति में एक काले धब्बे की तरह हैं। परंतु ओवैसी को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि भारत में सांप्रदायिक शक्तियों के विरुद्ध विशेषकर हिंदुत्ववादी कट्टरपंथी शक्तियों के खिलाफ केवल भारतीय मुसलमान ही अकेला नहीं है बल्कि देश का बहुसं य हिंदू समाज भी इन सांप्रदायिक ताकतों के विरुद्ध है। स्वयं एमआईएम के नेताओं को भी इस बात पर गौर करना चाहिए कि उनकी पार्टी के एक सांसद तथा सात विधायक भी केवल मुस्लिम मतों के बल पर चुनकर नहीं आए। बल्कि उदारवादी सोच रखने वाले गैर मुस्लिम मतदाताओं ने भी उनके पक्ष में मतदान किया है। लिहाज़ा सांप्रदायिक आधार पर तथा धर्म विशेष के विरुद्ध ज़हर उगलकर अपने समुदाय के लोगों को संगठित करने का प्रयास करना ओवैसी द्वारा की जा रही एक घिनौनी व नाकाम कोशिश है। ओवैसी को यह समझना चाहिए कि इस देश की आज़ादी के लिए जहां कल अशफाक उल्ला ने अपनी कुर्बानी दी थी वहीं आज भी इस देश की गुप्तचर सेवा का जि़म्मा एक भरोसेमंद मुसलमान शख्स के हाथों में है। देश में दो बार उपराष्ट्रपति के रूप में हामिद अंसारी को निर्वाचित किया जा चुका है। दक्षिण भारत से ही संबंध रखने वाले भारत रत्न एपीजे अब्दुल कलाम की राष्ट्रव्यापी लोकप्रियता के बारे में कुछ कहना तो गोया सूरज को चिराग दिखाने जैसा ही है। भारतीय मुसलमान को तीन बार देश का राष्ट्रपति बनने का गर्व है। भारतीय वायुसेना के मुखिया के रूप में दो भारतीय मुसलमानों ने अपनी सेवाएं देश को दी हैं। राष्ट्रभक्त मुसलमानों से संबद्ध ऐसे और भी हज़ारों उदाहरण देखे जा सकते हैं।
लिहाज़ा अकबरूद्दीन ओवैसी जैसे मुस्लिम नेताओं को मुस्लिमों का नेता मानने की भूल बिल्कुल न करें। वे अपने निजी राजनैतिक स्वार्थवश दिए गए अपने भड़काऊ भाषण के लिए जि़म्मेदार है तथा उसके विरुद्ध भी सख्त कानूनी कार्रवाई किए जाने की ज़रूरत है। भारतीय मुसलमान तमाम आंतरिक विवादों, अवहेलनाओं, मतभेदों यहां तक कि सांप्रदायिक दंगों व फसादों के बावजूद हमेशा से ही राष्ट्रवादी रहा है और रहेगा। भारतीय मुसलमान कभी भी अलगाववादी नहीं हो सकता। और जो मुसलमान अलगाववाद व राष्ट्रविरोधी विचार रखता है उसे इस्लामी दृष्टिकोण से भी स्वयं को मुसलमान कहने का कोई अधिकार नहीं है।

सुन, ओ शैतान की औलाद


सुन, ओ शैतान की औलाद

(प्रेम शुक्‍ला)

बीते पखवाड़े जब पूरे देश का मीडिया दिल्ली के दामिनी बलात्कार कांड से उमड़े जनाक्रोश को जन-जन तक पहुंचाने में व्यस्त था ठीक उसी समय हैदराबाद के मुस्लिम नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने हिंदुस्थान के १०० करोड़ हिंदुओं को १५ मिनट में नेस्तनाबूद करने की चेतावनी जारी की। मुंबई में किसी राजनीतिक उत्पाती के पत्थर से अगर किसी एक टैक्सीवाले की कांच भी फूट जाए तो दिल्ली के मीडिया मार्तंडों को राष्ट्र की अखंडता पर खतरा मंडराते नजर आने लगता है। कोई हिंदूवादी नेता अगर किसी एक सड़े हुए मुस्लिम आतंकी को कुचलकर मारने की चेतावनी जारी कर दे तो तमाम ढोंगी सेकुलरों को धर्मनिरपेक्षता मरणशैय्या पर दिखाई देने लगती है।
अब क्यों चुप हैं सेकुलरवाद के ठेकेदार?
शिवसेनाप्रमुख ने जब कभी मुस्लिम वोट बैंक के लालच में अनर्गल मुस्लिम तुष्टीकरण को रोकने के लिए मुस्लिमों के मताधिकार छीनने की मांग रखी तो उनके वक्तव्य के मर्म को समझने की बजाय दिल्ली के पेड इंटलेक्चुअलशिवसेनाप्रमुख को दंडित करने के लिए कोलाहल मचाने लगते थे। २ साल पहले मैं  आईबीएन-७ पर एक चर्चा में हिस्सा ले रहा था जब मेरे सवालों का जवाब देने में नई दुनियाके तत्कालीन संपादक आलोक मेहता खुद को असमर्थ पाने लगे तो उन्होंने खीझकर शिवसेनाप्रमुख को फांसी पर लटकाने की मांग शुरू कर दी। चर्चा के दौरान अगर हम लोगों के मुंह से कोई कठोर शब्द भी निकल जाए तो संसदीय भाषा की दुहाई देकर कांव-कांव करने वाले आईबीएन ७ के संपादक आशुतोष ने आश्चर्यजनक रूप से आलोक मेहता को रोकने-टोकने की बजाय उनकी सफाई में अपनी सारी ऊर्जा खर्च कर दी। स्थानीय लोकाधिकार के मुद्दे पर शिवसेना ने जब कभी महाराष्ट्र में मराठी, गुजरात में गुजराती और पंजाब में पंजाबी को रोजगार में प्राथमिकता की पैरवी की तो शिवसेना को प्रांतवादी और विघटनवादी करार देकर उसकी मान्यता को रद्द करने के लिए याचिकाओं का अंबार लग गया। आश्चर्यजनक रूप से सेकुलरवाद के सारे ठेकेदारों ने अकबरुद्दीन ओवैसी के बयान पर चुप्पी साधे रखी।
ऐसी धमकी तो कभी लादेन ने भी नहीं दी
अकबरुद्दीन ओवैसी के बयान पर इन पालतू राष्ट्रवादी मुसलमानों तक की बकार भी नहीं फूटी। किसी अन्य शीर्ष नेता ने भी आज दिन तक ओवैसी पर कड़ी कार्रवाई की मांग नहीं की है। किसी बुद्धिजीवी, पत्रकार और सेकुलर नेता ने यह जानने की जहमत भी नहीं उठाई है कि ओवैसी के पास आखिर कौन सा ऐसा हथियार है जिससे वह १०० करोड़ हिंदुओं के खात्मे की वल्गना कर रहा है? कहीं ओवैसी को पाकिस्तानी इस्लामी परमाणु बम हाथ तो नहीं लग गया? ओवैसी जितनी बड़ी धमकी दे रहा है उतनी बड़ी धमकी तो कभी ओसामा बिन लादेन ने भी नहीं दी। जुल्फिकार अली भुट्टो दशकों तक हिंदुस्तान से लड़ने का दंभ भरा करते थे तो उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो सदियों तक हिंदुस्तान से लड़ने का पाकिस्तानी हौसला बयान किया करती थी, पर उन दोनों ने भी कभी १०० करोड़ हिंदुओं के खात्मे का बड़बोलापन नहीं किया। फिर ओवैसी के इतने जबर्दस्त विध्वंसक बयान पर भी सेकुलरवाद के रखवाले गूंगे-बहरे क्यों बने रहे? ‘सहमतऔर शबाना आजमी का एक बयान जरूर आया पर उसमें भी औपचारिक विरोध के अलावा कुछ नजर नहीं आता।
ओवैसी को हल्के में लिया तो पछताओगे
आंध्रप्रदेश की पुलिस ने तो ओवैसी के इस बयान पर एक साधारण एफआईआर दर्ज करना भी जरूरी नहीं माना और उनकी कलम तब उठी जब अदालत ने निर्देश दिया। गुजरात दंगों में मुस्लिमों की मौत के लिए दुनिया की कोई भी अदालत न्याय के मान्य मापदंड पर नरेंद्र मोदी को दोषी नहीं ठहरा सकती, फिर भी सिर्फ यूरोप-अरब-अमेरिका प्रायोजित एनजीओ बिरादरी के बखेड़े पर मोदी को यूरोप और अमेरिका मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर विराजमान होने के बावजूद वीसा देने से इंकार करते हैं। ओवैसी को इतने घातक बयान के बाद भी ब्रिटेन का वीसा मिलने और लंदन यात्रा करने में कोई दिक्कत नहीं आती। इस राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ढोंग का क्या औचित्य? क्या ओवैसी के बयान को हलके में लिया जा सकता है? ओवैसी जिस आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन का विधायक है उसकी पृष्ठभूमि जानने वाला कोई भी जानकार उसके बयान को हलके में लेने की सलाह नहीं देगा। मुस्लिम अलगाववाद का सऊदी अरेबिया और पाकिस्तान प्रायोजित जो ब्लू प्रिंट है उसका अंतिम चरण दक्षिणी हिंदुस्थान का इस्लामी अलगाववाद है। इस्लामी अलगाववाद का पहला चरण कश्मीर, दूसरा चरण असम समेत पूर्वोत्तर, तीसरा चरण हिंदुस्थान के प्रमुख शहरों को निशाना बनाना तथा अंतिम चरण हैदराबाद को केंद्र में रख दक्षिणी हिंदुस्थान में अलगाववादी ताकतों को बढ़ावा देना है।
हैदराबाद हो पाकिस्तान का हिस्सा... 
इस्लामी आतंकवाद का कश्मीर को हिंदुस्थान से अलग करने का प्रयास १९४७ से जारी है। १९६० के दशक से लगातार पूर्वोत्तर हिंदुस्थान में मुस्लिम आबादी बढ़ाकर असम को लीलने का प्रयास चल रहा है। १९८० के बाद से दर्जनों बार असम में स्थानाrय असमी आबादी और बांग्लादेशी मुसलमानों के बीच टकराव हो चुका है। बीते वर्ष जब बोडो जनजाति और बांग्लादेशी मुसलमानों के बीच संघर्ष व्यापक हुआ था तब मुंबई, बैंगलोर समेत तमाम शहरों में मुसलमानों ने किस तरह पूर्वोत्तर वासियों को धमकाया यह पूरा देश हताश होकर देख रहा था। १९९० के दशक से ऑपरेशन के-२ के माध्यम से इस्लामी अलगाववादी देश के तमाम शहरों में निर्दोष हिंदुओं का खून बहाते रहे हैं। हुजी, लश्कर-ए-तोयबा, इंडियन मुजाहिदीन, हरकत-उल-अंसार जैसी दर्जनों तंजीमे हिंदुस्थान में ग्रीन कॉरिडोर (हरा गलियारा) बनाने में जुटी रही हैंै। शायद ही कोई प्रमुख शहर बचा हो जहां इस्लामी आतंकवाद का पंजा नजर न आया हो। अब मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) के विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी का बयान संकेत दे रहा है कि मुस्लिम अलगाववाद अपने चौथे यानी अंतिम चरण में पहुंचने को है। १९४७ के पहले जिन इलाकों से पाकिस्तान समर्थक बांग लगी थी उसमें हैदराबाद प्रमुख था। हैदराबाद को पाकिस्तान का हिस्सा बनाने की मांग के लिए ही एमआईएम गठित हुई थी। ज्ञात इतिहास के अनुसार १९२७ में निजाम का समर्थन करने के लिए नवाब मीर उस्मान अली खान की सलाह पर महमूद नवाज खान किलेदार गोलकुंडा ने एमआईएम का गठन किया था। इसकी पहली बैठक नवाब महमूद नवाज खान के घर तौहीद मंजिलमें हुई थी जिसमें पहला ही प्रस्ताव यही था कि एमआईएम को किसी भी सूरत में हैदराबाद को हिंदुस्थान का हिस्सा बनने से रोकना है।
...तब कासिम राजवी दुम दबाकर भागा 
पाकिस्तान की मांग १९३० के दशक में हुई, एमआईएम उसके पहले से अलगाववाद की पैरोकार रही है। १९३८ में बहादुर यार जंग एमआईएम का सदर बना तो उसने मुस्लिम लीग के साथ सियासी समीकरण बैठा लिया। २६ दिसंबर १९४३ को लाहौर के मुस्लिम लीग सम्मेलन में इसी नवाब बहादुर यार जंग ने पाकिस्तान के समर्थन में सबसे आक्रामक भाषण दिया था। एमआईएम ने आजादी के पहले हैदराबाद से हिंदुओं के सफाए के लिए डेढ़ लाख रजाकारों की फौज तैयार की थी। हैदराबाद स्टेट में तब महाराष्ट्र का वर्तमान मराठवाड़ा भी हिस्सा था। हैदराबाद स्टेट के तत्कालीन प्रधानमंत्री मीर लाइक अली की सलाह पर तब कासिम राजवी नामक वकील को रजाकारों की सेना का मुखिया बनाया गया था। जब १९४८ में रजाकारों ने हिंदुओं का कत्लेआम शुरू किया तब भी पं. जवाहर लाल नेहरू मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के चलते हिंदुओं का खूनखराबा रजाकारों के हाथ चुपचाप देखते रहे। उन दिनों सरदार वल्लभभाई पटेल देश के गृहमंत्री थे, उन्होंने नेहरू को फटकारा और सेना और पुलिस के संयुक्त अभियान के तहत ऑपरेशन पोलोका आदेश दिया। हिंदू जनता पहले से ही रजाकारों की बर्बरता से लड़ने को तैयार थी। जब रजाकार चुन-चुन कर काटे जाने लगे तब मुस्लिम अलगाववादियों का दिमाग ठिकाने पर आया और निजाम भी आत्मसमर्पण को मजबूर हुआ। रजाकारों के मुखिया कासिम राजवी को जेल में ठूंस दिया गया। जब उसने अपने गुनाहों से तौबा कर लिया तब उसे १९५७ में पाकिस्तान जाने की शर्त पर जेल से रिहा किया गया। राजवी के दुम दबाकर भागने के बाद एमआईएम ठंडी पड़ गई। उसका नियंत्रण अब्दुल वाहिद ओवैसी के हाथ आ गया।
ये है ओवैसी का अतीत...
अब्दुल वाहिद ओवैसी स्वयंभू सालार-ए-मिल्लत (कौम का कमांडर) कहलाता था। १९६० में उसने हैदराबाद महापालिका का चुनाव जीता। १९६२ में अब्दुल वाहिद ओवैसी का बेटा सुलतान सलाहुद्दीन ओवैसी पथरघट्टी विधानसभा सीट जीतकर आंध्र प्रदेश विधानसभा पहुंचा। १९६७ में वह चारमीनार से और १९७२ में यकूतपुरा से विधानसभा पहुंचा। १९७४-७५ में सुलतान सलाहुद्दीन ओवैसी एमआईएम का सर्वेसर्वा बन गया। १९८४ में सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी पहली बार हैदराबाद से लोकसभा चुनाव जीतने में कामयाब हुआ तब से २००४ तक वह लगातार सांसद रहा। २००४ में उसने अपनी जगह अपने बेटे असदुद्दीन ओवैसी को हैदराबाद से लोकसभा प्रत्याशी बनाया। २९ सितंबर २००८ को सुलतान सलाहुद्दीन के इंतकाल के बाद उसका बड़ा बेटा असदुद्दीन एमआईएम का प्रमुख बन गया। १९९० के दशक में एमआईएम में फूट पड़ी थी। ओवैसी परिवार के खिलाफ एमआईएम के चंद्रगुट्टा के विधायक अमानुल्ला खान ने बगावत कर दी तो १९९९ में अकबरुद्दीन ओवैसी को उसके खिलाफ उतार कर ओवैसी परिवार ने उसे परास्त किया था। हैदराबाद की महापालिका पर भी एमआईएम का कब्जा है और हैदराबाद का महापौर एमआईएम का मोहम्मद माजिद हुसैन है। एमआईएम की दहशत के चलते बीते कई वर्षों से हैदराबाद में रामनवमी के जुलूस को राज्य सरकार अनुमति नहीं दे रही। चारमीनार के निकट भाग्यलक्ष्मी मंदिर जो कि ३०० साल पुराना ऐतिहासिक मंदिर है और जिसके नाम पर हैदराबाद पहले भाग्यनगर के रूप में जाना जाता था, के गुबंद का निर्माण रोका गया।
औवेसी के सामने कांग्रेस भीगी बिल्ली!
आंध्रप्रदेश विधानसभा में एमआईएम के केवल ७ विधायक हैं पर उनकी दबंगई से कांग्रेस की सरकार कांपती है। अकबरुद्दीन ओवैसी माफिया गतिविधियों और हिंदूद्रोही वक्तव्यों के लिए कुख्यात है। २००७ में इसी अकबरुद्दीन ने ऐलान किया था कि यदि सलमान रश्दी या तस्लीमा नसरीन कभी हैदराबाद आए तो वह उनके सिर कलम कर लेगा। तस्लीमा नसरीन पर एमआईएम के कार्यकर्ताओं ने हमले की योजना भी बनाई थी, पर आज दिन तक आंध्र की कांग्रेस सरकार ने अकबरुद्दीन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। २०११ में कुरनूल में एमआईएम की एक रैली में इसी अकबरुद्दीन ने आंध्र के विधायकों को काफिर तथा आंध्र की विधानसभा को कुप्रâस्तान कह कर अपमानित किया था, पर किसी आंध्र के विधायक ने अकबरुद्दीन पर विशेषाधिकार हनन का मामला चलाने की भी हिम्मत नहीं जुटाई। इसी रैली में उसने पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंहराव को कातिल, दरिंदा, बेईमान, धोखेबाज और चोर जैसी गालियां देकर कहा था -अगर राव मरा नहीं होता तो मैं उसे अपने हाथों से मार डालता।अप्रैल २०१२ में अकबरुद्दीन ने हरामीपने की हद पार करते हुए हिंदुओं के प्रभु राम और उनकी मां कौशल्या के लिए ऐसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया जिसे सुनकर उस सूअर के पिल्ले की खाल खींच लेना ही एकमेव दंड बचता है।
अगस्त २०१२ में इसी अकबरुद्दीन ओवैसी ने आंध्र पुलिस को हिजड़ों की फौजकरार दिया था, तब भी इस लंडूरेके खिलाफ आंध्र पुलिस का आत्म सम्मान नहीं जागृत हुआ। उस समय भी ओवैसी ने चुनौती दी थी कि पुलिस और हिंदुओं में मुसलमानों से लड़ने की ताकत नहीं। बीते माह ८ दिसंबर २०१२ को इसी हरामपिल्ले ने फिर जहर उगला- यह भाग्यलक्ष्मी कौन है और वहां बैठ कर क्या कर रही है? यह हिंदुओं का नया देवता कौन है, मैंने तो इसका नाम पहले कभी नहीं सुना। इतनी जोर से नारा लगाओ कि उनका भाग्य कांप जाए और लक्ष्मी गिर पड़े।अकबरुद्दीन ने जब यह हरामपंथी वाला बयान दिया तब मुस्लिमों की उन्मादी भीड़ ने अल्लाह ओ अकबरका गगनभेदी नारा लगाया। उसके बाद उसने २४ दिसंबर को आदिलाबाद में हजारों मुसलमानों की मौजूदगी में १०० करोड़ हिंदुओं के १५ मिनट में खात्मे की कूवत का ऐलान किया। नरेंद्र मोदी को फांसी पर लटकाने की मांग की। सरकार मुस्लिम वोट बैंक के लिए चुप्पी साधे पड़ी है। सरकार हिंदुओं के सहनशीलता का इम्तहान ले रही है। यदि अकबरुद्दीन पर कार्रवाई नहीं हुई और हिंदुओं का माथा भड़का तो उसकी ऐसी दुर्दशा होगी कि उसके पूर्वज भी कब्र से निकल कर अपने गुनाहों के लिए तौबा करेंगे। सौ करोड़ हिंदू यदि एकमुश्त लघुशंका भी कर देंगे तो ओवैसी खानदान डूबकर मर जाएगा!
(लेखक शिवसेना के मुखपत्र सामना के कार्यकारी संपादक हैं) 

सुन, ओ शैतान की औलाद


सुन, ओ शैतान की औलाद

(प्रेम शुक्‍ला)

बीते पखवाड़े जब पूरे देश का मीडिया दिल्ली के दामिनी बलात्कार कांड से उमड़े जनाक्रोश को जन-जन तक पहुंचाने में व्यस्त था ठीक उसी समय हैदराबाद के मुस्लिम नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने हिंदुस्थान के १०० करोड़ हिंदुओं को १५ मिनट में नेस्तनाबूद करने की चेतावनी जारी की। मुंबई में किसी राजनीतिक उत्पाती के पत्थर से अगर किसी एक टैक्सीवाले की कांच भी फूट जाए तो दिल्ली के मीडिया मार्तंडों को राष्ट्र की अखंडता पर खतरा मंडराते नजर आने लगता है। कोई हिंदूवादी नेता अगर किसी एक सड़े हुए मुस्लिम आतंकी को कुचलकर मारने की चेतावनी जारी कर दे तो तमाम ढोंगी सेकुलरों को धर्मनिरपेक्षता मरणशैय्या पर दिखाई देने लगती है।
अब क्यों चुप हैं सेकुलरवाद के ठेकेदार?
शिवसेनाप्रमुख ने जब कभी मुस्लिम वोट बैंक के लालच में अनर्गल मुस्लिम तुष्टीकरण को रोकने के लिए मुस्लिमों के मताधिकार छीनने की मांग रखी तो उनके वक्तव्य के मर्म को समझने की बजाय दिल्ली के पेड इंटलेक्चुअलशिवसेनाप्रमुख को दंडित करने के लिए कोलाहल मचाने लगते थे। २ साल पहले मैं  आईबीएन-७ पर एक चर्चा में हिस्सा ले रहा था जब मेरे सवालों का जवाब देने में नई दुनियाके तत्कालीन संपादक आलोक मेहता खुद को असमर्थ पाने लगे तो उन्होंने खीझकर शिवसेनाप्रमुख को फांसी पर लटकाने की मांग शुरू कर दी। चर्चा के दौरान अगर हम लोगों के मुंह से कोई कठोर शब्द भी निकल जाए तो संसदीय भाषा की दुहाई देकर कांव-कांव करने वाले आईबीएन ७ के संपादक आशुतोष ने आश्चर्यजनक रूप से आलोक मेहता को रोकने-टोकने की बजाय उनकी सफाई में अपनी सारी ऊर्जा खर्च कर दी। स्थानीय लोकाधिकार के मुद्दे पर शिवसेना ने जब कभी महाराष्ट्र में मराठी, गुजरात में गुजराती और पंजाब में पंजाबी को रोजगार में प्राथमिकता की पैरवी की तो शिवसेना को प्रांतवादी और विघटनवादी करार देकर उसकी मान्यता को रद्द करने के लिए याचिकाओं का अंबार लग गया। आश्चर्यजनक रूप से सेकुलरवाद के सारे ठेकेदारों ने अकबरुद्दीन ओवैसी के बयान पर चुप्पी साधे रखी।
ऐसी धमकी तो कभी लादेन ने भी नहीं दी
अकबरुद्दीन ओवैसी के बयान पर इन पालतू राष्ट्रवादी मुसलमानों तक की बकार भी नहीं फूटी। किसी अन्य शीर्ष नेता ने भी आज दिन तक ओवैसी पर कड़ी कार्रवाई की मांग नहीं की है। किसी बुद्धिजीवी, पत्रकार और सेकुलर नेता ने यह जानने की जहमत भी नहीं उठाई है कि ओवैसी के पास आखिर कौन सा ऐसा हथियार है जिससे वह १०० करोड़ हिंदुओं के खात्मे की वल्गना कर रहा है? कहीं ओवैसी को पाकिस्तानी इस्लामी परमाणु बम हाथ तो नहीं लग गया? ओवैसी जितनी बड़ी धमकी दे रहा है उतनी बड़ी धमकी तो कभी ओसामा बिन लादेन ने भी नहीं दी। जुल्फिकार अली भुट्टो दशकों तक हिंदुस्तान से लड़ने का दंभ भरा करते थे तो उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो सदियों तक हिंदुस्तान से लड़ने का पाकिस्तानी हौसला बयान किया करती थी, पर उन दोनों ने भी कभी १०० करोड़ हिंदुओं के खात्मे का बड़बोलापन नहीं किया। फिर ओवैसी के इतने जबर्दस्त विध्वंसक बयान पर भी सेकुलरवाद के रखवाले गूंगे-बहरे क्यों बने रहे? ‘सहमतऔर शबाना आजमी का एक बयान जरूर आया पर उसमें भी औपचारिक विरोध के अलावा कुछ नजर नहीं आता।
ओवैसी को हल्के में लिया तो पछताओगे
आंध्रप्रदेश की पुलिस ने तो ओवैसी के इस बयान पर एक साधारण एफआईआर दर्ज करना भी जरूरी नहीं माना और उनकी कलम तब उठी जब अदालत ने निर्देश दिया। गुजरात दंगों में मुस्लिमों की मौत के लिए दुनिया की कोई भी अदालत न्याय के मान्य मापदंड पर नरेंद्र मोदी को दोषी नहीं ठहरा सकती, फिर भी सिर्फ यूरोप-अरब-अमेरिका प्रायोजित एनजीओ बिरादरी के बखेड़े पर मोदी को यूरोप और अमेरिका मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर विराजमान होने के बावजूद वीसा देने से इंकार करते हैं। ओवैसी को इतने घातक बयान के बाद भी ब्रिटेन का वीसा मिलने और लंदन यात्रा करने में कोई दिक्कत नहीं आती। इस राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ढोंग का क्या औचित्य? क्या ओवैसी के बयान को हलके में लिया जा सकता है? ओवैसी जिस आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन का विधायक है उसकी पृष्ठभूमि जानने वाला कोई भी जानकार उसके बयान को हलके में लेने की सलाह नहीं देगा। मुस्लिम अलगाववाद का सऊदी अरेबिया और पाकिस्तान प्रायोजित जो ब्लू प्रिंट है उसका अंतिम चरण दक्षिणी हिंदुस्थान का इस्लामी अलगाववाद है। इस्लामी अलगाववाद का पहला चरण कश्मीर, दूसरा चरण असम समेत पूर्वोत्तर, तीसरा चरण हिंदुस्थान के प्रमुख शहरों को निशाना बनाना तथा अंतिम चरण हैदराबाद को केंद्र में रख दक्षिणी हिंदुस्थान में अलगाववादी ताकतों को बढ़ावा देना है।
हैदराबाद हो पाकिस्तान का हिस्सा... 
इस्लामी आतंकवाद का कश्मीर को हिंदुस्थान से अलग करने का प्रयास १९४७ से जारी है। १९६० के दशक से लगातार पूर्वोत्तर हिंदुस्थान में मुस्लिम आबादी बढ़ाकर असम को लीलने का प्रयास चल रहा है। १९८० के बाद से दर्जनों बार असम में स्थानाrय असमी आबादी और बांग्लादेशी मुसलमानों के बीच टकराव हो चुका है। बीते वर्ष जब बोडो जनजाति और बांग्लादेशी मुसलमानों के बीच संघर्ष व्यापक हुआ था तब मुंबई, बैंगलोर समेत तमाम शहरों में मुसलमानों ने किस तरह पूर्वोत्तर वासियों को धमकाया यह पूरा देश हताश होकर देख रहा था। १९९० के दशक से ऑपरेशन के-२ के माध्यम से इस्लामी अलगाववादी देश के तमाम शहरों में निर्दोष हिंदुओं का खून बहाते रहे हैं। हुजी, लश्कर-ए-तोयबा, इंडियन मुजाहिदीन, हरकत-उल-अंसार जैसी दर्जनों तंजीमे हिंदुस्थान में ग्रीन कॉरिडोर (हरा गलियारा) बनाने में जुटी रही हैंै। शायद ही कोई प्रमुख शहर बचा हो जहां इस्लामी आतंकवाद का पंजा नजर न आया हो। अब मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) के विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी का बयान संकेत दे रहा है कि मुस्लिम अलगाववाद अपने चौथे यानी अंतिम चरण में पहुंचने को है। १९४७ के पहले जिन इलाकों से पाकिस्तान समर्थक बांग लगी थी उसमें हैदराबाद प्रमुख था। हैदराबाद को पाकिस्तान का हिस्सा बनाने की मांग के लिए ही एमआईएम गठित हुई थी। ज्ञात इतिहास के अनुसार १९२७ में निजाम का समर्थन करने के लिए नवाब मीर उस्मान अली खान की सलाह पर महमूद नवाज खान किलेदार गोलकुंडा ने एमआईएम का गठन किया था। इसकी पहली बैठक नवाब महमूद नवाज खान के घर तौहीद मंजिलमें हुई थी जिसमें पहला ही प्रस्ताव यही था कि एमआईएम को किसी भी सूरत में हैदराबाद को हिंदुस्थान का हिस्सा बनने से रोकना है।
...तब कासिम राजवी दुम दबाकर भागा 
पाकिस्तान की मांग १९३० के दशक में हुई, एमआईएम उसके पहले से अलगाववाद की पैरोकार रही है। १९३८ में बहादुर यार जंग एमआईएम का सदर बना तो उसने मुस्लिम लीग के साथ सियासी समीकरण बैठा लिया। २६ दिसंबर १९४३ को लाहौर के मुस्लिम लीग सम्मेलन में इसी नवाब बहादुर यार जंग ने पाकिस्तान के समर्थन में सबसे आक्रामक भाषण दिया था। एमआईएम ने आजादी के पहले हैदराबाद से हिंदुओं के सफाए के लिए डेढ़ लाख रजाकारों की फौज तैयार की थी। हैदराबाद स्टेट में तब महाराष्ट्र का वर्तमान मराठवाड़ा भी हिस्सा था। हैदराबाद स्टेट के तत्कालीन प्रधानमंत्री मीर लाइक अली की सलाह पर तब कासिम राजवी नामक वकील को रजाकारों की सेना का मुखिया बनाया गया था। जब १९४८ में रजाकारों ने हिंदुओं का कत्लेआम शुरू किया तब भी पं. जवाहर लाल नेहरू मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के चलते हिंदुओं का खूनखराबा रजाकारों के हाथ चुपचाप देखते रहे। उन दिनों सरदार वल्लभभाई पटेल देश के गृहमंत्री थे, उन्होंने नेहरू को फटकारा और सेना और पुलिस के संयुक्त अभियान के तहत ऑपरेशन पोलोका आदेश दिया। हिंदू जनता पहले से ही रजाकारों की बर्बरता से लड़ने को तैयार थी। जब रजाकार चुन-चुन कर काटे जाने लगे तब मुस्लिम अलगाववादियों का दिमाग ठिकाने पर आया और निजाम भी आत्मसमर्पण को मजबूर हुआ। रजाकारों के मुखिया कासिम राजवी को जेल में ठूंस दिया गया। जब उसने अपने गुनाहों से तौबा कर लिया तब उसे १९५७ में पाकिस्तान जाने की शर्त पर जेल से रिहा किया गया। राजवी के दुम दबाकर भागने के बाद एमआईएम ठंडी पड़ गई। उसका नियंत्रण अब्दुल वाहिद ओवैसी के हाथ आ गया।
ये है ओवैसी का अतीत...
अब्दुल वाहिद ओवैसी स्वयंभू सालार-ए-मिल्लत (कौम का कमांडर) कहलाता था। १९६० में उसने हैदराबाद महापालिका का चुनाव जीता। १९६२ में अब्दुल वाहिद ओवैसी का बेटा सुलतान सलाहुद्दीन ओवैसी पथरघट्टी विधानसभा सीट जीतकर आंध्र प्रदेश विधानसभा पहुंचा। १९६७ में वह चारमीनार से और १९७२ में यकूतपुरा से विधानसभा पहुंचा। १९७४-७५ में सुलतान सलाहुद्दीन ओवैसी एमआईएम का सर्वेसर्वा बन गया। १९८४ में सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी पहली बार हैदराबाद से लोकसभा चुनाव जीतने में कामयाब हुआ तब से २००४ तक वह लगातार सांसद रहा। २००४ में उसने अपनी जगह अपने बेटे असदुद्दीन ओवैसी को हैदराबाद से लोकसभा प्रत्याशी बनाया। २९ सितंबर २००८ को सुलतान सलाहुद्दीन के इंतकाल के बाद उसका बड़ा बेटा असदुद्दीन एमआईएम का प्रमुख बन गया। १९९० के दशक में एमआईएम में फूट पड़ी थी। ओवैसी परिवार के खिलाफ एमआईएम के चंद्रगुट्टा के विधायक अमानुल्ला खान ने बगावत कर दी तो १९९९ में अकबरुद्दीन ओवैसी को उसके खिलाफ उतार कर ओवैसी परिवार ने उसे परास्त किया था। हैदराबाद की महापालिका पर भी एमआईएम का कब्जा है और हैदराबाद का महापौर एमआईएम का मोहम्मद माजिद हुसैन है। एमआईएम की दहशत के चलते बीते कई वर्षों से हैदराबाद में रामनवमी के जुलूस को राज्य सरकार अनुमति नहीं दे रही। चारमीनार के निकट भाग्यलक्ष्मी मंदिर जो कि ३०० साल पुराना ऐतिहासिक मंदिर है और जिसके नाम पर हैदराबाद पहले भाग्यनगर के रूप में जाना जाता था, के गुबंद का निर्माण रोका गया।
औवेसी के सामने कांग्रेस भीगी बिल्ली!
आंध्रप्रदेश विधानसभा में एमआईएम के केवल ७ विधायक हैं पर उनकी दबंगई से कांग्रेस की सरकार कांपती है। अकबरुद्दीन ओवैसी माफिया गतिविधियों और हिंदूद्रोही वक्तव्यों के लिए कुख्यात है। २००७ में इसी अकबरुद्दीन ने ऐलान किया था कि यदि सलमान रश्दी या तस्लीमा नसरीन कभी हैदराबाद आए तो वह उनके सिर कलम कर लेगा। तस्लीमा नसरीन पर एमआईएम के कार्यकर्ताओं ने हमले की योजना भी बनाई थी, पर आज दिन तक आंध्र की कांग्रेस सरकार ने अकबरुद्दीन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। २०११ में कुरनूल में एमआईएम की एक रैली में इसी अकबरुद्दीन ने आंध्र के विधायकों को काफिर तथा आंध्र की विधानसभा को कुप्रâस्तान कह कर अपमानित किया था, पर किसी आंध्र के विधायक ने अकबरुद्दीन पर विशेषाधिकार हनन का मामला चलाने की भी हिम्मत नहीं जुटाई। इसी रैली में उसने पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंहराव को कातिल, दरिंदा, बेईमान, धोखेबाज और चोर जैसी गालियां देकर कहा था -अगर राव मरा नहीं होता तो मैं उसे अपने हाथों से मार डालता।अप्रैल २०१२ में अकबरुद्दीन ने हरामीपने की हद पार करते हुए हिंदुओं के प्रभु राम और उनकी मां कौशल्या के लिए ऐसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया जिसे सुनकर उस सूअर के पिल्ले की खाल खींच लेना ही एकमेव दंड बचता है।
अगस्त २०१२ में इसी अकबरुद्दीन ओवैसी ने आंध्र पुलिस को हिजड़ों की फौजकरार दिया था, तब भी इस लंडूरेके खिलाफ आंध्र पुलिस का आत्म सम्मान नहीं जागृत हुआ। उस समय भी ओवैसी ने चुनौती दी थी कि पुलिस और हिंदुओं में मुसलमानों से लड़ने की ताकत नहीं। बीते माह ८ दिसंबर २०१२ को इसी हरामपिल्ले ने फिर जहर उगला- यह भाग्यलक्ष्मी कौन है और वहां बैठ कर क्या कर रही है? यह हिंदुओं का नया देवता कौन है, मैंने तो इसका नाम पहले कभी नहीं सुना। इतनी जोर से नारा लगाओ कि उनका भाग्य कांप जाए और लक्ष्मी गिर पड़े।अकबरुद्दीन ने जब यह हरामपंथी वाला बयान दिया तब मुस्लिमों की उन्मादी भीड़ ने अल्लाह ओ अकबरका गगनभेदी नारा लगाया। उसके बाद उसने २४ दिसंबर को आदिलाबाद में हजारों मुसलमानों की मौजूदगी में १०० करोड़ हिंदुओं के १५ मिनट में खात्मे की कूवत का ऐलान किया। नरेंद्र मोदी को फांसी पर लटकाने की मांग की। सरकार मुस्लिम वोट बैंक के लिए चुप्पी साधे पड़ी है। सरकार हिंदुओं के सहनशीलता का इम्तहान ले रही है। यदि अकबरुद्दीन पर कार्रवाई नहीं हुई और हिंदुओं का माथा भड़का तो उसकी ऐसी दुर्दशा होगी कि उसके पूर्वज भी कब्र से निकल कर अपने गुनाहों के लिए तौबा करेंगे। सौ करोड़ हिंदू यदि एकमुश्त लघुशंका भी कर देंगे तो ओवैसी खानदान डूबकर मर जाएगा!
(लेखक शिवसेना के मुखपत्र सामना के कार्यकारी संपादक हैं) 

लौट आए उवैसी, मांगी मोहलत

लौट आए उवैसी, मांगी मोहलत

(जाकिया जरीन)

हैदराबाद (साई)। कथित तौर पर लोगों को उकसाने के आरोपी अकबरूददीन ओवैसी आखिरकार स्‍वदेश वापस आ ही गए। वापस आकर उन्‍होंने पुलिस के सामने पेश होने के लिए चार दिन की मोहलत मांगी है। अब देश भर में यह बहस छिड गई है कि प्रत्‍यक्ष तौर पर वीडियोज में एक कौम विशेष को भडकाने का काम किया है ओबैसी ने फिर उसे चार दिन की मोहलत देने का ओचित्‍य क्‍या है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस अपने वोट बैंक की खातिर किसी भी स्‍तर तक जाने को आमदा दिख रही है।
अपने भड़काऊ भाषण के कारण मुसीबत में फंसे अकबरूद्दीन ओवैसी ने पुलिस ने सामने पेश होने के लिए चार दिन की मोहलत मांगी है। ओवैसी पर उनके भाषण के लिए तीन अलग-अलग थानों में मामला दर्ज हुआ है। इनमें से एक थाने में ओवैसी को आज पेश होना था और ऐसा माना जा रहा था कि ओवैसी आज पुलिस के सामने पेश हो सकता है। लेकिन अपने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उसने चार दिन की मोहलत मांगी है। एमआईएम के विधायक अकबरूद्दीन ओवैसी आज तड़के सुबह ही लंदन से हैदराबाद लौटे हैं। एयरपोर्ट पर उनके समर्थकों ने अपनी ताकत दिखाने के लिए ओवैसी का गर्मजोशी से स्वागत किया।
ओवैसी के खिलाफ जो तीन थानों में मामले दर्ज हुए हैं उनमें से दो थानों अदिलाबाद जिले के निर्मल शहर के थाने और निजामबाद शहर के थाने ने स्वयं ही संज्ञान लेते हुए ओवैसी के खिलाफ सार्वजनिक जगह में किसी एक समुदाय के खिलाफ अपमानजनक भाषण देने का मामला दर्ज किया है। इनमें से अदिलाबाद जिले के निर्मल शहर के थाने में ओवैसी को आज पेश होना था जबकि निजामबाद शहर के थाने में आठ जनवरी यानी कल पेश होना है। इसके अलावा ओस्मानिया यूनिवर्सिटी पुलिस थाने में भी कोर्ट के आदेश के बाद ओवैसी के खिलाफ मामला दर्ज हुआ है। इस थाने में ओवैसी को 10 जनवरी को पेश होना है।
इससे पहले अकबरूद्दीन ओवैसी के भाई और एमआईएम के एकमात्र लोकसभा सांसद असाउद्दीन ओवैसी ने कहा था कि अकबरूद्दीन कानून से भाग नहीं रहा है। उन्होंने कहा कि मेरा भाई कानून से भाग नहीं रहा है। हम हिंदुओं के खिलाफ नहीं है। हम भाजपा और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी के खिलाफ हैं। ओवैसी ने दो महीने पहले ही कांग्रेस से अपना समर्थन वापस लिया था। 
ओवैसी के खिलाफ आईपीसी की धारा 153ए (दो समुदायों के बीच धर्म, भाषा, वंश और जन्म स्थाने के आधार पर दुश्मनी पैदा करना। जो सद्भाव के कार्य में बाधा है), 295ए (किसी के धर्म और धार्मिक विश्वास के अपमान के द्वारा किसी भी वर्ग के आक्रोश व धार्मिक भावनाओं को जानबूझ कर भड़काना)। इसके साथ ही ओवैसी पर आईपीसी की धारा 121 (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छोड़ना या युद्ध छेड़ने का प्रयास या युद्ध के लिए उकसाने का प्रयास)
ओवैसी के बयान पर राजनीतिक हलकों में काफी हंगामा मचा हुआ है। भाजपा और टीडीपी नेताओं ने आंध्र प्रदेश में कई जगह विरोध प्रदर्शन किया है। टीडीपी विधायक रेवंत रेड्डी ने मांग की है कि ओवैसी को उनके भाषण के लिए उनके पद से उन्हें हटाया जाए। भाजपा नेता बलबीर पुंज ने कहा कि जो राजनीतिक पार्टियां धर्मनिरपेक्ष होने का दावा कर करती हैं वह चुप क्यों हैं। जब ओवैसी भाषण दे रहा था तो वहां बैठे लोग ताली बजा रहे थे यह प्रवृत्ति गलत है।

मैंने नहीं कहा कि सार्वजनिक हो बेटी का नाम

मैंने नहीं कहा कि सार्वजनिक हो बेटी का नाम



(प्रेम शुक्‍ला)

एक दिन पहले लंदन के डेली मिरर अखबार द्वारा पीड़िता के पिता के हवाले से बेटी का नाम सार्वजनिक किये जाने के बाद अब पीड़िता के पिता के हवाले से भारत के एक अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स ने दावा किया है कि पीड़िता के पिता ने इस बात से इंकार किया है कि उसने लंदन के अखबार से नाम सार्वजनिक करने के लिए कहा था। पीड़िता के पिता का कहना है कि उन्होंने सिर्फ यह कहा था कि अगर उनकी बेटी के नाम पर कानून का नामकरण होता है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।
एक दिन पहले डेली मेल अखबार ने अपने संडे संस्करण में पीड़िता के पिता के हवाले से कहा था कि वे चाहते हैं कि उनकी बेटी के नाम के बारे में दुनिया जाने क्योंकि उसने कुछ गलत नहीं किया था बल्कि उसके साथ जो गलत हुआ था उसने उसका विरोध किया था। लेकिन अब हिन्दुस्तान टाइम्स अखबार ने पीड़िता के पिता के हवाले से कहा है कि रविवार की शाम को ही जब अखबार ने पीड़िता के पिता से संपर्क किया तो उन्होंने ऐसा कोई दावा करने से इंकार कर दिया है।
दिल्ली से प्रकाशित होनेवाले मेल टुडे अखबार ने कुछ दिन पहले संकेतों में उस पीड़िता लड़की का नाम सार्वजनिक किया था जिसके बाद दिल्ली पुलिस ने अखबार के खिलाफ धारा 228 (ए) के तहत मुकदमा दर्ज किया था जिसके तहत प्रावधान है कि बलात्कार संबंधी किसी मामले में (भारतीय दंड संहिता की धारा 376) अगर पीड़िता का नाम या पहचान कोई अखबार या फिर प्रकाशन संस्थान सार्वजनिक करता है तो उसके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है।
भारत के दो समाचार समूहों के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने इसी धारा के तहत मुकदमा दर्ज किया है और पीड़िता की पहचान सार्वजनिक करने का दोषी करार दिया है।
बहरहाल देखना यह होगा कि दिल्ली पुलिस डेली मिरर के खिलाफ क्या कार्रवाई करता है। क्योंकि न सिर्फ उसने सभी नाम सार्वजनिक किये हैं बल्कि अभी भी उसकी वेबसाइट पर पूरी स्टोरी मौजूदहै।
(विस्‍फोट डॉट काम से साभार)