शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

वन मंत्रालय से पावर प्लांट के प्रथम चरण की अनुमति एक अजूबा!


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 46

वन मंत्रालय से पावर प्लांट के प्रथम चरण की अनुमति एक अजूबा!

पानी की स्वीकृति लिए बिना कैसे पनपते पेड़

फरवरी 2011 को पानी के लिए हुआ समझौता, नहीं हुआ वृक्षारोपण



(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)। मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले की आदिवासी बहुल्य घंसौर तहसील में स्थापित किए जाने वाले कोल आधारित पावर प्लांट के द्वारा पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए संयंत्र क्षेत्र में वृक्षारोपण न किए जाने के बावजूद भी मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की अनुशंसा पर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 600 मेगावाट के प्रथम चरण की स्वीकृति मिलना अपने आप में एक अजूबे से कम नहीं है।
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर जिनका राजनैतिक क्षेत्र में भी इकबाल बुलंद है, के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा दो चरणों में लगाए जा रहे कोल आधारित पावर प्लांट के संयंत्र प्रबंधन द्वारा जमा कराए गए प्रपत्रों से साफ हो जाता है कि इस संयंत्र की स्थापना के दोनों चरणों में निर्माण अवस्था से प्रदूषण फैलना आरंभ हो जाएगा।
सूत्रों की मानें तो इसके निर्माण का काम वर्ष 2009 से ही आरंभ हो गया है। इस संयंत्र के निर्माण के पहले सबसे अधिक जरूरी यह बात थी कि संयंत्र क्षेत्र के आस पास वाले क्षेत्र में संयंत्र प्रबंधन द्वारा पर्याप्त मात्रा में वृक्षारोपण किया जाए, ताकि प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके। सूत्रों ने कहा कि इस हेतु संयंत्र प्रबंधन ने सरकार को भरोसा दिलाया था कि वह संयंत्र के निर्माण के पहले ही वृक्षारोपण का काम आरंभ कर देगा।
सूत्रों ने कहा कि जेपीएल के दूसरे चरण की लोकसुनवाई में संयंत्र प्रबंधन ने मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के आला अधिकारियों के समक्ष इस बात को स्वीकार किया था कि 22 नवंबर 2011 अर्थात निर्माण आरंभ होने के दो वर्षों बाद तक संयंत्र प्रबंधन द्वारा वृक्षारोपण नहीं किया गया है। हैरानी की बात तो यह है कि पर्यावरण और प्रदूषण नियंत्रण के लिए आहूत लोकसुनवाई में ही संयंत्र प्रबंधन ने स्वयं के द्वारा नियमों के माखौल उड़ाने की बात कही गई और जिला प्रशासन सिवनी तथा मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के आला अधिकारी मंुह ताकते बैठे रहे।
उधर, मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के सूत्रों का कहना है कि चूंकि वृक्षारोपण के उपरांत इन्हें बड़ा करने के लिए पानी की आवश्यक्ता होती। चूंकि मध्य प्रदेश सरकार से पानी लेने के लिए संयंत्र प्रबंधन का अनुबंध नहीं हुआ था अतः इन पौधों को पानी कैसे दिया जाता। अगर यह पानी दूर से लाया जाता तो यह काफी हद तक मंहगा साबित होता, संभवतः यही कारण था कि पर्यावरण बचाने और प्रदूषण रोकने के लिए आवश्यक वृक्षारोपण संयंत्र प्रबंधन द्वारा वर्ष 2009 से 2011 तक नहीं करवाया गया।
मध्य प्रदेश सरकार के जल संसाधन विभाग के सूत्रों का कहना है कि संयंत्र प्रबंधन द्वारा जल संसाधन विभाग, मध्य प्रदेश शासन के पत्र क्रमांक वृपनिम/31/रास्/162/08/86 दिनांक 06 फरवरी 2009 द्वारा 23 एमसीएम/वर्ष की जल अनुमति प्राप्त की जा चुकी है। सूत्रों ने आगे बताया कि मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड और मध्य प्रदेश सरकार के नर्मदा वैली विकास प्राधिकरण के मध्य 21 फरवरी 2011 को 16.88 एसीएम पानी हर साल रानी अवंती बाई सागर परियोजना के बरगी बांध से निकालने हेतु समझौता भी हो चुका है।
कुल मिलाकर सिवनी जिले की आदिवासी बाहुल्य तहसील घंसौर में पर्यावरण बिगड़े, प्रदूषण फैले, क्षेत्र झुलसे या आदिवासियों के साथ अन्याय हो इस बात से मध्य प्रदेश सरकार के प्रदूषण नियंत्रण मण्डल और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को कुछ लेना देना नहीं है। यह सब देखने सुनने के बाद भी केंद्र सरकार का वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, मध्य प्रदेश सरकार, मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल, जिला प्रशासन सिवनी सहित भाजपा के सांसद के.डी.देशमुख विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, कमल मस्कोले, एवं क्षेत्रीय विधायक जो स्वयं भी आदिवासी समुदाय से हैं श्रीमति शशि ठाकुर, कांग्रेस के क्षेत्रीय सांसद बसोरी सिंह मसराम एवं सिवनी जिले के हितचिंतक माने जाने वाले केवलारी विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर चुपचाप नियम कायदों का माखौल सरेआम उड़ते देख रहे हैं।

(क्रमशः जारी)

भाजपा की जमानत पर चल रहे हैं मनमोहन!


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 68

भाजपा की जमानत पर चल रहे हैं मनमोहन!

यूपीए की दयनीय स्थिति का लाभ उठाने में भाजपा असफल



(लिमटी खरे)


नई दिल्ली (साई)। एक के बाद एक गल्तियों, घपलों, घोटालों के बाद भी विपक्ष में बैठी भाजपा ताकतवर तरीके से विरोध प्रदर्शित नहीं कर पा रही है जिसका पूरा पूरा लाभ वजीरे आजम डॉक्टर मनमोहन सिंह द्वारा उठाया जा रहा है। कांग्रेस नीत संप्रग सरकार ने न जाने कितने मौके भारतीय जनता पार्टी को घर बैठे बिठाए दिए जिसका लाभ उठाकर भाजपा चाहती तो प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह की रूखसती के मार्ग प्रशस्त कर सकती थी, वस्तुतः सारे मौके भाजपा ने देखते ही देखते गंवा दिए।
यूपीए की दूसरी पारी में जितने मामले सामने आए उनका लाभ भाजपा द्वारा अगर सलीके से लिया जाता तो आज देश में भाजपा के जनाधार में विस्फोटक बढ़ोत्तरी दर्ज हो सकती थी। भाजपा के आला नेताओं ने कांग्रेस की कमजोरियों का फायदा देश के हित में नहीं उठाया जाना आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है। घपले घोटालों के मामलों में जेल गए नेता आज मलाई काट रहे हैं। जेल के औचक निरीक्षण में भी वे बेहद निश्चिंत और आराम फरमाते नजर आए।
पिछले साल मनमोहन सिंह के संकटमोचक बने मानव संसाधन विकास तथा संचार मंत्री कपिल सिब्बल की जुबान अनेक मर्तबा फिसली पर भाजपा ने उनकी अनदेखी कर मनमोहन सिंह को परोक्ष तौर पर मजबूती ही प्रदान की है। पिछले साल के आरंभ में मनमोहन सरकार के ट्रबल शूटर कपिल सिब्बल ने मीडिया मे बयान दे डाला कि टू जी घोटाले से कोई नुकसान ही नहीं हुआ है। विपक्ष ने सरकार को इसके लिए कटघरे में खड़ा नहीं कर पाना अपने आप में एक अचंभा ही माना जाएगा। कपिल सिब्बल देश के जिम्मेदार संचार मंत्री के पद पर हैं और उनका हास्यास्पद बयान भी भाजपा में जोश का संचार नहीं कर पाया।
इसके बाद देश भर के जनाक्रोश का शिकार बने कपिल सिब्बल को घेरने में नाकाम रही भाजपा से निराश लोगों ने जब लोगों ने इंटरनेट और सोशल मीडिया पर कपिल सिब्बल को आड़े हाथों लिया तब उनकी नींद में खलल पड़ा और उन्होंने जब इंटरनेट और सोशल मीडिया पर पाबंदी लगाने की पेशकश की तब भी भाजपा नहीं चेती।
सियासी गलियारों में अब यह बात तैरने लगी है कि कांग्रेस और भाजपा मिलकर नूरा कुश्ती का प्रहसन कर रही है, जिससे देश की जनता अपने आप को छला सा महसूस कर रही है। देश के सबसे कमजोर प्रधानमंत्री समझे जाने वाले डॉक्टर मनमोहन सिंह को घेरने में जब भाजपा नाकामयाब ही रही तब लोगों को अब लगने लगा है कि मनमोहन सिंह अंत्तोगत्वा भाजपा की जमानत पर ही देश चला रहे हैं।


(क्रमशः जारी)

अभी भी मुर्दे गिनने में लगे हुए हैं हरवंश सिंह: भोजराज


अभी भी मुर्दे गिनने में लगे हुए हैं हरवंश सिंह: भोजराज



(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। नागपुर रोड में गड्ढों के कारण हुई दुर्घटना के कारण जितनी भी जाने गयी हैं उसके लिये कमलनाथ के साथ साथ हरवंश सिंह भी बराबर के दोषी हैं और वे अभी भी मुर्दे गिनने में लगे हुए हैं. इस रोड का सुदृढ़ीकरण जल्द से जल्द हो इसके लिये कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है. जबकि प्रोजेक्ट डायरेक्टर एस.के. सिंघई एन.एच.ए.आई. के चीफ जनरल मेनेजर को आगाह कर चुके हैं कि यह मार्ग यातायात के लायक बचा ही नहीं है इसके पुल पुलिया भी जर्जर हो चुके हैं. इस आशय की बात जनमंच के सदस्य श्री भोजराज मदने द्वारा एक स्थानीय समाचार पत्र से चर्चा के दौरान कही गयी है.
श्री मदने ने कहा कि दिनांक 01 मई 2010 को विस उपाध्यक्ष श्री हरवंश सिंह ने केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ को एक पत्र लिखा था जिसका मजमून यह था कि लखनादौन-खवासा फोरलेन मार्ग का विस्तार हो रहा है उस विस्तारित मार्ग का लगभग 90 प्रतिशत कार्य पूर्ण हो चुका है. इसमें जिला मुख्यालय समेत कई बड़े नगर व कस्बों को बायपास किया गया है. जिनमें से लखनादौन, गणेशगंज, छपारा, बंडोल, सिवनी, गोपालगंज प्रमुख हैं. इन बायपास से शहर के अंदर जाने वाले पुराने मार्गों की हालत अत्यंत जर्जर एवं खराब है. पत्र के अंत में हरवंश सिंह ने निवेदन किया था कि इन नगरों के अंदर जाने वाले जो कि पूर्व से ही एन.एच.-7 है को सुदृढ़ीकरण कर सुगम यातायात (स्मूथ राइडिंग सरफेस) बनाये जाने हेतु निर्देशित करें.
श्री मदने ने कहा कि हरवंश सिंह के उक्त पत्र के कारण ही आज तक सिवनी से खवासा तक की सड़क जर्जर हालात में है और लोगों की जाने जा रही हैं. अगर हरवंश सिंह पहले से ही जिले के अंदर खवासा से लेकर लखनादौन तक की पुरानी जीएन रोड जो कि अभी भी एनएच है को सुधारे जाने हेतु जोर दिया होता तो पूरा काम एकसाथ होता किन्तु उन्होंने अपने पत्र में मात्र लखनादौन, गणेशगंज, छपारा, बंडोल, सिवनी, गोपालगंज तक के मार्ग के सुदृढ़ीकरण की मांग की जिसके कारण आज तक खवासा तक की सड़क जर्जर हालत में है और वहाँ आये दिन दुर्घटनाएं हो रही हैं. लोगों की जाने जा रही है, एम्बुलैंस समय पर न पहुँच पाने के कारण लोग मर रहे हैं स्थिति यहाँ तक है कि डिलेवरी का कोई ट्रिपिकल केस आता है तो सिवनी के डाँक्टर नागपुर रिफर कर देते हैं और समय पर एम्बुलेंस वाला प्रसूता को नागपुर नहीं पहुँचा पाता और एम्बुलैंस वह तेज इसीलिये नहीं चला पाता क्योंकि गढ्ढों के डर से प्रसूता कहीं कोई दिक्कत न आ जाये. श्री मदने ने कहा कि ऐसा ही एक वाक्या हुआ था जब प्रसूता को चिकित्सकों द्वारा नागपुर रिफर किया गया और वह रास्ते में थी और उसे तेज दर्द हुआ और एंबुलेंस में ही बड़ी मुश्किल से उसकी डिलेवरी हुई.
श्री मदने ने कहा कि सड़क की जर्जर हालत को देखते हुए प्रोजेक्ट डायरेक्टर एस.के. सिंघई द्वारा दिनांक 30 अगस्त 2011 को ही एनएचएआई के चीफ जनरल मेनेजर को आगाह करते हुए एक पत्र जिसका क्रमांक एनएचएआई/पीआईयू/एनएआर/अतिरिक्त कार्य/2011/8424 है लिखा गया था. पत्र में कहा गया था कि सड़क भारी बारिश और यातायात के कारण अत्यंत जीर्ण शीर्ण अवस्था में आ चुकी मोहगाँव से आगे नागपुर तक की रोड यातायात के योग्य नहीं है. विशेषतौर से वह रोड जो कुरई घाटि के जंगलों के किनारे से गुजरती है के रखरखाव की कमी के कारण अब यातायात के लायक ही नहीं बची है. इस रोड पर बने सभी पुल और पुलिया बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हैं. अतः सिवनी कलेक्टर ने भी रोड के रख रखाव और वाहनों के यातायात को सुगम बनाने के लिये निर्देशित किया है.
श्री मदने ने कहा कि प्रोजेक्ट डायरेक्टर एस.के. सिंघई द्वारा अपने पत्र में अलोनिया स्थिति टोल प्लाजे के बारे में अपनी टिप्पणी देते हुए यह भी लिखा है कि टोल प्लाजा में वाहनों से शुल्क वसूलने के मामले में भी सिवनी जिले के लोग नाराज हैं. और वे लगातार यह मांग कर रहे हैं कि सिवनी से खवासा के बीच खस्ताहाल सड़क को तत्काल ही सुधारा जाये.
श्री मदने ने कहा कि हरवंश सिंह न फोरलेन ला पा रहे हैं न ही पुरानी सड़क को सुधरवा पा रहे हैं और तो और हरवंश सिंह की ही वजह से लोगों से सिवनी से छपारा जान का 100 रूपये देना पड़ रहा है जो कि किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है.

जल संकट के वर्तमान हालात और उपाय


जल संकट के वर्तमान हालात और उपाय



(श्याम नारायण रंगा अभिमन्यु’)

जल ही जीवन है। जल जीवन का सार है। प्राणी कुछ समय के लिए भोजन के बिना तो रह सकता है लेकिन पानी के बिना नहीं। जल के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। अतः जल जीवन की वह ईकाई है जिसमेें जीवन छीपा है। वर्तमान मंे इस जल पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। जल की कमी ने मानव जाति के सामने अस्तित्व का संकट पैदा कर दिया है। जल के लिए दुनिया के कईं राष्ट्रों में हालात विकट है।
अगर हम विष्व परिदृष्य पर गौर करें तो कईं चौकाने वाले तथ्य सामने आते हैं। विष्व में 260 नदी बेसिन इस प्रकार के हैं, जिन पर एक से अधिक देषों का हिस्सा है, इन देषों के बीच जल बंटवारे को लेकर किसी प्रकार का कोई वैधानिक समझौता नहीं है। दुनिया के कुल उपलब्ध जल का एक प्रतिषत ही जल पीने योग्य है। हमें पीने का पानी ग्लेष्यिरों से प्राप्त होता है और ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ा है और इस कारण भविष्य में जल संकट की भयंकर तस्वीर सामने आ सकती है। दुनिया में जल उपलब्धता 1989 में 9000 क्यूबिक मीटर प्रति व्यक्ति थी जो 2025 तक 5100 क्यूबिक मीटर प्रति व्यक्ति हो जाएगी और यह स्थिति मानव जाति के संकट की स्थिति होगी। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में आधी से ज्यादा नदियॉं प्रदूषित हो चुकी है और इनका पानी पीने योग्य नहीं रहा है और इन नदियों में पानी की आपूर्ति भी निरन्तर कम हो रही है। विष्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के अनुसार दुनिया भर में 86 फीसदी से अधिक बीमारियों का कारण असुरक्षित व दूषित पेयजल है। वर्तमान में 1600 जलीय प्रजातियॉं जल प्रदूषण के कारण लुप्त होने के कगार पर है। विष्व में 1.10 अरब लोग दूषित पेयजल पीने को मजबूर है और साफ पानी के बगैर अपना गुजारा कर रहे हैं।
इसी संदर्भ में अगर हम भारतीय परिदृष्य पर गौर करें तो हालात और भी विकट है। वर्तमान में 303.6 मिलियन क्यूबिक फीट पानी प्रतिवर्ष एषियाई नदियों को हिमालय के ग्लेषियर्स से प्राप्त हो रहा है। जल विषेषज्ञों का अनुमान है कि सन् 2100 के समाप्त होते होते हिमालय के आधे ग्लैषियर सूख चुके होंगे और ऐसी स्थिति में पेयजल की क्या स्थिति होगी इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 4.4 करोड़ लोग भारत में बेहद प्रदूषित जल का सेवन करने को मजबूर है। हमारे देष में सिंचाई कार्यों के लिए 70 प्रतिषत जल भूमिगत जल स्रोतों से प्राप्त होता है और घरेलू कार्यों के लिए 80 प्रतिषत जल की आपूर्ति भूमिगत जल स्रोतों से की जाती है। वर्तमान में देष की राजधानी दिल्ली में चार घण्टे व देष की औद्योगिक राजधानी माने जाने वाले मुम्बई में लगभग 5 घण्टे जलापूर्ति की जा रही है। भारत की तीसरी लघु सिंचाई जनगणना के आंकड़ों के अनुसार   1.90 करोड़ कुएॅं और गहरे ट्यूबवेल है। भारत में 39 प्रतिषत परिवारों को ही घरों में पेयजल की सुविधा उपलबध है और 22 प्रतिषत परिवारो को ही नल द्वारा जलापूर्ति की सुविधा उपलब्ध हो रही है। राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रषासन संस्थान द्वारा करवाए गए एक सर्वे के अनुसार हमारे देष में 2 लाख से भी अधिक स्कूल ऐसे हैं जिन्हें पीने का पानी आज तक उपलब्ध नहीं करवाया जा सका है। एक अनुमान के मुताबिक 28.6 प्रतिषत परिवारों को पीने का पानी लाने के लिए 500 मीटर से अधिक का फासला तय करना पड़ता है।
ऊपर लिखे गए तथ्यों से ये स्पष्ट होता है वर्तमान में भी जल संकट अपने विकराल रूप में आ चुका है। मानव सभ्यता के लिए वर्तमान में यह सच है कि पर्याप्त विकास के बावजूद भी करोड़ों लोग आज भी पीने के पानी जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित है। पेयजल की यह स्थिति न जाने कितने लोगों का जीवन समाप्त कर देती है और न जाने कितने लोगों को बीमारियॉं दे जाती है।
अब हमें जब यह पता है कि जल संकट का विकट दौर चल रहा है तो हमंे यह समझना होगा कि जल का कोई विकल्प नहीं है, मानव का अस्तित्व जल पर ही निर्भर है, जल सृष्टि का मूल आधार है, जल है तो खाद्यान है, जल है तो वनस्पतियॉं हैं, जल का कोई विकल्प नहीं है, जल संरक्षण से ही पर्यावरण संरक्षण है, जल का पुरर्भरण करना ही जल का उत्पादन करना है और हमंे कुल मिलाकर ये समझना ही होगा कि जल है तो कल है। हमें यह मानना ही होगा कि मानव की जल की आवष्यकता किसी अन्य आवष्यकता से काफी महत्वपूर्ण है। हमें यह समझना और समझाना होगा कि जल सीमित है और विष्व में कुल उपलब्ध जल का 27 प्रतिषत ही मानव उपयोगी है। अब हमें यह गौर करना होगा वर्तमान में इस जल संकट के प्रमुख कारण क्या है।
जल का अंधाधुंध व विवेकहीन प्रयोग जल संकट का सबसे बड़ा कारण है। औद्योगिकरण व जल प्रदूषण के कारण हमारी नदियॉं व जल स्रोत प्रदूषित होते जा रहे हैं और इस कारण पेयजल का संकट उत्पन्न हो रहा है। बढती आबादी के कारण व औद्योगिकरण के कारण जल की मांग बढ़ी है और इस कारण भी जल संकट सामने आया है। बरसाती पानी का समुचित संरक्षण नहीं होने के कारण भी जल संकट की स्थिति बन रही है।
परम्परागत जल स्रोतों के संरक्षण नहीं होने के कारण जल का समुचित भण्डारण नहीं हो पा रहा है और इस कारण भी जल संकट की स्थिति बन रही है। भूमिगत जल के रिचार्ज न होने  के कारण भूमिगत जल का स्तर चिंताजनक स्थिति में घट रहा है और यह जल संकट का महत्वपूर्ण कारण है। जल बंटवारे को लेकर देष में कानून का अभाव है और इस कारण भी जल संकट की स्थितियॉं बन रही है। पारिस्थतिकी में हो रहे अनियंत्रण ने पारिस्थितिकी तंत्र में गड़बड़ पैदा की है जिस कारण प्रकृति में अकाल व सूखे और बाढ़ जैसे हालात बन रहे हैं इस कारण पेयजल का संकट उत्पन्न हो गया है।
इन तथ्यों पर गौर किया जाए तो हमारे सामने काफी भयंकर हालात उत्पन्न होते हैं और स्थितियॉ नहीं बदली तो जल का यह संकट मानव जाति के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर देगा। अतः मानव जाति को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए जल संरक्षण के उपाय करने ही हांेगे। जल संरक्षण के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातों पर हम यहॉं चर्चा करेंगे। यह बात गौर करने की है कि प्रकृति हमें इतना पानी देती है कि अगर हम उस पानी को ठीक ढंग से सहेज कर रखें तो कभी भी हमारे सामने जल संकट की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी। जब बरसात होती है तो बरसात का यह पानी बेकार न जाए इसके हमें मजबूत व पुख्ता इंतजाम करने होंगे। हम अपने घरों की छतों का निर्माण इस प्रकार करें कि बरसात का सारा पानी घर में ही बने एक कुण्ड में इकट्ठा हो जाए। सभी पक्के घरों की छतों की नालियों को पाइपों की सहायता से कुओं, बावड़ियों और तालाबों से जोड़कर इनका पुनर्भरण किया जा सकता है। इससे बरसात के पानी की एक भी बूंद बेकार नहीं जाएगी और यह पानी हमारे काम भी आएगा। हमारे पूर्वजों ने ऐसी व्यवस्था कर रखी थी और परम्परागत जल स्रोतों का विकास किया था लेकिन हमने इन परम्परागत जल स्रोतों की अनदेखी की और इनको ठुकराया। हमें अपने आस पास के परम्परागत जल स्रोतों को सुधारना होगा और इनके पायतन व आगोर की रक्षा करनी होगी ताकि जल संरक्षण के ये साधन मानव जाति के लिए वरदान साबित हो सके। हमारा दायित्व है कि हम अपने खेतों में व खुले क्षेत्रों में ऐनिकट का निर्माण करे और हमारे आस पास जल पुनर्भरण संरचनाओं का निर्माण करें ताकि बरसात का सारा पानी भूमि के अंदर जा सके और भूमिगत जल का स्तर भी बढ़ सके क्योंकि भूमिगत जल अब समाप्त होता जा रहा है और डार्क जोन का क्षेत्र हमारे देष में बढ़ता ही जा रहा है।
हमें हमारी दैनिक दिनचर्या मंे भी परिवर्तन करेन होंगे। जैसे कुल्ला करते वक्त टोंटी या नल बंद करके पानी काम में ले और अच्छा तो ये हो कि हम मग में पानी लेकर कुल्ला करें, इसी तरह सीधा नल से नहाने की बजाय हम बाल्टी में पानी भरकर नहाएॅं, इसी तरह पाखाने में पानी फ्लष से न चलाकर बाल्टी भर कर पानी फेंक दे और अपने बाग बगीचों में पाइप की बजाय बाल्टी से पानी दें, इसी तरह कार, मोटरसाईकिल, स्कूटर जैसे अपने वाहनों को पाइप की बजाय बाल्टी भर कर धोये। हम अपने घरों में पानी को लीक न होने दें, अगर किसी भी प्रकार का लीकेज हो रहा हो तो उसे तुरंत सुधारें क्योंकि हम लीकेज दिन भर में सैंकड़ों लीटर पानी व्यर्थ बहा देता है। हमारे किसान भाईयों को भी हालात को समझते हुए अब कम पानी की फसलों का उत्पादन करना होगा जैसे बाजरा, मूंग, मोठ आदि आदि। किसान भाई बूंद बूंद सिंचाई पद्धति व फव्वारा सिंचाई पद्धति अपनाकर भी पानी की बचत में अपना महत्वपूर्ण योगदान  दे सकते हैं।
इसी के साथ यह भी महत्वपूर्ण है कि हम एक ही जल का बार बार प्रयोग करें जैसे जिस पानी से नहाते हैं उस से कच्चा फर्ष धोया जा सकता है और ऐसे पानी से ग्रामीण क्षेत्रांे में उपले बनाए जा सकते हैं इसी प्रकार औद्योगिक इकाईयो में पानी को साफ करने के प्लांट लगाए जा सकते हैं ताकि खराब पानी वापस काम आ जाए। इस तरह दैनिक जीवनचर्या में छोटे छोटे सुधार करके मानव जाति के इस महान व पुनीत कार्य में प्रत्येक व्यक्ति अपना योगदान दे सकता है।
अंत मे यही कहना चाहूॅंगा कि जल के प्रति स्वामित्व का भाव रखें और यह बात समझे कि जल का विकल्प नहीं है। समाज का हर वर्ग इसके लिए आगे आए। षिक्षक व विद्यार्थी अपने प्रयासों से समाज में उदाहरण पैदा करें, पत्रकार इस संबंध में लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करें, राजनैतिक दल जल के इस मुद्दे को देष की केन्द्रीय राजनीति में लाए, समाजसेवी संगठन लोगों को जागरूक कर आम जन की सहभागिता इस कार्य में लें और इर तरह प्रत्येक वर्ग अपने अपने दायित्व को समझ कर उसका निर्वहन करंे तथा जल संरक्षण की इस बात को घर घर पहुॅंचाए। जीवन के इस अमूल्य तत्व की सुरक्षा का दायित्व देष के प्रत्येक नागरिक पर समान भाव से है। एक प्रसिद्ध विद्वान ने कहा था कि विष्व में तीसरा विष्वयुद्ध पानी के कारण होगा और रावला घड़साना जैसे आंदोलन व कावेरी जल विवाद जैसी समस्याएॅं कहीं इस इस भावी विष्वयुद्ध की प्रतिध्वनि तो नहीं है। हमें जल संकट ही इस आहट को पहचानना होगा और इसके लिए सतत प्रयास करने होंगंे।

(साई फीचर्स)

शतावरी: सौ जडों वाली बूटी


शतावरी: सौ जडों वाली बूटी



(डॉ दीपक आचार्य)

अहमदाबाद। शतावरी की जडघ्ं उँगलियों की तरह दिखाई देती है जिनकी संख्या लगभग सौ या सौ से अधिक होती है और इसी वजह से इसे शतावरी कहा जाता है। यह एक बेल है जिसका वानस्पतिक नाम एस्पेरेगस रेसीमोसस है। इसकी जडों मे सेपोनिन्स और डायोसजेनिन जैसे महत्वपूर्ण रसायन पाए जाते है। इसके पत्तों का सत्व कैंसर में उपयोगी है।
पत्तों का रस (लगभग २ चम्मच) दूध में मिलाकर दिन में दो बार लिया जाए तो यह शक्तिवर्धक होता है। यदि पेशाब के साथ खून आने की शिकायत हो तो, शतावरी की जडों का एक चम्मच चूर्ण, एक कप दूध में डालकर उबाला जाए और शक्कर मिलाकर दिन में तीन बार सेवन किया जाए तो तुरंत आराम मिलना शुरू हो जाता है।
यह फ़ार्मुला रक्तपित्त जैसी समस्याओं के लिए भी सार्थक है। प्रसूता माता को यदि दूध नही आ रहा हो या कम आता हो तो शतावरी की जडों के चूर्ण का सेवन दिन में कम से कम ४ बार अवश्य करना चाहिए। पातालकोट के आदिवासी जडों का चूर्ण पुरूषों मे शारीरिक दुर्बलता, शुक्राणुओं की कमी, वीर्य का पतलापन, और नपुँसकता जैसे दोषों के लिये देते है।
सामान्यतः इन दोषों में जडों के चूर्ण का सेवन दूध में उबालकर या गुनगुने पानी के साथ करने की सलाह दी जाती है। डाँग (गुजरात) के आदिवासियों का मानना है कि शतावरी की जडों के चूर्ण का सेवन बगैर शक्करयुक्त दूध के साथ लगातार किया जाए तो मधुमेह के रोगीयों को काफ़ी फ़ायदा होता है।
टी. बी. होने की दशा में मूल का एक चम्मच चूर्ण दूध के साथ प्रतिदिन दो बार लेने से फ़ायदा मिलता है। आदिवासियों के अनुसार उत्तम स्वास्थ्य, बुद्धि, शक्ति, शुक्राणुओं की दुर्बलता आदि के लिये शतावरी से बेहतर कोई जडी-बूटी नहीं है।

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(साई फीचर्स) 

वालीवुड का लेखा जोखा


वालीवुड का लेखा जोखा



(नेहा घई पंडित)

मुंबई। नए साल के आगाज के साथ ही इस बात पर गौर करना जरूरी है कि पिछले साल मुंबई की रूपहली दुनिया ने क्या खोया क्या पाया। कई फिल्में जिनसे काफी उम्मीदें थी, बॉक्स ऑफिस पर पिटती हुयी दिखाई दी वहीं कुछ कम बजट वाली फिल्मों को दर्शकों का भरपूर प्यार मिला। कुछ सितारे चमके और कुछ दर्शकों पर अपना जादू ना बिखेर सके और फ़िसड्डी होकर रह चले। एक नजर बॉलीवुड़ के गुजरे साल पर, क्या चला..क्या ना चला, क्या बिका और क्या पिटा..
0 सितारे जो चमके-
1. अमिताभ बच्चन
अमिताभ बच्चन सिर्फ़ एक्टर नहीं बल्कि चलती-फिरती फिल्म इंडस्ट्री है। श्बुड्ढा होगा तेरा बापश् और श्आरक्षणश् जैसी फिल्मों में उन्हें दो अलग-अलग रूपों में देखा गया। ष्आरक्षणष् में एक कॉलेज के प्रिंसिपल के गंभीर किरदार में तो ष्बुड्ढा होगा तेरा बापष् में हरफलमौला और बिंदास इंसान की भूमिका में उन्हें लोगों ने बेहद पसंद किया।
2. विद्या बालन
विद्या बालन के लिए यह साल बहुत ही अच्छा रहा। साल की शुरूआत में उनकी फिल्म श्नो वन किल्ड जेसिकाश् ने क्लास और मास दोनों में ही उनकी पकड़ मजबूत की तो वहीं हाल ही में रिलीज श्द डर्टी पिक्चरश् ने उन्हें शिखर पर पहुंचा दिया। इन दोनों ही फिल्मों को क्रिटिक्स ने भी खूब सराहा। आशा है साल 2012 में भी विद्या अपना लोहा मनवाने का दौर जारी रहेगा।
3. रणबीर कपूर
रणबीर ने अपनी फिल्म ष्रॉकस्टारष् से अपनी पहचान बनाई। अपने नाम के साथ लगे कपूर को उन्होने साबित किया। अच्छी अदाकारी और चॉकलेट बॉय के लुक्स ने रणबीर को बहुत आगे लेकर जा सकते हैं। आने वाले वर्ष में भी वह अच्छी फिल्में चुने और अपने हिस्से का स्टारडम एंजॉय करें।
4.         फरहान अख्तर
अपनी बहन जोया अख्तर द्वारा निर्मित फिल्म ष्जिंदगी ना मिलेगी दोबाराष् में फरहान ने रितिक और अभय देओल के साथ स्क्रीन शेयर की लेकिन एक्टिंग के मामले में वह इन दोनों से आगे ही नजर आए। फरहान एक अच्छे निर्देशक होने के साथ-साथ बेहतरीन एक्टर भी हैं। अगले साल राकेश ओम प्रकाश मेहरा की ष्भाग मिल्खा भागष् में वह एक बार फिर पर्दे पर नजर आऐंगे।
5. सलमान खान
ष्रेडीष् और ष्बॉडीगार्डष् जैसी फिल्मों ने बिजनेस खूब किया लेकिन इसमें दर्शक कहानी को खोजते ही नज़र आए। हलाँकि जादू सलमान का कुछ ऐसा है कि ये फिल्में भी दौड पडी। पटकथा न होने के बावजूद फिल्म का हिट होना दर्शकों के बीच सलमान की दबंगई के सिवा और क्या होगी?
6. अजय देवगन
खान बंधुओं के अलावा पर्दे पर धमाल मचाने में अजय देवगन भी शामिल हैं। साल की शुरूआत में आई श्दिल तो बच्चा है जीश् और श्रास्कल्सश् में हल्के-फुल्के रोल में दिखे अजय ने रोहित शेट्टी की सिंघम में दमदार अभिनय किया और खूब तारीफ़ें बटोर ले गये। 2012 में उनकी श्बोल बच्चनश् और श्तेजश् से लोगों को काफी उम्मीदें हैं।
7. चित्रांगदा
साल 2011 में चित्रांगदा की फिल्म ष्ये साली जिंदगी मेंष् उन्होने अच्छा अभिनय किया। हलाँकि इसी साल आयी ष्देसी ब्वॉएजष् में उनके अभिनय के स्तर का कुछ नहीं था। चित्रांगदा एक टेलेण्टेड अभिनेत्री हैं जिनकी क्षमता का भरपूर इस्तेमाल नहीं किया जा रहा। उन्हें ऐसे निर्देशक की जरूरत है जो उनकी प्रतीभा को निखार सके। वे सही मायने में एक डायरेक्टर्स एक्ट्रेस हैं।
8. करीना कपूर
2011 में करीना की ष्बॉडीगार्डष् को काफी सफलता मिली लेकिन ष्रा. 1ष् ने बॉक्स ऑफिस पर कमाल नहीं किया। हलाँकि उनके छम्मक-छल्लो गाने ने दर्शकों को खूब नचाया। करीना के लिए अगला साल चुनौती भरा है। 2012 में उनकी 4 फिल्में प्रदर्शित होंगी जिसमें मधुर भंडारकर की श्हिरोइनश् और सैफ अली खान की होम प्रोडक्शन श्ऐजेंट विनोदश् भी शामिल है।
9. नसीरूद्दीन शाह
नसीर जैसे कलाकार जब भी पर्दे पर होते हैं तो उनकी फिल्म के बॉक्स ऑफिस पर चलने या ना चलने से कोई फर्क नहीं पड़ता। वह अपना एक अलग स्थान बना चुके हैं जहां से उन्हें अपने को साबित करने की जरूरत नहीं पड़ती। 2011 में आई उनकी श्सात खून माफश्, श्जिंदगी ना मिलेगी दोबाराश्, श्देट गर्ल इन येलो बूटश् और श्द डर्टी पिक्चरश् में से कोई फ़िल्म चली और कोई ना चली लेकिन उनकी कलाकारी पर कभी कोई सवाल नहीं उठा।
10. जिमी शेरगिल
जिमी शेरगिल को 2011 में दो फिल्मों में देखा गया - श्तनू वेड्स मनूश् और श्साहब, बीवी और गेंगस्टरश्। इन दोनों में ही जिमी का काम सराहनीय है। उन्हें जितना भी रोल दिया जाता है वह उसे बखूबी निभाते हैं। दुर्भाग्य है कि उनके टेलेंट को किसी ने भी सही तरह से इस्तमाल नही कर पाया है। उनकी क्षमता को सबने कम ही आँका है।
0 फिल्में जिन्होने निराश किया
1 दम-मारो-दम - अभिषेक बच्चन की इस फिल्म से सभी को बहुत उम्मीद थी। फिल्म ने ठीक बिजनेस किया मगर फिल्म से जितनी उम्मीद थी वह कमाल नहीं दिखा सकी। फिल्म में माफिया, ड्रग्ज, सेक्स और एक्शन सभी कुछ था मगर फिर भी कुछ कम रह गया जिसने फिल्म की सफलता को ऊंचा नहीं उठने दिया।
2 मौसम - फिल्म का संगीत लोगो को काफी भाया मगर पंकज कपूर द्वारा निर्देशित इस फिल्म ने दर्शकों को निराश किया। पंकज कपूर जिस दर्जे के अभिनेता हैं उनसे उसी दर्जे के निर्देशन की उम्मीद भी थी। यहां तक कि क्रिटिक्स ने भी इस फिल्म से उम्मीदें लगा रखी थी जो पूरी होती न दिखी।
3. सात खून माफ - विशाल भारद्वाज द्वारा निर्देशित रस्किन बॉन्ड के उपन्यास पर आधारित यह फिल्म अपनी कहानी की वजह से चर्चा में थी। एक ऐसी औरत की कहानी जो एक के बाद एक अपने पतियों का खून करती है। फिल्म की कुछ बातें भारतीय मानसिकता पर खरी नहीं उतर पाई।
4. रा.1 - शाहरूख खान की होम प्रोडक्शन फिल्म जिस्से न सिर्फ उन्हें बल्कि पूरे बॉलीवुड़ को उम्मीद थी, बॉक्स ऑफिस पर सफलता का स्वाद न चख सखी। अंतर्राष्ट्रीय पॉप स्टार एकॉन का गाना श्छम्मक-छल्लोश् और उच्च तकनीक के ग्राफिक्स इस फिल्म के हाई पांइट थे, मगर यह भी इस फिल्म की बॉक्स ऑफिस का रिपोर्ट कार्ड नहीं बदल सके।
5. पटियाला हाउस - अच्छा संगीत और अच्छे कलाकारों की मौजूदगी के बावजूद यह फिल्म फ्लॉप रही। निखिल ऑडवानी की यह फिल्म में कुछ ज्यादा ही मेलोड्रामा था जो शायद दर्शक पचा नहीं पाए।
0 लीक से हटकर...
हर साल बॉलीवुड़ में कई फिल्में बनती हैं, कुछ हिट तो कुछ फ्लॉप होती हैं। कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जो हिट या फ्लॉप को ध्यान में रखकर नहीं बनाई जाती। यह ऐसी फिल्में होती हैं जो बिना किसी स्टार या बैनर के भी चलती हैं। ऐसी ही कुछ फिल्में जो वर्ष 2011 में अपने हिस्से की कमाई भी कर गई और जिन्होने दर्शकों के दिल में अपनी जगह बनाई -
1) यमला पगला दीवाना दृ फिल्म में निर्देशक समीर कर्निक ने देओल खानदान की तीन पीढ़ीयों को एक साथ पर्दे पर पेश किया। फिल्म की कहानी मजबूत नहीं थी फिर भी देओल परिवार की मौजूदगी दर्शकों को सिनेमा हॉल तक खिचने में कामयाब रही। कम बजट की इस फिल्म में उम्मीद से अधिक ही कमाया। इस फिल्म में हर देओल को अपने हिस्से का एक्शन और कॉमेड़ी मिली। हल्की-फुलकी कॉमेड़ी और देओल परिवार की जुगलबंदी ने इस फिल्म को सफल बनाया।
2) डेली-बेली - कुछ धमाकेदार परफॉरमेंन्स और स्क्रिप्ट का कमाल ही है जो हमेशा एक ही ढर्रे को फॉलो करने वाली हमारी फिल्म इंडस्ट्री में लोगों ने इस फिल्म को पसंद किया। इस फिल्म को सिरियस एडल्ट कॉमेड़ी कहा जाए तो गलत नहीं होगा। थिएटर में जाकर ससती और फूहड़ कॉमेडी देखने वालों को पता चला कि उच्च स्तर की गंदी कॉमेडी भी कुछ होती है।
3) नो वन किल्ड जेसिका दृ फिल्म एक सत्य घटना पर आधारित थी और लोगों को इसकी कहानी पता थी। निर्देशक राज कुमार गुप्ता ने फिल्म को कम से कम मेलोड्रामेटिक रखा जो अच्छा लगा। लोगों को फिल्म में रूचि इसलिए भी थी कि इस केस ने वाकई आम जनता में एक उम्मीद की किरण जगाई। हर तरफ से निराश होकर जब कोई ऐसी कहानी सुनता है तो उसमें जोश अपने आप ही आ जाता है। रानी मुखर्जी और विद्या बालन ने अपने-अपने किरदार को बखूबी निभाया है।
हिन्दी फ़िल्म इंड्स्ट्री में उतार चढाव का दौर चलता रहेगा लेकिन ये इंड्स्ट्री हम लोगों को एंटरटेन करना नही भूलती और यही वजह है कि आज भी समाज बढे आसानी से मुद्दों और समस्याओं को फ़िल्मों के जरिए पचा लेता है। यही जादू है हमारी फ़िल्मस का और आशा है कि साल २०१२ मे हिन्दी फ़िल्म इंड्स्ट्री इन्हीं उम्मीदों को और बेहतर उकेर कर उम्दा फ़िल्मों को परोसने का सिलसिला जारी रखेगी..सभी पाठकों को नव वर्ष की शुभकामनाएं

(साई फीचर्स)