शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

जल संकट के वर्तमान हालात और उपाय


जल संकट के वर्तमान हालात और उपाय



(श्याम नारायण रंगा अभिमन्यु’)

जल ही जीवन है। जल जीवन का सार है। प्राणी कुछ समय के लिए भोजन के बिना तो रह सकता है लेकिन पानी के बिना नहीं। जल के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। अतः जल जीवन की वह ईकाई है जिसमेें जीवन छीपा है। वर्तमान मंे इस जल पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। जल की कमी ने मानव जाति के सामने अस्तित्व का संकट पैदा कर दिया है। जल के लिए दुनिया के कईं राष्ट्रों में हालात विकट है।
अगर हम विष्व परिदृष्य पर गौर करें तो कईं चौकाने वाले तथ्य सामने आते हैं। विष्व में 260 नदी बेसिन इस प्रकार के हैं, जिन पर एक से अधिक देषों का हिस्सा है, इन देषों के बीच जल बंटवारे को लेकर किसी प्रकार का कोई वैधानिक समझौता नहीं है। दुनिया के कुल उपलब्ध जल का एक प्रतिषत ही जल पीने योग्य है। हमें पीने का पानी ग्लेष्यिरों से प्राप्त होता है और ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ा है और इस कारण भविष्य में जल संकट की भयंकर तस्वीर सामने आ सकती है। दुनिया में जल उपलब्धता 1989 में 9000 क्यूबिक मीटर प्रति व्यक्ति थी जो 2025 तक 5100 क्यूबिक मीटर प्रति व्यक्ति हो जाएगी और यह स्थिति मानव जाति के संकट की स्थिति होगी। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में आधी से ज्यादा नदियॉं प्रदूषित हो चुकी है और इनका पानी पीने योग्य नहीं रहा है और इन नदियों में पानी की आपूर्ति भी निरन्तर कम हो रही है। विष्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के अनुसार दुनिया भर में 86 फीसदी से अधिक बीमारियों का कारण असुरक्षित व दूषित पेयजल है। वर्तमान में 1600 जलीय प्रजातियॉं जल प्रदूषण के कारण लुप्त होने के कगार पर है। विष्व में 1.10 अरब लोग दूषित पेयजल पीने को मजबूर है और साफ पानी के बगैर अपना गुजारा कर रहे हैं।
इसी संदर्भ में अगर हम भारतीय परिदृष्य पर गौर करें तो हालात और भी विकट है। वर्तमान में 303.6 मिलियन क्यूबिक फीट पानी प्रतिवर्ष एषियाई नदियों को हिमालय के ग्लेषियर्स से प्राप्त हो रहा है। जल विषेषज्ञों का अनुमान है कि सन् 2100 के समाप्त होते होते हिमालय के आधे ग्लैषियर सूख चुके होंगे और ऐसी स्थिति में पेयजल की क्या स्थिति होगी इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 4.4 करोड़ लोग भारत में बेहद प्रदूषित जल का सेवन करने को मजबूर है। हमारे देष में सिंचाई कार्यों के लिए 70 प्रतिषत जल भूमिगत जल स्रोतों से प्राप्त होता है और घरेलू कार्यों के लिए 80 प्रतिषत जल की आपूर्ति भूमिगत जल स्रोतों से की जाती है। वर्तमान में देष की राजधानी दिल्ली में चार घण्टे व देष की औद्योगिक राजधानी माने जाने वाले मुम्बई में लगभग 5 घण्टे जलापूर्ति की जा रही है। भारत की तीसरी लघु सिंचाई जनगणना के आंकड़ों के अनुसार   1.90 करोड़ कुएॅं और गहरे ट्यूबवेल है। भारत में 39 प्रतिषत परिवारों को ही घरों में पेयजल की सुविधा उपलबध है और 22 प्रतिषत परिवारो को ही नल द्वारा जलापूर्ति की सुविधा उपलब्ध हो रही है। राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रषासन संस्थान द्वारा करवाए गए एक सर्वे के अनुसार हमारे देष में 2 लाख से भी अधिक स्कूल ऐसे हैं जिन्हें पीने का पानी आज तक उपलब्ध नहीं करवाया जा सका है। एक अनुमान के मुताबिक 28.6 प्रतिषत परिवारों को पीने का पानी लाने के लिए 500 मीटर से अधिक का फासला तय करना पड़ता है।
ऊपर लिखे गए तथ्यों से ये स्पष्ट होता है वर्तमान में भी जल संकट अपने विकराल रूप में आ चुका है। मानव सभ्यता के लिए वर्तमान में यह सच है कि पर्याप्त विकास के बावजूद भी करोड़ों लोग आज भी पीने के पानी जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित है। पेयजल की यह स्थिति न जाने कितने लोगों का जीवन समाप्त कर देती है और न जाने कितने लोगों को बीमारियॉं दे जाती है।
अब हमें जब यह पता है कि जल संकट का विकट दौर चल रहा है तो हमंे यह समझना होगा कि जल का कोई विकल्प नहीं है, मानव का अस्तित्व जल पर ही निर्भर है, जल सृष्टि का मूल आधार है, जल है तो खाद्यान है, जल है तो वनस्पतियॉं हैं, जल का कोई विकल्प नहीं है, जल संरक्षण से ही पर्यावरण संरक्षण है, जल का पुरर्भरण करना ही जल का उत्पादन करना है और हमंे कुल मिलाकर ये समझना ही होगा कि जल है तो कल है। हमें यह मानना ही होगा कि मानव की जल की आवष्यकता किसी अन्य आवष्यकता से काफी महत्वपूर्ण है। हमें यह समझना और समझाना होगा कि जल सीमित है और विष्व में कुल उपलब्ध जल का 27 प्रतिषत ही मानव उपयोगी है। अब हमें यह गौर करना होगा वर्तमान में इस जल संकट के प्रमुख कारण क्या है।
जल का अंधाधुंध व विवेकहीन प्रयोग जल संकट का सबसे बड़ा कारण है। औद्योगिकरण व जल प्रदूषण के कारण हमारी नदियॉं व जल स्रोत प्रदूषित होते जा रहे हैं और इस कारण पेयजल का संकट उत्पन्न हो रहा है। बढती आबादी के कारण व औद्योगिकरण के कारण जल की मांग बढ़ी है और इस कारण भी जल संकट सामने आया है। बरसाती पानी का समुचित संरक्षण नहीं होने के कारण भी जल संकट की स्थिति बन रही है।
परम्परागत जल स्रोतों के संरक्षण नहीं होने के कारण जल का समुचित भण्डारण नहीं हो पा रहा है और इस कारण भी जल संकट की स्थिति बन रही है। भूमिगत जल के रिचार्ज न होने  के कारण भूमिगत जल का स्तर चिंताजनक स्थिति में घट रहा है और यह जल संकट का महत्वपूर्ण कारण है। जल बंटवारे को लेकर देष में कानून का अभाव है और इस कारण भी जल संकट की स्थितियॉं बन रही है। पारिस्थतिकी में हो रहे अनियंत्रण ने पारिस्थितिकी तंत्र में गड़बड़ पैदा की है जिस कारण प्रकृति में अकाल व सूखे और बाढ़ जैसे हालात बन रहे हैं इस कारण पेयजल का संकट उत्पन्न हो गया है।
इन तथ्यों पर गौर किया जाए तो हमारे सामने काफी भयंकर हालात उत्पन्न होते हैं और स्थितियॉ नहीं बदली तो जल का यह संकट मानव जाति के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर देगा। अतः मानव जाति को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए जल संरक्षण के उपाय करने ही हांेगे। जल संरक्षण के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातों पर हम यहॉं चर्चा करेंगे। यह बात गौर करने की है कि प्रकृति हमें इतना पानी देती है कि अगर हम उस पानी को ठीक ढंग से सहेज कर रखें तो कभी भी हमारे सामने जल संकट की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी। जब बरसात होती है तो बरसात का यह पानी बेकार न जाए इसके हमें मजबूत व पुख्ता इंतजाम करने होंगे। हम अपने घरों की छतों का निर्माण इस प्रकार करें कि बरसात का सारा पानी घर में ही बने एक कुण्ड में इकट्ठा हो जाए। सभी पक्के घरों की छतों की नालियों को पाइपों की सहायता से कुओं, बावड़ियों और तालाबों से जोड़कर इनका पुनर्भरण किया जा सकता है। इससे बरसात के पानी की एक भी बूंद बेकार नहीं जाएगी और यह पानी हमारे काम भी आएगा। हमारे पूर्वजों ने ऐसी व्यवस्था कर रखी थी और परम्परागत जल स्रोतों का विकास किया था लेकिन हमने इन परम्परागत जल स्रोतों की अनदेखी की और इनको ठुकराया। हमें अपने आस पास के परम्परागत जल स्रोतों को सुधारना होगा और इनके पायतन व आगोर की रक्षा करनी होगी ताकि जल संरक्षण के ये साधन मानव जाति के लिए वरदान साबित हो सके। हमारा दायित्व है कि हम अपने खेतों में व खुले क्षेत्रों में ऐनिकट का निर्माण करे और हमारे आस पास जल पुनर्भरण संरचनाओं का निर्माण करें ताकि बरसात का सारा पानी भूमि के अंदर जा सके और भूमिगत जल का स्तर भी बढ़ सके क्योंकि भूमिगत जल अब समाप्त होता जा रहा है और डार्क जोन का क्षेत्र हमारे देष में बढ़ता ही जा रहा है।
हमें हमारी दैनिक दिनचर्या मंे भी परिवर्तन करेन होंगे। जैसे कुल्ला करते वक्त टोंटी या नल बंद करके पानी काम में ले और अच्छा तो ये हो कि हम मग में पानी लेकर कुल्ला करें, इसी तरह सीधा नल से नहाने की बजाय हम बाल्टी में पानी भरकर नहाएॅं, इसी तरह पाखाने में पानी फ्लष से न चलाकर बाल्टी भर कर पानी फेंक दे और अपने बाग बगीचों में पाइप की बजाय बाल्टी से पानी दें, इसी तरह कार, मोटरसाईकिल, स्कूटर जैसे अपने वाहनों को पाइप की बजाय बाल्टी भर कर धोये। हम अपने घरों में पानी को लीक न होने दें, अगर किसी भी प्रकार का लीकेज हो रहा हो तो उसे तुरंत सुधारें क्योंकि हम लीकेज दिन भर में सैंकड़ों लीटर पानी व्यर्थ बहा देता है। हमारे किसान भाईयों को भी हालात को समझते हुए अब कम पानी की फसलों का उत्पादन करना होगा जैसे बाजरा, मूंग, मोठ आदि आदि। किसान भाई बूंद बूंद सिंचाई पद्धति व फव्वारा सिंचाई पद्धति अपनाकर भी पानी की बचत में अपना महत्वपूर्ण योगदान  दे सकते हैं।
इसी के साथ यह भी महत्वपूर्ण है कि हम एक ही जल का बार बार प्रयोग करें जैसे जिस पानी से नहाते हैं उस से कच्चा फर्ष धोया जा सकता है और ऐसे पानी से ग्रामीण क्षेत्रांे में उपले बनाए जा सकते हैं इसी प्रकार औद्योगिक इकाईयो में पानी को साफ करने के प्लांट लगाए जा सकते हैं ताकि खराब पानी वापस काम आ जाए। इस तरह दैनिक जीवनचर्या में छोटे छोटे सुधार करके मानव जाति के इस महान व पुनीत कार्य में प्रत्येक व्यक्ति अपना योगदान दे सकता है।
अंत मे यही कहना चाहूॅंगा कि जल के प्रति स्वामित्व का भाव रखें और यह बात समझे कि जल का विकल्प नहीं है। समाज का हर वर्ग इसके लिए आगे आए। षिक्षक व विद्यार्थी अपने प्रयासों से समाज में उदाहरण पैदा करें, पत्रकार इस संबंध में लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करें, राजनैतिक दल जल के इस मुद्दे को देष की केन्द्रीय राजनीति में लाए, समाजसेवी संगठन लोगों को जागरूक कर आम जन की सहभागिता इस कार्य में लें और इर तरह प्रत्येक वर्ग अपने अपने दायित्व को समझ कर उसका निर्वहन करंे तथा जल संरक्षण की इस बात को घर घर पहुॅंचाए। जीवन के इस अमूल्य तत्व की सुरक्षा का दायित्व देष के प्रत्येक नागरिक पर समान भाव से है। एक प्रसिद्ध विद्वान ने कहा था कि विष्व में तीसरा विष्वयुद्ध पानी के कारण होगा और रावला घड़साना जैसे आंदोलन व कावेरी जल विवाद जैसी समस्याएॅं कहीं इस इस भावी विष्वयुद्ध की प्रतिध्वनि तो नहीं है। हमें जल संकट ही इस आहट को पहचानना होगा और इसके लिए सतत प्रयास करने होंगंे।

(साई फीचर्स)

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