सोमवार, 2 मई 2011

मध्य प्रदेश भवन का टूटा बोर्ड


नई दिल्ली क बुरदलोई मार्ग पर स्थित मध्य प्रदेश भवन का टूटा बोर्ड जहां आए दिन महामहिम राज्यपाल, मुख्यमंत्री और मंत्री जाकर रूकते हैं।

डीजीसीए के नियम महज कागजों पर


हवा में तैरता रोमांच और खतरे!

अतिविशिष्ट व्यक्तियों के परिवहन में लापरवाही क्यों?

(लिमटी खरे)

अरूणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री दोरजी खांडू का हेलीकाप्टर लापता है। लगातार खोज के बाद भी उनका कोई सुराग नहीं मिल पा रहा है। खराब मौसम खोजबीन में आड़े आ रहा है। अरूणाचल प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्रालय से कहा था कि पवन हंस के चौपर की सेवाएं बंद कर दी जाएं क्योंकि वे उड़ान के काबिल ही नहीं हैं।
सवाल यही है कि अतिविशिष्ट व्यक्तियों के हवाई मार्ग से परिवहन में लगे हवाई जहाज या हेलीकाप्टर पर लगाम कौन लगाए? इसके लिए संचालक नागर विमानन (डीजीसीए) को पाबंद किया गया है। डीजीसीए द्वारा समय समय पर दिशानिर्देश जारी किए जाते हैं किन्तु शायद इसके द्वारा यह सुनिश्चित नहीं किया जाता है कि उनके नियमों का पालन हो भी रहा है या नहीं।
हेलीकाप्टर में न जाने कितने राजनेता असमय ही काल के गाल में समा चुके हैं फिर भी अतिविशिष्ट व्यक्तियों के लिए आज भी यह अहम सवारी ही बना हुआ है। वैसे हेलीकाप्टर एक फ्रांसिसी शब्द है जो ग्रीक भााा के हेलिक्स टेरान शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है घूमने वाला पंख। दुर्गम स्थानों, पहाडियों, जंगलों, बाढ़ ग्रस्त इलाकों में इसकी उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता है।
देश का हर जनसेवक नेता चाहता है कि वह हेलीकाप्टर की उड़ान अवश्य भरे, ताकि उसके रसूख में बढ़ोत्तरी हो सके। अनेक राजनेताओं के निजी बेड़े मंे विमान और हेलीकाप्टर का शुमार है, जिसके माध्यम से वे अपने दल या विपक्षी दलों के लोगों को उपकृत कर अहसानों में दबा देते हैं।
इसके अलावा अमीरजादों के पास भी हेलीकाप्टर का होना दर्शाता है कि अब यह सहज सुलभ परिवहन का साधन हो चुका है। इसके लिए लंबी चौड़ी हवाई पट्टी की आवश्यक्ता नहीं होती है। इसे खेत खलिहान, छोटे मैदान यहां तक कि किसी की छत पर भी उतारा जा सकता है।
इतिहास खंगालने पर पता चलता है कि हेलीकॉप्टर के प्रारूप की नींव 1480 में पड़ी। तब लियोनार्दो दा विंची ने हवा में उड़ने वाली एक एसी मशीन का डिजाईन तैयार किया जो लंबवत उड़ान भरने में सक्षम था। इसके बाद रूस के भिखाइल लोमोनोसोव ने 1754 में दो पंखों वाले एक छोटे यंत्र को आकाश में उड़ाने में अंततः सफलता पा ही ली।
उस दौर में पेट्रोलियम पदार्थों पर निर्भरता नहीं थी अतः 1861 में फ्रांस के गुस्ताव डी.पोंटोन डीएमकोर्ट ने भाप से चलने वाले एक हेलीकाप्टर का माडल बनाया। 16 साल इस पर काम करने के बाद अंततः 1877 में मिलान में इस हेलीकाप्टर के बदले और छोटे स्वरूप ने 20 सेकण्ड तक 43 फुट की उड़ान भरी।
उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ मंे एक बार फिर हेलीकाप्टर पर शोध आरंभ हुए और 1907 में पाल कोर्नू ने छः मीटर वाले दो पंखों और 18 किलोवाट के हेलीकाप्टर के इंजन को बनाया जो था तो काफी उन्नत किन्तु यह भी महज 20 सेकन्ड की उड़ान ही भर पाया। 1930 में इटली के कोराडिनो ने दो पंखो वाले हेलीकाप्टर को बनाया जो वास्तव में हेलीकाप्टर के इतिहास में मील का पत्थर ही साबित हुआ। वर्तमान समय में राबिन्सन बेल और डॉल्फिन कंपनी के हेलीकाप्टर दुनिया भर में धूम मचाए हुए हैं।
बहरहाल यह तो हुई हेलीकाप्टर के शैशव काल की कहानी। भारत में हेलीकाप्टर की सवारी गांठना राजनेताओं का प्रिय शगल बनकर रह गया है। इसमंे हेलीकाप्टर क्रेश होने की अनेक घटनाओं के बाद भी न तो डीजीसीए ही इस मामले में सख्त हुआ और न ही नागरिक उड्यन मंत्रालय ने ही इसमें रूचि दिखाई है।
इक्कीसवीं सदी के आरंभ के साथ ही मध्य प्रदेश सरकार के सरकारी उड़न खटोले के इंदौर के पास गिर जाने से सुप्रसिद्ध गायिका अनुराधा पोडवाल घायल हो गईं थीं। 2009 में खराब मौसम के कारण ही सुषमा स्वराज का हेलीकाप्टर भटककर सागर जिले मंे चला गया था। बाद में बड़ी मशक्कत के बाद हेलीकाप्टर को सही जगह मिली।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का हेलीकाप्टर अप्रेल 2009 में खराब मौसम के चलते ही निर्धारित गन्तव्य से सात किलोमीटर दूर उतारा गया। इतना ही नहीं इसे सागर के एक हाईवे पर उतारना पड़ा। उस वक्त अगर कोई वाहन आ जा रहा होता तो दुर्घटना से इंकार नहीं किया जा सकता था।
इसके अलावा मध्य प्रदेश के सतना में ही हेलीकाप्टर का पाईप फट जाने से उसे अलग स्थान पर उतारना पड़ा था। पचमढ़ी मंे सोनिया गांधी के साथ जा रहे कांग्रेस के आला नेताओं के हेली काप्टर का पंख क्षति ग्रस्त हो गया था, जिसे पायलट ने जान जोखिम में डालकर उतारा था।
इसी तरह सितम्बर 2009 में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी सहित पांच लोगों को ले जाने वाले हेलीकाप्टर हादसे में उनका निधन हो गया था। इसके अलावा इसी साल नितिन गड़करी का हेलीकाप्टर पांशकुडा से परूलिया जाते वक्त तूफान में फंस गया था, जिसे बाद में जमशेदपुर में उतारा गया। 19 अप्रेल को तवांग के पास पवन हंस का एक हेलीकाप्टर दुर्घटना ग्रस्त हो गया था जिसमें चालक दल सहित 17 लोगों की मौत हो गई थी। पूर्व केंद्रीय मंत्री माधव राव सिंधिया का निधन भी हवाई जहाज हादसे में ही हुआ था।
जब अतिविशिष्ट व्यक्तियों की प्रिय सवारी बन ही चुका है हेलीकाप्टर और हवाई जहाज तब संचालक नागर विमानन और नागरिक उड्डयन मंत्रालय आखिर इनकी सुरक्षा में कोताही क्यों बरतते हैं। देखा जाए तो हेलीकाप्टर के फ्यूल का परिवहन संगीनों के साए होना चाहिए किन्तु इसे निजी वाहनों में ले जाया जाता है, जिससे कभी भी दुर्घटना होने की आशंका बनी रहती है। इसी तरह सूर्यास्त के उपरांत भी लोगों द्वारा नियम विरूद्ध हेलीकाप्टर की उड़ान जारी रखी जाती है। सवाल फिर वही है कि जब हेलीकाप्टर सूर्यास्त के उपरांत हवा में तैरता है तो क्या वह संबंधित एयर ट्रेफिक कंट्रोल (एटीसी) के रडार की जद में नहीं आता, और अगर आता है तो एटीसी द्वारा उस पायलट को ग्राउंडेड करने की सिफारिश आखिर क्यों नहीं की जाती है? कुल मिलाकर डीजीसीए, सिविल एविएशन मिनिस्ट्री की मिलीभगत से ही सब कुछ चल रहा है। जिसका भोगमान व्हीव्हीआईपीज अपनी जान देकर ही भुगत रहे हैं।

शिवराज बनाम भूरिया चल पड़ी है जंग


चर्चा मंे हैं एमपी के मामा

दरकती दिख रही है कांग्रेस की एकता

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में इन दिनों देश के हृदय प्रदेश के ‘‘मामा‘‘ चर्चा में हैं। एक तरफ प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद को सूबे के बच्चों का मामा बताते आए हैं तो अब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नवनियुक्त अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने खुद को असली मामा बता दिया है।
बीते दिनांे भूरिया के पदभार ग्रहण करने के दौरान कांग्रेस की कथित एकता रेली में मामाओं पर की गई टीका टिप्पणी की दिल्ली में जमकर चर्चाएं हो रही हैं। इसी दौरान सांसद सज्जन सिंह वर्मा द्वारा यह बात भी कह दी गई कि इतिहास में दो ही मामाओं का उल्लेख मिलता है एक कंस मामा और दूसरे शकुनि मामा। वर्मा शायद बचपन के चंदा मामाको भूल गए।
पांव पांव वाले भईया के नाम से चर्चित शिवराज सिंह चौहान द्वारा बच्चों और महिलाओं के हितों को ध्यान में रखकर आरंभ की गई योजनाओं के कारण सूबे में उन्हें लोग मामा के नाम से जानने लगे हैं, उधर आदिवासियों के बीच कांतिलाल भूरिया को भी मामा के रूप में पहचाना जाता है।
खबरों के अनुसार कांतिलाल भूरिया के हाथों मध्य प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपे जाने के उपरांत सूबे में सुस्सुप्तावस्था में पड़ी काग्रेस में कुछ हलचल अवश्य ही महसूस की जा रही है। एकता रैली में कमल नाथ, दिग्जिवय सिंह, सुरेश पचौरी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अरूण यादव जैसे क्षत्रपों का एक मंच पर आना भी कांग्रेस के लिए सुखद संयोग से कम नहीं था, किन्तु समारोह में सिंधिया का महज शक्ल दिखाकर लौट जाना और कमल नाथ तथा प्रदेश प्रभारी महासचिव बी.के.हरिप्रसाद का वहां न पहुंचना भी चर्चाआंे और चटखारों का केंद्र बना हुआ है।