शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

क्रिकेट के लिए खरीदी एक करोड़ अस्सी लाख रूपए की बिजली

बिजली संकट की जद में मध्य प्रदेश

लालटेन, चिमनी, भपके के युग में वापसी को तैयार सूबा

दूसरी पारी भारी पड़ रही शिवराज को

(लिमटी खरे)

मध्य प्रदेश सूबे के निज़ाम शिवराज सिंह चैहान को अभी अपनी दूसरी पारी आरंभ तीन साल बीत चुके हैं पर सूबे में बिजली पानी की गंभीर समस्या से उन्हें दो लगातार ही चार होना पड़ रहा है। विडम्बना देखिए कि खेलों के लिए शिवराज सिंह चैहान एक करोड़ अस्सी लाख रूपए की बिजली खरीद सकते हैं किन्तु देश के नौनिहालों को परीक्षा के दौरान बिजली खरीदने शिवराज के पास धन नहीं है। मध्य प्रदेश में बिजली की जबर्दस्त कटौती हो रही है। संपन्न लोग इंवर्टर या जनरेटर के माध्यम से अपनी जरूरतें पूरी कर रहे हैं किन्तु देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसान की कमर टूटी हुई है, जिसकी किसी को परवाह नहीं है।
बसंत के आगाज और गरमी की पदचाप के साथ ही मध्य प्रदेश की हालत इन बिजली और पानी के मामलों में काफी हद तक गंभीर हो गई है। आलम यह है कि प्रदेश के लगभग डेढ़ सेकड़ा शहरों में पानी की आपूर्ति लड़खड़ा गई है। महाकाल की नगरी उज्जैन में जल प्रदाय व्यवस्था बुरी तरह से लड़खड़ा गई है। गर्मी के मौसम में यह आपूर्ति सप्ताह में एक दिन होने की उम्मीद भी जताई जा रही है।
उद्योग के लिए विख्यात देवास शहर में पानी की हायतौब मचने लगी है। जिले के लगभग 30 हजार नलकूपों का जलस्तर पूरी तरह उतर चुका है। प्रदेश के जिला मुख्यालय सिवनी को पानी पिलाने वाले एशिया के सबसे बड़े मिट्टी के बांध ‘‘संजय सरोवर परियोजना‘‘ का आलम यह है कि यहां गेट के मुहाने पर महज दो मीटर ही पानी बचने की खबरें है। ये भयावह तस्वीरें जब मार्च माह में हैं तो जब सूर्य नारायण अपने पूरे शबाब पर होंगे तब की स्थिति की कल्पना मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
प्रदेश में बिजली के संकट का आलम यह है कि नक्सल प्रभावित बालाघाट जिला जिसे कि बिजली कटौती से मुक्त रखा गया था में भी बिजली की कटौती आरंभ कर दी गई है। छोटे मझौले शहरों में बिजली के बिना उद्योग धंधे बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। बिजली के अभाव में किसान अपने खेतों को कैसे सीचे यह बात भी यक्ष के प्रश्न की ही तरह खड़ी हुई है।
गौरतलब होगा कि मध्य प्रदेश पर दस साल तक लगातार राज करने वाले मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को 2003 में जब मतदाताओं ने बाहर का रास्ता दिखाया था, तो उसकी एक प्रमुख वजह सूबे में सड़क, बिजली और पानी ही थे। उस समय केंद्र में भाजपानीत राजग सरकार थी। अब परिदृश्य उलट गया है, सूबे में भाजपा की सरकार है, तो कंेद्र में कांग्रेसनीत संप्रग सरकार।
बहरहाल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने दूरदृष्टि का परिचय देते हुए पिछले आम चुनावों के ठीक पहले ही कोयला सत्याग्रह यात्रा निकालकर सारा दोष केंद्र पर मढ़ दिया था। जानकारों के अनुसार चैहान इस रणनीति पर काम कर रहे थे कि बिजली का लाभ भाजपा को नहीं मिलता तो कांग्रेस को क्यों दिया जाए। इसके बाद समय समय पर शिवराज सिंह चैहान द्वारा देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली आकर वहां मध्य प्रदेश का कोयला एमपी को न मिलने की शिकायतें करने की रस्म अदायगी अवश्य की गईं हैं।
उधर दूसरी और कांग्रेस की धार बिजली के मामले मंे पूरी तरह बोथरी ही नज़र आ रही है। शिवराज के इस ब्रम्हास्त्र का जवाब कांग्रेस के पास दिख नहीं रहा है। वैसे कांग्रेस को चाहिए कि कोयले की सप्लाई की बात को दरकिनार कर पन बिजली परियोजनाओं (हाईडल प्रोजेक्टस) द्वारा किए जा रहे उत्पादन पर भाजपा को घेरे। वस्तुतः प्रदेश के हाईडल प्रोजक्टस का दोहन भी सरकार द्वारा पूरी तरह नहीं किया जा रहा है। मध्य प्रदेश में हाईडल प्रोजेक्ट्स की विपुल संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है।
वैसे प्रदेश में बिजली संकट का एक बहुत बड़ा कारण कोयले की कमी और थर्ड ग्रेड के कोयले का आवंटन कहा जा सकता है। 2001 में संयुक्त मध्य प्रदेश मंे बिजली की कमी इसलिए नहीं हुआ करती थी, क्योंकि छत्तीसगढ़ क्षेत्र के बिजली के संयंत्र काफी मात्रा में मांग और सप्लाई के अंतर को पाट दिया करते थे।
जमीनी हकीकत को अगर देखा जाए तो आज प्रदेश में यह आलम हो गया है कि गांवों में तो लोग चिमनी, भपका और लालटेन युग में लोटने को मजबूर हैं। मिट्टी के तेल की कालाबजारी के चलते ग्रामीणों को मिट्टी का तेल भी मुहैया नहीं हो पा रहा है। शाम ढलते ही गांव के विद्यार्थी आधी रात तक इसी जुगत में होते हैं कि उनकी पढ़ाई किसकी रोशनी में हो सकेगी। उधर किसान पानी की समस्या के चलते खेतों को सूखता देखने को मजबूर है।
सत्ता पाने या पाकर उसे बरकरार रखने की गलाकाट स्पर्धा के बीच केंद्र और राज्य यह भूल जाते हैं कि उनकी इस सियासत में अंततोगत्वा पिस तो उनकी रियाया ही रही है। राज पाट और वर्चस्व की जंग राजनीति के अखाड़े में ही शोभा देती है। अगर इस तरह की जंग जनता की परेशानी का सबब बनने लगे तो आखिर किस काम का राजपाट!
उस शासक का शासन ही क्या जिसके शासनकाल में उसी की रियाया बिजली और पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसे। जनता के धेर्य और संयम का इम्तेहान लेने वाली इस राग द्वेष की लड़ाई को बंद करना ही सियासी पार्टियों के लिए हितकर होगा, अन्यथा जनता का धेर्य और संयम अगर टूटा तो ..............।

भाजपा कांग्रेस मिलकर छल रहीं हैं जनता को

सुषमा मनमोहन में नूरा कुश्ती!

एक दूसरे के बचाव में खड़े प्रतीत होते हैं प्रतिद्वंदी दल

शिवराज लगे सुषमा की मदद के बिना ही केंद्र को घेरने

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। जनता जनार्दन के सामने एक दूसरे को फूटी आंख न सुहाने वाली कांग्रेस और भाजपा में पर्दे के पीछे पूरा पूरा सद्भाव बना हुआ है। अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति हेतु दोनों ही सियासी दलों में शीर्ष से लेकर जमीनी स्तर तक आपस में सोहाद्र बना हुआ है। हाल ही में भाजपा ने लोकसभा में कांग्रेसनीत केंद्र सरकार को बचाकर इस बात को अखिर प्रमाणित कर ही दिया।
बीमा बिल पर वाम दल के वासुदेव आचार्य ने सदन में कांग्रेसनीत केंद्र सरकार को गिराने की भरसक कोशिश की। उन्होंने इसके लिए सदन में मतदान तक की मांग कर डाली। लोक सभा के गलियारों से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो कांग्रेस के सांसद भी उस दिन अनुपस्थित ही रहे सदन में। इसके बाद राजद के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज को बुलाया और ताकीद किया कि भाजपा को इस मतदान में सरकार के पक्ष में मतदान कर सरकार बचाने का जतन करना चाहिए।
बताते हैं कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान द्वारा सालों साल सींची गई विदिशा संसदीय क्षेत्र की संसद सदस्य सुषमा स्वराज ने आड़वाणी की इच्छा को सर माथे पर रखकर सदन में समर्थन दिया और कांग्रेसनीत संप्रग सरकार गिरने से बच गई। सदन में इसके तत्काल बाद कांग्रेस के तारणहार प्रणव मुखर्जी ने सुषमा स्वराज को धन्यवाद लिखकर भेजा।
उधर डाॅ.मुरली मनोहर जोशी द्वारा भाजपा के इस रवैए से काफी आक्रोश जताया गया। एक बार फिर सुषमा स्वराज और प्रणव मुखर्जी के बीच चर्चाओं का दौर चला। इसके बाद ही डाॅ.जोशी की नाराजगी वाले सांईंस तकनीकि बिल को कांग्रेस ने सदन में आने से रोक दिया।
जानकारों का कहना है कि राजनैतिक चतुर सुजान एल.के.आड़वाणी ने सुषमा स्वराज की स्थिति को असहज बनाने की गरज से पत्रकारों के द्वारा सदन में ‘‘नोट के बदले वोट‘‘ के मामले में पत्रकारों से रूबरू होकर कुटिल मुस्कान के माध्यम से यह कह दिया कि सदन में प्रधानमंत्री और सुषमा स्वराज दोनों ने ही सदन में अच्छा बोला।
वरिष्ठ भाजपा नेता एल.के.आड़वाणी द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर आरोप लगाने के बाद उनसे माफी मांगने की बात भाजपा के नेताओं के गले नहीं उतर पा रही है। विक्कीलीक्स के हंगामे के उपरांत भी भाजपा ने कांग्रेस के साथ सोहाद्र बनाते हुए बजट और वित्तीय बिल पास होने देने से कांग्रेस और भाजपा के बीच चल रही नूरा कुश्ती की बातों को बल ही मिल रहा है। उधर राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरूण जेतली भी समय समय पर सुषमा स्वराज और एल.के.आड़वाणी की तरह ही कांग्रेस के लिए संकटमोचक बनकर उभरते मिले हैं।
वैसे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान द्वारा बार बार कांग्रेसनीत कंेद्र सरकार पर मध्य प्रदेश के साथ सौतेला व्यवहार करने के आरोप लगाए जाते रहे हैं, किन्तु शिवराज की इस मुहिम में उन्हें मध्य प्रदेश से सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज का वांछित सहयोग नहीं प्राप्त हो पा रहा है। भले ही देश के हृदय प्रदेश के निजाम इस बात को सार्वजनिक तौर पर कह ना पा रहे हों, किन्तु जब भी शिवराज सिंह प्रधानमंत्री डाॅ.मनमोहन सिंह से मिलकर आते हैं, और मीडिया से रूबरू होते हैं, उनके चेहरे पर यह दर्द साफ दिखाई देता है कि मध्य प्रदेश के हितों के लिए लड़ने के बावजूद भी उन्हें सुषमा स्वराज जैसी कद्दावर नेता का सहयोग कम से कम मध्य प्रदेश के हितों के मामले में तो नहीं ही मिल पा रहा है।

फोरलेन प्रकरण की वस्तुस्थिति जानने को आतुर है सिवनी जिले की जनता

अब किसे पैजामे में रहने की नसीहत देंगे महेंद्र देशमुख जी: लिमटी खरे

सिवनी। उत्तर दक्षिण गलियारे के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले के जितने भी अंश अब तक सिवनी पहुंचे हैं उनके प्रकाश में जनमंच सिवनी द्वारा व्यक्त की गई निराशा, जनमंच लखनादौन द्वारा फैसले का किया गया स्वागत और वरिष्ठ अधिवक्ता बुलाकी राम सिसोदिया द्वारा दिया गया वक्तव्य से भ्रम की स्थिति निर्मित हो गई है, जिसे स्पही इस मामले को स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है। उक्ताशय की बात पत्रकार लिमटी खरे द्वारा जारी विज्ञप्ति में कही गई है।
गौरतलब होगा कि दिसंबर 2008 में षणयंत्र पूर्वक इस गलियारे से सिवनी जिले का नामोनिशान मिटाने के लिए कुछ तत्वों द्वारा व्यूह रचना तैयार की गई थी। इसके उपरांत पत्रकार लिमटी खरे द्वारा लगातार ही इस मामले की सच्चाई को समाचार पत्रों के माध्यम से जनता के समक्ष लाया जाता रहा है। इसी बीच कुछ सच्ची और कड़वी बातों से व्यथित होकर फोरलेन मामले में सड़क के लिए लड़ाई लड़ने वाले जनमंच सिवनी के प्रवक्ता महेंद्र देशमुख द्वारा पत्रकार लिमटी खरे को सीमाओं में रहकर लिखने की बात कही गई थी।
जनमंच सिवनी द्वारा यह भी कहा गया था कि सिवनी में फोरलेन सड़क के गड्ढ़े भी जनमंच भरवाए, सड़क निर्माण के ठेकेदारों से भी जनमंच बात करे, सुप्रीम कोर्ट में जाकर भी जनमंच लड़ाई लड़े आदि आदि। उस वक्त शहर में इसकी बहुत अच्छी प्रतिक्रिया नहीं आई थी। लोगों का कहना था कि जनमंच ने आगे आकर जब सिवनी के हितों को साधने का प्रयास किया है तो यह उसकी जवाबदारी ही है कि इन सारे मामलों को वह देखे। जनमंच सिवनी द्वारा अब तक यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि वह सिवनी के सड़क के किस हिस्से की लड़ाई लड़ रहा है। अब महेंद्र देशमुख की यह जवाबदारी है कि फैसला जस का तस जनता के समक्ष रख जाए और माननीय सर्वोच्च न्यायालय में सिवनी की ओर से लड़ाई लड़ने वाले विद्वान अधिवक्ता प्रशांत भूषण से इस आदेश की व्याख्या करवाकर उसे जनता के समक्ष रखे। साथ ही उन्होने कहा कि जनमंच की एक और बैठक आहूत कर इस पूरे मामले में प्रशांत भूषण को सर्व सम्मति से धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिए जिन्होंने अपने अमूल्य समय में से सिवनी के हितों के लिए निशुल्क लड़ाई लड़ी।
जनमंच सिवनी और जनमंच लखनादौन की विज्ञप्तियों के कारण शहर में भ्रम की स्थिति निर्मित हो गई है कि आखिर सच कौन बोल रहा है। वरिष्ठ अधिवक्ता बुलाकी राम सिसोदिया द्वारा इस मामले का कुहासा काफी हद तक हटाया गया है। श्री सिसादिया के अनुसार जितनी भी प्रतियां और पेज अब तक सिवनी आए हैं उनके अनुसार यह सिवनी वासियों की जीत है।
अगर देखा जाए तो इंटरनेट पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय की वेब साईट पर डले पेंच के फच्चर वाले फैसले में लखनादौन जनमंच के दिनेश राय और अधिवक्ता श्री सिसोदिया का कहना ही सच प्रतीत होता है। जनमंच सिवनी की विज्ञप्तियों से भ्रम ही पैदा हुआ है। जिस मामले में उसे स्पष्टीकरण देना चाहिए।
14 मार्च 2011 के फैसले के उपरांत अब 19 दिन बीतने के बाद भी अगर सिवनी वासियों के हितों के संवर्धन हेतु लड़ने वाले संगठन द्वारा उत्तर दक्षिण की जीवन रेखा एनएच 07 के मामले में वाईल्ड लाईफ ट्रस्ट के अडंगे पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से रूबरू न कराया जाना दुर्भाग्यपूर्ण ही माना जा सकता है।
अब जबकि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस मामले में फच्चर फसाने वाली याचिका को निरस्त कर दिया है तब पुनः सभी को एकजुट होकर इस मार्ग को बनवाने के मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। वरना अगर एक बार फिर वाईल्ड लाईफ ट्रस्ट जैसे विध्नसंतोषियों को अगर पुनः किसी और मंच पर जाने देने का मौका देने का प्रयास किया गया तो आने वाले समय में इस सड़क के बनने की संभावनाएं धूल धुसारित ही होंगी।