गुरुवार, 10 मार्च 2011

वास्तविकता के बहाने क्या परोस रहा है वालीवुड!


फिल्मों में बढ़ती गालियां और बेबस सैंसर बोर्ड
(लिमटी खरे)

भारत में रूपहले पर्दे पर हिन्दी फिल्मों में गालियां, अभद्र असंसदीय भाषा के बढ़ते प्रयोग पर भारतीय सैंसर बोर्ड का रूख साफ न होने से समाज में गंदगी बढ़ने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसी का परिणाम है कि सैंसर प्रमाण पत्र देने के मसले पर क्षेत्रीय कार्यालयों के फैसले और रूख अलग अलग ही नजर आ रहे हैं। हाल ही में जनवरी मे रिलीज हुई देओल परिवार की धर्मेंद्र, सनी और बाबी अभिनीत फिल्म ‘यमला पगला दीवाना‘ में भी यही विसंगति सामने आई है।

सैंसर बोर्ड के मुंबई स्थित कार्यालय ने इस फिल्म के प्रोमो (फिल्म को प्रोत्साहित करने वाले अंश) को स्वीकृत कर दिया गया था। इसके बाद यह प्रोमो टीवी चेनल्स पर जमकर चला। इसके बाद केंद्रीय सैंसर बोर्ड के एक सदस्य का ध्यान इस ओर गया कि प्रोमो में धर्मेंद्र को बहन की गाली देते हुए दिखाया गया था। सदस्य की आपत्ति के उपरांत केंद्रीय सैंसर बोर्ड ने इस मामले में मुंबई कार्यालय ेसे जवाब तलब किया। क्षेत्रीय कार्यालय ने अपनी गल्ति स्वीकार करते हुए कहा कि इसके प्रोड्यूसर को इस दृश्य को हटाने के लिए कह दिया जाएगा।

गौरतलब है कि केंद्रीय सैंसर बोर्ड के अधीन नौ क्षेत्रीय कार्यालय कार्यरत हैं, जहां फिल्मकार अपनी फिल्में, म्यूजिक वीडियो, डॉक्यूमेंट्री आदि को सैंसर से पास कराकर उसका प्रमाण पत्र लेने के लिए जमा करते हैं। माना जाता है कि समाज में अशलीलता न परोसी जाए इसलिए सभी क्षेत्रीय कार्यालयों द्वारा केंद्रीय स्तर पर निर्धारित किए गए दिशा निर्देंशों का पालन एकरूपता के आधार पर किया जाएगा।

पूर्व में भी मायानगरी मुंबई में बनी हिन्दी फिल्मों में अश्लीलता ने सारी पराकाष्ठाएं पार कर दी हैं। दादा कोड़के के द्विअर्थी संवाद वाले चलचित्रों ने थर्ड ग्रेड के दर्शकों में खासी लोकप्रियता हासिल कर ली थी। उनकी फिल्मों के नाम ही इतने अश्लील होते थे कि कहा नहीं जा सकता, किन्तु दादा कोड़के द्वारा इस बारे में लोगों की विकृत मानसिकता को दोषी बताकर अपना पल्ला झाड़ लिया जाता रहा है। इसी तरह मानसून वेडिंग में सरेआम गालियों का दिखाया जाना कहां की संस्कृति है। बैंटिड क्वीन में सीमा परिहार के साथ सरेआम बलात्कार का दृश्य भी कोमल हृदय पर क्या असर डाल सकता है इस बात से सैंसर बोर्ड नावाकिफ ही माना जा सकता है।
टीवी पर सीरियल्स में सरेआम सुरा पार्टियों और धुंए के छल्ले उड़ाते किरदारों ने युवाओं को शराब और सिगरेट की ओर आकर्षित किया है। हो सकता है सरकार को इस सबसे तगड़ा राजस्व मिलता हो पर आखिर यह सब है तो समाजिक व्यवस्था के खिलाफ ही। एक समय था जब अश्लील चलचित्रों के बारे में परिवार बेहद संजीदा हुआ करता था। याद पड़ता है जब हम छोटे थे तब ऋषि कपूर, रंजीता अभिनीत ‘लैला मजनू‘ रिलीज हुई तब इस फिल्म को अश्लील माना गया था। उस दौर में बड़े बूढ़ों ने इस फिल्म तो फिल्म इसके पोस्टर्स तक न देखने की सख्त हिदायत दी थी।

समय चक्र घूमता गया। आज हम पाश्चात संस्कृति के एसे दीवाने हो गए हैं कि उसको अपना हमारा शौक नहीं मजबूरी बनकर रह गया है। फिल्मों में चुंबन के दृश्य हों या हिंसक मारधाड़ के, अब तो सब कुछ सैसर की कैंची से बचकर ही निकल जाते हैं। एक समय था जब शोले के डाकू गब्बर सिंह को देखने से महिलाएं घबराती थीं, किन्तु आज तो टीवी चेनल्स खासकर समाचार चेनल्स अपराध के सामाचारों के नाम पर विशुद्ध अशलीलता परोस रहे हैं, और केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय आंखों पर पट्टी बांधे
चुपचाप बैठा है।

टीवी पर आने वाले विज्ञापनों में गर्भपात के लिए ओरल पिल्स का विज्ञापन इस तरह दिखाया जा रहा है मानो वह स्मरण शक्ति बढ़ाने या ताकत की कोई दवा हो। इस विज्ञापन का असर समाज पर क्या हुआ। पिछले दिनों एक एसएमएस आया कि युवाओं में किन दो चीजो की डिमांड सबसे ज्यादा है एक तो आईपीएल (फटाफट क्रिकेट) और दूसरा आईपिल (गर्भ निरोधक गोली)। यह सच्चाई थी। इसके विज्ञापनों के बाद युवाओं में असुरक्षित यौन संपर्क बनाने की प्रवृत्ति में खासा उछाल दर्ज किया गया था।

इसी तरह अक्षय कुमार अभिनीत ‘तीस मार खां‘ का प्रोमो भी मंुबई सैंसर बोर्ड कार्यालय द्वारा पास कर दिया गया था। इसके बाद दिल्ली कार्यालय ने इस पर तीन आपत्यिां दर्ज की। पहली तो अक्षय के तवायफ वाले संवाद पर, दूसरी अक्षय द्वारा गाली का उपयोग और तीसरी डकैती के वक्त तिरंगे का प्रयोग। फिल्मकार ने दलील दी कि जब मुंबई कार्यालय ने इसे बिना किसी अपत्ति के पास कर दिया है तो फिर दिल्ली कार्यालय को उन्हीं दृश्यों पर आपत्ति क्यों होना चाहिए। शीला और मुन्नी के गानों पर भी जमकर बवाल मचा पर नतीजा सिफर ही है।

देश में इंटरनेट पर जिस कदर अश्लील सामग्री परोसी जा रही है उसे देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेसनीत केंद्र सरकार का सूचना और प्रसारण मंत्रालय देश के युवाओं को गंदगी की अंधेरी सुरंग में आगे धकेलने के मार्ग ही प्रशस्त कर रहा है। इंटरनेट पर तमाम नग्न वेब साईट्स मोबाईल या वीडियो केमरे से निर्मित स्वदेशी अश्लील वीडियो से पटी पड़ी हुई हैं, जिसमें दिल्ली के बुद्धा गार्डन से लेकर इंदौर भोपाल, रायपुर, नागपुर, पटना, केरल आदि हर जगह के अश्लील नग्न वीडियो पड़े हुए हैं। यहां तक कि हाल ही में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुए एक एमएमएस कांड के चार भाग भी इस पर मौजूद हैं जिनमें बाकायदा साउंड इफेक्टस भी हैं।

फिल्मों और विज्ञापनों में गालियों का चलन अच्छी परंपरा का आगाज कतई नहीं माना जा सकता है। इसे देख सुनकर भारतवर्ष के नौनिहाल भी गालियों का प्रयोग सार्वजनिक तौर पर करने लगे हैं। फिल्मों और टीवी सीरियल्स पर हिंसा के दृश्यों ने नौनिहालों के कोमल मन को हिंसक बना दिया है। आज बाजार में मिलने वाले हिंसक गेम्स भी बच्चों के मन पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना नही है। एसा नहीं कि इन सबके लिए भारत सरकार द्वारा कोई गाईड लाईन निर्धारित नहीं की हो। सब कुछ होने के बाद भी संबंधित अधिकारियों कर्मचारियों की चुप्पी अनेकों सवालों को अनुत्तरित ही छोड़ जाती है।

फिल्मों या टीवी सीरियल्स के किरदार किसी न किसी के लिए पायोनियर (अगुआ) का काम करते हैं यह बात स्थापित हो चुकी है। फिर अगर किसी के फेवरेट स्टार या हीरोईन द्वारा सिगरेट शराब या गलियों का प्रयोग किया जाता है तो उसका पालन उसका प्रशंसक भी कर सकता है। अब तो हीरोईन्स भी गालियों का प्रयोग करने से गुरेज नहीं करती हैं। कुल मिलाकर भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय को समाज के प्रति अपनी जवाबदेही समझना ही होगा, आंख बंद रखकर वह समाज को दिशा देने के बजाए अश्लीलता के अंधे कुंए की ओर ही अग्रसर कर रहा है। वास्तविकता के बहाने अश्लीलता परोसने की इजाजत किसी को भी देना न केवल निंदनीय है, वरन् समाज के प्रति घ्रणित अपराध है।

छवि को चमका कर ही लेंगे मनमोहन बिदाई


2011 में ही बिदा हो सकते हैं मनमोहन! 
बजट के बाद बड़े फेरबदल के दिए थे पीएम ने संकेत

कांग्रेस प्रबंधक चाहते हैं विधानसभा चुनावों के उपरांत मन की बिदाई

 
(लिमटी खरे)
 
नई दिल्ली। वर्ष 2010 और 2011 वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह के लिए बहुत शुभ नहीं कहा जा सकता है। इन दोनों ही सालों में मनमोहन सिंह का मन बड़ा ही व्यथित रहा। इसका कारण एक के बाद एक घपले घोटाले, भ्रष्टाचार से उनकी उज्जवल धवल छवि का दागदार होना है। मनमोहन सिंह चाहते हैं कि वे अपनी छवि को पहले जैसी चमका लें और फिर बिदा हो जाएं प्रधानमंत्री निवास से। उधर कांग्रेस के प्रबंधक भी अब इसका ताना बाना बुन रहे हैं कि किस तरह पश्चिम बंगाल, तमिलनाडू, असम पुद्दुचेरी और केरल चुनावों के बाद प्रधानमंत्री के पद से डॉ.मनमोहन की बिदाई सुनिश्चित की जा सके।
 
इस साल के आरंभ में केंद्रीय मंत्रीमण्डल में फेरबदल के बाद डॉ.मनमोहन सिंह ने कहा था कि बजट सत्र के बाद बड़ी सर्जरी की तैयारी है। इसके बाद ही पीएम ने मीडिया के छोटे से समूह (चुनिंदा टीवी चेनल्स के संपादकों) को बुलाकर सत्तर मिनिट की पत्रकार वार्ता की थी। इस दौरान पीएम अकेले ही खड़े दिखे थे। खुद को मजबूर बताकर सीवीसी मामले में खेद प्रकट करने वाले मनमोहन सिंह को बताया गया है कि इन दोनों ही कदमों से उनकी गिरती साख को और अधिक धक्का लगा है।
 
कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (कांग्रेस अध्यक्ष का सरकारी आवास) के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि सोनिया मण्डली ने उन्हें मशविरा दिया है कि पांच राज्यों में चुनावों के होते ही नए नेता का चयन कर लिया जाए। उधर 7 रेसकार्स रोड़ (प्रधानमंत्री आवास) के सूत्रों का कहना है कि भ्रष्टाचार, घपले घोटालों से आजिज आ चुके डॉ.मनमोहन सिंह खुद भी इस दायित्व से मुक्त होने को आतुर दिख रहे हैं, किन्तु वे चाह रहे हैं कि उनके नाम को फिर से वापस पुराने जैसा साफ सुथरा बना दिया जाए तब वे पीएमओ से अपने आप को दूर कर लेंगे।
 
प्रधानमंत्री ने बजट सत्र के बाद बड़े बदलाव के संकेत देकर इस ओर इशारा कर दिया था कि वे भ्रष्ट मंत्रियों को बजट सत्र के बाद बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं। यही कारण है कि जनवरी के फेरबदल में उन्होंने पार्टी अध्यक्ष की मंशा को महत्व दिया था। अब मनमोहन किसी भी कीमत पर झुकने को तैयार नहीं दिख रहे हैं।

भूतल परिवहन मंत्रालय तैयार है मार्ग के अवरोध दूर करने हेतु


लखनादौन नागपुर फोरलेन बनने के मार्ग प्रशस्त
 
(लिमटी खरे)
 
नई दिल्ली। स्वर्णिम चतुर्भुज के अंग उत्तर दक्षिण गलयारे में मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में लगे फच्चर जल्द ही हट सकते हैं। भूतल परिवहन मंत्रालय द्वारा सैद्धांतिक तौर पर इस बात के लिए सहमति बना ली गई है कि पेंच टाईगर रिजर्व के अंतर्गत आने वाले हिस्से को छोड़कर शेष भाग में सड़क निर्माण का काम आरंभ कर लिया जाए। इस मामले में सिवनी जिले के कुरई घाट और बंजारी के कुछ हिस्सों में वन एवं पर्यावरण विभाग की अनुमति अभी लंबित है।
 
गौरतलब है कि सड़क निर्माण का यह मुद्दा सियासी दांवपेंच में फंसकर रह गया है। इस मार्ग को लेकर कांग्रेस और भाजपा नाहक ही आमने सामने दिखाई पड़ रही है। एक तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इसकी रोक के लिए तत्कालीन भूतल परिवहन मंत्री और वन एवं पर्यावरण मंत्री को जिम्मेदार बता रहे थे, तो दूसरी ओर सिवनी जिले में भी आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला चल पड़ा था। समय बीतते ही यह मुद्दा लोगों के ध्यान से हट गया और इस पर सियासत करने वालों ने भी इसे गर्माना कतई उचित नहीं समझा। यहां तक कि सिवनी के जनप्रतिनिधियों ने अपने ‘अहम‘ के चलते केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री या केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री से मिलकर वस्तु स्थिति को साफ करना भी उचित नहीं समझा।
 
भूतल परिवहन मंत्रालय के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि चूंकि मामाला सर्वोच्च न्यायालय मे लंबित है इसलिए कोई भी किसी भी तरह की टिप्पणी करने से बच रहा है, फिर भी मामला स्पष्ट न होने के चलते सिवनी जिले में लखनादौन से महाराष्ट्र की सीमा तक का काम लंबित है। सूत्रों ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय की साधिकार समिति (सीईसी) के आग्रह पर जिला कलेक्टर द्वारा रोके गए काम के बारे में विभाग के भ्रम का कुहासा छटने लगा है। सूत्रों ने कहा कि विभाग के आला अधिकारियों को अंदेशा था कि सीईसी ने लखनादौन से बरास्ता सिवनी, खवासा के कुल लगभग 120 किलोमीटर लंबे मार्ग पर निर्माण पर रोक लगाने का अनुरोध किया था। बाद में सिवनी जिले के कुछ लोगों द्वारा भूतल परिवहन मंत्रालय के अधिकारियों के समक्ष जो दलीलें दीं उससे मंत्रालय सहमत होता दिख रहा है।
 
सूत्रों ने कहा कि विभाग द्वारा जल्द ही सर्वोच्च न्यायालय में अपनी दलील पेश कर इस बारे में दिशा निर्देश चाहे जाएंगे, जिसमें पेंच राष्ट्रीय उद्यान के क्षेत्र वाले आठ दशमलव सात किलोमीटर को छोड़कर शेष भाग में क्या काम आरंभ किया जा सकता है? उधर कानून के जानकारों का मानना है कि इस बारे में न्यायालय द्वारा कोई रोक संभवतः नहीं लगाई गई है अतः जिस हिस्से में विवाद नही है उस हिस्से में काम करने में किसी को कोई आपत्ति नहीं होना चाहिए।
 
एनएचएआई के सूत्रों ने यह भी कहा कि लखनादौन से खवासा तक के मार्ग को बनाने के लिए प्रयासरत लखनादौन जनमंच के दिनेश राय द्वारा बार बार भूतल परिवहन मंत्रालय के आला अधिकारियों के सामने वास्तविकता लाने और ठोस तर्क रखने के चलते एनएचएआई के अधिकारियों के सामने जमीनी हकीकत आ सकी है। सूत्रों के अनुसार श्री राय ने कुछ संसद सदस्यों के माध्यम से भी एनएचएआई पर यह दबाव बनाया है कि इस मार्ग में जहां रोक नहीं है वहां काम आरंभ कराया जाए। यही कारण है कि 8.7 किलोमीटर के पेंच के हिस्से को छोड़कर शेष भाग में काम करने के लिए एनएचएआई ने सैद्धांतिक तौर पर अपनी सहमति देने का मन बना लिया है, जिससे अब सिवनी जिले से होकर गुजरने वाले उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारा कुरई घाटी के हिस्से को छोड़कर शेष भाग में फोरलेन होने के मार्ग प्रशस्त हो गए हैं।