शनिवार, 30 अप्रैल 2011

महज कानून बनाने से नहीं रूकने वाला उत्पीड़न चक्र

आदि अनादि काल से प्रताडि़त होती आईं हैं महिलाएं

कानून तो बहुतेरे पर इनका पालन नहीं है सुनिश्चित

(लिमटी खरे)

पुरानी कहावत है -‘‘. . ., गंवार, पशु और नारी, ये सब हैं ताड़न के अधिकारी।‘‘ इसमें नारी को शामिल किया गया है। एक तरफ तो नारी को माता का दर्जा देकर सबसे उपर रखा गया है, वहीं दूसरी ओर नारी को ही प्रताड़ना का अधिकारी बताया जाना कहां तक न्यायसंगत है। नारी के जिस स्वरूप को मनुष्य द्वारा मां के रूप में पूजा जाता है, वही नारी आखिर पत्नि या बहू के तौर पर प्रताडि़त करने की वस्तु क्यों बन जाती है।

सालों पहले एक पत्रकार द्वारा लिखा गया था -‘हमारे घरों की मां बहने जब सड़क पर निकला करती हैं तो वे दूसरों के लिए माल बन जाया करती हैं।‘ उस बात मे वाकई दम है। हमारा समाज अपने घरों की महिलाओं को छोड़कर जब दूसरे घरों की महिलाओं को देखता है तो मन में लड्डू फूटने लगते हैं मुंह से सीटी और सिसकारियां निकल जाती हैं, मन में कलुषित भावनाएं कुलाचें मारने लगती हैं।

भारत गणराज्य में नारियों की अस्मत को बचाने के लिए कानूनों की कमी नहीं है। हाल ही में राजस्थान सरकार द्वारा महिलाओं पर होने वाले अत्याचार रोकने के लिए कड़े कानून बनाने के लिए कुछ प्रावधान किए हैं, जिनका स्वागत होना चाहिए। वर्तमान परिदृश्य में चहुं ओर महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों की कमी नहीं है। कहीं दहेज के लिए बहू को जलाया जा रहा है, तो कहीं युवतियों तो छोडि़ए अबोध बालाओं का शील भंग किया जा रहा है, कहीं सरेआम रेल गाड़ी से महिला को फेंक दिया जाता है।

एसा नहीं है कि भारत गणराज्य में महिलाओं को सुरक्षित रखने के लिए कानूनों की कमी है। महिलाओं के हितों के लिए काननू अवश्य हैं किन्तु उनमें इतनी पोल हैं कि अपराधी सीखचों के पीछे जाने से सदा ही बच जाते हैं। देश के कमोबेश हर प्रदेश में महिलाएंे सुरक्षित नहीं कही जा सकती हैं। देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली जहां पर कि खुद एक महिला तीसरी बार निजाम बनी हैं, उसी शीला दीक्षित के राज में महिलाओं की रोज होने वाली दुर्गत किसी से छिपी नहीं है।

देश भर में कार्य स्थलों में महिलाओं का यौन उत्पीड़न किसी से छिपा नहीं है। खुद मीडिया में ही महिलाओं की स्थिति क्या है यह बात सभी बेहतर जानते हैं। कहीं महिलाओं से बेगार करवाया जाता है, तो कहीं पुलिस थाने में ही महिला की अस्मत लूट ली जाती है, चैक चैराहों, मदिरालयों के इर्द गिर्द से गुजरने वाली महिलाओं को अश्लील फब्तियां कसी जाती हैं। कार्यालय में बाॅस अपनी महिला कर्मी को लांग ड्राईव पर ले जाने ख्वाईशमंद हुआ करते हैं। आजकल कार्पोरेट जगत में महिलाओं के योन उत्पीड़न के शब्दकोश में एक नया शब्द जुड गया है वह है ‘कापरेट करना‘ जिसका अर्थ अपने सीनियर्स की मनमानी को खामोश रहकर सहते हुए कापरेट करने से जोड़कर देखा जाता है।

राजस्थान सरकार ने वाकई एक नायाब पहल की है। उम्मीद की जानी चाहिए कि महिलाओं के हितों के संवर्धन के लिए राजस्थान सरकार के प्रयास निश्चित तौर पर नजीर बनकर उभरेंगें। कहने को तो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने अपने आप को सूबे के हर बच्चे का मामा घोषित किया है। अर्थात सबे की हर मां उनकी बहन है, किन्तु क्या शिवराज सिंह चैहान राजनैतिक चश्मा उतारकर सीने पर हाथ रखकर यह कहने का साहस कर पाएंगे कि उनके राज में महिलाएं सुरक्षित हैं, जवाब निश्चित तौर पर नकारात्मक ही होगा।

भारत अघोषित तौर पर पुरूष प्रधान देश माना जाता रहा है जहां पुरूषों का काम आजीविका कमाकर लाना और महिलाआंे का काम दो वक्त की रोटी बनाकर घर के काम काज करने के साथ ही साथ बच्चे पैदा करने की मशीन के तौर पर काम करने तक ही सीमित था। आधुनिकता के दौर में महिलाओं ने घरों की चैखट लांघ दी है। महिलाएं आज पुरूषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। एक तरफ तो सभ्य समाज होने का हम दंभ भरते हैं, वहीं दूसरी ओर महिलाओं को प्रताडि़त कर इसी सभ्य समाज के पुरूष गौरवांवित हुए बिना नहीं रहते हैं।

इस देश की इससे बड़ी विडम्बना और क्या होगी कि जिस देश की महामहिम राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज हों उस देश में महिलाओं को अपने आप को सुरक्षित रखने के तरीके तलाशने पड़ रहे हों। जहां महिलाएं ही सर्वोच्च पदों पर आसीन हों वहां भी महिलाएं असुरक्षित हों तो निश्चित तौर पर व्यवस्था में कहीं न कहीं दीमक अवश्य ही लगा हुआ है।

राजस्थान सरकार ने कानून बनाने के प्रावधानों की पहल करके एक नई सुबह का आगाज किया है। ध्यान इस बात का रखा जाना चाहिए कि कानून बनकर एसे कानून की किताबों के सफांे पर ही कैद होकर न रह जाएं। इन्हें व्यवहारिक तौर पर लागू करना सुनिश्चित करना होगा। इसमें आवश्यक है कि कानून का पालन न करने वाले जिम्मेदार नौकरशाहों और कर्मचारियों को भी सजा के दायरे में लाना जरूरी है।

केंद्र सरकार को चाहिए कि इस संवेदनशील और गंभीर मसले पर राज्यों के साथ वह सर जोड़कर बैठे और महिलाओं की सुरक्षा के लिए कोई ठोस कार्ययोजना तैयार करे। इसके लिए इस बात को ध्यान में रखा जाना नितांत जरूरी है कि कानून एसे हों जिनका उल्लंघन करने पर व्यक्ति को समझ में आ जाए कि आखिर उसने कितना बड़ा जुर्म किया है। इससे और लोगों को नसीहत भी मिल सकेगी। इसके लिए मीडिया की भी यह जवाबदेही बनती है कि वह भी इस तरह सजा वाली खबरों को प्रमुखता से जनता के सामने लाए और महिलाओं का उत्पीड़न करने का मानस बनाने वालों के हौसले पस्त करे।

दहेज प्रताड़ना, हरिजन आदिवासी कानून की आड़ में निर्दोष लोगों को प्रताडि़त करने की खबरें मिला करती हैं। इसके लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि महिलाओं को प्रताडि़त करने से बचाने के लिए बनने वाले कानूनों में यह प्रावधान भी किया जाए कि कोई महिला या उसके परिजन द्वारा इस कानून का बेजा इस्तेमाल न किया जा सके। हमारी राय में यही इकलौता रास्ता होगा जिसके जरिए महिलाओं को उत्पीड़न से बचाया जा सकता है।

लाईव टीवी का मजा नहीं ले सकेंगे भोपाल शताब्दी वाले

लास्ट प्रार्यरटी में है भोपाल शताब्दी

एम पी के जनप्रतिनिधियों को नहीं है रेलों की परवाह

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली से विभिन्न राज्यों को जाने वाली शताब्दी एक्सप्रेस रेल गाडियों के एक्जीक्यूटिव क्लास के यात्रियों के मनोरंजन के लिए लाईव टीवी योजना का आगाज किया जा रहा है। पहले चरण में लगभग आधा दर्जन शताब्दी रेल में इसे डिश टीवी के माध्यम से सजीव प्रसारण किया जाएगा। भारतीय रेल की फेहरिस्त में भोपाल शताब्दी एक्सप्रेस को अंतिम वरीयता पर रखा गया है।


रेल्वे के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि दिल्ली से कालका के बीच चलने वाली शताब्दी एक्सप्रेस में पहले से रिकार्डेड प्रोग्राम दिखाए जाने के उत्साहजनक परिणाम आने के बाद रेल्वे ने डिश टीवी के माध्यम से सीधा प्रसारण दिखाने की योजना को हरी झंडी दे दी है। रेल्वे बोर्ड ने इस काम को अंजाम देने के लिए जोनल बोर्ड को ही सारे अधिकार दे दिए हैं।


सूत्रों ने आगे बताया कि उत्तर रेल्वे द्वारा दिल्ली से कालका, अमृतसर, लखनऊ, देहरादून, अजमेर जाने वाली शताब्दी एक्सप्रेस के एक्जीक्यूटिव क्लास दर्जे में इस काम को अंजाम दिया जा रहा है। उधर अहमदाबाद, रांची, बंग्लुरू, चेन्नई, मैसूर आदि के बीच भी शताब्दी एक्सपे्रस की सेवाएं हैं किन्तु वहां काम कुछ समय बाद आंरभ होगा।


सूत्रों ने यह भी कहा कि दिल्ली से देश के हृदय प्रदेश भोपाल जाने वाले 12001 / 12002 नंबर की शतब्दी भारतीय रेल की वरीयता सूची में बेहद पीछे है। यही कारण है कि इस शताब्दी के एक्सप्रेस में सफर करने वाले यात्रियों को ज्यादा सुविधाएं मुहैया नहीं हो पाती हैं। मध्य प्रदेश कोटे से केंद्र मंे मंत्री कमल नाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अरूण यादव और कांतिलाल भूरिया सहित लोकसभा के 29 और राज्य सभा के 10 सांसदों द्वारा भी रेल सुविधाओं के मामले में पुरजोर आवाज न उठा पाने से मध्य प्रदेश में घटिया रेल सेवाओं की मार सीधे सीधे यात्रियों पर ही पड़ रही है।



ठक टिक की बिदाई

तीन सौ साल पुराने साथी को अलविदा कहेगी दुनिया

टाईपराईटर के साथ कार्बन और टाईप रिबिन भी होंगे विलुप्त प्रजाति में शामिल

(लिमटी खरे)

एक समय में ठक टिक की आवाज के साथ गर्व से सीना ताने चलने वाला टाईपराईटर अब इतिहास की वस्तु हो गया है। कम ही जगहों पर टाईपराईटर देखने को मिला करते हैं। भारतीय सिनेमा की जासूसी फिल्मों में टिक टिक की आवाज के साथ शबदों को कागज पर उतारने वाले टाईपराईटर के अक्षरों के माध्यम से अनेक अनसुलझी गुत्थियों को सुलझाया जाता रहा है। कोर्ट कचहरी, अर्जीनवीस, समाचार पत्र, सरकारी कार्यालयों आदि में टाईपराईटर की आवाज बहुत ही मधुर हुआ करती थी। कालांतर में इसका स्थान कम्पयूटर के बेआवाज की बोर्ड ने ले लिया। अब तो हर जगह डेक्स टाप या लेपटाप की ही धूम है। अस्सी के दशक के बीतने तक टाईपिंग सिखाने वालों की दुकानें रोशन हुआ करती थीं।

टाईपराईटर का उत्पादन कर रही दुनिया की आखिरी कंपनी गोदरेज एण्ड बोएस ने अब इसका उत्पादन नहीं करने का फैसला लिया है। निश्चित तौर पर यह समय की मांग है किन्तु सालों साल उत्पादन करने वाली कंपनी ने भारी मन से यह फैसला लिया होगा, कंपनी के कर्मचारियों और मालिकों की पीड़ा को समझा जा सकता है। कंपनी के पास लगभग दो सौ टाईपराईटर हैं जिन्हें वह एंटीक के बतौर उसी तरह बेच सकती है जिस तरह आज ग्रामो फोन लोगों के घरों की बैठक की शान बन गए हैं।

अस्सी के दशक तक मीडिया में प्रिंट का दबदबा चरम पर था, (है तो आज भी किन्तु इलेक्ट्रानिक और वेब मीडिया के आगे इसकी छवि उतनी उजली नहीं बची है) इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। उस समय संपादकों द्वारा वही रचनाएं प्रकाशन के लिए स्वीकार की जाती थीं, जो सुपाठ्य अक्षरों में या टाईप की हुई हुआ करती थीं। न जाने कितने चलचित्र की पटकथा भी इन्ही टाईपराईटर से कागजों पर उतरी होंगी। कहते हैं कि हालीवुड के मशहूर किरदार जेम्स बांड की सुपर डुपर हिट फिल्मों के लेखक इयान फ्लेमिंग के पास एक सोने का बना टाईपराईटर था।

दुनिया के चैधरी अमेरिका में 1714 में हेनरी मिल द्वारा इस मशीन का अविष्कार किया था। इसके लगभग डेढ़ सौ साल के लंबे सफर के उपरांत क्रिस्टोफर लाॅमथ शोलेज द्वारा इसे 1864 में अंतिम बार नया रूप दिया और तब से इसका स्वरूप यही बना रहा। टाईपराईटर का व्यवसायिक उत्पादन 1867 में आरंभ हुआ था। 1950 के आते आते टाईपराईटर की लोकप्रियता लोगों के सार चढ़कर बोलने लगी। सरकारी कामकाज में टाईपराईटर का उपयोग जरूरी महसूस किया जाने लगा। इसी दौरान अमेरिका की कंपनी स्मिथ कोरोन ने दस लाख टाईपराईटर बेचकर रिकार्ड कायम किया। 1953 में तो दुनिया भर में एक करोड़ बीस लाख टाईपराईटर बिके।

नब्बे के दशक के आगाज के साथ टाईपराईटर में एक बार फिर तब्दीली महसूस हुई उस दौरान सामान्य टाईपराईटर से डेढ़ गुना बड़े आकार का इलेक्ट्रानिक टाईपराईटर बाजार में आया। इसमें मेमोरी थी, जिसमें कुछ प्रोफार्मा बनाकर सेव किए जा सकते थे। यह काफी हद तक लोकप्रिय हुआ, क्योंकि इसमें टाईपिस्ट को एक ही पत्र को बार बार टाईप नहीं करना होता था। इलेक्ट्रानिक टाईपराईटर की सांसे जल्द ही उखड़ गईं और इसका स्थान ले लिया कंप्यूटर ने।

कोर्ट कचहरी और भवन भूखण्डों की रजिस्ट्री के लिए अर्जीनवीस कार्यालय में टाईपिंग की स्पीड देखकर लोग दांतों तले उंगली दबा लेते थे, जब वे टाईपिंग मशीन पर बैठे व्यक्ति को एक ही उंगली से फर्राटे के साथ टाईप करते देखते थे। टाईपिंग करने वाले का की बोर्ड पर एक ही उंगली से निशाना गजब का होता था, जिसमें गल्ति की गुंजाईश ही नहीं होती थी। एक समय था जब टाईपिंग की परीक्षा आहूत होती थी, इसमें हर परीक्षार्थी को टाईपिंग मशीन साथ लाना अनिवार्य होता था। टाईपिंग की परीक्षा प्राप्त आवेदकों को स्टेनोग्राफर, टाईपिस्ट या क्लर्क की नौकरी में वरीयता भी मिला करती थी।

नब्बे के दशक के आगाज के साथ ही कंप्यूटर ने अपनी आमद दी। धीरे धीरे यह समाज पर छा गया। मुख्य तौर पर देखा जाए तो टाईपराईटर के लिए कंप्यूटर ही दुश्मन या सौतन साबित हुआ। टाईपिंग के प्रशिक्षण के लिए खुले संेटर वीरान होने लगे, शार्ट हेण्ड और टाईपिंग की विधा में से टाईपिंग भर जिंदा मानी जा सकती है, शार्ट हेण्ड तो अब गुजरे जमाने की बात हो चली है। रही बात टाईपिंग सीखने की तो कंप्यूटर के की बोर्ड पर उंगलियां चलाते चलाते बच्चे आसानी से टाईपिंग सीखने लगे हैं। हिन्दी की टाईपिंग जरा मुश्किल है, किन्तु अंगे्रजी की टाईपिंग बेहद आसान मानी जाती है। अब तो हिन्दी के शब्दों के स्टीकर की बोर्ड पर लगाकर बच्चे आसानी से हिन्दी मंे टाईप करने लगे हैं। हालात देखकर लगने लगा है मानो बच्चे मां के पेट से ही टाईपिंग सीखकर आ रहे हैं।

तीस साल की हो रही पीढ़ी इस परिवर्तन की साक्षात गवाह मानी जा सकती है जिसने टिक ठक से लेकर बेआवाज की बोर्ड तक का सफर अपनी नंगी आंखों से देखा होगा। इस पूरे बदलाव का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि टाईपराईटर की जवान पीढ़ी कंप्यूटर का की बोर्ड आज भी लोकप्रिय रही टाईपराईटर कंपनी रेमिंगटन के नाम पर आज भी धडल्ले से चल रहा है।

हर चीज जो पैदा होती है उसका अंत अवश्य ही होता है। कहा जाता है कि मनुष्य और उसके द्वारा निर्मित हर प्रोडक्ट कभी न कभी मृत्यु को प्राप्त होता है, उसका अवसान सुनिश्चित है। टिक टक की ध्वनि के साथ शब्दों को कागज पर उकेरने वाले टाईपराईटर ने लगभग तीन सौ सालों तक एक छत्र राज्य किया, अंत में वह मानव निर्मित संगणक (कंप्यूटर) के आगे घुटने टेकने पर मजबूर हो गया है।

टाईपराईटर में शब्दों का आकार सीमित हुआ करता था, किन्तु उसके परिष्कृत स्वरूप कंप्यूटर में हिन्दी अंगे्रजी उर्दू सहित अनेक भाषाओं के अनगिनत फाॅन्टस के साथ ही साथ उनका आकार (साईज) भी मनमाफिक करने की सुविधा है। एक ओर जहां टाईपराईटर से टाईप करने पर गल्ति होने पर उसमें व्हाईट फ्लूड लगाना या फिर उस शब्द पर दूसरा शब्द बार बार टाईप करना होता था उसके स्थान पर कंप्यूटर पर स्क्रीन पर ही पढ़कर उसमें करेक्शन किया जा सकता है।

टाईपराईटर के अवसान के साथ ही साथ इसके सहयोगी अव्यव टाईप रिबिन और कार्बन भी आने वाले समय में विलुप्त हो जाएं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अनेक चीजें एसी हैं जो समय के साथ ही बाजार से गायब तो हो चुकी हैं, पर गाहे बेगाहे, उनकी चर्चा होने पर पुनः उन प्रोडक्ट्स से जुड़ी मीठी यादें ताजा हो जाया करती हैं। उसी प्रकार जिन लोगों ने टाईपराईटर को देखा या उसका उपयोग किया है, उनके मानस पटल से लंबे समय तक टाईपराईटर विस्मृत होने वाला नहीं।

गोविंदा के बाद अब सलमान पर डाल रही कांग्रेस डोरे

ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

गोविंदा के बाद अब सलमान पर डाल रही कांग्रेस डोरे

कांग्रेस का जनाधार धीरे धीरे घटता ही जा रहा है। देश पर एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस अब कुछ सूबों में ही सिमटकर रह गई है। युवाओं को लुभाने के लिए कांग्रेस ने वालीवुड के सितारों का राजनीति में आने का प्रयोग किया। कुछ हद तक यह प्रयोग सफल रहा। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, सुनील दत्ता, गोविंदा और सुनील दत्त की पुत्री प्रिया आदि इसके नायाब उदहारण माने जा सकते हैं। अब कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी और सलमान खान के बीच छनने वाली खबरों से लगने लगा है कि सल्लू मियां जल्द ही कांग्रेस खेमे में आने वाले हैं। भारत श्रीलंका के वल्र्ड कप फायनल में युवराज राहुल अपने आठ दोस्तों के साथ मुंबई गए। सूत्रों की मानें तो भारत की जीत की खुशी में कांग्रेस की नजर में देश के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी ने मुंबई के वर्ली इलाके में पार्टी आरंभ की। आधी रात के बाद जब पार्टी का सुरूर चढ़ा तब राहुल का एक मित्र उन्हें सलमान खान के घर ले गया। बताते हैं कि वहां पार्टी अलहसुब्बह भोर की पहली किरण उगने तक अर्थात छः बजे तक चली। इस बात की चर्चा दिल्ली के सियासी गलियारों में जमकर हो रही है।



बेरोजगार होने वाले हैं जोशी!

डाॅ.मुरली मनोेहर जोशी जल्द ही बेरोजगार हो सकते हैं। दरअसल उनके नेतृत्व वाली पीएसी का कार्यकाल इसी माह की तीस तारीख को पूरा होने वाला है। पीएसी का भाव इन दिनों इसलिए भी बढ़ा हुआ है, क्योंकि टू जी स्पेक्ट्रम मामला इसके पास विचाराधीन है। भाजपा के अंदरखाते से जो खबरें आ रही हैं, वे बताती हैं कि जोशी पर दबाव है कि वे इस विवादित मामले पर पीएसी का प्रतिवेदन इसी सप्ताह के अंत तक अर्थात 28 या 29 तारीख तक पेश कर दें। वैसे एक मई को नई पीएसी का गठन किया जाना प्रस्तावित है। नई पीएसी के लिए सियासी बिसात बिछ चुकी है, कांग्रेस और भाजपा द्वारा इसके लिए गलाकाट खींचतान आरंभ कर दी है। देखना यह है कि इस महत्वपूर्ण मामले में जोशी अपने कार्यकाल में टूजी मामले की रिपोर्ट प्रकाश में ला पाते हैं या फिर नए अध्यक्ष के जिम्मे यह काम सौंपा जाता है।



अशांति है शांति के घर पर!

जनता पार्टी के समय में कानून मंत्री रहे और 1980 में भाजपा की स्थापना वर्ष में पार्टी के उपाध्यक्ष रहे शांति भूषण की पेशानी पर पसीने की बूंदे छलकती साफ दिखाई दे रही हैं। भूषण एण्ड संस अच्छा खासा काम धंधा शांति के साथ कर रहे थे। बाद में अन्ना हजारे का साथ देने के कारण वे कांग्रेस के निशाने पर आ गए। एक के बाद एक विवादों में भूषण बंधुओं को उलझाया जा रहा है। कभी इलाहाबाद में बीस करोड़ का मकान महज एक लाख में खरीदने तो कभी नोएडा में भूखण्ड का मामला, तो कभी हिमाचल के पालमपुर के मकान की जांच। भूषण एण्ड संस पर कम समय में ज्यादा संपत्ति एकत्र करने के आरोप भी मढ़े जा रहे हैं। भूषण एण्ड संस तो विचलित हैं ही उनके साथ ही साथ अन्ना भी परेशां हैं कि उनके आंदोलन में इन पिता पुत्रों के कारण कालिख लगती जा रही है। कांगे्रस के दिग्गज इन्हें आसानी से छोड़ने वाले नहीं, अभी तो यह आगाज है, अंजाम देखिए क्या होता है।



सिंहों की यात्रा पर हुआ खर्च करो सार्वजनिक

केंद्रीय सूचना आयोग ने प्रधानमंत्री कार्यालय को निर्देश दिया है कि पीएम डाॅ.मनमोहन सिंह के साथ विदेश यात्रा पर गए उनके रिश्तेदारों पर सरकार ने कितना खर्च किया है, इस बात को सार्वजनिक किया जाए। सीआईसी ने पीएमओ की इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया है कि उसके पास एसा कोई रिकार्ड है ही नहीं। यूपी के शाहजहांपुर के अयूब अली द्वारा मांगी गई जानकारी पर पीएमओ एवं विदेश मंत्रालय ने यह जवाब दिया था कि उसके पास इस तरह की कोई जानकारी नहीं है। केंद्रीय सूचना आयोग ने इस पर सख्त रवैया अपनाते हुए पीएमओ को निर्देश दिया है कि वह प्रधानमंत्री के रिश्तेदारों (सिंह फेमली) बीस कार्य दिवसों के अंदर वह समस्त विभागों से जानकारी मुहैया करे और आवेदक को यह उपलब्ध कराए।



अब रामदास पर गिरेगी गाज

पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री अम्बूमणि रामदास फर्जी आर्युविज्ञान संस्थानों को अनुमति देने के मामले में नप सकते हैं। इस मामले की जांच करने वाली सीबीआई ने 16 अप्रेल को मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर से इंडेक्स मेडीकल कालेज के मालिक सुरेश भदोरया को अरेस्ट किया था। भदोरया के बयानों और उनके पास से मिले दस्तावेजों के आधार पर अब केंद्रीय जांच ब्यूरो जल्द ही रामदास पर शिंकजा कसने की तैयारी कर रही है। मेडिकल कांउसिल आॅफ इंडिया (एमसीआई) के पदाधिकारियों की नियुक्ति में भी भारी अनियमितताएं होने की बातें प्रकाश में आई हैं। एमसीआई में सचिव पद काफी महत्वपूर्ण होता है और इस पद पर संगीता शर्मा की नियुक्ति पर भी विवाद आरंभ हो गया है।



सीबीएसई अपनाए पंजाब फार्मूला

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड को पंजाब पेटर्न को तत्काल अपना लेना चाहिए। पंजाब में निजी शालाओं में किताबों और स्कूल की वर्दी की दुकानें अब नहीं चल पाएंगी। पंजाब सरकार के शिक्षा विभाग ने निजी शाला के प्रबंधन की इस मनमानी को तत्काल रोकने की कवायद आरंभ कर दी है। बताते हैं कि सरकारी शाला के प्राचार्यों के दायित्वों में इस बात का भी शुमार किया गया है कि वे अपने इर्द गिर्द संचालित होने वाले निजी स्कूलों का समूचा ब्योरा एकत्र करने को जोड़ा गया है। निजी स्कूल भले ही वे सीबीएसई एफीलेटेड हों या न को इसमें शामिल किया गया है। निर्देशों में कहा गया है कि प्राचार्य इस बात की जानकरी विशेष तौर से जुटाएं जिसमें फीस से लेकर वर्दी तक की जानकारी शामिल हो। आठ कालम के प्रोफार्मा को भरने की जवाबदारी निजी शाला के प्राचार्य की होगी किन्तु भरवाएंगे सरकारी शाला के प्राचार्य।



ममता का चुनावी तोहफा!

रेल मंत्री ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में चुनावी बिसात बिछाने में व्यस्त हैं। उधर रेल महकमे की मौजां ही मौजां है। भारतीय रेल ने ममता बनर्जी की ओर से यात्रियों को एक नायाब चुनावी तोहफा दिया है। आने वाले समय में रेल में सफर करने वाले यात्रियों को आॅन बोर्ड खाने के लिए ज्यादा जेब ढीली करनी होगी। आने वाले दिनों में 27 रूपए वाली थाली जो रेल में 35 से 40 रूपए में बेची जाती है का दाम बढ़ाकर 65 रूपए कर दिया गया है। मतलब साफ है कि यह थाली अब 70 से 80 रूपए में बिकेगी। इसी तरह 14 वाला जो नाश्ता 20 से 25 में बिकता था के दाम बढ़ाकर 30 कर दिए गए हैं जो अब 40 से 50 रूपए के बीच बिकेगा। अब ममता बनर्जी रेल के बजाए बंगाल पर ध्यान देंगी तो रेल यात्रियों की कमर टूटना लाजिमी ही है। इन परिस्थितियों में दस रूपए वाला जनता मील कहां और कैसे मिलेगा यह यक्ष प्रश्न ही बना हुआ है।



चर्चा में है अमूल के विज्ञापन

गुजरात कोआॅपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन के एक उत्पाद अमूल बटर के चुटीले विज्ञापन यूं तो सदा ही चर्चा में हुआ करते हैं, किन्तु कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को अमूल बेबी का तमगा देने पर बने विज्ञापन की धूम मची हुई है। केरल के मुख्यमंत्री वी.एस.अच्युतानंदन द्वारा राहुल गांधी अमूल बेबी करार दिया गया है। बडबोले शशि थरूर ने एक बार फिर ट्विटर पर अपनी जुबान खोलकर इस बहस को आगे बढ़ा दिया है। राहुल पर लगे अमूल बेबी के ठप्पे को पुख्ता करते हुए थुरूर ने कह दिया है कि इसमें गलत क्या है। अमूल बेबी चुस्त दुरूस्त, मजबूत और भविष्य के प्रति गंभीर होते हैं। अब देखना यह है कि थरूर के इस कथन को अमूल किस तरह कैच कर विज्ञापन की अगली कड़ी में क्या प्रदर्शित करता है।





ब्लू लाईन का खौफ

किलर ब्लू लाईन को दिल्ली की सड़कों से हटाने की मुहिम के बाद ब्लू लाईन संचालकों और चालक परिचालकों का आक्रोश देखते ही बन रहा है। बेरोजगार हो रहे इन चालक परिचालकों द्वारा अब सवारियों के साथ बदतमीजी करना आरंभ कर दिया है। गौरतलब है कि ब्लू लाईन के परमिटधारी संचालकों द्वारा बसों को चालक परिचालकों को ही ठेके पर दे दिया जाता रहा है। प्रतिस्पर्धा के चलते चालकों द्वारा बसों को हवा में उड़ाया जाता रहा है और राहगीर असमय ही काल के गाल में समाते रहे हैं। हाल ही में पश्चिमी दिल्ली में एक हादसे ने इस बात को प्रमाणित कर दिया है कि दिल्ली में ब्लू लाईन संचालकों को किसी का खौफ नहीं रहा। प्राप्त जानकारी के अनुसार इंद्रपुरी क्षेत्र में एक बच्चे को सरेराह ही चलती बस से धक्का दे दिया जिससे सड़क पर गिरने से उसकी मौत हो गई। दिल्ली पुलिस की कार्यप्रणाली पर एक बार फिर सवालिया निशान लग गया है।



बच्चों की बाजीगरी पर रोक!

बाल श्रम कानून का सरेआम माखौल इस देश में उड़ाया जाता है। हद तो तब हो जाती है जब शराब के अड्डों पर छोटू, मुन्ना, बबलू और पप्पू की आवाजें सुनाई देती हैं। श्रम विभाग की इस अंधेरगर्दी पर कोर्ट ने सख्त रवैया अपनाया है। जस्टिस दलबीर भंडारी और जस्टिस ए.के.पटनायक की संयुक्त बैंच ने बचपन बचाओ आंदोलन की याचिका पर यह व्यवस्था दी। पीठ ने सर्कस में बच्चों के काम करने पर पूरी तरह रोक लगा दी है। कोर्ट ने तल्ख रवैया अपनाते हुए कहा है कि सर्कस सहित खतरनाक उद्योगों में काम कर रहे बच्चों को मुक्त करवाकर उनका पुनर्वास करवाया जाए। न्यायालय ने मानव संसाधन विभाग के महिला एवं बाल विकास विभाग को ताकीद किया है कि वह दस सप्ताह के अंदर अपनी रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष रखे।



मंत्री पुत्र अरेस्ट!

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावांे के चलते केंद्रीय मंत्री मुकुल राय के पुत्र और विधानसभा में त्रणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार सुभ्रांशु राय को बंगाल पुलिस ने अरेस्ट किया है। केंद्रीय मंत्री राय के पुत्र की गिरफ्तारी के बाद राजधानी की सियासत गर्माने लगी है। दरअसल मुकुल राय के पुत्र पर आरोप है कि उन्होने अपने साथियों के साथ सरकारी और निजी इमारतों की दीवारों पर लिखे नारे मिटाने गए चुनाव आयोग के दल पर हमला किया है। चुनाव आयोग ने सुभ्रांश राय को अरेस्ट न कर पाने वाले निरीक्षक पाथ्र प्रीतम राय को निलंबित भी किया है। वाम दल इस घटना को जमकर तूल दे रहा है। वाम दलों के अनुसार त्रणमूल कांग्रेस को लोकतंत्र, शांति और पुलिस पर यकीन नहीं है यही कारण है कि त्रणमूल के नेता अब गुण्डागर्दी पर उतारू हो गए हैं।



चालक बिना दौड़ती भारतीय रेल

भारत का रेल नेटवर्क विश्व का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क माना जाता है। इसकी कमान केंद्रीय रेल मंत्री के हाथों में होती है। भारतीय लोकतंत्र का सबसे शर्मनाक पहलू यह माना जाएगा कि भारत गणराज्य की रेल मंत्री ममता बनर्जी पिछले लगभग एक साल से मुख्याल दिल्ली छोड़कर पश्चिम बंगाल की चुनावी तैयारियों में व्यस्त हैं, और बिना निजाम के भारतीय रेल महकमा दिशा से भटक चुका है। देश भर में रेल गाडियों में कर्मचारी मजे कर रहे हैं और यात्री बुरी तरह पिस रहे हैं। कभी रेल में डकैती पड़ती है तो कभी किसी को चलती रेल से फेंक दिया जाता है। व्हीव्हीआईपी समझी जाने वाली राजधानी एक्सपे्रस बर्निंग ट्रेन बन जाती है, तो चालक ही रेल लेकर भाग जाता है। हाल ही में कश्मीर की वादियों में 35 किलोमीटर तक रेल गाड़ी बिना चालक के ही दौड़ती रही। वादियों में रेल सेवा का उदघाटन वजीरे आजम डाॅ.एम.एम.सिंह ने 2008 में किया था। समुद्र तल से 5420 फिट उपर कश्मीर की खतरनाक वादियों में यह करिश्मा रेल मंत्री को आईना दिखाने के लिए पर्याप्त है।



इस पर भी कुछ फरमाएं कृष्णा जी

भारत के विदेश मंत्री एस.एम.कृष्णा द्वारा विदेश में भारतीयों पर होने वाली ज्यादतियों पर लगभग मौन ही साधे रहते हैं। विश्व कप में भारत की जीत का जश्न मनाना कुवैत में काम करने वाले लगभग छः दर्जन मजदूरों को भारी पड़ा है। 30 मार्च को खेले गए सेमी फायनल मैच में भारत की जीत की खुशी मनाने वाले 68 भारतीय मजदूरों को कुवैत से देश निकाला दे दिया गया है। जीत का जश्न मनाना कुवैत सरकार को इस कदर नागवार गुजरा कि वहां की सरकार ने इन मजदूरों का न केवल वेतन हड़प लिया वरन् उनका वीजा भी रद्द कर दिया है। इन मजदूरों के कुवैत में एक साल तक प्रवेश पर रोक भी लगा दी गई है। भारत सरकार द्वारा इस मामले में अब तक कोई कार्यवाही न करना निश्चित तौर पर अनेक संदेहों के साथ आश्चर्य को ही जन्म दे रहा है।



फिर न कहना माईकल दारू पीके . . .

‘अच्छा हुआ अंगूर को बेटा न हुआ, जिसकी बेटी ने सर पे उठा रख्खी दुनिया‘ शायर की ये मंशा सच ही है। इसका उदहारण दिया बवाना क्षेत्र में मुख्य चिकित्त्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने। दिल्ली में राजा हरिश्चंद्र अस्पताल के सीएमएचओ डाॅ.मनोज ने बीती रात शराब पीकर डीएसआईडीसी औद्योगिक क्षेत्र को सर पर उठा लिया। जो भी उन्हें समझाने जाता तो डाॅक्टर मनोज अपने पद का रौब गांठकर उसे हड़का देते। सूचना पाकर पुलिस मौके पर पहुंची और डाक्टर का मुलाहजा संजय गांधी अस्पताल में करवाया। बाद में पुलिस ने एक्साईज एक्ट के तहत कार्यवाही कर एक बांड भरवाकर सीएमएचओ को छोड दिया। वैसे दिल्ली में कड़े नियम और भयानक फाईन के बाद भी लोग सार्वजनिक स्थलों पर छककर शराब पीते नजर आ ही जाते हैं।



पुच्छल तारा

सड़कों पर गाडियों की बाढ़ देखते ही बनती है। दिल्ली में तो जितने परिवार के सदस्य नहीं उतनी गाडियां हैं अनेक परिवारों के पास। गाडियों पर तरह तरह के जुमले लिखा होना आम बात है। पश्चिमी दिल्ली से सपना सरीन ने एक ईमेल भेजा है। सपना लिखती हैं कि वाहनों पर ऊं, अल्लाह, गुरू नानक देव, साईं बाबा, राम, जय माता दी आदि लिखे हुए तो बहुत देखे हैं। दिल्ली में ब्लू लाईन की बिदाई के साथ ही सरकारी गाडियों में इस तरह के नाम अब देखने को नहीं मिलते। दिल्ली की सड़कों पर छोटी गाडियां दौड रही हैं। इन गाडियों में इस तरह के नामो की बौछार है। एक गाडी में लिखी बात पढ़़कर हर कोई हंसे बिना तो नहीं रह सकता। इस पर लिखा था -‘‘जलो मत किश्तों पर आई हूं।‘‘