गुरुवार, 9 जुलाई 2009

09 july 2009

उत्तर दक्षिण गलियारे में पर्यावरण का पेंच

(लिमटी खरे)

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार की महात्वाकांक्षी स्विर्णम चतुभुZज और उत्तर दक्षिण, पूर्व पश्चिम गलियारे में वर्तमान केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जयराम रमेश ने फच्चर फंसा दिया है। रमेश के तेवर देखकर लगता है कि मध्य प्रदेश से नागपुर के बीच बनने वाले फोरलेन का काम बीच में ही रोकना पड़ेगा।पिछले दिनों एक साक्षात्कार में रमेश ने साफ किया है कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली परियोजनाओं की स्वीकृति उनका मंत्रालय कतई नहीं देगा। जयराम रमेश ने साफ तौर पर उत्तर दक्षिण गलियारे का उल्लेख कर कहा कि उत्तर दक्षिण गलियारा पेंच और कान्हा टाईगर रिजर्व से होकर गुजर रहा है, और वे इसे यहां से गुजरने नहीं देंगे।वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री जयराम रमेश ने बड़ी ही साफगोई से यह बात कह दी है कि अरूणाचल प्रदेश में प्रधानमंत्री से जिस परियोजना का उद्घाटन करवाया गया है, उसे वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी ही नहीं मिली है। मतलब साफ है कि देश के वजीरे आला को ही धोखे में रखकर सरकारी मशीनरी देश में पर्यावरण के खात्मे पर तुली हुई है।बहरहाल उत्तर दक्षिण गलियारे में मध्य प्रदेश की दक्षिणी सीमा में अवस्थित पेंच नेशनल पार्क का 12 किलोमीटर लंबा रास्ता आता है। पूर्व में यह देश का सबसे लंबा और व्यस्ततम राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक सात का हिस्सा हुआ करता था। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के लखनादौन से उत्तरी पश्चिमी दिशा में राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 26 (झांसी से लखनादौन) को उत्तर दक्षिण गलियारे में समाहित कर दिया गया है। इसके बाद रारा 7 के लखनादौन से नागपुर सीमा वाले हिस्से को भी इससे अलग कर इसे गलियारे में शामिल करवा दिया गया है।सवाल यह उठता है कि जब इस परियोजना को तैयार करवाया जा रहा था, तब इस तकनीकि बारीकी को तत्कालीन मंत्रियों के साथ ही साथ नौकरशाहों ने क्यों नजर अंदाज किया। पर्यावरण की दुहाई देकर सड़क या अन्य परियोजनाओं के काम रूकवाने की बात करने वाले जयराम रमेश के अंदर क्या इतना माद्दा है कि वे इसके विस्तृत प्रक्कलन (डीपीआर) को तैयार करवाने वाले से लेकर इसे अनुमति देने वाले तक सरकारी नुमाईंदे के खिलाफ ``जनता से बटोरे गए सरकारी धन के आपराधिक दुरूपयोग`` का मामला चला पाएंगे?कहने को तो जयराम रमेश ने कह दिया कि राजनैतिक दबाव से हटकर हमें पर्यावरण बचाने के लिए ना कहना सीखना होगा। ठीक है पर्यावरण को बचाना हमारी पहली प्राथमिकता है, किन्तु जनता के खून पसीने की कमाई जो करों के रूप में केंद्र और राज्य सरकारों के खजाने में जाती है, के अपव्यय को हम यूं ही देखते और सहते रहें!लगता है वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के मातहतों ने उत्तर दक्षिण गलियारे की जमीनी हकीकत समझी ही नहीं है। इसका लगभग 12 किलोमीटर का हिस्सा पेंच टाईगर रिजर्व के बीच से होकर गुजरता है। इसके अलावा पेंच और कान्हा को जोड़ने वाले गलियारे का काम अभी आरंभ नहीं हुआ है। वास्तविकता यह है कि उत्तर दक्षिण गलियारे का एक इंच भी हिस्सा वर्तमान में कान्हा टाईगर रिजर्व की जद में नहीं है।इसके अलावा पेंच नेशनल पार्क के अस्तित्व में आने से दशकों पहले से यही 12 किलोमीटर का हिस्सा वह है, जिस पर से सालों से हल्के और भारी वाहन गुजर रहे हैं, क्योंकि कल तक यह राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक सात का हिस्सा था। क्या पर्यावारण की दुहाई देकर जयराम रमेश उत्तर दक्षिण को मिलाने वाली इस जीवनरेखा को बंद करवा देंगे? अगर एसा हुआ तो उत्तर भारत को दक्षिण भारत से जोड़ने वाली इस प्रमुख सड़क के बजाए वाहनों को घूमकर लंबी दूरी तय करना होगा।कुछ लोगों को अंदेशा है कि केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री इस गलियारे को अपने संसदीय क्षेत्र से ले जाना चाहते हैं, इसलिए इस तरह की कवायद की जा रही है। हमारी नजरों में यह सही नहीं है। िंछंदवाड़ा से सौंसर तक के सड़क मार्ग में भी खुटामा और बिछुआ के जंगलों के इर्दगिर्द पेंच का कुछ हिस्सा पड़ता है, जिस पर भी रमेंश का फच्चर फंस ही जाएगा।जयराम रमेश की हुंकार से अब लगता है कि छिंदवाड़ा से बरास्ता सिवनी, मण्डला फोर्ट जाने वाली नेरो गेज रेल लाईन के अमान परिवर्तन के मार्ग भी प्रशस्त नहीं हो सकेंंगे, क्योंकि इसका भी कुछ हिस्सा कान्हा टाईगर रिजर्व की जद में है। गौरतलब होगा कि हाल ही में रेल मंत्री ममता बनर्जी ने इस नेरो गेज के अमान परिवर्तन की घोषणा बजट में कर दी है।भले ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री पर्यावरण की दुहाई देकर उत्तर दक्षिण गलियारे में पेंच और कान्हा टाईगर रिजर्व की कील ठोंकना चाह रहे हों, किन्तु उनकी बातें व्यवहारिक कहीं से भी नहीं लगती हैं। जिस मार्ग से सालों से यातायात की आवाजाही हो रही हो, उसे भले ही चौड़ा न किया जाए किन्तु उसे बंद करना तो कहीं से भी तर्क संगत नहीं लगता है।अब जबकि पेंच टाईगर रिजर्व के लगभग 12 किलोमीटर को छोड़कर उत्तर की ओर का फोरलेन का काम लगभग पूरा हो गया हो तब केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री का इस तरह को हम वक्तव्य गैरजिम्मेदाराना मानते हैं। बेहतर होगा जयराम रमेश एक बार इस परियोजना की वस्तुस्थिति का अध्ययन बारीकी से करें उसके बाद ही कोई वक्तव्य दें वरना क्षेत्र में उनके वक्तव्य से कोहराम ही मचा हुआ है।


राहुल के एजेंडे से मध्य प्रदेश बाहर

युवराज की प्राथमिकता यूपी, टीएन और गुजरात

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी ने अपनी प्राथमिकताएं बदलनी आरंभ कर दी हैं। कल तक मध्य प्रदेश उनकी प्राथमिकता में था, किन्तु अब लगता है उत्तर प्रदेश, तमिलनाडू और गुजरात उनकी प्राथमिकता में आ गया है। इन सूबों में वे कांग्रेस को मजबूती देने की जुगत लगाने वाले हैं।संसद भवन में पत्रकारों से रूबरू राहुल गांधी ने कहा कि संगठनात्मक दृष्टि से उत्तर प्रदेश को पांच भागों में बांटा जाएगा, ताकि संगठन को बेहतर तरीके से संचालित किया जा सके। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश में माया मेम साहिब और गुजरात में हिन्दुत्व के पुरोधा माने जाने वाले नरेंद्र मोदी की काट के लिए जल्उद ही राहुल गांधी अपनी टीम बनाने वाले हैं।बकौल कांग्रेस के अघोषित युवराज राहुल गांधी, `` पंजाब और पांडिचेरी में युवक कांग्रेस और राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई) के चुनाव सफलता पूर्वक कराने के बाद कांग्रेसियों में उत्साह है, और जल्द ही यूपी, टीएन और गुजरात में इस फामूZले को अपनाया जाएगा।राहुल गांधी के करीबी सूत्रों का दावा है कि उत्तर प्रदेश में चूंकि राहुल गांधी का संसदीय क्षेत्र भी आता है, अत: प्राथमिकताओं की फेहरिस्त में यूपी को सबसे उपर स्थान मिला हुआ है। सूत्रों ने यह भी बताया कि उत्तर प्रदेश में मायावती पर लगाम लगाने के लिए यहां के लाट साहेब (राज्यपाल) की तलाश जारी है। वर्तमान राज्यपाल टी.वी राजेश्वर का कार्यकाल मंगलवार को पूरा हो गया है।सूत्रों ने कहा कि राहुल गांधी के अघोषित राजनैतिक गुरू दििग्वजय सिंह ने उन्हें मशविरा दिया है कि यूपी के लाटसाहेब की कुर्सी पर एसी शिक्सयत को बिठाया जाए जो परोक्ष रूप से सूबे में कांग्रेस का जनाधार बढ़ाने का काम कर सके। यूपी के लिए जो नाम सामने आ रहे हैं, उनमें शिवराज पाटिल, बलराम जाखड़, नारायण दत्त तिवारी, के अलावा अजुZन सिंह का नाम प्रमुख रूप से सामने आ रहा है।सूत्रों ने यह भी बताया कि कुंवर अजुZन सिंह के बाद कांग्रेस की राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले राजा दििग्वजय सिंह ने एक और पांसा फेंककर राहुल गांधी को यह समझा दिया है कि उत्तर प्रदेश में मायावती को टक्कर देने के लिए नारायण दत्त तिवारी या फिर अजुZन सिंह जैसे घाघ नेता ही चाहिए। वैसे भी उत्तर प्रदेश के कांग्रेसी अंतिम मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ही रहे हैं। राहुल गांधी भी दििग्वजय सिंह की इस बात से सैद्धांतिक तौर पर सहमत बताए जाते हैं।