शुक्रवार, 19 जुलाई 2013

क्या सम्मेलन से गायब पार्षदों पर कार्यवाही करेगा संगठन!

क्या सम्मेलन से गायब पार्षदों पर कार्यवाही करेगा संगठन!

(दादू अखिलेंद्र नाथ सिंह)

सिवनी (साई)। नगर पालिका परिषद का हंगामेदार साधारण सम्मेलन आज अनेक विवादों के साथ अंततः संपन्न हो ही गया। इस सम्मेलन में 36 बिन्दुओं पर चर्चा होनी थी किन्तु आधे प्रस्तावों पर ही सहमति बन सकी। इस सम्मेलन में सात पार्षद गायब रहे, जबकि गत दिवस भाजपा संगठन ने इन पार्षदों की बैठक भी ली थी। माना जा रहा है कि बैठक से गायब पार्षदों की मश्कें संगठन द्वारा खींची जा सकती है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार आज आहूत साधारण सम्मेलन में नगर विकास, पेयजल, कार्यालय भवन, मॉडल रोड, मछली मार्केट सहित अन्य 36 बिंदुओ पर विचार विमर्श किया जाना था। आज जिस समय साधारण सम्मेलन शुरू हुआ उस समय सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के लिए उपहास की स्थिति निर्मित हो गई।
इस सम्मेलन में कांग्रेस के सभी एक दर्जन पार्षद उपस्थित रहे पर भारतीय जनता पार्टी के महज चार पार्षद ही मौके पर उपस्थित थे। इससे भाजपा के नगर पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी काफी हद तक असहज ही प्रतीत हो रहे थे। भाजपा की ओर से श्रीमती विमला पाराशर, श्रीमती सरोज सुरेश भांगरे, श्याम शोले और राजा पराते सहित नगर पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी मौजूद थे। शहर में चल रही चर्चाओं के अनुसार आखिर यह 07 पार्षद क्यों नहीं आए? किसने इन्हें नगरपालिका न जाने की हिदायत दी? और 07 पार्षदों को नदारत रहना कहीं आपसी फूट का नतीजा तो नहीं?
आज संपन्न इस सम्मेलन में भीमगढ़ जलावर्धन योजना की प्रशासकीय एवं वित्तीय स्वीकृति, राजस्व शाखा में काम्पलेक्स निर्माण, कार्यालय भवन, मीटिंग हॉल, नागपुर मार्ग पर साई मंदिर के सामने काम्पलेक्स, शादी घर, सभी वार्डों के मछली बेचने वालों को एक स्थान देने, मुख्यमंत्री कन्या अभिभावक योजना के आवेदन पर विचार आदि की स्वीकृति प्रदाय की गई।
वहीं अब भाजपा के अंदर यह चर्चा भी तेज हो गई है कि वर्चस्व की जंग अब भाजपा में आरंभ हो चुकी है। कल तक जो पार्षद भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष के कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे थे, वे अचानक पार्श्व में कैसे और किसके कहने पर चले गए? इसके साथ ही साथ इस बात की चर्चा भी जमकर हो रही है कि क्या भाजपा का जिला या नगर संगठन सम्मेलन से नदारत पार्षदों से जवाब तलब कर अनुशासनात्मक कार्यवाही करेगा?

चुनाव सर पर हैं, तब भाजपा में वर्चस्व की जंग से कार्यकर्ताओं में प्रतिकूल संदेश ही जा रहा है। वैसे भी नगर में व्याप्त अव्यवस्थाओं और गंदे बदबूदार पेयजल मिलने के चलते लोग भाजपा से नाराज इसलिए भी होते जा रहे हैं क्योंकि भाजपा का कब्जा नगर पालिका सिवनी पर है। ऐसी स्थिति में अगर नगर पालिका के सम्मेलन में कथित तौर पर किसी के षणयंत्र के चलते चार ही पार्षद पहुंचे तो यह भाजपा के लिए वाकई शर्म की बात है।

कंजई घाट में जिलाई सईद की पत्थरों से निर्मम हत्या

कंजई घाट में जिलाई सईद की पत्थरों से निर्मम हत्या

(बबलू जायस्वाल / महेश रावलानी)

बालाघाट / सिवनी (साई)। सिवनी के पहले एंबूलेंस संचालक सईद जिलानी की आज कंजई घाट की एक मझार के पास पत्थरों से निर्मम हत्या कर दी गई। अरोपियों की पहचान हो गई है, आरोपी फरार हैं।
लालबर्रा के नगर निरीक्षक उपेन्द्र छारी ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि कंजई घाट में अवस्थित एक मझार के पास किसी व्यक्ति के हत्या की खबर उन्हें मिली थी। वे सदल बल मौके पर पहुंचे तो उन्होंने एक व्यक्ति के क्षत विक्षत शव को वहां पड़ा देखा। शव के पास खून से सना पत्थर भी पड़ा हुआ था।
नगर निरीक्षक लालबर्रा उपेंद्र छारी ने साई न्यूज को आगे बताया कि उन्हें जानकारी मिली है कि सिवनी निवासी सईद जिलानी कई सालों से, समय से हर गुरूवार को कंजई घाट पर अवस्थित मझार में आया करता था। उन्होंने बताया कि लंबे समय से सईद जिलानी इस मझार में पीर फकीर, बाबा गिरी का काम करने लगा था।
उन्होंने बताया कि यह बात वहां पहले से बैठकर बाबा गिरी करने वाले गरीब नवाज (जिसका असली नाम कुछ और है) को रास नहीं आई। नगर निरीक्षक के अनुसार उन्हें यह जानकारी भी मिली है कि गुरूवार को मझार पर आने से नाराज होकर गरीब नवाज बाबा ने सईद जिलानी को महीनों पहले चेताया भी था।
इधर, सिवनी में सईद जिलानी के परिचितों के बीच चल रही चर्चाओं के अनुसार सईद जिलानी कुछ महीनों से परेशान थे, और उन्होंने अपने जानने वालों को यह भी कहा था कि कोई उन्हें धमकी भरे फोन कर परेशान कर रहा है। ये फोन कौन कर रहा है इस बारे में शायद उन्होंने अपने परिचितों के बीच खुलासा नहीं किया था।
सईद जिलानी ने सिवनी में पहली निजी एंबूलेंस लाकर बीमारों के लिए एक नया रास्ता खोला था। इस साल के आरंभ से ही उन्होंने मरीजों को ले जाने के लिए मनमानी दरों के बजाए सरकारी रेट पर अपनी एंबूलेंस उपलब्ध कराने की ना केवल घोषणा की थी, वरन उसका अक्षरशः पालन भी किया था। सईद जिलानी ने कुछ समय तक ‘‘सिवनी जंग‘‘ नामक साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन और संपादन भी किया था।

टीआई लालबर्रा ने आगे बताया कि शव को लेकर वे देर शाम लालबर्रा पहुंचे हैं। शुक्रवार को सुबह उनका शव परीक्षण करने के उपरांत शव को परिजनों को सौंप दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि प्रथम दृष्ट्या शव और मौका देखकर लग रहा है कि आरोपियों ने मृतक को पत्थरों से बुरी तरह कुचलकर मारा है। पुलिस के अनुसार इस मामले में आरोपी मझार के बाबा गरीब नवाज एवं सोनू हैं जो घटना के उपरांत अपने कक्ष में ताला लगाकर वहां से फरार हो चुके हैं। पुलिस इनकी तलाश कर रही है। सईद जिलानी का शव शुक्रवार को अपरान्ह तक सिवनी पहुंचने की संभावना है।

अस्मत की कीमत पर विकास!

अस्मत की कीमत पर विकास!

(शरद खरे)

‘‘जिले में कुछ विध्नसंतोषी हैं जो जिले में विकास नहीं चाहते हैं। इनमें कुछ सियासी हल्कों से जुड़े हैं तो कुछ मीडिया के अंग हैं।‘‘ इस तरह की बातें निहित स्वार्थ के नाम पर ईमानदारी का चोगा पहनने वाले जिले के तथाकथित कर्णधार अक्सर ही कहा करते हैं। सिवनी के आदिवासी बाहुल्य घंसौर में प्रस्तावित तीन अदद कोल आधारित पावर प्लांट में से एक का काम तेजी से चल रहा है। यह है देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड का। वर्ष 2009 से इसका काम आरंभ हुआ। इसके बाद घंसौर के कुछ दबंग नेतानुमा ठेकेदारों ने आदिवासियों को बरगलाकर मीडिया के तथाकथित मुगलों से जुगलबंदी कर संयंत्र प्रबंधन को अपने कब्जे में ले लिया। कहते हैं कि इसके बाद हजार दो हजार पांच हजार की मदद के चलते किसी ने भी अपना मुंह खोलने की जुर्रत नहीं की। आरोप तो यहां तक हैं कि घंसौर में पुलिस और प्रशासन भी संयंत्र प्रबंधन के इशारों पर ही चलता रहा है।
इस संयंत्र की संस्थापना की पहली जनसुनवाई के साथ ही जिला प्रशासन की इसमें मिली भगत की बू आने लगी थी। उस वक्त ना तो जनसुनवाई की मुनादी ही पिटवाई गई और ना ही आपत्तियों का निराकरण ही हुआ। इसके बाद 2011 में हुई दूसरी लोक सुनवाई में भी यही स्थिति बनी रही। आदिवासियों के साथ अत्याचार होता रहा और नेतानुमा ठेकेदार, प्रशासन के साथ मिलकर उनकी मजबूरी पर अट्टहास करता रहा।
इस संयंत्र में काम करने के लिए स्थानीय स्तर पर मजदूरों की आवश्यक्ता थी। संयंत्र प्रबंधन द्वारा सरकार को भरोसा दिलाया गया था कि वह स्थानीय सतर पर रोजगार मुहैया करवाने की हर संभव कोशिश करेगा। इसके साथ ही साथ औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में युवाओं को प्रशिक्षित कर उन्हें रोजगार देगा। 2009 से अब तक चार साल हो चुके हैं पर स्थानीय युवा उपेक्षा का ही शिकार है। संयंत्र प्रबंधन द्वारा उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार से अपेक्षाकृत सस्ते मजदूरों को लाकर स्थानीय युवाओं की उपेक्षा की जा रही है। इस सबके बाद भी सांसद विधायक धृतराष्ट्र की भूमिका में ही नजर आ रहे हैं।
अब तक ना जाने कितने बाहरी मजदूरों की यहां मौत हो चुकी है। ना तो प्रशासन और ना ही पुलिस ने इस बारे में संज्ञान लिया है। और तो और बरेला संरक्षित वन में लगने वाले इस पावर प्लांट में हिरण के छौने का शव भी मिला था। कहा तो यहां तक जा रहा है कि नेतानुमा ठेकेदार की शह पर इस संरक्षित वन में वन्य जीवों का शिकार कर उनके लज़ीज मांस का लुत्फ यहां के कारिंदों द्वारा उठाया जाता रहा है। जबलपुर से रोजाना आना जाना करने वाले संयंत्र प्रबंधन के स्टाफ ने स्थानीय स्तर पर जिला मुख्यालय सिवनी में एक भी कार्यालय नहीं खोला है ताकि सिवनी के लोग अपनी शंका, कुशंकाओं का निवारण कर सकें। क्या यह बात स्थानीय विधायक शशि ठाकुर, सांसद बसोरी सिंह, के साथ ही साथ विधायक नीता पटेरिया, कमल मर्सकोले या सांसद के.डी.देशमुख को दिखाई नहीं देती? दिखाई सुनाई तो देती होगी पर शायद वे ‘‘मजबूर‘‘ हैं, उनकी मजबूरी क्या है यह बात तो सिर्फ और सिर्फ वे ही बता सकते हैं।
अप्रेल माह में एक चार साल की अबोध बच्ची के साथ दुराचार होता है और उसकी मौत हो जाती है। दुराचार करने का आरोपी झाबुआ पावर लिमिटेड में वेल्डर का काम करने वाला गौतम थापर का मुलाजिम निकलता है। पुलिस ने इसका चरित्र सत्यापन और मुसाफिरी दर्ज नहीं की थी। करती भी क्यों गौतम थापर का इकबाल सियासी गलियारों में जमकर बुलंद है और लक्ष्मी माता की कृपा उन पर बरसती है, सो सरकारी मुलाजिम उनकी देहरी पर सलामी बजाएं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
विडम्बना तो यह है कि इसके उपरांत भी प्रशासन नहीं जागा। गत दिवस आठवीं कक्षा की एक बच्ची के साथ अश्लील इशारे कर रहा था कंपनी का सुरक्षा कर्मी। कहते हैं लगभग तेरह साल की बच्ची को कंकर मारकर अपनी ओर ध्यान आकर्षित कराने के बाद उक्त कर्मी ने अपनी पतलून उतार दी। बच्ची घबराई चिल्लाई, आगे चल रहे उसके पिता का ध्यान उसकी ओर गया, तब जाकर यह विकृत मानसिकता वाला गौतम थापर का कारिंदा पुलिस की पकड़ में आया।
यक्ष प्रश्न आज यही मन में कौंध रहा है कि क्या घंसौर पुलिस और घंसौर में पदस्थ सरकारी नुमाईंदों के लिए झाबुआ पावर लिमिटेड को अघोषित तौर पर मनमानी करने और अपनी रासलीला का अड्डा बनाने का फरमान जारी किया है प्रदेश की भाजपा सरकार ने! अगर नहीं तो क्या कारण है कि झाबुआ पावर लिमिटेड के अंदर हो रहे अवैध काम, निर्माणाधीन चिमनी से गिरकर होने वाली मौतों, संयंत्र के अंदर मिलने वाले हिरण के शव, अवैध उत्खनन जैसी शिकायतों पर कार्यवाही क्यों नहीं की जा रही है।

रही बात सिवनी में कथित तौर पर विध्न संतोषियों की उपमाओं की तो जिनका दीन ईमान पैसा हो चुका है और जो पैसे के लिए सिवनी को गिरवी रख चुके हैं वे अब भी संभल जाएं क्योंकि उनकी आने वाली पीढ़ी भी इसी माहौल को अंगीकार करने वाली है। रही बात विकास की तो सिवनी की बहू बेटियों, विशेषकर कोमलांगी बालाओं की अस्मत की कीमत पर सिवनी का विकास हमें नहीं चाहिए, और शायद ही सिवनी का कोई समझदार नागरिक होगा जो अस्मत की कीमत पर विकास का सपना मन में संजोएगा. . .!

झाबुआ पावर के कर्मियों की रासलीला का अड्डा बना घंसौर!

झाबुआ पावर के कर्मियों की रासलीला का अड्डा बना घंसौर!

(पीयूष भार्गव)

सिवनी (साई)। सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर क्षेत्र में लग रहे देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के कर्मचारियों की रासलीला का अड्डा बन गया है घंसौर क्षेत्र। अप्रेल माह में झाबुआ पावर के एक कर्मचारी द्वारा चार साल की अबोध के साथ किए गए दुराचार के बाद अब वहां के एक अन्य कर्मी पर आठवीं की छात्रा के साथ छेड़छाड़ का मामला प्रकाश में आया है।
घटना के संबंध में प्राप्त जानकारी के अनुसार ग्राम चरी की आठ वर्षीय छात्रा अपने पिता के साथ चरी से ग्राम गोरखपुर खाता खुलवाने जा रही थी। रास्ते में वह अपने पिता से लगभग तीस चालीस मीटर पीछे छूट गई। इसी बीच चरी और बरेला के बीच आरोपी ने छात्रा को अकेला समझकर कंकड़ मारा। जिससे छात्रा पीछे पलटी तो आरोपी ने अपना पैंट खोलकर नग्न हो गया।
बताया जाता है कि यह देखकर बदहवास छात्रा जोर से चीखी, जिससे आगे चल रहे उसके पिता तत्काल दौड़े और आरोपी को अश्लील हरकत करते देख उसकी धुनाई कर दी। वहां से गुजर रहे राहगीरों ने भी आरोपी पर हाथ साफ कर लिए। घटना आज सुबह नौ बजे की बताई जा रही है।
इस संबंध में संयंत्र प्रबंधन से उनका पक्ष जानने का प्रयास किया गया किन्तु सिवनी में लगने वाले इस पावर प्लांट का एक भी कार्यालय जिला मुख्यालय में ना होने और संयंत्र के फोन सदा की ही भांति आउट ऑफ आर्डर तथा नो रिप्लाई होने से संयंत्र प्रबंधन का पक्ष नहीं जाना जा सका है।
गौरतलब होगा कि 29 मई को संपन्न जिला सतर्कता एवं मानीटरिंग कमेटी की एक बैठक में जिला कलेक्टर भरत यादव ने कहा था कि मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के समस्त कर्मचारियों का चरित्र सत्यापन करवा लिया गया है। पर घंसौर थाने के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि आरोपी कर्मचारी का संभवतः चरित्र सत्यापन नहीं किया गया था।
बहरहाल, घंसौर पुलिस भी मौके पर पहुंची, हालांकि जब इस संबंध में जानकारी लेने घंसौर थानेदार सीके तिवारी को फोन लगाया गया तो उन्होंने आधा घंटे में जानकारी देने की बात कही, परंतु जब आधा घंटा बाद उन्हें फोन लगाया गया तो उनका फोन लगातार ही बंद रहा, ऐसे में घटना की आधिकारिक तौर पर संपूर्ण जानकारी नहीं मिल पाई। पुलिस सूत्रों के अनुसार आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।

बताया जाता है कि घटना से आक्रोशित ग्रामीण, झाबुआ पावर प्लांट को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने के मूड में है, वहीं जानकारी मिली है कि सिवनी से पुलिस बल घंसौर के लिए रवाना हुआ, वहीं घंसौर पुलिस की कार्यप्रणाली पर लोग सवालिया निशान लगाते हुए यह कह रहे हैं कि घंसौर पुलिस, कंपनी में काम कर रहे लोगों के लिए कुछ ज्यादा ही मेहरबान है। कुछ लोगों का कहना है कि घंसौर में विभिन्न कंपनियों में काम करने आये कर्मचारियों की मुसाफिरी तक दर्ज नहीं है, बावजूद इसके घंसौर पुलिस सक्रिय होने का नाम नहीं ले रही है। 

डॉ.सोनी की नाक के नीचे बिक रहा खून

डॉ.सोनी की नाक के नीचे बिक रहा खून

(पीयूष भार्गव)

सिवनी (साई)। जिला चिकित्सालय में खून का धंधा जमकर हो रहा है। अस्पताल में खून की आवश्यक्ता पड़ने पर मरीजों से अतिरिक्त चढ़ोत्री मांगने की खबरें जमकर हैं। वहीं बाहर के अस्पताल में भर्ती मरीजों के परिजनों को खून बेचे जाने की बात भी प्रकाश में आ रही है।
कहा जा रहा है कि जबसे जिला चिकित्साय में सिविल सर्जन का प्रभार डॉ.सत्य नारायण सोनी के पास आया है तबसे जिला चिकित्सालय की व्यवस्थाएं पटरी से उतर चुकी हैं। आलम यह है कि अदने से कर्मचारी भी डॉ.सोनी की परवाह किए बिना ही उन्हे आंख दिखाते फिर रहे हैं।
बताया जाता है कि गत दिवस एक निजी अस्पताल में भर्ती मरीज को खून की आवश्यक्ता हुई तो उसके परिजनों ने जिला चिकित्सालय के ब्लड बैंक के दरवाजे खटखटाए। अति गरीब उक्त मरीज के परिजनों ने अपना रक्त जिला चिकित्सालय में निकलवाया तो वहां उपस्थित कर्मचारी द्वारा एक हजार रूपए की मांग की गई। परिजनों द्वारा इस पर आपत्ति करने पर वहां तैनात कर्मचारी ने बात बढ़ती देख रेड क्रास सोसायटी के नियमों का हवाला दे मारा।
इसी तरह का एक अन्य वाक्या एक अन्य निजी अस्पताल में भर्ती मरीज के साथ देखने को मिला। वहां भर्ती गायत्री बाई को रक्त की आवश्यक्ता पड़ी। उक्त मरीज को ब्लड बैंक से दो यूनिट ब्लड महज एक हजार रूपए की रसीद लेकर ही प्रदाय कर दिया गया। मध्य रात्रि ले जाए गए दो यूनिट खून में उपरी लेनदेन की चर्चाएं भी जोर पकड़ रही हैं।

कहा जा रहा है कि ब्लड बैंक में पदस्थ कर्मचारियों ने अपने दलाल छोड़ रखे हैं जो मरीज के परिजनों के सामने पहले रक्त का कृत्रिम संकट पैदा करते हैं, फिर उंची कीमतों पर रक्त मुहैया करवा देते हैं।

पीटो ताली, हो गए 9 लाख 40 हजार जमा!

पीटो ताली, हो गए 9 लाख 40 हजार जमा!

(लिमटी खरे)

जनपद पंचायत सिवनी में हुए गबन के नौ लाख चालीस हजार रूपए जमा करा दिए गए हैं। आधी आधी राशि मुख्य कार्यपालन अधिकारी कंचन डोंगरे और लेखापाल बाल मुकुंद श्रीवास्तव द्वारा जमा करवा दी गई है। जब इसकी जांच पूरी होगी तब इसका खुलासा हो सकेगा कि गबन किसने किया था और राशि किसे जमा करना है। अगर आरोपी कोई और होगा तब संभवतः इन दोनों को राहत मिलेगी और इनकी जमा राशि भी वापस हो सकेगी।
सब ओर शांति है, सभी प्रसन्न हैं कि सरकारी धन में अमानत में खयानत की राशि वापस सरकार के खाते में आ गई है। कोई इस बात को ना देख और ना ही सोच रहा है कि आखिर दो सरकारी कर्मचारियों के पास आखिर एक नंबर में सफेद धन के बतौर चार लाख सत्तर हजार रूपए की राशि आई कहां से? क्या इनकी नौकरी में इन्होंने अपने आयकर रिर्टन्स में इतनी राशि का बचाया जाना दर्शाया है?
आज पैसा तो सबके पास है पर वह काला धन है। सरकार को आयकर जमा करने के बाद कितने लोग ऐसे हैं जो एक नंबर में लाखों रूपयों की राशि दर्शा सकते हैं? क्या एक सरकारी कर्मचारी के पास एक नंबर में दर्शाने के लिए लाखों रूपए हैं? जाहिर है इसका जवाब नकारात्मक ही होगा।
जेल के भय से दोनों ही सरकारी नुमाईंदों ने कथित गबन की नौ लाख चालीस हजार रूपए की राशि जमा करा दी है। राशि जमा हो चुकी है। अब इस बात की जांच भी आवश्यक है कि इतनी मात्रा में राशि आई कहां से? क्या इन्होंने अपनी जमा पूंजी से यह राशि जमा की है, या फिर किसी से उधार लेकर? और अगर राशि को उधार लिया गया है तो फिर क्या धनादेश (चेक) के माध्यम से लिया गया है? जिसने यह राशि दी है उसकी एक नंबर की आवक क्या है? उसकी जमा पूंजी कितनी है?
मामला अगर निजी तौर पर होता तो इसकी जांच की ज्यादा आवश्यकता शायद नहीं पड़ती, पर यह मामला दो सरकारी नुमाईंदों से जुड़ा हुआ हैै। माननीय न्यायालय के आदेश और जेल के भय से आनन फानन दोनों ही के द्वारा बड़ी मात्रा में राशि को सरकारी खजाने में जमा करवा दिया गया है। अगर इन्होंने किसी से राशि उधार लिया जाना दर्शाया है तो निश्चित तौर पर यह राशि चेक द्वारा ही ली गई होगी।
सरकारी नुमाईंदों के पास अकूत दौलत पाई जाने लगी है। प्रदेश में एक के बाद एक लोकायुक्त, आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (ईओडब्लू) आदि के छापों में सरकारी कर्मचारियों की तिजोरियां जमकर धन उगल रही हैं, इस लिहाज से इन सरकारी कर्मचारियों के पास लाखों रूपए होना कोई बड़ी बात नहीं है, पर विचारणीय प्रश्न यही है कि आखिर इनके पास लाखों रूपयों की राशि एक नंबर में आई तो आई कैसे?
2011 में एक चेक के गायब होने की सूचना बैंक को आखिर क्यों नहीं दी गई, यह वाकई शोध का ही विषय है। उस वक्त जनपद पंचायत सिवनी में सीईओ के पद पर सविता कांबले पदस्थ थीं। इसके बाद कंचन डोंगरे यहां तैनात हुंईं। आखिर सविता काम्बले के समय गायब हुए चेक पर सविता डोंगरे के हस्ताक्षर कैसे?
इस मामले में विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने अपने चिरपरिचित अंदाज में मौन साधा हुआ है। भ्रष्टाचार का यह अनूठा मामला प्रदेश सरकार को घेरने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है, पर पता नहीं कांग्रेस इस तरह के स्वर्णिम मौकों को भुनाने में परहेज क्यों करती है। लगता है हरवंश सिंह ठाकुर के अवसान के उपरांत कांग्रेस पूरी तरह दिग्भ्रमित होकर रह गई है।
जादूगर पी.सी.सरकार भी इस तरह का जादू शायद ना दिखा पाएं जिस तरह का जादू जनपद पंचायत सिवनी में दिखाया गया है। दोनों ही आरोपी गबन की नौ लाख चालीस हजार रूपए एवं निजी मुचलका जमा कर जेल से छूट गए हैं। अब यह भी देखना होगा कि ये दोनों मिलकर जांच को प्रभावित ना कर पाएं। वैसे आज के समय चारों ओर भ्रष्टाचार की गंगा बह रही है। कमोबेश हर सरकारी कर्मचारी अधिकारी इसमें आकण्ठ डूबा हुआ है। इन परिस्थितियों में बहुत पुरानी कहावत चरितार्थ हो रही कि जो पकड़ा गया वो चोर बाकी सब साहूकार!

साफ पानी की जवाबदेही किसकी?

साफ पानी की जवाबदेही किसकी?

(शरद खरे)

जिला चिकित्सालय में उल्टी दस्त, डायरिया, आंत्रशोध आदि के मरीजों की तादाद देखकर लग रहा है मानो बारिश में गंदा, बदबूदार, कीटाणुयुक्त पानी पीकर लोग नारकीय जीवन जीने पर मजबूर हैं। आज के समय में ब्रितानी हुकूमत के बर्बर दिनों की यादें ताजा हो रही हैं। परातंत्र काल में गोरे ब्रितानियों से जब पानी और बिजली की मांग की जाती थी, तो घोड़ों पर बैठे गोरे ब्रितानी हंटर फटकारते हुए साफ कहा करते थे कि पानी और बिजली देना उनकी जवाबदेही में शामिल नहीं है। पानी और बिजली की व्यवस्था नागरिकों को खुद ही अपने स्तर पर ही करना होगा।
आज गोरे अंग्रेजों के बजाए स्वदेशी सत्ता में हैं। हुकुमत कहने को तो जनता की ही है पर नजारा कुछ परातंत्र काल का ही नजर आ रहा है। आज चौबीसों घंटे बिजली का दावा अवश्य किया जा रहा है, पर बिजली मिल नहीं रही है। पिछले तीन चार माह से शहरवासी परेशान हैं। उनकी परेशानी का सबब बना हुआ है बिजली का बिल। आम शिकायत है कि लोगों के घरों में जबसे इलेक्ट्रानिक मीटर लगे हैं, तबसे उनके बिजली के बिलों में चार से दस गुना की वृद्धि दर्ज की गई है। विद्युत मण्डल में शिकायत करने पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है। अगर ज्यादा तीन पांच की तो स्टेशनरी दुकान पर जाकर दो रूपए का एक मुद्रित आवेदन लाकर उसे भरकर पचास रूपए जमा करवाकर अपना मीटर चेक करवाने का मशविरा दे दिया जाता है। मीटर चेक होने के बाद परिणाम वही ढाक के तीन पात ही आता है।
बहरहाल, सिवनी शहर को पानी का प्रदाय किया जा रहा है भीमगढ़ बांध से। भीमगढ़ से पानी बिजली चलित पानी की मोटर्स के जरिए 22 किलोमीटर दूर श्रीवनी फिल्टर प्लांट लाया जाता है। यहां करोड़ों अरबों रूपए व्यय कर जल कथित तौर पर कीटाणुमुक्त बनाया जाता है। फिर यह पाईप के सहारे 22 किलोमीटर का लंबा सफर तय करता है। रास्ते में जगह जगह गांव वालों ने अपनी अपनी सुविधा के हिसाब से इस पाईप लाईन में छेद बना लिए हैं। वैसे निर्धारित दूरी पर लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने चेंबर्स भी बनाए हैं।
ये चेंबर्स अब धोबीघाट बन चुके हैं। इन चेंबर्स पर ग्रामीण ना केवल अपने गंदे कपड़े धोते हैं वरन् यहां वाहन भी धुलते हैं। इसका सबसे दुखदायी पहलू तो यह है कि इन सीमेंटेड चेंबर्स पर ग्रामीण अपने मवेशियों को स्नान करवाते हैं। यहां निकलने वाला गंदा पानी एक बार फिर चेंबर में ही समाहित होकर अगली बार जब टंकी भरने की गरज से पाईप लाईन में पानी भेजा जाता है, उसमें यह मिश्रित होकर आगे बढ़ता है।
सिवनी शहर में सर्किट हाउस के बाजू से होकर यह पाईप लाईन गुजरती है। यहां भी चेंबर बने हुए हैं। इन चेंबर्स पर बीमार मरीजों, शवों आदि को ढोने वाली एंबूलेंस खड़ी धुलती दिखाई दे जाती हैं। रोजाना ही कम से कम आधा दर्जन एंबूलेंस यहां धुलती हैं। इन एंबूलेंस में मरीजों के रोगों के कीटाणु रह जाते होंगे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। एंबूलेंस एवं अन्य वाहन धुलाई का निकलने वाला पानी वापस चेंबर में ही घुस जाता है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि यह दूषित पानी पाईप लाईन के जरिए पानी की टंकियों के रास्ते लोगों के घरों तक जाता है। इन टंकियों से पानी की सप्लाई नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी सहित, जिला कलेक्टर, पीएचई आदि सरकारी विभागों के आला अधिकारियों के घरों के साथ ही साथ सारे शहर को की जाती है। सालों से कीटाणुयुक्त पानी पीते रहने के कारण शहर वासियों को ना जाने कितने संक्रामक रोगों ने घेर लिया होगा जिससे वे अभी वाकिफ भी नहीं होंगे।
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के पास पानी को साफ करने के लिए लिक्विड फार्म में दवा है, पर वितरण के अभाव में हर साल इसकी हजारों शीशियां एक्सपाईरी डेट को पा लेती हैं। लोगों को जागरूक करने के लिए पीएचई, नगर पालिका परिषद और स्वास्थ्य विभाग द्वारा समय समय पर जागरूकता अभियान चलाने का दावा किया जाता है पर यह अभियान महज कागजों पर ही चलता दिखता है।
नगर पालिका द्वारा प्रदाय किए जाने वाले पेयजल की गुणवत्ता कितनी अच्छी है, यह कितना साफ और पीने योग्य है इसकी जांच करना लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की जवाबदेही है। क्या पीएचई विभाग यह बताने में सक्षम है कि पिछले पांच सालों में उसने स्वतः संज्ञान लेकर शहर के कितने सार्वजनिक या निजी नलों से पानी का सेंपल लेकर उसकी जांच की है? जांच की है तो क्या पाया? और अगर नहीं की है तो इसकी क्या वजह है? क्या स्वतः संज्ञान लेने में पीएचई की प्रतिष्ठा कम हो जाती है?

अगर आपको नगर पालिका की वाटर सप्लाई में पानी की गुणवत्ता की परख करनी हो तो एक बाल्टी पानी में फिटकरी के टुकड़े को पांच सात बार घुमाकर उसे रख दें। एक घंटे के उपरांत आपको बाल्टी की तली में बैठी गंदगी दिखाई दे तो समझिए नगर पालिका परिषद सिवनी आपको पानी नहीं, बीमारी के लिए जिम्मेदार पानी पिला रहा है। हमारा कहना महज इतना ही है कि अगर नगर पालिका परिषद में बैठे कांग्रेस भाजपा के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, पार्षद शहर के लोगों को साफ पानी नहीं पिलवा सकते तो उन्हें अपने पदों पर बने रहने का नैतिक अधिकार नहीं रह जाता है!