शुक्रवार, 19 जुलाई 2013

साफ पानी की जवाबदेही किसकी?

साफ पानी की जवाबदेही किसकी?

(शरद खरे)

जिला चिकित्सालय में उल्टी दस्त, डायरिया, आंत्रशोध आदि के मरीजों की तादाद देखकर लग रहा है मानो बारिश में गंदा, बदबूदार, कीटाणुयुक्त पानी पीकर लोग नारकीय जीवन जीने पर मजबूर हैं। आज के समय में ब्रितानी हुकूमत के बर्बर दिनों की यादें ताजा हो रही हैं। परातंत्र काल में गोरे ब्रितानियों से जब पानी और बिजली की मांग की जाती थी, तो घोड़ों पर बैठे गोरे ब्रितानी हंटर फटकारते हुए साफ कहा करते थे कि पानी और बिजली देना उनकी जवाबदेही में शामिल नहीं है। पानी और बिजली की व्यवस्था नागरिकों को खुद ही अपने स्तर पर ही करना होगा।
आज गोरे अंग्रेजों के बजाए स्वदेशी सत्ता में हैं। हुकुमत कहने को तो जनता की ही है पर नजारा कुछ परातंत्र काल का ही नजर आ रहा है। आज चौबीसों घंटे बिजली का दावा अवश्य किया जा रहा है, पर बिजली मिल नहीं रही है। पिछले तीन चार माह से शहरवासी परेशान हैं। उनकी परेशानी का सबब बना हुआ है बिजली का बिल। आम शिकायत है कि लोगों के घरों में जबसे इलेक्ट्रानिक मीटर लगे हैं, तबसे उनके बिजली के बिलों में चार से दस गुना की वृद्धि दर्ज की गई है। विद्युत मण्डल में शिकायत करने पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है। अगर ज्यादा तीन पांच की तो स्टेशनरी दुकान पर जाकर दो रूपए का एक मुद्रित आवेदन लाकर उसे भरकर पचास रूपए जमा करवाकर अपना मीटर चेक करवाने का मशविरा दे दिया जाता है। मीटर चेक होने के बाद परिणाम वही ढाक के तीन पात ही आता है।
बहरहाल, सिवनी शहर को पानी का प्रदाय किया जा रहा है भीमगढ़ बांध से। भीमगढ़ से पानी बिजली चलित पानी की मोटर्स के जरिए 22 किलोमीटर दूर श्रीवनी फिल्टर प्लांट लाया जाता है। यहां करोड़ों अरबों रूपए व्यय कर जल कथित तौर पर कीटाणुमुक्त बनाया जाता है। फिर यह पाईप के सहारे 22 किलोमीटर का लंबा सफर तय करता है। रास्ते में जगह जगह गांव वालों ने अपनी अपनी सुविधा के हिसाब से इस पाईप लाईन में छेद बना लिए हैं। वैसे निर्धारित दूरी पर लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने चेंबर्स भी बनाए हैं।
ये चेंबर्स अब धोबीघाट बन चुके हैं। इन चेंबर्स पर ग्रामीण ना केवल अपने गंदे कपड़े धोते हैं वरन् यहां वाहन भी धुलते हैं। इसका सबसे दुखदायी पहलू तो यह है कि इन सीमेंटेड चेंबर्स पर ग्रामीण अपने मवेशियों को स्नान करवाते हैं। यहां निकलने वाला गंदा पानी एक बार फिर चेंबर में ही समाहित होकर अगली बार जब टंकी भरने की गरज से पाईप लाईन में पानी भेजा जाता है, उसमें यह मिश्रित होकर आगे बढ़ता है।
सिवनी शहर में सर्किट हाउस के बाजू से होकर यह पाईप लाईन गुजरती है। यहां भी चेंबर बने हुए हैं। इन चेंबर्स पर बीमार मरीजों, शवों आदि को ढोने वाली एंबूलेंस खड़ी धुलती दिखाई दे जाती हैं। रोजाना ही कम से कम आधा दर्जन एंबूलेंस यहां धुलती हैं। इन एंबूलेंस में मरीजों के रोगों के कीटाणु रह जाते होंगे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। एंबूलेंस एवं अन्य वाहन धुलाई का निकलने वाला पानी वापस चेंबर में ही घुस जाता है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि यह दूषित पानी पाईप लाईन के जरिए पानी की टंकियों के रास्ते लोगों के घरों तक जाता है। इन टंकियों से पानी की सप्लाई नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी सहित, जिला कलेक्टर, पीएचई आदि सरकारी विभागों के आला अधिकारियों के घरों के साथ ही साथ सारे शहर को की जाती है। सालों से कीटाणुयुक्त पानी पीते रहने के कारण शहर वासियों को ना जाने कितने संक्रामक रोगों ने घेर लिया होगा जिससे वे अभी वाकिफ भी नहीं होंगे।
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के पास पानी को साफ करने के लिए लिक्विड फार्म में दवा है, पर वितरण के अभाव में हर साल इसकी हजारों शीशियां एक्सपाईरी डेट को पा लेती हैं। लोगों को जागरूक करने के लिए पीएचई, नगर पालिका परिषद और स्वास्थ्य विभाग द्वारा समय समय पर जागरूकता अभियान चलाने का दावा किया जाता है पर यह अभियान महज कागजों पर ही चलता दिखता है।
नगर पालिका द्वारा प्रदाय किए जाने वाले पेयजल की गुणवत्ता कितनी अच्छी है, यह कितना साफ और पीने योग्य है इसकी जांच करना लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की जवाबदेही है। क्या पीएचई विभाग यह बताने में सक्षम है कि पिछले पांच सालों में उसने स्वतः संज्ञान लेकर शहर के कितने सार्वजनिक या निजी नलों से पानी का सेंपल लेकर उसकी जांच की है? जांच की है तो क्या पाया? और अगर नहीं की है तो इसकी क्या वजह है? क्या स्वतः संज्ञान लेने में पीएचई की प्रतिष्ठा कम हो जाती है?

अगर आपको नगर पालिका की वाटर सप्लाई में पानी की गुणवत्ता की परख करनी हो तो एक बाल्टी पानी में फिटकरी के टुकड़े को पांच सात बार घुमाकर उसे रख दें। एक घंटे के उपरांत आपको बाल्टी की तली में बैठी गंदगी दिखाई दे तो समझिए नगर पालिका परिषद सिवनी आपको पानी नहीं, बीमारी के लिए जिम्मेदार पानी पिला रहा है। हमारा कहना महज इतना ही है कि अगर नगर पालिका परिषद में बैठे कांग्रेस भाजपा के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, पार्षद शहर के लोगों को साफ पानी नहीं पिलवा सकते तो उन्हें अपने पदों पर बने रहने का नैतिक अधिकार नहीं रह जाता है!

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