सोमवार, 25 जून 2012

राष्ट्रपति चुनाव का असली खेल बाकी है मेरे दोस्त


राष्ट्रपति चुनाव का असली खेल बाकी है मेरे दोस्त

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। रायसीना हिल्स को आशियाना बनाने की जंग बेहद तेज हो चुकी है, इन परिस्थितयों में सियासी परिदृश्य से कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी एकदम ही गायब हैं। जादुई संख्या के गणित में दोनों उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी और पी.ए.संगमा ने अपने अपने सारे घोड़े छोड़ दिए हैं। कांग्रेस चाह रही है कि प्रणव मुखर्जी राष्ट्रपति बनें पर उनकी राह में शूल ही शूल नजर आ रहे हैं। सियासी हल्कों में चर्चा है कि महामहिम चुनाव का असली खेल तो अभी बाकी है मेरे दोस्त!
चंद दिनों पहले की घटना क्रम पर अगर नज़र डाली जाए तो मामला साफ हो जाता है। त्रणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी जब कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी से मिलकर बाहर आईं तब उन्होंने कहा था कि सोनिया गांधी ने दो नामों पर विचार करने को कहा है जिनमें से एक प्रणव मुखर्जी का था। दूसरा नाम सियासी गलियारों में खो गया था।
उसके उपरांत ममता मुलायम का प्रहसन हुआ तो पी.ए.संगमा ने भी राष्ट्रपति चुनाव के लिए ताल ठोंक दी। एनडीए इस मामले में बखरा ही नजर आया। अंततः भाजपा ने संगमा को अपना समर्थन दे दिया। अब सियासी गलियारों में ईसाई और आदिवासी कार्ड की धूम मच चुकी है।
कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के सूत्रों का कहना है कि इतिहास एक बार फिर खुद को दोहराने को तैयार दिख रहा है। गोरतलब है कि 1974 में जब समूची कांग्रेस नीलम संजीव रेड्डी के पीछे आकर खड़ी हो गई थी, उस वक्त कहा जाता था कि इंदिरा गांधी चाह रही थीं कि रेड्डी के बजाए बी.बी.गिरी को प्रधानमंत्री बनाया जाए। अंततः चुनाव हुए और कांग्रेस को इंदिरा गांधी के सामने मुंह की खानी पड़ी थी।
वर्तमान हालात भी कमोबेश इसी ओर इशारा कर रहे हैं कि प्रणव मुखर्जी कांग्रेस की पसंद हैं किन्तु सोनिया गांधी की पसंद नहीं। संभावना यही व्यक्त की जा रही है कि सोनिया गांधी प्रणव मुखर्जी से अपने पति स्व.राजीव गांधी के अपमान का बदला लेने आमदा हैं। इंदिरा गांधी के निधन के उपरांत प्रणव मुखर्जी स्वयं ही महामहिम राष्ट्रपति बनना चाह रहे थे। जब उनकी दाल नहीं गली तो उन्होंने कांग्रेस को छोड़कर समाजवादी कांग्रेस का गठन कर लिया था।
दस जनपथ के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि जब भी प्रणव मुखर्जी की बात चलती है तब तब प्रणव विरोधियों द्वारा सोनिया गांधी के उन जख्मों को कुरेदकर हरा कर दिया जाता है जिनमें प्रणव मुखर्जी द्वारा राजीव गांधी का विरोध किया गया था। इसके चलते सोनिया के वे रिसते घाव एक बार फिर दर्द देने लगते हैं।
वहीं दूसरी ओर सियासी फिजां में यह बात भी तैर रही है कि संगमा ने भी सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे को हवा दी थी। इस लिहाज से सोनिया को संगमा का समर्थन नहीं करना चाहिए। इसके जवाब में सूत्रों का कहना है कि सोनिया गांधी खुद कभी भी प्रधानमंत्री बनने की इच्छुक नहीं थीं इसलिए वे इसे बड़ी बात नहीं मानती हैं।
सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की ताजपोशी में सबसे बड़ा अड़ंगा प्रणव मुखर्जी ही बनकर सामने आ रहे थे। सबसे ज्यादा सीनियर होने के नाते वे राहुल गांधी के अधीन मंत्री बनने को तैयार नहीं थे। कांग्रेस की कोर कमेटी की बैठक में भी अनेकों मर्तबा प्रणव मुखर्जी ने इस बात के संकेत दिए बताए जाते हैं।
सूत्रों की मानें तो राहुल गांधी की ताजपोशी के लिए प्रणव मुखर्जी को सक्रिय राजनीति से हटाना अत्यावश्यक हो गया था। संभवतः यही कारण है कि सोनिया गांधी ने उनका नाम आगे तो बढ़ाया किन्तु जब ममता के साथ उन्होंने चर्चा की तो संगमा का नाम भी धीरे से उछाल दिया ताकि प्रणव का विरोध हो सके। सोनिया जानती थीं कि ममता और प्रणव एक ही सूबे के होने के कारण एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा रखते हैं।
वहीं कहा जा रहा है कि सभी दलों के आदिवासी सांसदों का संगमा के पक्ष में लामबंद होना आरंभ हो गया है। वहीं दूसरी ओर इसाई मिशनरी भी संगमा के लिए उपजाऊ माहौल तैयार करने में जुट गईं हैं। चर्चाएं तो यहां तक भी हैं कि संगमा को रायसीना हिल्स भेजने के लिए साम, दाम, दण्ड, भेद की नीति भी अपनाने से गुरेज नहीं किया जा रहा है।
यहां यह बात उल्लेखनीय है कि संगमा और सोनिया दोनों ही कैथोलिक मसीही समाज के हैं। सोनिया के करीबी सूत्रों ने यहां तक कहा कि रोम चाह रहा है कि देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद पर मसीही समाज का अनयाई बैठे। चर्चा तो यहां तक है कि सटोरियों का भी मानना है कि इसाई मिशनरी संगमा के लिए हर संभवप्रयास करने पर आमदा है। अगर संगमा देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठते हैं तो यह मसीही समाज के लिए बहुत गौरव की बात ही होगी।
कहा तो यहां तक जा रहा है कि संप्रग दो के साथ ही यह तय किया गया था कि संगमा का नाम महामहिम पद के लिए सोनिया द्वारा सबसे पहले ही आगे बढ़ा दिया जाएगा। सोनिया के परोक्ष समर्थन के बाद आदिवासी सांसदों के फोरम और इसाई मिशनरियों ने संगमा के पक्ष में माहौल बनाना आरंभ कर दिया है।
अंदर ही अंदर संगमा के पक्ष में बयार बहती दिख रही है। सियासी पण्डितों का मानना है कि भाजपा और संघ ने अंडरकरेंट को पहचानकर ही संगमा के पक्ष में दांव लगाया है। वैसे भी प्रणव के रवैए के चलते कांग्रेस के सांसद काफी नाराज बताए जाते हैं। प्रणव मुखर्जी फ्लोर मैनेजमेंट में तो महारथ रखते हैं किन्तु जब बात कांग्रेस के सांसदों की आती है तो उनका रवैय बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है।

राष्ट्रपति चुनावों के बाद सोनिया ‘मन‘ से फेंटेंगी पत्ते


राष्ट्रपति चुनावों के बाद सोनिया मनसे फेंटेंगी पत्ते

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। राष्ट्रपति चुनावों के उपरांत सत्ता और संगठन में बड़ा बदलाव हो सकता है। आम चुनावों में अब दो साल का समय बचा है और कांग्रेस अपनी छवि को एक बार फिर चमकाकर तीसरी बार सत्ता हासिल करने को आतुर नजर आ रही है। इसके लिए सरकार और संगठन दोनों ही का चेहरा बदलने की कवायद हो रही है ताकि आने वाले समय में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की ताजपोशी के मार्ग प्रशस्त हो सकें।
राष्ट्रपति चुनावों के एन बाद सरकार में होने वाले फेरबदल के बारे में कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑॅफ इंडिया को संकेत दिए कि प्रणव मुखर्जी के त्यागपत्र से रिक्त होने वाले वित्त मंत्रालय की कमान प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह अपने पास ही रखने वाले हैं।
इसके आलवा गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बर से होम लेकर डिफेंसे मिनिस्टर ए.के.अंटोनी को दिया जा सकता है वैस होम के लिए गुलाम नबी आजाद भी लाबिंग कर रहे बातए जा रहे हैं। गृह मंत्री चिदम्बरम को विदेश मंत्रालय दिया जा सकता है। ममता और यूपीए के बीच छिड़ी अघोषित रार को देखकर सभी की राल रेल मंत्रालय के लिए टपक रही है। डीएमके इसे लपकने को आतुर दिखाई दे रहा है। टी.आर.बालू के करीबी सूत्रों की मानें तो रेल विभाग के ठेकेदारों ने हार फूल लेकर उनके निवास पर आमद देना भी आरंभ कर दिया है।
कांग्रेस के नए संकट मोचक नंबर दो राजीव शुक्ला की पदोन्नति तय मानी जा रही है। शुक्ला को कैबनेट मंत्री के बतौर पदोन्नत कर कोई मलाईदार विभाग सौंपा जा सकता है। वहीं एचआरडी मिनिस्टर कपिल सिब्बल से यह विभाग छिनना लगभग तय ही माना जा रहा है। अल्पसंख्यक कल्याण और कानून मंत्री सलमान खुर्शीद की नौकरी भी खतरे में ही बताई जा रही है।
वित्त मंत्रालय के लिए लाबिंग करने वाले जयराम रमेश सहित वायलर रवि,  जयपाल रेड्डी को कम महत्व का विभाग देकर संगठन की महती जवाबदारी सौंपी जा सकती है। उधर, राजा दिग्विजय सिंह, आस्कर फर्नाडिस, मनीष तिवारी को संगठन की जवाबदेही के साथ ही साथ केंद्र में लाल बत्ती से नवाजा जा सकता है।
सूत्रों ने कहा कि वित्त मंत्रालय के लिए केंद्रीय शहरी विकास मंत्री कमल नाथ काफी जोर लगा रहे हैं। कमल नाथ का माईनस प्वाईंट यह उभरकर सामने आ रहा है कि प्रधामंत्री डॉ.मनमोहन सिंह, केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश, मोंटेक सिंह अहलूवालिया, सोनिया के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल, राहुल गांधी भी कमल नाथ को नापसंद ही करते हैं। कमल नाथ के खाते में नीरा राडिया के टेप में कमीशन के आरोप भी मीडिया में जमकर उछले हैं। दिल्ली के कुछ मीडिया संस्थानों में कमल नाथ का अच्छा रसूख है तो कुछ उनकी मुखालफत करते नजर आ रहे हैं।

. . . मतलब भूरिया आदिवासी विरोधी हैं!


. . . मतलब भूरिया आदिवासी विरोधी हैं!

क्या गलत रिपोर्ट देने वाले पर्यावेक्षक नपेंगे?

(संजीव प्रताप सिंह)

सिवनी (साई)। आजादी के बाद पचास सालों तक कांग्रेस का दामन थामने वाले सिवनी जिले के लखनादौन विधानसभा क्षेत्र के आदिवासी अपने आप को इस समय ठगा सा महसूस कर रहे हैं। इसका कारण बताया जा रहा है कि तहसील मुख्यालय लखनादौन में हो रहे नगर पंचायत चुनावों में अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस द्वारा जिस तरह से कदम ताल किए जा रहे हैं उससे उपजी परिस्थितियां। क्षेत्र में तो अब यह चर्चा भी आम हो रही है कि अगर कांग्रेस को इसी तरह लुटिया डुबोना है तो इसका मतलब तो यह हुआ कि कांग्रेस और प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ही आदिवासियों के असली विरोधी हैं।
ज्ञातव्य है कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी, महासचिव राहुल गांधी भी अपने आदिवासी प्रेम के चलते लखनादौन आ चुके हैं। इतना ही नहीं लखनादौन नगर पंचायत चुनाव में कार्यकर्ताओं से रायशुमारी के लिए प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया, विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह भी लखनादौन आकर कार्यकर्ताओं की नब्ज टटोलकर जा चुके हैं।
कार्यकर्ताओं के जेहन में एक प्रश्न अब तक अनुत्तरित है कि आखिर रणछोड़दास बने कांग्रेस प्रत्याशी को किसकी अनुशंसा पर टिकिट दिया गया था। और अगर वह किसी के डर या बहकावे में आकर मैदान छोड़ गया (जैसा कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया सहित समूची प्रदेश कांग्रेस एक सा कोरस गा रही है) तो क्या कांग्रेस के कार्यकर्ता इतने डरपोंक हो गए?
गौरतलब है कि समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया द्वारा बार बार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया से इस संबंध में पूछा गया, हर बार उन्होंने कहा कि अभी पर्यवेक्षक का प्रतिवेदन आने दिया जाए फिर बताएंगे कि प्रत्याशी कौन होगा? फिर कहा गया कि पर्यवेक्षक भेजे हैं मामले का पता करवाते हैं? समर्थन तो निर्दलीय सुधा राय को ही दिया जाएगा जिसे कांग्रेस ने अपना डमी बनाकर खड़ा किया गया था। आठ दिन बीत जाने के बाद भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने इस संबंध में ना तो कोई कार्यवाही ही की है और ना ही कोई बयान ही जारी किया है।
उधर, सुधा राय को कांग्रेस का डमी प्रत्याशी बताने पर जिला कांग्रेस कमेटी में भी उबाल आ गया है, क्योंकि इसके पहले कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और सुधा राय के पुत्र दिनेश राय पर पर्दे के पीछे जुगलबंदी करने के आरोप लगते रहे हैं। अगर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के पास सुधा राय को कांग्रेस का डमी प्रत्याशी होने का फीडबैक है तो इससे कांग्रेस के आला नेताओं की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक ही है। वैसे भी दिनेश राय के कारण ही सुरेश पचौरी के कट्टर समर्थक प्रसन्न चंद मालू की 2008 के विधानसभा चुनावों में जमानत जप्त हो चुकी है।

वर्चस्व की जंग में प्रभावित हो रही शिवराज की छवि


वर्चस्व की जंग में प्रभावित हो रही शिवराज की छवि

(राजेश शर्मा)

भोपाल (साई)। मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग में वर्चस्व की जंग का सीधा असर राज्य सरकार और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि पर पड़ रहा है। जबसे समाचार और विज्ञापनों को एक ही स्थान पर केंद्रित किया गया है तबसे समाचार के बजाए विज्ञापन में ज्यादा रूचि देखने को मिल रही है।
ज्ञातव्य है कि गत दिवस न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा दिवस पर 23 जून को मध्य प्रदेश को सम्मानित किया गया। मध्य प्रदेश लोक सेवा गारंटी अधिनियम लागू करने वाले राज्य के रूप में अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त संयुक्त राष्ट्र संघ अवार्ड प्राप्त करने के लिए मध्य प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने लोक सेवा प्रबंधन राज्य मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह, प्रमुख सचिव लोक सेवा प्रबंधन विभाग इकबाल सिंह बैंस और विभाग के उप सचिव मनोहर दुबे को न्यूयार्क रवाना होना था।
मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग द्वारा इस आशय का समाचार ही जारी नहीं किया गया, जिससे जनसंपर्क संचालनालय के अंदर गुटबाजी और वर्चस्व की जंग की परछाई साफ दिखाई पड़ने लगी है। जनसंपर्क विभाग के एक अफसर ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर संकेत दिए कि अगर यही चलता रहा तो मध्य प्रदेश में जल्द ही जनसंपर्क विभाग के लिए भी आउटसोर्सिंग आरंभ करना पडेगा।
कहा जा रहा है कि इसके पहले जनसंपर्क आयुक्त हुआ करते थे मनोज श्रीवास्तव, उसके बाद उनके ही गुट के समझे जाने वाले राकेश श्रीवास्तव को इस विभाग की कमान सौंपकर मध्य प्रदेश सरकार की छवि चमकाने की जवाबदेही सौंपी गई। राकेश श्रीवास्तव की पदस्थापना के उपरांत आरंभ में तो सब कुछ ठीक ठाक रहा बाद में फिर मामला पुराने ढर्रे पर आने लगा।
बाणगंगा स्थित जनसंपर्क संचालनालय के सूत्रों का कहना है कि पहले मुख्यमंत्री के इर्द गिर्द भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी इकबाल सिंह बैस की तूती बोलती थी, तो अब उनका स्थान मनोज श्रीवास्तव ने ले लिया है। कहा जाता है कि दोनों ही वरिष्ठ आईएएस के बीच सामंजस्य का जबर्दस्त अभाव है। चर्चा है कि एक बार भारतीय रेल में दिल्ली से भोपाल यात्रा के दोरान एक अन्य आईएएस की उपस्थिति में इनमे ंसे एक अधिकारी के साथ हुए हादसे को भी दूसरे आईएएस ने जमकर हवा दी थी।
इन बातों में सच्चाई कितनी है यह तो मनोज श्रीवास्तव जाने या इकबाल सिंह बैस, किन्तु मध्य प्रदेश सरकार विशेषकर शिवराज सिंह चौहान को दुनिया के चौधरी अमरिका में मिले सम्मान की खबर जारी ना कर जनसंपर्क विभाग ने साबित कर दिया है कि कहीं कुछ ना कुछ गड़बड़ तो है। जरा जरा सी बात पर मंत्रियों के भ्रमण कार्यक्रम जारी करने वाला जनसंपर्क महकमा अपने एक मंत्री ब्रजेंद्र प्रताप सिंह के विदेश दौरे की खबर को ही पचा गया, जो आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है।