बुधवार, 23 दिसंबर 2009

संकट में स्वयंभू संत!


संकट में स्वयंभू संत!

(लिमटी खरे)


देश के स्वयंभू प्रवचनकर्ता संत आशाराम बापू के जीवन में विवादों ने उनका पीछा कभी भी नहीं छोडा है। कभी उनके चरित्र पर लांछन लगे तो कभी तांत्रिक होने के, तो कभी जमीन की दलाली कर हडपने के आरोप उन पर लगते रहे हैं। मजे की बात यह है कि बापू पर सारे आरोप किसी ओर ने नहीं वरन् उनके अपने शिष्यों ने ही मढे हैं। इन आरोपों में बापू का उंचा रसूख ढाल की तरह सामने आया है। वैसे भी हिन्दुस्तान की सरजमी पर धार्मिक तौर पर शोषण करने वाले बाबाओं की खासी तादाद है।
कभी अपने गुरूकुल के छात्रों की संदिग्ध परििस्थ्ति फिर मध्य प्रदेश के छिंदवाडा में एक शिक्षिका के संदेहास्पद मौत के बाद चर्चाओं में आए आशाराम बापू पर गुजरात सरकार ने शिकंजा उस वक्त कसा जब उनके पूर्व अनुयायी राजू चांडक की हत्या के प्रयास में पुलिस ने उन पर मामला कायम कर लिया। बापू को न्यायालय तक से राहत नहीं मिल सकी।
गौरतलब होगा कि 5 जुलाई 2007 तो गुजरात में साबरमती के किनारे बापू के गुरूकुल में पढने वाले दो छात्र दीपेश और अभिषेक के शव बरामद किए गए थे, जिनके आसपास तंत्र क्रिया में प्रयुक्त होने वाली सामग्री भी मिली थी। उस वक्त लोगों का आरोप था कि मोदी सरकार ही बापू को बचाने में लगी हुई है।

लोगों के दवाब में आकर नरेंद्र मोदी ने उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायमूर्ति त्रिवेदी की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन कर दिया। इस आयोग के सामने आधा सैकडा लोगों ने अपने अपने गुबार जमकर निकाले। बताते हैं कि लोगों का आरोप यहां तक था कि बापू और उनका पुत्र सदैव ही तांत्रिक साधनाएं करता है, इसमें मानव शवों का प्रयोग भी किया जाता रहा है।
कभी आशाराम बापू के काकस का प्रमुख अंग रहा राजू चाण्डक कुछ सालों पहले ही उनसे अलग हुआ है। कहा जाता है कि चाण्डक ने राजस्थान में एक अज्ञात महिला के साथ बापू को योन संबंध बनाते देखा था, तभी से उसे बापू से विरक्ती हो गई थी। जबसे वह बापू से अलग हुआ है, तभी से वह बापू के बारे में कुछ न कुछ रहस्योद्घाटन कर ही रहा है। चाण्डक ने बापू को अपने पूजने वालों को धोका देने वाला और चारित्रिक तौर पर उचित व्यक्ति न होने तक का आरोप मढा है।

चाण्डक के आरोपों में कितना दम है यह बात तो समय के साथ ही सामने आ सकती है, किन्तु जब चाण्डक पर ही गोलियों से हमला हुआ तब बात हाथ से निकलती दिखाई दी। इसके पहले आशाराम बापू की एक सीडी भी बाजार में आ गई थी जिसमें आशाराम बापू को यह कहते हुए दिखाया गया था कि गुजरात के मुख्यमंत्री और एक स्थानीय अखबार मेरे (आशाराम के) खिलाफ एक सुनियोजित षणयंत्र का ताना बाना बुन रहे हैं। जो लोग इस काम में मदद कर रहे हैं अगर उन्हें कम से कम तीन चार दिन और अधिक से अधिक एक माह के भीतर सबक न मिले तो वे उनके मातहत बनने को तैयार हैं।
सरकार को चाहिए कि चाण्डक के एक कथन को मानकर कार्यवाही करे, जिसमें चाण्डक ने साफ कहा है कि मामले की सच्चाई जानने के लिए राजू चाण्डक और आशाराम बापू दोनों ही का नारको टेस्ट कराया जाना चाहिए। नारको टेस्ट से बडे से बडे दुर्दांत अपराधी भी सच्चाई को बता ही देते हैं, फिर बापू जैसे संत जिनके अनुयायियों की खासी तादाद है अगर निर्दोष हैं तो उन्हें खुद ही आगे आकर चाण्डक की इस बात पर अपनी सहमति देना चाहिए, क्योंकि उनकी छवि के साथ ही उनके चाहने वालों की आस्थाएं भी जुडी हुई हैं।
यद्यपि यह सीडी कम ही लोगों के पास है, पर इस सीडी के अस्तित्व से लोग इंकार नहीं कर रहे हैं। यह सीडी वास्तविक है या छेडछाड कर बनाई गई है यह बात भी शोध का ही विषय है, किन्तु इसके बाद का घटनाक्रम बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है।

बापू के अनुयायियों ने गुजरात के पुलिस महानिदेशक शब्बीर हुसैन को ही बापू के खिलाफ षणयंत्र का ताना बाना बुनने वाला करार दे दिया। इस तरह इस पुलिस की कार्यवाही को सांप्रदायिक रंग देने की नाकाम कोशिश के बावजूद गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुप्पी साधे रखी। नतीजतन पुलिस ने अपना शिकंजा और कसना आरंभ कर दिया।
कहा तो यहां तक भी जाता है कि बापू का साम्राज्य पांच हजार करोड से भी ज्यादा मूल्य का है। 1980 में गुजरात में साबरमती के तट पर बापू ने प्रवचन देने की शुरूआत की थी। उस वक्त बापू के पास अकूत धनसंपदा का भण्डार नहीं था। आशाराम बापू के हाथों में इन तीस सालों में कौन सा पारस पत्थर लग गया जिससे आज उनकी मिल्कियत में एक हजार दो सौ सत्संग केंद्र, एक सैकडा से अधिक बडे आश्रमों के अलावा गुरूकुल और आश्रम के लिए सैकडों एकड जमीन का शुमार है। बापू पर आरोप है कि अनेक स्थानों पर तो बापू ने जनसेवकों के माध्यम से प्रशासन पर दबाव डालकर लोगों की जमीनें भी अपने नाम करवा लीं हैं।

राजनैतिक तौर पर भी आशाराम बापू का उपयोग करने से राजनेता नहीं चूकते हैं। आशाराम बापू के वाकचातुर्य के चलते उनके अनुयायियों की तादाद में तेजी से इजाफा हुआ है। यही कारण है कि चुनावों के आसपास बापू के प्रवचनों का आयोजन करा एक तरफ जनसेवक बापू की झोली में आकूत दौलत भरते हैं, वहीं बापू प्रवचनों के दरम्यान अपने शिष्यों के सामने जनसेवक पर लाड प्यार दुलार जताकर उसकी जीत सुनिश्चित करने में कोई कोर कसर नहीं रख छोडते हैं।
दरअसल भारत देश की जनता धर्मभीरू है। मशहूर तांत्रिक चंद्रास्वामी के उपरांत देश में नब्बे के दशक से कुकुरमुत्ते की तरह पैदा हुए स्वयंभू संत और योग गुरूओं ने इसी जमीन पर अपनी अच्छी खासी दुकान सजा रखी है। कल तक सडकों पर चप्पलें चटकाने वाले लोग आज एयर कंडीशनर गाडियों, सैकडों एकड के आश्रमों, देश विदेश की हवाई यात्राओं का लुत्फ उठा रहे हैं।
आश्चर्य की बात तो यह है कि देश का आयकर विभाग भी इनके सामने नतमस्तक ही नजर आता है। राजनैतिक रसूख के चलते ये संत अपने प्रतिष्ठान में आने वाली आय को आयकर की विभिन्न धाराओं के तहत ``कर मुक्त`` करवा लेते हैं फिर शुरू होता है, भोग और विलासिता का कभी न रूकने वाला खेल। दिल्ली में ही छतरपुर इलाके के भव्य मंदिर या आश्रमों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि देशवासियों को नीति और अनीति का पाठ पढाने वाले संत आखिर किस तरह की फाईव स्टार लाईफ को अंगीकार किए हुए हैं।

किसी भी धर्म की किताब में संत ने हमेशा से समस्त सुखों को तजा ही है। सालों साल जंगल में तपस्या कर, या टूटी फूटी मिस्जद या झोपडी में अपना जीवन बिताकर संतों ने मानव मात्र की सेवा को ही अपना परम धर्म समझा है। अभी वह पीढी जिन्दा होगी, जिसने महाराष्ट्र प्रदेश के अहमदनगर जिले के शिरडी के फकीर ``साई बाबा`` को आंखों से देखा होगा। शिरडी का फकीर एक अंगरखे में ही द्वारका माई में अपना पूरा जीवन बिता गया, पर आज ``साई`` के नाम पर देश भर में मंदिर बनाकर लोग न जाने कितना मुनाफा कमा रहे हैं।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में संत हिरदाराम जी को कौन नहीं जानता। सारा जीवन उस संत ने सादगी के साथ बिताया। शतायु होने के बाद भी वे अपना भोजन खुद ही बनाया करते थे। संत हिरदाराम ने कभी भी किसी राजनेता के साथ फोटो खिचाकर उसे मीडिया को नहीं दिया। राजनेता खुद ही बडे श्रृद्धाभाव से संत की कुटिया में जाया करते थे। इसी तरह जैन मुनियों का इतिहास भी सादगी और कठोर संयम से बंधा हुआ है।
जनता को अब जागना होगा, और इस तरह के वाकचातुर्य के धनी बाजीगरों से खुद को दूर रखना होगा। जनसेवकों को भी चाहिए कि जनता जनार्दन के इर्दगिर्द फैले इस तरह के फर्जी संत अथवा गुरूओं को बेनकाब कर जनता को इनके पाखण्ड से बचाए, पर यह इसलिए नहीं हो पाएगा क्योंकि अगर जनसेवक एसा करने लगे तो उन्हें ही बेनकाब होते समय नहीं लगेगा।